6/2/21

डीएनए में डाटा स्टोर होगा

dna data storage in hindi



आज हम प्रतिदिन जितनी मात्रा में डेटा का उत्पादन कर हैं उसे सहेज के रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त स्टोरेज नहीं है। ऐसे में हजारों सालों तक मानव विकास से जुड़ी जानकारियों और डेटा को सुरक्षित रखने के लिए हमें ज्यादा भंडारण क्षमता की जरूरत है। डीएनए एक दिन हार्ड ड्राइव, टेप और अन्य भंडारण माध्यमों को बदल सकता है। यह बहुत जल्द संभव होने वाला है। वैज्ञानिकों द्वारा पिछले कुछ वर्षों में डीएनए का उपयोग करके सैकड़ों मेगाबाइट डेटा को एन्कोड किया गया है। इसमें पृथ्वी पर मौजूद हर चीज की जानकारी स्टोर की जा सकेगी।

टेक्नोलॉजी के इस युग में हर व्यक्ति अपने इलेक्ट्रॉनिक डाटा को किसी न किसी स्टोरेज डिवाइस में संभाल कर रखता है। क्लाउड सर्वर, हार्ड ड्राइव, पेन ड्राइव, मेमोरी कार्ड, और डीवीडी आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले स्टोरेज डिवाइस है। इलेक्ट्रॉनिक स्टोरेज डिवाइस अपनी अलग-अलग क्षमता के हिसाब से मार्किट में उपलब्ध है लेकिन इन स्टोरेज डिवाइस की भी अपनी एक सीमा है। विश्व में लगातार रोजाना नए इन्टरनेट यूजर्स की संख्या बढ़ रही है जिसके कारण बड़े ही व्यापक स्तर पर रोजाना नए डेटा का निर्माण हो रहा है। गूगल, फेसबुक पर आइबीएम जैसी आईटी कंपनियां भी भविष्य में डेटा स्टोरेज सम्बंधित समस्याओं के लिए चिंतित है। वैज्ञानिकों ने हाल ही में डेटा सम्बंधित इस समस्या का नया हल निकाला है। निकट भविष्य में इलेक्ट्रोनिक डेटा को अब DNA में स्टोर करने की योजना है।

 

अब वैज्ञानिक जीवित जीवों के डीएनए में इलेक्ट्रॉनिक डेटा को स्टोर कर सकते है। हार्ड ड्राइव जैसी आम स्टोरेज डिवाइस की तुलना में डीएनए में इसका 1000 गुना ज्यादा डेटा स्टोर किया जा सकता है। नमक के एक कण जितनी मात्रा में 10 एच.डी. फिल्मो को स्टोर किया जा सकता है और डीएनए के 9 लीटर घोल में पृथ्वी की सारी जानकारी स्टोर की जा सकती है। वेसे अगर देखा जाए तो डीएनए प्राकर्तिक रूप से एक स्टोरेज डिवाइस है जो जीवों की बायोलॉजिकल जानकारी को स्टोर करके रखता है। वैज्ञानिक अब इस प्राकर्तिक स्टोरेज डिवाइस में इलेक्ट्रॉनिक डेटा को भी स्टोर करने में सफल हुए है।

 

डीएनए में कैसे होता है डेटा स्टोर!

इलेक्ट्रोनिक डिवाइस में किसी भी डेटा को स्टोर करने के लिए हमारे द्वारा बनाया गया डेटा जीरो और वन के रूप में कन्वर्ट हो कर हार्डडिस्क और पेनड्राइव आदि में सेव होता है। किसी भी डेटा को स्टोर करने के लिए इन डिजिटली जीरो और वन का अहम योगदान होता है, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने डीएनए में डेटा को स्टोर करने का भी कुछ ऐसा ही तरीका निकाला है।

 











