10/14/14

porn effect

पोर्न क्या होता है।

पॉर्नोग्राफ़ी उन तस्वीरों, फिल्मों एवं विडियो को कहते हैं जो की उत्तेजना को बढ़ाने के लिए बनाया जाती हैं।
सॉफ्ट पॉर्न में कुछ अपनी कल्पना के लिए छोड़ दिया जाता है। इसमें एक पुरुष एवं महिला को चुम्बन लेते हुए या किसी महिला को एक उत्तेजक या सेक्सी अंतर्वस्त्र में दर्शाया जा सकता है। हार्ड कोर पॉर्न सेक्स को बहुत खुले तरीके से दर्शाता है उदाहरण के लिए, एक र्निवस्त्र महिला या संभोग करते हुए पुरुष एवं महिला की तस्वीर या फिल्म।

पॉर्न वास्तविक नहीं होता है

पॉर्न देखते समय आप अक्सर ऐसी चीजें देखते हैं जो ज़्यादातर लोग अपने वास्तविक जीवन में अनुभव नहीं करते हैं। पॉर्न में कुछ भी संभव है जैसे कई लोगों का एक साथ सेक्स में शामिल होना, अनजान लोगों के साथ सेक्स करना या आखों पर पट्टी बाँध कर सेक्स करना।
पर याद रखें की पॉर्न फि़ल्मों में सेक्स वास्तविक जीवन के सेक्स के जैसा नहीं होता है। यह एक मनघढ़न्त या फिल्मी कहानी की तरह होता है जिसकी आप कल्पना कर सकते हैं। वास्तविक जीवन में पॉर्न फि़ल्मों जैसे सेक्स की अपेक्षा न करें।
इतना ही नहीं, सामान्यतः पॉर्न फि़ल्मों के अभिनेताओं की मांसपेशियों एवं लिंग असल में वास्तविक जीवन में लड़कों एवं पुरुषों से बड़े होते हैं। और अभिनेत्रियाँ छरहरी या पतली होती हैं और उनके स्तन वास्तविक जीवन में लड़कियों एवं महिलाओं के स्तनों से बड़े होते हैं - और उन्होंने स्तनों को बढ़ाने के लिए अक्सर कॉस्मेटिक सर्जरी या शल्यक्रिया कराई होती है। और क्या वास्तव में आपकी गर्लफ्रेन्ड भी इतनी ज़ोर से आहें भरती हैं - या इतनी आसानी से चरमआनन्द प्राप्त कर लेती हैं?
याद रखें, ज़्यादातर पॉर्न पुरुषों के लिए बनाए गए होते हैं और उन्हीं की कल्पनाओं को दर्शाते हैं। और पार्न में कोई कण्डोम नहीं पहनता!

क्या पॉर्नोग्राफ़ी देखना गलत है?

 अगर आप ऐसा करते हैं तो निश्चित ही आप अकेले नहीं । सैद्धान्तिक रुप से, सेक्सी फि़ल्मों या तस्वीरों को देखकर उत्तेजित होना कुछ गलत नहीं है। जब तक आपको यह याद रहे की यह वास्तविकता नहीं है तब तक यह बिल्कुल ठीक है। पर याद रखें की आपके पास यह जानने का कोई तरीका नहीं है की अभिनेत्रियों ने इन फि़ल्मों में अपनी खुशी से भाग लिया है या नहीं।

ध्यान रखें की इंटरनेट पर पॉर्न में महिलाओं के प्रति हिंसा या महिलाओं का अपमान दिखाया जाता है। और इनमें महिलाएं सिर्फ़ पुरुषों को आनन्द देने के लिए होती हैं। आप जो भी चाहें उसके बारे में कल्पना कर सकते हैं पर कल्पना और वास्तविकता में बहुत अंतर होता है।

पॉर्न की आदत लग सकती है। यह वास्तविक जीवन में भी सेक्स को बिगाड़ सकता है क्योंकि आप पाते हैं की आपको पॉर्न में वास्तविकता से ज़्यादा आनन्द मिलने लगता है। और तब आप वास्तविकता को पॉर्न की तरह बनाने की कोशिश करने लगते हैं जो संभव नहीं है। यदि आप पाते हैं की आपकी दिलचस्पी हार्ड कोर पॉर्न में बढ़ती जा रही है तो यह समय स्वयं को रोकने का है।

