1. positive thinking
अच्छा सोचिए, सेहतमंद बनिए
लाइफ में जैसे-जैसे भौतिक सुविधाएं बढ़ती जा रही हैं, वैसे-वैसे नेगेटिव सोच बढ़ती जा रही है। निगेटिव थिंकिंग का ही आलम है कि हर तरफ निराशा, हिंसा का वातावरण बनता जा रहा है। आइए जानें पॉजिटिव थिंकिंग के फायदे : काउंसलर के अनुसार,सकारात्मक सोच से आदमी के अंदर ऊर्जा आती है। मुश्किल वक्त भी कट जाता है। जिनकी सोच पॉजिटिव वे किसी भी महफिल में छा जाते हैं
साइकोलॉजिस्ट बताते हैं-पॉजिटिव थिंकिंग से रास्ते की मुश्किलें हल हों या न हों, मन का तनाव जरूर खत्म हो जाता है। जिनकी सोच पॉजिटिव रहती है वे किसी भी महफिल में छा जाते हैं। रिसर्च के अनुसार, सकारात्मक सोचने वालों की उम्र भी अधिक होती है। कुल मिलाकर सकारात्मक सोच 'हैप्पी लांग लाइफ' की कुंजी है। जॉब के लिए भी जब आप जाते हैं तो आपके पॉजिटिव एटीट्यूड को नोट किया जाता है।
एक बार इन्हें अपनाएं
फ्रेंड सर्कल : पॉजिटिव थिंकिंग वाले लोगों के साथ रहें। यह बहुत जरूरी है आप के आस-पास के लोग सकारात्मक सोच वाले हों। फिर देखिए कि कैसे मुश्किल हालात भी आसान हो जाते हैं।
दयालुता - इसकी शुरुआत भी आप अपने आप से करें। खुद के प्रति दयालु रहें आपकी सोच पॉजिटिव हो जाएगी। फिर अपने आसपास के लोगों को जानिए कि किसे आपकी भावनात्मक या सामाजिक जरूरत है? सबको दया की दृष्टि से देखना शुरू कीजिए आपके मन में खुद ब खुद कोमल भाव आने लगेगें।
विश्वास- जी हां, फरेब की इस दुनिया में विश्वास के साथ चलें। आपका विश्वास आपको दिशा देगा। सबसे ज्यादा जरूरी है स्वयं पर विश्वास। फिर ईश्वर पर विश्वास रखें कि वे आपके साथ कभी कुछ बुरा नहीं करेंगे बल्कि जो आपकी प्रगति के लिए बेहतर होगा वही प्रयोग आपके साथ भगवान करेगा।
प्रेरणा - जिस व्यक्ति का काम अच्छा लगे उससे प्रेरणा लें। अखबार के अलावा किताबें पढ़ने की आदत डालें। हर किसी में अच्छी बातें तलाशें और जिनसे आप प्रभावित हों व जो समाज हित में हो उसे अपने जीवन में अपनाएं।
स्माइल- सबसे अधिक जरूरी है एक प्यारी-सी, मीठी-सी स्माइल। आपका मुस्कुराना दूसरों से पहले आपको तनावमुक्त करता है। मुस्कान सोच में बदलाव लाती है।
रिलैक्स्ड रहें - दिन भर में पचासों ऐसे कारण सामने आते है जिनसे खीज होती है, स्वस्थ रहने के लिए बेहतर है कि यह खीज आपके साथ क्षण भर ही रहे। तुरंत नियंत्रण पाने की कोशिश करें। खुद को परेशानी से तुरंत दूर करना ही सेहत के लिए बेहतर है।
ध्यान बांटे- जो बात आपको ज्यादा परेशान कर रही है उससे अपना ध्यान हटा कर उन बातों की तरफ रूख कीजिए जो आपको अच्छी लगती है। जैसे ऑफिस में काम के बीच थोड़ी देर के लिए ब्रेक ले लीजिए और गूगल पर खूबसूरत फ्लॉवर्स या क्यूट बेबी सर्च कीजिए। जरूरी नहीं आप भी यही करें आप अपनी रूचि के इमेज तलाश कर सकते हैं। अगर आपको टेडी से प्यार है तो आप उसके आकर्षक फोटो देख लीजिए या फिर लिटिल बर्ड। च्वॉइस आपकी।
प्यार के बारे में सोचें- हम सभी अपने जीवन में एक बार प्यार अवश्य करते हैं। स्वस्थ रहने के लिए वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है प्यार की मधुर स्मृतियां आपको ताकत देती है। याद रहे, प्यार की अच्छी और सुखद बातें ही सोचें ना कि तकलीफदेह बातें।प्यार के सुहाने पल मन में मीठी गुदगुदी का भाव जगाते हैं इसलिए ब्रेकअप के बजाय उससे पहले के लगाव और नए-नए आकर्षण की बातें सोचें आपको उनसे जीवन जीने की नई ऊर्जा मिलेगी।