डीएनए में डेटा को स्टोर करने के लिए किसी भी डेटा के जीरो और वन को डीएनए के 4 मुख्य अणुओं एडीनाइन, थाइमिन, साइटोसिन, गुआनिन (क्रमशः ऐ,टी,सी,जी) में परिवर्तित किया जाएगा। जीरो और वन को ऐ,टी,सी,जी में परिवर्तित करने के बाद डेटा को लिखने के लिए डीएनए संस्लेषण का इस्तेमाल किया जाएगा। डेटा को एक्सेस करने के लिए डीएनए सेकुएंसअर टेक्नोलॉजी की जरुरत पड़ेगी जो कि विभिन्न डीएनए कोड को दुबारा से जीरो और वन में कन्वर्ट करेगा। एक बार डिजिटल जीरो और वन में कन्वर्ट हो जाने के बाद डेटा को इस्तेमाल किया जा सकेगा। वर्तमान में डीएनए सिक्वेंसिंग बहुत महंगी है लेकिन ही जल्दी ही यह टेक्नोलॉजी उपयोग करने के लिए सस्ती हो जाएगी।

 

भविष्य में जैविक और टेक्नोलॉजी को एक करने से विज्ञान को एक नयी प्रगति मिलेगी। डीएनए में स्टोर किया गया डेटा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के मुकाबले कई हज़ारों वर्षों तक सुरक्षित रह सकता है। इसके अलावा कुछ जैविक सरंचनाएं ऐसी भी है जो किसी भी वातावरण को झेलने में सक्षम है इसलिए इलेक्ट्रॉनिक डेटा हर परिस्तिथि में सही सलामत रहेगा अगर वैज्ञानिक इसी दिशा में काम करते रहे तो कुछ वर्षों में यह टेक्नोलॉजी आम हो सकती है और डेटा को एक्सेस करने के और भी सरल उपाय वैज्ञानिक खोज लेंगे।


यह होगा फायदा इस तकनीक की मदद से डेटा स्टोरेज करने के लिए लाखों-करोड़ों कम्प्यूटर, मैग्नेटिक टेप, ऑनलाइन सर्वर और क्लाउड स्टोरेज की जरुरत नहीं पड़ेगी। डीएनए के एक अणु में हम अपने एक साल के बराबर का डेटा हजारों सालों के लिए सिंथेटिक डीएनए के रूप में संग्रहीत कर सकेंगे। इससे पृथ्वी पर मौजूद हर चीज की जानकारी स्टोर की जा सकेगी। मैग्नेटिक टेप की तुलना में डीएनए स्टोरेज को संभालना ज्यादा आसान, कुशल और आने वाले सालों में कम खर्चीला होगा। एक सिंथेटिक डीएनए स्ट्रैंड में संग्रहीत डेटा लंबे समय तक सुरक्षित बना रहता है और इसका रखरखाव भी नहीं करना पड़ता। डीएनए स्टोरेज की सबसे पहले शुरुआत 1988 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक परीक्षण के रूप में की गई थी। तब आर्टिस्ट जो डेविस की कलाकृति की हूबहू नकल को डीएनए स्टोरेज के रूप में एन्कोडेड किया गया था।

डीएनए क्या है? डीएनए यानी डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड। मानव समेत सभी जीव में अनुवांशिक (जेनेटिक) गुण इसी के जरिए आता है। मनुष्य के शरीर की लगभग हर कोशिका (सेल) में समान डीएनए मौजूद होते हैं।

 

ज्यादातर डीएनए कोशिका के न्यूक्लियस में उपस्थित होते हैं जिन्हें न्यूक्लियर डीएनए कहा जाता है। कुछ डीएनए माइटोकॉन्ड्रिया में भी होते हैं जिन्हें माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए कहते हैं।

 

डीएनए में इन्फर्मेशन 4 केमिकल्स (बेस) के कोड मैप के रूप में होती हैं - एडेनिन, गुआनिन, साइटोसिन और थायमिन। मानव डीएनए करीब 3 बिलियन बेस से बना होता है। इनमें से 99 पर्सेंट बेस सभी लोगों में समान होते हैं। किसी क्रिएचर का रूप क्या होगा यह इन बेस या केमिकल्स की सीक्वेंस पर निर्भर करता है।

 































