दो वक्त
की रोटी के लिये किसी के आगे हाथ फैलाना अपने-आप में अपने जमीर को मारने जैसा लगता
है। लेकिन ये किसी से छुपा नहीं है कि भिक्षावृत्ति के उदाहरण अक्सर सड़क किनारे,धार्मिक स्थलों के आस-पास
या चौक-चौराहों पर दिख जाते हैं। एक संजीदा नागरिक के रूप में आपके मन में ये सवाल
उठ सकता है कि क्या भीख मांग रहे ये लोग अपनी विवशता के कारण ऐसी हालत में हैं या
फिर ये किसी साजिश के शिकार हैं।
ज्यादातर
भीख मांगने वालों को उनके नाकारेपन, आलस्य और कामचोरी से जोड़ दिया जाता है. शहर में किसी
भी हिस्से में आपको बच्चे या तो अकेले या परिवार के साथ भिक्षावृत्ति करते मिल जाएंगे।
इसके पीछे कई कारण हैं, परिवार की आर्थिक स्थिति का खराब
होना ,भिक्षवृत्त की परंपरा, गैंग
द्वारा बच्चों का इस्तेमाल किया जाना आदि है। शहर में बच्चों को भिक्षावृत्ति के
दलदल से बाहर निकालने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग एवं स्वयंसेवी संस्थाएं
अभियान का संचालन किया जाता रहा है।
अक्सर देखा जाता है कि लोग भिखारियों पर तरस खाकर
उन्हें कपड़े और खाने की चीजें देते हैं। लेकिन, इसके ठीक उलट
भिखारियों का मनोविज्ञान सिर्फ और सिर्फ पैसा बटोरना होता है। चाहे मंदिर-मस्जिद
हो, स्टेशन या लालबत्ती चौराहा। पैसे के अलावा और कुछ लेना
भिखारियों को मंजूर नहीं होता। दरअसल, भिक्षावृत्ति कुछ ही
लोगों के लिए मजबूरी का सौदा है, बड़े पैमाने पर यह एक धंधा
बन चुकी है। इसे शुरू करने के लिए न तो किसी पूंजी की जरूरत है और न शारीरिक श्रम
की। यही वजह है कि देश में भिखारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 2011
की जनगणना रिपोर्ट बताती है कि देश में तीन लाख बहत्तर हजार भिखारी
थे, जिनमें से 21 फीसद यानी 78 हजार भिखारी शिक्षित थे।
एक तरफ जहाँ भारत विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था
वाला देश है तो वहीं दूसरी ओर धर्मस्थलों, सांस्कृतिक
धरोहरों, सड़कों, गलियों और चौराहों पर
बैठे भिखारियों की संख्या देश की दूसरी ही तस्वीर पेश करती है। इतिहास के पन्नों
को देखें तो भारत में भिक्षावृत्ति पहले भी होती थी लेकिन आज इसका स्वरूप बदल गया
है। पहले सांसारिक मोह-माया त्यागकर ज्ञान प्राप्ति के लिए निकले साधु-संत भिक्षा
माँगकर अपना जीवनयापन करते थे, लेकिन आज भिखारियों का एक
बड़ा वर्ग अपनी दिनभर की जरूरतों को पूरा करने के लिए भीख माँगता है।
भिक्षुक कौन
भिक्षावृत्ति करने वालों में पहली श्रेणी उन लोगों
की है जो गंभीर शारीरिक अस्वस्थता, असाध्य रोगों,
विकलांगता के साथ ही गरीबी से पीडि़त हैं और जीवित रहने के लिए उनके
पास कोई और साधन नहीं है।
दूसरी श्रेणी में वे बूढ़े और असहाय लोग हैं, जिन्हें परिवारों से जबरन निष्कासित कर दिया गया है।
तीसरी श्रेणी में ऐसे बेरोजगार शामिल हैं, जो पूरी तरह निराश हो चुके हैं और जिनके पास आय का कोई अन्य साधन नहीं है।
चौथी श्रेणी में भिक्षावृत्ति करने वाले ऐसे भी लोग
हैं,
जिन्होंने इसे अपना धंधा बना रखा है और बिना कुछ किए, इसे ही अपनी कमाई का साधन मानते हैं।
पाँचवी श्रेणी में ठगी करके, पैसा इकठ्ठा करने की कोशिश करने वाले लोग हैं।
छठी श्रेणी में असामाजिक तत्वों के चंगुल में फंसे
ऐसे लोग हैं, जिनसे अलग-अलग स्थानों पर, नियोजित ढंग से भीख मंगवाई जाती है और अपराधी तत्व, उस
भीख का बहुत थोड़ा हिस्सा, उन भीख मांगने वालों को दे देते
हैं।
सरकार की ओर से राज्यसभा में दिए गए लिखित जवाब को
आधार बनाते हुए राज्यवार आंकड़ों पर नजर डालें, तो सबसे ज्यादा
भिखारी पश्चिम बंगाल में हैं। देश के बाईस राज्य और केंद्रशासित शासित प्रदेश
भिक्षावृत्ति के खिलाफ कानून बना चुके हैं। उत्तर प्रदेश में म्युनिसिपेल्टी एक्ट
भिक्षावृत्ति का निषेध करता है। जबकि पंजाब-हरियाणा में भिक्षावृत्ति निरोधक
अधिनियम 1971 लागू है। मध्य प्रदेश में 1969-1973, मुंबई में
1945, पश्चिम बंगाल में 1943 में बने कानून लागू हैं। इसके
अलावा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 भी कहती है कि जो व्यक्ति भीख मांगने के
लिए अनुचित प्रदर्शन करते पाए जाएंगे, वे दंड के भागी होंगे।
भारतीय रेलवे अधिनियम भी भिक्षावृत्ति का निषेध करता है।
लोगों की भावनाओं का फायदा उठाते हैं
शहर में भिखारियों के रूप में पेशेवरों की बाढ़ आ
गई है। युवतियों-महिलाओं के साथ-साथ मासूम बच्चोंको भी भिक्षावृत्ति के दलदल में
धकेला गया है। इनकी संख्या सैकड़ों में है। पेशेवर अपनी दिखावटी मजबूरियों की आड़
