4/27/21

वायरस और मनुष्य

इस समय पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी की गिरफ़्त में है. इसके लिए एक वायरस ज़िम्मेदार है, जिसे नया कोरोना वायरस या SARS CoV-2 नाम दिया गया है.इंसानियत पर कहर बरपाने वाला ये पहला वायरस नहीं है. विषाणुओं ने कई बार मानवता को भयंकर चोट पहुंचाई है.1918 में दुनिया पर कहर ढाने वाले इन्फ्लुएंज़ा वायरस से पांच से दस करोड़ लोग मारे गए थे. वहीं अकेले बीसवीं सदी में चेचक के वायरस ने कम से कम बीस करोड़ लोगों की जान ले ली होगी.इन मिसालों को देख कर तो यही लगता है कि वायरस हमारे लिए बड़ा ख़तरा हैं और इनका धरती से ख़ात्मा हो जाना चाहिए. काश की ऐसी कोई जादुई छड़ी होती, जो धरती से सारे विषाणुओं का सफ़ाया कर देती.लेकिन, वायरस को धरती से विलुप्त कर देने का इरादा करने से पहले सावधान हो जाइए. अगर ऐसा हुआ, तो हम भी नहीं बचेंगे. बिना वायरस के इंसान ही नहीं, इस धरती में जीवन का अस्तित्व मुमकिन नहीं है.

 


अमरीका की विस्कॉन्सिन-मेडिसन यूनिवर्सिटी के महामारी विशेषज्ञ टोनी गोल्डबर्ग कहते हैं, "अगर अचानक धरती से सारे वायरस ख़त्म हो जाएंगे, तो इस धरती के सभी जीवों को मरने में बस एक से डेढ़ दिन का वक़्त लगेगा. वायरस इस धरती पर जीवन को चलाने की धुरी हैं. इसलिए हमें उनकी बुराइयों की अनदेखी करनी होगी."

 

दुनिया में कितने तरह के वायरस हैं, इसका अभी पता नहीं है. पता है तो बस ये बात कि ये ज़्यादातर विषाणु इंसानों में कोई रोग नहीं फैलाते. हज़ारों वायरस ऐसे हैं, जो इस धरती का इकोसिस्टम चलाने में बेहद अहम रोल निभाते हैं. फिर चाहे वो कीड़े-मकोड़े हों, गाय-भैंस या फिर इंसान.

ज़्यादातर लोगों को ये पता ही नहीं कि वायरस इस धरती पर जीवन को चलाने के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं. इसकी एक वजह ये है कि हम केवल उन्हीं वायरसों के बारे में रिसर्च करते हैं, जिनसे बीमारियां होती हैं. हालांकि अब कुछ साहसी वैज्ञानिकों ने वायरस की अनजानी दुनिया की ओर क़दम बढ़ाया है.

 

अब तक केवल कुछ हज़ार वायरसों का पता इंसान को है जबकि करोड़ों की संख्या में ऐसे वायरस हैं, जिनके बारे में हमें कुछ पता ही नहीं.अब चूंकि ज़्यादातर वायरसों के बारे में हमें पता ही नहीं, तो ये भी नहीं पता कि कितने वायरस इंसान के लिए ख़तरनाक हैं.

हमारे लिए वो वायरस सबसे महत्वपूर्ण हैं, जो बैक्टीरिया को संक्रमित करते हैं. इन्हें फेगस कहते हैं. जिसका अर्थ है निगल जाने वाले.समंदर में बैक्टीरिया की आबादी नियंत्रित करने में फेगस विषाणुओं का बेहद अहम रोल है. अगर ये वायरस ख़त्म हो जाते हैं, तो अचानक से समुद्र का संतुलन बिगड़ जाएगा.समुद्र में 90 फ़ीसद जीव, माइक्रोब यानी छोटे एक कोशिकाओं वाले जीव हैं. ये धरती की आधी ऑक्सीजन बनाते हैं. और ये काम वायरस के बिना नहीं हो सकता. समंदर में पाए जाने वाले वायरस वहां के आधे बैक्टीरिया और 20 प्रतिशत माइक्रोब्स को हर रोज़ मार देते हैं.

 

इससे, समुद्र में मौजूद काई, शैवाल और दूसरी वनस्पतियों को ख़ुराक मिलती है. जिससे वो फोटो सिंथेसिस करके, सूरज की रौशनी की मदद से ऑक्सीजन बनाते हैं. और इसी ऑक्सीजन से धरती पर ज़िंदगी चलती है. अगर वायरस ख़त्म हो जाएंगे, तो समुद्र में इतनी ऑक्सीजन नहीं बन पाएगी. फिर पृथ्वी पर जीवन नहीं चल सकेगा.

दुनिया में जीवों की आबादी कंट्रोल करने के लिए भी वायरस ज़रूरी हैं. जब भी किसी जीव की आबादी बढ़ती है, तो विषाणु उस पर हमला करके आबादी को नियंत्रित करते हैं. जैसे कि महामारियों के ज़रिए इंसान की आबादी नियंत्रित होती है. वायरस न होंगे, तो धरती पर जीवों की आबादी आउट ऑफ़ कंट्रोल हो जाएगी. एक ही प्रजाति का बोलबाला होगा, तो जैव विविधता समाप्त हो जाएगी.

