विश्व में केवल हिन्दू धर्म ही ज्ञान पर आधारित
धर्म है. बाकी सब तो किसी एक व्यक्ति के द्वारा प्रतिपादित किये गये है. इसलिए
हिन्दू धर्म ही सर्वश्रेष्ट है और उसकी किसी से तुलना नही की जा सकती है. एक मात्र हिंदू
धर्म ही ऐसा
धर्म है जो समय समय पर अपने नियमों की समीक्षा करके उनमे सुधार करता रहा है.
हिन्दू धर्म एक खुला धर्म है जो विचार से नहीं
अपितु विवेक से विकसित हुआ है । इसके विपरीत अन्य सभी
बंद धर्म है जो एक व्यक्ति मात्र के विचारों पर आधारित है और जो यह मनकर चलते है
कि समय अपरिवर्तित रहता है और व्यक्ति का विवेक भी । इन धर्मों में विचारों के
विकास का कोई महत्व नहीं है । यही कारण है कि इन धर्मों में विशेष आग्रह अथवा
वैचारिक कट्टरता पाई जाती है ।
सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) विश्व के सभी धर्मों
में सबसे पुराना धर्म है। ये वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर
कई अलग अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय,
और
दर्शन समेटे हुए है।
अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में है। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है।
अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में है। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है।
सनातन धर्म विश्व का प्रचीन धर्म है , ये
धर्म अपने में इतना विशाल है की इसमें से समय समय पर विभिन्न धर्म निकलते रहे ,
कुछ
पुराणी परम्पराए टूटती रही और कुछ नई जुडती रही , कुछ पुरानी
मान्यताये ज्यों की त्यों रही तो कुछ मान्यताये
इसमें समाती रही । कुल मिला के कुछ पुराना छूटता गया कुछ पुराना यूँ ही रहा तो कुछ
नया जुड़ता गया।
|| ओ३म् ||
सनातन धर्म का अर्थ क्या होता है
इसके लिए अथर्ववेद के इस मन्त्र को देखिये -
इसके लिए अथर्ववेद के इस मन्त्र को देखिये -
सनातनमेनमहुरुताद्या स्यात पुनण्रव् ( अधर्ववेद
10/8/23)
अर्थात - सनातन उसे कहते हैं जो , जो
आज भी नवीकृत है ।
'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा
बना रहने वाला'
सनातन धर्म में सनातन क्या है ?
सनातन अर्थात जो सदा से है, जो
सदा रहेगा, जिसका अंत नहीं
है और जिसका कोई आरंभ नहीं है वही सनातन है।
और सत्य में केवल हमारा धर्म ही सनातन है, यीशु से पहले ईसाई मत नहीं था, मुहम्मद
से पहले इस्लाम मत नहीं था। केवल सनातन
धर्मं ही सदा से है, सृष्टि के आरंभ से ।
परमपिता परमात्मा ने ही सब मनुष्यों
के कल्याण के लिए वेदों का प्रकाश, सृष्टि के आरंभ में किया।
जैसे जब हम नया मोबाइल लाते हैं तो साथ में एक
गाइड मिलती है , कि इसे यहाँ पर रखें , इस प्रकार से
वरतें , अमुक स्थान पर न ले जायें, अमुक चीज़ के साथ न रखें, आदि ...।
उसी प्रकार जब उस परमपिता ने हमें ये मानव तन
दिए, तथा ये संपूर्ण सृष्टि हमे रच कर दी,
तब क्या उसने हमे यूं ही बिना किसी ज्ञान व
बिना किसी निर्देशों के भटकने को छोड़ दिया ?
जी नहीं, उसने हमे साथ
में एक गाइड दी, कि इस सृष्टि को कैसे वर्तें, क्या
करें, ये तन से क्या करें, इसे कहाँ लेकर जायें, मन
से क्या विचारें, नेत्रों से क्या देखें, कानो से क्या
सुनें, हाथो से क्या करें आदि। उसी
का नाम वेद है। वेद का अर्थ है ज्ञान ।
वेदों में क्या है ?
वेदों में कोई कथा कहानी नहीं है। वेद में
तिनके से लेकर परमेश्वर पर्यंत वह सम्पूर्ण मूल ज्ञान विद्यमान है, जो
मनुष्यों को जीवन में आवश्यक है ।
मैं कौन हूँ ? मुझमें ऐसा क्या
है जिसमे “मैं” की भावना है ?
