आखिर घरेलू हिंसा है क्या? चारदीवारी के भीतर होने वाली हर हिंसा घरेलू हिंसा की श्रेणी में आती है.
दो लोगों के बीच जब प्यार, सम्मान और सहानुभूति की भावना
समाप्त होकर नफरत और क्रूरता में तब्दील हो जाती है तो वो घरेलू हिंसा बन जाती है.
ये शारीरिक, सेक्सुअल और व्यवहारिक तीनों ही तरह की हो सकती
है. ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि घरेलू हिंसा के क्या-क्या कारण हो
सकते हैं. आंकड़ों के आधार पर देखें तो घर में पद, पैसे और
दूसरे भौतिक सुखों के चलते ही ज्यादातर मामले घरेलू हिंसा का रूप ले लेते हैं. कई
बार बदले की भावना भी इसे जन्म देने का काम करती है. घरेलू हिंसा एक अपराध है पर
बावजूद इसके इससे जुड़े ज्यादातर मामले सामने आ ही नहीं पाते हैं. कई बार
घर-परिवार के डर से तो कई बार समाज में इज्जत खोने के डर से लोग इसे जाहिर नहीं
होने देते हैं. ऐसे में पीड़ित प्रताड़ित होता रहता है और पीड़ा देने वाला अपनी
बर्बरता करता रहता है.
घरेलू हिंसा के प्रभाव:
घरेलू हिंसा के प्रभावों का जिक्र करने से पहले ये
बात समझ लेना बहुत जरूरी है कि परिवार समाज की इकाई है और अगर परिवार में कलह है
तो इसका सीधा असर समाज पर पड़ेगा.ज्यादातर मामलों में महिलाएं ही घरेलू हिंसा की शिकार
होती हैं लेकिन ऐसा नहीं है पुरुष वर्ग इससे अछूता है.
1. घरेलू हिंसा का शिकार हुआ शख्स कभी भी अपने डर
से बाहर नहीं आ पाता है अगर किसी शख्स ने अपने जीवन में घरेलू हिंसा झेली है तो
उसके लिए इस डर से बाहर आ पाना बेहद मुश्किेल होता है. लगातार हिंसा का शिकार होने
के बाद उसकी सोच में नकारात्मकता इस कदर हावी हो जाती है कि उसे अपने को स्थिर
करने में सालों लग जाते हैं.
2. मानसिक आघात इंसान को भीतर से तोड़कर रख देता है
घरेलू हिंसा का एक सबसे बुरा पहलू ये है कि इसका पीड़ित मानसिक आघात से बाहर नहीं
आ पाता है. ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि लोग या तो अपना मानसिक संतुलन खो
बैठते हैं या फिर अवसाद का शिकार हो जाते हैं.
3. ये एक ऐसा दर्द है जिसकी दवा शायद ही किसी के
पास हो ऐसे मामले जिनमें शारीरिक यातना भी शामिल है, पीड़ित को
बेइंतहा दर्द सहना पड़ता है. कई मामलों में शारीरिक असमर्थता की भी स्थिति आ जाती
है या फिर कोई अंग ही काम करना बंद कर देता है. इसके साथ ही कुछ चोटें ऐसी होती
हैं जो जानलेवा भी साबित हो जाती हैं.
4. मनोरोग की स्थिति में पहुंच जाता है पीड़ित
घरेलू हिंसा का ये सबसे खतरनाक और दुखद पहलू है. जिन लोगों पर हम इतना भरोसा करते
हैं और जिनके साथ रहते हैं जब वही अपने इस तरह का दुख देते हैं तो इंसान का
रिश्तों पर से भरोसा उठ जाता है और वो खुद को अकेला बना लेता है. वो कहीं न कहीं
ये तय कर लेता है कि इस दुनिया में उसका कोई नहीं और उसे अपने सहारे ही रहना होगा.
कई बार इस स्थिति में लोग आतमहत्या भी कर लेते हैं. ऐसे में ये बेहद जरूरी है कि न
तो घरेलू हिंसा को बढ़ावा दें और न ही उसके शिकार बनें. किसी भी प्रकार की घरेलू
हिंसा,
हिंसा ही है और उसके खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है.
आए दिन हमारे समाज में महिलाओं के साथ हिंसा की
खबरें आती रहती हैं. इनमें सबसे ज्यादा मामले घरेलू हिंसा के होते हैं. इन मामलों
में महिलाओं के प्रति हिंसा देखने को मिलती है. आइए विस्तार से जानते हैं आखिर
क्या है घरेलू हिंसा कानून. क्या होती है घरेलू हिंसा किसी भी महिला के साथ घर की
चारदिवारी के अंदर होने वाली किसी भी तरह की हिंसा, मारपीट,
उत्पीड़न आदि के मामले इसी कानून के तहत आते हैं. यौन उत्पीड़न के
मामलों में अलग कानून है लेकिन उसे इसके साथ जोड़ा जा सकता है. महिला को ताने देना,
गाली देना, उसका अपमान करना, उसकी मर्जी के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करना, जबरन शादी के लिए बाध्य करना आदि जैसे मामले भी घरेलू हिंसा के दायरे में
आते हैं. पत्नी को नौकरी छोडऩे के लिए मजबूर करना, या फिर
नौकरी करने से रोकना, दहेज की मांग के लिए मारपीट करना आदि
भी इसके तहत आ सकते हैं.
क्या है घरेलू हिंसा अधिनियम घरेलू हिंसा अधिनियम
का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्टूबर 2006 से इसे देश में लागू किया गया.
इसका मकसद घरेलू रिश्तों में हिंसा झेल रहीं महिलाओं को तत्काल और आपातकालीन राहत
पहुंचाना है. यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाता है. केवल भारत में ही लगभग
70 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में इसकी शिकार हैं. यह भारत में पहला ऐसा
कानून है जो महिलाओं को अपने घर में रहने का अधिकार देता है. घरेलू हिंसा विरोधी कानून
के तहत पत्नी या फिर बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रह रही महिला मारपीट, यौन शोषण, आर्थिक शोषण या फिर अपमानजनक भाषा के
इस्तेमाल की परिस्थिति में कार्रवाई कर सकती है.
केंद्र और राज्य सरकार है जवाबदेह यह कानून घरेलू
हिंसा को रोकने के लिए केन्द्र व राज्य सरकार को जवाबदेह और जिम्मेदार ठहराता है.
इस कानून के अनुसार महिला के साथ हुई घरेलू हिंसा के साक्ष्य प्रमाणित किया जाना
जरूरी नहीं हैं. महिला के द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों को ही आधार माना जाएगा
क्योंकि अदालत का मानना है कि घर के अन्दर हिंसा के साक्ष्य मिलना मुश्किल होता
है. महिला को मिलती है मदद घरेलू हिंसा से पीडि़त कोई भी महिला अदालत में जज के
समक्ष स्वयं या वकील, सेवा प्रदान करने वाली संस्था या
संरक्षण अधिकारी की मदद से अपनी सुरक्षा के लिए बचावकारी आदेश ले सकती है. पीड़ित
महिला के अलावा कोई भी पड़ोसी, परिवार का सदस्य, संस्थाएं या फिर खुद महिला की सहमति से अपने क्षेत्र के न्यायिक
मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत दर्ज कराकर बचावकारी आदेश हासिल कर सकती हैं. इस
कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में जेल के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकता है.
60 दिन में होगा फैसला लोगों में आम धारणा है कि
मामला अदालत में जाने के बाद महीनों लटका रहता है, लेकिन अब
नए कानून में मामला निपटाने की समय सीमा तय कर दी गई है. अब मामले का फैसला
मैजिस्ट्रेट को साठ दिन के भीतर करना होगा.