 

कुछ जीवों का तो अस्तित्व ही वायरसों पर निर्भर है. जैसे कि गायें और जुगाली करने वाले दूसरे जीव. वायरस इन जीवों को घास के सेल्यूलोज़ को शुगर में तब्दील करने में मदद करते हैं. और फिर यही उनके शरीर पर मांस चढ़ने और उनके दूध देने का स्रोत बनती है.इंसानों और दूसरे जीवों के भीतर पल रहे बैक्टीरिया को कंट्रोल करने में भी वायरस का बड़ा योगदान होता है.

 

वायरस बनाते हैं इंसानों का सुरक्षा चक्र

कई वायरस का संक्रमण हमें ख़ास तरह के रोगाणुओं से बचाता है. डेंगू के लिए ज़िम्मेदार वायरस का एक दूर का रिश्तेदार GB वायरस C एक ऐसा ही वायरस है. इससे संक्रमित व्यक्ति में एड्स की बीमारी तेज़ी से नहीं फैलती. और अगर ये वायरस किसी इंसान के शरीर में है, तो उसके इबोला वायरस से मरने की आशंका कम हो जाती है.हर्पीज़ वायरस हमें प्लेग और लिस्टेरिया नाम की बीमारियों से बचा सकता है. हर्पीज़ के शिकार चूहे, इन बीमारियों के बैक्टीरिया से बच जाते हैं.

 

वायरस हमारे कई बीमारियों से लड़ने की दवा भी बन सकते हैं.1920 के दशक में सोवियत संघ में इस दिशा में काफ़ी रिसर्च हुई थी. अब दुनिया में कई वैज्ञानिक फिर से वायरस थेरेपी पर रिसर्च कर रहे हैं. जिस तरह से बैक्टीरिया, एंटी बायोटिक से इम्यून हो रहे हैं, तो हमें जल्द ही एंटी बायोटिक का विकल्प तलाशना होगा. वायरस ये काम कर सकते हैं. वो रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया या कैंसर कोशिकाओं का ख़ात्मा करने में काम आ सकते हैं.वायरस के ज़रिए हम तमाम रोगों के इलाज की नई पीढ़ी की दवाएं तैयार कर सकते हैं.

 

चूंकि वायरस लगातार बदलते रहते हैं, इसलिए इनके पास जेनेटिक जानकारी का ख़ज़ाना होता है. ये दूसरी कोशिकाओं में घुस कर अपने जीन को कॉपी करने के सिस्टम पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं. इसलिए, इन वायरस का जेनेटिक कोड हमेशा के लिए उस जीव की कोशिका में दर्ज हो जाता है.हम इंसानों के आठ प्रतिशत जीन भी वायरस से ही मिले हैं

गर्भवती महिला

अगर, आज इंसान अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म दे पाते हैं, तो ये भी एक वायरस के इन्फ़ेक्शन का ही कमाल है. आज से क़रीब 13 करोड़ साल पहले इंसान के पूर्वजों में रेट्रोवायरस का संक्रमण बड़े पैमाने पर फैला था. उस संक्रमण से इंसानों की कोशिकाओं में आए एक जीन के कारण ही, इंसानों में गर्भ धारण और फिर अंडे देने के बजाय सीधे बच्चा पैदा करने की ख़ूबी विकसित हुई.

 

धरती पर वायरस ये जो तमाम भूमिकाएं निभा रहे हैं, उनके बारे में अभी वैज्ञानिकों ने रिसर्च शुरू ही की हैं. हम जैसे-जैसे इनके बारे में और जानकारी हासिल करेंगे, तो हम वायरस का और बेहतर इस्तेमाल कर पाएंगे. शायद उनसे हमें कई बीमारियों से लड़ने का ज़रिया मिले या अन्य ऐसी मदद मिले, जिससे इंसानियत ही नहीं, पूरी धरती का भला हो. इसलिए वायरस से नफ़रत करने के बजाय उनके बारे में और जानने की कोशिश लगातार जारी रहनी चाहिए.

 

क्या होते हैं वायरस

वायरस जिन्हें हम विषाणु भी कहते हैं. बैक्टीरिया से 100 गुना छोटे होते हैं. ये आम माइक्रोस्कोप से भी नहीं देखे जा सकते. ये जीव और निर्जीव के बीच की स्थिति में होते हैं. सही हालात मिले तो ये खुद के प्रतिरूप बनाने लग जाते हैं और कुछ अन्य स्थितियों में तो एक निर्जीव की तरह लंबे समय तक पड़े भी रह सकते हैं नहीं तो ये खत्म भी हो जाते हैं.

 

खुद ब खुद अपनी संख्या नहीं बढ़ा सकते वायरस

जब उन्हें अनुकूल परिस्थितियं मिलती हैं (जैसे मानवीय कोशिका) तो ये खुद के प्रतिरूप बनाना शुरू कर देते हैं. इनका अपना कोई कोशिका तंत्र (Cellular Structure) नहीं होता और ये अपने आप ही खुद की संख्या नहीं बढ़ा सकते. वे केवल प्रोटीन में लिपटे एक DAN या RAN जीन्स भर होते हैं.

