ब्रह्माण्ड बहुत पहले से ही अपनी असीम गहराई के कारण
मानव जाति के मध्य चर्चा का विषय रहा है। इसके रहस्यों का संसार कितना बडा है, इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भले ही हम ब्रह्मांड के
बहुत रहस्य को जानते हो परंतु यह ब्रह्मांड की तुलना में बहुत ही कम है लगातार
वैज्ञानिक इसको जानने के लिए प्रयासरत हैं।
cosmology theory of the universe
जब विश्व का एक क्रमबद्ध इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है तो इसे ब्रह्माण्ड (COSMOS) की संज्ञा दी गई | इसे समझने के लिए ब्रह्माण्ड एवं इससे सम्बन्धित सिद्धांत जानने आवश्यक हैं |
ब्रहमाण्ड से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य –
सबसे पहले प्रख्यात खगोलशास्त्री क्लाडियस टॉलमी ( 140 ई. ) ने ब्रह्माण्ड का अध्ययन प्रारंभ किया तथा बताया कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड के केंद्र में है और सूर्य व अन्य ग्रह पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं | टॉलमी के इस सिद्धांत को जियोसेंट्रिक अवधारणा कहा जाता है|
सन् 1543 ई. में
कॉपरनिकस ने बताया कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र नहीं है वरन् सूर्य ब्रह्माण्ड
का केंद्र है, इस अवधारणा को हेलियोसेंट्रिक अवधारणा कहा
जाता है| उनकी यह अवधारणा सौर परिवार तक सीमित थी लेकिन उनकी
इस अवधारणा ने ब्रह्माण्ड के अध्ययन में क्रांतिकारी परिवर्तन किया |
ब्रिटेन के खगोलज्ञ हरशेल ने सन् 1805 ई. में दूरबीन का प्रयोग करके ब्रह्माण्ड का अध्ययन किया और बताया कि
सौरमंडल, आकाशगंगा का एक अंश मात्र है |
सन् 1925 ई. में
अमेरिका के खगोलज्ञ एडविन पी. हबल ने बताया कि दृश्यपथ में आनेवाले ब्रह्मांड का
व्यास 250 प्रकाशवर्ष है और इसके अन्दर हमारी आकाशगंगा की
तरह की लाखों आकाशगंगाएँ हैं |
ब्रह्मांड के विषय में विचार करने पर बहुत से
प्रश्न हमारे मस्तिष्क में आने लगते हैं जैसे इसकी उत्पत्ति कैसे हुई ? क्या कभी इसका अंत होगा ? क्या हमारी पृथ्वी की तरह
ब्रह्माण्ड के किसी अन्य ग्रह पर जीवन है ? क्या इसके परे भी
कुछ है ? ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई सिद्धांत
दिए गए हैं जिनमें से कुछ प्रमुख सिद्धांत यहाँ दिए गए हैं –
महाविस्फोट सिद्धांत / बिग बैंग सिद्धांत ( Big Bang
Theory ) – जार्ज लैमेन्टर द्वारा
साम्यावस्था सिद्धांत ( Steady
State Theory ) – थॉमस गोल्ड एवं हर्मन बांडी द्वारा
दोलन सिद्धांत ( Pulsating Universe Theory
) – डॉ. एलन संडेज द्वारा
ब्रह्मांड: विज्ञान ने सुलझाया ‘आदि और अंत’ का रहस्य
ब्रह्मांड की उत्पत्ति कब और कैसे हुई, इस चुनौती को स्वीकार करने में वैज्ञानिक हाल ही में समर्थ हुए हैं. पिछली
सदी के दौरान वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई, इस प्रश्न के उत्तर स्वरूप अनेक मनोमुग्धकारी सिद्धांत प्रतिपादित कियें
हैं, जो सृष्टि सृजन को समझाने का प्रयास करते हैं.
ब्रह्माण्ड का विकास इस प्रकार से हुआ है कि समय के
साथ इसमें ऐसे जीव (मनुष्य) उपजें जो अपनी उत्पत्ति के रहस्य को जानने में समर्थ
थे. ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कब और कैसे हुई? क्या यह सदैव से
अस्तित्व में था या इसका कोई प्रारम्भ भी था? इसकी उत्पत्ति
से पूर्व क्या था? क्या इसका कोई जन्मदाता भी है? यदि ब्रह्माण्ड का कोई जन्मदाता है तो पहले ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ या
उसके जन्मदाता का? यदि पहले ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ तो उसके
जन्म से पहले उसका जन्मदाता कहाँ से आया? इस विराट
ब्रह्माण्ड की मूल संरचना कैसी है? ब्रह्माण्ड का भावी
परिदृश्य (भविष्य) क्या होगा? - ये कुछ ऐसे मूलभूत प्रश्न
हैं जो आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने सदियों पूर्व थे. ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति
से सम्बंधित इन मूलभूत प्रश्नों में धर्माचर्यों, दार्शनिकों,
और वैज्ञानिकों की दिलचस्पी रही है. इन प्रश्नों के उत्तर सीमित
अवलोकनों, आलंकारिक उदाहरणों, मिथकों,
रूपकों एवं आख्यानों के आधार पर प्रस्तुत करने के प्रयास प्रायः सभी
प्राचीन सभ्यताओं एवं धर्मों में हुए. अधिकांश धर्मों मे ब्रह्माण्ड के रचयिता के
रूप में ईश्वर की परिकल्पना भी की गई.
