10/10/14

हिंदी के बारे में रोचक तथ्‍य

हिंदी भाषा प्रेम, मिलन और सौहार्द्र की भाषा है। इस भाषा की उत्पत्ति ही इस बात का प्रमाण है। हिंदी मुख्यतः आर्यों और पारसियों की देन है। हिंदी के अधिकतम शब्द संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा से लिए गए हैं। हिंदी में अवधी, ब्रज आदि स्थानीय भाषाओं का भी मिश्रण है। इसलिए तो इस भाषा को संबंध भाषाके नाम से भी जाना जाता है। हिंदी (खड़ी बोली) की पहली कविता प्रख्यात कवि अमीर खुसरोने लिखी थी।

1- 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक वोट से यह निर्णय लिया कि हिंदीही भारत की राजभाषा होगी।

2- हिंदी भाषा के इतिहास पर पहले साहित्य की रचना एक फ्रांसीसी लेखक ग्रासिन द तैसी ने की थी।

3- हिंदी भाषा को देवनागरी लिपि में 1950 में अनुच्छेद 343 के अंतर्गत राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया।

4- हिंदी (खड़ी बोली) की पहली कविता प्रख्यात कवि अमीर खुसरोने लिखी थी।

5- अंग्रेजी की रोमन लिपि में जहां कुल 26 वर्ण हैं, वहीं हिंदी की देवनागरी लिपि में उससे दुगुने 52 वर्ण हैं।

6- हिंदी और दूसरी भाषाओं पर पहला विस्तृत सर्वेक्षण एक अंग्रेज सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने किया था।

7- हिंदी के बारे में एक रोचक तथ्यव यह भी है कि हिंदी मूलत: फारसी भाषा का शब्दे है।

8- हिंदी भाषा पर पहला शोध कार्य द थिओलॉजी ऑफ तुलसीदासको लंदन विश्वविद्यालय में पहली बार एक अंग्रेज विद्वान जेआर कारपेंटर ने प्रस्तुत किया था।

9- 1977 में तत्काधलीन विदेश मंत्री अटल विहारी वाजपेयी ने पहली बार संयुक्तव राष्ट्री की आम सभा को हिंदी में संबोधित किया।

10- संयुक्त राज्य अमेरिका के 45 विश्वविद्यालय सहित विभिन्न देशों के लगभग 176 विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन जारी है।
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हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है और कोई भी अक्षर वैसा क्यूँ है उसके पीछे कुछ कारण है , अंग्रेजी भाषा में ये बात देखने में नहीं आती |
, , , , ङ- कंठव्य कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है। एक बार बोल कर देखिये |
, , , ,ञ- तालव्य कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |
, , , , ण- मूर्धन्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है। एक बार बोल कर देखिये |
, , , , न- दंतीय कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है। एक बार बोल कर देखिये |
, , , , ,- ओष्ठ्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है। एक बार बोल कर देखिये ।
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देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कुछ विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, नेपाली, तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।
अधितकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर रेखा नहीं होती है)इसे शिरोरे़खा कहते हैं। इसका विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और व्यापक लिपि शायद केवल आइपीए लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है।
भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग हू-ब-हूउच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नहीं है, जब तक कि उनका कोई ख़ास मानकीकरण न किया जाये, जैसे आइट्रांस या आइएएसटी।
इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) मे प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा।
भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं (उर्दू को छोडकर), पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं क्योंकि वो सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।

१) वर्तमान में संस्कृत ,पाली , हिन्दी , मराठी , कोंकणी , सिन्धी, काश्मीरी , नेपाली , बोडो , मैथिली आदि भाषाऒं की लिपि है ।

२) उर्दू के अनेक साहित्यकार भी उर्दू लिखने के लिए अब देवनागरी लिपि का प्रयोग कर रहे हैं ।

३) इसका विकास ब्राम्ही लिपि से हुआ है ।

४) यह एक ध्वन्यात्मक ( फोनेटिक या फोनेमिक ) लिपि है जो प्रचलित लिपियों ( रोमन , अरबी , चीनी आदि ) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है ।

५) इसमे कुल ५२ अक्षर हैं , जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं ।

