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8/1/15

बच्चे का विकास और खानपान

 शिशु का विकास

जन्म के पहले साल में बच्चे का विकास आश्चर्यजनक एवं सतत रूप से होता है। हर महीने उसका विकास होता जाता है। बच्चे का विकास कौन से महीने में कितना होता है और उसकी आयु के अनुसार उसे क्या आहार दिया जाना चाहिए।

इसकी जानकारी होना बहुत जरूरी है। यदि आप भी आने वाले मेहमान या अपने आ चुके मेहमान की विकास प्रक्रिया के बारे में जानना चाहती हैं तो पढ़िए यह जानकारी -

* पहला महीना :
इस समय बच्चा बहुत छोटा होता है, उसकी मुट्ठी बंद रहती है और वह रोशनी की ओर देखता है। इस समय बच्चे को सिर्फ माँ का दूध ही दिया जाना चाहिए।

* दूसरा महीना :
इस महीने से बच्चा मुस्कुराने लगता है और पेट के बल लेटकर सिर उठाना सीखता है। इस महीने भी बच्चे को माँ का दूध ही दिया जाना चाहिए।

* तीसरा महीना :
तीसरे महीने से बच्चा आस-पास होने वाली आवाजों की ओर ध्यान देने लगता है और एकटक किसी चीज को देखता रहता है। इस महीने से बच्चे को माँ के दूध के साथ ही फलों का रस भी दिया जा सकता हैं।

* चौथा महीना :
बच्चा सिर सीधा रखने लगता है और हँसता है। बच्चे को दाल का पानी और अन्य बाल-आहार दिया जाना चाहिए।

* पाँचवा महीना :
इस समय बच्चा किसी चीज को पकड़ने लग जाता है। कोई चीज जो उसने पकड़ी है उसे छीनने पर रोता है। इस महीने से बच्चे को पकी हुई सब्जी, उबला हुआ आलू दे सकते हैं।

छठा महीना :
महीने से बच्चा अपने आप उलटने लग जाता है। वह अपने आप उलटकर सोता है और खिलौनों की ओर झपटने लगता है। इस महीने से बच्चे को चावल, केला, दलिया व अन्य फल देने चाहिए। इस महीने से बच्चे के दाँत आना शुरू हो जाते हैं।

* सातवाँ महीना :
बच्चा हाथ के सहारे बैठने लगता है और घुटनों के बल चलने लगता है। वह नए लोगों से डरता है। इस समय से बच्चों को दलिया, अंडा, ब्रेड-बिस्किट, दूध में भिगोकर देने चाहिए।

* आठवाँ महीना :
बच्चा चीजों को मुँह में डालता है। शीशे में अपना चेहरा देखता है। अब बच्चे को सूजी की खीर, ब्रेड, साबूदाना आदि दिए जाने चाहिए।

* नवाँ महीना :
इस महीने से बच्चा बोलने की कोशिश करना शुरू कर देता है। इस समय उसे दाल, चावल एवं पत्तेदार सब्जियाँ दी जानी चाहिए।

* दसवाँ महीना :
अपने आप खड़े होने की कोशिश करता है और आसपास के वातावरण में रुचि लेने लगता है। इस महीने से उसे रोटी, राजमा एवं इत्यादि दिए जाने चाहिए।

* ग्यारहवाँ महीना :
इस महीने तक बच्चा खड़ा होना सीख जाता है। चीजों को पकड़कर खड़ा रहता है। अपने हाथ से खाने की कोशिश करता है। मूँगफली, तिल का आटा, दाल-चावल, रोटी व सब्जियाँ आदि देना शुरू कर देना चाहिए।

* बारहवाँ महीना :
बच्चा कुछ-कुछ शब्द बोलने की कोशिश करता है। इस समय तक बच्चे को सम्पूर्ण आहार दिया जा सकता है।

शिशु का मानसिक विकास

शिशु को चोट से बचाएं:- बच्चा जब घुटने के बच चलना या घूमना-फिरना शुरू करता है। उस समय उसके चोटिल होने का खतरा बढ़ जाता है, अतः विशेष सावधानी रखें। बाल्यकाल में शरीर में लगने वाले चोट से भी प्रमाष्तिकाघात होने का खतरा होता है। शिशु के मानसिक विकास के कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु जैसे-जैसे समय के साथ बच्चे का मष्तिष्क विकसित होता है शरीर पर उसका नियंत्रण बढते जाता है। बच्चा क्रम बद्ध एवं समय बद्ध तरीके से विभिन्न गतिविधियों जैसे मुस्कराना, बैठना, चलना एवं बोलना इत्यादि सीखने लगता है। जो बच्चे कम समय के या कमजोर होते है उनमें अनुपातिक रूप से कुछ अधिक समय लग सकता है। यदि यह विलम्ब अधिक हो जाए तो किसी शिशु विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करें। वे बच्चे के मनोविकास का परीक्षण कर यह सुनिश्चित करेगें कि बच्चे का मानसिक विकास सामान्य रूप से हो रहा है अथवा नहीं। सामान्य विकास
1 माह - मुस्कुराता है।

3 माह - गर्दन सम्भालने लगता है।

6 माह - बैठने की कोशिश करता है, करवट बदलता है।

9 माह - मामा एवं पापा जैसे दो अक्षरों वाले शब्द कहता है टाटा करता है, बैठ कर ताली बजाता है।

12 माह - खड़ा होना सीख जाता है, सहारे से चलता है चीजें फेकता है।

2 वर्ष - दौड़ता है, गेन्द पैरे से मारता है, दो शब्दों के वाक्य बनाता है।

3 से 4 वर्ष - वयस्कों की तरह सीढी चढ़ सकता है। नर्सरी राइम गा सकता है, दस तक गिनती गिन सकता है। यहाँ पर यह ध्यान रखना आवश्यक है कुछ बच्चे निधारित समय से थोड़ा पहले या थोडा़ बाद में सीखते हैं। परन्तु यदि बच्चे के विकास में अत्याधिक विलम्ब हो तो अपने शिशु विशेषज्ञ से परामर्श करें।

निम्नलिखित लक्षण हो तो सचेत हो जाएं:-

बच्चा सुस्त एवं निस्पृह रहता है, आँखे नही मिलाता है।

दो माह की उम्र के बाद भी हमेशा मुठ्ठियां बन्द रखता हो, विशेतः अंगूठा भी भीतर दबाकर रखता हो।

बच्चे को दूध पीने में परेशानी होती हो, ज्यादा हाथ-पैर नही चलाता हो, 3 माह की उम्र तक मुस्कराना न सीखा हो ।

सिर या तो सामान्य से बहुत छोटा या बड़ा हो ।

शरीर अत्यधिक ढीला या अत्याधिक कड़ा हो ।


शिशु का ध्वनि की प्रतिक्रिया नहीं देता हो। इन बच्चों में आगे चल कर मानसिक विकास अवरुद्ध होने का खतरा अधिक होता है । अतः शिशु विशेषज्ञ से इस विषय में शीघ्रातिशीघ्र सम्पर्क करें।

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