ब्रह्मांड की उत्पत्ति का बिग बैंग सिद्धांत
जैसाकि हम जानते हैं कि हब्बल ने यह खोज की थी कि
ब्रह्मांड का विस्तार (फैलाव) हो रहा है. उस समय अन्य वैज्ञानिकों के साथ-साथ
हब्बल को भी अपनी इस असाधारण खोज के मायने स्पष्ट नहीं थे. इस मुद्दे पर विचार
स्वरूप जोर्ज लेमाइत्रे और जोर्ज गैमो ने गंभीर प्रयास किए. इन दोनों वैज्ञानिकों
के अनुसार यदि आकाशगंगाएं बहुत तेज़ी से हमसे दूर भाग रहीं हैं तो इसका अर्थ यह हुआ
कि अतीत में किसी समय जरुर ये आकाशगंगाएं एक साथ रहीं होंगी.
वस्तुतः ऐसा लगा कि 10 से 15 अरब वर्ष पहले ब्रह्मांड का समस्त द्रव्य एक ही जगह पर एकत्रित रहा होगा.
उस समय ब्रह्मांड का घनत्व असीमित था तथा सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक अति-सूक्ष्म बिंदू
में समाहित था. इस स्थिति को परिभाषित करने में विज्ञान एवं गणित के समस्त
नियम-सिद्धांत निष्फल सिद्ध हो जाते हैं. वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को गुरुत्वीय
विलक्षणता Gravitational
singularity नाम दिया है. किसी अज्ञात कारण से इसी सूक्ष्म बिन्दू
से एक तीव्र विस्फोट हुआ तथा समस्त द्रव्य इधर-उधर छिटक गया. इस स्थिति में किसी
अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार शुरू हुआ और दिक्-काल की भी उत्पत्ति
हुई. इस घटना को ब्रह्माण्डीय विस्फोट का नाम दिया गया. अंग्रेज ब्रह्मांड
विज्ञानी सर फ्रेड हॉयल ने इस सिद्धांत की आलोचना करते समय मजाक में ये शब्द गढ़े- ‘बिग बैंग’.
आप पूछ सकते हैं, ‘बिग बैंग’
क्या वह धमाका जो बहुत तेज आवाज के साथ होता है. नहीं, किसी भी कम या अधिक आवाज की ध्वनि तरंगों को ले जाने के लिए एक माध्यम की
जरूरत होती है (जबकि अंतरिक्ष के गहन निर्वात में आपकी चीख कोई भी नहीं सुन सकता)
इसलिए उस विस्फोट को बिग बैंग कहना बिलकुल भी उचित नहीं नहीं है. इतना निश्चित है
कि अगर यह धमाका आपके घर के किसी कमरे में हुआ होता, तो बेशक
इससे जोरदार आवाज होती क्योंकि यह एक ऐसी चीज थी जो असीमित घनत्व वाली थी और
जिसमें अचानक बेहद तीव्र गति से विस्तार हुआ था.
महत्वपूर्ण बात यह है कि अंतरिक्ष का स्वयं विस्फोट
हुआ था न कि पहले से मौजूद किसी अंतरिक्ष में विस्फोट हुआ था. आज के फैलते इस
ब्रह्मांड आकाशगंगाओं के बीच की रिक्तता ही है जो विस्तृत हो रही है. दरअसल बिग
बैंग से पहले कोई अंतरिक्ष नहीं था, यह तो खुद ही बिग
बैंग के बाद में अस्तित्व में आया था.
1960 के दशक में स्टीफन हॉकिंग, जार्ज एलिस और रोजर पेनरोज ने आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत को
दिक् और काल की गणना में प्रयुक्त करते हुए यह बताया कि दिक् और काल सदैव से
विद्यमान नहीं थे, बल्कि उनकी उत्पत्ति ‘महाविस्फोट’ के साथ हुई. हॉकिंग को एहसास हुआ कि
महाविस्फोट दरअसल ब्लैक होल का उलटा पतन ही है. स्टीफ़न हॉकिंग ने पेनरोज के साथ
मिलकर इस विचार को और विकसित किया और दोनों ने 1970 में एक
संयुक्त शोधपत्र प्रकाशित किया और यह दर्शाया कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति ब्लैक होल
के केंद्रभाग में होने वाली ‘विलक्षणता’ (सिंगुलैरिटी) जैसी स्थिति से ही हुई होगी. दोनों ने यह दावा किया कि
महाविस्फोट से पहले ब्रह्मांड का समस्त द्रव्यमान एक ही जगह पर एकत्रित रहा होगा.
बिग बैंग सिद्धांत ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सबसे
अधिक मान्य सिद्धांत है. परंतु जिस सैद्धांतिक स्थिति पर भौतिकी या गणित प्रकाश
डालने में असमर्थ है, उसको मानने के हमारे पास क्या सबूत
है? दरअसल भौतिकी को अपने सिद्धांतों पर उस समय संदेह हो
जाता है, जब वह उसे अनंत की तरफ ले जाते हैं. बहरहाल,
बात सबूत की. वैज्ञानिक जोर्ज गैमो ने 1940 के
दशक में यह अनुमान लगाया कि बिग बैंग ने उत्पत्ति के कुछ समय में ब्रह्मांड को
उच्च तापमान विकिरण से भर दिया होगा! उन्होंने यह भी अंदाज़ लगाया था कि ब्रह्मांड
के विस्तार ने उच्च तापमान विकिरण को धीरे-धीरे ठंडा कर दिया होगा और उसके अवशेष
माइक्रोवेव के रूप में देखे जा सकते हैं. वर्ष 1965 में
आर्नो पेंजियाज और रोबर्ट विल्सन ने अनजाने में ही माइक्रोवेव विकिरण की खोज की.
इस बड़े सबूत के कारण ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बिग बैंग सिद्धांत को सर्वाधिक
मान्यता प्राप्त है.