मेरे हाथ, मेरे पैर,
मेरा
सिर, मेरा शरीर, पर मैं कौन हूँ ?
मैं कहाँ से आया हूँ ? मेरा तन तो यहीं रहेगा, तो
मैं कहाँ जाऊंगा, परमात्मा क्या
करता है ?
मैं यहाँ क्या करूँ ? मेरा लक्ष्य
क्या है ? मुझे यहाँ क्यूँ भेजा गया ?
इन सबका उत्तर तो केवल वेदों में ही मिलेगा |
रामायण
व भागवत व महाभारत आदि तो ऐतिहासिक घटनाएं है, जिनसे हमे सीख
लेनी चाहिए और इन जैसे महापुरुषों के दिखाए सन्मार्ग पर चलना चाहिए ।
हिंदुओं का धर्मग्रंथ क्या है ?
विद्वानों अनुसार 'वेद' ही
है हिंदुओं के धर्मग्रंथ। वेदों में दुनिया की हर बातें हैं। वेदों में धर्म,
योग,
विज्ञान,
जीवन,
समाज
और ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पालन और संहार का विस्तृत उल्लेख है।
वेदों का सार है उपनिषद् और उपनिषदों का सार है गीता। सार का अर्थ होता है
संक्षिप्त।
ईश्वर का स्वरूप क्या है?
यजुर्वेद के बत्ती सवें अध्यावय में परमात्मा
के विषय में कहा गया है कि अग्नि वही है, आदित्य वही है, वायु, चन्द्र्
और शुक्र वही है, जल, प्रजापति और सर्वत्र भी वही है. वह
प्रत्यक्ष नहीं देखा जा सकता है. उसकी कोई प्रतिमा नहीं है (न तस्य प्रतिमा). उसका नाम ही अत्यीन्त महान है. वह
सब दिशाओं को व्याप्तै कर स्थियत है. स्पाष्टअ है कि वेद के अनुसार ईश्वर की न
तो कोई प्रतिमा या मूर्ति है और न ही उसे प्रत्यहक्ष रूप में देखा जा सकता है.
किसी मूर्ति में ईश्वोर के बसने या ईश्वतर का प्रत्यरक्ष दर्शन करने का कथन
वेदसम्मेत नहीं है. जिन्होंने वेद पढ़े हैं वे जानते हैं कि
प्रकृति, सांसारिक
वस्तुएं, मानव और स्वयं
को पूजना कितना बड़ा पाप है। पापी हैं वे लोग जो खुद को पूजवाते हैं। ऐसे संत, ऐसे गुरु और ऐसे व्यक्तियों से दूर
रहना ही धर्म सम्मत आचरण है।
वेद के प्रकार
ऋग्वेद :वेदों में
सर्वप्रथम ऋग्वेद का निर्माण हुआ । यह पद्यात्मक है । यजुर्वेद गद्यमय है और
सामवेद गीतात्मक है। ऋग्वेद में मण्डल 10 हैं,1028
सूक्त हैं और 11
हज़ार मन्त्र हैं । इसमें 5
शाखायें हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन । ऋग्वेद के दशम मण्डल में औषधि सूक्त हैं। इसके प्रणेता
अर्थशास्त्र ऋषि है। इसमें औषधियों की संख्या 125 के लगभग निर्दिष्ट की गई है जो कि 107 स्थानों पर पायी जाती है। औषधि में
सोम का विशेष वर्णन है। ऋग्वेद में च्यवनऋषि को पुनः युवा करने का कथानक भी उद्धृत
है और औषधियों से रोगों का नाश करना भी समाविष्ट है । इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा एवं हवन द्वारा चिकित्सा
का समावेश है
सामवेद : सामवेद में
गेय छंदों की अधिकता है जिनका गान यज्ञों के समय होता था। 1824 मन्त्रों कें इस वेद में 75 मन्त्रों को छोड़कर शेष सब मन्त्र
ऋग्वेद से ही संकलित हैं। इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है। इसमें
सविता, अग्नि और इन्द्र
देवताओं का प्राधान्य है। इसमें यज्ञ में गाने के लिये संगीतमय मन्त्र हैं, यह वेद मुख्यतः गन्धर्व लोगो के लिये
होता है । इसमें मुख्य 3
शाखायें हैं, 75
ऋचायें हैं और विशेषकर संगीतशास्त्र का समावेश किया गया है ।
यजुर्वेद : इसमें यज्ञ
की असल प्रक्रिया के लिये गद्य मन्त्र हैं, यह वेद मुख्यतः क्षत्रियो के लिये होता है । यजुर्वेद के दो भाग हैं
