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4/28/12

child care

बच्चे देश की धरोहर हैं । हमारे देश का निर्माण कैसे होगा और हमारा भविष्य कैसा होगा, यह बच्चों के पालन-पोषण तथा उनकी मानसिकता पर ही निर्भर करता है । माँ-बाप की सारी आशाएँ उन्ही पर टिकी रहती हैं । परन्तु आजकल का समाज बच्चों को क्या मूल्य दे रहा है, इस बारे में चिंतित होना आवश्यक है । एक तरफ एक्ल परिवारों का चलन, जिनमें नाना-नानी, दादा-दादी तथा अन्य रिश्तों का अभाव रहता है, तथा दूसरी तरफ किताबों का बोझ रहता है। माता-पिता भी अपने कामों में बहुत व्यस्त रहते हैं । फिर टेलीविजन का चलन । यह सब मिल कर बच्चों को सही दिशा दिखलाने के बजाय, राह भटका सकते हैं । उनको सही मूल्यों का ज्ञान कौन देगा ? उनके मन में उपजे कौतुहल का निदान कौन करेगा ? इस सब के बारे में आज के यंत्र-चालित जीवन में सोचने की किसको फुर्सत है ।
ज्‍यादा लाड़-प्‍यार से मत बिगाड़‍िये बच्‍चे को
माता पिता अपने ज्‍यादा लाड़-प्यार से बच्चों को बिगाड़ देते हैं क्‍योंकि बच्‍चे उस प्‍यार का नजायज फायदा उठाने लगते हैं। देखने में यह भी आता है कि, कामकाजी माता-पिता जिनके पास अपने बच्‍चों के लिए ऑफिस से फुरसत नहीं होती, वह उनको उपहार द्वारा उस कमी को दूर करते हैं। ऐसा क्यों होता है कि माता-पिता का प्‍यार बच्‍चों को बिगाड़ देता है, जानने के लिए पढि़ये यह लेख- 
1. जब जरुरत नहीं है तब क्‍यों लाड-प्‍यार - बच्‍चों को अपना प्‍यार दिखाने के लिए महंगे-महंगे सामान और खिलौने देना कहां तक उचित है। जब आपके बच्‍चे के पास जरुरत का सारा समामान है, तो भी उसे वह सब क्‍यों देते हैं जिससे वह बिगड़ सकता है। बच्‍चे अपने पेरेन्‍ट्स से ही सीखते हैं, अगर उन्‍हें वह हर चीज़ मिल जाएगी जिनकी वह उम्‍मीद करते हैं तो वह अपनी जिंदगी में कभी भी प्रयास नहीं करेगें। इससे बच्‍चे पैसों की अहमियत नहीं समझते। 
2. हद से ज्‍यादा चिंता जताना - पेरेन्‍ट्स को अपने बच्‍चे के लिए ज्‍यादा चिंता जनक नहीं होना चाहिये इससे बच्‍चे बंध जाते हैं और आजादी महसूस नहीं कर पाते। बच्‍चा अगर स्‍कूल जाता है और आप उसकी सेफ्टी के लिए पबलिक ट्रांसपोर्ट की जगहं स्‍कूटी दिला देते हैं, तो बच्‍चा कभी भी जीवन की सच्‍चाई से रुबरु नहीं हो पाएगा। बच्‍चा आप पर र्निभर हो जाएगा और फिर वह दुनियांभर के लोगों से मुंह चुराने लगेगा। 
3. बच्‍चों में बुरी आदतें विकसित होगीं - वह बच्‍चे जिनको घर में बहुत लाड़-प्‍यार मिलता है, वह दूसरों की इज्‍जत करना भूल जाते हैं। पेरेन्‍ट्स को भी बच्‍चों के सामने दूसरे लोगों से ठीक से पेश आना चाहिये जिससे उनके बच्‍चों के मन में बड़ों के प्रति सम्‍मान पैदा हो। 
4. बिगड़े बच्‍चे दूसरों पर हावी होते हैं - वह बच्‍चे जो पेरेट्स के लाड़ प्‍यार में बिगड़ जाते हैं, वह दूसरों पर हावी होने लगते हैं। वह बहुत गुस्‍से वाले हो जाते हैं और उनको समझाने के लिए जो भी बात बोली जाती है, वह उसका उल्‍टा मतलब निकाल लेते हैं। माता - पिता को अपने बच्‍चों को तरह तरह का समान देने से बचना चाहिये और उनके साथ थोड़ा अच्‍छा समय बिताना चाहिये। 