में लोगों से ठगी भी कर रहे हैं। कई पेशेवरों ने तो धार्मिक चोला भी पहन रखा है।
अफसर इनके प्रति बिल्कुल अंजान बने हुए हैं।
धर्म भले ही कोई हो, सभी में
दान को सबसे बड़ा पुण्य बताया गया है। दीन-हीन और अपंगों की मदद अथवा इमदाद को हर
आदमी आगे रहता है। अफसोस, अब भिखारियों में गरीब और जरूरतमंद
कम, पेशेवरों की संख्या सबसे अधिक दिख रही है। चौराहों पर
बैठे कुष्ठ रोगी, नेत्रहीन, अपाहिज और
वृद्ध अब नजर नहीं आ रहे। इनके स्थान पर पेशेवर ही भिक्षावृत्ति में सक्रिय हैं।
बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन,
अस्पताल, सरकारी दफ्तरों, गली-मोहल्लों और बाजारों समेत सभी जगहों पर पेशेवर भिखारी ही दिखाई देते
हैं, जो अपनी कथित मजबूरियों का हवाला देकर लोगों की भावनाओं
को भुनाते हैं। हथकंडे ऐसे हैं कि इंसानियत भी रो उठे। अदाकारी करने में इनका कोई
सानी नहीं।
भिक्षावृत्ति की आड़ में ठगी : जो लोग पेशेवरों से
अंजान हैं, वे इनके झांसे में आसानी से आ जाते हैं,
मगर जो लोग इन्हें रोज देखते हैं वे इन्हें तवज्जों नहीं देते।
इसलिए ये लोग सार्वजनिक स्थानों पर ही अधिक भीख मांगते हैं। मथुरा रोड निवासी
मोबाइल विक्रेता राजीव का कहना है कि वह ऐसे भिखारियों को देखते हैं, जो वर्षो से एक ही मजबूरी से घिरे रहते हैं। यह भीख की आड़ में ठगी नहीं तो
क्या है? इनके चक्कर में बेचारे जरूरतमंदों की मदद करने से
लोग बचने लगे हैं।
कैसे-कैसे भिखारी
- मैली धोती और गोद में बीमार व भूखे बच्चे को
लेकर भीख मांगती महिला।
-भूख की आड़ में भीख मांगते चिथड़ों में लिपटे
बालक।
-पंफलेट बांटकर बूढ़े मां-बाप के इलाज को पैसे
मांगती जवान लड़की।
-टांग व शरीर के अन्य हिस्से में नकली जख्म बनाकर
भीख मांगने वाले।
-बच्चे को बीमारी से बचाने के लिए मांगे कपड़े
पहनाने वाले भिखारी।
-तीन या चार जवान लड़कियों की शादी के लिए बसों व
ट्रेनों में भीख मांगती महिला।
-गैर राज्यों की वेश में टिकट के लिए पैसे मांगता
परिवार।
-तीर्थ स्थलों पर जाने के लिए भीख मांगते साधु
वेशधारी।
शहरकी खूबसूरती पर एक दाग की तरह है
भिक्षावृत्ति। पर, इसकी वजह में कहीं
कहीं हम भी हैं। इतना विकास करने का बावजूद शहर में कुछ लोग भीख मांगने को मजबूर
हों तो यह सवाल उठना लाजिमी है। वजहों को तलाशना भी जरूरी है और उन्हें दूर करना
भी। कोशिश सिर्फ सरकार के स्तर पर ही क्यों? हम और आप भी इस
दिशा में सहयोग क्यों नहीं कर सकते?
भिक्षावृत्ति से रोकने के लिए
भिक्षावृत्ति को खत्म करके भारत की विश्व रिपोर्टों
में जो स्थिति है उसमें भी सुधार किया जा सकता है, जैसे-ग्लोबल
हंगर इंडेक्स, जीवन प्रत्याशा और शिशु मृत्यु दर इत्यादि।
इससे भारत के सामाजिक, आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।
रोजगारों की संख्या बढ़ाकर, लोगों को उनके कौशल के आधार पर रोजगार उपलब्ध कराया जाये।
भिखारियों का पुनर्वास हो साथ ही उन्हें रोजगार से
जोड़ा जाना चाहिए।
भिक्षावृत्ति निरोधक कानूनों का सख्ती से पालन होना
चाहिए।
सरकार-प्रशासन के साथ-साथ आमजन को भी भिक्षावृत्ति
को बढ़ने से रोकना होगा।
गरीबी उन्मूलन हेतु सरकारी योजनाओं (पीडीएस, मनरेगा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) आदि का
क्रियान्वयन उचित तरीके से होना चाहिए।
बढ़ती जनसंख्या नियंत्रण हेतु सरकार द्वारा किये जा
रहे प्रयासों को सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
वृद्ध लोगों के लिए वृद्धाश्रम व्यवस्था सही तरीके
से हो और वृद्धावस्था पेंशन योजना तक सभी वृद्ध लोगों की पहुँच सुनिश्चित करना
चाहिए।
राजस्थान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की
कुछ योजनाओं के जरिए भिक्षावृत्ति में लिप्त बच्चों का पालन पोषण किया जा रहा है।
इनमें पालनहार योजना, निराश्रित बाल गृह, शिशु गृह योजना और पालन गृह योजना आदि शामिल हैं। इस तरह की योजनाओं को
विभिन्न राज्य सरकारों को अपनाने की जरूरत है।
बॉम्बे प्रिवेंशन बेगिंग एक्ट पूरी तरह से लोगों की
परेशानी को दूर करने में नाकाम रहा है। यह एक्ट भीख मँगवाने वाले गिरोहों को रोकने
में असफल रहा है इसलिए इस पर केन्द्रीय कानून की आवश्यकता है, जो गरीब लोगों तथा भीख माँगने वाले लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित करे और
उन्हें इस अंधकार से मुक्त कराये।
भारत में भिक्षावृत्ति किन रूपों में विद्यमान है और इसके पीछे के कारण
क्या हैं ?