-
कृष्ण : वैशम्पायन ऋषि का सम्बन्ध कृष्ण से है
। कृष्ण की चार शाखायें है।
शुक्ल : याज्ञवल्क्य ऋषि का सम्बन्ध शुक्ल से
है । शुक्ल की दो शाखायें हैं । इसमें 40 अध्याय हैं । यजुर्वेद के एक मन्त्र में ‘ब्रीहिधान्यों’ का वर्णन प्राप्त होता है । इसके अलावा, दिव्य वैद्य एवं कृषि विज्ञान का भी
विषय समाहित है ।
अथर्ववेद : इसमें जादू, चमत्कार, आरोग्य, यज्ञ
के लिये मन्त्र हैं, यह
वेद मुख्यतः व्यापारियों के लिये होता है । इसमें 20 काण्ड हैं । अथर्ववेद में आठ खण्ड आते हैं
जिनमें भेषज वेद एवं धातु वेद ये दो नाम स्पष्ट प्राप्त हैं।
मन्दिर
हिन्दुओं के उपासनास्थल को मन्दिर कहते हैं। यह
अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह है। यानी जिस जगह किसी आराध्य
देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की
जाए उसे मंदिर कहते हैं।
मूर्ति के प्रति हम श्रधा से जुड़े होतें हैं
और यह श्रधा परमात्मा से जुड़ने में एक सेतु का काम करता है | सारे धर्मो में यह श्रधा किसी न किसी
रूप में मौजूद है यह अटल सत्य है |
हिंदू धर्म में भी प्रारंभ से मूर्ति पूजा का
प्रचलन नहीं था | यह
धर्म अदैत्वाद और एकेश्वर वाद का समर्थक
रहा है | किन्तु
इश्वर तक पहुँचने में मूर्ति पूजा रास्ता को सरल बनाता है | हम एक मूर्ति को आराध्य मान कर उसकी
उपासना करतें है ,उसे
फूल आदि अर्पित करतें है | इस
प्रकार मूर्ति से हीं सही एक जुडाव महसूस होने लगता है | मन उस पात्र से जिसकी मूर्ति होती है
उसके प्रेम में डूब जाता है | वह पात्र चाहे वह राम हो या कृष्ण मन
उसके चरित्र में डूबता जाता है और धीरे धीरे उस परम निराकार में उतरता जाता है , उदाहरणार्थ अगर आप कृष्ण की मूर्ति की आराधना करेंगे तो आप का मन उनके
द्वारा बोले गीता के वचनों की ओर जरूर जायेगा बस लो हो गयी निराकार की ओर यात्रा
शुरू | इसी प्रकार राम
की मूर्ति रामचरितमानस की ओर ले जायेगी | दुर्गा की मूर्ति दुर्गा शप्तशती की ओर |
गीता
गीता को हिन्दु धर्म मे बहुत खास स्थान दिया
गया है। गीता अपने अंदर भगवान कृष्ण के उपदेशो को समेटे हुए है। गीता को आम
संस्कृत भाषा मे लिखा गया है, संस्कृत
की आम जानकारी रखना वाला भी गीता को आसानी से पढ़ सकता है। गीता मे चार योगों के बारे विस्तार से बताया
हुआ है, कर्म योग, भक्ति योग, राजा योग और जन योग।
गीता को वेदों और उपनिषदों का सार माना जाता, जो लोग वेदों को पूरा नही पढ़ सकते, सिर्फ गीता के पढ़ने से भी आप को ज्ञान
प्राप्ति हो सकती है। गीता न सिर्फ जीवन का सही अर्थ समझाती है बल्कि परमात्मा के
अनंत रुप से हमे रुबरु कराती है। इस संसारिक दुनिया मे दुख, क्रोध, अंहकार ईर्ष्या आदि से पिड़ित आत्माओं को, गीता सत्य और आध्यात्म का मार्ग दिखाकर
मोक्ष की प्राप्ति करवाती है।
गीता मे लिखे उपदेश किसी एक मनुष्य विशेष या
किसी खास धर्म के लिए नही है, इसके
उपदेश तो पूरे जग के लिए है। जिसमे आध्यात्म और ईश्वर के बीच जो गहरा संबंध है
उसके बारे मे विस्तार से लिखा गया है। गीता मे धीरज, संतोष, शांति, मोक्ष और सिद्धि को प्राप्त करने के
बारे मे उपदेश दिया गया है।
गीता सार