 

केवल नुकसान करने वाले वायरस के बारे में जानते हैं लोग

आमतौर पर माना जाता है कि वायरस इंसान के लिए खतरा ही होते हैं. लोगों को उन्हीं वायरस के बारे में मालूम होता है जो किसी जानलेवा बीमारी का कारण बन गए हैं. या फिर सामान्य सा जुकाम का जिम्मेदार भी वायरस ही होते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं बहुत से वायरस ऐसे ही हैं जो इंसान में लंबे समय से मौजूद रहते हैं.

 

असंख्य वायरस होते हैं इंसानों में पहले से ही

इंसान में वायरस पहले से ही बड़ी संख्या में मौजूद रहते हैं. इन्हें सामूहिक रूप से ह्यूमन वायरोम (human Virome) कहा जाता है. इंसान में वायरस बनते रहते हैं और बदलते भी रहते हैं. मजेदार बात यह है अभी तक इंसान में रहने वाले सभी वायरस को नहीं परखा जा सका है. नए तरह के वायरस इंसान में बनते रहते हैं. वायरस मानव के शरीर के हर अंग में पाये जाते हैं. इनमें ज्यादातर वायरस आमतौर पर नुकसान दायक नहीं होते हैं.

 

तो क्या फायदे होते हैं ऐसे वायरस से

नए वायरस हमारे इम्यून सिस्टम को बेहतर बनने में मदद करते हैं. हमारा इन्यून सिस्टम इनसे लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता है. पाया गया है कि कई नवजात शिशुओं को माताओं के दूध से ऐसे एंटीजन मिलते हैं जो उनकी इन्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और कई बीमारियों से बचाता है.

 

खतरनाक बीमारियों से बचाने में ऐसे मदद सकते हैं ये वायरस भी

 कई बार ऐसा भी होता है कि इन वायरस से लड़ते हुए हमारा इम्यून सिस्टम खतरनाक वायरस से भी लड़ने में सक्षम हो जाता है. शोध बताता है कि पेगीवायरस सी जिन एचआईवी संक्रमित लोगों में पहले से था वे उन लोगों से ज्यादा जी सकते हैं जिनमें एचआईवी संक्रमण था लेकिन पेगीवायरस सा वायरस नहीं था.वायरस संक्रमित की खांसी, खखार या छींक से निकले वॉटर ड्रॉपलेट के साथ हवा में तैरते हैं

 

मजबूत किया है हमारा इम्यून सिस्टम वायरोम ने

इसके अलावा बैक्टीरियो फेगस जैसे वायरस कुछ खास बैक्टीरिया को खत्म करने में भी सहायक होते हैं. वैज्ञानिक इस बात को मानते हैं वायरसों ने कई बार नुकसान तो पहुंचाया है, लेकिन उन्होंने हमारे विकास में भी मदद की है. अब हमारा इम्यून सिस्टम वायरस से बेहतर जूझ सकता है तो कई वायरस हमारी प्रक्रियाओं में भी घुल मिल कर उसका हिस्सा बन गए हैं.

 

वैज्ञानिकों के लिए अथाह जानकारी

इंसानों के अंदर के वायरस वैज्ञानिकों के लिए असंख्य अवसर होते हैं. कई बार उनका अध्ययन बड़ी बीमारी के सामने आने से पहले ही वैज्ञानिकों को जरूरी आंकड़े दे देता है जिससे वे इलाज खोजने में तेजी ला सकते हैं.

 

Q. दुनिया में कितने वायरस हैं, इनमें से कितने खतरनाक हैं?

 

A. दुनियाभर में करीब 3.20 लाख वायरस हैं। नेट जियो के मुताबिक 17 लाख ऐसे वायरस हैं, जिन्हें अभी खोजा जाना बाकी है। करीब 219 से ज्यादा वायरस इंसानों के लिए खतरनाक हैं।

 

Q. अब तक का सबसे खतरनाक वायरस कौन सा है?

 

A. मार्बग (Marburg, 1967) एवं इबोला (1976) अब तक के सबसे खतरनाक वायरस रहे हैं। इनसे संक्रमित होने वाले 90% पीड़ितों की मृत्यु हुई है। रेबीज भी बेहद खतरनाक वायरस है।

 

Q. वायरस सर्वाधिक किन जगहों पर पाए जाते हैं?

 

A. कम तापमान, सूर्य की कम रोशनी वाली जगहों पर, ट्रॉपिकल रेन फॉरेस्ट में सर्वाधिक पाए जाते हैं। एशियन और अफ्रीकन शहरों में मांस के बाजार भी इनके लिए उपयुक्त स्थान है।

 

Q. क्या ऐसे वायरस हैं जिनसे संक्रमण के लक्षण नहीं दिखते?

 

A. हां, करीब 55% से 74% ऐसे वायरस इंफेक्शन हैं जिनसे संक्रमित होने पर कोई लक्षण नहीं पाए गए। जैसे - हर्पीज, कोविड और एड्स जैसे रोग एसिम्प्टोमैटिक लोगों से फैल सकते हैं।

 

 

Q. वायरस किस तरह फैलते जाते हैं?

 

