4/22/21

दहेज प्रथा

दहेज प्रथा लालच का नया उग्र-रूप है जो की एक दुल्हन की जिंदगी की वैवाहिक, सामाजिक, निजी, शारीरिक, और मानसिक खेत्रों पर बुरा प्रभाव डालता है , जो की कभी कभी  बड़े ही भयंकर परिणाम लाता है। दहेज प्रथा का बुरा परिणाम के बारे में सोच कर हर किसी का रूह काँपने लगता है, क्यूंकि इतिहास ने दहेज प्रथा से तड़पती दुल्हनों की एक बड़ी लिस्ट बना राखी है| ये प्रथा एक लड़की की सारी सपनो और अरमानो को चूर चूर कर देता है जो की बड़ी ही दर्दनाक परिणाम लाता है,

 


दहेज (Dowry) एक ऐसी प्रथा है जिसका भार लड़कियों को सारी उम्र झेलना पड़ता है. समय के साथ दहेज लेने का तरीका भी बदल गया है. अब लड़के वाले यह नहीं कहते कि हमें इतना दहेज चाहिए लेकिन इशारा जरूर कर देते हैं. लड़के वाले बड़े शान से कहते हैं कि भाई, हमारी कोई डिमांड तो है नहीं. हां आप अपनी बेटी को खुशी से जो देना चाहें दे सकते हैं. वो उसके काम आएगा, आखिर बेटी के लिए आपके भी तो कुछ अरमान होगें.

वहीं अगर दहेज में कुछ कमी रह जाती है तो जिंदगी भर उसे ताने सहने पड़ते हैं. हमारे देश में तो देहज की कीमत लड़कियों की जिंदगी से ज्यादा होती है. तभी तो दहेज के लिए कई लड़कियों को अपनी जान भी गवानी पड़ती है.

ये तस्वीरें बता रही हैं कि कैसे लड़की के पैदा होते ही मां-बाप को उसके दहेज की चिंता सताने लगती है. लड़की की मां कैसे थोड़-थोड़ा करके उसके लिए सामान इकट्ठा करना शुरू कर देती है. कैसे एक लड़की को उसकी शादी में दहेज जैसी प्रथा का सामना करना पड़ता है. वहीं अगर दहेज के भार में कमी हो जाए तो उसे प्रताड़ित भी किया जाता है.

दहेज प्रथा समाज की एक गंभीर बीमारी की तरह है, इस बिमारि ने न जाने कितने परिवारों की खुशियों को मिटा दिया है, दहेज प्रथा समाज में एक सामाजिक अपराध भी है जो महिलाओं पर प्रताड़नाओं और अपराधों का कारण है। इस अपराध ने समाज के सभी तबकों में महिलाओं की जानें ली है चाहे वह गरीब हों, मध्यम वर्ग की या धन्य। लेकिन एक गरीब हैं जो इसके चागुल में सबसे अधिक फंसते हैं, जिसका मुख्य वजह है जागरूकता और शिक्षा का अभाव होना। दहेज प्रथा की वज़ह से ही बेटियों को बेटा जितना महत्व नहीं दिया जाता है। कई बार यह देखा गया है कि उन्हें बोझ समझ लिया जाता है, आज समाज में दहेज प्रथा पूरी तरह अपनी जगह बना रखी है, जो की एक दस्तक की तरह है, तेजी से बढते इस प्रथा को बढ़ावा देने में हमारे समाज की अहम भूमकाएं है, यह समाज है जो दहेज प्रथा की जड़ को ठोस कर रही है, दहेज प्रथा की कई अनगिनत कारण हें।

लगभग देश की हर कोने में ये प्रथा को आज भी बड़े ही बेजिजक निभाया जाता है। दहेज प्रथा सदियों से चलती आई एक विधि है, जो की बदलते वक़्त के साथ और भी गहरा होने लगा है। ये प्रथा पहले के जमाने में केवल राजा महाराजों के वंशों तक ही सिमित था, लेकिन जैसे जैसे वक़्त गुजरता गया, इसकी जड़ें धीरे धीरे समाज के हर वर्ग में फैलने लगा, आज के दिन हमारे देश के प्रयात: परिवार में दहेज प्रथा की विधि को निभाया जाता है,