भगवान कृष्ण के उपदेशो को ‘भगवद्गीता’ नामक लोकप्रिय किताब में लिखा गया है चूंकि यह किताब
काफी विस्तृत है इसलिए इसे एक बार में पढ़ पाना काफी मुश्किल होता है। गीता सार
भगवान कृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेशों का निचोड़ है। यह पवित्र गीता का सारांश है।
>>> भगवान
प्रत्येक इंसान से विभिन्न मुद्दों पर सवाल करते हैं और उन्हंे मायावी संसार को
त्यागने को कहते हैं। उनका कहना है कि पूरी जिंदगी सुख पाने का एक और केवल एक ही
रास्ता है और वह है उनके प्रति पूरा समर्पण।
>>> तुम
क्यों व्यर्थ चिंता करते हो? तुम
क्यों भयभीत होते हो? कौन
तुम्हें मार सकता है? आत्मा
का न कभी जन्म होता है और न ही यह कभी मरता है।
>>> जो
हुआ वह अच्छे के लिए हुआ, जो
हो रहा है वह अच्छे के लिए हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छे के लिए ही होगा। भूत
के लिए पश्चाताप मत करो, भविष्य
के लिए चिंतित मत हो, केवल
अपने वत्र्तमान पर ध्यान लगाओ।
>>> तुम्हारे
पास अपना क्या है जिसे तुम खो दोगे ? तुम
क्या साथ लाए थे जिसका तुम्हें खोने का डर है? तुमने क्या जन्म दिया जिसके विनाश का डर तुम्हें सता रहा है? तुम अपने साथ कुछ भी नहीं लाए थे। हर
कोई खाली हाथ ही आया है और मरने के बाद खाली हाथ ही जाएगा।
>>> जो
कुछ भी आज तुम्हारा है, कल
किसी और का था और परसों किसी और का हो जाएगा। इसलिए माया के चकाचौंध में मत पड़ो।
माया ही सारे दु:ख, दर्द
का मूल कारण है।
>>> परिवत्र्तन
संसार का नियम है। एक पल में आप करोड़ों के स्वामी हो जाते हो और दूसरे पल ही आपको
ऐसा लगता है कि आपके पास कुछ भी नहीं है।
>>> न
तो यह शरीर तुम्हारा है और न ही तुम इस शरीर के हो। यह शरीर पांच तत्वों से बना
है- आग, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश। एक दिन यह शरीर इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो
जाएगा।
>>> अपने
आप को भगवान के हवाले कर दो। यही सर्वोत्तम सहारा है। जो कोई भी इस शत्र्तहीन
सहारे को पहचान गया है वह डर, चिंता
और दु:खों से आजाद रहता है।
पवित्र गीता के बारे में कुछ
विद्वानों की राय
अल्बर्ट आइंस्टीन
जब भी मैं भगवद्गीता पढ़ता हूं तो पता चलता है
कि भगवान ने किस प्रकार संसार की रचना की है। इसके सामने सब कुछ फीका लगता है।
महात्मा गांधी
जब भी मैं भ्रम की स्थिति में रहता हूं,
जब
भी मुझे निराशा का अनुभव होता है और मुझे लगता है कि कहीं से भी कोई उम्मीद नहीं
है तब मं भगवद्गीता की शरण में चला जाता हूं। ऐसा करते ही मैं अथाह दु:खों के बीच
भी मुस्कराने लग जाया करता हूं। वे लोग जो गीता का अध्ययन और मनन करते हैं उन्हंे
हमेशा शुद्ध विचार और खुशियां मिला करती हैं और प्रत्येक दिन वे गीता के नए अर्थ
को प्राप्त करते हैं।
हर्मन हीज
भगवद्गीता का सबसे बड़ा आश्चर्य जीवन की
बुद्धिमानी के बारे में रहस्योद्घाटन करना है जिसकी मदद से मनोविज्ञान धर्म के रूप
में फलता फू लता है।
आदि शंकर
भगवद्गीता के स्पष्ट ज्ञान को प्राप्त करने के
बाद मानव अस्तित्व के सारे उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है। यह सारे वैदिक ग्रंथों
का सार तत्व है।
रुडोल्फ स्टेनर
भगवद्गीता को पूरी तरह समझने के लिए अपनी आत्मा