आप सब
ने नकारात्मक और सकारात्मक सोच के बारे में न केवल ढेर सारे लेख ही पढ़े होंगे,
बल्कि जीवन-प्रबंधन से जुड़ी छोटी-मोटी और मोटी-मोटी किताबें भी पढ़ी होंगी। जब आप
इन्हें पढ़ते हैं, तो तात्कालिक रूप से आपको सारी बातें बहुत सही और प्रभावशाली
मालूम पड़ती हैं और यह सच भी है। लेकिन कुछ ही समय बाद धीरे-धीरे वे बातें दिमाग
से खारिज होने लगती हैं और हमारा व्यवहार पहले की तरह ही हो जाता है।
इसका मतलब यह नहीं होता कि किताबों में सकारात्मक सोच पर जो बातें कही गई थीं, उनमें कहीं कोई गलती थी। गलती मूलतः हममें खुद में होती है। हम अपनी ही कुछ आदतों के इस कदर बुरी तरह शिकार हो जाते हैं कि उन आदतों से मुक्त होकर कोई नई बात अपने अंदर डालकर उसे अपनी आदत बना लेना बहुत मुश्किल काम हो जाता है लेकिन असंभव नहीं। लगातार अभ्यास से इसको आसानी से पाया जा सकता है।
हम महसूस करते हैं कि हमारा जीवन मुख्यतः हमारी सोच का ही जीवन होता है। हम जिस समय जैसा सोच लेते हैं, कम से कम कुछ समय के लिए तो हमारी जिंदगी उसी के अनुसार बन जाती है। यदि हम अच्छा सोचते हैं, तो अच्छा लगने लगता है और यदि बुरा सोचते हैं, तो बुरा लगने लगता है। इस तरह यदि हम यह नतीजा निकालना चाहें कि मूलतः अनुभव ही जीवन है, तो शायद गलत नहीं होगा।
आप थोड़ा सा समय लगाइए और अपनी जिंदगी की खुशियों और दुःखों के बारे में सोचकर देखिए। आप यही पाएंगे कि जिन चीजों को याद करने से आपको अच्छा लगता है, वे आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देती हैं और जिन्हें याद करने से बुरा लगता है, वे आपकी जिंदगी को दुखों से भर देती हैं।
आप बहुत बड़े मकान में रह रहे हैं लेकिन यदि उस मकान से जुड़ी हुई स्मृतियां अच्छी और बड़ी नहीं हैं तो वह बड़ा मकान आपको कभी अच्छा नहीं लग सकता। इसके विपरीत यदि किसी झोपड़ी में आपने जिंदगी के खूबसूरत लम्हे गुजारे हैं, तो उस झोपड़ी की स्मृति आपको जिंदगी का सुकून दे सकती हैं।
इस बारे में एक कहानी है- एक सेठजी प्रतिदिन सुबह मंदिर जाया करते थे। एक दिन उन्हें एक भिखारी मिला। इच्छा न होने के बाद भी बहुत गिड़गिड़ाने पर सेठजी ने उसके कटोरे में एक रुपए का सिक्का डाल दिया। सेठजी जब दुकान पहुंचे तो देखकर दंग रह गए कि उनकी तिजोरी में सोने की एक सौ मुहरों की थैली रखी हुई थी। रात को उन्हें स्वप्न आया कि मुहरों की यह थैली उस भिखारी को दिए गए एक रुपए के बदले मिली है।
इसका मतलब यह नहीं होता कि किताबों में सकारात्मक सोच पर जो बातें कही गई थीं, उनमें कहीं कोई गलती थी। गलती मूलतः हममें खुद में होती है। हम अपनी ही कुछ आदतों के इस कदर बुरी तरह शिकार हो जाते हैं कि उन आदतों से मुक्त होकर कोई नई बात अपने अंदर डालकर उसे अपनी आदत बना लेना बहुत मुश्किल काम हो जाता है लेकिन असंभव नहीं। लगातार अभ्यास से इसको आसानी से पाया जा सकता है।
हम महसूस करते हैं कि हमारा जीवन मुख्यतः हमारी सोच का ही जीवन होता है। हम जिस समय जैसा सोच लेते हैं, कम से कम कुछ समय के लिए तो हमारी जिंदगी उसी के अनुसार बन जाती है। यदि हम अच्छा सोचते हैं, तो अच्छा लगने लगता है और यदि बुरा सोचते हैं, तो बुरा लगने लगता है। इस तरह यदि हम यह नतीजा निकालना चाहें कि मूलतः अनुभव ही जीवन है, तो शायद गलत नहीं होगा।
