8/20/14

पारिवारिक कलह से कैसे बचें ?

अमुक व्यक्ति ने आत्म- हत्या कर ली, भाई द्वारा भाई की हत्या कर दी गयी, कपड़ों में मिट्टी का तेल छिड़क कर पत्नी ने खुदखुशी कर ली, महिला बच्चों समेत कुएँ में कूदी, बहू की हत्या के जुर्म में पति, सास व देवर को आजीवन कारावास- ऐसी घटनाएँ आये दिन समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं। शायद ही कोई ऐसा दिन होगा जिस दिन परिवारों में कलह, हिंसा, मारपीट आदि के समाचार न मिलते हों। यह समाचार एक ओर उस पतन के द्योतक हैं जिससे आज का समाज बुरी तरह ग्रस्त होता चला जा रहा है।

आज जिधर भी दृष्टि डालिए लोग पारिवारिक जीवन से ऊबे, शोक- सन्ताप में डूबे, अपने भाग्य को कोसते नजर आते हैं। बहुत ही कम परिवार ऐसे होंगे जिनमें स्नेह- सौजन्य की सुधा बहती दिखाई पड़े, अन्यथा घर- घर में कलह, क्लेश, कहा- सुनी, झगड़े- टंटे, मार- पीट, रोना- धोना, टूट- फूट, बाँट- बटवारा और दरार, जिद फैली देवर- भौजाई यहाँ तक कि पति- पत्नी तथा बच्चों एवं बूढ़ोंमें टूट- फूट लड़ाई- झगड़ा, द्वेष- वैमनस्य तथा मनोमालिन्य उठता और फैलता दिखाई देता है। आज का पारिवारिक जीवन जितना कलुषित, कुटिल और कलहपूर्ण हो गया है कदाचित् ऐसा निकृष्ट जीवन पहले कभी भी नहीं रहा होगा।


अपने पैरों खड़े होते ही पुत्र असमर्थ माता- पिता को छोड़ कर अलग घर बसा लेता है। भाई- भाई की उन्नति एवं समृद्धि को शत्रु की आँखों से देखता है। पत्नी- पति को चैन नहीं लेने देती। बहू- बेटियाँ, फैशन प्रदर्शन के सन्निपात से ग्रस्त हो रही हैं। छोटी संतानें जिद्दी, अनुशासनहीन तथा मूढ़ बनती जा रही हैं। परिवारों के सदस्यों के व्यय तथा व्यसन बढ़ते जा रहे हैं। परिवार टूटते, बिखरते जा रहे हैं।



गृहस्थ जीवन में सुख की चाह हर व्यक्ति के मन में समाई हुई होती है. जीवन का सच्चा सुख व्यक्ति को हर राह पर आगे ही लेकर जाता है परंतु परिवार में व्याप्त कलह - कलेश व्यक्ति के जीवन को कठीनाईयों एवं परेशानियों से भर देते हैं.गृह कलह मुख्य रूप से सास-बहुपिता-पुत्रभाई-बहिन-भाईदेवरानी-जेठानीननद-भाभीपति-पत्नि के बीच दिखाई देता है। 

रिश्तों की डोर बहुत नाजुक होती है, फिर चाहे वह पति-पत्नी हों, सास-बहू हों, पिता पुत्र हों या फिर भाई-भाई, इनके बीच कभी न कभी आपस में टकराव हो ही जाता है। यदि बात नोकझोंक तक सीमित रहे तो ठीक लेकिन यदि कलह का रूप लेने लगे तो पारिवारिक वातावरण तनावपूर्ण हो जाता है। 


पारिवारिक कलह से कैसे बचें



0.पारिवारिक सुख के लिए स्नेह, सम्मान और स्वतंत्रता का सूत्र ही मूलमंत्र है। यदि तीनों का आपसी संबंध समझकर लोग उसे अपने आचरण में उतार लें तो घर 'स्वर्ग' बन जाएगा। दुनिया भर की धन दौलत इंसान को वह सुकून नहीं दे सकती, जो स्नेह और सम्मान का मधुर भाव देता है।

