कट्टरपंथी मनुष्य किसी भी धर्मं का हो वास्तव में
वह धर्म से कोसों दूर होता है. हिन्दू, इस्लाम, सिख, इसाई या पारसी कोई भी धर्म नही है यह तो मात्र
विचार धाराओं और मतों के नाम है या भाषाई अनुवाद है. हम सभी इस धरती पर स्त्री के
गर्भ से मनुष्य के रूप में पैदा होतें हैं. हम में से कोई भी किसी भी धर्म में
पैदा नही हुआ. हमें हिन्दू, मुस्लिम, इसाई
या कुछ और तो हमारे माता पिता, और हमारी पंथ प्रधान शिक्षा
व्यवस्था का वातावरण बनाता है, और फिर हम हिन्दू मुस्लिम
बनकर धर्म का चोला पहन कर स्वय को श्रेष्ठ दिखाने की कोसिस मात्र कर रहे हैं. और
अपने भीतर खुद ही खुद को श्रेष्ठ समझ कर प्रसन्न है. वास्तव में “धर्म” सिर्फ विचारों या मतों का नाम है ठीक उसी
प्रकार आप ये बात महसूस करते हैं की प्रत्येक धार्मिक पुस्तक में लगभग समान विचार
लिखे हैं. सभी धार्मिक पुस्तकें सत्यनिष्ठा और नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं. कोई भी
धार्मिक पुस्तक असत्य के मार्ग का चुनाव करना नही सिखाती.
क्या आतंकवाद का धर्म से कोइ सम्बन्ध है?
‘आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता।’ यह बात हमें रोज सुबह-शाम दिन-रात गरज कि पाँचों वक्त याद दिलायी जाती है और उम्मीद की जाती है कि हम इसको सही मान लें और इस पर विश्वास कर लें। लेकिन यह बात कितनी खोखली है, इसका पता भी हमें रोज चल जाता है। कश्मीर से केन्या तक तक, पाकिस्तान से अमेरिका तक, चीन से यूरोप तक दुनिया में हर जगह आतंकवादी अपनी करतूतों से साबित कर देते हैं कि उनका एक ‘धर्म’ है और जो उस तथाकथित धर्म को नहीं मानता, उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। दुनिया का कोई कोना इन ‘धार्मिकों’ के असर से अछूता नहीं है।
भारत में भी इस बात के खोखलेपन के प्रमाण रोज सामने आ जाते हैं। कहीं किसी आतंकवादी को अदालत फाँसी की सजा सुनाती है, तो उसके ‘धर्म’ वालों के वोटों के सौदागर सामने आ जाते हैं और चीखने लगते हैं कि ‘न….न….न, इसको फाँसी मत दो, नहीं तो उस धर्म के मानने वाले नाराज हो जायेंगे।’ जब भी मुठभेड़ में कोई आतंकवादी मारा जाता है, उसको बेटा-बेटी या दामाद बताने वाले छातियाँ पीटने लगते हैं कि ‘हाय ! एक शांतिप्रिय निर्दोष बच्चे को मार डाला।’ वे चाहते हैं कि हम या तो आतंकवादियों को खुला घूमने दें या उनको दामाद बनाकर रोज बिरयानी खिलाते रहें।
इस धर्म के झंडाबरदार कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि क्या कारण है कि इस धर्म को मानने वाले आतंकवादी पूछ-पूछकर और छाँट-छाँटकर गैर-धर्मों को मानने वालों के सीने में गोलियाँ उतारकर आनन्द का अनुभव करते हैं? क्या कारण है कि इस धर्म को मानने वाला शान्तिप्रिय आदमी सैकड़ों गैर-धर्म वाले निर्दोष लोगों की जान लेने के लिए खुद को विस्फोट से उड़ाने में कोई संकोच नहीं करता?
