5/2/21

पुनर्जन्म का सिद्धांत

पिछले जन्म में आप क्या थे? क्या वाकई आप जानना चाहते हैं? क्या आप पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते हैं? पिछला या पुनर्जन्म होता है या नहीं? यह सवाल प्रत्येक व्यक्ति के मन में होगा। हो सकता है कि कुछ लोग मानकर ही बैठ गए हैं कि हां होता है और कुछ लोग यह मानते हैं कि नहीं होता है।

 


दोनों ही तरह के लोग यह कभी जानने का प्रयास नहीं करेंगे कि पुनर्जन्म होता हैं। यहूदी, ईसाईयत, इस्लाम जो पुनर्जन्‍म के सिद्धांत को नहीं मानते। हिंदू, जैन और बौद्ध यह तीनों धर्म मानते हैं कि पुनर्जन्म एक सच्चाई है। हिंदू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। उसकी यह भी मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है, जैसा गीता में कहा गया है। हमारा यह शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है- आकाश, वायु, अग्नि, जल, धरती। यह जिस क्रम में लिखे गए हैं उसी क्रम में इनकी प्राथमिकता है। शरीर जब नष्ट होता है तो उसके भीतर का आकाश, आकाश में लीन हो जाता है, वायु भी वायु में समा जाती है। अग्नि में अग्नि और जल में जल समा जाता है। अंत में बच जाती है राख, जो धरती का हिस्सा है। इसके बा‍द में कुछ है जो बच जाता है उसे कहते हैं आत्मा। अधिकतर धार्मिक व्यक्तियों का मानना है कि आत्मा कभी नष्ट नहीं होती है. आत्मा केवल एक शरीर को छोड़ती है और शरीर मृत हो जाता है.अगर आप थोड़े धार्मिक व्यक्ति हैं तो आप यही कहेंगे कि हम मरने के बाद या तो स्वर्ग या नर्क जाएंगे. अगर जीवन भर अच्छे कर्म करते हैं तो आप स्वर्ग जाएंगे

मानव का स्वभाव होता है कि वह मौत से डरता है, यहां तक कि वह मौत पर बात करने से भी डरता है औऱ मौत के बाद होने वाले घटनाक्रमों से भी. जबकि हम सब को पता है कि मानव इतिहास में अमरता किसी को हासिल नहीं हुई है तो फिर यह डर कैसा? यह भय कैसा? क्या मौत से भागने की हमारी आदत, मौत से सामना ना कर पाने की हमारी अक्षमता हमारे बुढ़ापे में हमारी स्थिति को और दयनीय नहीं बनाती है? ऐसे में क्या पुनर्जन्म की अवधारणा एक और उम्मीद नहीं बंधाती है?.

 

जीवन और मृत्यु के बारे में सबसे बड़ा ज्ञान गीता में मौजूद है जिसे भगवान श्री कृष्ण की वाणी माना जाता है। इसलिए हिन्दू धर्म में जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म को एक चक्र माना जाता है। इसका कारण यह है कि भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन का मोह भंग करने के लिए गीता का उपदेश देते हुए कहा है कि 'हे अर्जुन ऐसा कोई काल नहीं है जिसमें  तुम नहीं थे या मैं नहीं था और आगे भी ऐसा कोई समय नहीं होगा जब तुम और मैं नहीं रहेंगे। मेरे और तुम्हारे कई जन्म हो चुके हैं। मुझे अपने बीते हुए सभी जन्मों का ज्ञान है और तुम्हें नहीं क्योंकि तुम नर हो और मैं नारायण। इसलिए हे अर्जुन जीवन और मृत्यु के मोह में मत उलझो। जैसे मनुष्य वस्त्र बदलता है वैसे ही आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है यानी नया शरीर धारण कर लेती है।

'न तो यह शरीर तुम्हारा है और न ही तुम इस शरीर के हो। यह शरीर पांच तत्वों से बना है- अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश। एक दिन यह शरीर इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाएगा।'- गीता

 

