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5/23/21

सास बहू को कैसे रहना चाहिए

भारत में शादी दो व्यक्तियों का नहीं अपितु दो परिवारों का मिलाप होता है। जहां शादी के बाद लड़की अपने ससुराल आकर बहु का पद पाती है। बहु का ये नैतिक कर्तव्य होता है की सभी रिश्तों में सामंजस्य बिठाते हुए सुख-शांति से जीवन निर्वाह करे। इन सभी रिश्तों में सबसे खास रिश्ता होता है सास-बहु का जिसमें सबसे ज्यादा विवाद उत्पन्न होते हैं। जिस घर में सास-बहु के बीच नहीं बन पाती, उस घर में अशांति और कलह का वातावरण बना रहता है। हर कोई अपनी शादी को लेकर बहुत उत्सुक रहता है और शादीशुदा जीवन के लिए कई कल्पनाएं करता रहता है. शादी के बाद अक्सर देखा जाता है कि सास-बहू के बीच के रिश्ते खराब ही रहते हैं. सास-बहू का रिश्ता सबसे जटिल और नाजुक समझा जाता है.













बेटियों के लिये

रिश्ते तो पहले होते थे। अब रिश्ते नहीं सौदे होते हैं। बस यहीं से सब कुछ गङबङ हो रहा है। किसी भी माँ बाप मे अब इतनी हिम्मत शेष नहीं बची कि बच्चों का रिश्ता अपनी मर्जी से कर सकें।

पहले खानदान देखते थे। सामाजिक पकङ और सँस्कार देखते थे और अब मन की नहीं तन की सुन्दरता, नौकरी, दौलत, कार, बँगला। साइकिल , स्कूटर वाला राजकुमार किसी को नही चाहिये । सब की पसंद कारवाला ही है। भले ही इनकी संख्या 10% ही हो । लङके वालों को लङकी बङे घर की चाहिए ताकि भरपूर दहेज मिल सके और लङकी वालोँ को पैसे वाला लङका ताकि बेटी को काम करना न पङे। नौकर चाकर हों। परिवार छोटा ही हो ताकि काम न करना पङे और इस छोटे के चक्कर मे परिवार कुछ ज्यादा ही छोटा हो गया है।

पहले रिश्तों में लोग कहते थे कि मेरी बेटी घर के सारे काम जानती है और अब हमने बेटी से कभी घर का काम नही कराया, यह कहने में शान समझते हैं। इन्हें रिश्ता नहीं बेहतर की तलाश है। रिश्तों का बाजार सजा है गाङियों की तरह। शायद और कोई नयी गाङी लॉन्च हो जाये। इसी चक्कर मे उम्र बढ रही है। अंत मे सौ कोङे और सौ प्याज खाने जैसा है। अजीब सा तमाशा हो रहा है। अच्छे की तलाश में सब अधेङ हो रहे हैं। अब इनको कौन समझाये कि एक उम्र में जो चेहरे में चमक होती है वो अधेङ होने पर कायम नहीं रहती, भले ही लाख रंगरोगन करवा लो ब्यूटीपार्लर में जाकर। एक चीज और संक्रमण की तरह फैल रही है। नौकरी वाले लङके को नौकरी वाली ही लङकी चाहिये। अब जब वो खुद ही कमायेगी तो क्यों आपके या आपके माँ बाप की इज्जत करेगी? खाना होटल से मँगाओ या खुद बनाओ। बस यही सब कारण है आजकल अधिकाँश तनाव के। एक दूसरे पर अधिकार तो बिल्कुल ही नहीं रहा। ऊपर से सहनशीलता तो बिल्कुल भी नहीं। इसका अंत आत्महत्या और तलाक।

 

घर परिवार झुकने से चलता है, अकङने से नहीं.। जीवन मे जीने के लिये दो रोटी और छोटे से घर की जरूरत है बस और सबसे जरूरी आपसी तालमेल और प्रेम प्यार की लेकिन आजकल बङा घर व बङी गाङी ही चाहिए चाहे मालकिन की जगह दासी बनकर ही रहे।

आजकल हर घरों मे सारी सुविधाएं मौजूद हैं- कपङा धोने की वाशिँग मशीन मसाला पीसने की मिक्सी पानी भरने के लिए मोटर मनोरंजन के लिये टीवी बात करने मोबाइल फिर भी असँतुष्ट। पहले ये सब कोई सुविधा नहीं थी। पूरा मनोरंजन का साधन परिवार और घर का काम था, इसलिए फालतू की बातें दिमाग में नहीं आती थी। न तलाक न फाँसी। आजकल दिन में तीन बार आधा आधा घँटे मोबाइल में बात करके , घँटो सीरियल देखकर , ब्यूटीपार्लर मे समय बिताकर समय बीतता है। मैं जब ये जुमला सुनता हूँ कि घर के काम से फुर्सत नही मिलती तो हंसी आती है। बेटियों के लिये केवल इतना ही कहूँगा कि पहली बार ससुराल हो थोङी बहुत अगर परेसानी भी होती है तो सहन कर लो। ससुराल में आज बहू हो तो कल सास बनोगी।

शादी के बाद लड़की को कैसे रहना चाहिए ?

कई बार जब लड़की की शादी होती है तो लड़की के सास ससुर कहते हैं की हम इसे अपनी बेटी की तरह रखेंगे लेकिन नौकरानी बना कर रख देते हैं और कभी ऐसा होता है की शादी के बाद लड़की अपनी मर्ज़ी चलाती है और खुद रानी बन कर बाकियों की मौजूदगी को नज़रअंदाज़ कर देती है और फिर शुरू होता है परिवार का बिखरना। और फिर फँसता है लड़का। लड़की का साथ दे तो लोग कहेंगे की पत्नी के प्यार में अंधा हो गया है और अगर माँ-बाप का साथ दे तो लोग कहेंगे की जरूर पैसों का कोई चकार है। लेकिन अगर लड़की और बाकी परिवार के लोग कुछ बातों का ध्यान रखें तो परिवार बंटने से बच सकता है।

 

लड़कियो के मायके के जीवन में और ससुराल के जीवन में जमीन आसमान के फर्क होता है। इस लिए लड़कियों को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए की घर का माहौल और नियम कायदे क्या हैं। अगर घर के लोगों को उसकी किसी भी बात से दिक्कत हो रही है तो उसे उस बारे में कुछ करना चाहिए।

लड़कियों को अपने सास ससुर को बिलकुल अपने माँ पिता की तरह सम्मान देना चाहिये। ज़्यादातर रिश्ते इस लिए टूटते हैं की लड़कियां सास ससुर को माँ बाप जैसे नहीं समझती। अगर उसके सास ससुर किसी भी बात पर उसे डांटते है तो उसे समझना चाहिये के वो उसके माँ बाप के समान है। लेकिन अगर वो दाँट फटकार बेवजह की है तो फिर अपनी बात बीच में रखनी चाहिये।