को इस काम में लगाना होगा।
धर्मी, अधर्मी
और विधर्मी
सनातन हिंदू धर्म में धर्मी,
अधर्मी और विधर्मी- यह तीन शब्द अक्सर सुनने में आते हैं लेकिन
इनका अर्थ क्या है यह शायद सभी नहीं जानते हों। आमतौर पर धर्मी वह होता है जो धर्म सम्मत आचरण
करे, अधर्मी वह होता
है जो धर्म विरुद्ध
आचरण करे और विधर्मी वह होता है जो स्वयं का धर्म छोड़कर दूसरे का धर्म अपना ले।
1.धर्मी: धर्मी वह जो धर्म सम्मत आचरण करे। क्या है धर्म सम्मत आचरण? अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर परायण। मूलत: उक्त आचरण को ही धर्म सम्मत आचरण माना जाता है। लेकिन इसे बहुत कम ही लोग अपनाते या समझते हैं। धार्मिक आचरण का मतलब लोगों को सामाजिक बुराइयों से दूर कर सच्चे मार्ग पर लाना है।उक्त आचरण के अलावा दया, क्षमा, ध्यान, नम्रता, मधुर स्वभाव, इंद्रियों पर नियंत्रण, मौन, उपवास, वेद सम्मत यज्ञ, गुरु सेवा, धर्म सेवा, धर्म की प्रशंसा, मातृमूमि के प्रति प्रेम, धर्म की रक्षा और समानता का व्यवहार (अर्थात किसी को ऊँचा या नीचा न समझना, जाति ना मानना) भी धार्मिक आचरण है।क्रोध न करना, लाचल ना करना, धोका ना देना, आलस्य ना करना, एक पति या पत्नीव्रत धारण करना, रात्रि के सभी कार्य त्यागना, सामाजिक उत्तरदायित्व को समझना, बच्चों के सहायक बनना, शराब, जुआ, सट्टा, माँस भक्षण और वेश्यागमन से दूर रहना आदि भी धार्मिक आचरण कहे गए हैं।
2.अधर्मी : धर्म की बुराई
करने वाला, देवता, पितर, गुरु और माता-पिता का मजाक उड़ाना, अपने
ही धर्म के लोगों को ऊँचा या नीच समझने वाला भी अधार्मिक कहा गया है। लालच के लिए धर्म, देश, मातृभूमि, परिवार, समाज आदि के साथ धोका करना या उसे बदनाम करना भी
अधार्मिक कृत्य है।ज्योतिष, भाट, वेश्या, शराब और जुए के लिए पैसा खर्च करने वाला भी अधर्मी माना जाता है। शास्त्र
विरुद्ध मनमाने देवता, मंदिर, परंपरा, पूजा, आरती, भजन और रीति-रिवाजों को मानने वाला भी अधर्मी
है। ज्योतिष विद्या, यज्ञ, पूजा-पाठ, कथा आदि के माध्यम से जीविका चलाने
वाला भी अधर्मी है। धर्म के संबंध में असत्य बोलकर या मनमाना वक्तव्य देकर भ्रम फैलाने वाला या धर्म की
मनमानी व्याख्या
करने वाले भी अधर्मी है। अधर्मी है वह व्यक्ति जो धर्म के ज्ञान का अभिमान और
बखान करता है।उक्त समस्त प्रकार के व्यक्तियों को मार उसी तरह गिरा देती है जिस
तरह आँधियाँ सूखे वृक्षों को।
3.विधर्मी : अधर्मी ही कभी भी
विधर्मी हो सकता है। भय, लालच
या स्वयं के धर्म को न जान पाने के कारण कुछ लोग धर्म बदल लेते हैं। कुछ लोग स्वयं के धर्म को बुरा, भ्रमित करने वाला, अस्पष्ट, बहुदेववादी, मूर्तिपूजक
आदि मानकर भी धर्म बदल लेते हैं।दूसरे
का धर्म अपनाकर व्यक्ति अपने कुल का नाश तो करता ही है साथ ही वह मातृभूमि, धर्म, समाज, रिश्ते, पुर्वज और परिवार सभी को धोका देने
वाला सिद्ध
होता है। ऐसे व्यक्ति को पितरों का शाप तो झेलना ही पड़ता है साथ ही वह मृत्यु के
बाद अनंतकाल तक अंधकार में पड़ा रहता है या वह प्रेत योनि में चला जाता। ऐसा
व्यक्ति यदि अपनी गलती स्वीकार कर पुन: स्वयं के धर्म में आना चाहे तो जो इस पर एतराज करता है वह
अधर्मी कहलाता है।
हिन्दू धर्म का दुश्मन कौन ...
