5/31/12

उतावलापन- जल्दबाजी

उतावलापन, जल्दबाजी, हड़बड़ी मनुष्य के स्वभाव का एक ऐसा दोष है जो बने हुए काम तो बिगाड़ता ही है, सफलता को असफलता में भी बदल देता है। उतावला व्यक्ति किसी काम को उसका परिणाम जाने बिना हड़बड़ी में कर डालता है और बाद में उसका खामियाजा भुगतता है। उतावलापन केवल जीवन को अस्तव्यस्त करता है, बल्कि कई बीमारियों को भी जन्म देता है।
उतावलेपन के कारण हमारे मन-मस्तिष्क पर अनावश्यक दबाव पड़ता है। तीव्रता के कारण शरीर की चर्बी अधिक तेजी से खर्च होने लगती है, जिससे शरीर में एलिमिनेशन (उन्मूलन) प्रक्रिया शुरू हो जाती है। यह प्रक्रिया शरीर में पोषक तत्वों की कटौती करने लगती है और ऊर्जा कम होने लगती है।
बिगड़ जाती है सोचने की क्षमता
शरीर और मस्तिष्क की अपनी एक क्षमता होती है। इसके विपरीत सोचने या करने से शरीर थकता तो ही है, उसकी शक्ति भी क्षीण होती है। मनोवैज्ञानिकों ने अपने शोध के बाद जो तथ्य सामने रखे हैं, उनसे पता चलता है कि उतावलेपन से हड़बड़ी और बढ़ जाती है। यह आदत बाद में इतनी मजबूत हो जाती है कि शरीर की कार्यशैली बदल जाती है और अंतत: शरीर को इससे नुकसान होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे शरीर में हरी हार्मोन का बनना तेज हो जाता है  जो हमारी चिंतन प्रणाली पर बुरा असर डालता है। इससे हम किसी काम को लेकर असमंजस की स्थिति में रहने लगते हैं कि उसे करें या नहीं।
आती हैं कई बीमारियां
जब हरी हार्मोन का स्नव आवश्यकता से अधिक मात्र में होने लगता है तो तरह-तरह की बीमारियां हमारे पास जाती हैं। चिड़चिड़ापन, वहम, शंका, दमा, तनाव, रक्तचाप की अधिकता होने लगती है। नर्वस ब्रेकडाउन जैसी बीमारियां तो आम हो जाती हैं। लगातार हड़बड़ी में रहने वाला व्यक्ति ठीक से सांस भी नहीं ले पाता है। इससे उसके मस्तिष्क को आक्सीजन कम मिलती है और उपयोगी हार्मोन्स की जगह क्षति पहुंचाने वाले हार्मोन्स स्नवित होने लगते हैं। इस स्नव से अकुलाहट व्यग्रता का जन्म होता है जिससे ऐसे व्यक्ति का व्यवहार भी बदल जाता है। वह तरह-तरह की तकलीफों की शिकायतें करने लगता है।
पहचानें इन लक्षण को
- उतावला व्यक्ति तो किसी की बात को ध्यान से सुनता है और ही उस पर अमल करता है।
-ऐसे व्यक्ति की एड्रीनल ग्रंथि द्वारा बनाया गया रसायन उसे हमेशा बेचैन रखता है। उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं होता कि उसकी बेचैनी क्यों है। 
-यह बेचैनी ऐसे व्यक्ति को पागल भी बना सकती है। कई बार तो ऐसा व्यक्ति आत्महत्या करने को भी मजबूर हो जाता है।
-ऐसे व्यक्ति को बात-बात पर गुस्सा आता है और उसका दिमाग उलझनों में घिरा रहता है।
इस बीमारी से दूर रहना है तो
-सबसे पहले अपनी जीवनचर्या बदलें। समय पर सोएं समय पर जागें और समय पर खाना खाएं।
-आगे निकले की होड़ में पड़ें, बल्कि अपनी क्षमता और योग्यता पर विश्वास करते हुए काम करें।
-अपने लिए थोड़ा समय निकालकर कुछ रचनात्मक कार्य करें।
-संगीत सुनें, अपने रचनात्मक शौक में भी थोड़ा समय लगाएं।
-व्यायाम, प्राणायाम आदि को भी अपनी दिनचर्या में जगह दें।
-सोच को हमेशा सकारात्मक रखें ताकि आपके कार्य भी सकारात्मक हों

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