4/29/21

बुढ़ापा है क्या


स्तनधारी जीवों में बढ़ती उम्र के साथ ये लक्षण नज़र आने लगते हैं
, यही लक्षण इंसानों को भी एहसास दिलाते हैं कि वे बूढ़े होने लगे हैं.


बुढ़ापा अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, लेकिन बुढ़ापे में बीमार पड़ने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं. उसके साथ जीवन के अंत की शुरुआत भी हो जाती है .बुढ़ापे को यदि मैं चिकित्सा शास्त्र के हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश करूं तो गोलमोल-सी बात यह कहूंगा कि किसी भी जीव का बूढ़ा होना एक निरंतर तथा सार्वभौमिक घटना है जिसमें उस जीव की कार्यक्षमता स्थूल से लेकर सूक्ष्म स्तर (यानी उसकी कोशिकाएं) तक घटती चली जाती है. शरीर का हर कार्य क्षमता से नीचे चलने लगता है. कम होते-होते फिर यह एक दिन बंद हो जाता है. जीवन समाप्त.

 

1. डीएनए की क्षति

हमारा डीएनए एक तरह का जेनेटिक कोड होता है जो कोशिकाओं के बीच संचरित होता है.उम्र बढ़ने से इन जेनेटिक कोड के संचरण में गड़बड़ी होनी शुरू हो जाती है.धीरे-धीरे यह कोशिकाओं में जमा होना शुरू हो जाती हैं.इस प्रक्रिया को आनुवांशिक अस्थिरता के रूप में जाना जाता है और यह विशेष रूप से तब प्रासंगिक होता है जब डीएनए स्टेम कोशिकाओं को प्रभावित करता है.आनुवांशिक अस्थिरता स्टेम कोशिकाओं की भूमिका को ख़तरे में डाल सकती है.अगर ये अथिरता बढ़ जाती है तो यह कैंसर में भी तब्दील हो सकती है.

 

2. क्रोमोसोम्स का कमज़ोर होना

हर डीएनए सूत्र के अंतिम छोर पर कैप जैसी संरचना होती है जो हमारे क्रोमोसोम्स को सुरक्षित रखते हैं- ये बिल्कुल वैसी ही संरचना होती है, जैसे हमारे जूतों के फीतों की, जिसमें फीते के अंतिम छोर पर एक प्लास्टिक का टिप लगा होता है.इन्हें टेलोमर्स कहते हैं. हम जैसे-जैसे उम्रदराज़ होते जाते हैं, ये कैप रूपी संरचना हटने लगती है और क्रोमोसोम की सुरक्षा ढीली पड़ने लगती है.शोधकर्ता मानते हैं कि टेलोमर्स की संरचना में जब गड़बड़ी आती है तो कई बीमारियां होने का ख़तरा बढ़ जाता है. इसकी वजह से फेफड़ों से जुड़ी समस्याएं और एनीमिया होने का ख़तरा बढ़ जाता है. ये दोनों ही रोग प्रतिरक्षा से जुड़ी गंभीर समस्याएं हैं.

 

3. कोशिकाओं का व्यवहार प्रभावित होता है

हमारे शरीर में एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया होती है जिसे डीएनए एक्सप्रेशन कहते हैं, जिसमें किसी एक कोशिका में मौजूद हज़ारों जीन्स ये तय करते हैं कि उस कोशिका को क्या करना है .मसलन, क्या उस कोशिका को त्वचा वाली कोशिका के तौर पर काम करना है या मस्तिष्क कोशिका के रूप में.लेकिन समय और जीवनशैली इन निर्देशों को बदल सकते हैं. ऐसे में कोशिकाएं भी अपने तय व्यवहार से अलग तरीक़े से व्यवहार कर सकती हैं.

 

 4. कोशिकाओं के नवीनीकरण की क्षमता ख़त्म हो जाती है

हमारी कोशिकाओं में क्षतिग्रस्त घटकों के संचय को रोकने के लिए शरीर में नवीनीकरण की क्षमता होती है. लेकिन बढ़ती उम्र के साथ ही ये क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है.ऐसे में कोशिकाएं बेकार या ज़हरीले प्रोटीन जमा करने लगती हैं- जो कई बार अल्ज़ाइमर का कारण बन जाता है. कई बार इसकी वजह से पार्किन्संस और मोतियाबिंद का ख़तरा भी बढ़ जाता है.


5. कोशिकाएं मेटाबॉलिज़्म कंट्रोल खो देती हैं

बढ़ती उम्र के साथ कोशिकाएं वसा और शक्कर के तत्व को सोखने की क्षमता खोती जाती हैं.इसके चलते बहुत बार मधुमेह की शिकायत हो जाती है. बढ़ती उम्र में जिन लोगों को मधुमेह की शिकायत होती है उन लोगों में विशेष रूप से यही कारण होता है- उम्रदराज़ शरीर उन सभी पोषक तत्वों को ग्रहण नहीं कर पाता है जो वो खाता है.