दूसरा महत्वपूर्ण सबूत है ब्रह्मांड में ड्यूटीरियम, लीथियम और हीलियम के परमाणुओं की पाई जाने वाली संख्या. हॉट बिग बैंग मॉडल
का तापीय इतिहास यह दर्शाता है कि ब्रह्मांड के विकास के दौरान केवल ड्यूटीरियम,
लीथियम और हीलियम के नाभिक ही निर्मित हुए. उनके परिमाणों (एमाउंट)
की गणना भी गैमो और उनके सहयोगियों ने की. यह भी पाया गया कि जहां अन्य तत्वों के
परमाणुओं की उत्पत्ति तारों के अंदर होने वाली नाभिकीय संलयन से हुआ, वहीं ड्यूटीरियम का सृजन तारों में संभव नहीं है. अवलोकनों में यह पाया
गया है कि ब्रह्मांड में मौजूद ड्यूटीरियम की संख्या गैमो के अवलोकन से बिलकुल मेल
खाती है. इसी प्रकार हीलियम की मौजूदगी भी गैमो के अवलोकन से मेल खाता है.
स्थायी अवस्था सिद्धांत
बीसवीं सदी के प्रतिभाशाली ब्रह्माण्डविज्ञानी
फ्रेड हॉयल ने अंग्रेज गणितज्ञ हरमान बांडी और अमेरिकी वैज्ञानिक थोमस गोल्ड के
साथ संयुक्त रूप से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का सिद्धांत प्रस्तुत किया. यह
सिद्धांत ‘स्थायी अवस्था सिद्धांत’ के
नाम से विख्यात है. इस सिद्धांत के अनुसार, न तो ब्रह्माण्ड
का कोई आदि है और न ही कोई अंत. यह समयानुसार अपरिवर्तित रहता है. यद्यपि इस
सिद्धांत में प्रसरणशीलता समाहित है, परन्तु फिर भी
ब्रह्माण्ड के घनत्व को स्थिर रखने के लिए इसमें पदार्थ स्वत: रूप से सृजित होता
रहता है. जहाँ ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सर्वाधिक मान्य सिद्धांत (बिग बैंग
सिद्धांत) के अनुसार पदार्थों का सृजन अकस्मात हुआ, वहीं
स्थायी अवस्था सिद्धांत में पदार्थों का सृजन हमेशा चालू रहता है.
हॉयल ने बिग बैंग सिद्धांत के अवधारणाओं के साथ
असहमति क्यों प्रकट की? दरअसल हॉयल जैसे दार्शनिक
प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के लिए ब्रह्माण्ड के आदि या आरम्भ जैसे विचार को मानना
अत्यंत कष्टदायक था. क्योंकि ब्रह्माण्ड के आरम्भ (सृजन) के लिए कोई कारण और
सृजनकर्ता (कर्ता) होना चाहिए. वर्तमान में इस सिद्धांत के समर्थक न के बराबर हैं.
दोलायमान ब्रह्मांड सिद्धांत
ब्रह्मांड की उत्पत्ति का यह एक नया सिद्धांत है.
इस सिद्धांत के अनुसार हमारा ब्रह्मांड करोड़ों वर्षों के अंतराल में विस्तृत और
संकुचित होता रहता है. डॉ. एलन संडेज इस सिद्धांत के प्रवर्तक हैं. उनका मानना है
कि आज से 120 करोड़ वर्ष पहले एक तीव्र विस्फोट हुआ था और
तभी से ब्रह्मांड फैलता जा रहा है. 290 करोड़ वर्ष बाद
गुरुत्वाकर्षण बल के कारण इसका विस्तार रुक जाएगा. इसके बाद ब्रह्मांड संकुचित
होने लगेगा और अत्यंत संपीडित और अनंत रूप से बिंदुमय आकार धारण कर लेगा, उसके बाद एक बार पुनः विस्फोट होगा तथा यह क्रम चलता रहेगा! इस सिद्धांत
को दोलायमान ब्रह्मांड सिद्धांत कहते हैं.
बहरहाल, महत्वपूर्ण बात
यह है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति के लिए दैवीय शक्तियों से परे तर्कसंगत वैज्ञानिक
सिद्धांतों पर आधारित व्याख्या के लिए विज्ञान निरंतर प्रयत्नशील है.
ब्रह्मांड का अंत
वर्तमान में ब्रह्माण्ड के फैलाव तथा अंत के विषय
में चार प्रमुख सम्भावनाएं व्यक्त की गई हैं -
1) महा-विच्छेद (द बिग रिप): इस सम्भावना के
अनुसार ब्रह्माण्ड तब तक विस्तारित होता रहेगा जब तक प्रत्येक परमाणु टूट कर
इधर-उधर फ़ैल नही जायेगा. यह ब्रह्माण्ड के अंत का सबसे भयानक घटना होगी लेकिन
ब्रह्मांड को इस अवस्था में देखने के लियें हम जीवित नही रहेंगे क्योंकि इस अवस्था
तक पहुचने से पहले से हमारी आकाशगंगा, ग्रह और हम नष्ट हो
चुके होंगे. वैज्ञानिकों के अनुसार यह घटना आज से लगभग 23
अरब वर्ष बाद होगी.
2) महा-शीतलन (द बिग फ्रीज़): इस सम्भावना के
अनुसार ब्रह्माण्ड के विस्तार के कारण सभी आकाशगंगाएँ एक दूसरे से दूर चले जायेंगी
तथा उनके बीच कोई भी सम्बंध नहीं रहेगा. इससे नये तारों के निर्माण के लिये गैस
उपलब्ध नहीं होगा. इसका परिणाम यह होगा कि ब्रह्माण्ड में उष्मा के उत्पादन में
अत्याधिक कमी आयेगी और समस्त ब्रह्माण्ड का तापमान परम-शून्य (एब्सोल्यूट जीरो) तक
पहुँच जायेगा. और महा-शीतलन के अंतर्गत हमारे ब्रह्माण्ड का अंत हो जायेगा.