A. वायरस जिस होस्ट शरीर में होते हैं, वहां से मल्टीप्लाय होते जाते हैं। इसे उदाहरण के तौर पर यूं समझिए : मान लीजिए, अगर आपको फ्लू होता है तो आपके श्वसन प्रणाली की हर कोशिका दस हजार नए वायरस पैदा कर देती है। कुछ ही दिनों में यह सैकड़ों ट्रिलियन की तादाद में आपके शरीर में होते हैं।

 

Q. क्या वायरस इंसानों को एक से अधिक बार संक्रमित कर सकते हैं?

 

A. हां, कर सकते हैं। कई बार बाहरी संक्रमण से या फिर आंतरिक रूप से सक्रिय होकर। यानी इम्यूनिटी कम होने पर शरीर की कोशिकाओं में सुप्त पड़ा वायरस दोबारा लक्षण या बीमारी पैदा कर सकता है। संक्रमण से रिकवरी और रीइंफेक्शन से बचने के लिए सेल मीडिएटेड इम्यूनिटी बहुत महत्वपूर्ण है।

 

Q. वायरस और बैक्टीरिया में क्या फर्क है?

 

A. वायरस बैक्टीरिया से छोटे होते हैं। सभी वायरस एक प्रोटीन आवरण में होते हैं। आरएनए या डीएनए जैसे जेनेटिक मटीरियल के साथ। वायरस बिना होस्ट शरीर के जीवित नहीं रह सकते। बैक्टीरिया कई तरह के वातावरण में जीवित रह सकते हैं। शरीर के अंदर भी और शरीर के ऊपर भी। वायरस से उलट सिर्फ कुछ बैक्टीरिया ही खतरनाक होते हैं।

 

Q. क्या कोई वायरस फायदेमंद भी हो सकता है?

 

A. HERV-K वायरस इंसानी भ्रूण को अन्य वायरस के संक्रमण से बचा सकता है। स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर जोआना विसोका के अनुसार, जब भ्रूण 8 सेल स्टेज में पहुंचता है तो यह कोशिकाओं को प्रोटींस की शील्ड बनाने में मदद करता है, इससे भ्रूण अन्य कई संक्रमण से बच जाता है।

 

Q. वायरस और बैक्टीरिया से फैलने वाले रोग कौन-कौन से हैं?

 

A. बैक्टीरिया : फूड पॉइजनिंग, टिटनेस, टीबी, बैक्टीरियल मैनिनजाइटिस, यूरिनरी इंफेक्शन, कॉलरा व अन्य रोग। वायरस : इंफ्लुएंजा, चिकनपॉक्स, मीजल्स, वार्ट्स, हैपिटाइटिस, जीका, कोविड, एचआईवी आदि।

 

वायरस: सजीव या निर्जीव?

वायरस खुद कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं यहां तक कि नए वायरसों को जन्म देने में भी। उन्हें कुछ भी करने या अपनी संख्या बढ़ाने के लिए किसी दूसरे जीवित माध्यम या कोशिका की जरूरत होती है। इसलिए उन्हें निर्जीव माना जा सकता है। जीवन की पारंपरिक परिभाषा भी यही है कि हर सजीव के शरीर की संरचना कोशिकाओं के जरिए होती है। लेकिन वायरसों में कोशिकाएं नहीं होतीं। तो आप क्या कहेंगे? वायरस निर्जीव हैं। बहरहाल, चूंकि उनमें ऐसे बहुत सारे लक्षण होते हैं जो जीवित प्राणियों या रचनाओं में होते हैं (जैसे डीएनए या आरएनए) इसलिए उन्हें बहुत सीमित अर्थों में सजीव भी मान सकते हैं। लेकिन व्यापक मान्यता यही है कि वे निर्जीव हैं।

 

 

कोशिकाओं के तीन सिद्धांत

दूसरी तरफ बैक्टीरिया और फंगस कोशिका से बने होते हैं और इसीलिए वे सजीव हैं। क्या आपने कोशिकाओं के बारे में तीन सिद्धांत सुने हैं? पहला सिद्धांत है- कोशिका सभी सजीवों के शरीर की सबसे छोटी इकाई है। दूसरा सिद्धांत है- सभी जीवित प्राणी कोशिकाओं से बने होते हैं। और तीसरा सिद्धांत है, सभी कोशिकाएं पहले से मौजूद कोशिकाओं से ही आती हैं। लेकिन वायरस पर ये तीनों सिद्धांत लागू नहीं होते। कोरोनावायरस पर भी नहीं। चूंकि एंटी-बायोटिक दवाएं कोशिकाओं पर काम करती हैं इसलिए वे वायरस के मामले में नाकाम हैं। हालांकि वे बैक्टीरिया और फंगस का बखूबी इलाज कर सकती हैं।

 

 

वायरस प्राणियों के शरीर में कैसे पहुंचते हैं?