 

भारत जैसे देश जहां अधिकांश आबादी दो वक्त की रोटी की जुगत में अपना सारा जीवन व्यतीत कर देती है, वहां उपभोक्तावाद महंगी और गैर जरूरी वस्तुओं की भूख जगाता है. जिन्हें हासिल करने के लिए व्यक्ति कुछ भी कर गुजरता है. क्योंकि वह जानता है कि अगर उसे समाज में  अपने लिए एक सम्माननीय स्थान अर्जित करना है या खुद को अपडेटेड दर्शाना है तो उसके पास यह सब होना बेहद अनिवार्य है. उसकी इस मनोवृत्ति से सीधे तौर पर भ्रष्टाचार बढ़ता है.

 

उपभोक्तावाद के अंतर्गत एक ऐसे अभिजात्य वर्ग का विकास हुआ है जिसने आधुनिक जीवन शैली को पूरी तरह खुद में समाहित कर लिया है. इस वर्ग के लोगों की यह धारणा है कि वस्तुओं का अर्जन ही सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार है. उन्हें इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि इन वस्तुओं का संकलन कैसे किया गया है.  कम आय वाले लोग किसी भी तरह जल्दी से जल्दी धनी बन जाना चाहते हैं ताकि अनावश्यक सामान इकट्ठा कर सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त की जा सके.मनुष्य के इस लालच का घृणित परिणाम दहेज की मांग को लेकर औरतों पर होने वाले अत्याचार भी हैं. बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग के लोग, जो केवल अपनी आय पर निर्भर रहकर तथाकथित शान बढ़ानेवाली वस्तुओं को नहीं खरीद सकते, वे दहेज के माध्यम से इस लालसा को मिटाने की कोशिश करते हैं.

 


बेशक देश में दहेज के खिलाफ ढेरों कड़े कानून बनाए है मगर यह कानून फाईलों की धूल चाट रहे है भारत में दहेज हत्याओं की बढती घटनाएं अशुभ सकेत है आखिर दहेज हत्याऐ क्यों नहीं रुकती है यह एक यक्ष प्रशन बनता जा रहा है।राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड व्यूरों में दर्ज मामले चौकानें वाले है हर वर्ष इन घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हो रही है मगर सरकारें मूकदर्शक बनी हुई हैं।कानून के अनुसार दहेज लेना व देना कानूनी जुर्म है मगर इस नियम की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।आज लोग भारी-भरकम दहेज दे रहे हैं जिस कारण यह प्रचलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।गरीब लोग दहेज देने में असमर्थ है नतीजन ससुराल पक्ष के लोग उन्हे प्रताड़ित करते हैं।देश का कोई भी राज्य इस दहेज की बीमारी से अछूता नहीं है हर राज्य में दहेज हत्याओं के मामले घटित हो रहे हैं।भारत में दहेज हत्याओं की प्रतिश्तता दर बढ़ती ही जा रही हे 18 से 25 वर्ष की लड़कियों की संख्या के ज्यादा मामले प्रकाश में आ रहे हैं।दहेज न देने के कारण आज गरीब लड़कियों की शादीआं नहीं हो रही है क्योकि आज लोग दहेज के लालची हो गए हैं भले ही लडकी कितनी भी उच्च शिक्षित हो मगर पहली शर्त यही होती है कि यहां से कितना दहेज मिल सकता है दहेज ही सबसे बड़ी योग्यता बन गई हैं।आज लोग अपनी जमीन-जायदादे तथा सोने-चांदी के आभूषणों को गिरवी रखकर दहेज दे रहे है साहूकारों से पैसा उधार लेकर बेटियों के हाथ पीले कर रहे है ताकि शादी हो सके उसके बाद भी लालचियों का पेट नहीं भरता है। उसके बाद भी और दहेज लाने के लिए तंग करते हैं। अमीर व साधन-संपन्न लोग लाखों रुपयों का दहेज देते है मगर इसकी मार प्रत्यक्ष रुप से गरीबों पर पड़ रही है लोग देखा-देखी में ज्यादा से ज्यादा दहेज दे रहे है। देश में बढ रही दहेज की इस संस्कृति को रोकना होगा। इस प्रथा ने आज इतना भयानक रुप धारण कर लिया है कि समाज का प्रत्येक वर्ग इसके कारण दुखी है इसकी भयानकता का प्रमाण प्रतिदिन हो रही घटनाओं में साक्षात नजर आ रहा है।