वैज्ञानिकों के अनुसार यह ब्रह्माण्ड के अंत की सबसे अधिक सम्भावित अवस्था है. कुछ
भी हों लेकिन यह भी पूरी तरह से निश्चितता से नहीं कहा जा सकता कि इसी अवस्था से
ब्रह्माण्ड का अंत होगा.
3) महा-संकुचन (द बिग क्रंच): इस सम्भावना के
अनुसार एक निश्चित अवधि के पश्चात् इसके फैलाव का क्रम रुक जायेगा और इसके विपरीत
ब्रह्माण्ड संकुचन करने लगेगा अर्थात् सिकुड़ने लगेगा और अंत में सारे पदार्थ
बिग-क्रंच की स्थिति में आ जायेगा. उसके बाद एक और बिग-बैंग होगा और दूबारा
ब्रह्माण्ड का जन्म होगा. क्या पता कि हमारा ब्रह्माण्ड किसी अन्य ब्रह्माण्ड के
अंत के पश्चात् अस्तित्व में आया हो?
4) महाद्रव-अवस्था (द बिग स्लर्प): इस सम्भावना
के अनुसार ब्रह्माण्ड स्थिर अवस्था में नही है. और हिग्स-बोसॉन ने ब्रह्माण्ड को
द्रव्यमान देने का काम किया है. जिससे यह सम्भावना है कि हमारे ब्रह्माण्ड के अंदर
एक अन्य ब्रह्माण्ड का जन्म हो और नया ब्रह्माण्ड हमारे ब्रह्माण्ड को नष्ट कर
देगा .
13.8 अरब साल पहले कैसे बना ब्रह्मांड,
वैज्ञानिकों ने खोले राज
ब्रह्मांड का निर्माण महाविस्फोट यानी बिग बैंग से
हुआ था। अब वैज्ञानिकों ने बताया है कि लगभग 13.8 अरब साल पहले
यह रहस्यमय महाविस्फोट किस तरह हुआ होगा। बिग बैंग सिद्धांत कहता है कि अरबों साल
पहले पूरा ब्रह्मांड पदार्थों और ऊर्जा के एक बिंदु के रूप में था। इस बिंदु के
केंद्र में महाविस्फोट हुआ जिसके बाद वह फैलता गया और उसी के परिणाम स्वरूप
ब्रह्मांड का जन्म हुआ है जो मौजूदा समय में हमारे सामने है।
आज भी फैल रहा ब्रह्मांड
वैज्ञानिकों के मुताबिक इस महाविस्फोट में इतनी
ऊर्जा थी कि उसके प्रभाव से आज भी ब्रह्मांड फैलता जा रहा है। अमेरिकी पत्रिका 'साइंस' में वैज्ञानिकों का यह अध्ययन प्रकाशित हुआ
है। इसमें उन तंत्रों का विस्तृत विवरण दिया गया है, जो
विस्फोट का कारण बन सकते हैं। ये तंत्र उन मॉडलों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिनका उपयोग वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति को समझने के लिए कर रहे हैं।
विस्फोट कराने के तरीके का पता लगाया
हमने उन महत्वपूर्ण मानदंडों को परिभाषित किया है
जहां हम स्वयं उग्रता पैदा करने वाली लौ जला सकते हैं, उसे गति दे सकते हैं और उसे विस्फोट में परिवर्तन कर सकते हैं। वैज्ञानिकों
की टीम ने हाइपरसोनिक जेट प्रणोदन के तरीकों की खोज करते हुए बिग बैंग प्रकार के
विस्फोट कराने के तरीके का पता लगाया। इन सुपरसोनिक प्रतिक्रियाओं का पता लगा रही
थी और उसी के फलस्वरूप हमें इस तंत्र का पता चला, जो बहुत
रुचिकर नजर आ रहा था। जब हम आगे बढ़े तो हमें यह अहसास हुआ कि यह ठीक वैसे ही है
जैसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति के समय हुआ होगा। वैज्ञानिकों ने बताया कि अभी इस पर
आगे की शोध चल रही है।
क्या है बिग बैंग थियरी
बिग बैंग सिद्धांत ब्रह्मांड की रचना की एक
वैज्ञानिक सिद्धांत है। इसमें यह बताने की कोशिश की गई है कि यह ब्रह्मांड कब और
कैसे बना?
जाने माने वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने इस सिद्धांत को समझाया था।
इसके अनुसार करीब 14 अरब साल पहले पूरे भौतिक तत्व और ऊर्जा
एक बिंदु में सिमटी हुई थी। फिर इस बिंदु ने फैलना शुरू किया। बिग बैंग, बम विस्फोट जैसा विस्फोट नहीं था बल्कि इसमें, प्रारंभिक
ब्रह्मांड के कण, समूचे अंतरिक्ष में फैल गए और एक दूसरे से
दूर भागने लगे।
हमारी पृथ्वी पर पहला इंसान कहाँ से आया!
आदिकाल का मानव सृष्टि के रहस्यों को नहीं जानता था
इसलिए वह प्रकृति में घटने वाली घटनाओं से बहुत ही डरता था| वह नहीं जानता था कि धरती कैसे बनी है, जीवन की
उत्पत्ति कैसे हुई है, इंसान क्या है और कैसे बना है,
पृथ्वी कैसे काम करती है, रात और दिन कैसे
होते हैं| इस प्रकार के तमाम सवालों ने इंसान को बहुत परेशान
किया. जब से इंसान खाना खाने वाले प्राणी से सामाजिक प्राणी बना है तब से वह
सृष्टि के रहस्यमई प्रश्नों का हल ढूंढ रहा है.
