4/22/21

मृत्युभोज

भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं आत्मा अजर, अमर है. आत्मा का नाश नहीं हो सकता. आत्मा केवल युगों-युगों तक शरीर बदलती है.मृत्यु का अर्थ शरीर, आत्मा और चेतना का बिगड़ा हुआ समीकरण है यह समीकरण जो एक निर्धारित कालावधि के लिए था और वो कालावधि उपरांत समाप्त हो चुका है।

 


आत्मा का देह त्याग करने के बाद भौतिक जीवन में बहुत-से संस्कार किए जाते हैं.हिन्दू धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए हैं, जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वां संस्कार अन्त्येष्टि है. इस प्रकार सत्रहवाँ संस्कार ' मृत्युभोज ' कहाँ से ।

महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है। सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः अर्थात् जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए। लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो, तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए।

अंतिम संस्कार या अन्त्येष्टि क्रिया हिंदू धर्मों के 16 संस्कारों में से एक है। यह हिंदू धर्म का आखिरी संस्कार है। इस संस्कार को व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके परिजनों द्वारा किया जाता है। हिंदू धर्म में व्यक्ति को मृत्यु के बाद अग्नि की चिता पर जलाया जाता है। साथ ही मुखाग्नि भी दी जाती है। मुखाग्नि के बाद ही मृत शरीर को अग्नि को समर्पित किया जाता है। देह पूरी तरह अग्नि में जल जाने के बाद अस्थियों को जमा किया जाता है जिसे फूल चुगना भी कहा जाता है, और जलस्त्रोत में प्रवाहित कर दिया जाता है। अस्थियों को आमतौर पर गंगा में प्रवाहित किया जाता है।

मृत्युभोज समाज के चन्द चालाक लोगों के दिमाग की उपज है किसी भी धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान नहीं है मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है। अर्थात मृत्युभोज शरीर के लिए ऊर्जावान नहीं है। इसीलिए महापुरुषों ने मृत्युभोज का जोरदार ढंग से विरोध किया है

कई विद्वानों का मानना है कि यह एक सामाजिक बुराई है। इसे बंद किया जाना चाहिए। हालातों पर नजर डालें तो आज वाकई में यह बड़ी बुराई बन चुका है। अपनों को खोने का दु:ख और ऊपर से तेहरवीं का भारी भरकम खर्च..? इस कुरीति के कारण कई दुखी परिवार कर्ज के बोझ में तक दब जाते हैं, जो सभी के मन को द्रवित करता है।

मृत्युभोज एक बुराई है। बुराई को जितना कम किया जाए उतना ही अच्छा है। यह कुप्रथा हमारे समाज में सैकड़ों साल से फैली हुई है। इस प्रथा में कई गरीब परिवार पीस चुके हैं और वर्तमान में पिस रहे हैं। उसके बाद भी यह दिनों दिन बढ़ती जा रही है। अगर आज हम लोगों ने इस प्रथा को बंद करने का प्रयास नहीं किया तो इसकी जड़े और अधिक गहरी होती जाएंगी।

लोग एक-दूसरे को देखकर मृत्युभोज करते हैं। जिसमें काफी खर्चा उठाना पड़ता है। गरीब लोगों को मृत्युभोज करने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह एक बुराई है। बुराई को जितना कम किया जाए उतना ही अच्छा है।

विभिन्न समाज में देखे तो मृत्यु भोज आयोजन में शामिल होने से भी लोग कतराते हैं। इसके बाद भी इस परंपरा को कई जगह अभी महत्वपूर्ण माना जाता है जबकि इस कुप्रथा को खत्म होना चाहिए। वही संपन्न परिवारों को इस प्रकार की कुरीतियों के खर्च को बंद कर जरूरतमंद परिवारों, शिक्षा व समाज सेवा में राशि खर्च करनी चाहिए।

समाज में फैली कई कुरीतियों में से एक कुरीति मृत्युभोज, जिसका बोझ मृत व्यक्ति का पूरा परिवार भुगता है। जिसका बंद होना समाज हित के लिये अतिआवश्यक है। आज के शिक्षित समाज में भी कई जगह मृत्युभोज को सही माना जाता जो की हमारे समाज में फैले अन्धविश्वास को दर्शाता है। परिणाम वह व्यक्ति और उसका परिवार कई समय तक आर्थिक रूप से भुगता है।

यह कैसा मृत्यु भोज?? हालात पर नजर डाले तो आज वाकई में यह बड़ी बुराई बन चुका है। अपनों को खोने का दर्द है ऊपर से तेहरवी का भारी भरकम खर्च? मानव विकास के रास्ते में यह कुरीति कैसे फैल गई समझ से परे है। जानवर भी किसी अपने साथी के चले जाने पर सब मिलकर वियोग जाहिर करते हैं, परंतु यहां किसी व्यक्ति के मरने पर उसके साथी, सगे-संबंधी भोज करते हैं, मिठाईयां खाते हैं। इस शर्मनाक कुरीति को मानवता की किस श्रेणी में रखे? आसपास के कई गांवों से ट्रैक्टर- ट्रॉलियों में गिद्धों की भांति जनता इस घृणित भोजन पर टूट पड़ती है। यहां तक शिक्षित व्यक्ति भी इस जाहिल कार्य में पीछे नहीं रहते पहले परंपरा अलग थी कि संसाधन के अभाव में दूर से आने वालों को भोजन कराना होता था इसे भी तब अतिथि सत्कार नाम दिया था लेकिन वर्तमान समय हालात बदल गए हैं।

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