आपके ससुराल अब आपका भी घर है और यहाँ का सम्मान आपका सम्मान भी है। बहुत सी लड़कियां अपने घर की बुराइयाँ अपने मायके में करती रहती हैं। ये काम बिलकुल नहीं करना चाहिये। इसकी जगह जो दिक्कत है वो सब के सामने सुलझा लेनी चाहिये।

हमारे देश की ज़्यादातर लड़कियों का सपना होता है की उनकी जिंदगी में कोई राजकुमार की तरह आएगा और अपनी राजकुमारी बना कर रखेगा। और वो चाहती हैं की उसके और उसके पति के बीच में कोई ना आए। लेकिन क्योंकि घर के कामों की वजह से उन्हे समय नहीं मिल पाता। इस लिए आजकल ज़्यादातर लड़कियां ऐसे लड़के की उम्मीद में रहती है जिसमे बहुत बड़ा परिवार ना हो। लेकिन अगर आप ऐसी सोच रखेंगे तो कैसे काम चलेगा। सब को ऐसा नसीब तो नहीं होता।

कभी भी अहंकार ना करना। फिर चाहे वो वो आप सुंदरता पर हो या धन पर। हो सकता है की आपके घर से ससुराल को बहुत सी वस्तुएँ दी गयी हों। कभी भी इस बात पर अहंकार ना करना की हो कुछ भी आया है मेरी वजह से आया है। ये समझिए जो कुछ भी हमारा है मेरा नहीं।

कोई काम नहीं आता। जैसे की खाना बनाना या घर के कोई और काम। चिंता ना करें। सीधा सास, भाभी या ननदों से बात करें। वो आप को सीखायेंगी। आप जितना समय उनके साथ व्यतीत करेंगी आप को उतना ही समय मेल मिलाप करने को मिलेगा।

अगर आप नौकरी करतीं हैं और इसमे आप के ससुराल वालों की भी कोई आपत्ति नहीं है। तो अपने काम का एक टाइम टेबल निश्चित करें। वो सास जिनहे आप के नौकरी करने से कोई आपत्ति नहीं वो आप की मदद जरूर करेगी। पहनावा वही पहने जिस पर किसी को कोई आपत्ति ना हो।

अगर सास ससुर बुरे निकले तो क्या करेंगे। ऊपर की कोई भी बात काम नहीं आएगी फिर चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें। उनको कोई ना कोई बहाना मिल ही जाएगा। सास ससुर बुरे तब निकलते है जब वो लालची हो और दिल के बुरे हों। जब दहेज नहीं मिलता तो वो अपना रंग दिखाते है। ऐसी परिस्थि में सीधा पति से बात करें। उनकी राय लेने के बाद अपने मायके वालों से।

 

बहू भी बेटी है

बहू और बेटी ,क्या हम दोनों को एक समान देखते है ? कहते तो सब यही है कि बहू हमारी बेटी जैसी है लेकिन हमारा व्यवहार क्या दोनों के प्रति एक सा होता है ? नही ,बहू सदा पराई और बेटी अपनी ,बेटी का दर्द अपना और बहू तो बहू है | अगर सास बहू को सचमुच में अपनी बेटी मान ले तो निश्चय ही बहू के मन में भी अपनी सास के प्रति प्रेमभाव अवश्य ही पैदा हो जायेगा|अपने माँ बाप भाई बहन सबको छोड़ कर जब लड़की ससुराल में आती है तो उसे प्यार से अपनाना ससुराल वालों का कर्तव्य होता है ,लेकिन ऐसा हो नही पाता

 

प्रत्येक स्त्री के जीवन में ऐसा समय एक बार जरुर आता है, जिसमें सास होंने का गर्व और बहु होंने का अभिमान जरुर होता है । सास अपनी बहु को बेटी बनाने में कभी भी कामयाब नहीं होती क्योंकि जो रिश्ते परम्परा पर आधारित होते हैं उनको तोड़ना काफ़ी हद तक कठिन होता है, क्योंकि परम्परावाद के कारण आपसी मतभेद बदल नहीं पाते प्रत्येक नारी को हमेशा याद रखना चाहिए की वह भी कभी सास तो कभी बहू थी, ऐसा सोचें तो ऐसे झगड़ो को जन्म ही ना मिले । मगर एक सास बहू को बेटी के रूप में रखने में हमेशा नाकाम रहती है क्योंकी वह हमेशा याद रखती है कि जब मैं बहु रही और जो कुछ सहा सब कुछ याद रखकर उनका प्रयोग बहू पर करती है । क्योंकि उसे बहु होने का पूर्ण रूप से तजुर्बा होता है । सास हमेशा बहु पर हुक्म चलाना और उसमें कमी इसलिए निकालती है कि उसका वचर्स्व भी बना रहे क्योकि उसने भी 10 या 20 साल तानों की लड़ी स्वयं सही होती है । अब बात यह आती है की नारी ही नारी की दुश्मन क्यों होती है । वह क्यों नहीं समझ पाती की हमारे बीच मधुर संबंध बने रहें ।

 

मगर ससुर का बुरे होने का प्रमाण कम मिलता है ऐसा क्यूँ , क्योंकि ससुर बहु को बेटी से भी ज्यादा मानता है, क्योंकि बहु, बेटी से भी ज्यादा ससुर की सेवा समय से चाय, रोटी इत्यादि का ध्यान रखती है मगर सास इस ध्यान को नकारात्मक द्रष्टी से देखती है वह सेवा भाव पर ध्यान न देकर केवल कमियों के खुमार पर ध्यान देती है ।

 

कभी सास अगर ये सोचे की बहु में कमियाँ ना गिनाकर उन कमियों को दूर करने की कोशिश करे तो वर्तमान सास के समझ में परिवर्तन आ सकता है, इसलिए सास बहु के झगड़ो का परित्याग कर देंगी तो स्वंयम ही सारे माहौल में परिवर्तन आ जायेगा ।

 

सोचने की बात यह है की क्या सारी कमी सास की ही होती है, बहु की कोई कमी नहीं तो यह बात गलत है, क्योकि कभी भी एक हाथ से ताली नहीं बजती जब भी ताली बजेगी तो दोनों हाथों से ही बजेगी एक हाथ से ताली नहीं बज सकती है ।

 