पिछले कई वर्षों में हिन्दुत्व को लेकर
व्यावसायिक संतों, ज्योतिषियों
और धर्म के तथाकथित संगठनों और राजनीतिज्ञों ने हिन्दू धर्म के लोगों को पूरी तरह
से गफलत में डालने का जाने-अनजाने भरपूर प्रयास किया, जो आज भी जारी है। हिन्दू धर्म की
मनमानी व्याख्या और मनमाने नीति-नियमों के चलते खुद को व्यक्ति एक चौराहे पर खड़ा
पाता है। समझ में नहीं आता कि इधर जाऊं या उधर।
ढोंगी संत
ढोंगी
संतों और पोंगा-पंडितों ने वेद, पुराण
और गीता की मनमानी व्याख्या
कर मनमाने रीति-रिवाज और पूजा-पाठ विकसित करते गए।लोग अनेकों
संप्रदाय में बँटते गए और बँटते जा रहे हैं। संत निरंकारी संप्रदाय, ब्रह्माकुमारी संगठन, जय गुरुदेव, गायत्री परिवार, कबिर पंथ, साँई पंथ, राधास्वामी मत आदि अनेकों संगठन और
सम्प्रदाय में बँटा हिंदू
समाज वेद को छोड़कर भ्रम की स्थिति में नहीं है तो क्या है?
भ्रमित समाज लक्ष्यहीन हो जाता है। लक्ष्यहीन
समाज में मनमाने तरीके से परंपरा का जन्म और विकास होता है, जो कि होता आया है। मनमाने मंदिर बनते
हैं, मनमाने देवता
जन्म लेते हैं और पूजे जाते हैं। मनमानी पूजा पद्धति, त्योहार, चालीसाएं, प्रार्थनाएं
विकसित होती हैं। व्यक्ति पूजा का प्रचलन जोरों से पनपता है। भगवान को छोड़कर संत, कथावाचक या पोंगा-पंडितों को पूजने का
प्रचलन बढ़ता है।
वर्तमान दौर में अधिकतर नकली और ढोंगी संतों और
कथावाचकों की फौज खड़ी हो गई है। धर्म को पूरी तरह अब व्यापार में बदल दिया गया
है। धार्मिक चैनलों को देखकर जरा भी अध्यात्म की अनुभूति नहीं होती। सभी
पोंगा-पंडित अपने अपने प्रॉडक्ट लेकर आ जाते हैं। अजीब-अजीब तरह के तर्क देते हैं
और धर्म की मनमानी व्याखाएं करते हैं।
विदेशियों की गुलामी
गुलामी के दिनों में विदेशी और विधर्मी शासकों ने हिन्दू समाज में फूट डालने
के लिए
अनेकों तरह से असमानता के बीज बोये थे. गुलामी स्वीकार करने वाले हिन्दुओं से, धर्म ग्रंथों की मनमानी व्याख्या करवा
कर हिन्दुओं में हीन भावना
और फूट डालने का काम करते रहे. हिन्दू धर्म ग्रथों को जलाना, मन्दिरों को तोडना,
देवी-देवताओं के अश्लील चित्र बनाना, उनके
बारे में अपशब्द बोलना इनकी घृणित मानसिकता का प्रमाण है
वेदों का अभद्र वर्णन ग्रिफिथ या मैक्स मूलर ने
किया – वे मूलतः
धर्मांतरण के विषाणु
ही थे
INTERNET इंटरनेट
हिन्दुत्व को दुनिया के समक्ष सर्वाधिक अश्लील धर्म
के रूप में प्रस्तुत करना | बहुत
सारे साइट्स पर आप इससे संबंधित अनगिनत लेख पाएंगे | भारत जैसे विभिन्न संस्कृतियों वाले देश में केवल हिंदू धर्म को निशाना बनाकर
सामाजिसक सद्भाव बिगाड़ने की अब सोशल मीडिया साइट ‘फेसबुक’ पर
गहरी साजिश चल रही है, जिससे
हिंदू इंटरनेट यूजर्स की भावनाओं को ठेस पहुंच रही है।
दूसरे शब्दों में कहें तो कुछ लोगों ने फेसबुक पर पोर्न अभिनेत्रियों और