घरेलू हिंसा की मार
घरेलू हिंसा के लिए पुरुष ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि उस घर की उम्रदराज महिलाएं भी उतनी ही जिम्मेदार हैं। ऐसे हजारों
परिवार है जहां बहुएं देवर, जेठ या ससुर के हाथों ही
प्रताड़ित नहीं हैं, बल्कि सास, ननद और
जेठानी की प्रताड़ना की शिकार हैं।
वर्ष 2005 में जब घरेलू हिंसा के खिलाफ केंद्र
सरकार ने कानून बनाया था तो यह उम्मीद जगी थी कि अब महिलाओं को इस पीड़ा से छुटकारा
मिलने लगेगा। लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार पिछले कुछ वर्षों
में परिवार के सदस्यों और करीबी रिश्तेदारों के जरिए छेड़छाड़ की घटनाएं बढ़ी हैं।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रपट के मुताबिक भारत में पंद्रह से उनचास साल की
सत्तर फीसद महिलाएं किसी न किसी रूप में हिंसा की शिकार हैं। इनमें घर में रहने
वाली महिलाओं की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है। सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि भारत
में हर रोज हर छब्बीस वें मिनट में एक महिला का किसी न किसी रूप में उत्पीड़न किया
जाता है। हर तियालीस मिनट में अपहरण, चौंतीस वें मिनट
में बलात्कार, बयालीस वें मिनट में यौन उत्पीड़न और हर
तिरानवे वें मिनट में कोई न कोई महिला जला दी जाती है। इससे यह साबित होता है कि
महिलाओं की स्थिति ज्यादा बदतर हुई है। यह तब है जब ज्यादातर मामले थाने में दर्ज
ही नहीं कराए जाते।
दरअसल, घरेलू हिंसा के
लिए पुरुष ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि उस घर की उम्रदराज
महिलाएं भी उतनी ही जिम्मेदार हैं। ऐसे हजारों परिवार है जहां बहुएं देवर, जेठ या ससुर के हाथों ही प्रताड़ित नहीं हैं, बल्कि
सास, ननद और जेठानी की प्रताड़ना की शिकार हैं। ऐसे घरों की
बहुएं ससुराल और मायके की इज्जत के सवाल पर चुपचाप सब कुछ सहती रहती हैं। इस लिए
महिला सुरक्षा के लिए बना घरेलू कानून का उनके लिए कोई खास मायने नहीं रह गया है।
संपन्न और पढ़े-लिखे होने का दावा करने वाले परिवारों में महिला भी घरेलू हिंसा की
घटनाएं कम नहीं हैं। तमाम महिलाएं अपनी स्थिति के प्रति जागरूक तो हैं और वे घरेलू
हिंसा को पूरी तरह़ खत्म भी करना चाहतीं हैं, लेकिन कानून का
सहारा लेने में किसी न किसी वजह से झिझकती हैं।
नए दौर में यह सवाल मौजूं लगता है कि विकास की दौड़
में महिलाओं की हालत क्या है? क्या वे मजहब की पुरानी
बंदिशों से छूट पाई हैं? क्या उनके प्रति पुरुष वर्ग के
नजरिये में बदलाव आया है? यदि बदलाव आया है तो किस स्तर तक?
आंकड़े और अनुभव बताते हैं कि शहर की महिलाओं में पहले की अपेक्षा
काफी कुछ बदलाव आया है, लेकिन ग्रामीण इलाकों की महिलाएं आज
भी घरेलू हिंसा और सामाजिक हिंसा की शिकार हैं। सम्मान के नाम पर होने वाली हत्या
के मामले में हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान के अलावा अब तमिलनाडु और दूसरे राज्यों में ऐसी घटनाएं देखने को
मिल रही हैं।
इसमें भी पुरुषों के साथ परिवार की महिलाओं का बड़ा
हाथ होता है। इसी प्रकार गर्भवती महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार बहुत बड़े पैमाने पर
होती हैं। गर्भकाल में उनसे जबरन कार्य करवाना, घर के कामों की
जिम्मेदारियां को निभाने के लिए मजबूर करना, विवाह के पहले
और बाद में उनके साथ घिघौना व्यवहार करना और बाल विवाह के दंश को सहने के लिए
मजबूर होने जैसे मामले आज भी बड़ी तादाद में हमारे महिलाओं के उत्पीड़न की कहानी
कहते हैं।
कहने को तो देश लोकतांत्रिक है। सब को बराबर का
अधिकार है। आगे बढ़ने में किसी भी स्त्री-पुरुष को कोई बंदिशें नहीं हैं। लेकिन
परिवार और समाज में जो बंदिशें महिलाओं पर हैं, वे भी किसी हिंसा
से कम नहीं हैं। इस लिए बड़े स्तर पर आज भी समाज को जागरूक करने की आवष्यकता है। जब
तक परिवारों में महिलाओं को कुटुंबी संपत्ति माना जाता रहेगा, तब तक हालात में बदलाव नामुमकिन है।
महिलाओं के लिए कानून: कब और कैसे करें
इस्तेमाल
महिलाएं हमारे समाज में आज भी अक्सर भेदभाव का
शिकार होती हैं। उन्हें घरों के भीतर ही शारीरिक और मानसिक हिंसा झेलनी पड़ती है।
महिलाओं को इस तरह के अत्याचारों से बचाने और इंसाफ दिलाने के लिए दहेज कानून (498
ए) और घरेलू हिंसा निरोधक कानून बनाए गए हैं। हालांकि कई बार 498 ए के बेजा
इस्तेमाल के मामले भी सामने आते हैं। महिलाओं के हितों के लिए बनाए गए इन दोनों
कानूनों का सही इस्तेमाल कैसे करें
दहेज के लिए पति या ससुराल पक्ष के किसी दूसरे शख्स
के उत्पीड़न से महिला को बचाने के लिए 1986 में आईपीसी में सेक्शन 498-ए (दहेज
कानून) शामिल किया गया। अगर महिला को दहेज के लिए शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या भावनात्मक रूप से परेशान किया
जाता है तो वह दहेज कानून के तहत केस दर्ज करा सकती है। दहेज के लिए तंग करने के
साथ-साथ क्रूरता और भरोसा तोड़ने को भी इसमें शामिल किया गया है। यह गंभीर और
गैरजमानती अपराध है।
कब कर सकती है केस
दहेज के लिए अगर महिला का उत्पीड़न हो।
ऐसी क्रूरता, जिससे मानसिक और
शारीरिक हानि हो सकती है।
शादी से पहले (रिश्ता तय होने के बाद), शादी के दौरान या शादी के बाद दहेज की मांग करने पर इस कानून के तहत मामला
दर्ज कराया जा सकता है।
कहां करें शिकायत
क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल के अलावा 100 नंबर या
महिला हेल्पलाइन नंबर 1091 पर कभी भी (सातों दिन चौबीसों घंटे) कॉल कर या अपने
इलाके के थाने में शिकायत की जा सकती है।
कैसे होता है निपटान
आमतौर पर ऐसे मामलों को तीन चरणों में निपटाया जाता
है :
1. काउंसलिंग : राष्ट्रीय महिला आयोग और कुछ एनजीओ
आदि ने प्रफेशनल काउंसलर सीडब्ल्यूसी में नियुक्त किए हुए हैं। अगर महिला अपने पति
के साथ रहना चाहती है और पुलिस को लगता है कि उसकी जान को कोई खतरा नहीं है तो
उसकी और पति की काउंसलिंग के जरिए दोनों को साथ रहने के लिए तैयार किया जाता है।
इसके लिए काउंसलिंग की जाती है। जरूरत पड़ने पर काउंसलर पीड़िता और आरोपी के घर भी
जाते हैं। दोनों के बीच आगे की जिंदगी को लेकर कुछ बातें तय की जाती हैं।
2. मीडिएशन : दिल्ली लीगल सर्विसेज अथॉरिटी ने
कानूनी सलाह के लिए महिला सेल में सीनियर वकील नियुक्त किए हैं। साथ ही, दिल्ली हाई कोर्ट लीगल सर्विसेज कमिटी की देखरेख में दोनों पक्षों के बीच