केवल जन्नत जाने और वहाँ असीमित शराब के साथ 72 हूरें पाने का लालच इसका अकेला कारण नहीं हो सकता। अवश्य ही उस धर्म के चिन्तन और मान्यताओं में कोई मौलिक गलती है, जिसके कारण यह ‘शान्तिप्रिय धर्म’ सारे संसार में अशांति और रक्तपात का कारण बना हुआ है। इस चिन्तन में चूक कहाँ पर है? जब इस सवाल का जबाब मिल जायेगा, तो आतंकवाद भी समाप्त होने लगेगा, वरना इसी तरह आम लोगों की जानें जाती रहेंगी और हम ‘कड़ी कार्यवाही करने’ की चेतावनी देते रहेंगे।
जब भी कोइ आतंकवादी घटना होती और उसकी निंदा होती
सेकुलर नेता,मीडिया और कुछ बुद्धिजीवी फ़ौरन आवाज़ उठाने लगते
की आतंकवाद को कोइ धर्म नहीं होता लेकिन ये बताने में असमर्थ है की सभी आतंकवादी
मुस्लिम क्यों होते ,क्यों जिहाद से झोदते,क्यों इस्लामिक चिन्हों का इस्तेमाल करते और क्यों पुरी दुनिया में इस्लामी
शासन लागू करना चाहते?
कुरान के हिसाब से “मुसलमान वह
है जिसकी जुवान और हाथ से दुसरे मुसलमान
सुरक्षित रहे,जो तीर तलवाल की जगह नैतिकता और चरित्र
से फैसला करे और हथियार तभी उठाये जब दुश्मन हमला हरे.हमले में महिलाओ ,बच्चो,बुड्ढो,गैमुसल्मान ,घयल और हथियार दाल चुके लोगो पर वार न करे.किसी भी धार्मिक पूजास्थल को
ध्वस्त न करे !खेतो,पेड़ो,और जानवरों को
नुक्सान न पहुंचाए !मुहम्मद जी ने हदीसी में मुसलमानों की यही पहचान बताई.!कुरान
में इस्लाम की यही अर्थ और उद्देश्य बताया !”
लेकिन क्या शुरू से मुसक्मान इसपर चलते है?मोहमाद जी ने इस्लाम को बहुत बाद में स्थापित किया और पुरी दुनिया में
प्रसार के लिए हिंसा का ही सहारा लिया उन्होंने दुसरे धर्मो के धार्मिक स्थलों को
तोडा,जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाने के लिए वध्य किया और न
मानने पर कतला कर दिया पुरी दुनिया में हिंसा के बल पर ही फैला.हमारे देश में भी
बाबर,अजनवी,गौरी ,तैमूर लंग आदि लोगो ने लाखो लोगो को तलवाल के बल पर इस्लाम में बदला न
मानने पर कतला कर दिया,हजारो मंदिरों को नष्ट किया और दौलत
लूटी क्या ये कुरान और इस्लाम के अनुरूप है?क्यों नहीं
मुसलमान ऐसे अक्रमंकरियो ,ओसामा बी लादेन और आतंकवादी घटनाओ में लगे लोगो की निन्दा करते?चूंकि मुसलमानों ने इस्लाम की शिक्षा पर अम्ल करना बंद कर दिया इसीलिए
बदनाम हो गयी.!
इनकी मुख्य कमजोरियां है:-
१.आलोचना को सहन नहीं करना और प्रश्न करने पर
ईशनिंदा के आरोप लगा अपराधी काफ़िर घोषित कर मार डालना.
२. दुसरे धर्म
के लोगो को को काफ़िर कह कर दुर्व्यवाह्हर और शोषण करना.
३ कुरान की विश्वनीयता और नैतिकता पर सवाल करना ?
४.अनैतिक बातो पर भडकना और आधुनिकता को न अपनाना ?