६) अक्षरों की क्रम व्यवस्था ( विन्यास ) भी बहुत ही वैज्ञानिक है । स्वर-व्यंजन , कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण , अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं ।

७) एक मत के अनुसार देवनगर ( काशी ) मे प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पडा ।

८) इस लिपि में विश्व की समस्त भाषाओं की ध्वनिओं को व्यक्त करने की क्षमता है । यही वह लिपि है जिसमे संसार की किसी भी भाषा को रूपान्तरित किया जा सकता है ।

९) इसकी वैज्ञानिकता आश्चर्यचकित कर देती है ।

१०) भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं ( उर्दू को छोडकर), पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान है । इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है ।

११) यह बायें से दायें की तरफ़ लिखी जाती है ।

१२) देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल , सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है ।

देवनागरी लिपि के अनन्य गुण

१) एक ध्वनि : एक सांकेतिक चिन्ह

२) एक सांकेतिक चिन्ह : एक ध्वनि

३) स्वर और व्यंजन में तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक क्रम-विन्यास

४) वर्णों की पूर्णता एवं सम्पन्नता ( ५२ वर्ण , न बहुत अधिक न बहुत कम )

५) उच्चार और लेखन में एकरुपता

६) उच्चारण स्पष्टता ( कहीं कोइ संदेह नही )

७) लेखन और मुद्रण मे एकरूपता ( रोमन , अरबी और फ़ारसी मे हस्त्लिखित और मुद्रित रूप अलग-अलग हैं )

८) देवनागरी लिपि सर्वाधिक ध्वनि चिन्हों को व्यक्त करती है ।

९) लिपि चिन्हों के नाम और ध्वनि मे कोई अन्तर नहीं ( जैसे रोमन में अक्षर का नाम बीहै और ध्वनि है )

१०) मात्राओं का प्रयोग

११) अर्ध अक्षर के रूप की सुगमता

देवनागरी पर महापुरुषों के विचार

१) हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी , उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है । आचार्य विनबा भावे

२) देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है । सर विलियम जोन्स

३) मनव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है । जान क्राइस्ट

४) उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी । खुशवन्त सिंह

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संस्कृत, हिन्दी, मराठी और नेपाली भाषाएँ जिस लिपि में लिखी जातीं हैं, उसे देवनागरी लिपि कहते हैं. हम भारतीयों के लिए यह बहुत ही गर्व की बात है कि हमारे पूर्वजों द्वारा हमें दी गई यह लिपि विश्व की सर्वोत्तम तथा उत्कृष्ट वैज्ञानिक लिपि है.

यद्यपि कई व्यक्ति इस कथन से परिचित हैं कि देवनागरी लिपि समस्त लिपियों में श्रेष्ठ और वैज्ञानिक लिपि है तथापि जब कभी भी इस लिपि की वैज्ञानिकता की चर्चा होती है तब अधिकांश व्यक्ति यही कहते पाये जाते हैं कि इसमें जैसे बोला जाता है, वैसे ही लिखा जाता है. अथवा दूसरे शब्दों में इसके प्रत्येक अक्षर का जो नाम है वही उसका उच्चारण है. यथा '' को अ कहते हैं और इसका उच्चारण भी अ किया जाता है. '' का नाम क व उच्चारण भी क है इत्यादि। जबकि अन्य लिपियों में ऐसा नहीं है. रोमन लिपि में अक्षर 'h' का नाम ऐच है परन्तु उच्चारण ह होता है, 'w' का नाम डब्ल्यू है परन्तु उच्चारण व होता है. केवल 'o' के अतिरिक्त सभी अक्षरों का उच्चारण उनके नाम से पृथक है, यहाँ तक कि कई शब्दों में o का उच्चारण भी ओ नहीं होता है. यही स्थिति अन्य लिपियों की भी है.

