10/10/14

हिंदी सिनेमा के डायलॉग जो बने अभिनेताओं की पहचान

फिल्मों में कुछ ऐसे डायलॉग होते हैं, जो हमेशा-हमेशा के लिए जुबां पर छा जाते हैं। डायलॉग इतना प्रसिद्ध होता है कि उसी से अभिनेता की पहचान बन जाती है।

1. मुगले-आजम (1960) : निर्देशक : के आसिफ
पृथ्‍वीराज कपूर : अनारकली, सलीम की मोहब्‍बत तुम्‍हें मरने नहीं देगी और हम तुम्‍हें जीने नहीं देंगे।

2. वक्‍त (1965) : निर्देशक : यश चोपड़ा
राजकुमार : चिनॉय सेठ, ये बच्‍चों के खेलने की चीज़ नहीं है, हाथ कट जाए तो खून निकल आता है।

3. आनंद (1970) : निर्देशक : ऋषिकेश मुखर्जी
राजेश खन्‍ना : हम सब रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिनकी डोर ऊपर वाले की उंगलियों से बंधी हुई हैं। कब कौन उठेगा कोई नहीं बता सकता।

4. अमर प्रेम (1970) : निर्देशक : शक्ति सामंत
राजेश खन्‍ना : पुष्‍पा, आई हेट टियर्स, इन्‍हें पोंछ डालो।

5. पाकीजा (1972) : निर्देशक : कमाल अमरोही
राजकुमार : आपके पांव देखे, बहुत हसीन हैं, इन्‍हें जमीन पर मत उतारिएगा, मैले हो जाएंगे

6. बॉबी (1973) : निर्देशक : राज कपूर
प्रेम चोपड़ा : प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा

7. रोटी कपड़ा और मकान (1974) : निर्देशक : मनोज कुमार
मनोज कुमार: तुम्हारी रामायण में राम नहीं, मेरी रामायण में सीता नहीं

8. शोले (1975) : निर्देशक : रमेश सिप्‍पी
अमजद ख़ान : जो डर गया समझो मर गया

9. दीवार (1975) : निर्देशक : यश चोपड़ा
शशि कपूर : मेरे पास... मेरे पास... मां है।

10. विश्वनाथ (1978) : निर्देशक : सुभाष घई
शत्रुघ्न सिन्हा : जली को आग कहते हैं, बुझी को राख कहते हैं और जिस राख में बारूद बने उसे विश्वनाथ कहते हैं

11. डॉन (1978) : निर्देशक : चंद्र बरोट
अमिताभ बच्‍चन : डॉन का इंतजार तो 11 मुल्‍कों की पुलिस कर रही है, लेकिन डॉन को पकड़ना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है

12. कालिया (1981) : निर्देशक : टीनू आनंद
अमिताभ बच्चन : हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है

13. शराबी (1984) : निर्देशक : प्रकाश मेहरा
अमिताभ बच्चन : भई, मूंछे हों तो नत्थूलाल जी जैसी हों, वर्ना ना हों

14. मिस्‍टर इंडिया (1987) : निर्देशक : शेखर कपूर
अमरीश पुरी : मुगेम्‍बो खुश हुआ

15. दामिनी  (1993) : निर्देशक : राजकुमार संतोषी
सनी देओल : तारीख पे तारीख मिलती रही है, लेकिन इंसाफ नहीं मिलता। मिलती है तो सिर्फ तारीख

No comments:

Post a Comment