हमेशा सास ही दोषी हों ये सम्भव नहीं, दोषी कोई भी हो सकता है, सास भी बहु थी इसलिए एक दुसरे पर आरोप और पारिवारिक विघटन पर जोर नहीं देना चाहिये । कुछ सास बहु से नाराज होकर झगड़ने लगती है मगर कुछ स्वयं को ही प्रताड़ना देने लगती है वे स्वयं में अन्दर-अन्दर बहु की कमीयों को सोच-सोच कर स्वयं का स्वाथ्य बिगाड़ लेती है और वे भी नहीं सोचती की हमारी चुप्पी हमारा ही नुकसान कर रही है । क्योंकि जब परिवार में एक भी सदस्य चुप रहेगा तब परिवार में ऐसी स्थिती बन जाती है की ना जाने इसे क्या पीड़ा है जिसको यह पारिवारिक सदस्य छुपाये बैठा है। इसलिए जो भी मतभेद हैं, उन्हें मिटाकर परिवार में तालमेल बैठाना परम आवश्यक है । तभी सुखी परिवार का निर्माण हो सकेगा ।

 

जब प्रत्येक लड़की अपने लिए सुयोग्य वर ऐसा पसन्द करती है जो सिर्फ मेरा हो । कोई भी नहीं चाहती की मैं सुसुराल जाऊ वह यही चाहती है की मैं तो पिया घर ही जाऊगी ना की सुसुराल क्योंकि पिया का घर होगा तो ना कोई सास न ससुर केवल एकांकी परिवार की चाहत ही बरकरार रहती है । यह एक भयंकर समस्या ही है जिसका निदान करना चाहिये प्रत्येक नारी को अब कम से कम अपने सास-ससुर का सम्मान तो करना ही चाहिए । जिससे उसे अपने आने वाले भविष्य का भी ख्याल भली-भांति रखना चाहिए क्योंकि जो आज बहु है कल उसे सास जरुर बनना है तो क्यों ना ऐसे कार्य किए जाय की सास-बहु के दोनों पहलू बने रहें और रिश्ते सम्मानित रहे ना की कहानी बन कर रह जाय |

 

एक सामाजिक पहलू के आधार पर हमारी राय तो केवल यही होगी कि एक लड़के को अपने माँ-बाप के बारे में अच्छी सोच बनाकर उनका सम्मान स्वयं और अपनी पत्नी से कराना अपना धर्म समझना चाहिये क्योंकि नर और नारी एक सिक्के के दो पहलू हैं जो हमेशा एक दुसरे के पूरक होते हैं । जब दोनों ही अपना स्वयं का वचर्स्व बनाकर नहीं चलेंगे तो एक दुसरे पर कैसे प्रभाव पड़ेगा अर्थात पत्नी से अपने माँ-बाप को सम्मान दिलाना चाहिए ।

 

 

 

 

 


सास बहू का रिश्ता

 

एक लड़की जो अपनी मां से बहोत ज्यादा प्यार करती है उसे उसका घर छोड़ कर अपने सास-ससुर और पति के घर रहना पड़ता है। उस लड़की को अपनी सास में अपनी मां जैसा प्यार नही मिलता और सीरियल की सास बहू का रिश्ता देखकर उसे कही ना कही ये भी लगने लगता है कि जी मेरी सास भी मेरे खिलाफ ऐसे ही साजिशें रचेगी और मुझे मेरी मां जैसा प्यार नही दे पाएगी

 

अक्सर हम ऐसी सास को देखते है जो अपनी बहुओं पर इल्जाम लगाती दिखती है कि उसकी वजह से मां-बेटें में लड़ाइयां हो रही है या उनकी बहू उनके बेटे को उनसे दूर कर रही है। लेकिन ऐसा नही कि हमारे समाज की सारी सास-बहुओं के रिश्ते खट्टे हैं। अभी भी कई सास और बहू ऐसी हैं जो आपस में काफी अच्छा रिलेशन निभाती है लेकिन ऐसा तभी होता है जब वो सास अपनी बहू को अपनी बेटी की तरह रखे और वो बहू अपनी सास को अपनी मां जैसा सम्मान और प्यार दे। अगर आप मुझसे पूछेंगें कि कैसी सास अच्छी होती है तो मैं यही कहूंगी कि अच्छी सास वही होती है जो अपने बेटे और उसके लाइफ पार्टनर से भेदभाव ना करे, जो अपनी बहू को अपने परिवार का हिस्सा मानें न कि एक पराए घर की लड़की।

 

केवल फिल्मों और सीरियल के आधार पर हमें किसी के बारे में पहले से ही कोई गलत धारणा नही बनानी चाहिए। एक समझदार बहू और समझदार सास एक-दूसरे से दोस्ती का रिश्ता निभाते हैं। इससे घर में खुशियों की बहार छाई रहती है। सास को चाहिए की वो अपनी बहू को अपनी बेटी जैसा प्यार दें क्योंकि कोई भी लड़की जो अपना घर-बार, मां-बाप सबको छोड़कर आपके घर रहने आई है, उसको आपसे काफी ज्यादा उम्मीदें होंगी। ये कहना आसान है लेकिन करना मुश्किल, लेकिन इतना भी मुश्किल नही है। हम आज भी ऐसे कई केस देखते हैं जहां लड़कियां अपनी सास के लड़ाई-झगड़े और अत्याचार के वज़ह से घर छोड़कर चली जाती है।

 

 सभी सासू मां और होने वाली सास, आप लोग को इस बात को गांठ बांध लेनी चाहिए कि आप अपने घर बहू लेकर आ रहे है जो आपके और आपके बेटे की तरह एक इंसान है ना कि सुपरविमेन। आप उससे घर के सभी काम करने की उम्मीद नही लगा सकते और वो भी तब जब वो बाहर भी काम करती हो। अगर आपका बेटा अपने काम से जल्दी घर आ जाता है और आपकी बहू नही आ पाती तो उसमे उसकी कोई गलती नही है। उसे घर जल्दी आने के बज़ाए आप उसे करियर में अच्छा करने को कहे, उसे प्रोत्साहित करे। आप उसे बदलने को कहेंगे, उसका लाइफस्टाइल चेंज करने को कहेंगे और वो भी किसलिए ताकि वो आपकी फैमिली में फिट हो जाए लेकिन आप खुद क्यों नही उसे उसकी लाइफस्टाइल के साथ एक्सेप्ट करती। कोशिश किजिए, आपको भी अच्छा लगेगा।

शादी के बाद भी लड़कियों के जीवन में ऐसे कई मौकें आते हैं या उनका जी करता है कि वो अपनी मां से बात करें। कोई भी बेटी अपनी मां से कुछ भी बोलने से पहले कुछ सोचती नही, बिना झिझक उसे सब बता देती है क्योंकि मां-बेटी के रिश्ते में अटूट विश्वीस होता है। ऐसा ही रिश्ता होना चाहिए सास-बहू का। ऐसे समयों में सास को अपनी बहू की बात प्यार से सुननी चाहिए। उसे अपने घर जैसा फिल कराना चाहिए। जितना हो सके उतना साथ में समय बिताएं और अपनी बातें भी शेयर करें। यही सब चीज़े तो रिश्ते की नींव मज़बूत बनाती है।