शरीर के जिन हिस्सों के जरिए बाहरी चीजों से हमारा संपर्क होता है, वही वायरसों को भीतर ले आने का माध्यम बन जाते हैं। उदाहरण के तौर पर सांस के जरिए, मुंह के जरिए, खुले घावों के जरिए, यौन क्रिया के जरिए, किसी दूसरे व्यक्ति के खून से या फिर किसी जानवर या कीट के काटे जाने से। कुछ वायरस हमारी कोशिकाओं के भीतर घुस जाते हैं तो कुछ इनके साथ चिपक जाते हैं। कुछ के शरीर के बाहरी हिस्से में कुछ खास किस्म की संरचनाएं भी होती हैं। जैसे कि कोरोनावायरस का आकार किसी ताज जैसा है जिसके चारों तरफ हुक या कांटे जैसी आकृतियां निकली हुई होती हैं। ये आकृतियां इंसान के शरीर की कोशिकाओं के साथ संपर्क कर लेती हैं और उनके साथ जुड़ जाती हैं।

 

 

बैक्टीरिया पर भी हमला करते हैं वायरस

वायरस अपने डीएनए या आरएनए को हमारे शरीर में इंजेक्ट कर देती हैं। कोशिकाओं के संपर्क में आकर वे बढ़ने लगते हैं क्योंकि कोशिकाओं के भीतर वह सारी सामग्री होती है जो उनको अपनी संख्या बढ़ाने के लिए चाहिए। फिर ये कोशिकाएं भले ही इंसान की हो, किसी जानवर की हों, कीट-पतंगे की हों या फिर बैक्टीरिया की ही क्यों न हों। लगे हाथ बता दें कि ऐसे भी वायरस होते हैं जो खुद बैक्टीरिया पर हमला कर देते हैं तथा उनके शरीर में ही बढ़ने लगते हैं। इन्हें बैक्टीरियाफेज कहा जाता है। किसी दूसरे प्राणी के शरीर में जाने के बाद वायरसों के लक्षण दिखाई देने में जितना समय लगता है, उसे इनक्यूबेशन पीरियड कहा जाता है। कोरोनावायरस के मामले में यह 2 से 24 दिन का माना जाता है।

 

 

कैसे होते हैं वायरस?

एक तो वायरस बहुत सूक्ष्म होते हैं। यूं सूक्ष्म तो कोशिका भी होती है, लेकिन वायरस कोशिका के आकार से भी बहुत छोटे होते हैं। उनको देखने के लिए आपको इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल करना पड़ेगा। बैक्टीरिया में कोशिका होती है, इसलिए वे बड़े होते हैं। दोनों के आकार में कितना फर्क होता है? एक उदाहरण देखिए। खसरे के वायरस का व्यास 220 नैनोमीटर्स होता है जो कि ईकोली (E.Coli) नामक बैक्टीरिया के आकार का आठवां हिस्सा ही होता है। इसी तरह, हेपेटाइटिस का वायरस और भी सूक्ष्म होता है। इसका आकार ईकोली बैक्टीरिया के 40वां हिस्से के बराबर होगा। इनके इतने सूक्ष्म आकार की वजह से ही सन् 1931 में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप बनने से पहले इनको देखा नहीं जा सका था।

 

 

अलग-अलग तरह के होते है वायरस

अलग-अलग वायरस का आकार, रंग-रूप और बनावट भी अलग-अलग होता है। हालांकि इनमें कोशिकाएं नहीं होतीं लेकिन किसी न किसी तरह की आनुवंशिक सामग्री या जेनेटिक मैटीरियल ज़रूर होता है। यह सामग्री डीएनए या आरएनए के रूप में हो सकती है, लेकिन दोनों नहीं बल्कि इनमें से कोई एक। वायरस का बाहरी हिस्सा प्रोटीन के आवरण से ढंका होता है जो भीतर मौजूद डीएनए या आरएनए को सुरक्षित रखता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि अगर कोई दवा वायरस के प्रोटीन के साथ रासायनिक क्रिया कर लेती है तो इससे वायरस नष्ट हो जाता है।

 

डीएनए क्या है?   DNA Kya Hai

प्रत्येक जीव का शरीर असंख्य कोशिकाओं से मिलकर बना है। डीएनए जीवों की प्रत्येक कोशिका में मौजूद एक जैविक इकाई है। यह जीव के गुणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित करता है। डीएनए जीवों की कोशिका के केंद्र में पाया जाता है। यह एक लंबा वर्तुल आकार सीढ़ी नुमा जैविक अणु है, जो सभी प्रकार के जीवों में जीवन के रूप में मौजूद है। यह जीवन के विकास, वृद्धि, प्रजनन कार्य के लिए जिम्मेदार होता है। डीएनए हर जीव के प्रत्येक कोशिका में होता है और यही निर्धारित करता है कि कोशिका क्या प्रोटीन बनाएंगे. डीएनए सेल को बनाने और नियंत्रित करने के लिए आवश्यक जानकारी को स्टोर करके रखता है.

 

मां से बेटी, जानकारी का जो ट्रांसफर होता है जिसे हम जीन ट्रांसफर के रूप में भी जानते हैं यह डीएनए रिप्लिकेशन प्रोसेस के द्वारा होता है.डीएनए रिप्लिकेशन तब होता है जब कोई सेल अपने डीएनए की डुप्लीकेट कॉपी बनाता है और सेल बट जाता है जिसके फल स्वरूप हर सेल में एक डीएनए कॉपी का सही डिस्ट्रीब्यूशन होता है.