5. कामकाजी माताएं - वह माताएं जिनके पास बच्‍चों के लिए समय नहीं होता वह अपने बच्‍चों को गिफ्ट खरीद कर दे देती हैं। उन्‍हें मालूम होना चाहिये कि बच्‍चे को गिफ्ट देकर समझा लेना तो आसान है। पर वही बच्‍चा जब बड़ा हो कर बिगड़ जाएगा तो कोई गिफ्ट काम नहीं आएगा। इसलिए अपने बच्‍चे के लिए समय निकालें और उसे यह बात बताएं कि इतने सारे सुख और आराम देने के लिए आपने कितनी महनत की है। इससे उन्‍हें एहसास होगा और वह एक अच्‍छे और समझदार इंसान बनेगें।
6.अपनी इच्छाएं क्या बच्चे वाकई हिंसक होते जा रहे हैं, क्या वे अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए गलत रास्ता अपनाने लगे हैं, जैसे तमाम प्रश्न हैं जिनके जवाब समय रहते ढूंढ़ लेना चाहिए। समय आ गया है कि माता-पिता को बच्चों के प्रति अपनी भूमिका में आए ठहराव को खत्म करना चाहिए। सिर्फ पढ़ाने, विषय का चयन करने, कॅरियर बनाने जैसी भूमिका ही माता-पिता की नहीं है।
बच्चा किस संगत में रह रहा है, उसका व्यवहार किस तरह का है, उसको कौन सी ऎसी बातें पसंद आ रही हैं जो सर्वथा गलत हैं, के अलावा उसकी गलत जिदें तो पूरी नहीं हो रही हैं, जैसी बातों पर भी ध्यान देना होगा। फिल्में, टीवी, मोबाइल, कम्प्यूटर, बाइक जैसी महत्वाकांक्षाएं बच्चों के गलत रास्ते पर जाने का एक बहुत बड़ा कारण है। इनमें से ज्यादातर चीजें बच्चों के लिए सुलभ हो गई हैं। इन्हें भी नियंत्रित करना होगा। बच्चा जब किसी चीज का वास्तविक या सही उपयोग नहीं समझेगा, तो वह हमेशा उसके नकारात्मक पहलुओं की तरफ ही आकर्षित होगा। अभिभावक इन पर समय रहते ध्यान देंगे तो शायद ऎसी स्थितियां किसी के घर में नहीं बनेंगी, जैसी इंदौर के उन गैंग चलाने वाले किशोरों के घर में बनी है।


चाइल्ड केयर: कैसे बनें बेहतर 'पैरेन्ट'
सभी पैरेन्ट अपने बच्चों को बेहतरजिंदगी देना चाहते हैं। अभिभावक वो सब करते हैं जो उन्हें अपने बच्चे के लिए उचित लगता है। बच्चे काफी कोमल होते हैं, उन्हें जिस तरह ढाला जाता है वे वैसे ही बन जाते हैं। उन पर अपने माता-पिता परिवार की सीख का प्रभाव सबसे अधिक होता है। बच्चों को बड़ा करने की इस प्रक्रिया में पालकों को भी चाहिए कि वे समय-समय पर बच्चों को बड़ा करने के तरीकों पर सोच-विचार करें। 
अनकंडीशनल लव 
निःसंदेह पैरेन्ट्स अपने बच्चों से अथाह प्यार करते हैं लेकिन इस प्यार के बदले में कोई अपेक्षा रखें। माता पिता के रूप में अपने बच्चे को बिना किसी शर्त के और बिना किसी तरह की अपेक्षा के अपना प्यार देना चाहिए। जब आप बच्चे को अनकंडीशनल लव देते हैं तो उनकी गलतियों पर भी आप ज्यादा विचलित नहीं होते हैं। साथ ही आपका बच्चा भी इस प्यार को समझता है एवं स्वयं को अधिक सुरक्षित महसूस करता है।
एक्टिव लिसनिंग 
जब बच्चा आपसे बात करता है तो अपना कार्य छोड़कर बच्चे की बात पर पूरा ध्यान दें। यह सच है की आप शायद स्वयं कार्य करते हुए भी बच्चे की बातों पर ध्यान दे रहे हों लेकिन जब आप सब कार्य छोड़कर बच्चे से आंख से आंख मिलाकर बात करेंगे तो बच्चा स्वयं भी गर्वित महसूस करेगा।
क्वॉलिटी टाइम