आप थोड़ा सा समय लगाइए और अपनी जिंदगी की खुशियों और दुःखों के बारे में सोचकर देखिए। आप यही पाएंगे कि जिन चीजों को याद करने से आपको अच्छा लगता है, वे आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देती हैं और जिन्हें याद करने से बुरा लगता है, वे आपकी जिंदगी को दुखों से भर देती हैं।
आप बहुत बड़े मकान में रह रहे हैं लेकिन यदि उस मकान से जुड़ी हुई स्मृतियां अच्छी और बड़ी नहीं हैं तो वह बड़ा मकान आपको कभी अच्छा नहीं लग सकता। इसके विपरीत यदि किसी झोपड़ी में आपने जिंदगी के खूबसूरत लम्हे गुजारे हैं, तो उस झोपड़ी की स्मृति आपको जिंदगी का सुकून दे सकती हैं।
इस बारे में एक कहानी है- एक सेठजी प्रतिदिन सुबह मंदिर जाया करते थे। एक दिन उन्हें एक भिखारी मिला। इच्छा न होने के बाद भी बहुत गिड़गिड़ाने पर सेठजी ने उसके कटोरे में एक रुपए का सिक्का डाल दिया। सेठजी जब दुकान पहुंचे तो देखकर दंग रह गए कि उनकी तिजोरी में सोने की एक सौ मुहरों की थैली रखी हुई थी। रात को उन्हें स्वप्न आया कि मुहरों की यह थैली उस भिखारी को दिए गए एक रुपए के बदले मिली है।
ND
जैसे ही नींद खुली वे यह सोचकर दुखी हो गए कि उस दिन तो मेरी जेब में एक-एक रुपए के दस सिक्के थे, यदि मैं दसों सिक्के भिखारी को दे देता तो आज मेरे पास सोने की मुहरों की दस थैलियां होतीं। अगली सुबह वे फिर मंदिर गए और वही भिखारी उन्हें मिला। वे अपने साथ सोने की सौ मुहरें लेकर गए ताकि इसके बदले उन्हें कोई बहुत बड़ा खजाना मिल सके। उन्होंने वे सोने की मुहरें भिखारी को दे दीं। वापस लौटते ही उन्होंने तिजोरी खोली और पाया कि वहां कुछ भी नहीं था। सेठजी कई दिनों तक प्रतीक्षा करते रहे। उनकी तिजोरी में कोई थैली नहीं आई। सेठजी ने उस भिखारी को भी ढुंढवाया लेकिन वह नहीं मिल सका। उस दिन से सेठजी दुखी रहने लगे।
क्या आप यह नहीं समझते कि सेठजी ने यह जो समस्या पैदा की, वह अपने लालच और नकारात्मक सोच के कारण ही पैदा की। यदि उनमें संतोष होता और सोच की सकारात्मक दिशा होती तो उनका व्यक्तित्व उन सौ मुहरों से खिलखिला उठता। फिर यदि वे मुहरें चली भी गईं, तो उसमें दुखी होने की क्या बात थी, क्योंकि उसे उन्होंने तो कमाया नहीं था लेकिन सेठजी ऐसा तभी सोच पाते, जब वे इस घटना को सकारात्मक दृष्टि से देखते। इसके अभाव में सब कुछ होते हुए भी उनका जीवन दुखमय हो गया।
इसलिए यदि आपको सचमुच अपने व्यक्तित्व को प्रफुल्लित बनाना है तो हमेशा अपनी सोच की दिशा को सकारात्मक रखिए। किसी भी घटना, किसी भी विषय और किसी भी व्यक्ति के प्रति अच्छा सोचें, उसके विपरीत न सोचें। दूसरे के प्रति अच्छा सोचेंगे, तो आप स्वयं के प्रति ही अच्छा करेंगे। कटुता से कटुता बढ़ती है। मित्रता से मित्रता का जन्म होता है। आग, आग लगाती है और बर्फ ठंडक पहुंचाती है।
सकारात्मक सोच बर्फ की डल्ली है जो दूसरे से अधिक खुद को ठंडक पहुंचाती है। यदि आप इस मंत्र का प्रयोग कुछ महीने तक कर सके तब आप देखेंगे कि आप के अंदर कितना बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया है। जो काम सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन नहीं कर सकता, सैकड़ों सत्संग नहीं कर सकते, सैकड़ों मंदिर की पूजा और तीर्थों की यात्राएं नहीं कर सकते, वह काम सकारात्मकता संबंधी यह मंत्र कर जाएगा। आपका व्यक्तित्व चहचहा उठेगा। आपके मित्रों और प्रशंसकों की लंबी कतार लग जाएगी।