इस्लाम को आतंकवादी धर्म इसलिए कहा जाने लगा की सब
आतंकवादी मुस्लिम है,वे इस्लामिक राज्य बनाना चाहते,इस्लाम के चिन्हों,नाम को इस्तेमाल करते.सबसे खूंखार आतंकवादी संगठन IS का पूरा नाम इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया है.उनके प्रतीक चिन्ह
इस्लामिक है और बहुत जगह जैसे हॉल में बांग्लादेश में हुए आतंकवादी हमले में लोगो
को कुरान की आयते न पढने वालो को मार दिया.आतंकवाद की पारिभा में है की राज्नातिल,मजहबी या वैचारिक परिवर्तन के लिए हिंसा का सहारा लिया जाए.नेपाल में
माओवादी आतंक था क्योंकि वहां राज्सही को हटाकर मावोवादी विचारधारा वाला राज्य
स्थापित करना था.इसी तरह नाक्साल्वादी हिंसा के द्वारा राज परिवर्तन चाहते जिसे
नक्सल आतंकवाद कहा जा सकता .
भारत में लोगो ने शुरू किया की आतंकवाद का कोइ धर्म
नहीं होता और मीडिया इसीपर जोर देते रहे .इतना होते
हुए भी आतंकवादियो से कुछ सेकुलर नेताओ,मुसलमानों और मीडिया
को कितना प्यार है उनके जनाज़े में उमरी भीड़ या अफज़ल गुरी या याकूब मेनन के लिए
समर्थन पर दिखा था.इन दिनों कश्मीर में आतंकवाद बहुत जोरो पर है और जब भी कोइ मारा
जाता उसके जनाज़े में भरी भीड़ आ जाती और सेना पर पत्थर फेकना और विरोध जताते लेकिन
देश हे सेकुलर नेता और मीडिया निंदा करने से डरता है.वैसे आतंकवाद के लिए अरब देश ज़िम्मेदार है जो मदरसों को बहुत धन देता जहाँ उनकी शिक्षा मज़हवी दे कर ब्रेनवाश कर
दिया जाता और विश्व में सबसे बड़ी आतंकवादी देश पकिस्तान है जहाँ से पुरे विश्व में
भेजे जाते.वैसे आतंकवाद बढ़ने में अमेरिका का बहुत बड़ी भूमिका है क्योंकि
अफ्घनिस्तान में रूस को भागने के लिए पाकिस्तानी संगठन तैयार करवाए जो अब विश्व भर
के लिए खतरा.९/११ के बाद अमेरिका की आँखे खुली.एक विचार के अनुसार इराक के सद्दाम
हुसैन को हटा कर अमेरिका ने गलती की और इसलिए आतंकवाद बढ़ गया.
क्या कुरान में कहा गया की गैर मुसलमानों कोम मरने
और राज्य स्थापित करने में शहीद होने वालो को खुदा फ़ौरन जन्नत दे देता और उनका स्थान
नवाज़ पढने और रोज़ा रखने वालो से ज्यादा ऊंचा होता है !इस्लाम का मतलब अब लूटमार,हत्या,बलात्कार,हो गया और अब
मुसलमान आपस में एक दुसरे को मारने लगे पाकिस्तान में पेशवर के स्कूल में सैकड़ो
बच्चो को मारना किस धर्म में है क्या अल्लाह इससे खुश होगे?लेकिन
अब आतंकवादी बेलगाम हो गए है.आतंकवादी सऊदी अरबिया,पकिस्तान,येमन और भारत के मदरसों में पैदा हो रहे.ये हिंसा या युद्ध से नहीं लेकिन
शिक्षा में बदलाव कर के लाया जा सकता है.!
मिस्र ने जब इजराइल से दोस्ती की तो इसराइली प्रधान
मंत्री के सुझाव पर अपनी शिक्षा पद्धति में सुधर किया फिर मलेशिया ,इंडोनेशिया, मोरक्को येमन ने भी ऐसा ही किया.आतंकवाद मध्य पूर्व अफ्रीका ,यूरोप,दक्षिण पूर्व एशिया,भारत,अमेरिका पाकिस्तान ,अफगानिस्तान और बांग्लादेश प्रभावित है.अभी हाल में सऊदी
अरबिया भी इसका शिकार हुआ.दुसरे को आतंकवाद देने वाले पाकिस्तान का भी बहुत बुरा
हॉल है.