यह आवश्यक नहीं कि आप बच्चे के साथ पूरे समय रहें लेकिन जरूरी यह है कि आप उसके साथ जो भी समय गुजारें वह उत्कृष्ट हो। बच्चे के साथ कम समय गुजार कर भी आप यह जता सकते हैं कि वह आपके लिए कितना महत्वपूर्ण है। आप इस समय में बच्चे से उसकी दैनिक गतिविधि, उसके दोस्तों के बारे में, उसके द्वारा देखे गए टीवी प्रोग्राम्स के बारे में बात करें वह खुद को आपके बहुत करीब पाएगा।

संस्कारी होते हैं संयुक्त परिवारों में पले बच्चे

आज विवाह-विच्छेद और पारिवारिक टूटन की बातें आम हो गयी हैं। अब वृद्धों का परिवार में रहना  कठिन और कष्टïप्रद होता जा रहा है। पश्चिमी देशों में तो काफी पूर्व से वृद्धों के लिए पार्क,  क्लब और पृथक आवास की योजनाएं चल रही हैं किन्तु भारतवर्ष में भी ‘वृद्धाश्रम’ जैसा शब्द अनजाना नहीं रहा। हमारे माता-पिता हमारे लिए ही बोझ बनते जा रहे हैं।
सौ-पचास साल पहले परिवार संबंधी संकल्पना में पति-पत्नी, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, परदादा-परदादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, बुआ-फूफा, बहन-बहनोई, साला-सहलज आदि सभी रिश्तों का समावेश होता था। लेकिन अब परिवार का अर्थ होता है- ‘पति, पत्नी और बच्चे।’ नौकरी या व्यापार के कारण अधिकांश लोग अपने जन्म स्थान से दूर चले जाते हैं। भागदौड़ की जिंदगी और पैसा कमाने की बेताबी ने लोगों को परिवार से अलग रहने पर मजबूर कर दिया है।
छोटे परिवार को सुख का आधार माना जाता है क्योंकि उसके भरण- पोषण में व्यय कम होता है, साथ ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सकती है तथा स्वास्थ्य रक्षा की जा सकती है। किन्तु दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ आदि के संरक्षण और प्यार में मिलने वाले पोषण, शिक्षण और संस्कारों की आवश्यकता पर हम ध्यान नहीं दे रहे।
नतीजा हमारे सामने है। आज की पीढ़ी बुजुर्गों का सम्मान नहीं करती और न ही उसमें परिवार तथा समाज के प्रति कोई निष्ठïा ही है। सिर्फ आर्थिक सुख-सुविधा से जीवन को सुख-शांतिमय नहीं बनाया जा सकता। सीमित संक्षिप्त परिवार के चलते आज बच्चों में स्वार्थपरता, अहंकार, मूढ़ता और घृणा की भावना तीव्र गति से बढ़ रही है।
संयुक्त परिवार में सबकी शक्ति, बुद्धि और दक्षता का सदुपयोग होता है। उत्तरदायित्व का कोई लिखित आदेश नहीं होता। उसे नहीं निभाने पर दंडविधान भी नहीं है किन्तु सभी लोग अनायास ही अपने कर्तव्य कर्म करते चलते हैं। सास की जिम्मेदारी बहू, पिता की पुत्र उठा लेते  हैं। नन्हें-मुन्ने दादा-दादी, नाना-नानी का प्यार पाते और पुष्टï होते हैं। अपने बच्चों को बुजुर्गों के आश्रय में छोड़कर माता-पिता निश्चिंत होकर धनार्जन कर सकते हैं।
बच्चों की किलकारी, किशोरों के  अल्हड़पन और युवाओं के संकल्प के स्वर तथा वृद्धों के परिपक्व विचारों से सारा आंगन गुंजायमान होता है। ऐसे सुख-संतोष भरे वातावरण को ही स्वर्ग की उपमा दी गयी है। न कहीं घुटन होती है और न ही अधिकारों के लिए मारामारी। इस तरह संयुक्त परिवार प्रत्येक दृष्टिï से सुखकर है। अगर हम अपने परिवार को बचाना चाहते हैं तो संयुक्त परिवार के महत्व को समझें और पाश्चात्य हवा में न बहें।ह्व
बच्चे की पढ़ाई ने बढ़ाया टेंशन