आप जिससे भी एक बार मिलेंगे, वह बार-बार आपसे मिलने को उत्सुक रहेगा। आप जो कुछ भी कहेंगे, उसका अधिक प्रभाव होगा। लोग आपके प्रति स्नेह और सहानुभूति का भाव रखेंगे। इससे अनजाने में ही आपके चारों ओर एक आभा मंडल तैयार होता चला जाएगा। यही वह व्यक्तित्व होगा, जो अपने परीक्षण की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरा उतरेगा-24 कैरेट स्वर्ण की तरह।
आप पर निर्भर करते हैं परिणाम
अगर आपने ध्यान सकारात्मकता पर केंद्रित कर लिया तब न केवल अच्छे विचार आएंगे, बल्कि आप स्वयं के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ हो पाएंगे। यह स्थिति आते ही आपके कार्यों पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ना आरंभ हो जाएगा। एक बार आपके मन में सकारात्मकता के विचार आना आरंभ हो गए तब आप अपने आपमें स्वयं ही परिवर्तन देखेंगे और यह परिवर्तन आपके साथियों को भी नजर आने लगेगा।
सकारात्मकता के कारण ही कंपनियां अपने कर्मचारियों को आगे बढ़ने का मौका देती हैं। यही नहीं, कंपनियां अब इस बात को पहले इंटरव्यू में ही जान लेती हैं कि आने वाले व्यक्ति का स्वभाव कैसा है। क्या वह सकारात्मकता में विश्वास रखता है कि नहीं? वह नकारात्मक परिस्थितियों में किस प्रकार की प्रतिक्रिया देता है? क्या वह केवल दिखावे के लिए सकारात्मकता का चोला ओढ़े हुए है? कोई भी कंपनी ऐसा कर्मचारी नहीं रखना चाहती, जिसकी नकारात्मक विचारधारा हो। इसलिए 'थिंक पॉजीटिव...एक्ट पॉजीटिव'।
नकारात्मक सोच से ऐसे बचें
सकाराकता अपने आपमें सफलता, संतोष और संयम लेकर आती है। व्यक्ति मूलतः सकारात्मक ही रहता है, परंतु कई बार नकारात्मक कदमों के कारण असफलता हाथ लग जाती है। इस असफलता का व्यक्ति पर कई तरह से असर पड़ता है। वह भावनात्मक रूप से टूटता है, वहीं इन सभी का असर उसके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है। व्यक्तित्व पर असर लंबे समय के लिए पड़ता है तथा वह कई बार अवसाद में भी चला जाता है।
ऐसी स्थिति से बाहर आने में काफी लंबा समय भी लग सकता है। नकारात्मकता से आखिर कैसे बचे? क्योंकि प्रोफेशनल वर्ल्ड में हमें तरह-तरह के लोगों से मिलना पड़ता है। साथ ही अपने आपको प्रतिस्पर्धा के इस युग में आगे बनाए रखने के लिए भी तरह-तरह के जतन करना पड़ते हैं। ऐसे में हम अपने आपको सकारात्मक बनाए रखने के लिए स्वयं ही प्रयत्न कर सकते हैं।
परिस्थितियों को पहचानें
अक्सर हमारे मन में कोई भी आवश्यक कार्य या कोई बिजनेस मीटिंग के पूर्व नकारात्मक विचार आते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो? अगर मीटिंग सफल नहीं हुई तब? मेरा फर्स्ट इम्प्रेशन गलत पड़ गया तो फिर क्या होगा? इस प्रकार के प्रश्न मन में आते जरूर हैं। इनसे पीछा छु़ड़ाने के लिए इन बातों का अध्ययन करें कि आखिर ये प्रश्न कौन-सी परिस्थितियों में उपजते हैं। फिर इन समस्याओं से छुटकारा पाने की कोशिश करें, सकारात्मक सोच बनाए रखें।
इन परिस्थितियों में संभलना सीखें
जिन परिस्थितियों में नकारात्मक विचार आते हैं, उनसे सही तरीके से सामना करना सीखें। इस बात की तरफ ध्यान दें कि इन परिस्थितियों के दौरान अब आप पहले जैसी प्रतिक्रिया नहीं देंगे और इस दौरान संयमित होकर स्वयं के सफल होने की ही कामना स्वयं से करेंगे। आप ऐसा करेंगे तो आप देखेंगे कि जो नकारात्मक विचार आ रहे हैं वह धीरे-धीरे पॉजीटिव सोच मे बदल जाएंगे।