बहुत से
ऐसे लोग हैं जो आलस्य, काम करने की कमजोर इच्छा शक्ति आदि के कारण भिक्षावृत्ति अपनाते हैं। भारत
में कुछ जनजातीय समुदाय भी अपनी आजीविका के लिये परम्परा के तौर पर भिक्षावृत्ति
को अपनाते हैं। लेकिन यहाँ पर गौर करने वाली बात ये है कि भीख मांगने वाले सभी लोग
इसे ऐच्छिक रूप से नहीं अपनाते। दरअसल, गरीबी, भुखमरी तथा आय की असमानताओं के चलते देश में एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे भोजन, कपड़ा और आवास जैसी आधारभूत सुविधाएँ भी
प्राप्त नहीं हो पातीं। यह वर्ग कई बार मजबूर होकर भीख मांगने का विकल्प अपना लेता
है। भारत में आय की असमानता और भुखमरी की कहानी तो ग्लोबल लेवल की कुछ रिपोर्टों
से ही जाहिर हो जाती है।
कई बार
गरीबी से पीड़ित ऐसे लोगों की मजबूरी का फ़ायदा कुछ गिरोह भी उठाते हैं। ऐसे गिरोह
संगठित रूप से भिक्षावृत्ति के रैकेट चलाते हैं। ये गिरोह गरीब व्यक्तियों को लालच
देकर, डरा-धमकाकर, नशीले ड्रग्स देकर, तथा मानव तस्करी के द्वारा लाए
गए लोगों को शारीरिक रूप से अपंग बनाकर भीख मांगने पर मजबूर करते हैं।
मौजूदा कानून में क्या समस्याएँ हैं
पहली
समस्या भिक्षावृत्ति की परिभाषा को लेकर है। गायन, नृत्य, भविष्य बताकर आजीविका
कमाना कुछ समुदायों के लिये व्यवसाय है। यह मुख्य धारा के व्यवसायों से मेल नहीं
खाता, सिर्फ इसलिये ऐसे लोगों को अपराधी मान लेना किसी भी
प्रकार से उचित नहीं है। दूसरी बात यह है कि जीविका का कोई दृश्य साधन ना होना और
सार्वजनिक स्थान पर भीख मांगने की मंशा से घूमने को अपराध मानना किसी व्यक्ति को
गरीब दिखने के कारण दण्डित किये जाने जैसा है।
किसी
गरीब और मजबूर व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी स्थान पर ले जाकर रखना, और सार्वजनिक स्थान पर
जाने से रोकना उस व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन ही तो है। जबकि भारतीय संविधान
अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार और अनुच्छेद 19 के तहत स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
इसके
अलावा भारतीय संविधान में प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, तथा राज्य के
नीति निदेशक तत्त्वों के तहत भारत की एक कल्याणकारी राज्य की रूपरेखा सामने आती
है। ऐसे में एक कल्याणकारी राज्य का दायित्व ये होना चाहिए कि वह अपने नागरिकों की
भोजन, आवास, रोजगार जैसी जरूरतों को
पूरा कर उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करे।
यदि हम
भारत में भिखारियों की संख्या पर गौर करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 4 लाख से भी अधिक भिखारी हैं। भिखारियों की इतनी बड़ी संख्या दिखाती है कि
भारत अपनी कल्याणकारी राज्य की भूमिका निभाने में पूरी तरह सफल नहीं रहा है।
इसलिये समाज के सबसे कमजोर और हाशिये पर खड़े तबके को अपराधी घोषित करना किसी भी
प्रकार से न्याय संगत नहीं है। हालाँकि भिक्षावृत्ति का रैकेट चलाने वाले गिरोहों
के खिलाफ कठोर कदम उठाने के लिये सरकार कोई भी कानून बना सकती है।
भिक्षावृत्ति जैसी समस्या से निपटने के लिये संभावित उपाय
सबसे
पहले ऐच्छिक भिक्षावृत्ति और मजबूरीवश अपनाई गई भिक्षावृत्ति में अंतर किया जाना
आवश्यक है। साथ ही इन दोनों से निपटने के लिये अलग-अलग रणनीति बनाए जाने की जरूरत
है। इसके लिये वास्तविक स्थिति का पता व्यापक सर्वेक्षण के जरिये लगाया जा सकता
है। इसके अलावा गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी जैसी समस्यायों से मजबूर लोगों तक
मौलिक सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके लिये वास्तविक लाभार्थियों
की पहचान और सेवाओं की लीक प्रूफ डिलीवरी जरूरी है।
दूसरी ओर
गंभीर बिमारी से पीड़ित, अपंगता से ग्रसित और छोटी उम्र के बच्चे जो भिक्षावृत्ति को अपना चुके हैं,
उनके पुनर्वास के लिये व्यापक स्तर पर प्रयास किये जाने की जरूरत
है। इसके लिये पुनर्वास गृहों की स्थापना करके उनमें आवश्यक चिकित्सीय सुविधाएँ
उपलब्ध कराई जानी चाहिए। साथ ही उनकी मौलिक जरूरतों को पूरा करते हुए उन्हें कौशल
प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। तभी वे भविष्य में समाज की मुख्य धारा का हिस्सा बन
सकेंगे। इस संबंध में बिहार सरकार की मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना (Bhikshavriti
Nivaran Yojana) एक अनुकरणीय योजना है।इस योजना के अंतर्गत
व्यक्तियों को हिरासत में लेने की जगह उन्हें सामुदायिक घरों में रखने की व्यवस्था
है। इसके अंतर्गत पुनर्वास केंद्रों की स्थापना की गई है, जिसमें
उपचार, पारिवारिक सुदृढीकरण और व्यावसायिक प्रशिक्षण की
सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
जहाँ तक
बात संगठित तौर पर चलने वाले भिक्षावृत्ति रैकेटों की है तो इनको मानव तस्करी और
अपहरण जैसे अपराधों के साथ जोड़ कर देखा जाना चाहिए। दूर-दराज़ के इलाकों से लोगों
को खरीदकर या अपहरण कर लाया जाता है और उन्हें भिक्षावृत्ति में लगाया जाता है।
इसलिये इससे निपटने के लिये राज्यों के बीच सूचनाएँ साझा करने हेतु एक तंत्र की भी
आवश्यकता है।
इसके साथ
ही इस कमजोर तबके के प्रति संवेदनशीलता भी जरूरी है। अभी हाल ही में एक प्रसिद्ध
कम्पनी द्वारा मुंबई स्थित अपनी शाखा के बाहर के खाली पड़े स्थान पर पर नुकीले रॉड
लगवा दिए गए ताकि बेघर भिखारी वहाँ सो न सकें। यह घटना बताती है कि इस वर्ग को
सरकार द्वारा संरक्षण की कितनी अधिक जरूरत है।
भिक्षावृत्ति अब मजबूरी नहीं बल्कि धंधा बन चुका है।
दो वक्त
की रोटी के लिये किसी के आगे हाथ फैलाना अपने-आप में अपने जमीर को मारने जैसा लगता
है। लेकिन ये किसी से छुपा नहीं है । भिक्षावृत्ति के उदाहरण अक्सर सड़क किनारे,धार्मिक स्थलों के आस-पास
या चौक-चौराहों पर दिख जाते हैं। शहर की खूबसूरती पर दाग लगा रही है बढ़ती
भिक्षावृत्ति की घटना…! ऐसा हम इसलिए कह रहे है क्योंकि जिले
में इन दिनों नाबालिग बच्चों से लेकर काम करने में सक्षम युवक-युवती व महिलाओं
द्वारा राहगीरों से भीख मांगने का धंधा जोरों पर चल रहा है। भीख मांग कर जीविका
चलाने वाले गैंग में 05 से 20 वर्ष के लड़के व लड़कियां दोनों शामिल हैं और इनका
पूरा रैकेट जिले में काफी समय से सक्रिय है, किन्तु स्थानीय
प्रशासन मूकदर्शक बनकर बैठा हुआ है।
ऐसा नही