 

ये बात तो आप भी जानती है कि कोई भी मां बिल्कुल वाईफ मेटीरीयल बेटी तो नही तैयार कर सकती। हालांकि, कई मां अपनी बेटी को हर वो चीज़ सिखाना चाहती है जो उसे दूसरे घर जाकर करना होगा लेकिन इससे भी ज्यादा वो इस बात पर ध्यान देती हैं कि कैसे उनकी बेटी एक आदर्श बहू बनें। आपने भी अपनी बेटी को ऐसे ही तैयार किया होगा लेकिन बहू की बात आते ही ये दोहरा रवैया क्यों? अब क्योंकि वो 4 रोटियां नही पका सकती और झूठे बर्तन नही धो सकती तो इसका मतलब ये नही कि आप उसके मम्मी-पापा के पालन-पोषण और दिए हुए संस्कार पर उंगली उठाएं।

 

कि आपके रिश्तें में जलन और गलतफहम की कोई जगह नही होनी चाहिए। जितना समय आप दोनो एक-दूसरे के साथ गुजारेंगे उतना ही आप एक-दूसरे को जानेंगे और समझेंगे। हां, कभी-कभी लड़ाइयां हो जाती है, दोनो को काफी बुरा भी लग सकता है लेकिन अंत में आपको एक-दूसरे को माफ करके फिर से गले लग जाना चाहिए। जहां बहुओं को एक तरफ इस बात के लिए खुश होना चाहिए कि उनकी सास ने अपने आंख के तारे के लिए उन्हें चुना और बहू बनाना सही समझा, वही दूसरी तरफ सास को खुश होना चाहिए कि लड़की ने और लड़की के परिवार वालों ने उन्हें इस काबिल समझा कि वो अपनी बेटी आपको दे जहां वो खुश रहेगी। तो, सभी के अरमानों को ध्यान में रखते हुए सास-बहु को अपने लड़ाई-झगड़े खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए।

 

ये काफी चौका देने वाली बात है कि आज भी काफी लड़कियां अपनी सास की शिकायत करती दिखती है। मैं जानना चाहूंगी कि क्या ये इतना मुश्किल है कि आप वही प्यार अपनी बहू को दें जो आप अपने बेटे को देती है? अगर आप उसे वही प्यार नही देती और सही बर्ताव नही करती तो आप उससे आपका सम्मान देने और प्यार देने की उम्मीद कैसे लगा सकती हैं? क्या सभी सास का अपनी बहुओं के साथ हंसी-खुशी और प्यार से रहना इतना मुश्किल है? जवाब हम सब जानते है बस जरूरत है उसे अपनाने का। टाईम बदल रहा है तो हमें भी अपनी आदतें बदल ही लेनी चाहिए क्योंकि आखिर सास भी कभी बहू थी। सास बहू का रिश्ता अच्छा करने का यही एक तरीका है

 

 

 

बहू के कर्तव्य

स्त्री वर्ग अर्थात समर्पण से परिपूर्ण व्यक्तित्व ही स्त्री की सही परिभाषा है। जब एक लड़की बड़ी होती है, तो वह एक परिवार से जुड़ी हुई होती है, और जब वही लड़की बड़ी होती है तो जब उसकी शादी होती है, तो वह शादी के बाद अपने ससुराल चली जाती है। उस समय एक लड़की का दो घरों पर अपनी जिम्मेदारी निभाना पड़ता है, यह बहुत मुश्किल कार्य होता है, इसलिए स्त्री वर्ग को समर्पण से परिपूर्ण माना गया है। एक स्त्री का बहू के रूप में अपने ससुराल पर विभिन्न प्रकार की जिम्मेदारी होती है, जैसे कि, सास ससुर की सेवा, पति की सेवा, घर की जिम्मेदारी, बच्चों की जिम्मेदारी, घर की हर गृह कार्य की जिम्मेदारी ये सभी उसके कर्तव्यों मे शामिल है, जिसमे से वह सुबह उठने से लेकर, घर के पूरे कार्य करने से लेकर, सास ससुर की सेवा, बच्चों को स्कूल भेजना, खाना बनाना, फिर वहां से बर्तन से लेकर शाम का खाना, फिर रात को सास ससुर का सेवा करके, फिर थक कर सोना..!! यह एक बहू के उत्तर- दायित्व है। इसलिए कहा गया है कि नारी का दूसरा नाम ही समर्पण है, जिसकी लीला अपरंपार है।

 

हमारा सामाजिक जीवन पूरी तरह संबंधों पर निर्भर है। जीवन में संबंध जितने महत्त्वपूर्ण होते हैं, उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है संबंधों को सफलतापूर्वक निभाना। कई बार संबंधों में कड़वापन आ जाता है परंतु धैर्य और समझ के साथ हर संबंध को कुशलतापूर्वक निभाया जा सकता है। सबसे ज्यादा कठिन माना जाने वाला संबंध सास-बहू का होता है परंतु वास्तव में यह उतना उलझा हुआ नहीं होता जितना समझा जाता है।

बहू के केवल कर्तव्य और फ़र्ज़ ही क्यों, हक़ और अधिकार क्यों नहीं॰

 








 

 

 

 

सास बहू में सामंजस्य

सास बहू में सामंजस्य होना बहुत जरूरी है। ससुराल में आने के बाद बहू से अपेक्षा की जाए कि वह हमारे अनुरूप ढल जाए तो एकदम तो ऐसा नहीं होता। अपने प्यार से उसे समझाकर बताना चाहिए कि यह कार्य तुम्हें किस तरह करना चाहिए। यदि नहीं आता तो बता दें कि यह काम किस तरह होगा। जहां से ब्याह कर बहू आई, वहां के तौर तरीके अलग होंगे। साफ-सफाई से लेकर रसोई के काम में समयानुसार कार्य प्रणाली में बदलाव तो आएगा ही। खाना बनाने का तरीका अलग अलग होगा तो स्वाद में भी फर्क तो पड़ेगा। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। सास को कभी भी मायके वालों को उलाहना या ताना नहीं देना चाहिए। आपने विवाह से पूर्व भी तो देखा भाला था। सबकी राजी खुशी से तो विवाह हुआ। बहू के आते ही सारा काम बहू पर नहीं डालकर थोड़ा-थोड़ा काम करने दें। घर के सदस्य भी यथायोग्य प्यार व सम्मान के साथ कोई काम कहेंगे तो बहू भी खुशी से काम करेगी। प्यार से बोलने में और रौब से कड़क कर बोलने में ऊर्जा व समय तो उतना ही खर्च होगा लेकिन प्यार से बोलने में विशेष क्या खर्च होगा? बहू भी अपने कर्तव्य में सास को सम्मान दें और उसे ही अपनी मां के रुप में देखें।

