वेश्यावृत्ति सभी सभ्य देशों में आदिकाल से
विद्यमान रही है। और‘‘सदैव सामाजिक यथार्थ के रूप में
स्वीकार की गई तथा इसका नियमन विधि एवं परंपरा द्वारा होता रहा है। आधुनिक समाज
में हमारी विवश्ता, मानसिक विक्षेप एवं निरंतर बढ़ती हुई
आंतरिक कुंठा के क्षणिक उपचार का द्योतक है।’’ वस्तुतः
वेश्यावृत्ति विघटनशील समाज के सहज अंग के रूप में विद्यमान रही है। सामाजिक
स्थिति में आरोह-अवरोह आते रहे, किंतु इसके अस्तित्व को
बिलकुल भी प्रभावित नही कर सके। अगर कहा जाए तो वेश्यावृत्ति जैसी विवादास्पद,
उलझी हुई और मिथकीय, अन्य कोई सामाजिक परिघटना
नहीं है। वैसे ‘‘वेश्या’ शब्द को
अंग्रेजी में‘प्रोस्टीट्यूट’ कहा जाता
है, जो लेटिन शब्द ‘प्रोस्टीबुला’
अथवा‘प्रोसिडा’ से बना
है। भारत में इन्हें ‘गणिका’ के नाम से
पुकारा जाता था एवं प्राचीन भारतीय साहित्य में इसका विस्तृत वर्णन मौजूद है।
सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ वेश्यावृत्ति
का भी पूरी दुनिया में चरम उभार हो चुका है। पोस्ट मॉडर्न सोसाइटी में
वेश्यावृत्ति के अलग-अलग रूप भी सामने आए हैं। रेड लाइट इलाकों से निकल कर
वेश्यावृत्ति अब मसाज पार्लरों एवं एस्कार्ट सर्विस के रूप में भी फल-फूल रही है।
देह का धंधा कमाई का चोखा जरिया बन चुका है। गरीब और विकासशील देशों जैसे भारत, थाइलैंड, श्रीलंका, बांग्लादेश
आदि में सेक्स पर्यटन का चलन शुरू हो चुका है। जिस्मफरोशी दुनिया के पुराने धंधों
में से एक है। बेबीलोन के मंदिरों से लेकर भारत के मंदिरों में देवदासी प्रथा
वेश्यावृत्ति का आदिम रूप है। गुलाम व्यवस्था में गुलामों के मालिक वेश्याएं रखते
थे। उन्होंने वेश्यालय भी खोले। तब वेश्याएं संपदा और शक्ति की प्रतीक मानी जाती
थीं। मुगलों के हरम में सैकड़ों औरतें रहती थीं। जब अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार
किया तो इस धंधे का स्वरूप बदलने लगा। राजाओं ने अंग्रेजों को खुश करने के लिए
तवायफों को तोहफे के रूप में पेश करना शुरू किया। पुराने वक्त के कोठों से निकल कर
देह व्यापार का धंधा अब वेबसाइटों तक पहुंच गया है। इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी के
मामले में पिछड़ी पुलिस के लिए इस नेटवर्क को भेदना खासा कठिन है। सिर्फ नेट पर
अपनी जरूरत लिखकर सर्च करने से ऐसी दर्जनों साइट्स के लिंक मिल जाएंगे जहां
हाईप्रोफाइल वेश्याओं के फोटो, फोन नंबर और रेट तक लिखे होते
हैं। इन पर कालेज छात्राएं, मॉडल्स और टीवी-फिल्मों की
नायिकाएं तक उपलब्ध कराने के दावे किए जाते हैं।
वेश्यावृत्ति है क्या?
अर्थलाभ के लिए स्थापित यौनसंबंध वेश्यावृत्ति
कहलाता है। इसमें उस भावनात्मक तत्व का अभाव होता है जो अधिकांश यौनसंबंधों का एक
प्रमुख अंग है। इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटानिका के अनुसार वेश्यावृत्ति वह है ‘जो पैसे या अन्य मूल्यवान सामग्री के तात्कालिक भुगतान के बदले,परिचित या अपरिचित किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौनाचार करे।’वेश्यावृत्ति निवारण कानून 1956 में, वेश्यावृत्ति की परिभाषा है-‘किसी महिला द्वारा
किराया लेकर, चाहे वह पैसे के रूप में लिया गया हो या
मूल्यवान वस्तु के रूप में और चाहे फौरन वसूला गया हो या किसी अवधि के बाद,
स्वछंद यौन-संबंध के लिए किसी पुरूष को अपना शरीर सौंपना ‘वेश्यावृत्ति’ है और ऐसा करने वाली महिला को‘वेश्या’ कहा जाएगा।
वेश्यावृत्ति का कारण बहुत है. लेकिन गरीबी एक परमुख कारण है. महिलाओं की बेबसी उन्हें अपने शरीर बेचने के लिए मजबूर करता है. गांवों से कई लड़कियों को घर से प्यार है और भागने के बहाने में व्यापार के लिए फंस रहे हैं केवल खोजने के लिए खुद को शहर में दलाल जो कमीशन के रूप में महिलाओं से पैसे लेने के लिए बेच दिया. वेश्यावृत्ति के अन्य कारणों के माता पिता, बुरी संगत, परिवार वेश्याओं, सामाजिक सीमा शुल्क, शादी की व्यवस्था करने में असमर्थता, यौन शिक्षा, मीडिया, पूर्व ईन्सेस्त और बलात्कार, जल्दी शादी और परित्याग, मनोरंजक सुविधाओं, अज्ञानता की कमी है, और की कमी से दुर्व्यवहार में शामिल वेश्यावृत्ति की स्वीकृति है. आर्थिक कारणों में गरीबी और आर्थिक संकट शामिल है. मनोवैज्ञानिक कारणों भौतिक सुख, लालच, और निराशा के लिए इच्छा शामिल हैं.