1.अपनी कम , मध्यम और लम्बे समय की पैसे की जरूरतों का यथार्थपरक आकलन हमें कर लेना चाहिये।  इस आकलन को समय समय पर पुनरावलोकन से अपडेट करते रहना चाहिये। इस आकलन के आधार पर पैसे की जरूरत और उसकी उपलब्धता का कैश फ्लो स्पष्ट समझ लेना चाहिये। अगर उपलब्धता में कमी नजर आये तो आय के साधन बढ़ाने तथा आवश्यकतायें कम करने की पुख्ता योजना बनानी और लागू करनी चाहिये। जीवन में सबसे अधिक तनाव पैसे के कुप्रबन्धन से उपजते हैं।

2. हमारी आवश्यकतायें जितनी कम होंगी , हमारे तनाव और हमारे खर्च उतने ही कम होंगे। किसी भी प्रकार का निरर्थक खर्च से बचे

3.अपने बुजुर्गों का पूरा आदर - सम्मान करें। उनको , अगर आपको बड़े त्याग भी करने पड़ें , तो भी , समायोजित (accommodate) करने का यत्न करें। आपके त्याग में आपको जो कष्ट होगा , भगवान आपको अपनी अनुकम्पा से उसकी पूरी या कहीं अधिक भरपायी करेंगे।

4.किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहें। पारिवारिक जीवन में बहुत से क्लेश किसी न किसी सदस्य की नशाखोरी की आदत से उपजते हैं। यह नशाखोरी विवेक का नाश करती है। आपकी सही निर्णय लेने की क्षमता समाप्त करती है। आपको पतन के गर्त में उतारती चली जाती है और आपको आभास भी नहीं होता।

5.तनाव और क्रोध दूर करने के लिये टकराव प्रबंधन (conflict management) पर ध्यान दें।  

6 पैसा कलह की अधिकांश वजहों में खास है, पैसा नहीं, दरअसल पैसे का प्रबंधन समस्या है। लोग खर्च प्लान करते हैं, इनकम प्लान नहीं करते। लोग यह भी मानकर चलते हैं कि जो जीवन आज है, वैसा ही हमेशा चलेगा। जितनी कमाई आज है, उतनी ही पचास साल बाद होगी या इससे ज्यादा होगी। वित्तीय निरक्षरता इस समस्या की खास वजह है।

7 अहंकार (ego) से दूर रहे। इसका समाधान आसान नहीं है। इसके लिए बहुत शुरु से चरित्र का निर्माण करना चाहिए। इंसान की पहचान उसके संस्कारों से बनती है। संस्कार उसके समूचे जीवन को जाहिर करते हैं। इसलिए आवश्यक है कि सबसे पहले परिवार संस्कारवान बने, माता-पिता संस्कार वाले बनें, तभी बच्चे चरित्रवान बनकर घर की, परिवार की प्रतिष्ठा को और बढ़ा सकेंगे। 

8  दूसरों के प्रति नकारात्मक सोच सिर्फ झगडे व कलह का ही कारण बनती है, संबंधों को बनाती नहीं बल्कि बिगाडती है, इसलिए नकारात्मक सोच से जितना जल्दी हो सके, बाहर आने का प्रयास करें।.

9 पारिवारिक कलह के पीछे खाली दिमाग की भी अहम भूमिका है। उसे काम रुपी चारा लगातार मिलना चाहिये नही तो वह खुरापात मे लग जाता है।

10  गृह- कलह के कारण क्या होते हैं इस पर विचार किया जाये तो यही निष्कर्ष सामने आता है कि बहुत छोटी- छोटी बातों को तूल देने वाला छिछोरा अहं, तालमेल न बैठा सकने की हेकड़ी, भावनात्मक असंतुलन एवं पारस्परिक अविश्वास ही इसके मूल में होते हैं और इसका परिणाम घर को नरक बना डालने के रूप से सामने आता है।

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