जिस तरह ध्वज के फहराने की दिशा निश्चित नहीं होती, गिरगिट का रंग एक सा नहीं होता वैसे ही हमारे सुख-दुख की परिभाषा भी निश्चित नहीं होती। स्थान, समय, संयोग स्थिति के अनुसार हमारे सुख-दुख की व्यवस्थाएं बदलती ही रहती है। वास्तव में स्वीकार में सुख है और इंकार में दुख। यही सुख-दुख की सच्ची परिभाषा है।
जीवन में सुख-दुःख तो आते रहते हैं। यह जीवन का ही
हिस्सा हैं। परन्तु इस संसार में कई ऐसे लोग हैं जो हर परिस्थिति में कोई न कोई
अच्छी बात ढूंढ लेते हैं और सुखी रहते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अच्छी
चीजों में भी नकारात्मक चीजें देख लेते हैं और दुखी होकर उन्हीं का रोना रोने लगते
हैं।
दुःख क्या है ?
जब आपको किसी कारन वश दुःख होता है तब आप उसी के
बारे में सोचते रहते हैं। और उसी की सोच में , चिंता में ,आपका समय चला जाता है। तो यदि आपको किसी बात की चिंता है तो दुख है और यदि
चिंता नहीं ,तो दुःख भी नहीं है।
दुःख सबसे पहले तो ये आपके मनोबल को गिराता है ,यानि आपको अंदर से कमज़ोर बनाता है। यह आपको अंदर से तोड़ देता है। जब
आपका कोई काम सफल नहीं होता क्यूंकि कोई
काम के उपर आपका दिल नहीं लगता है।
दुःख से कैसे लड़े ?
ऐसी स्थिति में आप एक कहावत याद रखिये। "मन के हारे -हार और मन के जीते -जीत। " यह कहावत बार -बार याद कीजिये। यह आपको अंदर से बल देगा ,आपको अंदर से शक्ति , ऊर्जा प्रदान करेगा।
सुख क्या है ?
जिस व्यक्ति को किसी बात की चिंता नहीं तो वह
व्यक्ति सुखी है। सुख आपको ऊर्जा प्रदान करता है ,जिससे आप
ज्यादा सुख भोगते हैं। आपके अंदर कोई चिंता , फ़िक्र नहीं
रहती है। आप बिलकुल मौज में रहते हैं। और फिर आपका समय कब गुजर जाता है आपको पता
भी नहीं चलता है।
सुख और दुःख जीवन के दो पहलु हैं। इसीलिए इंसान को
दुःख आने पर ज्यादा दुखी नहीं हो जाना चाहिए। उसका सामना करना चाहिए। और सुख आने
पर भी ज्यादा सुखी नहीं होना चाहिए ,आनंद से उसे जीना
चाहिए। यही है स्थितप्रज्ञ व्यक्ति की निशानी।
(श्रीमद्भगवद्गीता )
पहले लोगों को त्याग, परोपकार तथा अच्छे कार्यों से मन को जो सुख-शांति मिलती थी उसे सुख मानते थे, पर आज विभिन्न वस्तुओं और भौतिक साधनों के उपभोग को सुख मानने लगे हैं।समाज में बढ़ती अशांति और आक्रोश का मूल कारण उपभोक्तावादी संस्कृति को अपनाना है।
हर कोई चाहता है कि वो ऐसा जीवन जिए जो कष्ट, क्लेश, दुर्घटना से मुक्त होकर, धन-धान्य, सुख-शांति से भरपूर हो। ऐसे जीवन के लिए जरूरी है कि व्यक्ति सदाचारी जीवन का पालन करें।
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