भारत के शीर्ष पांच लाल बत्ती क्षेत्र
कोलकाता
एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया कोलकाता के
सोनागाची में है। एक अनुमान के मुताबिक यहां करीब 11 हजार
वेश्याएं कई सौ बहु मंजिला इमारतों में देह धंधा करती हैं। यह इलाका उत्तरी
कोलकाता के शोभा बाजार के समीप स्थित चित्तरंजन एवेन्यू में है। इस धंधे से जुडी
महिलाओं को लाइसेंस दिया गया है। बताते चलें कि भारत में जिस्मफरोशी का धंधा
लगातार बढ रहा है। 1956 में पीटा कानून के तहत वेश्यावृत्ति
को कानूनी वैद्यता दी गई, पर 1986 में
इसमें संशोधन करके कई शर्तें जोड़ी गई। इसके तहत सार्वजनिक सेक्स को अपराध माना
गया। इसमें सजा का भी प्रावधान है।
दिल्ली
राजधानी दिल्ली में जी.बी रोड, नई दिल्ली यानी गारस्टिन बास्टिन रोड सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है। सन् 1965 में इसका नाम बदल कर स्वामी श्रद्धानंद मार्ग कर दिया गया। मुगलकाल में
इस क्षेत्र में कुल पांच रेडलाइट एरिया यानी कोठे हुआ करते थे। अंग्रेजों के समय
इन पांचों क्षेत्रों को एक साथ कर दिया गया और उसी समय इसका नाम जीबी रोड पड़ा।
यहां देहव्यापार का सबसे बड़ा कारोबार होता है। नेपाल और बांग्लादेश से बड़ी
संख्या में लड़कियों की तस्करी करके यहां को कोठों पर लाया जाता है। वर्तमान में
एक ही कमरे में कई केबिन बनें हैं, जहां एक साथ कई ग्राहकों
को सेवा दी जाती है। यहां समय-समय पर दिल्ली पुलिस छापा मारती रहती है।
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रेशमपुरा इलाका
देहव्यापार के लिए जाना जाता है। सिंधिया परिवार की इस सरजमीं पर इस कारोबार में
विदेशी लड़कियों के साथ मॉडल्स, कॉलेज गर्ल्स और बहुत जल्दी
ऊंची छलांग लगाने की मध्यमवर्गीय महत्वाकांक्षी लड़कियों की संख्या भी बढ़ रही है।
अब दलालों की पहचान मुश्किल हो गई है। बताते चलें कि इस कारोबार को चलाने के लिए
बाकयादा ऑफिस खोले जा रहे हैं। इंटरनेट और मोबाइल पर आने वाली सूचनाओं के आधार पर
कॉलगर्ल्स की बुकिंग होती है। ईमेल या मोबाइल पर ही ग्राहक को डिलीवरी का स्थान
बता दिया जाता है। कॉलगर्ल्स को ठेके पर या फिर वेतन पर रखा जाता हैं।
उत्तर प्रदेश
यूपी के मेरठ में स्थित कबाड़ी बाजार बहुत ही
पुराना रेड लाइट एरिया है। यहां अंग्रेजों के जमाने से देहव्यापार किया जाता है।
इन दिनों यहां पर देहव्यापार का परंपरागत धंधा अब गलत हथकंडे अपनाकर चलाया जा रहा
है। हाल ही में यहां पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर छापा मारा तो दंग रह गई। एक
मकान में नेपाली लड़कियों को जानवरों की तरह बंद करके रखा गया था। यहां आलमारी में
कपड़ों की तरह ठूस कर लड़कियों को रखा गया था। बताते चलें कि वूमेन एंड चाइल्ड
डेवलेपमेंट मिनिस्ट्री ने 2007 में एक रिपोर्ट दिया, इसके मुताबिक, 30 लाख औरतें जिस्मफरोशी का धंधा करती
हैं। इममें 36 फीसदी तो नाबालिग हैं।
मुंबई
मायानगरी मुंबई का कामथीपुरा रेडलाइट एरिया पूरी
दुनिया में चर्चित है। यह एशिया का सबसे बड़ा और पुराना रेडलाइट एरिया है। सन 1795 में पुराने बांबे के इस इलाके में निर्माण क्षेत्र में काम करने वाली
आंध्रा महिलाओं ने देह व्यापार का धंधा शुरू किया था। 1880 में
यह क्षेत्र अंग्रेजों के लिए ऐशगाह बन गया। आज भी देहव्यापार के लिए इस क्षेत्र
खूब जाना जाता है। यहां 2 लाख सेक्स वर्कर का परिवार रहता है,
जो पूरे मध्य एशिया में सबसे बड़ा है।
बताते चलें कि भारत में इन इलाकों के अलावा वाराणसी
में दालमंडी, सहारपुर (यूपी) में नक्कास बाजार, मुजफ्फरपुर (बिहार) में छतरभुज स्थान, मेरठ (यूपी)
में कबाड़ी बाजार और नागपुर में गंगा-यमुना हैं।a
वेश्यावृति के कारण
आधुनिक युग में स्त्रियों को वेश्यावृत्ति की ओर
प्रेरित करनेवाले प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
आर्थिक कारण
अनेक स्त्रियां अपनी एवं आश्रितों की भूख की ज्वाला
शांत करने के लिए विवश हो इस वृत्ति को अपनाती हैं। जीविकोपार्जन के अन्य साधनों
के अभाव तथा अन्य कार्यों के अत्यंत श्रमसाध्य एवं अल्वैतनिक होने के कारण
वेश्यावृत्ति की ओर आकर्षित होती हैं। घनीवर्ग द्वारा प्रस्तु विलासिता, आत्मनिरति तथा छिछोरेपन के अन्यान्य उदाहरण भी प्रोत्साहन के कारण बनते
हैं। कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार लगभग 65 प्रतिशत
वेश्याएँ आर्थिक आर्थिक कारणवश इस वृत्ति को अपनाती हैं।
सामाजिक कारण
समाज ने अपनी मान्यताओं, रूढ़ियों और त्रुटिपूर्ण नीतियों द्वारा इस समस्या को और जटिल बना दिया
है। विवाह संस्कार के कठोर नियम, दहेजप्रथा, विधवाविवाह पर प्रतिबंध, सामान्य चारित्रिक भूल के
लिए सामाजिक बहिष्कार, अनमेल विवाह, तलाकप्रथा
का अभाव आदि अनेक कारण इस घृणित वृत्ति को अपनाने में सहायक होते हैं। इस वृत्ति
को त्यागने के पश्चात् अन्य कोई विकल्प नहीं होता। ऐसी स्त्रियों के लिए समाज के
द्वारा सर्वदा के लिए बंद हो जाते हैं। वेश्याओं की कन्याएँ समाज द्वारा सर्वथा
त्याज्य होने के कारण अपनी माँ की ही वृत्ति अपनाने के लिए बाध्य होती हैं। समाज
में स्त्रियों की संख्या पुरुषों की अपेक्षा अधिक होने तथा शारीरिक, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से बाधाग्रस्त होने के कारण अनेक पुरुषों के लिए
विवाहसंबंध स्थापित करना संभव नहीं हो पाता। इनकी कामतृप्ति का एकमात्र स्थल
वेश्यालय होता है। वेश्याएँ तथा स्त्री व्यापार में संलग्न अनेक व्यक्ति भोली भाली
बालिकाओं की विषम आर्थिक स्थिति का लाभ उठाकर तथा सुखमय भविष्य का प्रलोभन देकर
उन्हें इस व्यवसाय में प्रविष्ट कराते हैं। चरित्रहीन माता-पिता अथवा साथियों का
संपर्क, अश्लील, साहित्य, वासनात्मक मनोविनोद और चलचित्रों में कामोत्तेजक प्रसंगों का बाहुल्य आदि वेश्यावृत्ति
के पोषक प्रमाणित होते हैं।
मनोवैज्ञानिक कारण
वेश्यावृत्ति का एक प्रमुख आधार मनोवैज्ञानिक है।
कतिपय स्त्रीपुरुषों में कामकाज प्रवृत्ति इतनी प्रबल होती है कि इसकी तृप्ति, मात्र वैवाहिक संबंध द्वारा संभव नहीं होती। उनकी कामवासना की स्वतंत्र प्रवृत्ति
उन्मुक्त यौनसंबंध द्वारा पुष्ट होती है। विवाहित पुरुषों के वेश्यागमन तथा
विवाहित स्त्रियों के विवाहेतर संबंध में यही प्रवृत्ति क्रियाशील रहती है।
भारत में वेश्यावृत्ति
भारत में वेश्यावृत्ति या देहव्यापार अभी भी अनैतिक
देहव्यापार कानून के तहत आते हैं। समय - समय पर इसके कानूनी मान्यता को लेकर
चर्चायें गर्म होती रहती हैं। सेक्सवर्करों तथा कुछ स्वयंसेवी संगठनों के द्वारा
इस तरह की मांग उठती रहती है। लेकिन बगैर कानूनी मान्यता के भी पूरे देश में यह
कारोबार धरल्ले से चल रहा है।
देश में आज कुल ग्यारह सौ सत्तर रेड लाईट एरिया है। इसमें व्यापारिक दृष्टिकोण से सबसे ज्यादा धंधा वाला एरिया है कोलकात्ता और मुम्बई। एक आकड़े के अनुसार करोड़ों रूपयो का साप्ताहिक बाज़ार है अकेले मुम्बई का रेडलाईट एरिया। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा एक ऐसा क्षेत्र है जहां देह व्यापार की प्रथा का एक लम्बा इतिहास है। इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो पहले जो ` मुजरा ´ तथा नाच - गानों के केन्द्र के रूप में जाने जाते थे वही बाद में वेश्यावृत्ति के अड्डों के रूप में मशहूर हो गए।