पहले कहा जाता था की मुस्लमान गरीबी उपेक्षा ,अत्याचार के शिकार होने के कारण आतंकवाद में चले जाते लेकिन IS के लिए कार्य करने वाले बांग्लादेश में शामिल या अन्य जगहों में आतंकवादी
बड़े पढ़े लिखे और ऊंचे घराने से है.ये सब उनके दिमाग को नफरत
की भावना से ब्रेनवाश करने के कारन होता.!
ओमान में रमजान के दौरान रोजे के समय में सार्वजनिक
जगहों पर खाना या पीना कानूनन अपराध है. ऐसा करने वाले किसी व्यक्ति को तीन महीने
की जेल की सज़ा दी जाती है, चाहे वो किसी भी धर्म से ताल्लुक
रखता हो. यहां तक की कार में बैठ के खाना भी दण्डनीय है. कुवैत में सार्वजनिक स्थल
पर रोजे के समय रोजा तोड़ना दण्डनीय अपराध है जिसके लिए एक महीने की जेल की सज़ा
से लेकर 100 दिनार का फाइन तक लग सकता है. पाकिस्तान में भी पब्लिक में खाते पाए
जाने पर 500 का फाइन या तीन महीने की जेल हो सकती है. कई मुस्लिम देशों में रमजान
के दौरान सार्वजनिक जगहों पर खाना अपराध माना जाता है. बांग्लादेश में दिन के समय
में रेस्त्रां को जबर्दस्ती बंद करके रखा जाता है, रोजा रखने
वाली भीड़ आती है और इसमें तोड़फोड़ करके चली जाती है. जो रोज़ेदार नहीं होते उन्हें
हमेशा घबराहट रहती है. मुसलमान रमजान में रोजे की हालत में खाना खाने से या पानी
पी लेने से रोजा टूट जाता है. इस्लाम विरुद्ध लेकिन दंगा और हत्या करना कुरान
संमंत मानता.क्यों नहीं मुस्लिम लोग खुले दिल से ओसबिं लादेन या बगदादी की निंदा न
कर आदर्श मानते है !नाईजीरिया ऐसे अच्छे शांतिप्रिय देश में बोको हरम आतंकवादी
संगठन ने तबाई मचा रक्खी हजारो का कतला किया लडकियो का धर्मपरिवर्तन किया और मौज
मस्ती की.!
मुसलमान आतंकवाद को इस्लाम का शुद्ध रूप मानते ! क्या कुरान
में मोहम्मद जी कहते की आतंकवाद के ही बदौलत ही इस्लाम दुनिया में फैला है
और जो लोग जिहाद के जरिये अपनी जान दे देते अल्लाह उनको बहुत प्यार करता.!
अप्रैल २०१३ में ISIS बना
जिसके पास २ अरब डालर की पूंजी थी जो उसने अपहरण,तेल के कुओ
पर कब्ज़ा कर और मुस्लिम देशो से जिहाद के नाम पर लिया आजकल उसके पास विश्व के ९० से
ज्यादा देशो के लोग उसके लिए लड़ रहे हमारे देश से बहुत से गए कुछ पकडे गए आजकल
केरल के १०० बच्चो का पता नहीं शायद वे भी IS के लिए लड़ने
गए.इसके मुखिया जो मारा गया ने अपने आपको खलीफा घोषित करके इस्लामिक राज्य की
स्थापना करने की घोषणा की थी भारत और कुछ ३-४ मुस्लिम देशो को छोड़ ज्यादातर लोगो
ने इसकी निंदा नहीं की.इसने क्रूरता की सभी हद पार कर दी लोगो के गले काटना,पिंजरे में बंद कर जिन्दा जलना आदि कार्य करके उसके विडियो बना कर पुरे
विश्व में दिखा कर खौफ पैदा करना उद्देश्य है इसने ईरान,इराक,सीरिया को तबाह कर दिया पुरानी सभ्यता के चिन्ह मिटा दिए.येमन के अलावा
सऊदी अरब में भी आतंक फैला रहा पेरिस,और कई यूरोप देशो में
हमला किया.इससे बड़ी संख्या में लोग मारे.सीरिया और इराक में दुसरे धर्म के लोगो के
साथ बहुत क्रूर कार्य किया और औरतो को कब्ज़े में करके गुलाम बना बलात्कार करते रहे,यूरोप अमेरिका और रूस की सेना ने इसपर आक्रमण कर बहुत नुक्सान पहुंचाया और
इसकी कमर टूट गयी.