वेद-पुराण और गीता अनुसार आत्मा अजर-अमर है। आत्मा एक शरीर धारण कर जन्म और मृत्यु के बीच नए जीवन का उपभोग करता है और पुन: शरीर के जीर्ण होने पर शरीर छोड़कर चली जाती है। आत्मा का यह जीवन चक्र तब तक चलता रहता है जब तक कि वह मुक्त नहीं हो जाती या उसे मोक्ष नहीं मिलता।

प्रत्येक व्यक्ति, पशु, पक्षी, जीव, जंतु आदि सभी आत्मा हैं। खुद को यह समझना कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूं। यह आत्मज्ञान के मार्ग पर रखा गया पहला कदम है।

 

महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- हे कुंतीनंदन! तेरे और मेरे कई जन्म हो चुके हैं। फर्क ये है कि मुझे मेरे सारे जन्मों की याद है, लेकिन तुझे नहीं। तुझे नहीं याद होने के कारण तेरे लिए यह संसार नया और तू फिर से आसक्ति पाले बैठा है।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।

तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। -गीता 2/22

अर्थात : जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होती है।

 

क्या पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार है?

पुनर्जन्म एक ऐसा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक विषय है जो हमेशा से मानने न मानने के विवाद का विषय रहा है. मसलन पुनर्जन्म को मानने वाले लोग भी रहे है और न मानने वाले भी. पर क्या पुनर्जन्म का कोई वैज्ञानिक आधार है?

 

विज्ञान इस संबंध में अभी तक खोज कर रहा है। वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा है।

आज देश ही नहीं, बल्कि विश्व के कई वैज्ञानिक बड़ी उलझन में हैं। वहीं बहुत सारी धार्मिक मान्यताओं में से एक मान्यता अब वैज्ञानिक आधार प्राप्त करने लगी है। ये धार्मिक मान्यता है, पुनर्जन्म की। वैज्ञानिक अब तक इसे पूरी तरह से नकार रहे थे, इसके लिए उनके पास तमाम दावे भी थे। पर अब वे आशंकित नजर आ रहे हैं, क्योंकि अपने ही पुराने आधारों के कारण वे पुनर्जन्म को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है, वही नई वैज्ञानिक शोधो को वे नकार नहीं पा रहे हैं, इसलिए वे इस पर कुछ बोलना भी नहीं चाहते। दूसरी ओर पुनर्जन्म की मान्यता को कई वैज्ञानिक अपना समर्थन दे रहे हैं। इससे उनकी उलझन और बढ़ गई है।

 

पुनर्जन्म (Reincarnation) का अर्थ है पुन: नवीन शरीर प्राप्त होना। प्रत्येक मनुष्य का मूल स्वरूप आत्मा है न कि शरीर। हर बार मृत्यु होने पर मात्र शरीर का ही अंत होता है। इसीलिए मृत्यु को देहांत (देह का अंत) कहा जाता है। मनुष्य का असली स्वरूप आत्मा, पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए पुन: नया शरीर प्राप्त करता है। आत्मा तब तक जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमता रहता है, जब तक कि उसे मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। मोक्ष को ही निवार्ण, आत्मज्ञान, पूर्णता एवं कैवल्य आदि नामों से भी जानते हैं। पुनर्जन्म का सिद्धांत मूलत: कर्मफल का ही सिद्धांत है। मनुष्य के मूलस्वरूप आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा के साथ मिलना है। जब तक आत्मा का परमात्मा से पुनर्मिलन (मोक्ष) नहीं हो जाता। तब तक जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म-मृत्यु का क्रम लगातार चलता रहता है।

हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक़ पुनर्जन्म होता है लेकिन कोई भी व्यक्ति मरने के तुरंत बाद ही दूसरा जन्म ले यह संभव नहीं है। अगर हिन्दू मान्यताओं पर विश्वास किया जाए तो मृत्यु के बाद आत्मा इस वायु मंडल में ही चलायमान होती है। स्वर्ग-नर्क जैसे स्थानों पर घूमती है।

पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है। पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत (law of conservation of energy) है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात् जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता। चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है।

 

विज्ञान इस संबंध में अभी तक खोज कर रहा है। वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा है।

reincarnation

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