2/11/24

बिहार का इतिहास

भारत के हृदय में स्थित, बिहार का इतिहास  प्राचीन सभ्यताओं, वंशवादी विरासतों और सांस्कृतिक समृद्धि के धागों से बुना हुआ। मौर्य साम्राज्य की भव्यता से लेकर नालंदा विश्वविद्यालय के गहन ज्ञान तक, बिहार का अतीत ऐसी कहानियों का खजाना है जो खोजे जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। 








 History Of Bihar

bihar ka itihas in hindi



















22 मार्च 1912 को बंगाल प्रेसिडेंसी से अलग होकर देश के 12 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया |

1935 में बिहार से अलग होकर ओडिशा और 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना

गौतम बुद्ध को यहीं ज्ञान मिला, सिखों के 10 वें गुरु का जन्म हुआ, देश के पहले राष्ट्रपति भी यहीं से 

22march को बिहार अपना स्थापना दिवस मना रहा है. इस दिन राज्यभर में कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. 2005 में नीतीश कुमार जब बिहार के मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने बिहार दिवस मनाने की घोषणा की. 2008 में बड़े स्तर पर बिहार दिवस मनाने की शुरुआत हुई. हालांकि अलग बिहार राज्य की लड़ाई इतनी आसान नहीं थी. लंबी जद्दोजहद के बाद बिहार राज्य अस्तित्व में आया था

Bihar Diwas 

लंबी लड़ाई के बाद बिहार अस्तित्व में आया: 1912 से पहले बिहार बंगाल प्रोविंस का हिस्सा था लेकिन यहां के लोगों को लगता था कि उनकी उपेक्षा होती है. नौकरी से लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में वाजिब हिस्सेदारी नहीं मिलने से असंतोष पनपने लगा था. धीरे-धीरे अपने हक के लिए लोग आवाज उठाने लगे. एक समय तो पटना कॉलेज को भी बंद करने पर विचार होने लगा था. 1872 में जॉर्ज कैम्पबेल ने इस बाबत फैसला भी ले लिया.


22 मार्च 1912 को बिहार बना अलग राज्य: जानकार बताते हैं कि लंबे चले संघर्ष के बाद कांग्रेस ने 1908 में अपना प्रांतीय अधिवेशन बुलाया, जहां बिहार को अलग प्रांत बनाए जाने का समर्थन किया. इसके लिए एक कमेटी बनाई गई. दरभंगा महाराजा रामेश्वर सिंह को अध्यक्ष और अली इमाम को इस कमिटी का उपाध्यक्ष बनाया गया. आखिरकार 12 दिसंबर 1911 को बिहार को अलग राज्य का दर्जा मिला. वहीं 22 मार्च 1912 को बिहार बंगाल और उड़ीसा से अलग हो गया. पटना को बिहार की राजधानी घोषित किया.


विहार से पड़ा बिहार का नाम: राज्य का नाम बिहार पड़ने के पीछे की वजह भी बेहद खास है. दरअसल बिहार का नाम बौद्ध विहारों के विहार शब्द से हुआ है. विकृत रूर से विहार के स्थान पर उसे बिहार कह कर संबोधित किया जाता था. इसी वजह से राज्य का नाम पहले विहार और उसके बाद बिहार पड़ा.


बिहार का गौरवशाली इतिहास: बिहार का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. हिंदू पुराणों के अनुसार माता सीता का जन्म बिहार में ही हुआ था. बिहार से बुद्ध और जैन धर्म की उत्पत्ति हुई थी. पहले बिहार को मगध के नाम से भी जाना जाता था. वहीं दुनिया का सबसे पुराना विश्वविद्यालय नालंदा यूनिवर्सिटी बिहार में ही है. शून्य की खोज करने वाले आर्यभट्ट भी इसी बिहार से थे. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी बिहार के सारण (सिवान) के ही रहने वाले थे.