इन अबूझ प्रश्नों को सुलझाने के लिए प्राचीन काल के
मानव के पास अटकलों के सिवा कोई दूसरा तरीका नहीं था. आधुनिक काल में विज्ञान की
उन्नति ने मनुष्य के अनेक प्रश्नों को हल कर दिया है. लगभग 13 अरब 70 करोड़ों वर्ष
पहले हमारे इस विराट और अनंत यूनिवर्स का जन्म हुआ. ब्रह्मांड के जन्म की किसी
थोरी को हम बिग बैंग थ्योरी कहते हैं. बिग बैंग से पहले क्या था? इस पर वैज्ञानिक अलग-अलग मत रखते हैं. कुछ समय पहले मर चुके इतिहास के
सबसे बड़े साइंटिस्ट स्टीफन हॉकिंग के अनुसार हमारा यूनिवर्स किसी विशाल मल्टी बरस
जैसा हो सकता है, जहां हर पल करोड़ों यूनिवर्स पैदा होते हैं
और हर पल करोड़ों यूनिवर्स मरते भी हैं|
हमारा यूनिवर्स अपनी शुरुआत से ही फैलता चला गया.
बिग बैंग की शुरुआती टक्कर में जो ऊर्जा पैदा हुई उससे मीटर और एंटीमीटर पैदा हुए.
इन दोनों के टकराव से शुरुआती 12 प्रकार के एलिमेंट्स बने हैं जिनमें से एक
हाइड्रोजन भी था| हाइड्रोजन के अणुवो से ही हीलियम
बना. हाइड्रोजन और हीलियम से बने अरबों खरबों सितारे बने. हाइड्रोजन और हीलियम की
यह किर्या पूरे ब्रह्मांड के कोने-कोने में हो रही थी. जिससे अरबों-खरबों अकाशगंगा
बनी और इस तरह शुरुआती 5- 6 वर्षों में ही पूरा ब्रह्मांड जगमगा उठा|
हमारी यूनिवर्स के शुरुआत के 8 अरब वर्ष बाद हमारी
आकाशगंगा मिल्की वे के किसी कोने में हाइड्रोजन के बादल सघन हो रहे थे. ग्रेविटी
के कारण हाइड्रोजन के विशाल बादलों ने हमारे सूर्य का रूप लेना शुरू किया. करीब 5
अरब साल पहले शुरू हुई यह प्रक्रिया करोड़ों वर्षों तक चली और इसके केंद्र में बना
एक विशाल सूरज| जो आज के हमारे सूरज से काफी बड़ा था. सूर्य
बनने की प्रक्रिया में बचे मलबे ने सैकड़ों पिंडों का रूप धारण कर लिया. यह सभी
पंडित गुरुत्वाकर्षण के कारण केंद्र में स्थित बड़े पिंड का चक्कर लगाने लगे और इस
तरह बना हमारा सूर्य मंडल| शुरुआती सूर्य मंडल में सैकड़ों
ग्रह थे, हजारों पिंड थे, लाखों
उल्कापिंड थे और करोड़ों अरबों की तादात में विशाल पत्थर है| जो अंतरिक्ष में सूर्य का चक्कर लगा रहे थे|
4.5 अरब साल पहले के इस सौरमंडल में बृहस्पति से भी
बड़े ग्रह थे और कुछ प्लूटो से भी छोटे थे. समय के अंतराल में इनमें अधिकांश ग्रह
आपस में टकरा गए जिससे ग्रहों की संख्या कम हो गई. इन ग्रहों की टक्कर से बिखरे
मलबे से इन ग्रहों के चंद्रमा बने. 4 अरब वर्ष पहले सूर्यमंडल के सौ के करीब
ग्रहों के बीच एक विशाल पिंड जो सूर्य का चक्कर लगा रहा था उसकी एक दूसरे बड़े
पिंड से टक्कर हो गई. इस प्रकार से उस पिंड का 25% भाग मलबे में तब्दील हो गया और
75% बचे भाग ने धीरे-धीरे एक ग्रह का रूप धारण कर लिया. इसी तरह हमारी पृथ्वी का
जन्म हुआ और इस टक्कर से पैदा हुए मलबे के ढेर में धीरे-धीरे एक और छोटे पिंड का
रूप धारण किया जो हमारा चंद्रमा बना| जिसे हम चांद
कहते हैं|
शुरुआती पृथ्वी आज की हमारी पृथ्वी से काफी अलग थी.
पृथ्वी की ठोस धरातल के नाम पर पृथ्वी पर निकलने वाले मैग्मा और लावा की भरमार थी.
उस वक्त पृथ्वी का तापमान 400 डिग्री से 1600 डिग्री सेल्सियस था. ना कोई पहाड़, ना नदी, ना समंदर. बस चारों ओर आकाश से बरसने वाले
आग के गोले और धरातल पर बहती आग की नदियां. ऐसी थी हमारी शुरुआती पृथ्वी| करीब 3.8 अरब वर्ष पहले पृथ्वी का तापमान कुछ कम हुआ. धरती पर 20 करोड़
वर्षों से धधकते लावा और मेग्मा के बादल बरसने लगे. तेजाबी बारिश ने 10 करोड़
वर्षों में विशाल रासायनिक समुंदर का निर्माण कर दिया. 3.7 अरब साल पहले हमारी
पृथ्वी तेजी से बदलने लगी विशाल पृथ्वी का 80% भाग समुंदर के पानी में डूब चुका
था. सिर्फ 30% जो पृथ्वी का भाग बाहर बचा था उसे एक्टेल लैंड कहां जाता है. यह
पेंटियम महाद्वीप टूटने लगा और उसके कई भाग एक दूसरे से अलग होकर दूर जाने लगे और
धरती गोल होने के कारण अलग हुए यह भाग एक दूसरे से फिर से टकराने लगे. विशाल
भूखंडों की इस टक्कर से विशाल पर्वतों का निर्माण हुआ.