मीडिएशन की कोशिश की जाती है। गरीब या पिछड़े तबके की जो महिलाएं सिर्फ अपने सामान
की वापसी के मकसद से आती हैं, उन्हें भी उनका हक यहां दिला
दिया जाता है। काउंसलिंग फेल हो जाए तो कोर्ट की लंबी लड़ाई से बचाने के लिए
मीडिएटर के जरिए शांतिपूर्ण तरीके से आपसी सहमति से अलग कराने की कोशिश होती है।
3. अदालत : बहुत से मामलों में अदालत की कोशिश भी
सुलह की होती है। नाकाम होने पर शांतिपूर्ण ढंग से अलग होने को प्रॉयरिटी दी जाती
है। मामला नहीं बनता तो पूरी अदालती प्रक्रिया होती है।
सबूत रखें
पति या ससुराल वालों के सताने पर चुप न रहें। जान
लें,
आपको उतना ही सताया जाएगा, जितना आप सहनकरना
चाहेंगी।
अपने पैरंट्स, परिवार के बाकी
लोगों, दोस्तों आदि को उत्पीड़न और पूरे मामले की जानकारी
दें। लेटर, ई-मेल या एसएमएस के जरिए अपने परिवार, दोस्तों या रिश्तेदारों से संपर्क साधें। ऐसे ई-मेल या एसएमएस डिलीट न
करें।
अगर उनसे संपर्क नहीं कर सकतीं तो ससुराल के
पड़ोसियों को खुद पर हो रहे अत्याचार की जानकारी दें।
जरूरत पड़ने पर पुलिस से संपर्क करें। यह बिल्कुल न
सोचें कि इससे रिश्ता टूटेगा क्योंकि आपकी चुप्पी घातक हो सकती है।
शादी में जो कुछ भी पैसा खर्च हुआ है, उसकी रसीद संभालकर रखें।
अगर मारपीट की गई है तो सरकारी अस्पताल में जाकर
मेडिकल कराएं और रिपोर्ट संभालकर अपने पास रखें।
100 और महिला हेल्पलाइन नंबर 1091 को अपने मोबाइल
में स्पीड डायल पर रखें। परेशानी होने पर फौरन कॉल करें।
घरेलू हिंसा
सिर्फ मारपीट ही घरेलू हिंसा नहीं, खाना न देना, किसी से मिलने न देना, मायके वालों को ताना मारना, दहेज की मांग करना,
चेहरे को लेकर ताना मारना, शक करना, घरेलू खर्चे न देना, जैसे तमाम मामले शामिल हैं।
घरेलू हिंसा चार प्रकार की होती है
शारीरिक हिंसा - किसी महिला को शारीरिक पीड़ा देना
जैसे मारपीट करना, धकेलना, ठोकर
मारना, लात-घूसा मारना, किसी वस्तु से
मारना या किसी अन्य तरीके से महिला को शारीरिक पीड़ा देना शारीरिक हिंसा के अंतर्गत
आता है।
यौनिक या लैंगिक हिंसा – महिला को अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरों को देखने के लिए विवश करना,
बलात्कार करना, दुर्व्यवहार करना, अपमानित करना, महिला की पारिवारिक और सामाजिक
प्रतिष्ठा को आहत करना इसके अंतर्गत आता है।
मौखिक और भावनात्मक हिंसा – किसी महिला या लड़की को किसी भी वजह से उसे अपमानित करना, उसके चरित्र पर दोषारोपण लगाना, शादी मर्जी के खिलाफ
करना, आत्महत्या की धमकी देना, मौखिक
दुर्व्यवहार करना।
आर्थिक हिंसा - बच्चों की पढ़ाई, खाना, कपड़ा आदि के लिए धन न उपलब्ध कराना, रोजगार चलाने से रोकना, महिला द्वारा कमाए जा रहे धन
का हिसाब उसकी मर्जी के खिलाफ लेना।
घरेलू हिंसा के मामले में पुरुष भी होते
हैं पीड़ित
दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत भी घरेलू हिंसा
की समस्या से जूझ रहा है. महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए कठोर
कानून भी बने हैं, लेकिन पुरुष भी घरेलू हिंसा का
शिकार होते हैं.
घरेलू हिंसा या फिर महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा
को लेकर न सिर्फ अक्सर बातें होती हैं बल्कि कठोर कानून भी बने हैं, बावजूद इसके इनमें कोई कमी नहीं दिखती. लेकिन इस घरेलू हिंसा का एक पक्ष
यह भी है कि घरेलू हिंसा के पीड़ितों में महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी हैं
लेकिन उनकी आवाज इतनी धीमी है कि वह न तो समाज को और न ही कानून को सुनाई पड़ती
है. पारिवारिक मसलों को सुलझाने के मकसद से चलाए जा रहे तमाम परामर्श केंद्रों की
मानें तो घरेलू हिंसा से संबंधित शिकायतों में करीब चालीस फीसद शिकायतें पुरुषों
से संबंधित होती हैं यानी इनमें पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं और उत्पीड़न
करने वाली महिलाएं होती हैं.
भारत में अभी तक ऐसा कोई सरकारी अध्ययन या
सर्वेक्षण नहीं हुआ है जिससे इस बात का पता लग सके कि घरेलू हिंसा में शिकार
पुरुषों की तादाद कितनी है लेकिन कुछ गैर सरकारी संस्थान इस दिशा में जरूर काम कर
रहे हैं. ‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन‘ और ‘माई नेशन‘ नाम की गैर
सरकारी संस्थाओं के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत में नब्बे फीसद से
ज्यादा पति तीन साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना कर
चुके होते हैं. इस रिपोर्ट में यह भी गया है पुरुषों ने जब इस तरह की शिकायतें
पुलिस में या फिर किसी अन्य प्लेटफॉर्म पर करनी चाही तो लोगों ने इस पर विश्वास
नहीं किया और शिकायत करने वाले पुरुषों को हंसी का पात्र बना दिया गया.
कैसी कैसी शिकायतें
लखनऊ में पीड़ित पुरुषों की समस्याओं पर काम करने
वाली एक संस्था के संचालक देवेश कुमार बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान ऐसी समस्याओं
के बारे में और ज्यादा जानकारी मिली है क्योंकि इस दौरान ज्यादातर पति-पत्नी साथ
रहे हैं. देवेश कुमार बताते हैं, "लोग कई तरह की समस्याएं
लेकर आते हैं. मसलन, एक युवक इस बात से परेशान था कि उसकी
पत्नी के किसी अन्य व्यक्ति से अवैध संबंध थे. मना करने के बावजूद संबंध जारी रहे.
लॉकडाउन के दौरान ही उसे ये बातें पता चलीं. दोनों में विवाद हुआ और लड़की के घर
वालों ने युवक को यह कहते हुए धमकाया कि यदि उसने कुछ करने की कोशिश की तो दहेज
प्रताड़ना के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया जाएगा.”
देवेश कुमार बताते हैं कि इस केस का सबसे दिलचस्प
पहलू यह है कि इन आरोपों के बावजूद युवक अपनी पत्नी के साथ ही रहना चाहता है जबकि
पत्नी का सीधे तौर पर कहना है कि यदि वह चाहे तो उससे अलग हो सकता है. देवेश के मुताबिक, दोनों की परिवार परामर्श केंद्र में काउंसिलिंग कराई गई लेकिन विवाद अभी
भी सुलझ नहीं सका है.
वहीं दिल्ली में एक परिवार परामर्श केंद्र की
संचालिका रेहाना वसीम कहती हैं कि लॉकडाउन से लेकर अब तक बड़ी संख्या में पुरुषों
ने घरेलू हिंसा की शिकायत की है. वो कहती हैं, "तमाम लोग
हेल्पलाइन पर फोन करके, ईमेल के जरिए या फिर सोशल मीडिया के
जरिए हर दिन शिकायतें करते हैं. एक दिन में दर्जनों शिकायतें आती हैं. घरेलू हिंसा
के मामले में पुरुषों को सबसे ज्यादा दहेज कानून में फंसाने की धमकी दी जाती है.”