है कि जिम्मेदार अधिकारियों तक इन बच्चों की भिक्षावृत्ति के विषय में जानकारी है, किन्तु आज पर्यन्त कोई
कठोर कार्यवाही नहीं दिखती। बता दें कि शहर के भीड़-भाड़ इलाकों रेलवे स्टेशन,
बस स्टैंड, चौक चौराह , मंदिर
मस्जिद , सब्जी बाजार सहित अनेक स्थलों पर इन बच्चों के
द्वारा अनजान राहगीरों से पैसे मांगे जा रहे हैं। अक्सर देखा जाता है कि लोग
भिखारियों पर तरस खाकर उन्हें कपड़े और खाने की चीजें देते हैं। लेकिन, इसके ठीक उलट भिखारियों का मनोविज्ञान सिर्फ और सिर्फ पैसा बटोरना होता
है। चाहे मंदिर-मस्जिद हो, स्टेशन या चौक -चौराहा। पैसे के
अलावा और कुछ लेना भिखारियों को मंजूर नहीं होता। दरअसल, भिक्षावृत्ति
कुछ ही लोगों के लिए मजबूरी का सौदा है, बड़े पैमाने पर यह एक
धंधा बन चुकी है। इसे शुरू करने के लिए न तो किसी पूंजी की जरूरत है और न शारीरिक
श्रम की। यही वजह है कि जिला ही नही बल्कि पूरे देश में भिखारियों की संख्या
लगातार बढ़ती जा रही है।
शहर के
अंदर रायगढ़ के लोकल लोगों के अलावा भी अत्यधिक मात्रा में अन्य राज्यों जैसे
बंगाल, बिहार राजस्थान, मध्य प्रदेश के भिक्षुक तपके के लोग भिक्षा मांगने की काम को ही अपना धंधा
बनाकर अपना गैंग बनाकर रायगढ़ में नियमबद्ध तरीके से नाबालिक बच्चों व समझदार
युवतियों से भीख मांग कर पैसे बटोरने का काम जोर शोर से कर रहे है।
इन
बच्चों की पूरी गेंग जिसमें लगभग एक दर्जन से अधिक बच्चे शामिल हैं, जो पूरी योजना के तहत
भिक्षावृत्ति को अंजाम देते हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इन्हें
भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर भी किया जा रहा हो, लेकिन स्थानीय
प्रशासन व पुलिस आज पर्यन्त तक न ही इन बच्चों को भीख मांगने से रोक पाई है और न
ही इनके पालकों को समझाइश दी है।
रोजाना
राजधानी की गलियों से लेकर सड़कों तक और मंदिरों से लेकर बस स्टैंड और रेलवे
स्टेशन तक पर घूम-घूम कर भीख मांगते लोग मिल जायेंगे. भीख मांगना किसी इंसान की
बेबस जिंदगी का सबसे दर्दनाक पहलू होता है. हालांकि, कई ऐसे भी भिखारी हैं, जिनके
लिए भीख मांगना मजबूरी नहीं, बल्कि आदत है. हालांकि, कई शारीरिक रूप से सक्षम लोग अपनी तंगहाली की दुहाई देकर भीख तो मांगते
हैं, लेकिन काम नहीं करना चाहते हैं. मजे की बात यह है कि
सरकार की योजनाएं भी इनकी चौखट तक पहुंच रही हैं. ये लोग राशन से लेकर वृद्धा
पेंशन समेत सरकार की तमाम जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं. उज्ज्वला
योजना, लाल कार्ड, पीला कार्ड, आयुष्मान भारत योजना, जन-धन योजना जैसी सुविधाएं इन
तक उपलब्ध हैं. आर्थिक स्थिति ठीक होने के बावजूद भी इन लोगों ने भीख मांगना नहीं
छोड़ा है. इनका साफ कहना था कि हम खाने-पीने के चीज लेने के बजाय पैसे मांगते हैं.
शारीरिक रूप से सक्षम लोग एक जगह बैठने की जगह घूम-घूम कर मांगते हैं. मॉल,
बाजार या होटलों के आगे भीख मांगने में अच्छी आय होती है. इसके लिए
परिवार को लोग वृद्ध और बच्चों का इस्तेमाल करते हैं.
आप कार
में बैठे किसी चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल मिलने का इंतजार कर रहे हैं। इतने में
बाबू दो रुपए दो ना कहते हुए एक बच्चा आपके पीछे पड़ जाए। आप दया भाव या पीछा
छुड़ाने के लिए उसे रुपए देने लगेंगे। आपकी कार के पीछे का शीशा खुला हुआ है। इतनी
देर में इस सीट पर रखा लैपटॉप, मोबाइल, पर्स या फिर अन्य कीमती सामान गायब हो सकता
है। आगे निकलने के बाद आप को जब तक होश आएगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। नोएडा
के चौक-चौराहे पर पहले ही भिखारियों से लोग परेशान थे, अब
कॉमनवेल्थ के मद्देनजर दिल्ली से भगाए जाने के कारण यहां दर-दर पर भिखारियों की भीड़
दिख रही है। आम आदमी, वाहन चालक और ऑटो-टेम्पो में सफर करने
वाली महिलाएं इनसे ज्यादा परेशान हैं। भीख मांगते हुए छोटे-छोटे बच्चों वाहन के
सामने आ जाते हैं। इससे जान पर भी आफत बन जाती है।
बच्चों का भीख मांगना देश के लिए शर्मनाक
अक्सर
आपने बच्चों को भीख मांगते देखा होगा। कभी आप उन्हें कुछ दे भी देते होंगे, तो कभी डांटकर आगे बढ़
जाते होंगे। पर क्या कभी आपने यह सोचा है कि इन बच्चों की दुनिया कैसी है? इनके सपने क्या हैं?
क्या ये
भी अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जाना चाहते हैं? ये अपनी मर्जी से भीख
मांगते हैं या इनसे जबरदस्ती भीख मंगवायी जाती है? भीख में
मिले पैसों का ये क्या करते हैं? क्या कभी इन्होंने भीख
मांगना छोड़कर कुछ और करने बारे में सोचा है? बड़े होकर ये
क्या करेंगे?
कुछ
बच्चे चुराये हुए होते है उनका ऐसा ब्रेन वॉश किया जाता है कि उन्हें अपने घर या
परिवार के बारे में याद तक नहीं है। कुछ घर से भागकर आते ,कुछ अपने घर की गरीबी या
पिता की शराबखोरी की वजह से भीख मांगने को मजबूर है। एक बात सबमें समान थी कि वे
भिखारी माफिया, जिसे वे ‘दादा’ कहते थे, से बहुत डरते थे। भीख मांगने के अलावा उनके
पास कोई और विकल्प नहीं था।
उसके बाद
हर साल बाल भिखारियों की तादाद बढ़ती गई और इस बारे में कोई भी कुछ नहीं कर पाया।
हाल में हॉलैंड से मेरे एक डच मित्र भारत घूमने आये। वह एक सप्ताह मुम्बई में रहे।
जगह-जगह बाल भिखारियों को देखकर उन्होंने कहा कि आपकी सरकार बेहद गैर-जिम्मेदार और
नागरिक असंवेदनशील हैं। अन्यथा देश के सबसे बड़े महानगर मुम्बई में इतने बाल
भिखारी होने नहीं चाहिए।
भारत के
संविधान में भीख मांगने को अपराध कहा गया है। फिर देश की सड़कों पर एक करोड़ बच्चे
भीख आखिर कैसे मांगते हैं? बच्चों का भीख मांगना केवल अपराध ही नहीं है, बल्कि
देश की सामाजिक सुरक्षा के लिए खतरा भी है। हर साल कितने ही बच्चों को भीख मांगने
के ‘धंधे’ में जबरन धकेला जाता है। ऐसे
बच्चों के आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने की काफी आशंका होती है।
बहुत से
बच्चे मां-बाप से बिछड़कर या अगवा होकर बाल भिखारियों के चंगुल में पड़ जाते हैं।
फिर उनका अपने परिवार से मिलना बेहद मुश्किल हो जाता है। पुलिस रेकॉर्ड के अनुसार, हर साल 44 हजार बच्चे गायब होते हैं। उनमें से एक चौथाई कभी नहीं मिलते। कुछ बच्चे
किसी न किसी वजह से घर से भाग जाते हैं। कुछ को किसी न किसी वजह से उनके परिजन
त्याग देते हैं। ऐसे कुल बच्चों की सही संख्या किसी को नहीं मालूम!
