उपन्यास सम्राट के तौर पर विख्यात प्रेमचंद आज भी सर्वाधिक पढ़े जाने वाले हिंदी के साहित्यकार हैं। इतने लंबे समय तक लोगों के बीच लोकप्रियता का कारण साहित्य जगत से जुड़े लोग उनकी रचनाओं की खूबियों को बताते हैं। गोदान जैसा कालजई उपन्यास लिखने वाले रचनाकार के बारे में साहित्यकार सुधीश पचौरी ने कहाकि वाकई प्रेमचंद आज भी हिंदी के सबसे लोकप्रिय साहित्यकार हैं। ऐसा यूं ही नहीं है। वह अपनी रचनाओं में सिर्फ समस्याओं को उभारने का काम नहीं करते बल्कि उनसे कैसे निपटा जाए उसे भी बखूबी बताते हैं। वह भावनाओं को सींचने वाले साहित्यकार थे। यही बात उन्हें भरोसेमंद बनाती है। उन्होंने कहाकि वह साहित्य में सिर्फ संघर्ष की बात नहीं करते बल्कि सृजनात्मकता और सौहार्द पर भी जोर देते हैं। प्रख्यात साहित्यकार और प्रेमचंद द्वारा शुरु की गई पत्रिका ‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव ने कहा, ‘प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में जिन समस्याओं और चुनौतियों को उभारा है, वह आज भी मौजूद हैं। चाहे आम व्यक्ति की दीनहीन दशा हो अथवा दूसरी परिस्थितियां। यही वजह है कि वह आज भी साामयिक बने हुए हैं।’ साहित्यकार निर्मल वर्मा ने भी कहा है कि प्रेमचंद की कहानियां आज भी इसलिए प्रासंगिक हैं क्योंकि उन्होंने भावी परिस्थितियों को एक संदर्भ के रूप में लिया था। पचौरी ने कहा, ‘आज के साहित्यकार संघर्ष और समस्याओं की बात तो करते हैं, लेकिन उनका समाधान क्या और कैसे होगा, वह नहीं बता पाते। प्रेमचंद अपनी रचनाओं में समस्याओं के साथ-साथ उम्दा समाधान भी बताते हैं। आज भी उनकी कहानियों को पढ़ने के बाद लोग आस्था बनाए रखते हैं।’
जुलाई 1880 में वाराणसी के निकट लमही गांव में जन्मे प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था। उनका मानना था कि व्यक्ति बुरा नहीं होता बल्कि परिस्थितियां उसे बुरा बना देती हैं। यूं तो प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का प्रारंभ 1909 में ही हो चुका था पर उनकी पहली हिंदी कहानी ‘सरस्वती पत्रिका’ में 1915 में ‘सौत’ नाम से प्रकशित हुई थीं। आगे वह कहानी और उपन्यास की विषयवस्तु में मूलभूत परिवर्तन करते हैं और काल्पनिक तथा एय्यारी रचनाओं की जगह यथार्थवाद को अपनी रचना के केंद्र में रखते हैं। प्रेमचंद ने भारतीय समाज में मौजूद लगभग सभी समस्याओं और कुरीतियों पर बखूबी लिखा है। राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक सभी को उन्होंने जिस तरह अपनी रचनाओं में समेटा और खास करके एक आम आदमी को, एक किसान को और दलित वर्ग के लोगों को…. वह अपने आप मिसाल है। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, कर्मभूमि और गोदान जैसे चर्चित उपन्यासों की रचना की। उनकी कहानियों में ईदगाह, बड़े भाई साहब, पूस की रात, कफन, दूध का दाम आदि उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा उन्होंने नाटक और अनुवाद का काम भी बखूबी किया। उनकी अनेक रचनाओं का अंग्रेजी, चीनी, रूसी समेत अनेक विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद किया गया। प्रेमचंद मात्र 56 वर्ष की आयु में आठ अक्तूबर 1936 को इस दुनिया से विदा हो गए।
जुलाई 1880 में वाराणसी के निकट लमही गांव में जन्मे प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था। उनका मानना था कि व्यक्ति बुरा नहीं होता बल्कि परिस्थितियां उसे बुरा बना देती हैं। यूं तो प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का प्रारंभ 1909 में ही हो चुका था पर उनकी पहली हिंदी कहानी ‘सरस्वती पत्रिका’ में 1915 में ‘सौत’ नाम से प्रकशित हुई थीं। आगे वह कहानी और उपन्यास की विषयवस्तु में मूलभूत परिवर्तन करते हैं और काल्पनिक तथा एय्यारी रचनाओं की जगह यथार्थवाद को अपनी रचना के केंद्र में रखते हैं। प्रेमचंद ने भारतीय समाज में मौजूद लगभग सभी समस्याओं और कुरीतियों पर बखूबी लिखा है। राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक सभी को उन्होंने जिस तरह अपनी रचनाओं में समेटा और खास करके एक आम आदमी को, एक किसान को और दलित वर्ग के लोगों को…. वह अपने आप मिसाल है। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, कर्मभूमि और गोदान जैसे चर्चित उपन्यासों की रचना की। उनकी कहानियों में ईदगाह, बड़े भाई साहब, पूस की रात, कफन, दूध का दाम आदि उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा उन्होंने नाटक और अनुवाद का काम भी बखूबी किया। उनकी अनेक रचनाओं का अंग्रेजी, चीनी, रूसी समेत अनेक विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद किया गया। प्रेमचंद मात्र 56 वर्ष की आयु में आठ अक्तूबर 1936 को इस दुनिया से विदा हो गए।
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