इंटरनेट पर कामोत्तेजक फोटो और वीडियो देखने के कई साइड इफेक्‍ट हैं. कुछ लोगों का मानना है कि पोर्न देखने में कोई हर्ज नहीं है. इसके उलट कई तथ्‍य ऐसे हैं, जो इस तरह के काम को नुकसानदेह साबित करते हैं.
मामला गंभीर है. यही वजह है कि देश की सबसे बड़ी अदालत को भी सरकार से यह कहना पड़ता है कि वह इंटरनेट पर मौजूद पोर्न पर रोकथाम के लिए उपाय सुझाए और इसके लिए कदम उठाए. इसके बावजूद, आलम यह है कि सरकार हर बार अपनी लाचारी ही जाहिर करके अपना काम खत्‍म मान लेती है.

खैर, मुद्दा यह है कि क्‍या पोर्न देखने के कुछ फायदे हैं? क्‍या इसे देखने से होने वाला नुकसान 'क्षणिक संतुष्टि' पर भारी पड़ता है? क्‍या पोर्न वैवाहिक जीवन में जहर घोल सकता है? यहां इन्‍हीं बातों पर विस्‍तार से चर्चा की गई है.
रेप जैसे क्राइम के लिए कितना जिम्‍मेदार?
समाज में रेप जैसी घटनाओं में हो रही बेतहाशा बढ़ोतरी के लिए अश्‍लील सामग्रियों को भी जिम्‍मेदार ठहराया जाता है. एक हद तक यह बात वाजिब भी लगती है. इसका दूसरा पक्ष यह है कि पोर्न देखने वाला शख्‍स 'इसी तरह' खुद को संतुष्‍ट कर लेता है और इस वजह से किसी बड़े सामाजिक अपराध से बच जाता है.

वैवाहिक जीवन पर पोर्न का असर
सतही तौर पर देखने में ऐसा लगता है कि पोर्न शादीशुदा जिंदगी में 'जोश' लाने में मददगार साबित हो सकता है. पर इसकी लत वैवाहिक जीवन को तबाह कर सकती है. ऐसा मानने से पीछे कई कारण हैं:

पार्टनर से 'ज्‍यादा' की उम्‍मीद करना नुकसानदेह
पोर्न देखने वाले जोड़े अपने पार्टनर से वैसी ही उम्‍मीद करते हैं, जैसा वे अश्‍लील वीडियो में देखते हैं. हकीकत यह है कि उन फिल्‍मों को जानबूझकर ज्‍यादा भड़काऊ बनाया जाता है, जिसे हकीकत में उतारना हर बार मुमकिन नहीं होता. इससे दोनों में असंतोष तो पनपता है, स्‍वभाव में क्रूरता और उग्रता भी आ सकती है, जो आगे चलकर नुकसानदेह साबित होता है.

पार्टनर को प्‍यार देने में हो सकती है कमी 
बार-बार अश्‍लील वीडियो देखने वाला शख्‍स जब इसकी लत का शिकार हो जाता है, तो वह ख्‍वाब बुनने में लग जाता है और हर बार इसी तरीके से खुद को संतुष्‍ट करना चाहता है. यहां तक कि कई बार पार्टनर से सचमुच संभोग करने की उसकी इच्‍छा खत्‍म हो जाती है. ऐसा भी हो सकता है कि सेक्‍स के चक्‍कर में पार्टनर के प्रति उसका सच्‍चा प्‍यार ही कम हो जाए. ऐसे में रिश्‍ते में दरार आना तय है.

शरीर का 'स्‍वाभाविक गुण' खोने का खतरा
अगर बार-बार उत्तेजना पैदा करने के लिए पोर्न जैसे बाहरी साधनों का सहारा लिया जाए, तो शरीर का 'स्‍वाभाविक जोश' खोने का खतरा बढ़ जाता है. तब ऐसी भी स्थिति पैदा हो सकती है कि बिना पोर्न देखे उत्तेजना ही न पैदा हो. यह एक बड़ा खतरा है.

अनजाने में विवाहेतर संबंध को बढ़ावा
अश्‍लील फिल्‍मों की वजह से नैतिकता को ताक पर रखने की प्रवृति बढ़ सकती है. इससे लोग विवाहेतर संबंधों के लिए प्रेरित हो सकते हैं. मतलब मर्यादा तार-तार होने की आशंका बहुत ज्‍यादा बढ़ जाती है.

