1.
जम्मू-कश्मीर के नागरिकों
के पास दोहरी नागरिकता होती है ।
2.
जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज
अलग होता है ।
3.
जम्मू - कश्मीर की विधानसभा
का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकी
भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है ।
4.
जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत
के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है ।
5.
भारत के उच्चतम न्यायलय के
आदेश जम्मू - कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं ।
6.
भारत की संसद को जम्मू -
कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यंत सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है ।
7.
जम्मू कश्मीर की कोई महिला
यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता
समाप्त हो जायेगी । इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले
तो उसे भी जम्मू - कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी ।
8.
धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI लागु नहीं है । RTE लागू नहीं है । CAG लागू नहीं होता । ...। भारत
का कोई भी कानून लागु नहीं होता ।
9.
कश्मीर में महिलावो पर
शरियत कानून लागु है।
10.
कश्मीर में पंचायत के
अधिकार नहीं।
11.
कश्मीर में अल्पसंख्यको [हिन्दू-
सिख] को 16 % आरक्षण नहीं मिलता ।
12.
धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर
के लोग जमीन नहीं खरीद सकते है।
13. धारा 370 की वजह से ही पाकिस्तानियो को भी भारतीय नागरीकता मिल जाता है ।
इसके लिए पाकिस्तानियो को केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है।
स्वतंत्रता के बाद छोटी-छोटी रियासतों को भारतीय संघ शामिल किया गया।
जम्मू-कश्मीर को भारत के संघ में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करने के पहले ही
पाकिस्तान समर्थित कबिलाइयों ने उस पर आक्रमण कर दिया। उस समय कश्मीर के राजा हरि
सिंह कश्मीर के राजा थे। उन्होंने कश्मीर के भारत में विलय का प्रस्ताव रखा।
तब इतना समय नहीं था कि कश्मीर का भारत में विलय करने की संवैधानिक
प्रक्रिया पूरी की जा सके। हालात को देखते हुए गोपालस्वामी आयंगर ने संघीय संविधान
सभा में धारा 306-ए, जो बाद में धारा 370 बनी, का प्रारूप प्रस्तुत किया।
इस तरह से जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिल गए।
क्या हैं अधिकार :
-
भारत के अन्य राज्यों के
लोग जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
-
वित्तीय आपातकाल लगाने वाली
धारा 360 भी जम्मू कश्मीर पर लागू
नहीं होती।
-
जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा
है।
-
भारत की संसद जम्मू-कश्मीर
में रक्षा,
विदेश मामले और संचार के
अलावा कोई अन्य कानून नहीं बना सकती।
-
धारा 356 लागू नहीं, राष्ट्रपति के पास राज्य के
संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं।
-
कश्मीर की कोई लड़की किसी
बाहरी से शादी करती है तो उसकी कश्मीर की नागरिकता छिन जाती है।
-
जम्मू-कश्मीर में
राष्ट्रपति शासन नहीं लग सकता है।
भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 370 एक 'अस्थायी प्रबंध' के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष
स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा देता है। भारतीय संविधान के भाग 21 के तहत, जम्मू और कश्मीर को यह ''अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रबंध'' वाले राज्य का दर्जा मिलता है।
जम्मू
और कश्मीर के लिए यह प्रबंध शेख अब्दुल्ला ने 1947
में किया था। शेख अब्दुल्ला को राज्य का प्रधानमंत्री महाराज हरि सिंह और जवाहर
लाल नेहरू ने नियुक्त किया था। तब शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में
इसका प्रबंध अस्थायी रूप में ना किया जाए। उन्होंने राज्य के लिए कभी ना टूटने
वाली, 'लोहे की तरह स्वायत्ता' की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था।
इस
अनुच्छेद के अनुसार रक्षा,
विदेश से जुड़े मामले, वित्त और संचार को छोड़कर बाकी सभी
कानून को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को राज्य से मंजूरी लेनी पड़ती है। इस
प्रकार राज्य के सभी नागरिक एक अलग कानून के दायरे के अंदर रहते हैं, जिसमें नागरिकता, संपत्ति खरीदने का अधिकार और अन्य
मूलभूत अधिकार शामिल हैं। इसी धारा के कारण देश के दूसरे राज्यों के नागरिक इस
राज्य में किसी भी तरीके की संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं।
अनुच्छेद
370 के कारण ही केंद्र राज्य पर आर्थिक
आपातकाल (अनुच्छेद 360) जैसा कोई भी कानून राज्य पर नहीं थोप
सकता है। केंद्र राज्य पर युद्ध और बाहरी आक्रमण के मामले में ही आपातकाल लगा सकता
है। केंद्र सरकार राज्य के अंदर की गड़बड़ियों के कारण इमरजेंसी नहीं लगा सकता है, उसे ऐसा करने से पहले राज्य सरकार से
मंजूरी लेनी होगी।
- भारतीय संविधान की धारा 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा
प्रदान करती है।
- 1947 में विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर के
राजा हरिसिंह पहले स्वतंत्र रहना चाहते थे लेकिन उन्होंने बाद में भारत में विलय
के लिए सहमति दी।
- जम्मू-कश्मीर में पहली अंतरिम सरकार
बनाने वाले नेशनल कॉफ्रेंस के नेता शेख़ अब्दुल्ला ने भारतीय संविधान सभा से बाहर
रहने की पेशकश की थी।
- इसके बाद भारतीय संविधान में धारा 370 का प्रावधान किया गया जिसके तहत
जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार मिले हुए हैं।
- 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से
बुलाने की अनुमति दी गई।
- नवंबर, 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया।
विशेष
अधिकार
- धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद
को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश
मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन किसी अन्य विषय से
संबंधित क़ानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए।
- इसी विशेष दर्जें के कारण जम्मू-कश्मीर
राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। इस कारण राष्ट्रपति
के पास राज्य के संविधान को बरख़ास्त करने का अधिकार नहीं है।
- 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर
लागू नहीं होता। सूचना का अधिकार कानून भी यहां लागू नहीं होता।
- इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष
अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कही भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी
भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते हैं।
- भारतीय संविधान की धारा 360 जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने
का प्रावधान है।वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
- राज्य की महिला अगर राज्य के बाहर शादी
करती है तो वह यहां की नागरिकता गंवा देती है।
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