हिंदू सिद्धांतों के विरुद्ध फोटो और कमेंट्स पोस्ट करने के लिए एक मुहिम चला रखी है। फेसबुक
ग्रुप I Love
Hinduism ( मैं हिंदू धर्म से प्रेम करता/करती हूं या गर्व
से कहो हम हिंदू हैं), पर
अश्लील सामग्री
पोस्ट्स की भरमार हो गई है। जो आपत्तिजनक और हिंदू संस्कृति के विरुद्ध है।
धर्मांतरण
धर्मांतरण ने अब एक चतुर खेल की शक्ल अख्तियार
कर ली है | एक
ही मतप्रसार के लिए अनेक प्रकार के उपायों का प्रचुर दाव – पेचों के साथ उपयोग किया जा रहा है | व्यापक स्तर पर धर्मांतरण करने
के लिए जो हिन्दुओं
को सिर्फ इस्लाम में शामिल करना चाहते हैं या जो चाहते हैं कि हिन्दू बाइबल को
ही गले लगायें, उनकी
प्रमुख कूट चाल है – हिन्दुत्व
को दुनिया
के समक्ष सर्वाधिक अश्लील धर्म के रूप में प्रस्तुत करना |
आज यह बेहद गंभीर मसला बन चुका है| भारी संख्या में अपने सत्य धर्म से
अनजान हिन्दू, आतंरिक
और बाहरी चालबाजियों का शिकार बन रहें हैं और अंततः इस अपप्रचार में फंस कर
भ्रान्तिवश अपने धर्म से नफ़रत करना शुरू कर देते हैं | उनके लिए हिंदुत्व का मतलब – राधा-कृष्ण के अश्लील प्रणय दृश्य, शिवलिंग के रूप में पुरुष जननेंद्रिय
की पूजा, शिव का मोहिनी
पर रीझना, विष्णु
और शिव द्वारा स्त्रियों का सतीत्व नष्ट करना, ब्रह्मा का अपनी पुत्री सरस्वती पर आसक्त होना इत्यादि, इत्यादि से ज्यादा और कुछ नहीं रह जाता
| हमारी जानकारी
में ऐसे कई पत्रक (pamphlets) भारतभर
में वितरित किए जा रहे हैं और उन में हिन्दुओं से अपील की जा रही है कि वे सच्चे
ईश्वर और सच्ची मुक्ति को पाने के लिए विदेशी मज़हबों को अपनाएं | बहुत से हिन्दू अपनी बुनियाद से घृणा
भी करने लगे हैं और जो हिंदुत्व के चाहनेवाले हैं, वे निश्चित नहीं कर पाते हैं कि कैसे इन कहानियों का स्पष्टीकरण दिया
जाए और अपने धर्म को बचाया जाए ईसाइयों की प्रारम्भक से ही यह मंशा रही है कि वे
सम्पूोर्ण विश्वद को ईसाई बना दें,
इसीकारण भारत में भी उनका प्रयास जारी है। भारत के वनाचंलों में इनके
द्वारा किये जा रहे प्रयासों को स्पंष्टश देखा जा सकता है। अण्ड मान निकोबार की
कहानी तो दिल दहला देने वाली है।
यदि हिन्दू समाज में दलितो आदिवासियो को सम्मान
दिया होता उन्हें उनके गरीबी वाली हाल पर न छोड़ा होता तो किसी में भी ये ताकत नहीं
थी कि वो किसी का धर्म परिवर्तन करा लेता , अफसोस होता है हिन्दू समाज के बड़े ठेकेदार इस धर्म परिवर्तन पर छाती
तो पीटते है किन्तु सेवा के नाम पर लालच दे कर हो रहे इस धर्म परिवर्तन को रोकने
के लिए जमीनी कार्य नहीं करते है ,
डराने धमकाने की जगह उन्हें अस्पताल स्कुल और नौकरी दी जाये तो इस
लालच में हो रहे धर्म परिवर्तन रुक सकते है मंदिरो में पड़े करोडो अरबो रुपये रख कर
