9/20/14

संयुक्त परिवार का महत्व

आज के बदलते सामाजिक परिदृश्य में संयुक्त परिवार तेजी से टूट रहे हैं और उनकी जगह एकल परिवार लेते जा रहे हैं, लेकिन बदलती जीवनशैली और प्रतिस्पर्धा के दौर में तनाव तथा अन्य मानसिक समस्याओं से निपटने में अपनों का साथ अहम भूमिका निभा सकता है। संयुक्त परिवारों में आस पास काफी लोगों की मौजूदगी एक सहारे का काम करती है।

संयुक्त परिवार में जहां बच्चों का लालन-पालन और मानसिक विकास अच्छे से होता है वहीं वृद्धजन का अंतिम समय भी शांति और खुशी से गुजरता है। वह अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं। हमारे बच्चे संयुक्त परिवार में दादा-दादी, काका-काकी, बुआ आदि के प्यार की छांव में खेलते-कूदते और संस्कारों को सीखते हुए बड़े हो। संयुक्त परिवार से ही संस्कारों का जन्म होता है।


संयुक्त परिवार का लाभ

अनेक मजबूरियों के चलते हो रहे संयुक्त परिवारों के बिखराव के वर्तमान दौर में भी संयुक्त परिवारों का महत्त्व कम नहीं हुआ है .बल्कि उसका महत्व आज भी बना हुआ है .उसके महत्त्व को एकल परिवार में रह रहे लोग अधिक अच्छे से समझ पाते हैं .उन्हें संयुक्त परिवार के फायेदे नजर आते हैं .क्योंकि किसी भी वस्तु का महत्त्व उसके अभाव को झेलने वाले अधिक समझ सकते हैं .अब संयुक्त परिवारों के लाभ पर सिलसिले बार चर्चा करते हैं .

सुरक्षा और स्वास्थ्य ; परिवार के प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी परिजन मिलजुल कर निभते हैं .अतः किसी भी सदस्य की स्वास्थ्य समस्या ,सुरक्षा अमास्या ,आर्थिक समस्या पूरे परिवार की होती है .कोई भी अनापेक्षित रूप से आयी परेशानी सहजता से सुलझा ली जाती है .जैसे यदि कोई गंभीर बीमारी से जूझता है तो भी परिवार के सब सदस्य अपने सहयोग से उसको बीमारी से निजात दिलाने में मदद करते है उसे कोई आर्थिक समस्य या रोजगार की संसय अड़े नहीं आती .ऐसे ही गाँव में या मोहल्ले में किसी को उनसे पंगा लेने की हिम्मत नहीं होती संगठित होने के कारण पूर्ताया सुरक्षा मिलती है .व्यक्ति हर प्रकार के तनाव से मुक्त रहता है .

विभिन्न कार्यों का विभाजन ;-परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण कार्यों का विभाजन आसान हो जाता है .प्रत्येक सदस्य के हिस्से में आने वाले कार्य को वह अधिक क्षमता से कर पता है .और विभिन्न अन्य जिम्मेदारियों से भी मुक्त रहता है .अतः तनाव मुक्त हो कर कार्य करने में अधिक ख़ुशी मिलती है .उसकी कार्य क्षमता अधिक होने से कारोबार अधिक उन्नत होता है .परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ती अपेक्षाकृत अधिक हो सकती है और जीवन उल्लास पूर्ण व्यतीत होता है .

भावी पीढ़ी का समुचित विकास ;संयुक्त परिवार में बच्चों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित और उचित शारीरिक एवं चारित्रिक विकास का अवसर प्राप्त होता है .बच्चे की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अधिक ध्यान रखा जा सकता है .उसे अन्य बच्चों के साथ खेलने का मौका मिलता है .माता पिता के साथ साथ अन्य परिजनों विशेष तौर पर दादा ,दादी का प्यार भी मिलता है .जबकि एकाकी परिवार में कभी कभी तो माता पिता का प्यार भी कम ही मिल पता है यदि दोनों ही कामकाजी हैं .दादा ,दादी से प्यार के साथ ज्ञान ,अनुभव बहर्पूर मिलता है .उनके साथ खेलने , समय बिताने से मनोरंजन भी होता है उन्हें संस्कारवान बनाना ,चरित्रवान बनाना ,एवं हिर्ष्ट पुष्ट बनाने में अनेक परिजनों का सहयोग प्राप्त होता है .एकाकी परिवार में संभव नहीं हो पता .