 

आपस में तालमेल बिठाकर चलें। सास ने भी तो गृहस्थी के अनुभव प्राप्त किए हैं। उन अनुभवों को बहू को फुर्सत के समय बताएं। ससुराल में रहन-सहन मायके से अलग होगा ही, धीरे-धीरे आदत डालें। जिद्दी स्वभाव नहीं रखें। सास-बेटी का एक नया रिश्ता रचें। मायके व ससुराल वालों में भी आपके द्वारा ही प्यार व सम्मान का रिश्ता बना रहेगा। बहू को भी बेटी की तरह मानना, उसे प्यार से पुकारना बहू की सारी थकावट को दूर कर देता है। सास की बीमार अवस्था में अच्छी देखरेख करना बहू का कर्तव्य है, वहीं अगर बहू अस्वस्थ है तब सास बहू की सेवा करे तो अनुचित क्या है।

सासबहू के संबंध में कटुता आना अन्य रिश्तों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है. मनोवैज्ञानिक स्टीव कूपर का मत है कि संबंध में कटुता एक कुचक्र है. एक बार यह शुरू हो गया तो संबंध निरंतर बिगड़ते चले जाते हैं. बिगड़ते रिश्तों में आप जीवन के आनंद से वंचित रह जाते हैं. अन्य रिश्ते जो प्रभावित होते हैं वे हैं छोटे बच्चों के साथ संबंध, देवरदेवरानी, ननदननदोई, जेठजेठानी, पति के भाईभाभी आदि. ये वह रिश्ते हैं जो परिवार में वृद्धि के साथ जन्म लेते हैं. इन रिश्तों को निभाना रस्सी पर नट के बैलेंस बनाने के समान है. हर रिश्ते में अहं अपना काम करता है और अनियंत्रित तथा असंतुलित अहं के कारण घर का माहौल शीघ्रता से बिगड़ता है.

 

जेठजेठानी- यह रिश्ता बड़े होने के साथ आदर व सम्मान चाहता है. बहू का कर्तव्य है वह रिश्तों को निभाते समय आदर व सत्कार से पेश आए. जेठजेठानी की तरफ से यह प्रयास होना चाहिए कि बहू को बच्चों के समान प्यार दें. उस की हर आवश्यकता का ध्यान रखें. यह प्यार दोतरफा है.

 

देवरदेवरानी- देवरदेवरानी के साथ बहू का रिश्ता सौहार्दपूर्ण होना चाहिए. अगर देवरदेवरानी से कोई गलत व्यवहार हो जाए तो बहू को क्षमाशील और सहनशील होना चाहिए. यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि बहू को अपने सम्मान का खयाल नहीं रखना चाहिए. उस के आत्मसम्मान की रक्षा होनी चाहिए.

 

बच्चों के साथ व्यवहार- छोटे बच्चे संयुक्त परिवार में बड़े लाड़प्यार से पाले जाते हैं. सास तो उन को पूरा प्यार देती है. बहू को चाहिए वह भी उन्हें मां की तरह प्यार करे. उन का स्वभाव कोमल होता है. उन्हें कू्रर स्वभाव वाली बहू अच्छी नहीं लगती.

 

ननदननदोई के साथ व्यवहार- ननद शादी के बाद अकसर पति के साथ मायके आती है. वह बेशक थोड़े समय के लिए ही आए उस का स्वागत और सत्कार खुले दिल से होना चाहिए. घर के दामाद का भी आदर से भरपूर स्वागत होना चाहिए. बहू को चाहिए वह बढ़चढ़ कर परिवार के लोगों के साथ उन के सत्कार में भागीदार बने. उन्हें एहसास कराए कि उन का परिवार में आनाजाना उसे अच्छा लगता है. ननद परिवार की लड़की है. इस के लिए जाते समय ननदननदोई को उचित उपहार दे कर विदा किया जाए. सासबहू दोनों आपस में बातचीत कर के उपहार की व्यवस्था करें. जब पत्नी सब रिश्तों में अपने सद्भाव की मिठास भरती है, उन्हें अपने व्यवहार से सम्मान और प्यार देती है तो ऐसी बहू अपने पति की प्यारी और गर्व के योग्य बन जाती है. फिर कहा भी जाता है कि बहू वही जो पिया मन भाए.

 

वयस्क लड़कालड़की- संयुक्त परिवार में जब बहू प्रवेश करती है तो सब से अधिक खुश होते हैं परिवार के कुंआरे लड़कालड़की. उन्हें मित्रवत व्यवहार की जरूरत होती है. अगर ससुराल आने पर बहू का रवैया उन के साथ मित्रवत होता है तो वह सास का दिल जीत लेती है. बहू उन का मार्गदर्शन करने की स्थिति में होती है.

 

 

 

 

आदर्श सास बनने के गुण

उसी तरह बहू की भी उम्मीदें होती है|एक खुशहाल परिवार के लिए घर में सास को ही सोच समझ के कदम उठाने होते हैं क्योंकि बहु घर में नई होती है|सास पर निर्भर है कि कमी ढुढंने की बजाए कैसे बहु को घर की बेटी बनांए|

आदर्श सास बनने के लिए :

आपको एक माँ की तरह बहू की तकलीफों या दुखों को सुनना चाहिए और उसे समझना चाहिए|

बहू को नए माहौल में ढलने और वहाँ के लोगों की पसंद-नापसंद को समझने का पर्याप्त समय दिजीए|

यदि वह आपके घर के काम को नहीं कर पा रही है तो उसे सिखाने का प्रयास करना चाहिए|

बहू के घरवालों के लिए भला-बुरा ना कहें|जब बात माँ बाप की आती है तो कोई भी इंसान बरदाश नहीं कर पाता|

हर बात पे मेरा बेटा मेरा बेटा ना करें|अब वो एक पति भी है|

बेटे-बहू में किसी बात पर बहस हो तो ऐसे में आप अपने बेटे के स्थान पर बहु का साथ देने की कोशिश करें, यदि वह सही है तो| इससे उनके बीच प्रेम बना रहेगा और बहू के मन में आपके लिए सम्मान बढ़ जाएगा|

बेटे को भी समझांए कि बहू को समय दे और उसे हर बात प्यार से समझांए|

बेटे को अपनी ओर करने या बहु के लिए उसके मन में बुराई पैदा करने से आप अपने बेटे और बहु दोनों की नज़र में बुरी बन जाएँगी|यह ना करें|