हर व्यक्ति के शरीर में मौजूद कुल डीएनए की लंबाई इतनी होती है कि उससे हमारे पूरे सौर मंडल को दो बार लपेटा जा सकता है! अब आप सोच रहे होंगे इतने लंबे डीएनए को हमारी सूक्ष्म कोशिकाओं में कैसे फिट किया गया होगा. दरअसल यह डीएनए बहुत घने रूप से लपेटा गया है. डीएनए और प्रोटीन एक दूसरे पर इस तरह लपटे हुए होते हैं जैसे टेलीफोन का घुमावदार तार. लिपटकर जब यह मोटी सी संरचना बना लेते हैं उन्हें ही क्रोमोसोम कहा जाता है. यही क्रोमोसोम माता और पिता से आधे-आधे उनके बच्चे में जाते हैं.

मानव सभ्यता के जन्म के साथ ही पैदा यह डीएनए तब से लेकर आज तक बहुत सी जानकारियां सुरक्षित रखे हुए है. यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने डीएनए में डिजिटल जानकारी स्टोर करने के बारे में सोचा और सफलता हासिल कर ली है.

 

क्या है डीएनए में डिजिटल जानकारी स्टोर करने का तरीका?

 

चूंकि डीएनए हजारों सालों तक जानकारी अपने भीतर स्टोर करके रख सकता है, इसलिए यह इनफार्मेशन की इस दौर की बाढ़ को सुरक्षित रखने का एक इको-फ्रेंडली तरीका है. वैज्ञानिक 2012 से डीएनए में डिजिटल डेटा सेव कर रहे हैं. सबसे पहले एक बैक्टीरिया के डीएनए में एक छोटी सी फिल्म स्टोर की गई. स्टोर करने के बाद उसे वापस कंप्यूटर की भाषा में बदलकर देखा या पढ़ा जा सकता है.

 

दरअसल डीएनए एक ख़ास तरीके से इंसान के बारे में हर जानकारी स्टोर करके रखता है. A,C,T और G कोड्स के सरल रूप में डीएनए आपकी शारीरिक बनावट जैसी बड़ी जानकारी से लेकर आपको होने वाली संभावित बीमारियों जैसी जरूरी जानकारियां स्टोर करके आगे की पीढ़ी में पहुंचाता है. यह कुछ कुछ वैसा ही है जैसे कंप्यूटर बाइनरी भाषा में 0 और 1 के रूप में हमारी तस्वीरें, फिल्में, गाने और दुनियाभर का डेटा सुरक्षित रखते हैं.

सबसे पहले पूरी डिजिटल फाइल को 0 और 1 के बाइनरी रूप में बदला जाता है. उसके बाद इसे संक्षिप्त करते हुए एक फाइल में बदला जाता है. फिर इसे डीएनए के छोटे छोटे टुकड़ों में स्टोर किया जाता है. फिर जब जरूरत पड़ती है, इसे एक लंबी फाइल के रूप में रिअसेम्बल कर लिया जाता है. डीएनए फाउंटेन नाम के एक नए अल्गोरिदम की मदद से ऐसा किया जाता है. अंत में सभी जेनेटिक कोड्स को एकबार फिर बाइनरी कोड में ट्रांसलेट कर लिया जाता है.1 ग्राम डीएनए करीब 215 पेटाबाइट यानी 21.5 करोड़ गीगाबाइट (21.5 करोड़ GB) डेटा स्टोर करके रख सकता है. यह डेटा हजारों सालों तक रख सकता है.