पुरुष आयोग बनाने की मांग
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के
आंकड़ों के मुताबिक, देश में पुरुषों की आत्महत्या की
दर महिलाओं की तुलना में दो गुने से भी ज्यादा है. इसके पीछे तमाम कारणों में
पुरुषों का घरेलू हिंसा का शिकार होना भी बताया जाता है, जिसकी
शिकायत वो किसी फोरम पर कर भी नहीं पाते हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि पुरुषों के
खिलाफ हिंसा की किसी को जानकारी नहीं है या फिर इसके खिलाफ आवाज नहीं उठती है
लेकिन यह आवाज एक तो उठती ही बहुत धीमी है और उसके बाद खामोश भी बहुत जल्दी हो
जाती है.
कुछ समय पहले यूपी में कुछ सांसदों ने यह मांग उठाई
थी कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय पुरुष आयोग जैसी भी एक संवैधानिक
संस्था बननी चाहिए. इन सांसदों ने इस बारे में प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था.
पत्र लिखने वाले एक सांसद हरिनारायण राजभर ने उस वक्त यह दावा किया था कि पत्नी
प्रताड़ित कई पुरुष जेलों में बंद हैं, लेकिन कानून के
एकतरफा रुख और समाज में हंसी के डर से वे खुद के ऊपर होने वाले घरेलू अत्याचारों
के खिलाफ आवाज नहीं उठा रहे हैं.
पति बेचारा कानून का मारा
कमल की शादी को 6 साल हो गए थे कमल अपनी पत्नी सुचेता को बेहद प्यार करता था
दुनिया की हर चीज़, वो उसके क़दमों में डालना चाहता
था सुचेता की हर बात को ध्यान पूर्वक
सुनता और उस पर अमल करता था, दिन भर थक हार कर आया कमल
सुचेता को रोज़ घुमाने ले जाता, उसकी हर छोटी से छोटी इक्षा
का ख्याल रखता था, लेकिन सुचेता ने कभी कमल को अहमियत नहीं
दी उसके ख्वाब बहुत ऊँचे थे वो स्वतंत्र
रहना चाहती थी, उसका सपना था एक ऐसा घर हो जहाँ सिर्फ कमल हो
जिसके साथ वो एक आजाद परिंदे की तरह उड सके
और इसीलिए वो आये दिन अपने सास ससुर से झगड़ा करने लगी थी कमल सिंह एक सॉफ्टवेयर इंजीयर था जो नोयडा में
पोस्टेड था सुचेता ने अपने पिता से राय
लेकर अपनी जॉब के लिए एप्लाई कर दिया, जिससे उसकी नौकरी लग
गई L जिसके तहत सुचेता पिछले 2 सालों से मायके में रह रही थी,
कारण वो एक प्राइमरी स्कूल में टीचर थी और उसकी पोस्टिंग उसके मायके
जबलपुर में थी शादी के बाद नौकरी लगने से उसने अपना तबादला जबलपुर अपने मायके करवा
लिया था सुचेता अपनी सारी ज्वैलरी व सामान भी ले गई थी जब कमल की शादी हुई थी तब सुचेता नौकरी नहीं
करती थी, तब भी सुचेता उससे और उसके माता पिता से झगड़ती थी
और आज भी, जब भी वो नोयडा आती तो घर में कोहराम मचा देती यूँ
ही आये दिन अपने पति को प्रताड़ित करती थी घर के छोटे मोटे काम को लेकर सास के साथ
गाली गलौज और ससुर की इज्जत ना करना उसकी रोज की दिनचर्या हो गई थी कमल को जेल भिजवाने की धमकी और छोटे छोटे घरेलू
विवाद को वो दहेज प्रताड़ना का नाम देती थी, इस तरह इस कानून
का वो नाजायज फायदा उठा रही थी जबलपुर
जाने के बाद तो सुचेता ने हद ही कर दी, हर महीने में एक आध
बार आकर पति को धमकी देना कि अगर तुम अपने परिवार को छोड़कर मेरे साथ नही रहोगे,
तो तुम्हारे खिलाफ मुकदमा दायर कर दूंगी तुम्हारा पूरा परिवार अन्दर
करवा दूंगी बेचारा कमल डर जाता और चुप रहना ही बेहतर समझता हर बार कमल उसे जबलपुर
छोड़ने जाता और लेने भी जाता इस कारण उसके ऑफीशियल कार्य पर भी असर पड़ रहा था
सुचेता कहती थी आप नौकरी छोड़ दो और जबलपुर आकर मेरे
माँ बाप के पास रहो लेकिन, कमल सिंह की अपने माता पिता के
प्रति भी जिम्मेदारियां हैं जिन्हें वो नकार नहीं सकता था, क्यूंकि
वो अपने माता पिता का अकेला पुत्र था वो अपने माता पिता के साथ नोयडा मैं निवास
करता था कमल सिंह के 58 वर्षीय ससुर, जो कि पेशे से एक बड़े
व्यापारी थे, ने दहेज प्रताड़ना कानून 498ए की धमकी देकर
पिछले 5 सालों से कमल सिंह और उसके परिवार वालों को व्यथित कर रखा था कमल सिंह के
ससुर भी यही चाहते थे कि दामाद कमल सिंह आकर उनका व्यापार संभाल ले इन सारी उलझनों
से व्यथित कमल सिंह के सामने कोई चारा नजर नही आ रहा था एक दिन दुखी मन से वो अपनी
माँ की गोद में सर रखकर बोला, माँ अगर मैं कहीं दूर चला जाऊं
तो तुम और पापा मेरे बिना रह लोगे माँ एकदम घबरा गई और बोली, ना पुत्रर ना, ऐसा नहीं कहते, तुम
देखना समय रहते सब ठीक हो जायेगा बहू को मैं समझाउँगी तीनों लोग जबलपुर गए,
बहू को समझाने के लिए, लेकिन सुचेता के पिता
ने पुलिस में कम्प्लेन कर दी, कि ये तीनों मुझसे दहेज़ मांग
रहे हैं और मेरी बेटी को धमका रहे हैं पुलिस आई, कमल बार बार
यही कहता रहा, मैंने इसको कभी दुःख नहीं दिया, इन्स्पेक्टर साहेब माना कि, महिलाओं के पास 498ए
दहेज़ एक्ट का कवच है, लेकिन हम पुरुष हैं हमें भी जीने का
अधिकार है पुलिस ने समझा बुझाकर आपसी समझौते से बात को रफा दफा कर दिया, लेकिन ये बात कमल के मन को घर कर गई नोयडा पहुंचकर कमल ने चौथी मंजिल से
कूदकर आत्महत्या कर ली सभी लोग सकते में थे कि इतना शांत और न्यायप्रिय शख्स ऐसा
कैसे कर सकता है जिसकी ऊँची आवाज़ भी किसी ने न सुनी हो, वो
व्यक्ति पत्नी को कैसे दुःख दे सकता है
जहाँ तक मेरा मानना है कि, जो व्यक्ति अपनी माता को प्रेम और उसकी पूजा कर सकता है वो व्यक्ति किसी
महिला को कभी कष्ट नहीं दे सकता है और कमल अपनी माँ और अन्य महिलाओं का बहुत आदर
करता था इसीलिए उसने सुचेता की हर गलती को अनदेखा किया और खुद जीवन का अंत चुन
लिया
इस तरह की वारदातों को देखकर मुझे लगता है कि
सामाजिक व नैतिक मूल्यों में आए बदलाव के चलते ‘प्रेम’
और ‘विवाह’ की परिभाषा
ही बदल गई है। विवाह अब ‘दायित्व’ के
निर्वहन का नाम नहीं, बल्कि अधिकारों की प्राप्ति का
युद्धक्षेत्र बनता जा रहा है दहेज़ लेना और देना दोनों ही गैरकानूनी है तो फिर केवल
दहेज़ माँगने वाले ही क्यों जेल में बंद किये जाते हैं? फिर
देने वाले सामने खुलकर क्यूँ नहीं आते हैं हमारे देश में हर वर्ष हजारों
निर्दोष पति, यानि
कि पुरुष लिगं भेदभाव पूर्ण कानूनों के कारण आत्महत्या करते हैं,
देखा जाये तो भारत में असली प्रताड़ना तो पुरुष झेल