  

6. माइटोकॉन्ड्रिया काम करना बंद कर देता है

माइटोकॉन्ड्रिया शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का काम करता है लेकिन समय के साथ ये अपनी क्षमता खोने लगते हैं.इनके कमज़ोर पड़ने से डीएनए पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. जून में विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि वैज्ञानिकों ने माइटोकॉन्ड्रिया को री-स्टोर करके चूहों में झुर्रियों को दूर कर दिया.विज्ञान और दवाइयों की मदद से ढलती उम्र के लक्षणों को जल्दी प्रभावी होने से रोका जा सकता है

 

7. कोशिकाएं ज़ॉम्बी की तरह काम करती हैं

जब कोई कोशिका बहुत अधिक चोटिल हो जाती है तो वह विघटित होना तो बंद हो जाती है लेकिन मरती नहीं है.ये ज़ॉम्बी सेल अपने आस-पास की कोशिकाओं को भी संक्रमित करने लगती है और इसके चलते पूरे शरीर में सूजन हो जाती है.ये कोशिकाएं उम्र और समय के साथ जमा होने लगती हैं.ढलती उम्र को रोका नहीं जा सकता लेकिन अच्छी लाइफ़स्टाइल से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है

 

8. स्टेम सेल अपनी क्षमता खोने लगती हैं

उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं की पुनरुत्पादक क्षमता में कमी आ जाती है.स्टेम कोशिकाएं थकने लगती हैं. हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि स्टेम कोशिकाओं के कायाकल्प से बढ़ती उम्र के शारीरिक लक्षणों को सामने आने से रोका जा सकता है.

9. कोशिकाएं एक-दूसरे से संपर्क करना बंद कर देती हैं

कोशिकाएं हमेशा एक-दूसरे से संपर्क में रहती हैं लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है उनका ये आपसी संपर्क घटने लग जाता है.उनके बीच संपर्क नहीं होने का असर ये होता है कि शरीर में सूजन आ जाती है.इसका नतीजा ये होता है कि वे रोगजनक और घातक कोशिकाओं के प्रति सक्रिय नहीं रह जाती हैं.

 

budhapa kaise aata hai

भले ही यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे रोका नहीं जा सकता है लेकिन एक स्वस्थ जीवनशैली से इसके प्रभाव को कम ज़रूर किया जा सकता है.

बुढ़ापा इंसान की उम्र का सबसे खराब दौर माना जाता है. आम हिंदुस्तानी तो इसे बुरा आपा भी कहते हैं. यानी उम्र का ये वो हिस्सा होता है जिसका आना तय है लेकिन कोई इसे जीना नहीं चाहता. बुढ़ापे में इंसान शारीरिक रूप से कमज़ोर और दूसरों पर आश्रित हो जाता है.बुढ़ापा दुनिया भर के लिए चिंता का विषय है. बड़े-बड़े वैज्ञानिक और रिसर्चर इस अवस्था से बचने के उपाय सोच रहे हैं.


आख़िर बुढ़ापा है क्या और ये क्यों होता है.

एक खास उम्र तक हमारे शरीर में कोशिकाएं बनने का सिलसिला चलता रहता है. बढ़ती उम्र के साथ ये सिलसिला कमज़ोर पड़ने लगता है और बेकार कोशिकाएं शरीर में इकट्ठा होने लगती हैं.यही कोशिकाएं आगे चलकर बुढ़ापे की वजह बनती हैं. लोगों को बीमार होने से रोका जाए. ज़्यादा बीमार होने की वजह से भी बुढ़ापा जल्दी दस्तक देता है.

 

उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक दुनिया भर में इंसान की औसत उम्र 40 साल थी. लेकिन, आज लोग ज़्यादा लंबी और सेहतमंद ज़िंदगी जीते हैं. उत्तरी यूरोप में तो औसत उम्र 80 साल तक है. बहुत जल्द दुनिया के बाक़ी देशों में भी औसत उम्र इतनी हो जाएगा.इसकी बड़ी वजह है बीमारियों पर काबू. जब तक बीमारियों और दवाओं पर रिसर्च नहीं हुई थी बड़ी संख्या में कम उम्र में ही मौत हो जाती थी.

 

इस तरक़्क़ी से साफ़ है कि इंसान बुढ़ापे को लंबे वक़्त के लिए टाल सकता है. मौत का समय आने में देर कर सकता है.

 

बुढ़ापे में ज़्यादातर लोगों की मौत शरीर के नाज़ुक अंगों जैसे दिल, जिगर और गुर्दों के काम बंद करने की वजह से होती है. अगर ये नाज़ुक अंग हमेशा स्वस्थ रहें या इनके ख़राब होने पर सेहतमंद अंग ट्रांसप्लांट कर दिए जाएं तो ज़्यादा वक़्त जिया जा सकता है. लेकिन, दुनिया में बुज़ुर्ग इतने ज़्यादा हैं कि सभी के लिए ये बंदोबस्त नहीं किया जा सकता. इसके अलावा डोनर और रिसीवर का अंग एक जैसा होना भी शर्त है और ऐसा अक्सर हो नहीं पाता.

 

हमारा शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं से मिलकर बनता है. हर एक कोशिका की एक खास उम्र होती है जो समय के साथ बूढ़ी होकर निष्क्रिय हो जाती हैं और शरीर में जमा रहती हैं. ये अन्य स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित करने लगती हैं. शरीर एक हद तक इनकी मार झेलता है लेकिन एक समय बाद हिम्मत हार जाता है.बहुत जल्द रिसर्च के ज़रिए ऐसे रसायन तैयार कर लिए जाएंगे जिनकी मदद से बूढ़ी हो रही कोशिकाओं को फिर से जवान किया जा सकेगा और मौजूदा कोशिकाओं को बूढ़ा होने से रोका जकेगा. इससे ना सिर्फ़ उम्र में इज़ाफ़ा होने की उम्मीद है बल्कि बहुत सी बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलेगी.

 

सवाल अंत में यही है कि इन तजुर्बों के बाद अगर कामयाबी मिल भी जाती है तो और कितने साल हम अपनी उम्र में जोड़ सकते हैं. लेकिन, ज़िंदगी का अंत तो मौत ही है. मौत से कोई भी रिसर्च किसी भी जीव को नहीं बचा सकती. ज़िंदगी छोटी हो या बड़ी वो सेहतमंद, खुशहाल और कामयाब होनी चाहिए.


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