मानव के आनुवांशिक गुण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित करने वाला डीएनए आपका संगीत, हजारों फोटोग्राफ और प्रयोगशालाओं की महत्वपूर्ण जानकारी का असंख्य डेटा संग्रहित कर सकता है। भरोसा नहीं होता? वैज्ञानिकों ने डीएनए अणु के डेटा संग्रह की अनूठी क्षमता का पता लगाया है। अभी हम मैग्नेटिक डिस्क, टेप या ऑप्टिकल स्टोरेज सिस्टम का सहारा लेते हैं, जिसमें जानकारी ज्यादा से ज्यादा कुछ दशकों तक सुरक्षित रहती है, लेकिन डीएनए कम से कम हजार साल तक जानकारी सुरक्षित रख सकता है।

कम्प्यूटर डेटा अब तक मैग्नेटिक टेप, डिस्क और ऑप्टिकल स्टोरेज सिस्टम में संग्रहित किया जाता रहा है। किंतु वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी व माइक्रोसॉफ्ट और इलिनॉय यूनिवर्सिटी के एक अलग समूह ने यह दिखा दिया है कि हमारी कोशिकाओं में पाए जाने वाले डीएनए के अणु में डेटा संग्रह किया जा सकता है। इसकी संग्रह क्षमता इतनी अद्‌भुत है कि पूरी दुनिया की डिजिटल जानकारी नौ लीटर घोल में संग्रहित की जा सकती है!

सबसे बड़ी बात यह है कि यह जानकारी हजार साल या इससे भी ज्यादा समय तक सुरक्षित रहेगी, जबकि मैग्नेटिक डिस्क, टेप यहां तक कि ऑप्टिकल स्टोरेज सिस्टम भी ज्यादा से ज्यादा कुछ दशकों तक ही जानकारी सुरक्षित रख पाते हैं। अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक या मैग्नेटिक सिस्टम की तुलना में डीएनए अणु की क्षमता भौचक्का कर देती है। मसलन, यदि जानकारी को डीएनए में कोड कर दिया जाए तो रेत के एक कण में एक्जाबाइट यानी 20 करोड़ डीवीडी के बराबर जानकारी स्टोर होगी। उम्मीद है कुछ साल के भीतर यह सिस्टम आम हो जाएगा।

प्रकृति में डीएनए अणु उस आनुवांशिक जानकारी को एक से दूसरी पीढ़ी में ले जाता है, जो किसी भी प्राणी के विकास व कार्यप्रणाली को संचालित करती है। डीएनए सिक्वेंसिंग यानी उसमें मौजूद जानकारी को पढ़नेकी लागत कम्प्यूटर मैमोरी की लागत की तुलना में तेजी से कम होती जा रही है। डीएनए के बिल्डिंग ब्लॉक ओलिगोन्यूक्लियोटाइड्स का विश्लेषण करने की टेक्नोलॉजी की क्षमता में तेजी से प्रगति हो रही है।

इसके लिए दो ही चीजें लगती हैं- डेस्कटॉप डीएनए सिक्वेंसिंग सिस्टम अौर एक दूसरी मशीन डीएनए के धागों को बड़ा करके दिखाने के लिए। हार्वर्ड के एक समूह ने तो उनके आनुवांशिकीविद् जॉर्ज चर्च और एड रेजिस की किताब रीजेनेसिसकी अरबों प्रतियां डीएनए में स्टोर करके बता भी दी है। डिजिटल पिक्चर का उदाहरण लें तो इसे हजारों टुकड़ों में तोड़कर हजारों डीएनए धागों में मैप कर दिए जाते हैं। जानकारी एनकोड करते समय उसमें यूनिक आइडेंटिफायर जोड़ दिया जाता है, जो जरूरत पड़ने पर सारी जानकारी को जोड़कर पेश कर देता है।

वैज्ञानिक मानते हैं कि डीएनए धागे पर जानकारी लिखनेकी योग्यता अभी सीमित है। मैग्नेटिक या ऑप्टिकल सिस्टम पर जानकारी स्टोर करने में कुछ सेकंड लगते हैं, लेकिन उन्हें जिन मैग्नेटिक टैप या डिस्क पर स्टोर किया जाता है, उन्हें शेल्फ पर या रोबोटिक सिस्टम में रखना पड़ता है, जहां से प्राप्त करने में कई बार घंटों लग जाते हैं। मौजूदा सिस्टम की तुलना में डीएनए सिस्टम से जानकारी प्राप्त करना घोंघे की रफ्तार जैसी है, लेकिन डाटा सुरक्षित रखने की अपार क्षमता और समय के मामले में यह बेजोड़ है।


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