पर्वतों के निर्माण में फिर से धरती को बदला..
समंदर का पानी सूर्य की प्रचंड गर्मी से भाप बनकर इन पहाड़ों पर बरसने लगा. और इस
तरह करोड़ों वर्षों में बड़े-बड़े ग्लेशियरों का निर्माण होने लगा. 30 करोड़ वर्षो
में पृथ्वी का वातावरण बनने लगा, मौसम चक्कर बनाने लगे,
हालांकि यह परिवर्तन अभी भी जीवन के अनुकूल नहीं थे फिर भी समुद्र
की गहराइयों में जीवन के प्राथमिक इकाइयों के संकेत दिखाई देने लगे थे|
समुंद्र की
गहराई में हो रही रासायनिक प्रतिक्रियाओं ने शुरुआती सूक्ष्म जीवो का निर्माण
किया. जीवन के इन शुरुआती तत्वों ने पृथ्वी पर स्थित कार्बन डाइऑक्साइड को शौख कर
ऑक्सीजन का निर्माण करना शुरू किया. इन माइक्रो ऑर्गेनिक एक कोशिकीय जिव कई प्रकार
के सूक्ष्म जीवो को विकसित किया उसके बाद करोड़ों वर्षों में इन एक कोशिकीय वाले
जीव से बहुकोशिकीय जीवो का निर्माण होने लगा.
करीब 3 अरब वर्ष पहले की पृथ्वी काफी बदल चुकी थी.
पृथ्वी पर पर्याप्त रूप में ऑक्सीजन था. पानी था, नदियां थी,
समुंद्र के गर्भ में अनेकों छोटे जीव पनप रहे थे. इसी दौर में जीवों
की अनेकों नई प्रजातियां पैदा हुई लेकिन जीवन का यह खेल केवल समुंदर मैं ही हो रहा
था. प्रथ्वी पर महान पठार थे वहां अभी भी जीवन के नाम पर काई जैसा तत्व ही उपलब्ध
था जो धीरे-धीरे विकसित हो रहा था और धीरे-धीरे इन पोधो की बंजर जमीन भी हरियाली
में बदलने लगी वहां भी शुरुआती घास पैदा होने लगी है जीवन में जो प्रतिक्रिया
समंदर में चल रही थी वह दीपों पर भी होने लगी. लेकिन यहां यह जीवन में नहीं बल्कि
विभिन्न प्रकार की घास की प्रजातियां में थी जो अलग-अलग पेड़ पौधों का रूप ले रही
थी.
वही समुंद्र में बहुकोशिकीय जीव विभिन्न प्रकार के
कीड़े मकोड़ों में और मछली के रूप में विकसित होने लगे. विकास की तरंग प्रतियोगिता
के दौर में कुछ समुद्री जीव ने समुंदर से बाहर निकलकर धरातल पर कदम रखा. जहां उनके
लिए प्रतिस्पर्धा बिल्कुल भी नहीं थी बस उन्हें इस नए माहौल के हिसाब से खुद को
बदलना था|
50 करोड़ वर्ष के बाद यानी कि आज से दो अरब 50 करोड
वर्ष पहले की दुनिया में धरातल पर सबसे पहले कदम रखने वाली मछलियों के वंशज विकास
की बेहद कठिन प्रक्रिया से गुजरते हुए विशाल जीवो के रूप में सामने आए. आगे चलकर
यही विशाल जी डायनासोर के रूप में विकसित हुए. जिन्होंने लंबे अरसे तक पृथ्वी पर
राज किया. करीब 6 करोड़ साल पहले पृथ्वी से एक धूमकेतु टकराया जिसने डायनासोर के
विशाल साम्राज्य को एक झटके में जड़ से खत्म कर दिया इस टक्कर ने पृथ्वी के बड़े
जीवो का बिल्कुल सफाया कर दिया.
2 फुट से ऊपर के सभी जीव खत्म हो गए इसके साथ ही
पृथ्वी के लगभग 90% जीव खत्म हो गये. जो छोटे जीव बचे उन्होंने परिस्थितियों का
सामना किया. लाखों वर्षों में इन्होंने खुद को कई अलग-अलग प्रजातियों में विकसित
कर लिया. करीब 1.2 लाख बरस पहले इंसान और बंदर की सभी प्रजातियां किसी एक शाखा से
निकलकर अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग प्रजाति के रूप में विकसित हुए.
आधुनिक
मनुष्य के पूर्वज 1 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका के शोपियां में विकसित हुए. करीब 80000
वर्ष पहले इंसानों का एक छोटा सा दल नई दुनिया की तलाश में अफ्रीका से यमन के
रास्ते 16 किलोमीटर का समुद्री रास्ता पार करते हुए यूरोप पहुंच गया. यूरोप को
बताते हुए करीब 65000 वर्ष पहले तक इंसान ऑस्ट्रेलिया तक पहुंच चुका था और हिम युग
के दौरान करीब 45000 साल पहले इंसानों ने अमेरिका को भी बसा दिया था.
ये थी सृष्टि बनने की कहानी. एक मामूली जीव से
इंसान बनने की कहानी. प्रकृति की पूरी कहानी में संघर्ष है, परिवर्तन है, विखंडन है, निर्माण
है और विध्वंस भी है.