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बंगाल से अलग कर 22 मार्च 1912 को अंग्रेजों ने एक राज्य का गठन किया और नाम रखा बिहार. इसी समयांतराल में बंगाल से एक और राज्य अलग हुआ जिसका नाम था उडीसा जो आज का ओडिशा है. अंग्रेजों ने तब बिहार की राजधानी के रूप में पटना को चुना. अब आप सोच रहे होंगे कि यह नाम 'बिहार' आखिर क्यों तो आपको बता दें कि इसका मतलब होता है मंदिर या मठ. मतलब आप इसके नाम से अंदाजा लगा सकते हैं कि बिहार किस समृद्धशाली ऐतिहासिक धरोहर का परिचायक है. जहां अनगिनत संख्या में मंदिर और मठ मौजूद थे. यह भारत के समृद्ध इतिहास का भी परिचायक रहा है. यहां सनातन संस्कृति से लेकर, सिख. जैन और बौद्ध धर्म तक सभी ने अपने आप को समय के साथ फलता-फूलता और बेहतर होता पाया.  


बिहार को पुराने जमाने में मगध के नाम से जाना जाता है. जी हां वही मगध जिसका साम्राज्य विस्तार इतना था कि आज के कई देश की सीमा उसमें सिमट जाए. इसकी राजधानी हुआ करती थी पाटलिपुत्र जिसे आज का पटना कहते हैं. पटना वह भी नाम क्यों तो आपको बता दें कि यहां माता पटन देवी का मंदिर है जिसके नाम पर इस शहर का नाम पटना रखा गया. बौद्ध धर्म के लोग यहां जहां निवास करते थे उसे विहार कहा जाता था जिसके नाम पर इसे बिहार कहा जाने लगा. हालांकि अंग्रेजों से पहले 12वीं शताब्दी में मुगल इस विहार की भूमि होने के कारण बिहार कहने लगे. यहां सबसे पहले गोपालवंश का शासन शुरू हुआ लेकिन बिम्बिसार को इस मगध राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है. जिन्होंने राजगीर को अपनी राजधानी बनाई. 


बता दें कि बिहार के सबसे पुराने जिले की बात की जाए तो वह पूर्णिया है. जिसे 1170 में ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने में बनाया गया. वन क्षेत्र होने के कारण पूर्णिया को पूर्ण+अरन्य यानी पूर्ण जंगल से अच्छादित क्षेत्र कहा जाता रहा. यहीं की वह धरती है जिसने महावीर को जन्म दिया. उनका जन्म वैशाली में हुआ. वहीं इसी धरती पर भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई इसलिए यह ज्ञान की भूमि के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि पाटलिपुत्र की स्थापना का श्रेय अजातशत्रु को जाता है. अजातशत्रु के बाद मगध की सत्ता शिशुनाग राजवंश के हाथ में चली गई. इसके बाद नंद वंश ने यहां शासन किया जहां महापद्मानंद और धनानंद दो बड़े शासक हुए. यहां से इस साम्राज्य ने एक और समृद्धशाली छलांग लगाई और मौर्य वंश के हाथ में मगध की सत्ता गई. परम प्रतापी राजा चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहां की गद्दी संभाली और इसका सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक हर क्ष्त्र में विकास हुआ फिर बिन्दुसार से होते हुए यहां सम्राट अशोक तक का शासन चला. 


ये वही प्रदेश है जहां प्रभु श्रीराम की पत्नी माता जानकी यानी सीता का जन्म हुआ था. यहां शिक्षा के कई प्रमुख केंद्र रहे जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय प्रमुख थे. गुप्तवंश के समय तो यहां की शिक्षा व्यवस्था की चर्चा दुनिया भर के देशों में थी. तब यह एक समृद्ध राज्य था और उस युग को तब यहां का स्वर्ण युग कहा जाता रहा है. यहां शेरशाह सूरी ने भी राज किया. सासाराम में आज भी उसका मकबरा है. इस राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि का अंदाजा इस बात से लागाया जा सकता है कि यहां रामायण के रचियता वाल्मिकी रहते थे. यहां की धरती पर भगवान महावीर और गुरु गोविंद सिंह ने जन्म लिया. यहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई. बिहार की मुख्य भाषाओं में हिंदी, भोजपुरी, मैथिली, उर्दू,मगही, अंगिका बोली जाती है. आज यह जनसंख्या की दृष्टि से देश का तीसरा और क्षेत्रफल की दृष्टि से 12वां बड़ा राज्य है.