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कश्मीर विवाद

कश्मीर विवाद कश्मीर पर अधिकार को लेकर  भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 से जारी है।

सीमा का विवाद

भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा 740 किलोमीटर लंबी है. यह पर्वतों और निवास के लिए प्रतिकूल इलाक़ों से गुजरती है. इलाक़ा बहुत ही मुश्किल  कुछ जगह पर यह गाँवों को दो हिस्सों में बाँटती है तो कहीं पर्वतों को. वहाँ तैनात भारत और पाकिस्तान के सैनिकों के बीच कुछ जगहों पर दूरी सिर्फ़ सौ मीटर है तो कुछ जगहों पर यह पाँच किलोमीटर भी है. दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा 1947 से विवाद का विषय बनी हुई है. मौजूदा नियंत्रण रेखा, भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 में हुए युद्ध के वक़्त जैसी मानी गई थी, क़रीब-क़रीब वैसी ही है. उस वक़्त कश्मीर के कई इलाकों में लड़ाई हुई थी. उत्तरी हिस्से में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को करगिल शहर से पीछे और श्रीनगर से लेह राजमार्ग तक धकेल दिया था. 1965 में फिर युद्ध छिड़ा लेकिन तब लड़ाई में बने गतिरोध की वजह से यथास्थिति 1971 तक बहाल रही . 1971 में एक बार फिर युद्ध हुआ .

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कश्मीर राज्य के पूर्व महाराज हरि सिंह देश के तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबेटन का वह प्रस्ताव मान गए थे, जिसमें कश्मीर का विलय भारत में किया जाना था। तब भारत सरकार ने इस राज्य की रक्षा कबायली आक्रमणकारियों से की थी। लिहाजा हमारा देश पूरे कश्मीर को भारत का हिस्सा मानता है, पर पाकिस्तान का मत इससे अलग है। वह 1933 के उस प्रस्ताव को मानता है, जिसमें यह कहा गया था कि पाकिस्तान का गठन उन पांच मुस्लिम बहुल राज्यों से होगा, जो देश के उत्तर में हैं। इन राज्यों में कश्मीर के होने का दावा भी पाकिस्तान लगातार करता रहा है। हालांकि इस विवाद के निपटारे के लिए लगातार प्रयास हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय मदद भी ली गई है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र से आग्रह किया था कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करे। तब सुरक्षा परिषद् ने एक प्रस्ताव पारित कर पाकिस्तान को अपनी सेना कश्मीर से हटाने के निर्देश दिए थे, पाकिस्तान ने वहां से सेना नहीं हटाई। नतीजतन पाक के कब्जे वाले कश्मीर को पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) मान लिया गया। पाकिस्तान ने 1963 में हुंजा-गिलगित का एक भाग रस्कम और बाल्टिस्तान की शक्स्गम घाटी क्षेत्र चीन को सौंप दिया। अब यह 3,800 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट कहलाने लगा है, जिस पर चीन का नियंत्रण है।

अक्साई चिन

देश के उत्तरी हिस्सों में विवाद की एक वजह अक्साई चिन भी है। बेशक यह पाक अधिकृत कश्मीर से बाहर का क्षेत्र है, पर जम्मू-कश्मीर का इलाका होने की वजह से इस पर भारत का अधिकार होना चाहिए था। 1962 के युद्ध में भारत को मिली हार के बाद चीन ने इस 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना कब्जा जमा लिया। वह इसे झिंजियांग प्रदेश का हिस्सा बताता है।अक्साई चिन वीराना और बर्फीला इलाका है। यह जम्मू-कश्मीर का सबसे पूर्वी छोर है और लद्दाख क्षेत्र से मिलता है। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस इलाके में चीन ने राष्ट्रीय राजमार्ग बनवाया है, ताकि तिब्बत और झिंजियांग तक उसकी पहुंच आसानी से हो सके। हालांकि यही राजमार्ग भारत-चीन युद्ध की एक बड़ा वजह बना था। आज यह भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का काम करता है। 


शिमला समझौता
1971 के युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान टूट कर बांग्लादेश बन गया  . उस वक़्त कश्मीर में कई जगहों पर लड़ाई हुई और नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों ने एक-दूसरे की चौकियों पर नियंत्रण किया. भारत को करीब तीन सौ वर्ग मील ज़मीन मिली. यह नियंत्रण रेखा के उत्तरी हिस्से में लद्दाख इलाक़े में थी. 1972 के शिमला समझौते और शांति बातचीत के बात नियंत्रण रेखा दोबारा स्थापित हुई. दोनो पक्षों ने यह माना कि जब तक आपसी बातचीत से मसला न सुलझ जाए तब तक यथास्थिति बहाल रखी जाए. यह प्रक्रिया लंबी खिंची. फ़ील्ड कमांडरों ने पांच महीनों में करीब बीस नक्शे एक-दूसरे को दिए. आख़िरकार समझौता हुआ. नियंत्रण रेखा कहाँ से कहाँ तक है उसके मतलब को समझने के लिए अब भी दोनो पक्षों में जब-तब लड़ाई होती है. 

ये बातें बताती हैं कि कश्मीर हमारा है और हमारा ही रहेगा!
कश्मीर विवाद ने जम्मू-कश्मीर ही नहीं पूरे देश के लोगों को काफी नुकसान पहुंचाया है। आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सभी तरह से देश और जम्मू-कश्मीर के अवाम को इस विवाद ने बर्बाद कर दिया है।
आज पाकिस्तान ने अपना अधिकृत कश्मीरी भूभाग खाली नहीं किया है, बल्कि कुटिलतापूर्वक वहां कबाइलियों को बसा दिया है । जम्मू और कश्मीर की लोकतांत्रिक और निर्वाचित संविधान-सभा ने 1957 में एकमत से 'महाराजा द्वारा कश्मीर के भारत में विलय के निर्णय' को स्वीकृति दे दी थी।
भारतीय संविधान के अन्तर्गत आज तक जम्मू कश्मीर मे सम्पन्न अनेक चुनावों में कश्मीरी जनता ने वोट डालकर एक तरह से भारत में अपने स्थायी विलय को ही मान्यता दी है । जम्मू कश्मीर के प्रमुख राजनैतिक दल भी पाकिस्तान के धर्म पर आधारित दो-राष्ट्र सिद्धान्त को नहीं मानते।
कश्मीर का भारत में विलय ब्रिटिश "भारतीय स्वातंत्रता अधिनियम"के तहत क़ानूनी तौर पर सही था । पाकिस्तान अपनी भूमि पर आतंकवादी शिविर चला रहा है (ख़ास तौर पर 1989 से) और कश्मीरी युवकों को भारत के ख़िलाफ़ भड़का रहा है । ज्यादातर आतंकवादी स्वयं पाकिस्तानी नागरिक या तालिबानी अफगान ही हैं। ये और कुछ दिग्भ्रमित कश्मीरी युवक मिलकर इस्लाम के नाम पर भारत के ख़िलाफ़ जेहाद छेड़े हुए हैं। धर्म के नाम पर ये दरिंदे निर्दोष कश्मीरी नागरिकों की निर्मम हत्याएं कर रहे हैं । राज्य को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्तता प्राप्त है । 

अगर कश्मीर के भारत से अलग होने के बाद भारत की उत्तरी सीमा सुरक्षित नहीं रहेगी ।

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