रहे हैं दहेज प्रथा के नाम से धारा ‘498ए’ का दुरूपयोग महिलाएं व्यापक पैमाने पर कर रहीं है आज महिलाए तरह – तरह के हथकंडे अपना कर पुरुषों को अपना शिकार बना कर कानून का गलत स्तेमाल
कर रही हैं इन महिलाओं की प्रताड़ना से तंग आकर ज्यादातर पुरुष आत्महत्या कर ले रहे
हैं दहेज मांगना, बलात्कार, अपहरण आदि
के फर्जी आरोप लगाकर पुरुषों का शोषण कर रहीं है L महिलाओं
का ये कृत्य अत्यधिक निंदनीय है कानून को चाहिए ऐसी महिलाओं के साथ कठोर कार्यवाही
करें
गौरतलब हो कि 498ए दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा
अधिनियम को केवल आपकी पत्नी या उसके सम्बन्धियों के द्वारा ही निष्प्रभावी किया जा
सकता है आपकी पत्नी की शिकायत पर आपका पूरा परिवार जेल जा सकता है चाहे वो आपके
बुढे माँ बाप हों, अविवाहित बहन, भाभी चाहें वो (गर्भवती क्यूँ न हों) ये कानून आपकी पत्नी द्वारा आपको
ब्लेकमेल करने का सबसे खतरनाक हथियार है
इस देश के कानून एकतरफा और अन्यायपूर्ण हैं, सत्य तो ये है कि अगर यह आत्महत्या, कमल सिंह की
बजाय उसकी धर्मपत्नी सुजाता ने की होती, तो कमल सिंह सहित
उसका पूरा परिवार जेल में चक्की पीस रहा होता। लेकिन, चूँकि
आत्महत्या एक पति ने की है, इसलिए कोई कार्यवाही नहीं हुई हर
साल दहेज़ के झूठे मामलों में हजारों पुरुष आत्महत्याएं कर लेते हैं और उनकी तरफ से
आवाज उठाने वाला कोई नहीं होता
विदित हो कि सेक्शन ‘498 ए’
को दहेज के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए लागू किया गया था
न कि मासूम व निर्दोष लोगों को फांसने के लिए। जो महिलाएं अपने पतियों को अपने
मायकेवालों के साथ मिलकर दहेज़ के झूठे आरोपों में फसा देती है उन्हें ये सोचना
चाहिए कि ये कानून उनकी रक्षा के लिए बना है, ना कि निर्दोष
को सजा दिलाने के लिए इस तरह के मामले देखकर उन महिलाओं के प्रति मेरा दिल घृणा से
भर जाता है जो इस तरह का अनैतिक कार्य करके समाज को गलत आइना दिखा रहीं हैं क्या
सरकार इस तरह के गंभीर मामलों की कभी सुध लेगी ? क्या छद्म
महिला सशक्तिकरण की जो बयार चल रही है, वो थमेगी ? अगर नहीं तो समाज में महिलाओं की छवि गर्त में धूमिल ही नजर आएगी जीवन की
आपाधापी में पत्नी के द्वारा तिल का ताड़ बनाये जाने वाले घरेलू मुद्दे अदालतों के
चक्कर काटते काटते पुरुषों को आत्महत्या के लिए उकसाते है क्यूंकि अदालत की दहलीज
पर पहुंचकर उनके रिश्ते एक ऐसा नासूर बन जाते हैं जो फूटने पर सड़ांध ही फैलाते हैं
आईपीसी की धारा ‘498 -ए’ के दुरुपयोग
के तहत दर्ज मामला गैर जमानती और दंडनीय होने के कारण और भी उलझ जाता है। इस क़ानून
में एक गुनाहगार को सजा दिलाने के लिए हजारों बेक़सूर लोगों को फंसाना आम बात हो गई
है आत्मसम्मान वाले व्यक्ति के लिए यह काफ़ी घातक हो गया है, जब तक अपराध का फ़ैसला होता है जेल में रहते-रहते वह इस तरह खुद को
बेइज्जत महसूस करता है, कि आत्महत्या करना ही उसे एक मात्र
उपाय दिखता है, लेकिन अगर हिम्मत और समझदारी से काम लिया
जाये तो हर समस्या का निदान है, इसलिए आत्महत्या का ख्याल
आते ही ये द्रण निश्चय करें, कि अगर समस्या है तो हल अवश्य
होगा और मुझे इसका हल ढूँढना है आपका मुसीबतों से दूर भागना अपने परिवार को मुसीबत
में डालना है, मजबूत बने और डटकर सामना करें, क्यूंकि अगर जीवन है तो उतार चढ़ाव तो आते रहेंगे
ये सत्य है कि इस तरह के कानून में परिवर्तन की
आवश्यकता है मैं सरकार से सिर्फ इतना पूछना चाहती हूँ कि “अगर शादीशुदा महिलाओं की आत्महत्या के पीछे पुरुष हैं, तो शादीशुदा पुरुषों की आत्महत्या के पीछे कौन है” ? है आपके पास कोई जवाब, अगर नहीं तो इस तरह के कानून
में परिवर्तन कीजिये
और अब अंत में दहेज़ को लेकर प्रताड़ित उन पुरुषों से
मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि आत्महत्या करना कोई विकल्प नहीं, ऐसा करके, आप अपने माँ-बाप और घर परिवार को अपूर्णीय
दुःख देकर चले जाते है। ऐसा करके आप अपने अपनों को दुःखो और समस्याओं के भंवर में
इतना कमजोर कर देते हैं कि पूरे परिवार के सोचने समझने की शक्ती क्षीण हो जाती है
आप ये क्यूँ नहीं समझते, जब हर वर्ष हजारों पुरुषों के
आत्महत्या करने पर भी सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता, तो क्या
आपके आत्महत्या करने से पड़ेगा? अगर नहीं, तो क्यों आप यह स्वीकार नहीं करते कि, इन सब
समस्याओं का एक मात्र उपाय, केवल और केवल अपनी लड़ाई को जीतकर,
विरोधियों को झूठा व गलत साबित करके ही किया जा सकता है और जीवित रहकर किया जा सकता है।
घरेलू हिंसा: कारण और समाधान
घरेलू हिंसा दुनिया के लगभग हर समाज में मौजूद है।
इस शब्द को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है जिनमें पति या पत्नी, बच्चों या बुजुर्गों तथा ट्रांसजेंडरों के खिलाफ हिंसा के कुछ उदाहरण
प्रत्यक्ष रूप से सामने हैं। पीड़ित के खिलाफ हमलावर द्वारा अपनाई जाने वाली
विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में शारीरिक शोषण, भावनात्मक
शोषण, मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार या वंचितता, आर्थिक शोषण, गाली-गलौज, ताना मारना
आदि शामिल हैं। घरेलू हिंसा न केवल विकासशील या अल्प विकसित देशों की समस्या है
बल्कि यह विकसित देशों में भी बहुत प्रचलित है। घरेलू हिंसा हमारे छद्म सभ्य समाज
का प्रतिबिंब है।
सभ्य समाज में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। लेकिन
प्रत्येक वर्ष घरेलू हिंसा के जितने मामले सामने आते हैं, वे एक चिंतनीय स्थिति को रेखांकित करते हैं। हमारे देश में घरों के बंद
दरवाज़ों के पीछे लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है। यह कार्य ग्रामीण क्षेत्रों,
कस्बों, शहरों और महानगरों में भी हो रहा है।
घरेलू हिंसा सभी सामाजिक वर्गों, लिंग, नस्ल और आयु समूहों को पार कर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लिये एक विरासत
बनती जा रही है।
घरेलू हिंसा क्या है?