 जैसा कि कहा जाता है कि डीएनए जीवन का ब्लू-प्रिंट है. हमारे शरीर के रूप की अधिकतर जानकारी हमारे डीएनए मे होती है. उदाहरण के तौर पर, हमारी आंखों का रंग, हाथों में कितनी उंगलियां हैं जैसी शारीरिक बारीकियां हमारे डीएनए में हैं. जब एक नवजात पैदा होता है, तो उसे अपना आधा डीएनए मां  और आधा पिता से मिलता है.

 

अब जानिए कि डीएनए क्या होता है? सरल तरीके से देखें तो डीएनए केवल एक कड़ी है, जिसकी संरचना की खोज 1953 में वॉटसन और क्रिक नामक दो वैज्ञानिकों ने की थी. यह कड़ी चार अलग तरीके के एकलक [monomerous] से बनी है.इन एकलकों का नाम A, T, G, और C है.  हमारे शरीर में लगभग 40 ट्रिलियन कोशिकाएं हैं. अगर किसी भी एक कोशिका के भीतर झांककर देखें, तो पाएंगे की डीएनए की कड़ी उसके अंदर है. एक व्यक्ति की हर कोशिका मे डीएनए की कड़ी एक जैसी है और वो 3 बिलियन एकलकों से बनी है.

 

इस कड़ी को जीवन का ब्लू प्रिंट क्यों कहा जाता है? वह इसलिए की शरीर को कोई भी काम करने के लिए प्रोटीन की जरूरत होती है. यह काम देखना, बोलना, सोचना, दो आंखों का बनना, गरम तवे से हाथ खींच पाना से लेकर खाना खाने के लिए चम्मच पकड़ने तक कुछ भी हो सकता है.इस सब के लिए हमें प्रोटीन चाहिए होते हैं और हमारा शरीर कौन-से प्रोटीन बनाने की क्षमता रखता है, इसकी कुंजी हमारे डीएनए में ही होती है. इसका एक उदाहरण हमारा ब्लड ग्रुप है- हमारी डीएनए की कड़ी ये निर्धारित करती है कि हमारा ब्लड ग्रुप A, B, AB या O होगा.

 

डीएनए की कड़ी के विभिन्न हिस्से शरीर के अलग-अलग पहलू नियंत्रित करते हैं. कई हिस्से मिलकर ये निर्धारित करते हैं कि आंखों का रंग क्या होगा, तो कोई हिस्सा ये निर्धारित करता है कि मेरे खून में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन शरीर के सब अंगों तक ले जाने की क्षमता है या नहीं. यह सब डीएनए मे एकलकों के अनुसार बने प्रोटीन निर्धारित करते हैं.

 

असल में हमारी हर कोशिका में कुछ बहुत सूक्ष्म मशीनें होती हैं. इन मशीनों का काम बस इतना होता है कि डीएनए के एकलकों को पढ़ें और उस पर लिखे विवरण के अनुसार प्रोटीन बनाएं.  शरीर की हर कोशिका यही करती है.अक्सर हम बैक्टीरिया से पीड़ित हो जाते हैं. बैक्टीरिया एक कोशिका वाले जीव होते हैं जिनके अंदर अपना डीएनए होता है और उस डीएनए को पढ़कर अपने प्रोटीन बनाने वाली मशीन भी. इस तरह से वह हमारी कोशिकाओं पर जीवित रहने के लिए निर्भर नहीं होते.हैजा, टीबी जैसी बीमारियां बैक्टीरिया के कारण होती हैं, इसीलिए जब हमें बैक्टीरिया वाली कोई बीमारी होती है तो हम एंटीबायोटिक खाते हैं. यह एंटीबायोटिक, हमारी कोशिकाओं को छोड़कर केवल बैक्टीरिया पर हमला करती हैं.पर जैसा कि आजकल देख रहे हैं कि डार्विन के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के चलते एंटीबायोटिक के अत्यधिक प्रयोग से अब बहुत से बैक्टीरिया एंटीबायोटिक से बच निकलना सीख गए हैं.

 

पर वायरस और बैक्टीरिया में बहुत अंतर होता है. एक बैक्टीरिया को देखें, तो वह अपने आसपास के वातावरण से अपनी ऊर्जा की जरूरतें पूरी कर लेगा और ऐसा होने पर जब पर्याप्त मात्रा में उसके पास प्रोटीन होंगे, तो बीच से अपने आप को बांटकर एक से दो बैक्टीरिया हो जाएगा, पर वायरस ऐसे नहीं होते.वायरस के पास केवल डीएनए (या उसके जैसा आरएनए) ही होता है. अपने दम पर एक वायरस एक नवजात वायरस को जन्म नहीं दे सकता. ऐसा इसलिए है कि वायरस के पास डीएनए पढ़कर उससे प्रोटीन बनाने वाली मशीन नहीं होती.  बिना उस मशीन के वायरस प्रोटीन नहीं बना सकता और बिना प्रोटीन बनाए वायरस फैल नहीं सकता. इस कारण से बैक्टीरिया से लड़ने वाली एंटीबायोटिक वायरस के खिलाफ कोई काम नहीं आती.

 

तो फिर एक वायरस कैसे फैलता है? 