माता-पिता में बच्चों के लिए तनाव होने से कई बार बहुत सी परेशानियां होने लगती हैं। पेरेंट्स बच्चों पर इतना अधिक ध्यान देने लगते हैं, जिससे पारिवारिक तनाव की स्थिति पैदा होती है। यह स्थिति न तो सामाजिक तौर पर अच्छी होती है और नहीं इसका बच्चों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है, इसलिए पेरेंट्स को चाहिए कि वह तनाव का सही प्रबंधन करे। 
समय
डॉ. कपूर ने बताया कि वर्किग पेरेंट्स अपने बच्चों को कम समय दे पाते हैं। वह बच्चों की सारी आवश्यकताओं को पैसों में तौलकर पूरी करते हैं। बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति केवल पैसों में तौलकर नहीं की जानी चाहिए। इससे बच्चे में भावनात्मक जुड़ाव की बजाए अलगाव की स्थिति पनपती है। दिनभर पढ़ाई-लिखाई में व्यस्त होने के बाद बच्चा यदि स्वयं को रिलैक्स करने के लिए थोड़ी देर टीवी देखता है या मोबाइल से खेलने लगता है, तो पेरेंट्स को यह परेशानी होने लगती है कि इतना पढ़ाई में इतना पैसा डालने के बाद भी बच्चा पढ़ने के बजाए टीवी देखने या गेम खेलने में व्यस्त है। आखिरकार वह बच्चों पर चिल्लाते हैं और बेवजह उन पर गुस्सा करते हैं। बच्चों का मन कोमल व सादे कागज जैसा होता है उस पर जैसा लिखोगे बच्चे वैसे ही हो जाएंगे।मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चे मासूम होते हैं उन्हें बचपन में किसी भी प्रकार के हिंसात्मक शब्दों व कार्यवाही से दूर रखा जाना चाहिए क्योंकि इससे उनके व्यवहार में परिवर्तन हो सकता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि यदि बच्चों के सामने हिंसात्मक शब्दों का प्रयोग किया जाए तो वह उग्र हो जाते हैं और आगे चलकर वह भी हिंसा में रूचि लेने लगता है।
तनाव
साइकायट्रिस्ट डॉ. आशुतोष कपूर ने बताया कि तनाव बढ़ने का मुख्य कारण है फाइनेंशियल प्रॉब्लम होती है। आज महंगाई के दौर में एक बच्चे की पढ़ाई का खर्चा लाखों में होता है। उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाना, जरूरत की सारी सुविधाएं जैसे मोबाइल, कम्प्यूटर इत्यादि से से बजट बिगड़ जाता है। इसके साथ ही स्टेटस सिंबल भी मायने रखता है। हर पेरेंट्स चाहते हैं कि उसका बच्चा बड़े से बड़े स्कूल में जाए और नामी कोचिंग में पढ़ाई करे। इसके लिए पेरेंट्स बच्चों पर पढ़ाई का इतना बोझ डाल देते हैं, कि उनका बच्चा अन्य बच्चों से पीछे न रह जाए और चार लोगों के सामने उनकी छवि बनी रहे कि मेरे बच्चे को सब आता है। पेरेंट्स बच्चों को सारी सुविधाएं भी देना चाहते हैं एवं खर्चो से परेशान भी रहते हैं। इन सबके चलते यदि बच्चों का मन किसी और कामों में पड़ता है, तो उनमें तनाव की स्थिति बनती है कि बच्चे पर इतना खर्चा कर रहे हैं और उसका मन पढ़ाई में नहीं है। 
ऎसा करें पेरेंट्स
पेरेंट्स क्वालिटी टाइम निर्धारित करें। बच्चों के साथ दिन में एक टाइम जरूर फिक्स करें, जब वह अपने बच्चे से बातें शेयर करें। 
घरेलू टेंशन को कम करने के लिए रिलैक्स करें।
पोषण युक्त भोजन करें 
नियमित साहित्य पढ़े 
एक्सरसाइज करें। 
स्वयं के बच्चे की तुलना उसके भाई-बहनों या अन्य बच्चों से न करें।


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