देश में आज कुल ग्यारह सौ सत्तर रेड लाईट एरिया है। इसमें व्यापारिक दृष्टिकोण से सबसे ज्यादा धंधा वाला एरिया है कोलकात्ता और मुम्बई। एक आकड़े के अनुसार करोड़ों रूपयो का साप्ताहिक बाज़ार है अकेले मुम्बई का रेडलाईट एरिया। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा एक ऐसा क्षेत्र है जहां देह व्यापार की प्रथा का एक लम्बा इतिहास है। इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो पहले जो ` मुजरा ´ तथा नाच - गानों के केन्द्र के रूप में जाने जाते थे वही बाद में वेश्यावृत्ति के अड्डों के रूप में मशहूर हो गए।
एक अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में यौनकर्मियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही हैं। 1997 में यौनकर्मियों की संख्या 20 लाख थी जो 2003-04 तक बढ़कर 30 लाख हो गई। 2006 में महिला और बाल विकास विभाग द्वारा तैयार रिपोर्ट में यह भी पाया गया था कि देश में 90 फीसदी यौनकर्मियों की उम्र 15 से 35 साल के बीच है।
ऐसे भी मामले देखने में आए हैं जिसमें झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तरांचल में 12 से 15 वर्ष की कम उम्र की लड़कियों को भी वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकात्ता से सटा दक्षिण 24 - परगना ज़िले के मधुसूदन गांव में तो वेश्यावृत्ति को ज़िन्दगी का हिस्सा माना जाता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि वहां के लोग इसे कोई बदनामी नहीं मानते। उनके अनुसार यह सब उनकी जीवनशैली का हिस्सा है और उन्हें इस पर कोई शर्मिंन्दगी नहीं है। इस पूरे गांव की अर्थव्यवस्था इसी धंधे पर टिकी है।
देश में रोजाना 2000 लाख रूपये का देह व्यापार होता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 68 प्रतिशत लड़कियों को रोजगार के झांसे में फंसाकर वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है। 17 प्रतिशत शादी के वायदे में फंसकर आती हैं। वेश्यावृत्ति में लगी लड़कियों और महिलाओं की तादाद 30 लाख है। मुम्बई और ठाणे के वेश्यावृत्ति के अड्डों से तो खण्डित रूस और मध्य एशियाई देशों की युवतियों को पकड़ा गया है।
भारत में वेश्यावृत्ति के बाजार को देखते हुए अनेक देशों की युवतियां वेश्यावृत्ति के जरिए कमाई करने के लिए भारत की ओर रूख कर रही हैं। मुम्बई पुलिस के दस्तावेजों के मुताबिक बाहर से आकर यहां वेश्यावृत्ति में लिप्त युवतियों में उज्बेकिस्तान की युवतिया सबसे ज्यादा हैं। गृह मंत्रालय के वर्ष 2007 के आंकडे़ के अनुसार भारत में तमिलनाडु और कर्नाटक देहव्यापार में शिर्ष पर हैं। 2007 के आंकडे़ के अनुसार वेश्यावृत्ति के 1199 मामले तमिलनाडु में और 612 मामले कर्नाटक में दर्ज किए गए। ये मामले वेश्यावृत्ति निवारण कानून के तहत दर्ज किए गए हैं।
वेश्यावृत्ति और कानून (भारत)
भारतवर्ष में वैवाहिक संबंध के बाहर यौनसंबंध अच्छा
नहीं समझा जाता है। वेश्यावृत्ति भी इसके अंतर्गत है। लेकिन दो वयस्कों के
यौनसंबंध को, यदि वह जनशिष्टाचार के विपरीत न हो, कानून व्यक्तिगत मानता है, जो दंडनीय नहीं है।
"भारतीय दंडविधान" 1860 से "वेश्यावृत्ति
उन्मूलन विधेयक" 1956 तक सभी कानून सामान्यतया वेश्यालयों
के कार्यव्यापार को संयत एवं नियंत्रित रखने तक ही प्रभावी रहे हैं। वेश्यावृत्ति
का उन्मूलन सरल नहीं है, पर ऐसे सभी संभव प्रयास किए जाने
चाहिए जिससे इस व्यवसाय को प्रोत्साहन न मिले, समाज की
नैतिकता का ह्रास न हो और जनस्वास्थ्य पर रतिज रोगों का दुष्प्रभाव न पड़े। कानून
स्त्रीव्यापार में संलग्न अपराधियों को कठोरतम दंड देने में सक्षम हो। यह समस्या
समाज की है। समाज समय की गति को पहचाने और अपनी उन मान्यताओं और रूढ़ियों का
परित्याग करे, जो वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहन प्रदान करती
हैं। समाज के अपेक्षित योगदान के अभाव में इस समस्या का समाधान संभव नहीं है
नैतिकता का ज्ञान हर किसी को दिया जाना अनिवार्य किया जाना बहुत ही आवश्यक हो गया
है |
स्त्री और बाजार
समाज जीवन में जिस तरह की स्थितियां है उसमें औरतों
का व्यापार बहुत जधन्य और निकृष्ट कर्म होने के बावजूद रोका नहीं जा सकता। गरीबी
इसका एक कारण है, दूसरा कारण है पुरूष मानसिकता।
जिसके चलते स्त्री को बाजार में उतरना या उतारना एक मजबूरी और फैशन दोनों बन रहा
है। क्या ही अच्छा होता कि स्त्री को हम एक मनुष्य की तरह अपनी शर्तों पर जीने का
अधिकार दे पाते। समाज में ऐसी स्थितियां बना पाते कि एक औरत को अपनी अस्मत का सौदा
न करना पड़े। किंतु हुआ इसका उलटा। इन सालों में बाजार की हवा ने औरत को एक माल
में तब्दील कर दिया है। मीडिया माध्यम इस हवा को तूफान में बदलने का काम कर रहे
हैं। औरत की देह को अनावृत्त करना एक फैशन में बदल रहा है। औरत की देह इस समय
मीडिया का सबसे लोकप्रिय विमर्श है। सेक्स और मीडिया के समन्वय से जो अर्थशास्त्र
बनता है उसने सारे मूल्यों को शीर्षासन करवा दिया है । फिल्मों, इंटरनेट, मोबाइल, टीवी चेनलों
से आगे अब वह मुद्रित माध्यमों पर पसरा पड़ा है। प्रिंट मीडिया जो पहले अपने दैहिक
विमर्शों के लिए ‘प्लेबाय’ या ‘डेबोनियर’ तक सीमित था, अब
दैनिक अखबारों से लेकर हर पत्र-पत्रिका में अपनी जगह बना चुका है। अखबारों में
ग्लैमर वर्ल्र्ड के कॉलम ही नहीं, खबरों के पृष्ठों पर भी
लगभग निर्वसन विषकन्याओं का कैटवाग खासी जगह घेर रहा है। वह पूरा हल्लाबोल 24
घंटे के चैनलों के कोलाहल और सुबह के अखबारों के माध्यम से दैनिक
होकर जिंदगी में एक खास जगह बना चुका है। शायद इसीलिए इंटरनेट के माध्यम से चलने
वाला ग्लोबल सेक्स बाजार करीब 60 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है।
मोबाइल के नए प्रयोगों ने इस कारोबार को शक्ति दी है। एक आंकड़े के मुताबिक मोबाइल
पर अश्लीलता का कारोबार भी पांच सालों में 5अरब डॉलर तक जा
पहुंचेगा ।बाजार के केंद्र में भारतीय स्त्री है और उद्देश्य उसकी शुचिता का उपहरण
। सेक्स सांस्कृतिक विनिमय की पहली सीढ़ी है। शायद इसीलिए जब कोई भी हमलावर किसी
भी जातीय अस्मिता पर हमला बोलता है तो निशाने पर सबसे पहले उसकी औरतें होती हैं ।
यह बाजारवाद अब भारतीय अस्मिता के अपहरण में लगा है-निशाना भारतीय औरतें हैं। ऐसे
बाजार में वेश्यावृत्ति को कानूनी जामा पहनाने से जो खतरे सामने हैं, उससे यह एक उद्योग बन जाएगा। आज कोठेवालियां पैसे बना रही हैं तो कल बड़े
उद्योगपति इस क्षेत्र में उतरेगें। युवा पीढ़ी पैसे की ललक में आज भी गलत कामों की
ओर बढ़ रही है, कानूनी जामा होने से ये हवा एक आँधी में बदल
जाएगी। इससे हर शहर में ऐसे खतरे आ पहुंचेंगें। जिन शहरों में ये काम चोरी-छिपे हो
रहा है, वह सार्वजनिक रूप से होने लगेगा। ऐसी कालोनियां बस
जाएंगी और ऐसे इलाके बन जाएंगें। संभव है कि इसमें विदेशी निवेश और माफिया का पैसा
भी लगे। हम इतने खतरों को उठाने के लिए तैयार नहीं हैं। विषय बहुत संवेदनशील है,
हमें सोचना होगा कि हम वेश्यावृत्ति के समापन के लिए काम करें या
इसे एक कानूनी संस्था में बदल दें। हमें समाज में बदलाव की शक्तियों का साथ देना
चाहिए ताकि एक औरत के मनुष्य के रूप में जिंदा रहने की स्थितियां बहाल हो सकें।
हमें स्त्री के देह की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए, उसकी किसी
भी तरह की खरीद-बिक्री को प्रोत्साहित करने के बजाए, उसे
रोकने का काम करना चाहिए। हमें स्त्री की गरिमा की बात करनी चाहिए- उसे बाजार में
उतारने की नहीं।
वेश्यावृत्ति और कानून
क्या वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता
मिलनी चाहिए ?