क्या फायदा होगा यदि एक बड़ा वर्ग हिन्दू ही नहीं रहेगा , जरुरत शहरो ओए सुविधा वाली जगहो पर
इन्हे खर्च करने की नहीं है बल्कि वहा है जहा लोग असुविधा के बिच रह रहे है , किन्तु दलितो और आदिवासियो की सेवा
करना ही कौन चाहता है , जब
आप उन्हें समाज में सम्मान नहीं दे सकते या दिला सकते है तो फिर धर्म परिवर्तन को
लेकर किसी को रोना भी नहीं चाहिए
कुछ भी जो वेदों के ख़िलाफ़ है, धर्म नहीं है | हमारे वेदों के मूलभूत विचारों को अगर हम ने पकड़ कर नहीं रखा, कोई सशक्त उपाय नहीं किया एवं चौकन्ने नहीं हुए तो बहुत आसानी से हिन्दू समाज भी संक्रमित हो जाएगा|हिन्दुत्व का मूल्यांकन वेदों से और उसके मूलभूत सिद्धांतों से किया जाना चाहिए ना कि गलत अनुगामियों से या मिथ्या कथाओं से – जो बाद में गढ़ ली गईं | अतः हिन्दुत्व सिर्फ़ नैतिकता,शुद्धता और चरित्र पर ही आधारित है |
आज समय की आवश्यकता है कि एक बार
फिर धर्म की समीक्षा करके हिन्दू समाज को
एकजुट
करने के लिए नए नियम प्रतिपादित किये जाएँ.
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ReplyDeleteधर्म शब्द संस्कृत की ‘धृ’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है धारण करना । परमात्मा की सृष्टि को धारण करने या बनाये रखने के लिए जो कर्म और कर्तव्य आवश्यक हैं वही मूलत: धर्म के अंग या लक्षण हैं । उदाहरण के लिए निम्न श्लोक में धर्म के दस लक्षण बताये गये हैं :-
ReplyDeleteधृति: क्षमा दमो स्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह: ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् ।
विपत्ति में धीरज रखना, अपराधी को क्षमा करना, भीतरी और बाहरी सफाई, बुद्धि को उत्तम विचारों में लगाना, सम्यक ज्ञान का अर्जन, सत्य का पालन ये छ: उत्तम कर्म हैं और मन को बुरे कामों में प्रवृत्त न करना, चोरी न करना, इन्द्रिय लोलुपता से बचना, क्रोध न करना ये चार उत्तम अकर्म हैं ।
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“सनातन धर्म, जिसे अब हिन्दू धर्म कहा जाता है, वह केवल एक धर्म नहीं, बल्कि पूरी सभ्यता है जो अनगिन युगों से फलती-फूलती रही है, और जो कई प्रकार के हिंसक साम्राज्यवादों से लम्बे संघर्ष के बाद अपने स्वरूप में खड़े होने के लिए संघर्ष कर रही है।
ReplyDeleteहम मूर्ति पूजा कर रहे हैं तो तुम्हारे किस जगह दर्द हो रहा है...नियति अपना निर्णय स्वयं लेती है इंसान तो बस अपनी बुद्धि और ज्ञान के अनुसार आगे बढ़ता है...ज्ञान का भ्रम होना अज्ञानता का प्रथम लक्षण है कोई भी यह नहीं कह सकता कि मैंने सर्वज्ञ था प्राप्त कर ली है Gyan Tu Anant hai इसलिए यह छोटी मोटी बातें अपनी जेब में रखो har har har mahadev...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी
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