प्राचीन भारत में बहुत से विश्वविद्यालय हुआ करते
थे जिनमे से एक महान विश्वविद्यालय नालन्दा भी था जो कि अपनी समृद्ध विरासत और
ऐतिहासिक महत्व के लिए पूरे विश्व में जाना जाता था।
नालन्दा विश्वविद्यालय बिहार राज्य जिसे तब मगध के नाम से जाना जाता था की राजधानी पटना के 95 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व बिहार शरीफ के पास स्थित था। 1193 में आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिए जाने के बाद आज बस यहाँ पर इसके खंडहर बचे है जिसे यूनेस्को के द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया गया है।
नालन्दा प्राचीनकाल का सबसे प्रसिद्ध बौद्ध
महाविहार था। शिक्षा का केंद्र होने के साथ-साथ यह एक बौद्ध तीर्थस्थान भी था।
यहाँ आने वालों को आज भी आध्यात्मिक शांति के साथ-साथ भारत के गौरवशाली इतिहास, संस्कृति, वास्तुकला और पर्यटन की झलक देखने को
मिलती है।
नालन्दा विश्वविद्यालय दुनिया के सबसे पुराने और
बेहतरीन आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक हुआ करता था। उस समय यहाँ पर करीब 10,000 छात्र और 2000 शिक्षक रहा करते थे। नालंदा
विश्वविद्यालय में तीन लाख किताबों से भरा एक विशाल पुस्तकालय, तीन सौ से भी ज्यादा कमरें और सात विशाल कक्ष हुआ करतें थे। इसका भवन बहुत
ही सुंदर और विशाल हुआ करता था जिसकी वास्तुकला भी अत्याधिक सुंदर थी।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में एक मुख्य प्रवेश
द्वार था बाकी का सारा परिसर चारदीवारी से घिरा हुआ था। परिसर में अनेक स्तूप, मठ और मंदिर थे इन मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ विराजमान हुआ करती
थीं। आज इस सुंदर भवन का बस खंडहर ही बाकी है पर इससे भी इस भवन की सुंदरता का
अंदाज लग जाता है।
नालंदा परिसर की पूर्व दिशा में “विहार” या मठ हैं और पश्चिम दिशा में “चिया” या मंदिर हैं। इसके अलावा इस परिसर में एक
छोटा संग्रहालय भी है जहां पर कई मूल बौद्ध स्तूप, जले हुए
चावल का एक नमूना, हिंदू और बौद्ध कांस्य के सिक्के, टेराकोटा जार आदि का संग्रह है।इस स्थान पर सभी धर्म बड़े ही शांति और
सद्भाव से रहा करते थे। बौद्ध धर्म के अलावा, यह हिंदू धर्म और जैन धर्म के लिए भी एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता
था। इसी कारण से यहाँ हमेशा पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है।
ऐसा माना जाता है की नालंदा विश्वविद्यालय की
स्थापना पांचवी शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त ने की थी. इसका कोई ठोस
प्रमाण तो नहीं है पर उस समय नालंदा में मिली मुद्राओं से यही सत्य लगता है। कुमार
गुप्त के उत्तराधिकारियों ने भी इस विश्वविद्यालय को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया।
उन्होंने कई और मठों और मंदिरों का निर्माण करके साम्राज्य का विस्तार किया स्थानीय शासकों जैसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और विदेशी शासक भी इसे दान दिया करते थे। ऐसा माना जाता है कि 24 वें जैन तीर्थंकर- महावीर जैन ने नालंदा में 14 वर्षा ऋतुएँ बिताईं थी। गौतम बुद्ध खुद कई बार नालंदा आए और यहाँ प्रवास भी किया। प्रसिद्ध ‘बौद्ध सारिपुत्र’ का जन्म यहीं पर हुआ था।
इस विश्वविद्यालय पर तीन-तीन बार आक्रमण किए गए
जिसके बाद दो बार इसे उस समय राज्य करने वाले राजाओं ने फिर से बनवा दिया पर जब
तीसरी बार हमला हुआ जो कि अब तक का सबसे बड़ा और विनाशकारी हमला था।
यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक
महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक
शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था।भगवान बुद्ध ने सम्राट अशोक को यहाँ उपदेश दिया
था।भगवान महावीर भी यहीं रहे थे।प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं पर हुआ था।
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