देश के उच्चतम न्यायालय ने 9 दिसंबर 2009 को एनजीओ, बचपन
बचाओ आंदोलन के द्वारा दाखिल एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान भारत के सौलीशीटर
जेनरल से पूछा था कि जब आप कहते हैं कि वेश्यावृत्ति दुनियां का सबसे पुराना
व्यवसाय है और क़ानून के द्वारा आप इसे खत्म करने से सक्षम नहीं हैं तो क्यों नहीं
इसे कानूनी मान्यता दे देते हैं ? तब आप इसकी मॉनिटरिंग कर
सकते हैं, इसके पुनर्वास की व्यवस्था के साथ इन्हें मेडिकल
सहायता भी दे सकते हैं. न्यायालय ने विचार तक रखे कि यदि इसे कानूनी मान्यता दे दी
जाय तो‘ट्रैफिकिंग’ पर रोक लग सकती है.
वैसे भी दुनियां के किसी भी क्षेत्र में कड़ाई से इसे नहीं रोका जा सका है. हालांकि
इससे पूर्व जुलाई 1997 में गौरव जैन बनाम यूनियन ऑफ इन्डिया
के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृति को ‘मानवता के
विरूद्ध अपराध, मानवाधिकार का उल्लंघन और संविधान तथा
मानवाधिकार अधिनियम को ठेस पहुंचाने वाला’ कहते हुए सरकार को
निर्देश दिया था कि महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने के लिए वेश्यावृति के
प्रत्येक रूप को समाप्त करें.
दरअसल अबतक दुनियां भर में जहाँ भी वेश्यावृत्ति को कानूनी घोषित किया गया हैं वहाँ इसके लिए सरकार द्वारा खास नियम बना दिए गए हैं जिससे कहा जाता है कि वैसे जगहों पर ‘गर्ल्स ट्रैफिकिंग’, लड़कियों को इस धंधे में जबरन धकेलने की घटना या इससे सम्बंधित महिलाओं पर अत्याचार में कमी आई है. जबकि भारत में ये बड़ा मुद्दा है.
भारत में वेश्यावृत्ति से सम्बंधित मूल क़ानून ‘अनैतिक व्यापार (निरोध) अधिनियम 1956’भी तकनीकी रूप से पूरी तरह इस धंधे को निजी रूप से करने पर रोक से सम्बंधित क़ानून की व्याख्या नहीं कर पाता है. पर हाँ, सार्वजनिक स्थानों पर ग्राहकों को प्रलोभन देने आदि पर कानूनी रोक अवश्य है. हालांकि इस क़ानून में वर्ष 1978 और 1986 में में संशोधन भी किये गए पर क़ानून अपना लक्ष्य पूरा करने में असफल रहा.
सवाल बड़ा है, यदि क़ानून के शब्दों की तकनीकी गहराई में जाएँ तो भारतीय क़ानून अनैतिक व्यापार अधिनियम के अनुसार वेश्यावृति ‘अनैतिक’ है न कि ‘गैरकानूनी’. मालूम हो कि कई देशों में लाइसेंसी वेश्यालय संचालकों द्वारा सरकार को बड़ी मात्रा में टैक्स भी दिए जाते हैं और सरकार भी उन्हें चिकित्सीय सहायता आदि प्रदान करती हैं.
वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता मिले या नहीं, ये तो बड़े बहस का मुद्दा है पर कई लोगों का ये भी मानना है कि भारत जैसे देश में जहाँ दुष्कर्म की घटनाएं खास कर बच्चियों के साथ लगातार बढ़ रही है, वहां यदि वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता दे दी जाय तो ऐसे घटनाओं में कमी आ सकती है. पर बाल वेश्यावृत्ति या इस धंधे में जबरन धकेले जाने के खिलाफ कड़े कदम उठाने की आवश्यकता तो पड़ेगी ही.
वेश्यावृत्ति को क्यों न दी जाए कानूनी
मान्यता?
वेश्यावृति को दुनिया के कई देश जहां इसे कानूनी
जामा पहना चुके हैं वहीं हम अब भी अपराध की श्रेणी में रखे हुए हैं। जोर-जबरदस्ती
से तो बात समझ आती है, लेकिन अपनी मनमर्जी से जिस्म का
सौदा करने वाली महिलाओं को भी गुनाहगार समझा जाता है। दरअसल, 21वीं सदी में भी रूढिवादी मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए हैं।
हम सेक्स करना तो चाहते हैं, लेकिन उसके सार्वजनिक उच्चारण में शर्म महसूस होती है। वेश्यावृति एक ऐसा
व्यवसाय है जो लगातार फल-फूल रहा है। इसमें कोई दोराय नहीं कि यहां जोर-जबरदस्ती
भी की जाती है, लेकिन अपनी मर्जी से इसका हिस्सा बनने वालों
की संख्य़ा भी कम नहीं है। कम मेहनत में ज्यादा कमाई के चलते कई युवतियां सहर्ष
इसमें शामिल हो जाती हैं। ऐसे अनगिनत मामले पुलिस और समाज के सामने आ चुके हैं,
जिसमें उच्च शिक्षित परिवार की लड़कियों ने बगैर किसी दबाब के ये
राह चुनी। लोगों को लगता है कि अगर वेश्यावृति को कानूनी मान्यता मिल गई तो 18 की दहलीज पार करते-करते ज्यादातर युवा कोठे की सीढिय़ां चढ़े लेंगे,
लड़कियों का शोषण किया जाएगा। संभव है ऐसा हो, लेकिन ये लंबे वक्त तक कायम नहीं रहेगा। ऐसा इसलिए कि जब हम बहुतायत में
कुछ प्राप्त कर लेते हैं तो उसकी अहमियत कम हो जाती है। विदेशों में सेक्स एक आम
बात है, स्कूल से कॉलेज तक का सफर तय करते-करते युवा न जाने
कितनी बार अपनी कामेच्क्ष का पूर्ति कर लेते हैं।
यहां तक कि उनके परिवार वालों को भी इसमें ज्यादा कुछ बुरा नजर नहीं आता। अगर वहां भी सेक्स को लेकर भारत जैसा माहौल होता तो उनके लिए भी ये किसी पाप से कम नहीं था। कहने का मतलब है कि अगर लोगों के पास अपनी सेक्स की पूर्ति के लिए आसान साधन उपलब्ध होंगे तो सेक्स को लेकर उनकी उत्तेजना और दिलचस्पी में निश्चित तौर पर कमी देखने को मिलेगी। इसके अलावा संभव है कि बलात्कार जैसे मामलों में भी कमी आए। जिन देशों में वेश्यावृति को कानूनन मान्यता प्राप्त है, वहां बाकायदा इसका रिकॉर्ड रखा जाता है। इसकी भी व्यवस्था की गई है कि जबरन किसी को वेश्यावृति के लिए मजबूर न किया जाए। ये व्यवस्था हमारे देश में भी हो सकती है, बशर्ते हम अपनी सोच में बदलाव लाने के लिए तैयार हों।
ये एक सर्वविदित सत्य है की वेश्यावृति दुनिया के
हर कोने में, जहाँ भी इन्सान बसता है वहां, कई हजारो सालो से विद्यमान है. चूँकि आदमी का स्वभाह है ऐसा है कि इस धंधे
पर रोक लगाना नामुमकिन सा है. आज दुनिया के जिन भी देशो में देह व्यापर को
स्वीकृति मिली हुई है वहां पर महिलाओ पर अत्याचार काफी कम है. भारत में इसे क़ानूनी
मान्यता दे देने से मज़बूरी अपना जिस्म बेच कर पेट भरने वाली नारी को सरकार और समाज
से शायद कोई सहायता न भी मिले पर कम से कम पुलिस और दलालों से मुक्ति मिल जाएगी जो
आज इन सभी से पिट रही है.