ज्यादा पोर्न देखने से हो जाएगा यह नुकसान!

एक सर्वे के मुताबिक यह खुलासा किया गया है कि ज्यादा पोर्न देखने से दिमाग का एक खास हिस्सा सिकुड़ जाता है। दिमाग का यह हिस्सा स्ट्रेटियम व्यक्ति को उत्साहित और इच्छुक करने के लिए जिम्मेदार होता है। ज्यादा पोर्न देखने से यह हिस्सा एबनॉर्मल हो जाता है। धीरे-धीरे ऎसे मर्द में सेक्स के लिए उत्साह और इच्छा कम हो जाती है। मर्द नपुंसक भी हो सकता है।
न्यूारोसाइंटिस्टे के मुताबिक, बहुत ज्यापदा पोर्न देखने से दिमाग के विकास पर प्रभाव पड़ता है और इससे मनोविकार भी हो सकता है। इतना ही नहीं, अश्लील तस्वीरें देखने वाले के काम पर और याददाश्तव पर नकारात्मपक प्रभाव पड़ता है और वे काम पर पूरी तरह से फोकस नहीं कर पाते।
एक सर्वे में पाया गया जो महिलाएं बहुत ज्यादा पोर्न फिल्मे देखती हैं वे सेक्स के लिए ज्यादा उत्साहित होती हैं और सेक्स के लिए प्रेरित होती हैं।
बच्चों के सामने चाहे-अनचाहे रूप में आने वाला पॉर्न उन्हें मानसिक रूप से बीमार बना सकता है।

पोर्न फिल्म की गंदी दुनियां में भरमा रहे युवा

भारत के कई इलाके में ब्लू फिल्मों की सीडी एवं रंग बिरंगी पोर्न मैगजिन धड़ल्ले से बेची जा रही हैं। युवाओं को बहकाने वालों का यह कारोबार न केवल व्यापक पैमाने पर चल रहा है, बल्कि मोबाइल के माध्यम से यहां के ढेर सारे युवा इसकी गिरफ्त में आ भी चुके हैं। भारत में तेजी से बढ़ते इन्टरनेट प्रयोग के साथ एक नयी समस्या उभर कर सामने आ रही है जो की है 'पोर्न वेबसाइट्स' की |

पहले पोर्न को लेकर शर्म आती थी अब पोर्न निर्भय होकर हमारे घर में घुस आया है। पोर्न के कारोबार में बड़े कारपोरेट घराने शामिल हैं,वे बड़ी निर्लज्जता के साथ पोर्न का धडल्ले से धंधा कर रहे हैं, सरकारी और निजी क्षेत्र की संचार कंपनियां पोर्न से अरबों डालर कमा रही हैं।

पुरुष की प्राकृतिक मनोदशा, उपलब्धता और अधिकांश रूप से मुफ्त में उपलब्ध होने के कारण इसका जितना प्रचार हो रहा है उतना शायद ही किसी का हुआ हो | उस पर भी कोढ़ में खाज वाली स्थिति होती है जब उसके संपर्क में अधिकांशतः नवयुवा, युवावर्ग आता है | हर चीज़ देखने को आतुर यह आयु कब इसकी आदी हो जाती है उन्हें पता ही नहीं चलता |

१- नवयुवा जो अपना ध्यान अपने स्वस्थ्य, परिवार, पढाई और मानसिक विकास में लगा सकता वह इसमें चला जाता है | यह एक ऐसा दुष्प्रभाव है जो अभी क्या आने वाले समय को खोखला कर रहा है | उन्नीस बीस साल के लड़के अपना जाने कितना समय इन अंधी साइट्स को देते हैं, और जाने कितना समय उनका विचार करने में लगाते हैं इसकी कल्पना ही भयावह है |

२- इतनी तरक्की और शिक्षा के बाद भी देश की राजधानी में ये आलम है कि औसतन रोज़ एक बलात्कार होता है, क्या यह कुंठित मानसिकता में बढ़ोत्तरी नहीं है ?
कितनी पशुता और क्रूरता भर रही है मन में !
हर नुक्कड़ पर मंदिर उसमें माथा टेकते हजारो सज्जन, हर तरफ धर्म कि गंगा और फिर भी नारी कि पूजा करने वाले देश में रोज़ एक बलात्कार ! इस दर से तो एक दिन हर घर भुक्तभोगी होगा | क्या यही स्थिति हम चाहते हैं !!!