एक जुलाई 2016...दिन शुक्रवार। यह तारीख फिरोजाबाद
के लोगों को आज भी याद है, क्योंकि इस दिन सुहागनगरी में
माहौल गमगीन था। दहशतगर्दों ने मजहब का फर्क कर शहर की बेटी तारिषी जैन को ढाका के
एक रेस्टोरेंट में मौत के घाट उतार दिया था। बांग्लादेश
की राजधानी ढाका के हाई प्रोफाइल इलाके गुलशन रोड के एक रेस्टोरेंट में शुक्रवार
रात आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के हमले की शिकार भारतीय लड़की तारिषी जैन ने
बंधक रहने के दौरान घर से बातचीत की थी. जानकारी के मुताबिक 19 साल की तारिषी ने अपनी आखिरी बातचीत में रेस्टोरेंट के अंदर का भयानक हाल
बताया था. जानकारी के मुताबिक तारिषि आतंकी हमले के दौरान कैफे में फंस गईं थीं।
वो अपने दो दोस्तों के साथ कैफे गईं थीं। इस दौरान चालीस लोगों के साथ उन्हें भी
आतंकियों ने बंधक बना लिया। आतंकियों ने सबसे कुरान की आयतें पढ़वाईं जो नहीं पढ़
पाए उनकी हत्या कर दी।
21 अप्रैल 2019 ईस्टर
रविवार को, पूरे श्रीलंका में तीन चर्च और वाणिज्यिक राजधानी
कोलंबो के तीन लक्जरी होटल में बम विस्फोट की गई। कम से कम 290 लोग मारे गए, जिनमें कम से कम 35 विदेशी नागरिक और तीन पुलिस अधिकारी शामिल थे, और बम
विस्फोट में लगभग 500 लोग घायल हुए है। आख़िर नौजवानों ने इस तरह के हमले को अंजाम क्यों
दिया,
जिसमें 250 से अधिक लोग मारे गए? हमलों को
अंजाम देने वाले युवाओं में अधिकतर पढ़े-लिखे और मध्यम वर्गीय परिवार से जुड़े
थे.इस्लामिक स्टेट ने हमलों की ज़िम्मेदारी ली थी. जिहादी समूह ने हाल के दिनों
में भारत और पाकिस्तान में नई शाखाएं खोलने की भी घोषणा की है. यह साफ तौर पर
दर्शाने की कोशिश है कि इसका ख़तरा दक्षिण एशिया में बढ़ रहा है.यह क्षेत्र उन
समूहों का ठिकाना है जो सलफ़ी इस्लाम (कट्टरपंथी इस्लाम) में विश्वास रखते हैं. यह
माना जाता है कि इसकी विचारधारा इसके अनुयायियों को चरमपंथ की ओर ले जाती है.21
अप्रैल के हमलों के बाद से श्रीलंका ने 200 इस्लामी उपदेशकों को निष्कासित कर दिया
है, जो युवा आबादी में बढ़ते कट्टरपंथ की श्रीलंका की आशंका
और डर को दर्शाता है.