देश में बढ़ रहे बलात्कार के अपराधों को मद्देनज़र
रखते हुए यह बहुत आवश्यक है कि वैश्यावृति को क़ानूनी मान्यता दे दी जाए. वैसे भी
कोई भी देश अथवा समाज आज तक इस पर रोक नहीं लगा पाया. सेक्स इंसान की मूलभूत
बाइयोलॉजिकल आवश्यकता है. कई बार यह इतनी प्रबल हो जाती है कि इंसान अपने पर काबू
नहीं रख सकता और इस प्रकार ब्लात्कार जैसे जघन्य अपराध करने पर भी उतारू हो जाता
है. यदि वेश्या वृति को क़ानूनी मान्यता मिल जाए तो बलात्कार जैसे अपराधों में
बहुत कमी आ जाएगी. इस के साथ ही सेक्स वर्करों की पुलिस तथा दलालों द्वारा किए जा
रहे सोशण में भी कमी आएगी. जब सेक्स वर्करों को क़ानूनी मान्यता मिल जाएगी तो उन
को मेडिकल सेवाएं भी उप्ल्भ्ध हो जाएंगी इस प्रकार एड्स जैसे भयानक रोगों के
प्रसार पर भी प्रभावी लगाम लगेगी. सेक्स वर्करों के बच्चों को समाज में वाजिब
मान्यता मिल जाएगी. इस के इलावा सरकार को सर्विस टॅक्स के रूप में काफ़ी धन भी
प्राप्त होगा. सेक्स सर्विस को क़ानूनी मान्यता में सब की भलाई है.
वेश्यावृत्ति को कानूनी वैधता – सही या गलत ?
वेश्यावृत्ति को दुनिया के सबसे पुराने पेशों में
से एक माना जाता है। प्राचीन काल से ही समाज में देह व्यापार से आजीविका अर्जित
करने वाले समूहों का अस्तित्व मिलता है। इसके अस्तित्व के साथ ही इस पेशे को
नियम-कानूनों के दायरे में लाने की कोशिशें भी होती रही हैं। भारत के प्राचीन
ग्रंथ अर्थशास्त्र तक में वेश्याओं को राजतंत्र का अविच्छिन्न अंग माना गया है साथ
ही उन पर कुछ नियम-कानून आरोपित किए गए हैं।
भारत में वेश्यावृत्ति या देहव्यापार अभी भी अनैतिक
देहव्यापार कानून के तहत आता है और अकसर इसे कानूनन वैध बनाए जाने की मांग उठती
रही है। लेकिन समाज में कुछ वर्गों द्वारा वेश्यावृत्ति को कानूनी तौर पर वैध बनाए
जाने का कड़ा विरोध भी हो रहा है। इसके पीछे उनकी चिंता ये है कि यदि वेश्यावृत्ति
को वैध घोषित कर दिया जाएगा तो इससे समाज का नैतिक-चारित्रिक पतन होने लगेगा। ऐसा
होने से समाज का नैतिक पतन होगा और महिलाओं के उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ेंगी। सेक्स
रैकेट चलाने वाले लोग बेबश लड़कियों और महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठाएंगे।
एक पूरा का पूरा शोषण का चक्र और तंत्र यहां सक्रिय दिखता है। वेश्यावृत्ति के कई रूप हैं जहां कई तरीके से स्त्रियों को इस अँधकार में धकेला जाता है। आदिवासी इलाकों से लड़कियों को लाकर मंडी में उतारने की घटनाएं हों, या बंगाल और पूर्वोत्तर की स्त्रियों की दारूण कथाएं ,सब कंपा देने वाली हैं। किंतु सारा कुछ हो रहा है और हमारी सरकारें और समाज सब कुछ देख रहा है।
वेश्यावृत्ति समाज पर एक धब्बा है और इसका ख़ात्मा
किया जाना चाहिए. ये समाज में महिलाओं पर एक प्रकार का अतयाचार है और इससे नग्नता
को बढावा मिलता है. ग़रीब-मज़दूर की
इन बहन, बहु-बेटियों को
शरारती लोगों ने जबरन धकेला है जंहा से वापस आने का कोई रास्ता इस समाज ने खुला
नहीं छोड़ा है
लेकिन वहीं कुछ मानवाधिकार संगठनों सहित कई प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों का
कहना है कि देश में सेक्स कर्मियों को दोहरा शोषण झेलना पड़ता है। समाज तो उन्हें
प्रताड़ित करता ही है पुलिस भी उन्हें ही दोषी ठहराती है। यह तबका उन्हें पीड़ित
मानता है और उसकी मांग ये है कि सेक्स कर्मियों से पीड़ित की तरह ही व्यवहार किया
जाए।
सेक्स अपराधों पर रोक के लिए जरूरी है
वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता
सेक्स मनुष्य की बुनियादी जरूरत है। भूख के बाद
सेक्स,
मनुष्य की सबसे प्रमुख वृत्ति है। सेक्स की इस अपमानजनक और बदसूरत
अभिव्यक्ति को रोकने के लिए, हमें सामाजिक परिप्रेक्ष्य में
इस समस्या से निपटना होगा, क्योंकि किसी भी तरह की सजा ऐसे
जघन्य और अमानवीय कृत्य को पूरी तरह रोकने में सक्षम नहीं होगा।
बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की घटनाओं में लगातार
वृद्धि हो रही है और देश के किसी न किसी कोने से बलात्कार की खबर प्रतिदिन अखबारों
में पढऩे को मिल जाती है। यहां तक कि नाबालिग और बच्चे भी इसके शिकार होने से नहीं
बच पा रहे हैं। इससे जाहिर होता है कि सभ्य और समझदार लोगों का संदेश अब भी
सेक्स-शिकारियों तक नहीं पहुंचा है।
महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनके खिलाफ
अपराधों की रोकथाम के लिए सख्त कानून की मांग भी स्वाभाविक है। लेकिन बलात्कार, व्याभिचार, कौटुंबिक व्याभिचार, अनाचार, छेड़छाड़ और महिलाओं की खरीद-फरोख्त जैसे
अपराधों के कारणों की गहराई में जाने की हमें जरूरत है। इस तरह के क्रियाकलापों को
समझने के लिए हमें मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक मानकों
के साथ-साथ अन्य विस्तृत मापदंडों को भी शामिल करना होगा।
सेक्स मनुष्य की बुनियादी जरूरत है। भूख के बाद
सेक्स,
मनुष्य की सबसे प्रमुख वृत्ति है। सेक्स की इस अपमानजनक और बदसूरत
अभिव्यक्ति को रोकने के लिए, हमें सामाजिक परिप्रेक्ष्य में
इस समस्या से निपटना होगा, क्योंकि किसी भी तरह की सजा ऐसे
जघन्य और अमानवीय कृत्य को पूरी तरह रोकने में सक्षम नहीं होगा। इसमें कोई शंका
नहीं है कि कानून सख्त होना चाहिए। पुलिस को और अधिक सर्तक रहने की जरूरत है।
न्याय प्रक्रिया को और तेज बनाने की आवश्यकता है।
लेकिन सवाल उठता है कि कोई भी व्यक्ति इस तरह के
असभ्य और बर्बर कृत्य में क्यों शामिल होता है? जवाब साधारण है -
वह अपनी सेक्स जरूरतों को सभ्य और कानूनी तरीके से पूरी करने में असमर्थ हैं।
हमारे समाज का दोहरा नैतिक मानक, पुरूषों के बेलगाम भोग को उदार बनाता है, जबकि
महिलाओं की किसी भी नैतिक चूक को अक्षम्य और अपमानजनक मानता है। पुरूषों को माफ