सास-बहू का व्यवहार पूरे घर को प्रभावित करता है| जरुरी नहीं है कि आपकी बहू हर समय पूरी तरह से

सही हो| आप उसे विनम्रता से समझाएँगे या उससे कभी ऊँचे स्वर में नहीं बोलेंगे तो वह भी आपको जरूर समझेगी|

अपनी बहू की बुराइयाँ या कमियाँ बाहर वालों से ना करें|इससे आपकी बहु आपके खिलाफ हो जाएगी|

उसकी कमियाँ एक माँ भाँति उसे बता सकती हैं और इस अंदाज़ से कहें कि उसे बुरा भी न लगे और वह आपकी बात समझ भी जाए|

दूसरों के आगे बहू की अचाछियाँ ज़ाहिर करें|

बहू के घरवाले घर आंए तो खुशी प्रकट करें|बहू को बहुत अच्छा लगेगा|

दहेज या किसी सामाम का ताना ना दें|

रिशतेदारों की बहूओं से तुलना ना करें|

उससे आगे से बात करें क्योंकि आपका यह व्यवहार देखकर वह भी आपसे बोलेगी और उसके मन में आपके प्रति कोई बैर नहीं रहेगा|

बहू बिमार हो तो उसे जतांए की आपको उसकी फिक्र है|

 

बहू को भी हर बात दिल पे नहीं लगानी चाहिए|सास-बहू के रिश्ते में कभी दरार न आ पाए इसके लिए दौनों को समझदारी से रिश्तों को बांधे रखना जरुरी है|

 

सास और बहु के रिश्ते को मधुर बनाने के लिए बेटे को क्या करना चाहिए?

किसी के भी बेटे की शादी अरेंज मैरिज हुई हो या लव मैरिज, दोनों विवाहों में परिवार साथ में जुड़ता ही है।बेटा माँ और अपनी पत्नी के बीच की कड़ी होता है। लड़के को खुद तय करना होगा कि उसे परिवार की मजबूत कड़ी बनना है या कमजोर कड़ी। अगर बेटा माँ और पत्नी किसी के प्रति भी कमजोर पड़ा तो सास और बहू के रिश्ते में मुश्किलें पैदा हो सकती हैं।

 

बेटे को, अपनी माँ और पत्नी में अगर किसी बात को लेकर मतभेद होता है तो पहले वह दोनों की बातों को ध्यान से सुने, अपना विवेक का इस्तेमाल करे और जो सही है, उसका साथ दे।

बेटे को अपनी माँ और पत्नी दोनों ही प्रिय हैं। बेटे को जो बात सही लगे उस बात को अपनी माँ और पत्नी को निष्पक्ष होकर बोलना जरुरी है। उसे यह भी बोलना जरुरी है कि इस बात से उसका प्यार किसी के लिए कम नहीं हो जाता है।

पत्नी के साथ शादी के बाद बेटा ज्यादा समय बिताता है। यह सही है, पर पत्नी के साथ, अपने माँ-पापा को भी समय-समय पर बाहर घूमने, कभी खाने-पीने या कोई मूवी देखने लेकर जाना चाहिए। इससे पेरेंट्स को यह महसूस कभी नहीं होगा कि शादी के बाद उनका बेटा उनका नहीं रहा।

खुशी का माहौल घर पर बरकरार रखे तो रिश्ते मे मधुरता कायम रहती है।

सास को बहू की कोई बात पसंद नहीं आती है तो बहू को सुनाने की जगह अपने बेटे से ही बोले। बेटा अपनी पत्नी से बात करके हल निकालेगा। क्योंकि इससे बहू को भी सीधे कुछ सुनना नहीं पड़ेगा तो वह भी अपने पति द्वारा कही बातें सुनेगी और समझेगी।

उसी तरह बहू को भी सास की किसी बात से एतराज है, जो सही नहीं है, तो वह भी अपने पति से बोल सकती है। बेटा माँ को समझा सकता है। माँ से कभी कठोरता या अपनी पत्नी का पक्ष लेता हुआ बात न करे बल्कि यह बोल सकता है माँ आप ऐसा मत करिए।

यहाँ सबसे जरूरी यही है कि बेटे को घर के जिम्मेदार इंसान की तरह सोच रखनी होगी। जो सही है,उसका साथ देना जरूरी है। अपनी स्पष्ट बात रखने आना चाहिए और उस पर कायम रहना चाहिए।

परिवार में सास-बहू और बेटे का रिश्ता हमेशा हांसिए पर रहता है। कब कौन घायल हो जाए, कहना मुश्किल है। सास बहू की बातें तो सभी करते हैं लेकिन सैंडविच तो बेटा ही बनता है। बेटा को अपनी स्पष्टता और व्यवहारिकता कायम रखनी होगी।

 

बेटा यह कहकर निकल जाए कि मुझे बीच में मत घसीटो यह आप दोनों जानो, तो रिश्ते को बिगड़ने में देर नहीं लगेगी। सास बहू के रिश्ते मधुर रहें, इसके लिए बेटे की भूमिका दोनों के बीच मजबूत कड़ी बनना है।

सास की कही ये बातें बहू को लगती हैं सबसे ज्यादा कड़वी

वैसे तो सास-बहू का रिश्ता खट्टा-मीठा होता है, लेकिन कई बार बातों-बातों में ऐसी चीज कह दी जाती है कि बहुओं के लिए उसे जिंदगीभर भुला पाना मुश्किल हो जाता है। ये बातें इस तरह से दुख करती हैं कि रिश्तों में हमेशा के लिए एक दूरी बन जाती है। शादी के बाद एक महिला के लिए सबसे ज्यादा कठीन काम होता है, अपनी सास से अच्छे रिश्ते बनाना। एक तो शादी के पहले ही लड़की को सास के नाम पर 'संभलकर रहने' की हिदायत दे दी जाती है, ऊपर से विवाह के बाद जब वह ससुराल जाती है, तो सास की कही कुछ बातें उसे बुरी तरह दुखी कर जाती हैं।

मेरे बेटे को मेरे ही हाथ से बनी खाना पसंद है

'अरे बहू रहने दे, वो नहीं खाएगा, उसे मेरे ही हाथ की बनी यह सब्जी पसंद आती है।' यह एक ऐसी लाइन है जो अच्छे से अच्छी मास्टर शेफ बहू को भी शर्मिंदा कर दे। सब्जी लाने से लेकर, उसे काटने तक की पूरी तैयारी बहू करे और जैसे ही छोंकने का टाइम आए, तब सास की ओर से आया यह डायलॉग सुन बहू झुंझलाकर रह जाती है। माना कि हर बेटे को अपनी ही मां के हाथ का खाना ही सबसे अच्छा लगता है, लेकिन पत्नी भी मन से अपने पति और सभी के लिए कभी-कभी स्पेशल डिश बनाना चाहती है। प्रोत्साहन की जगह ऐसा डायलॉग सुनने को मिले तो भला कौन बहू इस बात को पचा सकेगी।