घरेलू हिंसा अर्थात् कोई भी ऐसा कार्य जो किसी
महिला एवं बच्चे (18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन पर संकट, आर्थिक
क्षति और ऐसी क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे को दुःख एवं अपमान सहन
करना पड़े, इन सभी को घरेलू हिंसा के दायरे में शामिल किया
जाता है। घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताड़ित महिला किसी भी वयस्क पुरुष को
अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है।
भारत में घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप
भारत में घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अनुसार, घरेलू हिंसा के पीड़ित के रूप में
महिलाओं के किसी भी रूप तथा 18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका को संरक्षित
किया गया है। भारत में घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं-
महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा- किसी महिला को
शारीरिक पीड़ा देना जैसे- मारपीट करना, धकेलना, ठोकर मारना, किसी वस्तु से मारना या किसी अन्य तरीके
से महिला को शारीरिक पीड़ा देना,महिला को अश्लील साहित्य या
अश्लील तस्वीरों को देखने के लिये विवश करना, बलात्कार करना,
दुर्व्यवहार करना, अपमानित करना, महिला की पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को आहत करना, किसी महिला या लड़की को अपमानित करना, उसके चरित्र पर
दोषारोपण करना, उसकी शादी इच्छा के विरुद्ध करना, आत्महत्या की धमकी देना, मौखिक दुर्व्यवहार करना आदि।
यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड रिपोर्ट के अनुसार, लगभग
दो-तिहाई विवाहित भारतीय महिलाएँ घरेलू हिंसा की शिकार हैं और भारत में 15-49
आयुवर्ग की 70% विवाहित महिलाएँ पिटाई, बलात्कार या ज़बरन यौन
शोषण का शिकार हैं।
पुरुषों के विरुद्ध घरेलू हिंसा- इस तथ्य पर कोई प्रश्नचिन्ह
नहीं है कि महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा एक गंभीर और बड़ी समस्या है, लेकिन भारत में पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा भी धीरे-धीरे बढ़ रही है।
समाज में पुरुषों का वर्चस्व यह विश्वास दिलाता है कि वे घरेलू हिंसा के प्रति
संवेदनशील नहीं हैं। हाल ही में चंडीगढ़ और शिमला में सैकड़ों पुरूष इकट्ठा हुए,
जिन्होंने अपनी पत्नियों और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा उनके
खिलाफ की जाने वाली घरेलू हिंसा से बचाव और सुरक्षा की गुहार लगाई थी।
बच्चों के विरुद्ध घरेलू हिंसा- हमारे समाज में
बच्चों और किशोरों को भी घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है। वास्तव में हिंसा का
यह रूप महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बाद रिपोर्ट किये गए मामलों की संख्या में दूसरा
है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों तथा भारत में उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के परिवारों
में इसके स्वरूप में बहुत भिन्नता है। शहरी क्षेत्रों में यह अधिक निजी है और घरों
की चार दीवारों के भीतर छिपा हुआ है।
बुजुर्गों के विरुद्ध घरेलू हिंसा- घरेलू हिंसा के
इस स्वरूप से तात्पर्य उस हिंसा से है जो घर के बूढ़े लोगों के साथ अपने बच्चों और
परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा की जाती है। घरेलू हिंसा की यह श्रेणी भारत में
अत्यधिक संवेदनशील होती जा रही है। इसमें बुजुर्गों के साथ मार-पीट करना, उनसे अत्यधिक घरेलू काम कराना, भोजन आदि न देना तथा
उन्हें शेष पारिवारिक सदस्यों से अलग रखना शामिल है।
घरेलू हिंसा के कारण
महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा का मुख्य कारण
मूर्खतापूर्ण मानसिकता है कि महिलाएँ पुरुषों की तुलना में शारीरिक और भावनात्मक
रूप से कमजोर होती हैं।
प्राप्त दहेज़ से असंतुष्टि, साथी के साथ बहस करना, उसके साथ यौन संबंध बनाने से
इनकार करना, बच्चों की उपेक्षा करना, साथी
को बताए बिना घर से बाहर जाना, स्वादिष्ट खाना न बनाना शामिल
है।
विवाहेत्तर संबंधों में लिप्त होना, ससुराल वालों की देखभाल न करना, कुछ मामलों में
महिलाओं में बाँझपन भी परिवार के सदस्यों द्वारा उन पर हमले का कारण बनता है।
पुरुषों के प्रति घरेलू हिंसा के कारणों में
पत्नियों के निर्देशों का पालन न करना, ‘पुरुषों की
अपर्याप्त कमाई, विवाहेत्तर संबंध, घरेलू
गतिविधियों में पत्नी की मदद नहीं करना है’ बच्चों की उचित
देखभाल न करना, पति-पत्नी के परिवार को गाली देना, पुरुषों का बाँझपन आदि कारण हैं।
बच्चों के साथ घरेलू हिंसा के कारणों में माता-पिता
की सलाह और आदेशों की अवहेलना, पढ़ाई में खराब प्रदर्शन या
पड़ोस के अन्य बच्चों के साथ बराबरी पर नहीं होना, माता-पिता
और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बहस करना आदि हो सकते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के साथ घरेलू हिंसा
के कारणों में बाल श्रम, शारीरिक शोषण या पारिवारिक
परंपराओं का पालन न करने के लिये उत्पीड़न, उन्हें घर पर
रहने के लिये मजबूर करना और उन्हें स्कूल जाने की अनुमति न देना आदि हो सकते हैं।
गरीब परिवारों में पैसे पाने के लिये माता-पिता
द्वारा मंदबुद्धि बच्चों के शरीर के अंगों को बेचने की ख़बरें मिली हैं। यह घटना
बच्चों के खिलाफ क्रूरता और हिंसा की उच्चता को दर्शाता है।
वृद्ध लोगों के खिलाफ घरेलू हिंसा के मुख्य कारणों
में बूढ़े माता-पिता के ख़र्चों को झेलने में बच्चे झिझकते हैं। वे अपने माता-पिता
को भावनात्मक रूप से पीड़ित करते हैं और उनसे छुटकारा पाने के लिये उनकी पिटाई
करते हैं।
विभिन्न अवसरों पर परिवार के सदस्यों की इच्छा के
विरुद्ध कार्य करने के लिये उन्हें पीटा जाता है। बहुत ही सामान्य कारणों में से
एक संपत्ति हथियाने के लिये दी गई यातना भी शामिल है।
घरेलू हिंसा के प्रभाव
यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में घरेलू हिंसा का
सामना किया है तो उसके लिये इस डर से बाहर आ पाना अत्यधिक कठिन होता है। अनवरत रूप
से घरेलू हिंसा का शिकार होने के बाद व्यक्ति की सोच में नकारात्मकता हावी हो जाती
है। उस व्यक्ति को स्थिर जीवनशैली की मुख्यधारा में लौटने में कई वर्ष लग जाते
हैं।
घरेलू हिंसा का सबसे बुरा पहलू यह है कि इससे पीड़ित
व्यक्ति मानसिक आघात से वापस नहीं आ पाता है। ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि
लोग या तो अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं या फिर अवसाद का शिकार हो जाते हैं।