३- इन साइट्स में दिखने वाली वस्तु नहीं जीवित मनुष्य होते हैं | देह व्यापार, खरीद फरोक्त, अपहरण, जबरन फिल्माया जाना, धोके से फिल्माया जाना और ना जाने क्या क्या |||
और ऐसी साइट्स को पालने, चलाने, सहयोग करने वाले हम आपमें ही छुपे बैठे लोग होते हैं जो ज्ञान, मान सम्मान कि दिन रात गंगा बहते हैं किन्तु इनके घ्रणित और सड़े हुए मस्तिष्क इस हद तक गिरे रहते हैं कि मित्र मित्र कहते कहते एक दिन आपके ही घर को निशाना बना दें |

४- यह कोई छिपी बात नहीं है कि इन साइट्स को ऑफिस में भी देखा जाता है, कुछ सर्वे इसे कुल कर्योत्पदक समय का दस प्रतिशत तक बताते हैं, यह सही हो या गलत किन्तु हानि होती ही है |

५- इन साइट्स का ट्रैफिक पाइरेसी और वायरस वाली साइट्स के साथ शेयर होता है | ये तीनों नेटवर्क एक दुसरे के साथ ट्रैफिक शेयर करते हैं जो आपस में मिल कर इन्टरनेट का अपराधीकरण कर रहे है | कोई इंजीनियर प्रोग्रामर दिन रात मेहनत करके एक प्रोग्राम बनाता है और उसे पाइरेसी वाले फ़ोकट में उतार देते हैं , कोई अपनी गाढ़ी कमाई से एक कंप्यूटर लाता है और उसे ये वायरस डाल कर ख़राब कर देते हैं | आखिर में हम करते तो अपना नुक्सान ही हैं |

६- जैसा कि इस रिसर्च पेपर में सिद्ध किया है कि ऐसी सामग्री फ्री में देने वाली साईट अपनी कमाई पेड वेबसाईट को ट्रैफिक भेज कर कमाती हैं और उससे भी बड़ा हिस्सा आता है प्रयोग करने वाले के कंप्यूटर में वाइरस डाल कर | प्रयोक्ता समझता है कि उसने कुछ डाउनलोड नहीं किया तो उसका कुछ नहीं गया किन्तु वास्तविकता यह है कि किसी फ्लैश विडियो को चला कर, किसी PDF फ़ाइल को खोल कर यहाँ तक कि किसी वर्ड फ़ाइल से भी आपके सिस्टम में वाइरस आ सकता है |


पोर्न में धुँधलाता बचपन

सरल शब्दों में पोर्न का अर्थ है अश्लील । यह एक ऐसी गतिविधि है जिसका इस्तेमाल सेक्स आकांक्षाओं को उत्तेजित करने के लिए किया जाता है और जिसका कोई आध्यात्मिक, कलात्मक या साहित्यिक मूल्य नहीं है । यह विडिओ, फोटो, ड्राइंग, पेंटिंग, डिजिटल निरूपण या मीडिया के अन्य किसी रूप में हो सकता है । सात-आठ साल का एक बच्चा जो जननांग के जैविक-सामजिक अंतर से अनभिज्ञ है वह एक स्त्री और पुरुष के शारीरिक सम्मिलन की हिंसापूर्ण वृति को देखता है उसके अपरिपक्व दिमाग और नाजुक मन पर इसका क्या असर होता होगा इसकी कल्पना कर पाना भी असहज है । लेकिन यह सब आपके हमारे आस-पास ही हो रहा है । सेक्स के इस रूप से कच्ची उम्र में परिचित होना बच्चों के जैविक भविष्य के लिए बेहद खतरनाक है । पोर्न बच्चों की रचनात्मकता को विकृत कर रहा है बच्चे समय से पूर्व अपरिपक्व हो रहे हैं उनका स्वभाव चिड़चिड़ा और हिंसक होता जा रहा है, जो ना तो उनकी उम्र के अनुकूल है और ना ही हमारे सामाजिक परिवेश के।