इसके अतिरिक्त देवनागरी लिपि की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इसमें व्यंजनों पर केवल मात्र लगाने मात्र से उनका उच्चारण परिवर्तित हो जाता है, कोई अन्य अक्षर नहीं लिखना पड़ता है. साथ ही प्रत्येक मात्रा प्रत्येक व्यंजन के साथ सभी समय एक ही प्रकार का परिवर्तन करती है, भिन्न-भिन्न प्रकार के परिवर्तन नहीं होते हैं। जैसे अंग्रेजी में put तो पुट होता है परन्तु but बट हो जाता है। देवनागरी लिपि में ऐसा भ्रम कभी भी नहीं होता है।

परन्तु वस्तुतः देवनागरी लिपि की ये दोनों विशेषताएं तो वास्तव में सबसे गौण अर्थात सबसे कम महत्त्वपूर्ण विशेषताएं हैं।इसकी वास्तविक और मुख्य विशेषताएँ तो बहुत ही अधिक वैज्ञानिक विशेषताएँ हैं.

इसकी महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक विशेषता यह है कि इसके प्रत्येक वर्ण की ध्वनि एक सुनिश्चित ध्वनि है. ध्वनि भौतिकी (sound physics) की दृष्टि से इसके प्रत्येक वर्ण की तरंग की आवृत्ति व अंतराल (frequency & pitch) लगभग निश्चित होता है, क्योंकि वह उच्चारण में प्रयोग किये जाने वाले अंगों, उपयोग की गई श्वास की मात्रा तथा अन्य प्रयत्नों पर निर्भर होती है, जिस पर ध्वनि भौतिकी के वैज्ञानिकों द्वारा विस्तृत शोध किया जाना चाहिये। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह श्रव्य संगणक (audio computers) एवं श्रव्य मुद्रक संगणक (audio printer computers) अर्थात केवल सुनकर मुद्रण करने वाले कम्प्यूटर्स के लिए श्रेष्ठ लिपि है.

इस लिपि की ऊपर वर्णित विशेषताओं से भी अधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी वर्णमाला में प्रत्येक वर्ण द्वारा पाये जाने वाला स्थान है. इसकी वर्णमाला में प्रत्येक वर्ण को उसके उच्चारण में प्रयोग किये जाने वाले अंगों, उपयोग की जाने वाली श्वास की मात्रा तथा उच्चारण करने वाले अंगों के विभिन्न प्रकार के प्रयत्नों के आधार पर स्थान दिया गया है और इसे ध्वनि भौतकी की भाषा में कहा जा सकता है कि देवनागरी लिपि की वर्णमाला में प्रत्येक वर्ण को उसकी तरंग की आवृत्ति और अंतराल के आधार पर स्थान दिया गया है. इसी कारण इसकी वर्णमाला में किसी भी वर्ण का स्थान सुनिश्चित है, अर्थात वह परिवर्तित नहीं किया जा सकता है. उदाहरणार्थ '' के पश्चात् '' क्यों आया, '' के पश्चात् '' क्यों आई और '' के पश्चात् '' क्यों आई? इसी प्रकार '' के पश्चात् '' क्यों आया, '' के पश्चात '' क्यों आया? '' के पश्चात् '' क्यों आया? इत्यादि। इन सबके पीछे ठोस वैज्ञानिक आधार हैं जिन्हें हम अपनी इच्छानुसार परिवर्तित नहीं कर सकते हैं.

देवनागरी लिपि की एक अन्य विशेषता यह है इसकी मूल वर्ण माला में संस्कृत के समस्त शब्दों के उच्चारण करने की क्षमता थी. परन्तु देश, आहार (खान-पान), जलवायु व अन्य परिस्थितियों के कारण अन्य भाषाओं में कुछ ऐसे उच्चारण व्याप्त हैं जिनको हम मूल वर्णमाला के वर्णों के माध्यम से व्यक्त नहीं कर सकते हैं, किन्तु मूल वर्णमाला के अक्षरों में किञ्चित परिवर्तन करके हम उन ध्वनियों (उच्चारणों) को भी बड़ी सुगमतापूर्वक व्यक्त कर सकते हैं. इस प्रकार देवनागरी लिपि संसार के किसी भी कोने में प्रयोग की जाने वाली, भाषा के उच्चारणों को व्यक्त करने में सक्षम लिपि है. इसलिए वैश्वीकरण के इस युग में अंतर्जाल (internet) के लिये यह सर्वोत्तम लिपि सिद्ध हो सकती है. 

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