ये तो
पुलिस में दर्ज आंकड़े हैं। इनसे कई गुना केस तो पुलिस के पास पहुंचते ही नहीं।
फिर भी, हर साल करीब 10 लाख बच्चों के अपने घरों से दूर होकर अपने परिजन से बिछड़ने का अंदेशा
है। उन बच्चों में से काफी बच्चे भीख मंगवाने वाले गिरोहों के हाथों में पड़ जाते
हैं। यानी हर साल हजारों गायब बच्चे भीख के धंधे में झोंक दिये जाते हैं। इन
बच्चों का जीवन ऐसी अंधेरी सुरंग में कैद होकर रह जाता है, जिसका
कोई दूसरा छोर नहीं होता। इनसे जीवन की सारी खुशियां छीन ली जाती हैं।
भारत में
ज्यादातर बाल भिखारी अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगते। वे संगठित माफिया के हाथों की
कठपुतली बन जाते हैं। तमिलनाडु, केरल, बिहार, नई दिल्ली और
ओडिशा में यह एक बड़ी समस्या है। हर आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चों का ऐसा हश्र होता
है। इन बच्चों के हाथों में स्कूल की किताबों की जगह भीख का कटोरा आ जाता है। बाल
अधिकारों के ऐक्टिविस्ट स्वामी अग्निवेश का कहना है, ‘भारत
में भीख माफिया बहुत बड़ा उद्योग है। इससे जुड़े लोगों पर कभी आंच नहीं आती। इस
मामले में कानून बनाने वालों और कानून तोड़ने वालों की हमेशा मिलीभगत रहती है। इन
हालात से निपटने के लिए सिस्टम को ज्यादा जवाबदारी निभानी चाहिए।’
भारत के
मानवाधिकार आयोग की रपट के मुताबिक, हर साल जो हजारों बच्चे चुराये जाते हैं या लाखों
बच्चे गायब हो जाते हैं, वे भीख मांगने के अलावा अवैध
कारखानों में अवैध बाल मजदूर, घरों या दफ्तरों में नौकर,
पॉर्न उद्योग, वेश्यावृत्ति, खाड़ी के देशों में, अंग बेचने वाले माफिया, अवैध रूप से गोद लेने और जबरन बाल विवाह के जाल में फंस जाते हैं।
कुछ लोग
उन्हें बचाने की कोशिश भी करते हैं। हैदराबाद में 6 लोगों की एक टीम ने कई महीने की रिसर्च के बाद ऐसे
बच्चों को बचाने की मुहिम शुरू की। उन्होंने देश भर के नागरिकों से आगे आकर बाल
भिखारियों को बचाकर उन्हें उनका बचपन लौटाने की अपील की है।
आज भारत
एक युवा देश है। किसी युवा देश की सबसे बड़ी प्राथमिकता बाल भिखारियों पर रोक लगाना
होनी चाहिए। इसके लिए सामाजिक भागीदारी की जरूरत है। ऐसा करके ही स्थानीय, राज्यों और केंद्र की
सरकारों पर दबाव डाला जा सकेगा… और सामाजिक भागीदारी की
बदौलत सरकारों पर बाल भिखारियों को रोकने के लिए दबाव डाला जा सकेगा। इस दबाव के
कारण सरकारें अपने-अपने स्तर पर कार्रवाई करें, तो इस समस्या
पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। समाज को सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों के
साथ मिलकर काम करना होगा। तब बाल भिखारियों के पुनर्वसन की जरूरत होगी। उनकी
शिक्षा, सेहत और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी
निभानी होगी।
समाज के लिए खतरा: भारत में भिखारी
जैसा कि
आप ट्रैफिक सिग्नल पर लाल बत्ती को देख कर अपनी कार रोक देते हैं, तो उसी वक्त एक गंदी
महिला अपनी बाँह में एक बच्चा लिए कार की तरफ दौड़ती है या एक छोटा लड़का बहती हुई
नाक के साथ या कोई विकलांग बूढ़ा आदमी भिक्षा मांगते हुए दिखाई देता है। यह भारत
में एक आम दृश्य है। आपको रेलवे स्टेशनों, मेट्रो स्टेशनों,
पर्यटन स्थलों, मंदिरों में भीख माँगते हुए कई
लोग मिलेगें और कई क्षेत्रों पर तो नियमित रूप से मिलेगें जहाँ भीड़ होती है।
कभी-कभी, तरस खाकर या ईर्ष्या से शापित होने के डर से बाहर
आने के लिए हम उन्हें कुछ सिक्के या धन दे देते हैं और उन्हें दूर जाने को बोलते
हैं।
भारत में
गरीबी के कारण भीख मांगना
भारत में
भीख मांगना सबसे गंभीर सामाजिक मुद्दों में से एक है। इतनी तेजी से आर्थिक विकास
होने के बावजूद भारत एक गरीबी पर ही आधारित देश है, जो भिखारियों के विकास के लिए भी अग्रणी रहा है।
उनमें से ज्यादातर बांग्लादेश से और कुछ भारत से हैं। देश में कुछ भिखारी असली हैं,
जो कार्य करने में असमर्थ हैं क्योंकि वह बूढ़े या अंधे हैं,
उन्हें मूलभूत जरूरतों के लिए पैसे की ज़रूरत है। इसीलिए वास्तव में
वे बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भीख मांगते है। ऐसे कई लोग हैं जो गरीबी
रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं और अपनी आजीविका अर्जित करने के लिए भीख मांगते
हैं।
कुछ
मामले हैं जिनमें पूरे परिवार के सदस्य भीख मांगने में शामिल हैं। परिवार के सदस्य
विवाह और जन्म के साथ बढ़ते रहते हैं और उनमें से प्रत्येक सड़कों या मंदिरों पर
भीख मांगते हैं। इस तरह के परिवारों के बच्चे स्कूल नहीं जाते बल्कि भीख मांगते
हैं। वे भीख इसलिए भी मांगते हैं क्योंकि उनके परिवार की एक दिन की आय में पूरे
परिवार को खिलाने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं है। भारत में गरीबी ऐसी स्थिति
का एक बड़ा कारण है। लेकिन भीख मांगना इन परिस्थितियों से निपटने का समाधान नहीं
है।
भारत में
भीख मांगना एक घोटाले की तरह
भारत में
गरीबी कहानी का सिर्फ एक पक्ष है। जबकि दूसरा पक्ष यह है कि भारत में गरीबी एक
वास्तविकता है लेकिन गरीबी का मतलब भीख मांगना नहीं। भारत में भीख मांगने वालों का
एक बड़ा रैकेट बन गया है। कई लोगों के लिए, भीख मांगना किसी अन्य पेशे की तरह है। वे पैसे कमाने
के लिए बाहर जाते हैं, वे काम करके नहीं बल्कि भीख माँगकर
कमाना चाहते हैं। वास्तव में, यह लोग गिरोह के साथ दिल्ली,
नोएडा, गुरुग्राम, मुंबई,
कोलकाता आदि जैसे शहरों में भीख मांग रहे हैं। इन गिरोहों के अपने
नेता होते हैं। प्रत्येक नेता भिखारियों के एक समूह को विशिष्ट क्षेत्र आवंटित