दहेज उन्मूलन के लिए प्रतिवर्ष लाखों रुपया खर्च किया जाता है सैमीनार लगाए जातें है रैलियां निकाली जाती है नारे लिखे जाते है, मगर नतीजा कुछ नहीं निकलता। जो जनता के मसीहा ऐसे कानून बनाते है वही लोग इसका सरासर उल्लघन करते हैं। क्यांकि राजनेता से लेकर धन्नासेठ इतना दहेज देते है कि उसकी कीमत लाखों में होती है। अक्सर देखा गया है कि कई रईस लोग नकद पैसा भी देते हैं। कार व कोठी तक देते हैं। आज बेटियों को जलाया जा रहा है यातनाएं दी जा रही हैं ऐसे कई रुह कंपा देने वाले मामले हर रोज देखने को मिल रहे हैं। गरीब घरों की बेटियां चारदीवारी के अन्दर ही अन्दर घूटती रहती है उनकी सिसकियां देखने वाला कोई नहीं है क्योकि उन्हे डर होता है कि यदि विरोध किया तो न घर की रहेगी न घाट की रहेगी इसलिए चुपचाप नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

सामाजिक संस्थाएं भी ऐसे मामलों पर रोक लगाने में नाकाम साबित हो रही है वे भी कुछ मामलो को ही तरजीह देती है जबकि संस्थाओं को ऐसे लोगों को कटघरे में खड़ा करके सजा दिलवानी चाहिए ताकि आने वाले समय में दहेज प्रथा पर पूर्ण रुप से प्रतिबन्ध लगाया जा सके। दहेज के विरुद्ध कुछ वर्ष पहले मेरठ की एक बहादुर लडकी निशा ने दहेज के लोभियों को ऐसा सबक सिखाया था कि उन्हे ताउम्र सबक याद रहेगा निशा एक मिसाल बन गई थी जब उसने बारात को वापिस भेजा ओर दहेज के लालचियों को पुलिस के हवाले करके हवालात भिजवाया था निशा के इस जज्बे को पूरा भारत सलाम करता है कि यदि हर लडकी निशा जैसा संबल दिखाए तो इस प्रथा का अंत हो जाएगा।

सरकारों को इन मामलों को अनदेखा नहीं करना चाहिए।दहेज के कारण आज बेटियों का जीवन बरवाद हो रहा है कई घरों की इकलौती बेटियां दहेज की बलि चढ़ाई जा रही हैं। निति-नियंताओं को चाहिए कि इस पर रोक लगाने के लिए कारगर कदम उठाएं ताकि इस दहेज के दानव से निजात मिल सके। सरकारों को एक ऐसी कमेटियां गठित करनी चाहिए कि जो लोगों को जागरुक कर सके ताकि एकजुट होकर इस प्रथा के खिलाफ कदम उठ सकें। समाज को इस कुरीती के विरुद्ध खडा़ होना पडे़गा तब इस पर विराम लग सकता है ।


युवा पीढ़ी, जिसे समाज का भविष्य समझा जाता है, उन्हें इस प्रथा को समाप्त करने के लिए आगे आना होगा ताकि भविष्य में प्रत्येक स्त्री को सम्मान के साथ जीने का अवसर मिले और कोई भी वधू दहेज हत्या की शिकार ना होने पाए.


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