अभी तो घर गई थी

महिला चाहे कितनी ही आत्मनिर्भर क्यों न हो, लेकिन शादी के बाद अगर उसे मायके जाना हो, तो इसके लिए पहले सास से परमिशन जरूर लेनी पड़ती है। वैसे तो अक्सर शादी के बाद बहू को अपनी जिम्मेदारियों के चलते पैरंट्स के पास जाने का कम ही मौका मिल पाता है, लेकिन अगर उसे घर की याद आए और वह 6 महीने में एक बार भी माता-पिता के पास जाना चाहे, तो अक्सर उसे 'अरे अभी तो गई थी' का डायलॉग दिया जाता है। सास की कही यह बात बहू को सबसे ज्यादा हर्ट करती है, क्योंकि यह भावनाओं से जुड़ा मामला होता है। सास ये भूल जाती हैं कि अगर उनका बेटा कहीं और बस जाए और उसे भी 6 महीने में एक बार तक घर आने का मौका न मिले तो उन्हें मां होने के नाते कैसा लगेगा। जिस तरह सास को दूर रह रही अपनी बेटी और बेटे की याद सताती है, वैसे ही बहू के पैरंट्स को भी उसकी याद आती ही है। सिर्फ शादी हो जाने का अर्थ ये नहीं है कि बहू अपने मायके जाना ही बंद कर दे और बस किसी शादी में बतौर मेहमान शरीक होने जाए।

अरे! मेरे बेटे से काम करवा रही हो

वैसे तो कहा जाता है कि पति-पत्नी को हर जिम्मेदारी बराबरी से निभानी चाहिए, लेकिन जब बात घर के काम की आती है, तो वो बाय डिफॉल्ट महिला के खाते में चला जाता है। न तो पुरुष खुद से पहल करते हैं और ना उनसे अपेक्षा की जाती है। ऐसे में अगर पत्नी गलती से पति से मदद करने को कह दे और वह किचन में हाथ बंटाने पहुंच जाए, तब सास का फुल टॉस बॉल की तरह आता डायलॉग 'अरे! मेरे बेटे से काम करवा रही हो' उन्हें गुस्सा से भर देता है।

तुम्हारी मां ने नहीं सिखाया

एक बात जो किसी बहू को सबसे ज्यादा तोड़ती है, वह है सास का हर बात में उसके पैरंट्स को बीच में लाना। चाहे बात खाने की हो या घर के किसी अन्य काम की, जब महिला को यह सुनने को मिलता है 'तुम्हारी मां ने नहीं सिखाया' तो वह गुस्से का कड़वा घूंट पीकर रह जाती है। चूंकि सास उम्र में बड़ी है इसलिए वह उनका लिहाज करते हुए भले ही जवाब ने दे, लेकिन यह बात तय है कि यह उसे ऐसा जख्म देगा कि वह कभी भी इसे भुला नहीं सकेगी। जाहिर सी बात है कि जब सवाल परवरिश पर उठाया जाए, तो भला उसे कोई कैसा बर्दाश्त कर सकता है?

ननद की सेवा

ननद घर आए तो बहू का काम डबल नहीं ट्रिपल हो जाता है। अपनी शादीशुदा बेटी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना, उसे आराम करने का मौका देना हर मां चाहेगी, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि यह भूल जाया जाए कि घर की बहू के पास वैसे ही बहुत काम हैं। उससे हर समय बेटी की फेवरिट चीजें बनवाते रहना या उसके साथ शॉपिंग के लिए जाने को कहना या उसकी पसंद की चीज लाने के लिए कहना, ये सब बहू को बुरी तरह से थका देता है।

 

अगर इस स्थिति में यह कहा जाए कि 'अरे! कुछ ही दिन के लिए तो बेटी आई है', तो भी यह स्थिति ठीक नहीं है, क्योंकि लगातार किचन या घर के काम में ही खटने पर एक दिन ही जबरदस्त मेंटल से लेकर इमोशनल स्ट्रेस क्रिएट करने के लिए काफी होता है।

 

शादी के बाद सास को खुश रखने के आसान तरीके

सास और बहू का रिश्ता सबसे अहम होता है और सबसे नाजुक भी। अगर यह रिश्ता अच्छा रहा, तो महिला के लिए ससुराल में ढलना और खुशी से जीना आसान हो जाता है। वहीं ऐसा न हो तो उसके लिए हर दिन किसी सजा जैसा बन जाता है।

saas ko khush karne k tareeke

 

शादी के बाद सास को खुश रखने के आसान तरीके

शादी की बात पर लड़कियों को सबसे ज्यादा इस बात की टेंशन रहती है कि उनकी सास से बनेगी या नहीं। यही वजह है कि मैरेज से पहले और बाद में हमेशा उसके आसपास वाले उसे सास से बहस न करने, उन्हें कभी ना न कहने जैसी सलाह देते दिखाई देते हैं। इस तरह के सुझाव मदर इन लॉ को खुश तो रख लेंगे, लेकिन ये बहू को कभी भी सही मायनों में सास से इमोशनल बॉन्ड डेवलप नहीं करने देंगे। बेहतर यही है कि बहू जैसी है वैसी ही रहते हुए अपनी मदर इन लॉ के दिल में जगह बनाए। इससे जो बॉन्ड बनेगा, उसे कोई गलतफहमी तक तोड़ नहीं सकेगी। चलिए जानते हैं ऐसा कैसे कर सकते हैं:

सास के स्वभाव को समझना

शादी से पहले अक्सर लड़कियां अपने होने वाले पति से सास के नेचर से जुड़े कई सवाल करती हैं, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं है। दरअसल, बेटे होने के नाते वह आपको बेसिक चीजें तो बता देंगे पर ये सास के साथ अच्छा रिश्ता बनाने में कुछ खास मदद नहीं कर सकेंगे। बेहतर है कि बहू बनकर जब आप ससुराल जाएं, तो पहले दिन से ही अपनी सास के नेचर को समझना शुरू करें, कि आपको किस स्थिति के अनुसार उनसे कैसे बात करनी है? ससुराल से जुड़ी किसी सिचुएशन में क्या करना चाहिए या क्या नहीं? इनका अच्छे से अंदाजा हो जाए।

क्या नहीं है पसंद

क्या पसंद है? यह तो सभी बहुएं जानने की कोशिश करती हैं, लेकिन इस दौरान वह यह जानना भूल जाती हैं कि सास को क्या पसंद नहीं है। किसी की पसंद जानने से पहले उसकी नापसंद जानना ज्यादा अहम होता है। उदाहरण के लिए अगर बहू को पता लगा कि सास को राजमा पसंद है, लेकिन उसे यह न पता हो कि उन्हें सब्जी में लहसुन पसंद नहीं है, तो पूरी मेहनत ही बर्बाद हो सकती है।