करता है और प्रतिदिन की कमाई उनके बीच साझा करता है। भिखारियों का नेता अपने पास
बड़ा हिस्सा रखता है और शेष हिस्सा भिखारियों में बाँट देता है। ये भिखारी भीख
मांगने में इतने लिप्त हो जाते हैं कि इसके अलावा और कोई काम नहीं करना चाहते हैं।
यह बहुत अजीब लेकिन सच है। यह अजीब है लेकिन सच है कि इनमें से कुछ भिखारी हजारों
और लाखों में कमाते हैं जो एक सामान्य मध्यवर्गीय कार्यकर्ता की तुलना में बहुत
अधिक है।
यह पता
लगाना मुश्किल है कि कौन असली भिखारी है और कौन बनावटी भिखारी है। क्योंकि दोनों
देखने में एक जैसे ही लगते हैं। यहाँ तक उनके बच्चों को वांछित दिखने और गंदे
चेहरे के साथ, उन्हें
भीख मांगने और वास्तविक दिखने के लिए ठीक से प्रशिक्षित किया जाता है। जब हम एक
जवान को उसके छोटे बच्चे को पकड़े हुए सड़कों पर भीख मांगते हुए देखते हैं तो
कभी-कभी उनके चेहरे को देखकर हमारे दिल पसीज जाते हैं। ज्यादातर मामलों में,
बच्चे को सोते (नशे की हालत में) हुए पाया जाता है, निश्चित रूप से यह एक घोटाला है। कई स्टिंग ऑपरेशनों से पता चला है कि भीख
मंगवाने में विश्वसनीयता के लिए बच्चों को किराए पर लिया जाता है। कभी-कभी,
बच्चों को पूरे दिन के लिए नशा दे दिया जाता है ताकि वे बीमार लगें
और युवा महिला भिखारियों द्वारा उन्हें आसानी से एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में
ले जाया जा सके।
भिखारी
को बहुत सशक्त बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है ताकि जब वह भीख मांग रहा हो
तो आप उन्हें पैसे देने के लिए बाध्य हो जाएं। विशेष रूप से यह विदेशियों के लिए
है, उन्हें मालूम नहीं कि इस
तरह की परिस्थितियों में प्रतिक्रिया कैसे दें और आखिरकार वे भिखारियों को धन दे
देते हैं। कुछ युवा भिखारी देश में असामाजिक तत्व बन जाते हैं। वे सभी ड्रग्स का
सेवन करने लगते हैं। ड्रग्स खरीदने के लिए, पहले वे भीख
मांगना शुरू करते हैं फिर जब जेब खर्च धीरे-धीरे बढ़ता है तो यह लोग लूट और हत्या
जैसे बड़े घोटालों में शामिल हो जाते हैं।
भारत में
एक महत्वपूर्ण दर से भिखारियों की वृद्धि हो रही है। यह अनुमान है कि भारत में
पाँच लाख के करीब भिखारी हैं। सरकार, विभिन्न संगठन, कार्यकर्ता दावा
करते हैं कि भिखारीयों को समाप्त करने के लिए कई उपाय किए गये हैं और यह कुछ हद तक
सफल भी हुए है। लेकिन भीख मांगने की प्रवृत्ति अभी भी जारी है। हमें भी दोषी
ठहराया जाना चाहिए क्योंकि हम भारतीयों के रूप में बहुत रूढ़िवादी और ईश्वर से
डरने वाले हैं और हमने अपने मन को धार्मिक सीमा से बाँध कर रखा है। यह हमें दान
करने के लिए मजबूर करता है और दान करने का सबसे आसान तरीका है कि पास के मंदिर जाए
और वहाँ पर भिखारियों को भीख दे। लेकिन इस देश के नागरिक के रूप में, इस संकट को रोकने की हमारी नैतिक जिम्मेदारी है और सबसे अच्छा तरीका यह है
कि हम भीख देना बंद कर दें। ऐसा लगेगा कि हम बेरहम हैं, एक
छोटा बच्चा सड़क पर भीख मांगने के लिए आए और हम उसे पैसा न दें लेकिन यह एक कदम है
जिससे हम भिखारियों को कम करने में कुछ हद तक मदद कर सकते हैं। इस दौरान सरकार को
अपनी गरीबी उन्मूलन योजनाओं को जारी रखना चाहिए और भारत को रहने के लिए एक बेहतर
स्थान बनाना चाहिए।
क्या भीख मांगना
अपराध है
दिल्ली
हाईकोर्ट ने 2018 को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में राष्ट्रीय
राजधानी दिल्ली में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया. कोर्ट ने कहा
कि भीख मांगने वालों को दंडित करने का प्रावधान असंवैधानिक है और यह रद्द किए जाने
लायक है. कोर्ट की पीठ ने कहा कि भीख मांगने को अपराध बनाने वाले ‘बॉम्बे भीख रोकथाम कानून’ के प्रावधान संवैधानिक
जांच में टिक नहीं सकते.
बॉम्बे
रोकथाम अधिनियम, 1959 Bombay
Prevention of Begging Act, 1959 के आधार पर ही सभी राज्यों में
भिक्षा विरोधी लागू हैं. कई भिखारियों को राजधानी में इस कानून के तहत जेल में
डाला गया है. कोर्ट ने कहा, ‘लोग सड़कों पर इसलिए भीख नहीं
मांगते कि ऐसा करना उनकी इच्छा है, बल्कि इसलिए मांगते हैं
क्योंकि ये उनकी जरूरत है. भीख मांगना जीने के लिए उनका अंतिम उपाय है, उनके पास जीवित रहने का कोई अन्य साधन नहीं है.’ कोर्ट
ने आगे कहा, ‘सरकार के पास जनादेश सभी को सामाजिक सुरक्षा
प्रदान करने के लिए होता है जिससे सभी नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं मिलना
सुनिश्चित हो सके. लेकिन, भीख मांगने वालों की मौजूदगी इस
बात का सबूत है कि राज्य इन सभी नागरिकों को ये जरुरी चीजें उपलब्ध कराने में
कामयाब नहीं रहा है.’
पीठ ने
कहा, ‘भीख मांगने को अपराध
बनाना हमारे समाज के कुछ सबसे कमजोर लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
इस स्तर के लोगों की भोजन, आश्रय और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी
आवश्यकताओं तक पहुंच नहीं है. और ऊपर से
उन्हें अपराधी बताना उन्हें अपनी दुर्दशा से निपटने के मौलिक अधिकार से
रोकता है.’ पीठ ने अपने 23 पृष्ठीय
फैसले में कहा कि इस फैसले का अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि कथित रूप से भीख मांगने
का अपराध करने वालों के खिलाफ कानून के तहत मुकदमा खारिज करने योग्य होगा. अदालत
ने कहा कि इस मामले के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर अनुभव आधारित विचार करने के
बाद दिल्ली सरकार भीख के लिए मजबूर करने वाले गिरोहों पर
काबू करने के लिए वैकल्पिक कानून लाने को स्वतंत्र है.