करने का रवैया, उसके सामाजिक रसूख और गरिमा को खोए बिना उसे
विवाह पूर्व और विवाहेत्तर सेक्स जरूरतों को पूरा करने में सहयोगी होता है। लेकिन,
भारत जैसे पारंपरिक नैतिक समाज में किसी पुरूष की सेक्स जरूरतों की
पूर्ति सिर्फ जिस्म बेचने वाली किसी सार्वजनिक महिला से ही हो सकती है। इसलिए कहा
जाता है कि एक वेश्या, सम्मानजनक महिलाओं के सदाचार की
रखवाली करती है। उन्हें पुरूषों के अतिरिक्तजूनून से राहत देने वाला 'सेफ्टी वॉल्व’ भी कहा जाता है। इस प्रकार वेश्यावृत्ति
को एक आवश्यक बुराई कहा जा सकता है।
यदि
सेक्स वर्करों को कानूनी अधिकार देने के लिए एक व्यापक कानून होता तो वे पुलिस के
पंजों और असमाजिक तत्वों से खुद को मुक्त महसूस करतीं। उनका स्वास्थ्य भी बेहतर
रहता और उनके बच्चों की देखभाल भी बेहतर होती। वेश्यावृत्ति को वैधता बनाने वाला
कानून उनके पुनर्वास और उचित शारीरिक एवं मानसिक देखभाल में मदद करता। तब उन्हें
यौनिक बीमारियों के संवाहक के रूप में दुष्प्रचारित होने से मुक्ति मिल जाती।
यह जाना माना तथ्य है कि जिन देशों में
वेश्यावृत्ति कानूनी रूप से वैध है, वहां सेक्स से
संबंधित अपराध भी कम हैं। अत:, समय की मांग है कि इसके लिए
एक उचित कानून बनाया जाना चाहिए। कुछ समय पहले उच्चतम न्यायालय ने भी अपना मत
व्यक्त करते हुए कहा था कि सेक्स-वर्करों को सौहाद्र्रपूर्ण माहौल मिलना चाहिए,
जहां वे गरिमा के साथ अपने पेशे को जारी रख सकें। न्यायालय ने
सेक्स-वर्करों की जिंदगी से जुड़ी परेशानियों का अध्ययन करने के लिए कुछ वरिष्ठ
वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की अगुआई में एक आयोग का गठन किया था और उनके
मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए सुझाव मांगा था। उसके पहले सर्वोच्च न्यायालय
ने कहा था कि वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता, महिलाओं के
अनैतिक देह-व्यापार पर अंकुश लगाने का एक विकल्प हो सकता है।
अब समय आ गया है कि सरकार को सर्वोच्च न्यायालय की
राय पर सेक्स वर्करों को मान्यता देने के लिए कानून बनाना चाहिए, ताकि वे अपना व्यवसाय बिना किसी हस्तक्षेप के जारी रख सकें और अपने
ग्राहकों को शांतिपूर्ण ढंग से सेवा प्रदान कर सकें।
इस तरह उन्हें समाज की मुख्यधारा में आसानी से लाया
जा सकता है। बहुत सारे समाजशास्त्रियों का मानना है कि सरकार का यह कदम अपराध, खासकर बलात्कार को कम करने में कारगर सिद्ध होगा। यह सेक्स स्कैंडल और
अफेयर को रोकने में भी मददगार होगा।
भारत में वेश्यावृत्ति से जुड़े गंभीर तथ्यो
अखबारों, टीवी या न्यूजज वेबसाइटों पर अकसर आप सेक्सस रैकेट के खुलासों की खबरें पढ़ते होंगे, जिनकी हेडलाइन कुछ ऐसी होती हैं- 'ब्यूकटी पार्लर में चल रहा था देह व्या पार', 'आईएएस के घर पर सेक्सत रैकेट', 'मुंबई की रेव पार्टी में हाई प्रोफाइल वेश्यागएं गिरफ्तार...’ऐसी खबरें, आप ज्याीदा से ज्याहदा एक हफ्ते तक याद रखते होंगे। यदि यह सवाल किया जाये कि वेश्यासवृत्ति के पीछे सबसे बड़ा कारण क्याह है, तो अधिकांश लोगों का जवाब होता है- यौन इच्छाय।
यदि आपका भी यही जवाब है, तो हम आपके सामने जो 40 तथ्यय प्रस्तुात करने जा रहे हैं, उन्हेंय पढ़ने के बाद आपका जवाब निश्चित तौर पर बदल जायेगा। इसके बाद यदि आप किसी रेड-लाइट एरिया से निकलेंगे, तो ये तथ्यब आपको जरूर याद आयेंगे। इसके बाद यदि आप किसी सेक्सस रैक्टव, देह व्याकपार या वेश्याावृत्ति से जुड़ी खबरें पढ़ेंगे, तो आपको ये 40 तथ्य जरूर याद आयेंगे। साथ ही आपके मन में उन लड़कियों व महिलाओं के प्रति दया आयेगी, जो इस दलदल में फंस चुकी हैं।
सबसे बड़ी सेक्सं इंडस्ट्री मुंबई
राष्ट्री य एड्स कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार मुंबई देश की सबसे बड़ी सेक्सं इंडस्ट्री है। यहां पर 2 लाख से ज्याअदा वेश्या एं हैं। सबसे खतरनाक बात यह है कि यहां 50 फीसदी से अधिक वेश्यासएं एचआईवी से ग्रसित हैं। वर्ष 2000 में मुंबई में वेश्या ओं की संख्याव 1 लाख थी।
हर साल 10 फीसदी बढ़ोत्तारी
यह संख्या हर साल 10 फीसदी की दर से बढ़ रही है। देह व्यावपार के मामले में कोलकाता दूसरे नंबर पर है। ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार मुंबई एशिया की सबसे बड़ी सेक्सं इंडस्ट्रीइ है।
वेश्याडवृत्ति का कड़वा इतिहास
भारत में वेश्याृवृत्ति का चलन आज का नहीं बल्कि सदियों से चला आ रहा है। प्राचीन भारत में 'नगरवधु' हुआ करती थीं। दूसरीं सदी में ईसापूर्व में लिखी गई संस्कृनत की कहानी मृचाकाटिका में वैशाली की नगरवधु इसी काम के लिये जानी जाती है।
वेश्याैवृत्ति का इतिहास 17वीं सदी में
17वीं और 16वीं सदी में गोवा में पुर्तगाली कालोनी हुआ करती थी। यहां पर जापानी दासियां हुआ करती थीं, जिनमें अधिकांश जापान की महिलाएं व कम उम्र की लड़कियां होती थीं, जिन्हेंम दासी बनाकर उनके साथ सेक्सउ किया जाता था। पुर्तगाली व्याोपारी इन लड़कियों को जापान से पानी के जहाज में भारत लाते थे। यही कारण है कि सदियों से गोवा देह व्यापपार का गढ़ बना हुआ है।
19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में
19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में अंग्रेजों ने यूरोप और जापान से लड़कियों को लेकर आते थे और भारत में काम कर रहीं अंग्रेजों की सेनाओं में सैनिकों को यौन सुख पहुंचाने का दबाव डालने लगे। ये वेश्यानएं सैनिकों को यौन सुख प्रदान करती थीं। यह भी एक बड़ा कारण है कि हजारों की संख्या में भारतीय लोग अंग्रेजी सेना में यौन सुख के लालच में भर्ती हुए।
अंग्रेज़ शासन में वेश्यानवृत्ति
20वीं सदी के आते-आते क्रूर अंग्रेजों ने भरतीय लड़कियों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया। यूरोप से आयीं वेश्यारएं जब अपनी सेवाएं देने में अक्षम हो जातीं, तो उन्हेंआ छावनी में सैनिकों की सेवा करने व उनके लिये भोजन पकाने के लिये तैनात कर दिया जाता।