1400 साल पहले जब मुहम्मद साहब ने अरब में इस्लाम
की स्थापन की होगी तब वंहा की सामाजिक और भौगोलिक परस्थितियों के हिसाब के इस्लाम उस समय का अच्छा मजहब होगा ,
उस समय अरब में जिस प्रकार का अन्याय , अत्याचार
या और सामाजिक बुराईयाँ थी उसको देखते हुए इस्लाम को अरब का एक समाज सुधारक धर्म
कहने से कोई गुरेज नहीं और मुहम्मद साहब की जितनी भी तारीफ की जाये कम होगी।
पर चौदह सौ साल पहले अरब के लोगो की जो हालत थी उसे
देखते हुए जो पाठ उन्होंने दिया , और जिस तरीके से दिया गया वह
अरब और उस ज़माने के लिए बेसक सही हो परन्तु क्या
आज के समय और अरब के आलावा दुसरे देशो के लिए उपयुक्त हो सकता? ।
आज वैज्ञानिक युग में भी इसके अनुयायी घोर
अन्धविश्वासी बने हुए हैं , धर्म के नाम पर समय , शक्ति, और सम्पति बर्बाद करने के बाद भी धर्म का कोई
फायदा उनके जीवन में नज़र नहीं आ रहा ।
भारत में बड़ी-बड़ी मस्जिदे हैं , करोडो आदमी रोज पांच समय की नवाज़ पढ़ते हैं परन्तु न तो बढ़ी है और न राष्ट्रीयता , न उदारता अब भी जरा जरा सी बात पर दुसरे धर्म के लोगो से दंगे आम बात है ,
बल्कि विकास की हर दिशा में कही न कही बाधा ही पड़ी है । भारत के
टुकड़े टुकड़े होने के बाद भी स्तिथि में ज्यादा बदलाव नहीं हो पाया ।
क्या आज के वैज्ञानिक युग में वो कट्टरता
और अंधभक्ति के सहारे आगे बढ़ सकते हैं?
पूरी दुनिया में आतंकवाद नामक संक्रामक बीमारी के
प्रसार के बाद से ही बार-बार आंतकवाद को इस्लाम से जोड़ा जाता रहा है. लेकिन हमेशा
से इस राय की तीखी आलोचना होती रही है.इस बात पर लंबे समय से बहस जारी रही है कि
क्या आतंकवाद को किसी धर्म विशेष के साथ जोड़ना जायज है? इसके जवाब में लोगों का मानना रहा है कि ऐसा करना गलत है और महज मुट्ठी भर
राह से भटके लोगों की वजह से पूरे इस्लाम धर्म को दोषी ठहराना इस धर्म को कमतर करने
की कोशिश है.
इस समय इस्लाम धर्म माननेवालों की आबादी ईसाई के
बाद दूसरे नंबर पर है। अगर आबादी की यह गति यूं ही बढ़ती रही तो इस शताब्दी के
आखिर तक मुसलमानों की आबादी ईसाई से भी आगे निकल जाएगी। लेकिन इसमें खुश होने जैसी
कोई भी बात नहीं होनी चाहिए; क्योंकि जो व्यक्ति इंसानियत
से मुहब्बत करता है वह कभी भी लोगो को गरीब, अशिक्षित और
असुरक्षित नही देखना चाहेगा।
इसमें कोई भी दोराय नही कि आज के मुसलमान तकनीकी और
राजनीतिक रूप से पिछड़े हुए तथा हाशिए पर खड़े आर्थिक रूप से गरीब लोग हैं। यह बड़े
ही सोच का विषय है कि दुनियाभर की कुल 790 खरब डालर की अर्थव्यवस्था में मुस्लिमो
का सिर्फ 20 खरब डालर का ही योगदान है, जो फ्रांस जैसे
एक छोटे देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) से भी कम है। एक और तथ्य जो सोचने पर
मजबूर करता है कि दुनिया की 35 प्रतिशत आबादी वाले ईसाई दुनिया की सम्पूर्ण
सम्पत्ति का 70 प्रतिशत हिस्सा रखते है।
आज के दौर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में
मुसलमानों का योगदान, आविष्कार नगण्य है। आम तौर पर
प्रतिवर्ष मुसलमान प्रसिद्ध शोध पत्रिकाओं के लिए लगभग 500 शोधपत्र प्रकाशित करते
हैं, जो स्वयं में केवल इंग्लैंड से प्रकाशित शोध का 1/6
हैं। 1901-2008 के बीच कुल 500 नोबेल पुरस्कारों में से 140 नोबल पुरस्कार यानि कि
दुनिया के 25 प्रतिशत नोबल प्राप्त करने का गौरव उन यहूदियों को प्राप्त है जो
दुनिया की आबादी का केवल 0.2 प्रतिशत है। और वही पर सिर्फ 10 मुसलमानों को आज तक
इस पुरस्कार को करने का अवसर मिला है।
द गार्डियन लिखता है कि मलेशिया के एकमात्र इस्लामी
विश्वविद्यालय को छोडकर दुनिया के 150 सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की सूची में एक
भी मुस्लिम विश्विद्यलय नही है। जबकि सातवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक, दुनिया के सबसे बड़े स्कूल और विश्वविद्यालय मुस्लिम देशों में स्थित थे।
विज्ञान के प्रसिद्ध इतिहासकार, गिलेस्पी ने मध्यकालीन युग
में दुनियाभर के 130 महान वैज्ञानिकों और तकनीशियनों को सूचीबद्ध किया था, जिसमे से 120 साइंसदान सिर्फ मुस्लिम देशों के थे और केवल चार यूरोप से
थे। क्या यह तथ्य मुसलमानों को अपने अतीत के मूल्यांकन करने और भविष्य को तार्किक
तरीके से सोचने पर मजबूर करने के लिए काफी नही है?