ब्रह्माण्ड के कुछ तथ्य (facts about universe in hindi)
1. हमारे सौर मंडल द्वारा आकाशगंगा के चारों ओर
घुमने के लिए लिया गया समय 225 मिलियन वर्ष है।
2. ज्यादातर आकाशगंगाओं का आकार अंडाकार है।
3. हमारे सौर मंडल का किनारा प्लूटो नहीं है,
यह ओओर्ट क्लाउड (oort cloud) है।
4. सबसे पुराना ज्ञात सितारा 13.2 बिलियन साल पुराना है, यह लाल विशालकाय HE
1523-0901 है।
5. कुछ थ्योरी के अनुसार प्रत्येक ब्लैक होल में 1 ब्रह्माण्ड है अर्थात इस समय हम सभी लोग ब्लैक होल में हैं।
6. क्या आप जानते हैं कि आकाश में जो सितारे आप
देखते हैं, वे मर सकते हैं? चूंकि वे
हमारे पास अरबों प्रकाश वर्ष दूर हैं और प्रकाश तक पृथ्वी तक पहुंचने में अरबों
साल लगेंगे, जिसका मतलब है कि अब सितारों की रोशनी जो आप
देखते हैं वह अरब वर्ष पुरानी रोशनी है। अतः सम्भव है कि वे अब मर चुके हो।
7. हमारे सौरमंडल में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है
जहां पर सूर्य ग्रहण होता है।
8. Abell 2029 ब्रह्मांड की सबसे बड़ी आकाशगंगा
है।
9. मंगल ग्रह पर ओलंपस मॉन्स (एक बड़ी ढाल ज्वालामुखी)
माउंट की ऊंचाई एवरेस्ट की उँचाई की लगभग तीन गुना है।
10. अंतरिक्ष यात्री कहते हैं कि, अंतरिक्ष गर्म धातु, वेल्डिंग धुएं और सीर स्टेक की
तरह गंध करता है।
11. हमारी आकाशगंगा का केंद्र रास्पबेरी जैसे
स्वाद का तथा रम की तरह गंध करता है।
12. 2.7 केल्विन कॉस्मिक माइक्रोवेव पृष्ठभूमि
विकिरण का तापमान है, जो पूरे ब्रह्मांड में प्रवेश करता है।
13. क्या आपको पता है कि सितारे, तारे और उपग्रह सभी एक दूसरे को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं।
14. Voyager-1 यान, मानव
द्वारा बनायी गई सबसे दूूर जानेे वाली वस्तु है।
15. जब पानी उबाला जाता है, तो यह पृथ्वी पर हजारों छोटे बुलबुले बनाता है। यदि अंतरिक्ष में पानी
उबाला जाता है, तो यह एक विशाल, अपूर्ण
बुलबुले का रूप धारण करता है।
16. कुछ जानवरों में वसंत ऋतु में ठंडा होने और
सर्दी के दौरान ठोस होने की क्षमता होती है और अतः ये पूरी तरह से स्वस्थ रहते है।
17. यदि आप सीधी रेखा में बाहर की ओर यात्रा करते
हैं, तो आप कभी भी ब्रह्मांड के किनारे नहीं जा सकते,
आप उस बिंदु पर वापस आ जाएंगे जहां आपने शुरू किया था।
18. वैज्ञानिकों के मुताबिक, लगभग 75% ब्रह्मांड डार्क मैटर और डार्क एनर्जी के
रूप में गायब है, जिसे मापा नहीं जा सकता है।
19. ब्रह्मांड को एक साथ बाँधकर रखने वाला गोंद
डार्क मैटर है, जिसे मापा नहीं जा सकता है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इसे मापने का एक मौका है।
20. बाहरी अंतरिक्ष से, कॉस्मिक
किरणें हमारे सौर मंडल में आती हैं, जो अत्यधिक ऊर्जावान कण
होते हैं। लेकिन कोई भी इनकी उत्पत्ति से अवगत नहीं है।
21. सूर्य, ग्रह, चन्द्रमाओं और क्षुद्रग्रहों और धूमकेतु के साथ हमारा सौर मंडल हमारे
ब्रह्मांड के एक ट्रिलियन भाग से भी कम हिस्सा है।
22. अल्कोहल का एक विशाल बादल 10,000 प्रकाश वर्ष दूर है।
23. ब्रह्मांड में सबसे तेज घूमने वाली वस्तु
न्यूट्रॉन तारा है।
24. न्यूट्रॉन स्टार का कोर बहुत घना है। यह इतना
घना है कि यदि आप इसके कोर से एक चम्मच पदार्थ लेते हैं, तो
यह 200 बिलियन पौंड वजन का होगा।
25. सन् 2011 मे जापान मे
भूकंप के कारण पृथ्वी पर दिन 1.8 माइक्रोसेकेण्ड छोटा हो गया
है।
26. आर 136 ए 1 सबसे चमकदार और विशाल सितारा है, जो सूरज की तुलना
में 8.7 मिलियन गुना ज्यादा चमकदार है।
27. पृथ्वी खुद ब्लैक होल बन सकता है। यह पृथ्वी
को संगमरमर के आकार तक संपीड़ित करके हासिल किया जा सकता है।
28. वैज्ञानिकों के अनुमानों के मुताबिक, हमारे ब्रह्मांड में करीब 20 ट्रिलियन आकाशगंगाएं
हैं। 29. लगभग 150 अरब प्रकाश वर्ष
ब्रह्मांड का व्यास है ।
30. ब्रह्मांड के लिए कोई केंद्र नहीं है।
31. पहले यूनिवर्स गर्म था और धीरे-धीरे यह ठंडा
हो गया।
32. अगर आप 1 मिनट में 100 तारे गिने तो आप 2000 साल में एक पूरी आकाश गंगा
गिन देंगे।
33. खगोलविदों के अनुमानों के अनुसार हर दिन 275 मिलियन नए सितारे पैदा होते हैं।
34. ब्रह्मांड में सबसे जटिल वस्तु मानव मस्तिष्क
है, जिसमें अरबों न्यूरॉन्स हैं।
35. ब्रह्मांड बिग बैंग के साथ शुरू हुआ, जो 13.7 अरब साल पहले हुआ।