हाल के वर्षों में ब्रिटिश अखबार द इंडिपेंडेंटऔर नेपाल के एक संगठन चाइल्ड वर्कर्स इन नेपाल कंसर्न सेंटर’ (सीडब्ल्यूआईएन) ने भी अपनी सर्वे रिपोर्टों में बताया है कि पोर्न साईट लगातार देखने से बच्चों के मन और व्यवहार पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। पोर्न अब इतना आम हो चुका है कि ग्यारह वर्ष की उम्र तक के बच्चे किसी न किसी रूप में इससे परिचित हो चुके होते हैं। इन्टरनेट पर होने वाले सर्च में से 25 फ़ीसदी सर्च पोर्न से सम्बंधित होते हैं और हर सेकण्ड कम से कम 30,000 लोग इस तरह की कोई साईट देख रहे होते हैं।

इस समस्या की जड़ कहाँ है ? आखिरकार बच्चे और किशोर पोर्न की तरफ आकर्षित क्यों हो रहे हैं ? बाल मनोविज्ञान कहता है कि बच्चे अटेंशन चाहते हैं, वे अपने प्रश्नों व जिज्ञासाओं को लेकर अभिभावकों और अध्यापकों की प्रतिक्रिया चाहते है। लेकिन ना तो स्कूल और ना ही घर-परिवार उनकी जिज्ञासाओं का सही तरीके से शमन कर पा रहा है। प्रत्येक स्तर पर इग्नोरेंसका यह भाव किशोरों को एक ऐसी भ्रामक किन्तु आकर्षक दुनिया की और ले जाता है जो उनके उम्र से उपयुक्त नहीं है। पोर्न की दुनिया ऐसा ही एक आकर्षण है। पोर्न तक किशोरों के एक समूह की पहुँच इसलिए है कि उसके पास पैसा है और दूसरे समूह तक इसलिए है कि उसे मनोरंजन का इससे बेहतर और अपेक्षाकृत सस्ता साधन कोई और नहीं दिखता।

हमें यह बात समझनी होगी कि बच्चों की प्राथमिक जिम्मेदारी घर परिवार और समाज की है यदि हमारी सामजिक संस्थाओं से बचपन को सही दिशा नहीं मिल पा रही है तब शिक्षा की कोई निजी अथवा सरकारी संस्था भी बच्चों में इसका विकास नहीं कर सकती। वर्तमान तकनीकि समय में इन्टरनेट और स्मार्ट फोन ने पोर्न की पहुँच को बहुत सस्ता और सुलभ बना दिया है। ऐसे में अभिभावकों का अपनी सामजिक भूमिकाओं में विफल होना और परिवार से भावनात्मक जुड़ाव की कमी बच्चों के इस मानसिक भटकाव के लिए स्पेस देता है।

बच्चों एवं किशोरों के लिए शिक्षा, खेल एवं करिअर तीनों ही दृष्टि से गुणवत्तापरक गाइडेंस, काउंसलिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर का होना चाहिए। स्कूल व प्रशासन को ऐसे निर्देश हो जहाँ वे अपना पाठ्यक्रम इस प्रकार से डिजाइन करें जिसमें बच्चों के स्वास्थ्य एवं शारीरिक विकास, खेलों के माध्यम से संभव हो। परिवार और बच्चों के मध्य संवाद का क्रम किसी भी स्थिति में कमजोर नहीं पड़ना चाहिए. स्थिति की गंभीरता के देखते हुए सायबर कानूनों पर सख्ती से अमल किया जाना चाहिए।
अंत में, यदि हम आधुनिक हो रहे हैं और तकनीकि तक हमारी पहुँच आसान हो रही है तो आवश्यक हो जाता है कि बदलते परिवेश के अनुकूल सामाजिककरण की तकनीकों और संस्कारों का भी आधुनिकीकरण हो अन्यथा इसके गंभीर परिणाम हमारे बच्चों को भुगतने होंगे। बच्चे हमारी सामाजिक विरासत हैं और पोर्न इस विरासत का क्षय कर रहा है इसलिए अब हमें सावधान हो जाना चाहिए।

आपका बच्चा ऑनलाइन पोर्न का दीवाना तो नही

बच्चों या किशोरों का पोर्न वेबसाइट देखना आजकल एक आम बात होती जा रही है. जिसके कई नुकसान हैं और उनके भीतर होने वाला सबसे बड़ा नुकसान है सेक्स को लेकर विकृत नज़रिया पैदा होना.