इसका एक सरल उदाहरण लेते हैं. जब एक वायरस एक बैक्टीरिया पर बैठता है, तो वायरस के शरीर के केमिकल उस बैक्टीरिया के शरीर के एक केमिकल को पहचान जाते हैं.  जब ऐसा होता है, तो वायरस जान जाता है कि इस कोशिका के अंदर जाना ठीक है.इसको सोचने का एक और तरीका यह है कि एक एक वायरस एक ही तरह की कोशिका पर आक्रमण करता है. जो वायरस एक बैक्टीरिया पर आक्रमण कर रहा है, वो हमारी कोशिकाओं के लिए हानिकारक नहीं है. तो जब वायरस अपने लिए ठीक कोशिका तक पहुंच जाता है, तो वह अपना डीएनए उस कोशिका के अंदर डाल देता है.

 

यह डीएनए, वायरस के अंदर किसी काम का नहीं था क्योंकि वायरस के पास वो मशीन ही नहीं थी, जिससे डीएनए पढ़कर प्रोटीन बनाए जा सकते हैं. पर अब जबकि डीएनए एक बैक्टीरिया की कोशिका में है और बैक्टीरिया के पास डीएनए पढ़कर प्रोटीन बनाने की क्षमता है, तो वह वायरस का डीएनए पढ़ उसके प्रोटीन बैक्टीरिया के अंदर बनाना शुरू कर देता है. ऐसा होने से वायरस के बहुत से प्रोटीन बैक्टीरिया के अंदर बनने लग जाते हैं. सभी प्रोटीन के बन जाने के कारण, वायरस के कण बैक्टीरिया के अंदर ही बन जाते हैं. फिर धीरे-धीरे ये वायरस, बैक्टीरिया को छोड़कर बाहर निकलते हैं, जिस से बैक्टीरिया की कोशिका को क्षति पहुंचती है.ये सिलसिला तब तक चलता है, जब तक वायरस के निकलने से बैक्टीरिया मर न जाए.  पर इस बीच एक वायरस के कण से सैंकड़ों वायरस के कण पैदा हो गए और जो वायरस निकला है, वह अपने आप तो बढ़ नहीं सकता. उसे फिर से बढ़ने के लिए नयी कोशिका चाहिए.

 

जब तक वायरस को नई कोशिका मिलती रहेगी, वह बढ़ता जाएगा, जब उसे बढ़ने के लिए नई कोशिका नहीं मिलेगी, तो वह खत्म हो जाएगा. मोटे तौर पर वायरस इस पद्धति से काम करते हैं, पर सब वायरस एक तरह के नहीं होते.

 

कुछ अपना ब्लू प्रिंट डीएनए में नहीं लाते, एड्स का कारक वायरस एचआईवी और अभी की महामारी वाला कोरोना वायरस अपना ब्लू प्रिंट डीएनए नहीं, पर उससे मिलता आरएनए में लाते हैं.

 

क्या है कोरोना वायरस और कोविड-19

अब जानते हैं कि किस कारण  से कोरोना वायरस का इलाज ढूंढना इतना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो रहा है. साल 2003 मे वैज्ञानिकों ने चीन मे एक वायरस को पहचाना. यह वही वायरस था जिस से सार्स (SARS) नामक घातक बीमारी दुनिया में महामारी बन फैली थी.

 

उस वायरस का नाम कोरोना वायरस था. अब कुछ 16 साल बाद कोरोना वायरस फिर से चर्चा में हैं. प्राचीन रोम की भाषा लैटिन मे कोरोना का मतलब ताज होता है. इस वायरस का नाम इसी वजह से कोरोना रखा गया क्योंकि इसकी सतह पर प्रोटीन के कण ताज जैसे लगे होते हैं.

 

हम अब जान चुके हैं कि प्रोटीन कैसे बनते हैं और कैसे वायरस इसे खुद बनाने मे असमर्थ होते हैं. वायरस बेहद छोटे होते हैं. औसतन एक मनुष्य की लंबाई 5 से 6 फीट के बीच होती है. एक सामान्य बैक्टीरिया, जैसे हमारी आंतों मे रहते हैं, एक फुट का लगभग 10 लाखवां हिस्सा होते हैं.कोरोना वायरस इस बैक्टीरिया से करीब 10 गुना छोटा होता है.  मतलब एक कोरोना वायरस आकार मे एक फुट का लगभग 1 करोड़वां हिस्सा होता है. असल में कोरोना वायरस एक वायरस का नहीं बल्कि सैकड़ों वायरस के परिवार का एक सामूहिक नाम है. उनमें से कुछ मनुष्यों मे रहकर फैल सकते हैं और इस दौरान एक बीमारी फैला सकने में सक्षम हैं.

 

2003 की महामारी सार्स एक कोरोना वायरस जिसका नाम SARS-CoV के कारण फैली थी. 2012 मे सऊदी अरब मे पहचानी गई बीमारी MERS, कोरोना वायरस MERS-CoV के कारण हुई थी. इसी तरह से 2019 मे फैली महामारी कोविड-19 कोरोना वायरस SARS-CoV2 के द्वारा फैल रही है.