संयुक्त परिवार में रहकर कुल व्यय कम ;-बाजार का नियम है की यदि कोई वस्तु अधिक परिमाण में खरीदी जाती है तो उसके लिए कम कीमत चुकानी पड़ती है .अर्थात संयुक्त रहने के कारण कोई भी वस्तु अपेक्षाकृत अधिक मात्र में खरीदनी होती है अतः बड़ी मात्र में वस्तुओं को खरीदना सस्ता पड़ता है .दूसरी बात अलग अलग रहने से अनेक वस्तुएं अलग अलग खरीदनी पड़ती है जबकि संयुक्त रहने पर कम वस्तु लेकर कम चल जाता है .

भावनात्मक सहयोग ;- किसी विपत्ति के समय ,परिवार के किसी सदस्य के गंभीर रूप से बीमार होने पर ,पूरे परिवार के सहयोग से आसानी से पार पाया जा सकता है .जीवन के सभी कष्ट सब के सहयोग से बिना किसी को विचलित किये दूर हो जाते हैं .कभी भी आर्थिक समस्या या रोजगार चले जाने की समस्या उत्पन्न नहीं होती क्योंकि एक सदस्य की अनुपस्थिति में अन्य परिजन कारोबार को देख लेते हैं .

चरित्र निर्माण में सहयोग ;-संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे के आचार व्यव्हार पर निरंतर निगरानी बनाय रखते हैं ,किसी की अवांछनीय गतिविधि पर अंकुश लगा रहता है .अर्थात प्रत्येक सदस्य चरित्रवान बना रहता है .किसी समस्या के समय सभी परिजन उसका साथ देते हैं और सामूहिक दबाव भी पड़ता है कोई भी सदस्य असामाजिक कार्य नहीं कार पता ,बुजुर्गों के भय के कारण शराब जुआ या अन्य कोई नशा जैसी बुराइयों से बचा रहता है

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है की संयुक्त परिवार की अपनी गरिमा होती अपना ही महत्त्व होता है

संयुक्‍त परिवार में रहने के दुष्‍परिणाम

हर किसी की जिन्‍दगी में परिवार का अलग महत्‍व होता है। महिला के बच्‍चे पैदा करने से लेकर उसका लालन - पालन और उसकी जिन्‍दगी को संवारने का काम परिवार का ही होता है। हर किसी की जिन्‍दगी परिवार के बिना अधूरी होती है। लेकिन अब फैमिली के पैटर्न में अंतर आने लगा है। पहले लोग संयुक्‍त परिवार में रहते थे, एक साथ, एक ही छत के नीचे उनका जीवन गुजरता था। संयुक्‍त परिवार में रहने से लोग खुश थे लेकिन समय बदला, लोगों की जरूरत बदली और वह एकल परिवार में बंटने लगे। संयुक्‍त परिवार में सभी के साथ रहने के कई दुष्‍परिणाम भी होते है। लोगों की संख्‍या ज्‍यादा होने पर सभी के बीच मतभेद होने की संभावना भी ज्‍यादा रहती है। ऐसे में बेहतर होगा कि एकल परिवार में रहा जाएं। संयुक्‍त परिवार की समस्‍याएं निम्‍म प्रकार है :

फैमिली बॉस : संयुक्‍त परिवार में घर का सबसे बड़ा सदस्‍य मुखिया होता है, उसी की बात और निर्णय सभी को मानना पड़ता है। इस तरीके से परिवार में रूढि़वादिता जगह बना लेती है और नई सोच वाले लोगों को तकलीफ होती है। कई बार तो घर के ही लोगों को निर्णय अच्‍छे और सही लगते है लेकिन मजबूरी में मानना पड़ता है जिससे उनमें निगेटिविटी आ जाती है। इसलिए अगर ज्‍वाइंट फैमिली में रहना है तो परिवार के सभी सदस्‍यों की राय लेनी चाहिए।

नया काम नहीं होता : संयुक्‍त परिवार में कोई कुछ नया काम नहीं कर सकता है और न ही पहल करने की जुर्रत उठा सकता है। जैसे - फैमिली बिजनेस को छोड़कर नया बिजनेस न डालना या कोई भी फंक्‍शन आदि करना। आपको पुराने पैर्टन को ही फॉलो करना होता। लोग इस कारण से सबसे ज्‍यादा संयुक्‍त परिवार में रहने से कटते है, क्‍योंकि उन्‍हे अपने हिसाब से जीने की आदत होती है।