36. 1977 में गहरे अंतरिक्ष से 72 सेकेंड का सिग्नल प्राप्त हुआ था, पर अब तक यह पता
नहीं लग पाया कि यह सिग्नल किसने भेजा था।
37. अगर नासा एक पंक्षी को अंतरिक्ष में भेजे तो
वह उड़ नहीं पाएगा और जल्दी ही मर जाएगा. क्योंकि वहां पर उड़ने के लिए बल ही नहीं
है।
38. स्पेस स्टेशन फुटबॉल के मैदान के आकार का है।
39. वैज्ञानिकों ने लावा से भरे हुए 1 ग्रह की खोज की है जो कि पृथ्वी से मिलता-जुलता है।
40. महाविस्फोट सिद्धांत (Big Bang
Theory) के अनुसार, ब्रह्माण्ड 15 खरब साल में 93 खरब प्रकाश वर्ष तक फैल चुका है।
41. अंतरिक्ष में, कोई आवाज
नहीं है।
42. वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी से 40 प्रकाश वर्ष दूर हीरे का बना हूआ ग्रह है जिसका नाम 55 Cancri-e है।
43. अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में अंतरिक्ष यात्री रोजाना 15 सूर्योदय और 15 सूर्यास्त देखते हैं।
44. अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन की लागत भारतीय
रुपये में 10000 खरब के लगभग है।
45. सितारों के बीच औसत दूरी 20 मिलियन मिलियन मील है।
46. पृथ्वी के सबसे नजदीकी ब्लैक होल 1,600 प्रकाश वर्ष दूर है।
47. अगर हमें एक चम्मच भरकर न्यूट्रान तारा लें
तो उसका वजन 1 बिलियन टन होता है।
48. नासा ने एक “waterworld” नामक ग्रह की खोज की है जो पृथ्वी से लगभग 40 प्रकाश
वर्ष दूर है परन्तु इस पर खतरनाक पदार्थ हो सकते हैं जैसे “hot ice” और “superfluid water.”
49. अंतरिक्ष यात्री कहते हैं कि चंद्रमा की धूल
गनपाउडर की तरह गंध करती है और यह बेहद नरम है।
50. हमसे 33 प्रकाश वर्ष
दूर एक एक्सोप्लानेट है, जो जलती हुई बर्फ (Burning
ice) से पूरी तरह से ढका हुआ है।
आकाशगंगा
आपने आकाशगंगा (Galaxy Akashganga) के बारे में तो जरूर सुना होगा, जब आप आसमान पर नजर
मारते हैं तो किसी बड़े से पुछते हैं कि यह आसमान में इतने सारे तारे क्यों है और
कहां होते हैं तब आपके सामने आकाशगंगा का जिक्र जरूर हुआ होगा।
आखिर आकाशगंगा क्या है और कैसे काम करता है? यह प्रश्न बहुत बार हमारे मन मष्तिष्क में आता है, तो
आइये इसके बारे में वृस्तित रूपसे जानते है।
हम जिस ग्रह पर रहते है उसका नाम पृथ्वी है. पृथ्वी
हमारे सौर मंडल के बाकी ग्रहों के तरह एक अहम् हिस्सा है। लेकिन हमारा ये सौर मंडल
कहाँ पर है? क्या आपको पता है? हमारा
सौर मंडल आकाशगंगा का बस एक छोटा सा हिस्सा है, यू कहें को
इतना छोटा हिस्सा की कल्पना से ही परे हैं।
आकाशगंगा बहुत सारी गैसों, धुल और अरबों ग्रहों के
सौर मंडल का संयुक्त रूप से बना एक आकार है। इसे आप दुसरे शब्दों में ऐसे समझ सकते
है की बहुत सारे ग्रह मिलकर एक सौर मंडल का निर्माण करते
है. और ऐसे करोडों- अरबों से भी ज्यादा
सौर मंडल मिलकर बनाते है एक आकाशगंगा।
एक आकाशगंगा एक विशालकाय रूप है जिसमे सौर मंडल के
साथ साथ धुल के कणों, बहुत सारी गैसों का भी संयोजन रहता
है. आकाशगंगा गुरुत्वाकर्षण बल से पूर्णतया जुड़ा रहता है. हमारे आकाशगंगा (Akashganga)
के बिलकुल बीचो बीच में एक बहुत ही भारी black hole भी है.
जब कभी रात में अगर आप खुले आकाश को देखे तो आपको
बहुत सारे तारों को देखने का मौका मिलता है जिसमे हमारे आँखों के सामने आकाशगंगा
में उपस्थित अन्य तारे भी हम देख सकते है। कभी कभी यह बहुत काला या अँधेरा जैसे भी
हो जाता है जब हमे कुछ तारे ही देख पाते है तब वहा धूलों का जमावडा हमारे नजर को
धुंधला कर देता है जिसे हम हालाँकि स्पष्ट रूप से नही देख सकते।
जिस तरह से करोडों अरबों ग्रहों से बने आकाशगंगा
में हम सभी रहते है ऐसी ही बहुत सारी आकाशगंगायें मौजूद है. ये उतनी ही जितना शायद
हम कभी गिन भी न पाए।
एक बहुत ही खाश दूरबीन है जिसका नाम है, Hubble
Space Telescope. इसकी मदद से वैज्ञानिको ने एक बार के प्रयास से
कुल 12 दिन में 10,000 आकाशगंगा की खोज
की थी। इन आकाशगंगाओं में कुछ छोटे,
कुछ बड़े, विभिन्न आकर और रंगों के आकाशगंगाओ
को देखा गया।
कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि इस ब्रह्मांण्ड में ऐसी
अरबों –
खरबों से ज्यादा आकाशगंगायें हो सकती हैं, जिन्हें
शायद कभी गिना भी नहीं जा सकता है।
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