 

अब तक पहचाने गए ऐसे 7 कोरोना वायरस हैं, जो मनुष्यों मे बीमारी फैलाते हैं. उनमें से 4 नाक और गले के संक्रमण से जुड़े हुए हैं और कोई गंभीर बीमारी नहीं पैदा करते हैं.  सात में से और दो फेफड़ों की बीमारी देते हैं- और पहले चार से कहीं ज्यादा गंभीर हैं. SARS-CoV2 सातवां है और इसका कुछ स्वभाव पहले चार और कुछ स्वभाव आखिरी दो के जैसा है.

 

जैसा कि हम अब समझते हैं कि वायरस हमारे फेफड़ों से खांसी के साथ छोटी बूंदों में बाहर फैलता है. वहां से बाहर वायरस खुद से जीवित नहीं रह सकता, इसलिए उसे एक नया मेजबान मनुष्य चाहिए. अगर बाहर ठंडा रहेगा तो छोटी बूंद को सूखने में अधिक समय लगेगा, जिससे वायरस उसमें ज्यादा समय तक रह सकता है. अगर बूंद सूख जाती है, तो नमी की कमी के कारण वायरस नष्ट हो जाएगा.

 

एक बार जब वायरस एक व्यक्ति के फेफड़ों तक पहुंचता है, तो उसकी सतह पर लगे ताज जैसे प्रोटीन हमारे फेफड़ों की कोशिकाओं को पहचान लेते हैं. ऐसा होने के बाद वायरस हमारी कोशिका की मशीनों की मदद से अनेक वायरस पैदा करता है, जो न सिर्फ पीड़ित व्यक्ति के फेफड़ों को खराब करता है, बल्कि उसके खांसने के साथ वातावरण में और वायरस भी छोड़ता है.

 

अधिकतर वायरस के अंदर उनका ब्लू-प्रिंट डीएनए के रूप में होता है. एक मेजबान कोशिका में जाने के बाद इस डीएनए के ब्लू-प्रिंट और कोशिका की मशीनों की मदद से वायरस के प्रोटीन बनते हैं. इस प्रक्रिया मे पहले डीएनए को मशीन द्वारा पढ़कर उससे मिलता-जुलता आरएनए और फिर आरएनए को एक और मशीन द्वारा पढ़ प्रोटीन बनता है.

 

अमूमन वायरस के डीएनए में यह क्षमता भी होती है कि अनेक वायरस बनाते समय उनके ब्लू-प्रिंट (डीएनए) में कोई गलती न हो जाए. इस कारण से डीएनए वाले वायरस अक्सर ज्यादा स्थिर रहते हैं और उनके ब्लू प्रिंट में आसानी से बदलाव नहीं आते.

 

दुर्भाग्य से कोरोना वायरस ऐसा नहीं है. उसका ब्लू-प्रिंट डीएनए नहीं आरएनए के रूप में होता है. ऐसा होने से कोशिका से निकलते नए कोरोना वायरस मे ब्लू-प्रिंट में गलतियां होने की संभावना अधिक होती है. इसका मतलब है कि जब फेफड़ों की एक कोशिका में से 100 कोरोना वायरस निकलते हैं, तो उनमे से कुछ का ब्लू-प्रिंट उस कोरोना वायरस से अलग होने की संभावना है, जिसने उस कोशिका को संक्रमित किया था.

 

ब्लू-प्रिंट आरएनए के रूप में होने के बावजूद, कोरोना वायरस मे अपने ब्लू-प्रिंट में कुछ हद तक गलतियां रोकने की क्षमता है. पर ब्लू-प्रिंट में ऐसी गलतियां बीमारी के दृष्टिकोण से अच्छी खबर नहीं होती.आमतौर पर ब्लू-प्रिंट में गलती होना वायरस की संक्रमण करने की क्षमता को कमजोर करता है, पर अकस्मात अगर सैकड़ों कोरोना वायरस में से एक में अगर ब्लू-प्रिंट में कोई ऐसी गलती हो जाए, जिससे वायरस और जानलेवा बन जाए, या फिर वो एक व्यक्ति से दूसरे तक और आसानी से पहुंचे, तो एक नई चुनौती बन नया वायरस खड़ा हो जाएगा.

 

ब्लू-प्रिंट में यह गलतियां ही एक कारण है कि कोरोना वायरस एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति को पीड़ित करने मे अत्यधिक सफलता रखता है. इसी कारण से हम नहीं जानते कि ब्लू-प्रिंट में गलतियों के कारण, अगर हम एक वैक्सीन विकसित करते हैं, तो वह सब तरह के SARS-CoV2 वायरस पर असर करेगी या नहीं?

 

पिछली महामारी सार्स और MERS में भी वैक्सीन बनने से पहले महामारी थम गई, पर 2019-20 मे इसका एक ज्यादा जानलेवा स्वरूप बाहर आया है. वैज्ञानिक मानते हैं कि अन्य प्रजातियों से वायरस मनुष्यों तक आते रहे हैं.

 

बीसवीं सदी मे एचआईवी भी चिंपांजी मे रहने वाले एक वायरस से बदल कर मनुष्यों तक पहुंचा और दुर्भाग्य से ऐसा आगे भी चलता रहेगा. जरूरत है कि वायरस के हमारी प्रजाति मे फैलने के हर कदम को जल्दी और सटीक तरीके से समझ पाएं ताकि भविष्य मे उसका फैलाव SARS-CoV2 जैसा न हो


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