स्वयं से तर्क करना सीखें
नकारात्मकता का जवाब सकारात्मकता के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता यह बात मन में बैठा लें। इसके बाद जो भी नकारात्मक विचार मन में आए उसके साथ तर्क करना सीखें और वह भी सकारात्मकता के साथ। जिस प्रकार से नकारात्मक विचार लगातार आते रहते हैं, ठीक उसी तरह से आप स्वयं से सकारात्मक विचारों के लिए स्वयं को प्रेरित करें और अपने प्रयासों में सफलता हासिल करें।
2.Self-confidence
सफलता का पहला रहस्य आत्मविश्वास
आत्मविश्वास (Self-confidence) वस्तुतः एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति
है। आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान
कार्यों के सम्पादन में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती
है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार
की चिन्ता नहीं रहती। उसे कोई चिन्ता नहीं सताती। दूसरे व्यक्ति जिन सन्देहों और
शंकाओं से दबे रहते हैं, वह उनसे सदैव मुक्त रहता है।
यदि आप कोई महान कार्य करना चाहते हैं तो सबसे
पहले मन में स्वाधीनता के विचार भरिए। जिस मनुष्य का मन सन्देह, चिन्ता और भय से
भरा हो, वह महान कार्य तो क्या, कोई सामान्य कार्य भी नहीं कर सकता। सन्देह और
संशय आपके मन को कभी भी एकाग्र न होने देंगे। मन की एकाग्रता कार्य-सम्पादन के लिए
आवश्यक शर्त है।
आत्मविश्वास वह अद्भुत शक्ति है जिसके बल पर एक
अकेला मनुष्य हजारों विपत्तियों एवं शत्रुओं का सामना कर लेता है। निर्धन
व्यक्तियों की सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बड़ा मित्र आत्मविश्वास ही है। इस संसार
में जितने भी महान कार्य हुए हैं या हो रहे हैं, उन सबका मूल कारण आत्मविश्वास ही
है। संसार में जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, यदि हम उनका जीवन इतिहास पढ़ें तो
पाएंगे कि इन सभी में एक समानता थी और वह समानता थी- आत्मविश्वास की।
जब किसी व्यक्ति को यह अनुभव होने लगता है कि वह
उन्नति कर रहा है, ऊंचा उठ रहा है, तब उसमें स्वतः आत्मविश्वास से पूर्ण बातें
करने की शक्ति आ जाती है। उसे शंका पर विजय प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के
मुखमण्डल पर विजय का प्रकाश जगमगा रहा हो, सारा संसार उसका आदर करता है और उसकी
विजय विश्वास में परिणत हो जाती है। आपने भी अनेक बार अनुभव किया होगा कि जो
व्यक्ति आप पर अपनी शक्ति का प्रभाव डालते हैं, आप उनका विश्वास करने लगते हैं। इस
सबका कारण उनका आत्मविश्वास है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह स्वतः
दिव्य दिखाई पड़ने लगता है, जिसके कारण हम उसकी ओर खिंच जाते हैं और उसकी शक्ति पर
विश्वास करने लगते हैं।
स्वामी विवेकानंद का कथन है- ‘जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है, वह बलवान होकर भी डरपोक है और विद्वान होकर भीमूर्ख है।’ अर्थात् वह व्यक्ति, जो सर्वगुण सम्पन्न और योग्य होता है, किन्तु अगर उसमें आत्मविश्वास न हो, तो सफलताउससे हमेशा दूर ही रहती है। इसी आत्मविश्वास के सहारे मानव आज पाषाण युग से निरन्तर प्रगति की राह पर अग्रसर होतेहुए इस समय रॉकेट युग में प्रवेश कर चुका है। तभी तो स्वेट मार्डेन कहते हैं, ‘सारी पढ़ाई, योग्यताएं, अनुभव, आत्मविश्वास केबिना वैसे ही हैं, जैसे डोरी के बिना माला के मोती।’ जिस व्यक्ति को अपने पर विश्वास होता है, वह हर असम्भव से कार्य कोअपने परिश्रम और साहस से संभव बना लेता है। ठीक उसी तरह, जिस प्रकार एक कुशल सारथी एक उद्दंड घोड़े को अपने प्रयासेंसे अपने बस में करने में सफलता अर्जित कर लेता है।