18 की होने से पहले ही बनीं वेश्या
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की 2007 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 30 लाख से ज्यादा फीमेल सेक्स वर्कर हैं, जिनमें 35.47 सेक्स वर्कर 18 साल की आयु से पहले ही वेश्या बन गईं। वहीं ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट ने और भी खतरनाक आंकड़े प्रस्तुत किये। इस रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत में 2 करोड़ सेक्स वर्कर हैं। जिनमें सिर्फ मुंबई में ही 2 लाख हैं। 1997 से 2004 के बीच वेश्याओं की संख्या में 50 फीसदी इजाफा हुआ।
एचआईवी संक्रमित हो रहा सूरत
एड्स कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात का सूरत शहर तेजी से एचआईवी की चपेट में आ रहा है। 1992 में यहां पर कुल वेश्याओं में 17 प्रतिशत एचआईवी से ग्रसित थीं, वहीं सन 2000 में बढ़कर 43 प्रतिशत हो गईं। 2008 की रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2008 में यहां की कुल वेश्याओं में 58 फीसदी एचआईवी संक्रमित पायी गईं। यानी सूरत में वेश्यावृत्ति के जाल में फंसने का मतलब एड्स को न्योता देना है।
महाराष्ट्र-कर्नाटक में देवदासी बेल्ट
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के बॉर्डर पर एक के बाद एक गांव व कस्बे हैं, जहां वेश्यावृत्ति का व्यापार फलफूल रहा है। इन इलाकों को 'देवदासी बेल्ट' भी कहा जाता है।
देश का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया कोलकाता में
देश का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया कोलकाता का सोनागाची इलाका है। दूसरे नंबर पर मुंबई का कामतिपुरा, फिर दिल्ली की जीबी रोड, आगरा का कश्मीरी मार्केट, ग्वालियर का रेशमपुरा, पुणे का बुधवर पेट हैं। इन स्थानों पर लाखों लड़कियां हर रोज बिस्तर पर परोसी जाती हैं।
छोटे शहरों में रेडलाइट एरिया
यह कहना गलत नहीं होगा कि सेक्स टूरिज्म के बड़े स्पॉट माने जाते हैं। इनके अलावा अगर 2-टियर व 3-टियर शहरों की बात करें तो वाराणसी का मडुआडिया, सहारनपुर का नक्कासा बाजार, मुजफ्फरपुर का चतुर्भुज स्थान( आंध्र प्रदेश के पेड्डापुरम व गुडिवडा, इलाहाबाद का मीरागंज, नागपुर का गंगा जुमना और मेरठ का कबाड़ी बाजार इसी काम के लिये फेमस हैं।
12 लाख से ज्यादा बच्चियां हैं वेश्याएं
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि देश में 12 लाख से ज्यादा बच्चियां वेश्यावृत्ति के कार्य में लिप्त हैं। यह खुलासा देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो की रिपोर्ट में हुआ, जो मई 2009 में प्रकाशित की गई।
10 करोड़ महिलाएं वेश्यावृत्ति में
सीबीआई की रिपोर्ट, जिसे गृह सचिव मधुकर गुप्ता ने जारी किया उसके अनुसार देश में 10 करोड़ महिलाएं वेश्यावृत्ति में फंस चुकी हैं। इनमें 40 फीसदी बच्चियां शामिल हैं।
90 प्रतिशत लड़कियां देश के अंदर बेची जाती हैं
सीबीआई की रिपोर्ट 2009 के अनुसार देश में देह व्यापार में लिप्त लड़कियों में से 90 प्रतिशत तो देश के अंदर ही एक कोने से दूसरे कोने में ले जाकर बेच दी जाती हैं।
देवस्थानों पर बढ़ रही वेश्यावृत्ति
सीबीआई की रिपोर्ट 2009 के अनुसार देश के तमाम देवस्थानों पर जहां लाखों की संख्या में तीर्थयात्री ईश्वर के विभिन्न रूपों के दर्शन करने आते हैं, वहां पर वेश्यावृत्ति तेजी से बढ़ रही है। यह चलन वर्ष 2000 के बाद से तेजी से बढ़ा है। तत्कालीन गृह सचिव मधुकर गुप्ता के अनुसार सीबीआई अभी तक आंकड़े नहीं जुटा पायी है कि कितनी लड़कियां देवस्थानों के आस-पास बने होटलों, धर्मशालाओं व गेस्ट हाउस में अपनी यौन सेवाएं दे रही हैं।
बंगाल की चुकरी प्रथा
सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि हमारे देश के कई हिस्सों में वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देने वाली कई प्रथाएं चली आ रही हैं। उदाहरण के तौर पर बंगाल की चुकरी प्रथा ही ले लीजिये, जिसके अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति कर्ज चुकाने में नाकाम रहता है, तो उसके परिवार की महिलाओं को अपना शरीर देकर कीमत चुकानी होती है। इसके अंतर्गत एक साल तक लड़की को वेश्या के रूप में मुफ्त में काम करना होता है। इसके लिये 1976 में में सरकारी कानून आया, जिसके अंतर्गत तब से अब तक करीब 2,850,000 महिलाओं को कर्ज चुका कर छुड़ाया जा चुका है।
पविार के पालन पोषण के लिये बनीं वेश्या
वेश्यावृत्ति का एक और कड़वा सच यह है कि जब परिवार में आय के साधन बंद हो जाते हैं, तब परिवार की सबसे बड़ी लड़की यह राह चुनती है। एक रिपोर्ट के अनुसार वेश्यावृत्ति में आयीं महिलाओं में 22 फीसदी सिर्फ इसी कारण आयीं।
2 लाख नेपाली लड़कियां वेश्यावृत्ति में
नेपाल की एनजीओ मैती की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 2 लाख नेपाली लड़कियां देह व्यापार में लिप्त हैं। इनमें से अधिकांश 14 साल की उम्र से कम हैं।
वर्जिन नेपाली लड़कियों की डिमांड
एनजीओ मैती की रिपोर्ट के अनुसार भारत के लोगों में नेपाल से लायी गईं वर्जिन लड़कियां ज्यादा पसंद की जाती हैं। उनके दाम भी काफी ऊंचे लगते हैं। यही कारण है कि नेपाल से लड़कियों को बहला फुसला कर या अगवा कर के भारत लाये जाने का चलन बढ़ रहा है।
5.1 % मां-बाप के कहने पर बनीं वेश्या
1988 में ऑल बंगाल विमेन यूनियन द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में लड़कियों के वेश्यावृत्ति में आने के कारणों का खुलासा किया गया। रिपोर्ट के अनुसार 5.1 फीसदी महिलाएं माता-पिता के कहने पर इस धंधे में आयीं।
13% दोस्तों के चक्कर में बनीं वेश्या
सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार 13.8 प्रतिशत लड़कियां दोस्तों के चक्कर में पड़कर वेश्यावृत्ति में आयीं। इसमें खास आकर्षण पैसा कमाना था।
22 प्रतिशत महिलाएं अपने ही इलाकों में
22.6 प्रतिश महिलाएं अपने अपने ही इलाकों में अपना जिस्म बेचती हैं। यानी ज्यादातर लोगों को उनके बारे में पता होता है।
दलाल के चक्कर में
23 प्रतिशत महिलाएं अंजान व्यक्ति अथवा दलाल के चक्कर में फंस कर वेश्यावृत्ति में आयीं।
13 प्रतिशत महिलाएं रिश्तेदार के चक्कर में
रिपोर्ट के अनुसार 13 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं, जो अपनी बहन या अन्य महिला रिश्तेदार के इस धंधे में होने के बाद दाखिल हुर्इं। उन्हीं से प्रेरित होकर।
10 प्रतिशत को मिला प्यार में धोखा
रिपोर्ट के अनुसार 10 फीसदी महिलाएं प्यार में धोखा खाने पर इस व्यापार में आयीं। या फिर उन्हें शादी का झूठा प्रस्ताव देकर इस प्रोफेशन में धकेल दिया गया।
2.5 प्रतिशत महिलाएं अपने पति की सहमति से
रिपोर्ट के मुताबिक 1.5 प्रतिशत महिलाएं अपने पति की सहमति से इस व्यापार में उतरीं। यह रिपोट्र पश्चिम बंगाल पर आधारित है। इसे भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो आंकड़े थोड़े ऊपर नीचे हो सकते हैं।
जिगोलो सेवाएं
भारत में महिलाओं के बीच वेश्यावृत्ति तो सदियों से चली आ रही है, लेकिन अब पुरुष भी इस धंधे में पड़ने लगे हैं। ऐसे पुरुषों को जिगोलो कहा जाता है।
3 हजार तक फीस
भारत में जिगोलो की सेवाएं दिल्ली में तेजी से बढ़ रही है। दिल्ली में एक जिगोलो एक रात के 1 से 3 हजार रुपए तक लेता है। हालांकि ये सभी कंडोम का प्रयोग करते हैं।
हैंडसम लड़के बन रहे जिगोलो
पैसा कमाने की होड़ में डिग्री कॉलेजों के लड़के इस व्यापार में लिप्त हो रहे हैं। इन लड़कों से सेवाएं लेने वाली महिलाएं भी बड़े घरानों की होती हैं, जो एक बार के 3 हजार रुपए तक देती हैं। दिल्ली में करीब 20 एजेंसियां हैं, जो जिगोलो की सप्लाई करती हैं।
मिडिल क्लास क्लब में ज्यादा
जिगोलो का ट्रेंड दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ आदि में स्थिति मिडिल क्लास नाइट क्लबों में तेजी से बढ़ा है। इनकी सेवाएं समलैंगिक भी लेते हैं।
कंडोम का प्रयोग करते हैं
1992 में एक सर्वे में पाया गया कि मात्र 27 प्रतिशत सेक्स वर्कर ही कंडोम का प्रयोग करते हैं, जबकि 1995 में यह संख्या 82 फीसती तक पहुंच गई और 2011 की रिपोर्ट के अनुसार 86 फीसदी सेक्स वर्कर कंडोम का प्रयोग करते हैं। यानी जितनी तेजी से यह व्यापार बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से एड्स संबंधी जानकारियां भी।
घरेलू हिंसा
बीबीसी वर्ल्ड ट्रस्ट के द्वारा कराये गये एक अध्ययन के अनुसार घरेलू हिंसा भी वेश्यावृत्ति में जाने के लिये लड़की को प्रेरित करती है। शुरुआत में जब घर से गालीगलौज मिलती है और माता-पिता, भाई बहन साथ नहीं देते, ऐसी स्थिति में लड़कियां यह रास्ता अख्तियार करती हैं।
क्या कहता है नियम
ऑल इंडिया सप्रेशन ऑफ इम्मॉरल ट्रैफिक एक्ट के अनुसार भारत में वेश्यावत्ति को धीरे-धीरे अपराध के दायरे में लाने के प्रयास चल रहे हैं।
कॉलगर्ल के नंबर
एआईएसआईटीए के अंतर्गत कोई भी वेश्या अपना फोन नंबर सार्वजनिक स्थल पर प्रकाशित नहीं कर सकती है। इसके लिये दह महीने की जेल अथवा जुर्माना हो सकता है।
सेक्स करता पकड़ा जाता
यदि कोई व्यक्ति 18 साल से कम उम्र की वेश्या के साथ सेक्स करता पकड़ा जाता है तो उसे 7 से 10 वर्ष की कैद हो सकती है।
30 रुपए से शुरू होती है कीमत
भारत में कई इलाके ऐसे हैं, जहां पर वेश्यावृत्ति का स्तर बहुत की बुरा है। ऐसी जगहों पर 30 रुपए से वेश्याओं की कीमत की शुरुआत होती है। ऐसा ज्यादातर गांव व छोटे कस्बों में होता है और यहीं पर असुरक्षित यौन संबंध ज्यादा बनते हैं।
चाइल्ड प्रॉस्टिट्यूट्स
एक रिपोर्ट के अनुसार 25 फीसदी चाइल्ड प्रॉस्टिट्यूट्स या तो अगवा कर के लायी गई होती हैं या उन्हें खरीद कर लाया जाता है। वहीं 18 फीसदी वेशयाओं का तो 13 से 18 साल की उम्र में ही कौमार्य भंग हो जाता है।
बलात्कार के बाद बेच दी जाती
नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 6 प्रतिशत लड़कियां बलात्कार के बाद बेच दी जाती हैं, उसके बाद देह व्यापार के धंधे में आ जाती हैं।
बेच दिया
8 प्रशित वेशयाओं ने बताया कि उन्हें उनके पिता ने बड़े व्यापारियों के हाथों बेच दिया, जिस वजह से वो आगे चलकर इस व्यापार में आयीं।
50 मिलियन तो सिर्फ भारत से
दुनिया भर में करीब 200 मिलियन वेश्याएं यौन संक्रमित बीमारियों से ग्रसित हैं, जिनमें से 50 मिलियन तो सिर्फ भारत से आती हैं।
वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए या नहीं ?
ReplyDeleteमेरा मनना है .................मेरा तर्क है ..........
मेरे विचार से भारत को उसी समय वेश्यावृत्ति को क़ानूनी दर्जा देना चाहिए जब वो ये सुनिश्चित कर सके कि क़ानून बनने के बाद किसी भी महिला के साथ कुछ भी ग़लत नहीं होगा. ख़ासकर महिला तस्करी नहीं होगी.अगर हम ऐसा कर पाने में समर्थ हैं तो फिर ज़रूर भारत को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए !
वेश्यावृत्ति को क़ानूनी मान्यता दे देनी चाहिए क्योंकि इससे हमें एडस को रोकने में मदद मिलेगी !
वेश्यावृत्ति पर जो प्रतिबंध है उसे हटाया जाना चाहिए क्योंकि इससे हिंसा घटेगी और सेक्स वर्कर की समाजिक हैसियत में सुधार होगा !
वेश्यावृत्ति को क़ानूनी मान्यता इसलिए भी दे देनी चाहिए ताकि मानसिक और शारीरिक हिंसा को कुछ देर के लिए रोका जा सके !
देश में आज के हालात को देखते हुए यह बेहद ज़रूरी हो गया है कि वेश्यावृत्ति के पक्ष में क़ानून बने क्योंकि वेश्ययों का शोषण हो रहा है इससे बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है !