हाई
कोर्ट ने यह फैसला हर्ष मंदर और कर्णिका साहनी की जनहित याचिकाओं पर सुनाया जिसमें
राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने वालों के लिए मूलभूत मानवीय और मौलिक अधिकार
मुहैया कराए जाने का अनुरोध किया गया था. याचिका में बॉम्बे भीख रोकथाम अधिनियम के
प्रावधानों को भी चुनौती दी गई थी. केंद्र सरकार ने इस पर कहा था कि भीख मांगने को
अपराध की श्रेणी से बाहर नहीं किया जा सकता है और कानून में नियंत्परण और संतुलन
के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं.
भारत में भिखारी
भीख
माँगना एक गंभीर समस्या है और भारत में भिखारियों के सामने आने वाली समस्याएँ कम
नहीं हैं। भले ही सरकार इसे रोकने के उपाय कर रही है और इस समस्या के उन्मूलन के
लिए कई गैर सरकारी संगठनों का गठन किया गया है लेकिन अभी तक कुछ भी ठोस नहीं किया
गया है। उनके कपड़े, जूते और समग्र रूप और व्यवहार की स्थिति से कोई भी आसानी से यह पता लगा
सकता है कि भारत में भिखारी बहुत ही घृणित जीवन जीते हैं।
भारत में
भिखारी एक आम दृश्य हैं। आप आसानी से सड़कों पर घूमने वाले भिखारियों को, ट्रैफिक सिग्नल के पास,
धार्मिक स्थलों, मॉल और कई अन्य स्थानों के
बाहर स्पॉट कर सकते हैं। जबकि भारत में अपनी आजीविका के लिए भीख मांगने वाले कई
भिखारी भारतीय मूल के हैं, उनमें से एक अच्छी संख्या दुसरे देश
से भी आती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे भारत को इस काम के लिए अधिक आसान और आकर्षक
आधार मानते हैं।
भारत में भिखारियों की समस्याओं
भारत में
भिखारियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से कुछ समस्याएं गंभीर
हैं और हमारी कल्पना से परे भी हो सकती हैं। भारत में भिखारियों के सामने आने वाली
कुछ मुख्य समस्याओं पर एक नज़र:
भोजन और आश्रय का अभाव : भारत में भिखारी अपनी पूरी जिंदगी सड़क के किनारे रहते हैं। उनका
पूरा परिवार दिन में सड़क किनारे बैठता है और राहगीरों से भोजन और पैसे की भीख
मांगता है और उसी स्थान के पास एक पेड़ के नीचे पगडंडी पर या पेड़ के नीचे सोता है
क्योंकि यह अंधेरा बढ़ता है। भोजन, कपड़ा और आश्रय मनुष्य की बुनियादी जरूरतें हैं और
भिखारियों को इन बुनियादी जरूरतों से भी वंचित कर दिया जाता है। इन गरीबों का जीवन
भी ऐसा ही है।
खराब स्वच्छता स्थिति: सड़क के किनारे रहने वाले, भिखारियों को अच्छी गुणवत्ता वाले भोजन, स्वच्छ पेयजल के साथ-साथ पानी जो स्नान करने के लिए पर्याप्त साफ है या
स्वच्छता के उद्देश्य से पर्याप्त नहीं है। वे दिनों के लिए स्नान नहीं करते हैं
और उन्हें बिना धोए हफ्तों तक उसी कपड़ों में घूमते रहते हैं। इस प्रकार, वे खराब स्वच्छता से पीड़ित हैं।
खराब स्वास्थ्य स्थिति: खराब स्वच्छता से स्वास्थ्य खराब होता है। इसके अलावा, इन लोगों के पास उचित
आश्रय नहीं है और प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि मजबूत
गर्मी की लहर, भारी गिरावट और ठंड लगना। स्वस्थ भोजन खाना
उनके लिए सवाल से परे है। यह सब उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है और
विभिन्न बीमारियों की ओर जाता है।
चिकित्सा सुविधाओं का अभाव: जब ये गरीब लोग बीमार पड़ जाते हैं तो उनके पास खुद को ठीक करने के
लिए अच्छी चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच भी नहीं होती है। वे निजी डॉक्टरों द्वारा
वसूले गए भारी शुल्क को वहन नहीं कर सकते। हालांकि, उनमें से कुछ डॉक्टरों से मिलने नहीं जाते हैं और इस
स्थिति का इंतजार करते हैं कि वे अपने स्वयं के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए
सरकारी औषधालयों या अस्पतालों में जाएं, जहां मरीजों की अधिक
भीड़ हो और मरीज की उचित देखभाल की कमी हो।
निरक्षरता:
निरक्षरता मुख्य समस्या है। भिखारी ज्यादातर अनपढ़ हैं और अपने बच्चों को स्कूल
भेजने के लिए कोई प्रयास नहीं करते हैं। अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के
बजाय वे उन्हें सड़क पर भीख माँगने के लिए मजबूर करते हैं। इससे अशिक्षा के
साथ-साथ अपराध दर में भी वृद्धि होती है। शिक्षा व्यक्ति को अच्छे के लिए बदल सकती
है लेकिन ये लोग इसे नहीं समझते हैं।
भीख मांगने का रैकेट: ऐसे गिरोह हैं जो लोगों को भीख मांगने के लिए मजबूर करते हैं। वे
छोटे बच्चों का अपहरण करते हैं या उनके बदले गरीब परिवारों को फिरौती देते हैं और
उन्हें भीख मांगने में संलग्न करते हैं। ये गिरोह क्षेत्रों को विभाजित करते हैं
और अपने संबंधित क्षेत्रों में भीख मांगने के लिए भिखारियों को भेजते हैं। प्रत्येक
दिन के अंत में, वे
भिखारियों द्वारा एकत्र की गई पर्याप्त मात्रा में नकदी और दूसरीचीज़ें निकाल लेते
हैं। इस मामले में भिखारी लाचार हैं। सबसे बुरी बात यह है कि ये गैंग लीडर इन
भिखारियों को जनता की दया का आह्वान करने और अधिक भिक्षा प्राप्त करने के लिए
विकलांग बनाते हैं।
कोई भिखारी शौक से नहीं बनता
अभी हाल
ही मैं घर से दिल्ली की ओर ट्रेन से वापसी की यात्रा कर रहा था. यह घटना उसी
यात्रा के दौरान घटित हुयी. कभी-कभी कुछ यात्राएं मजेदार होने के साथ बहुत कुछ
सोचने पर मजबूर कर देती हैं. कुछ ऐसा ही इस सफर में भी घटित हुआ. बात भिखारियों को
भीख देने से शुरू हुयी. रेल कम्पार्टमेंट में अक्सर भीख लेने वालों का आवागमन लगा
ही रहता है. एक दस-बारह बरस का बालक जो शकल से ही निरीह प्रतीत हो रहा था, बड़े मार्मिक अन्दाज में
हाथ फैला कर भीख मांग रहा था. कई लोग उसे देख नाक-भौं सिकोड़ने के अन्दाज में
इधर-उधर लगे मुंह फेरने. कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने जेब में हाथ डाल कर कुछ रेजगारी
निकाली और उस बालक की ओर उछाल दिया जिसे उसने समेट लिया. फिर उसने योगी की निश्चल
मुद्रा में अन्यों की ओर देखा तो कुछ औरतों ने वात्सल्य भाव से उसे पैसे दे ही
दिया.