इन सब में विश्वास, उत्साह के साथ एक और बात का होना आवश्यक होता है, और वह है ‘आशा।’ जी हां, हर कार्य को करने केपूर्व मन-मस्तिष्क में ये होना चाहिए कि हम जो कार्य कर रहे हैं या करने जा रहे हैं, उसमें पूर्ण रूप से सफलता मिलना लगभगनिश्चित ही है। इस संबंध में मुंशी प्रेमचंद जी ने कहा है, ‘आशा, उत्साह की जननी होती है क्योंकि आशा में तेजी है, शक्ति है,जीवन है और यही आशा तो ससार की संचालक शक्ति होती है।’ यदि आशा नहीं हो, तो फिर उत्साह व विश्वास भी कभी-कभीक्षीण हो जाता है। सफलता के लिये मनुष्य का सर्वप्रथम अपने मन पर पूर्ण रूप से अधिकार होना चाहिए। उसके बाद उसकोअपना सम्पूर्ण ध्यान अध्ययन की ओर ही केन्द्रित करके रखना चाहिए, क्योंकि विश्वास मानव मन का सच्चा सेनापति होताहै, जो उसकी आत्म क्षमताएं अर्थात् शक्ति को निरन्तर बढ़ाते हुए उत्साह व आशा को बनाये रखता है। जिन व्यक्तियों कीइच्छाशक्ति बहुत अधिक दुर्बल अर्थात् आत्मविश्वास क्षीण हो जाता है। वे किसी सरल कार्य में भी सफलता प्राप्त करने मेंहमेशा वंचित रहते हैं। तभी तो विलियम जेम्स कहते हैं, ‘जीवन से कभी डरो मत और हमेशा विश्वास यही रखो कि यह जीवनजीने योग्य है और तुम्हारा यही विश्वास जीवन में तथ्यों के नये निर्माण में सच्चा सहायक साबित होगा।’
जिस व्यक्ति के पास आत्मविश्वास का अभाव होगा, वह अन्य चीजों पर किस प्रकार विश्वास उत्पन्न कर सकता है औरसफलता भी ऐसे अविश्वासी व्यक्तियों से हमेशा दूर रहती है। सफलता के लिए एकाग्रता का होना भी उतना ही आवश्यक है,जितना कि आत्मविश्वास। यही सूत्र हमें सफलता की ओर ले जाता है। अतः आशा, उत्साह और आत्मविश्वास तीनों में अगरसमानता है, तब तो सफलता स्वयं कदम चूमती है। अगर परिश्रम पूर्ण लगन और संयम के साथ किया गया हो, तब सफलतामिनलर निश्चित है। हर कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए भी एकाग्रचित होना अत्यधिक आवश्यक है। अन्त में स्वेटमार्डन का यह कथन कि ‘ऊंची से ऊंची चोटी पर पहुंचना हो, तो अपना सफर निचली से निचली सतह से प्रारम्भ करो और अपनेकाम से जिसका संबंध हो, ऐसी किसी भी बात को व्यर्थ और अनुपयोगी समझकर बेकार न जाने दो, बल्कि उसका पूरी बारीकीके साथ अध्ययन कर ज्ञान प्राप्त करो।’ ये सब तभी सम्भव है, जबकि आपके पास आत्मविश्वास की पूंजी हो।
इन सब में विश्वास, उत्साह के साथ एक और बात का होना आवश्यक होता है, और वह है ‘आशा।’ जी हां, हर कार्य को करने केपूर्व मन-मस्तिष्क में ये होना चाहिए कि हम जो कार्य कर रहे हैं या करने जा रहे हैं, उसमें पूर्ण रूप से सफलता मिलना लगभगनिश्चित ही है। इस संबंध में मुंशी प्रेमचंद जी ने कहा है, ‘आशा, उत्साह की जननी होती है क्योंकि आशा में तेजी है, शक्ति है,जीवन है और यही आशा तो ससार की संचालक शक्ति होती है।’ यदि आशा नहीं हो, तो फिर उत्साह व विश्वास भी कभी-कभीक्षीण हो जाता है। सफलता के लिये मनुष्य का सर्वप्रथम अपने मन पर पूर्ण रूप से अधिकार होना चाहिए। उसके बाद उसकोअपना सम्पूर्ण ध्यान अध्ययन की ओर ही केन्द्रित करके रखना चाहिए, क्योंकि विश्वास मानव मन का सच्चा सेनापति होताहै, जो उसकी आत्म क्षमताएं अर्थात् शक्ति को निरन्तर बढ़ाते हुए उत्साह व आशा को बनाये रखता है। जिन व्यक्तियों कीइच्छाशक्ति बहुत अधिक दुर्बल अर्थात् आत्मविश्वास क्षीण हो जाता है। वे किसी सरल कार्य में भी सफलता प्राप्त करने मेंहमेशा वंचित रहते हैं। तभी तो विलियम जेम्स कहते हैं, ‘जीवन से कभी डरो मत और हमेशा विश्वास यही रखो कि यह जीवनजीने योग्य है और तुम्हारा यही विश्वास जीवन में तथ्यों के नये निर्माण में सच्चा सहायक साबित होगा।’
जिस व्यक्ति के पास आत्मविश्वास का अभाव होगा, वह अन्य चीजों पर किस प्रकार विश्वास उत्पन्न कर सकता है औरसफलता भी ऐसे अविश्वासी व्यक्तियों से हमेशा दूर रहती है। सफलता के लिए एकाग्रता का होना भी उतना ही आवश्यक है,जितना कि आत्मविश्वास। यही सूत्र हमें सफलता की ओर ले जाता है। अतः आशा, उत्साह और आत्मविश्वास तीनों में अगरसमानता है, तब तो सफलता स्वयं कदम चूमती है। अगर परिश्रम पूर्ण लगन और संयम के साथ किया गया हो, तब सफलतामिनलर निश्चित है। हर कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए भी एकाग्रचित होना अत्यधिक आवश्यक है। अन्त में स्वेटमार्डन का यह कथन कि ‘ऊंची से ऊंची चोटी पर पहुंचना हो, तो अपना सफर निचली से निचली सतह से प्रारम्भ करो और अपनेकाम से जिसका संबंध हो, ऐसी किसी भी बात को व्यर्थ और अनुपयोगी समझकर बेकार न जाने दो, बल्कि उसका पूरी बारीकीके साथ अध्ययन कर ज्ञान प्राप्त करो।’ ये सब तभी सम्भव है, जबकि आपके पास आत्मविश्वास की पूंजी हो।
सफलता हेतु आत्मविश्वासअनिवार्य हैं
हम सब में कुछ खास बात है। आप सबमें किसी न किसी रूप मंे कोई न कोई विशेषता है।दूसरों से अच्छाई है।हम अद्वितीयहै, अनुपम है, खास है।
यह दुर्भाग्य की बात है कि हम अपनी खास बात को स्पष्ट रूप से नही जानते है। हम अपने को वक्त नही देते है। स्वयं कीअनदेखी करते है। स्वयं को भुल जाते है। अपने को महत्व नही देते, अपनी विशेषता नही खोजते है।
परमात्मा ने, प्र्रकृति ने, अस्तित्व ने आपको, हमको, सबको सकारण बनाया है। हम उसी की योजना के अनुसार हेै। वह व्यर्थकुछ नहीं करता हैं। फिर हम बेकार के कैसे हो सकते है?
हम उसी विराट के अंश है, चाहे कितने ही छोटे हो ,इसलिए याद करें:
मैं जानता हूँ
·
मैं जानता हूँ कि मैं एक विशिष्ट व्यक्ति हूँ। मेरे जैसा इस धरती पर कोई नहीं है, न ही मेरे जितनी क्षमता किसी मेंहै।
·
मैं अनुपम हूँ। मेरा जन्म एक विशेष लक्ष्य के लिए हुआ हैं
·
मैं अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग लोगों की भलाई के लिए करूँगा। मुझे विलक्षण योग्यता का वरदान मिला है एवंसफलता प्राप्ति के गुणों से मेरा व्यक्तित्व परिपूर्ण है।
·
मैं अपने व्यवहार द्वारा दूसरों को प्रभावित करता हूँ, इस प्रकार भावी पीढ़ी मुझ से प्रभावित होती है।
·
वर्तमान सोच एवं भावनाओं पर मेरा पूर्ण नियन्त्रण है यही मेरे व्यवहार और मेरे प्रति दूसरांे की प्रतिक्रिया तयकरता है।
·
वास्तव में, अपने भविष्य के निर्माण और जीवन में अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इसी की जरूरत है।
मुझे स्वयं पर विश्वास है। मैं जानता हूँ कि मै महानता के योग्य हूँ। मुझ में हैं कुछ खास बात।
असंभव कुछ भी नहीं!