विभिन्न संस्थानों द्वारा किए गए शोध के आधार पर
कुछ और दिलचस्प तथ्य बताते हैं कि मुस्लिम समाज और देशों में बेरोजगारी और आर्थिक
गरीबी,
अगले 50 वर्षों में आगे बढ़ेगी। जैसे की प्यु की रिपोर्ट दावा करती
है कि यदि अगले पचास वर्षों में मुस्लिम आबादी दोगुना हो गई , तो मुस्लिम और ईसाई देशों के बीच आर्थिक विकास अंतर बहुत बड़ा हो जायेगा।
एक सवाल है कि आने वाली शताब्दी में दुनिया पर 5 प्रतिशत संसाधनो वाले मुसलमानों
या फिर 70 फीसदी संसाधनों और सम्पत्ति वाले इसाई कौम का प्रभुत्व होगा? यह याद रखना होगा कि आज के वैज्ञानिक विकास द्वारा परिभाषित दुनिया में
किसी भी देश या कौम का सम्मान और शक्ति, इसकी आबादी पर
आधारित नहीं है। आज सिर्फ और सिर्फ विज्ञान और प्रौद्योगिकी में विकास शक्ति,
सम्मान और संसाधनों की गारंटी है। यहूदी देश इज़राइल को देखिये,
एक छोटा सा देश पूरे अरब दुनिया पर हावी है क्योंकि यह एक आर्थिक,
रणनीतिक और वैज्ञानिक रूप से समृद्ध देश है, जिसके
खिलाफ वैज्ञानिक रूप से पिछडे अरब को झुकना पड़ता है और हार माननी पड़ती है। एक
तरफ, पश्चिमी देशों में रहने वाले मुस्लिम उनकी समृद्धि से
खुश हैं, जबकि मुस्लिम बहुमत वाले देशों के मुसलमान वित्तीय
पिछड़ेपन में डूबे हुए हैं। यूरोप में रहने वाले 20 मिलियन मुस्लिमों का सकल घरेलू
उत्पाद पूरे भारतीय महाद्वीप के 500 मिलियन मुस्लिमो से अधिक है।
असल में, शिक्षा का पतन,
मुसलमानों सीखने की तरफ से रुझान का हटना, उनके
आर्थिक और राजनीतिक गिरावट का मुख्य कारण है। हमने सदियों से मानवता के नेतृत्व को
छोड़ दिया है और रूढ़िवादी सोच ने हमें अलग थलग कर दिया है। वह दिन बहुत करीब है
जब मुसलमान उन्हें दुनिपर एक बोझ रूप में महसूस करेंगे। मलेशिया के प्रधान मंत्री
महाथिर बिन मोहम्मद ने ओआईसी की बैठक कहा था कि मुसलमानों को सामाजिक परिस्थितियों
में बदलाव के परिणामस्वरूप नए युग में एक नई पहचान बनाने के लिए अपने रूढ़िवादी
रवैय्ये को छोड़ना चाहिए।
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