इस पर
कुछ तथाकथित समाजसुधारक और नाम के बुद्धिजीवियों ने अपना दर्शन उलीचना स्टार्ट कर
दिया (बुद्धिजीवी समाज के ठेकेदार जो मानते हैं अपने को). एक बुद्धिजीवी कहता है
कि इन सबका रोज का धन्धा है यह. जैसे वह कोई राज़ की बात बता रहा हो. दूसरा
बुद्धिजीवी तुरंत अपना ज्ञान प्रदर्शन करते हुए जवाब देता है कि इन्हें भीख देना
एक अपराध है. कुछ लोगों ने बालक को सलाह दे डाली कि काम करो, आखिर इतने हट्ठे-कट्ठे
होकर भीख मांगते हुए शर्म नहीं आती!
आखिर जब
मुझसे रहा नहीं गया तो मैं बोल ही उठा कि जब हम या हमारी सरकार अनाथों, लावारिशों, अपंगों या घर-बार हीन लोगों के लिए कोई भी इंतजाम करने में सक्षम नहीं हैं
तो फिर किस हक से हम दूसरों को इनकी मदद करने से रोक रहे हैं. भले ही हमारे द्वारा
दिए गए पैसे का वे दुरूपयोग करें या कोई गिरोह ही उनसे भीख मंगवा रहा हो फिर भी कम
से कम उनकी जान तो बची रहती है अन्यथा पता नहीं उनका क्या हो. भिक्षावृत्ति को
अपराध की श्रेणी में डाल कर कानून बना दिया सरकार ने और उसके कर्तव्य की इतिश्री
हो गयी. क्या सरकार का कर्तव्य केवल इतना भर है? और समाज का
कर्तव्य क्या है ? केवल अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़
लेना!
भिखारियों
के साथ आम तौर पर हम आप कैसा व्यवहार करते हैं? चल भाग, दूर हट। कभी बहुत दया आ
गई तो दूर से पैसे दे दिए, या खाना खिला दिया। लेकिन लंबे
बाल, फटे और मैले कुचैले कपड़ों के पीछे जो आदमी होता है वो
हमारे आप जैसा ही होता। वो भिखारी क्यों बनें? ये सवाल कुछ
से पूछ लेंगे तो आप की सोच बदल जाएगी।
यदि देखा
जाए तो कोई मजे के लिए भीख नहीं मांगता है. इसके पीछे का सच बहुत भयानक और दर्दनाक
है. अपनी आत्मा को मार कर सड़क पर निकल पड़ना कटोरा लेकर एक ऐसी बात होती है जिसे
कोई मनुष्य कैसे बर्दाश्त कर सकेगा. जब हम सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की बात करते
हैं तो उसमें दबे-कुचले लोगों का स्थान तय होना चाहिए किंतु भीख मांगने वालों के
लिए तो दबा-कुचला शब्द भी नहीं इस्तेमाल करते हैं लोग. तो फिर व्यवस्था में उनका
भाग कैसे निर्धारित हो?
इस
प्रकार की घटना निश्चित रूप से लगभग हर एक के साथ घटित होती रहती है. किंतु
भिखारियों को देख कर घृणा करने की बजाए हमें स्वयं पर लज्जित होना चाहिए कि हमारे
होते हुए भी जीवित मनुष्यों को इस हाल में जीवन-यापन करना पड़ रहा है. मानवता को
शर्म आनी चाहिए जिस बात पर उस पर शर्म या खेद व्यक्त करने की बजाए लेक्चर देना तो
एक निन्दनीय कर्म ही हो सकता है.
भीख
मांगना मजबूरी
भिक्षावृत्ति
सामाजिक बुराई है, जो आजाद भारत में आज भी मौजूद है। जब लोगों के पास रोजगार और दो वक्त के
भोजन का इंतजाम नहीं होता तो मजबूरी में उन्हें भीख मांगनी पड़ती है। बेशक
भिक्षावृत्ति पर कड़ाई से प्रतिबंध लगना ही चाहिए, किंतु
उससे पहले सरकार ऐसे प्रयास करे कि लोगों को भीख मांगनी ही नहीं पड़े।
भारतीय
पंरपरा और भिक्षावृत्ति
भिक्षा
मांगकर जीवनयापन करना एक साधना है, जो केवल एक साधक ही कर सकता है, जिसे हम भिक्षुक कहते है और यह हमारी संस्कृति और परंपरा से भी जुड़ा हुआ
है। पुराने जमाने में ब्राह्मण, साधु-संत और उपासक लोग केवल
भिक्षा मांग कर ही अपना जीवन यापन करते थे। किंतु यह तब सही है जब हम उतनी भिक्षा
ले, जितनी जरूरत हो यानी एक साधक की तरह। किंतु जो श्रम से
बचने के लिए भिक्षा मागते हैं, उनसे कड़ाई से निपटना चाहिए।
भिक्षावृत्ति
और अपराध
भीख
मांगते हुए भिखारी हर जगह मिल जाते हैं। यद्यपि उनमें से कुछ दयनीय स्थिति में
होते हैं, किंतु स्वस्थ लोग भी भीख
मांगते नजर आ जाते हैं। पर्यटन स्थलों पर तो ऐसे भिखारी पर्यटकों के पीछे ही पड़
जाते हैं। छोटे बच्चों का अपहरण कर उनको भीख मांगने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
इसलिए भिक्षावृत्ति को रोकना ही होगा। एक बड़ी आबादी को भीख मांगने की आदत पड़ गई
है। अधिकतर लोग भीख जीने के लिए नहीं, बल्कि पैसा जमा करने
के लिए मांगते हैं। कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं कि भीख मांगने वाले के पास बैंक
खाता ही नहीं अचल संपत्ति भी मिली। जरूरतमंदों की मदद जरूर की जाए, लेकिन आदतन भीख मांगने वालों को हतोत्सािहत किया जाए।
बेरोजगारी
है मुख्य कारण
भिक्षावृत्ति
समाज के लिए कलंक के समान है, परंतु इसका मुख्य कारण बेरोजगारी है। अत: राज्य सरकारों को उनके लिए
दिहाड़ी व्यवस्था के तहत काम देने का पुख्ता इंतजाम करना चाहिए। भिक्षावृत्ति पर
कड़ाई से प्रतिबंध लगाना इसका समाधान नहीं हो सकता है। यह बिरादरी आखिर कहां जाएगी
। अत: संवेदनशील ढंग से इस समस्या का समाधान खोजा जाना चाहिए। देश को आजाद हुुए
सात दशक से ज्यादा समय हो चुका है, पर अभी तक देश की बड़ी
आबादी दो वक्त की रोटी के लिए तरस रही है। इसके कारण भी भिक्षावृत्ति नहीं रूक
रही।
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