स्वास्थ्य सबसे
बड़ी
दौलत
है . संतोष
सबसे
बड़ा
खजाना
है . आत्म -विश्वास
सबसे
बड़ा
मित्र
है .जैसा
हमारा
आत्मविश्वास
होता
है
वैसी
हमारी
क्षमता
होती
है .अपनी
क्षमता
को
पहचानकर
और
उस पे विश्वास
कर
के
,कोई
एक
बेहतर
दुनिया
बना
सकता
है असल में जिस व्यक्ति, वस्तु अथवा प्राणी को हम मन से चाहते हैं, जिसे प्यार करते हैं, वह हमें बोझ नहीं लगता। इसके अलावा, जब हम कोई काम बार-बार करते अथवा दोहराते हैं, तो वह काम न केवल हमारे लिए सरल हो जाता है, बल्कि हमारी कार्य करने की क्षमता में भी वृद्धि होने लगती है। इसलिए यदि किसी कार्य में विशेष दक्षता अथवा प्रवीणता हासिल करनी है तो उसे प्रारंभ से ही सीखना शुरू कर दो।
विपरीत परिस्थितियों में भी प्रबल इच्छाशक्ति रखनेवालों के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता।
सफलता उसे ही मिलती है, जो सफलता की इच्छा करता है। इच्छा करने के बाद ही व्यक्ति कुछ करने के लिए प्रवृत्त होता है। मजबूत इच्छाशक्ति यानी विल पॉवर व्यक्ति को किसी भी ऊंचाई तक पहुंचा सकती है। असफल होने के बाद भी सफल वही होते हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी प्रबल इच्छाशक्ति रखते हैं। ऐसे लोगों के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता है।
कहते हैं कि ‘जहां चाह, वहां राह।’ पर इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति, दृढ़ निश्चय और सतत प्रयास की जरूरत होती है। असंभव को संभव कर दिखाने के लिए जबरदस्त विल पॉवर जरूरी है। यह एक ऐसी संपत्ति है, जो ऐसा करने में आपकी मददगार साबित होगी। विल पॉवर के बल पर व्यक्ति किसी भी ऊंचाई तक पहुंच सकता है, यदि उसमें अनुशासन के साथ काम करने की लगन भी हो। विश्व में कई ऐसे लोग हुए हैं, जिन्होंने सिर्फ अपनी इच्छाशक्ति के बल पर ऐसे कारनामे कर दिखाए, जो दूसरों की नजर में असंभव कार्य थे।
आप भी उनमें से एक हो सकते हैं। इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखें :
सोचें कि दुनिया में कोई भी काम असंभव नहीं है। इस तरह से सोचना आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा।
असंभव को भी संभव कर दिखाने का विचार विकसित करना तो ठीक है, पर सिर्फ ऐसे विचार से बात नहीं बनती। जरूरत है लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए योजनाएं बनाने की। इसके बाद योजनाओं का पालन करना उतना ही जरूरी है, जितना योजनाएं बनाना।
अपनी उन कमजोरियों को जानने-समझने की कोशिश करें, जो आपको आगे बढ़ने से रोकती हैं। संभव हो तो इसकी एक लिस्ट बना लें। बार-बार उस पर नजर डालने से उन कमजोरियों को दूर करने का भाव आपके मन में आएगा। ध्यान रखें कि जब तक आप अपनी कमजोरियों पर विजय नहीं पाएंगे, आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएंगे।
नकारात्मक सोच को अपने मन से निकाल फेंकें। काम के दौरान निराश होने, काम को टालने और झेंपने से आप अपनी मंजिल से दूर ही होते जाएंगे। नकारात्मक विचारों से दूर रहने से विल पॉवर को और बल मिलता है।
इच्छाशक्ति रखने के बावजूद यदि आपका स्वास्थ्य आपके साथ नहीं है, तो आप अपने लक्ष्य से वंचित ही रहेंगे। इसलिए जहां अपने खान-पान का ध्यान रखना जरूरी है, वहीं योग-ध्यान और व्यायाम भी जरूरी है।
सुनियोजित योजना और प्रबल इच्छाशक्ति के बल पर जब आप अपनी कमजोरियों पर विजय पा लेंगे, तो निश्चय ही असंभव को संभव कर दिखाएंगे और सफलता आपके करीब होगी।
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