बदलने की कोशिश न करना

आप सोच से भले ही बेबाक हों, लेकिन बहू बनने के बाद ऐसे बर्ताव न करें कि वह घर बस आपके अनुसार ही चलेगा। आपको ये बात समझनी होगी कि आपकी सास ने अपनी लगभग पूरी जिंदगी उस परिवार को चलाया है, ऐसे में आप आते ही सबकुछ बदलने की कोशिश करें, तो यह उन्हें किसी भी हाल में रास आ ही नहीं सकता। इस चीज को छोटे से उदाहरण से समझा जा सकता है। मानें कि आपने अपने रूम को खास तरह से डिजाइन करवाया, लेकिन अचानक कोई व्यक्ति आपके यहां ठहरने आया और उसने रूम का लुक इसलिए चेंज कर दिया, क्योंकि वह उसके टेस्ट के हिसाब से सही नहीं था। क्या आपको यह पसंद आएगा? जाहिर सी बात है नहीं। यह तो मेहमान की सिचुएशन थी, लेकिन बहू को तो सास से जिंदगीभर का रिश्ता निभाना होता है, ऐसे में आते ही उनकी सालों से जमी-जमाई चीजों को बदलने की कोशिश, हमेशा के लिए रिश्ते को डैमेज कर सकती है।

पति को बीच में न लाना

पति का यह फर्ज है कि वह ससुराल में अपनी पत्नी को अडजस्ट होने में मदद करे और उसकी खुशी का ख्याल रखे। हालांकि, जब बात सास और बहू के रिश्ते की आती है, तो पति को हमेशा अपने साइड करने की कोशिश रिश्ते में दरार डाल सकती है। अगर किसी चीज को लेकर मतभेद हो, तो पति के पास शिकायत लेकर जाने से अच्छा है कि बहू विनम्र लहजे में इसे सास के सामने रखे और बताए कि उसे उस चीज से क्यों आपत्ति है। आपको यह बात हमेशा ध्यान रखनी होगी कि आपका पति सास का बेटा भी है, इसलिए उन्हें हर बात पर बीच में लाना पारिवारिक शांति को खत्म कर सकता है।

बेटी जैसा प्यार चाहिए, तो मां जैसा सम्मान भी देना होगा

 अक्सर बहुएं इस बात की शिकायत करती हैं कि उन्हें सास से कभी मां जैसा प्यार नहीं मिल सकता, लेकिन इस दौरान वह इस बात पर ध्यान देना भूल जाती हैं कि क्या उन्होंने कभी उन्हें मां जैसा व्यवहार किया? रिश्तों और प्यार को हमेशा ही नि:स्वार्थ कहा जाता है, लेकिन सच तो यह है कि किसी भी संबंध में एक व्यक्ति जैसी भावनाएं सामने रखेगा, उसे बदले में भी वैसी ही भावनाएं मिलेंगी। अगर आपको बेटी जैसा प्यार चाहिए तो आपको मां जैसा सम्मान भी देना होगा।

 

शादी के बाद ससुराल में हर महिला को मिल जाते हैं ये अधिकार


शादी हर किसी महिला की जिंदगी का सबसे अहम पहलू होता है. शादी के बाद एक बेटी किसी की पत्नी और किसी की बहू बन जाती है. उसे अपना घर छोड़कर अपने पति के घर जाना होता है. फिर जिंदगी भर पति के साथ उसी के घर में रहना होता है. ऐसे में पत्नी के पास कई अधिकार होते हैं, जिसकी वो हकदार होती है. अगर ससुराल में उसे ये अधिकार नहीं मिलते हैं, तो वो पुलिस में इसकी शिकायत कर सकती है. और अगर फिर भी कुछ सुनवाई नहीं होता है, तो इसके लिए वो कानूनी लड़ाई भी लड़ सकती है. आइये जानते हैं, शादी के बाद ससुराल में पत्नी के अधिकार-

 घर पर पत्नी का बराबरी का अधिकार

हिन्दू धर्म में एक महिला अपना सबकुछ छोड़ छाड़कर अपनी पति के साथ रहने आती है. ऐसे में पति का फर्ज बनता है कि वो उसे पूरा मान सम्मान दें. साथ ही घर पर जितना अधिकार पति का होता है उतना ही अधिकार पत्नी का भी होता है. यानी कि घर पर पति पत्नी दोनों का बराबर का अधिकार होता है.

गिफ्ट और पैसों पर अधिकार

एक रिवाज है कि जब हम किसी की शादी समारोह में जाते हैं तो खाली नहीं जाते, कुछ न कुछ लेकर जाते हैं. ऐसे में रिश्तेदारों और मेहमानों से मिलने वाले सारे गिफ्ट और कैश पर पत्नी का अधिकार होता है. इसे स्त्रीधन भी कहते हैं.

पति नहीं बना किसी और के साथ संबंध

शादी के बाद पति पत्नी दोनों एक दूसरे के साथ संबंध बना सकते हैं. महिला को रिश्ते के लिए समर्पित का अधिकार मिल जाता है. अगर पति किसी और महिला के साथ संबंध बनाता है, तो ये गलत है. पत्नी से तलाक होने के बाद ही पति ऐसा कर सकता है. अगर तलाक से पहले पति किसी दूसरी महिला के साथ संबंध बनाता है, तो ये गैर कानूनी है.

पूर्ण स्वाभिमान का अधिकार

शादी के बाद ससुराल में भी पत्नी को पूरे स्वाभिमान के साथ रहने का अधिकार है. ससुराल में कोई भी व्यक्ति किसी महिला के साथ बदतमीजी, अपमान, कष्ट पहुंचाना, ब्लैक मेल नहीं कर सकता. अगर ससुराल में पत्नी के साथ कोई भी मारपीट करता है तो उसकी चोटों के लिए मुख्य रूप से उसका पति ही जिम्मेदार होगा, भले ही यह चोट उसके किसी अन्य रिश्तेदारों की वजह से आई हो।

संपत्ति में अधिकार

अगर पत्नी कहीं किसी कम्पनी में जॉब करती है, तो ठीक है. वरना पति की कमाई और संपत्ति पर पत्नी का बराबर का हक होता है. पत्नी अपनी इच्छा और जरूरत के साथ जिंदगी जी सकती है.

 

अगर इनमें से कोई भी अधिकार ससुराल में पत्नी को नहीं मिलता है, तो नजदीकी पुलिस स्टेशन में महिला को शिकायत करना चाहिए. 

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