महिलाओं की स्थिति : संयुक्‍त परिवार में महिलाओं की स्थिति अच्‍छी नहीं होती है। वह सिर्फ किचेन तक सीमित रह जाती है। वह कुछ नया सीख नहीं सकती हैं, अपने पति की मदद नहीं कर सकती, या फिर बिजनेस में कोई टिप्‍स नहीं दे सकती हैं। ऐसे में खुद महिलाएं ही संयुक्‍त परिवार में नहीं रहना चाहती है।

प्राईवेसी : अगर आप संयुक्‍त परिवार में रहते है तो अपनी बीबी के साथ खुलेआम रोमांस करना भूल जाइए, अपने बच्‍चों के लिए ज्‍यादा समय देना भूल जाइए, क्‍योंकि आपको परिवार के बाकी सदस्‍यों को भी टाइम देना होता है। आप उनके साथ वीकेंड पर कहीं बाहर नहीं जा सकते हैं, आपको सभी को ले जाना होगा या सबसे पूछना पड़ेगा। ऐसे में प्राईवेसी खत्‍म हो जाती है जिसकी जरूरत इंसान को सबसे ज्‍यादा होती है।

आर्थिक स्थिति : संयुक्‍त परिवार में आप कितना भी कमाते हों, लेकिन आपको सभी को ध्‍यान में रखना पड़ता है। कोई कमाता है कोई नहीं लेकिन सभी के खर्चे होते है ऐसे में आप अपनी निजी सेविंग के बारे में सोच भी नहीं सकते है। किसी की बीमारी या बुरे वक्‍त में आपको खर्च करना पड़ता है जिसका हिसाब भी नहीं होता, ऐसे में लोगों को संयुक्‍त परिवार में रहना खटकता है।

यह सभी संयुक्‍त परिवार में रहने के दुष्‍परिणाम हैं लेकिन अगर आपसी समझ और खुले दिमाग से मिलकर रहा जाएं तो संयुक्‍त परिवार सबसे अच्‍छे होते है।
                                                 
ऐसे जन्मता है परिवार में प्रेम :

1. यदि आप घर के सदस्यों से प्रेम नहीं करते हैं तो आपसे धर्म, देश और समाज से प्रेम या सम्मान की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

2.घर के सभी सदस्य मिलकर सप्ताह में एक बार परमेश्वर की प्रार्थना करें या ध्यान करें।

3.घर के सभी सदस्य एक साथ बैठकर ही भोजन करें। साथ बैठ कर भोजन करने से एकता और प्रेम बढ़ता है।

4.घर के सभी सदस्य एक दूसरे से हर तरह के विषयों पर शांतिपूर्ण तरीके से वार्तालाप करें। किसी भी सदस्य पर अपने विचार न थोपें।

5.घर में हंसीखुशी का माहौल रहे इसके लिए सभी को अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए। घर में हर तरह के मनोरंजन के साधन रखें।

6.घर की अर्थव्यवस्‍था में सभी एक-दूसरे का बराबर सहयोग करें।

7.कुल परंपरा, रिवाजों का पालन करें।

8.संपत्ति और पूंजी का सभी पर अधिकार समझे। रिश्तों के बीच कभी भी रुपयों को न आने दें। घर का कोई भी सदस्य किसी दूसरे सदस्य से न तो अमीर होता है और न गरीब। सभी खून के रिश्तें होते हैं।

9.माता-पिता, भाई-बहन, बेटी-बेटा और पत्नी के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे।

10.वर्ष में एक या दो बार मनोरंजन या पर्यटन के लिए सभी मिलकर बाहर जाएं।

12.परिवार के सदस्यों को जहां एक दूसरे की बुराई करने से बचना चाहिए वहीं उन्हें घर की स्त्रीयों के मायके की बुराई से भी दूर रहना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ बुरा तो अच्छा भी रहता है।

13. घर के सदस्य यदि एक-दूसरे की तारीफ और सम्मान करेंगे तो निश्चित ही संयुक्त परिवार में एकजुटता आएगी।

14.परिवार के पुरुष सदस्यों को किसी भी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए और स्त्रीयों को अपनी मर्यादा समझना चाहिए।


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