ये एक ऐसी समस्या है जो बड़े होते बच्चों के माता-पिता के लिए सिरदर्द बनती जा रही है. उन्हें ये समझ में नहीं आता कि वो कैसे, कितना और कब अपने बच्चों पर रोक लगाएं.
आज जबकि हर बच्चे के पास उसका निजी कंप्यूटर, इंटरनेट कनेक्शन और स्मार्टफोन मौजूद है तब उन पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक है. इस बारे में कोई ठोस आँकडा़ भी मौजूद नहीं है जो ये बता सके कि कितने बच्चे इंटरनेट पर पोर्न देखते हैं. साल 2011 में यूरोप में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक नौ से 16 साल की उम्र के एक तिहाई बच्चों ने पोर्न तस्वीरें देख रखीं थी लेकिन उनमें से सिर्फ 11 प्रतिशत ऐसे थे जिन्होंने ये तस्वीरें वेबसाइट पर देखी थीं. जबकि 'यू गॉव' द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार 16-18 साल के बच्चों में से भी एक तिहाई ने पोर्न तस्वीरें मोबाइल फोन पर देखीं थी.

सेक्स शिक्षा से संबंधित कानून बनाने वाले सिओन ह्मफ्रेज़ के अनुसार, ''आजकल के बच्चे ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहाँ सेक्स एक खुला विषय है. ऐसे में ज़रूरी है कि उन्हें ये बताया जाए कि वो ऐसे हालात में किस तरह का व्यवहार करें.''

मु्ख्य मुद्दा ये है कि इन किशोर बच्चों की आगे की ज़िंदगी उनके आज के व्यवहार पर आधारित होगी. उन्हें ये समझाना बेहद ज़रुरी है कि पोर्न सामान्य या असल सेक्स-जीवन का हिस्सा नहीं है.
कई बार ये किशोर होते बच्चे उस तरह का व्यवहार करने के लिए मजबूर किए जाते हैं जो वो आमतौर पर नहीं करना चाहते और उन्हें ऐसा हम उम्र दोस्तों के दबाव के कारण करना पड़ता है.
जो चीज़ पोर्न वोबसाइट पर बार-बार दिखाई जाती है उसे ये बड़े होते बच्चे जिज्ञासावश करना चाहते हैं और उसे ही सही मान लेते हैं.

करीब सात हज़ार छात्रों को सेक्स शिक्षा देने वाले वाली चैरिटी संस्था 'फैमिली लाइव्स' की लियोनी हॉज इस बात को मानती हैं कि बच्चों को सेक्स और पोर्न के फर्क के बारे में बताया जाए.चैरिटी फैमिली लाइव्स का कहना है कि आजकल काफी कम उम्र के बच्चों को पोर्नोग्राफी उपलब्ध है, ऐसे में ये कहना कि वो इसका डटकर सामना नहीं कर सकते ये ग़लत होगा.संस्था कई तरह के प्रयोग के ज़रिए इन बच्चों को बताती है कि अगर कभी उन्हें इस तरह की अश्लील तस्वीरें या प्रस्ताव भेजा जाए तो वो कैसे इसे अस्वीकार करें.हालांकि नेशनल यूनियन टीचर्स का मानना है कि पोर्नोग्राफी से संबंधित शिक्षा देना, काफी दूर निकल जाना है.वो कहती हैं, ''मूल बात ये है कि हमें शर्मिंदा नहीं होना चाहिए, ना ही ये कहना चाहिए कि ये अच्छी लड़कियों का काम नहीं. बच्चे इस विषय पर बात करना चाहें या नहीं हमें उन्हें इस बारे में जागरूक करते रहना चाहिए.''

क्योंकि आम तौर पर ये देखा गया है कि माँएं जब अपने बच्चों के कंप्यूटर पर पोर्न साइट खुला देखती हैं तो परेशान हो जाती हैं.इन हालात में उन्हें समझ नहीं आता कि क्या करें और क्या नहीं. उदाहरण के लिए एक अकेली मां को किशोर बेटे को समझाना मुश्किल हो सकता है और अकेले पिता के लिए किशोर बेटी को समझाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण.कई घरों में तो सेक्स के बारे में बात करना भी परंपरा के खिलाफ़ होता है. ऐसे में सबसे कारगर तरीका वो होता है जहां स्कूल और अभिभावक दोनों मिलकर बच्चों को इस बारे जानकारी देते हैं.




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