घरेलू हिंसा की यह सबसे खतरनाक और दुखद स्थिति है कि
जिन लोगों पर हम इतना भरोसा करते हैं और जिनके साथ रहते हैं जब वही हमें इस तरह का
दुख देते हैं तो व्यक्ति का रिश्तों पर से विश्वास उठ जाता है और वह स्वयं को
अकेला कर लेता है। कई बार इस स्थिति में लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं।
घरेलू हिंसा का सबसे व्यापक प्रभाव बच्चों पर पड़ता
है। सीटी स्कैन से पता चलता है कि जिन बच्चों ने घरेलू हिंसा में अपना जीवन बिताया
है उनके मस्तिष्क का कॉर्पस कॉलोसम और हिप्पोकैम्पस नामक भाग सिकुड़ जाता है, जिससे उनकी सीखने, संज्ञानात्मक क्षमता और भावनात्मक
विनियमन की शक्ति प्रभावित हो जाती है।
बालक अपने पिता से गुस्सैल व आक्रामक व्यवहार सीखते
हैं। इस का असर ऐसे बच्चों का अन्य कमज़ोर बच्चों व जानवरों के साथ हिंसा करते हुए
देखा जा सकता है।
बालिकाएँ नकारात्मक व्यवहार सीखती हैं और वे प्रायः
दब्बू,
चुप-चुप रहने वाली या परिस्थितियों से दूर भागने वाली बन जाती हैं।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल
प्रभाव पड़ता है क्योंकि हिंसा की शिकार हुई महिलाएँ समाजिक जीवन की विभिन्न
गतिविधियों में कम भाग लेती हैं।
समाधान के उपाय
शोधकर्त्ताओं के अनुसार, यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि घरेलू हिंसा के सभी पीड़ित आक्रामक नहीं
होते हैं। हम उन्हें एक बेहतर वातावरण उपलब्ध करा कर घरेलू हिंसा के मानसिक विकार
से बाहर निकल सकते हैं।
भारत अभी तक हमलावरों की मानसिकता का अध्ययन करने, समझने और उसमें बदलाव लाने का प्रयास करने के मामले में पिछड़ रहा है। हम
अभी तक विशेषज्ञों द्वारा प्रचारित इस दृष्टिकोण की मोटे तौर पर अनदेखी कर रहे हैं
कि “महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाली हिंसा और भेदभाव को
सही मायनों में समाप्त करने के लिये हमें पुरुषों को न केवल समस्या का एक कारण
बल्कि उन्हें इस मसले के समाधान के अविभाज्य अंग के तौर पर देखना होगा।”
सुधार लाने के लिये सबसे पहले कदम के तौर पर यह
आवश्यक होगा कि “पुरुषों को महिलाओं के खिलाफ रखने”
के स्थान पर पुरुषों को इस समाधान का भाग बनाया जाए। मर्दानगी की
भावना को स्वस्थ मायनों में बढ़ावा देने और पुराने घिसे-पिटे ढर्रे से छुटकारा पाना
अनिवार्य होगा।
सरकार ने महिलाओं और बच्चों को घरेलू हिंसा से
संरक्षण देने के लिये घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 को संसद से
पारित कराया है। इस कानून में निहित सभी प्रावधानों का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के
लिये यह समझना ज़रूरी है कि पीड़ित कौन है। यदि आप एक महिला हैं और रिश्तेदारों
में कोई व्यक्ति आपके प्रति दुर्व्यवहार करता है तो आप इस अधिनियम के तहत पीड़ित
हैंl
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 द्वारा भारत मानसिक स्वास्थ्य के प्रति गंभीर हो गया है, लेकिन इसे और अधिक प्रभावशाली बनाने की आवश्यकता है। नीति निर्माताओं को
घरेलू हिंसा से उबरने वाले परिवारों को पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ
उपलब्ध कराने के लिये तंत्र विकसित करने की ज़रूरत है।
सरकार ने वन-स्टॉप सेंटर’ जैसी योजनाएँ प्रारंभ की हैं, जिनका उद्देश्य हिंसा
की शिकार महिलाओं की सहायता के लिये चिकित्सीय, कानूनी और
मनोवैज्ञानिक सेवाओं की एकीकृत रेंज तक उनकी पहुँच को सुगम व सुनिश्चित करता है।
महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के बारे में
जागरूकता फैलाने के लिये वोग इंडिया ने ‘लड़के रुलाते नहीं’
अभियान चलाया, जबकि वैश्विक मानवाधिकार संगठन ‘ब्रेकथ्रू’ द्वारा घरेलू हिंसा के खिलाफ ‘बेल बजाओ’ अभियान चलाया गया। ये दोनों ही अभियान
महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा से निपटने के लिये निजी स्तर पर किये गए
शानदार प्रयास थे।
यदि हम सही मायनों में “महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से मुक्त भारत” बनाना
चाहते हैं, तो वक्त आ चुका है कि हमें एक राष्ट्र के रूप में
सामूहिक तौर पर इस विषय पर चर्चा करनी चाहिये। एक अच्छा तरीका यह हो सकता है कि हम
राष्ट्रव्यापी, अनवरत तथा समृद्ध सामाजिक अभियान की शुरुआत
करें।
दहेज के झूठे केस में पत्नी ने फंसाया
पत्नी यदि पति पर दहेज का झूठा केस लगाती है तो खुद
मुश्बित में फंस सकती है। मुंबई हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में फैसला सुनाते हुए
पत्नी पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है और पति की तलाक की मर्जी मंजूर की है।
साउथ मुंबई के एक बिजनेसमैन के खिलाफ पत्नी ने दहेज
और आपराधिक मामले का केस किया था, पति का आरोप था कि पत्नी ने
प्रताड़ित करने के लिए दहेज का झूठा आरोप लगाया है। पति ने कोर्ट में तलाक की
अर्जी लगाते हुए कहा था कि एक दशक लंबे संबंधों के दौरान पत्नी ने जो अत्याचार किए,
उससे उसकी और उसके परिवार की प्रतिष्ठा खराब हुई है। हाईकोर्ट ने
पुरुष को पत्नी से तलाक दिलाया है। साथ ही पत्नी को आदेश दिया है कि वह पति को 50
हजार रुपए का मुआवजा भी देगी।
झूठा केस हो तो क्या कर सकता है पति...
- झूठा केस लगा है तो घबराएं नहीं बल्कि खुलकर उसका
विरोध करें।
- आप झूठी शिकायत पर आईपीसी के अंतर्गत शिकायतकर्ता, गवाह और पुलिस पर भी केस कर सकते हैं।
- पत्नी ने झूठी शिकायत की है तो आप भी इसकी शिकायत
पुलिस में करें। उच्च अधिकारियों के सामने पूरा मामला लाएं।
- कई बार ऐसे केस में पुलिस एफआईआर के नाम पर डराती
है,
ऐसे में डरें नहीं बल्कि अपने वकील के जरिए पुलिस से बात करें।
- पुलिस पुख्ता सबूत मिलने पर ही आपके खिलाफ केस कर
सकती है।
- कई हाईकोर्ट के एडवोकेट का कहना है कि पति, पत्नी में कौन सही है इस बात का निर्णय कोर्ट ही करता है। पति अपनी
बेगुनाही के पूरे सबूत कोर्ट के सामने रख सकता है। कई मामलों में पत्नी के आरोप
गलत पाए गए हैं और कोर्ट ने पति को सभी आरोपों से बरी किया है।
यदि कोई झूठा घरेलू हिंसा व दहेज का
मामला दर्ज करवाता है तो क्या करें ।
हिंसा जो किसी व्यक्ति के जीवन को हर तरह से
प्रभावित करती है. शारीरिक रूप से, मानसिक रूप से,
भावनात्मक रूप से और मनोवैज्ञानिक रूप से घरेलू हिंसा के रूप में
जाना जाता है। यह एक बुनियादी मानव अधिकार का उल्लंघन है। दुनिया के विभिन्न देशों
ने इसे किसी व्यक्ति के समग्र विकास के लिए गंभीर खतरा माना है और इसलिए, विभिन्न रूपों में घरेलू हिंसा से राहत प्रदान की है। भारत ने घरेलू हिंसा
को अपराध के रूप में भी पहचाना है और इससे राहत और सुरक्षा मिलती है - दुर्भाग्य
से केवल महिलाओं के लिए!
पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा लगभग शून्य है
क्योंकि किसी व्यक्ति की रक्षा के लिए किसी भी कानून में कोई प्रावधान नहीं है।
जिसके परिणामस्वरूप हमारे पास कई मामले हैं जहां महिलाएं अपने पतियों के खिलाफ
झूठी शिकायत करने के अपने अधिकारों का उपयोग करती हैं ताकि उन्हें परेशान करने का
मकसद हो। इसके अलावा, हमारी सरकार समेत हर कोई पुरुषों
द्वारा सामना की जाने वाली हिंसा को संबोधित करने में कोई खड़ा नहीं रहा है।
महिलाएं अपने पति पर हमला करने के लिए झूठी शिकायत
दर्ज करने के लिए धारा 4 9 8 ए और दहेज अधिनियम नामक हथियारों का उपयोग करती हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 4 9 8 ए एक प्रावधान है जिसके अंतर्गत एक पति, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों को अपनी गैरकानूनी मांगों (दहेज) को पूरा
करने के लिए एक महिला को क्रूरता के अधीन करने के लिए बुक किया जा सकता है। आम तौर
पर, पति, उसके माता-पिता और
रिश्तेदारों को तुरंत पर्याप्त जांच के बिना गिरफ्तार किया जाता है और गैर-जमानती
शर्तों पर सलाखों के पीछे रखा जाता है। भले ही शिकायत झूठी है, आरोपी को तब तक दोषी माना जाता है जब तक कि वह अदालत में निर्दोष साबित न
हो जाए। दोषी साबित होने पर अधिकतम सजा तीन साल तक कारावास है।
महिलाओं द्वारा बनाई गई झूठी शिकायतों पर
न्यायपालिका धारा 498ए के दुरुपयोग के बारे में अच्छी तरह से अवगत है। सुप्रीम
कोर्ट ने इसे कानूनी आतंकवाद कहा। लेकिन नारीवादी समूहों से जबरदस्त दबाव के कारण
भी न्यायपालिका असहाय है।
धारा 498ए में संशोधन के लिए राज्यसभा में लंबित एक
बिल है। न्यायमूर्ति मालिमाथ, कर्नाटक के पूर्व मुख्य
न्यायाधीश और केरल उच्च न्यायालयों ने एक समिति की अध्यक्षता की जिसने आपराधिक
कानूनों में व्यापक संशोधन पर अपनी रिपोर्ट दी। इस समिति ने सिफारिश की कि 498 ए
को जमानती और संगत बनाया जाना चाहिए। कमेटी की सिफारिशों को सुनकर स्त्रीवादी समूह
और एमनेस्टी इंटरनेशनल के अंदर उनके संपर्कों ने इस मुद्दे पर आंदोलन के लिए धमकी
दी।
अगर आपके खिलाफ झूठी घरेलू हिंसा और दहेज
का मामला दर्ज किया गया है तो क्या करें--
यदि आपकी पत्नी द्वारा आपके खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज
की गई है,
तो आपके पास दो विकल्प हैं - या तो अपने मामले की रक्षा करने और
निर्णय की प्रतीक्षा करने या अपने खिलाफ काउंटर केस दर्ज करने के लिए पत्नी और उसे
गलत साबित करें।
रक्षात्मक आप झूठी शिकायत के कारण खुद को और आपके
परिवार को जेल भेजने से बचा सकते हैं। आपके परिवार और अपने आप को बचाने के लिए
आपके पास निम्नलिखित विकल्प हैं-
यह प्रमाण अदालत से अग्रिम जमानत या नियमित जमानत प्राप्त करने के समय उपयोगी होगा। अपने परिवार की रक्षा करें ऐसे कई मामले हैं जहां एक झूठी शिकायत के कारण पूरे परिवार को सलाखों के पीछे रखा जाता है। धारा 498 ए में एक बहुत व्यापक क्षेत्राधिकार है जिसके अंतर्गत महिलाएं परिवार में किसी के खिलाफ शिकायत कर सकती हैं। यहां तक कि पति की मां और पिता भी प्रतिरक्षा नहीं हैं। ऐसी स्थिति में पति अपने माता-पिता और अन्य परिवार के सदस्यों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित कर सकता है -
एक बार प्राथमिकी दर्ज हो जाने के बाद, व्यक्ति अग्रिम जमानत या नोटिस जमानत के लिए आवेदन कर सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्दोष परिवार के सदस्य बिना सलाखों के पीछे नहीं जा रहे हैं किसी भी कारण का कारण है। मामला कैसे निकलता है पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करेगा कि किस मामले में मामला दर्ज है। झूठे मामलों की समस्याओं से निपटने के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तंत्र हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में शिकायत को पहले सीएडब्ल्यू सेल (महिला सेल के खिलाफ अपराध) / महिला थाना को संदर्भित किया जाएगा)। जहां पति और पत्नी के बीच निपटारे के लिए प्रयास किए जाएंगे। और यदि कोई समझौता नहीं हुआ है, तो मामला एफआईआर में परिवर्तित कर दिया जाएगा।
इस चरण या इससे पहले भी, आप अपने परिवार के सदस्यों के लिए गिरफ्तारी से बचाने के लिए अग्रिम बेल या नोटिस बैल की तलाश कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश / उत्तरांचल में, एफआईआर तुरंत पंजीकृत हो जाएगी लेकिन मध्यस्थता केंद्र में मामले को सुलझाने के लिए आपको 30 दिन का समय मिलेगा। झारखंड में, स्थिति बहुत खराब है, लोगों को सत्यापन के बिना गिरफ्तार किया जाता है, और प्रत्याशित बैल भी बहुत मुश्किल है। ब्लैकमेलिंग, झूठे आरोपों के बारे में शिकायत, अपने निकटतम पुलिस स्टेशन को शिकायत दर्ज करें, ब्लैकमेलिंग, उसके झूठे आरोपों और उसके असहनीय व्यवहार के बारे में जानकारी दें। आपकी शिकायत में अनुरोध करें कि पुलिस को उसे खतरे और दुर्व्यवहार करने से रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए, पुलिस को मौखिक रूप से और लिखित रूप में यह भी बताएं कि आप ब्लैकमेलिंग का सामना कर रहे हैं और आपकी पत्नी और / या उसके परिवार से खतरे और मानसिक यातना का सामना कर रहे हैं , के रूप में मामला हो सकता है। इस तरह की शिकायत दर्ज करना आपको बाद में बहुत सारी परेशानी से बचा सकता है यदि आप इसे दर्ज करने वाले पहले व्यक्ति हैं। इस कदम की कमी पुलिस आसानी से पुरुषों की शिकायतों को नहीं लिखती है। साथ ही, शिकायत कैसे तैयार की जाती है वह महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि पुलिस के पास आने से पहले ऐसे मामलों में अनुभव के साथ वकील से परामर्श करना एक अच्छा विचार है। यदि संभव हो तो एक मुकदमे के वकील द्वारा तैयार की गई शिकायत प्राप्त करें।
अगर पुलिस शिकायत दर्ज कराने से इंकार कर देती है, तो फिर से वकील की मदद लें। वे पुलिस को शिकायत दर्ज कराने में सक्षम
होंगे। कभी-कभी पुलिस ने पति के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराने के लिए पत्नी को
उकसाया, कारण बाद में रिश्वत लेने का लालच हो गया। मैं ऐसी
परिस्थितियों में क्या सुझाव देता हूं यदि पुलिस आपकी शिकायत दर्ज करने से इनकार
कर देती है तो आप एक शिकायत पत्र लिख सकते हैं और एसपी / आयुक्त को भेज सकते हैं
क्योंकि मामला हो सकता है और शिकायत की "प्राप्तकर्ता" प्राप्त हो सकती
है। अगर पुलिस आपको एक प्राप्त प्रतिलिपि देने से इंकार कर देती है, तो आप पंजीकृत डाक द्वारा पुलिस स्टेशन को शिकायत भेज सकते हैं। जिसकी
पावती आपके साथ सुरक्षित रखी जानी चाहिए। पुलिस के बाद आपकी शिकायतों पर काम करने
का एक बड़ा मौका है। झूठी 498 ए शिकायत के पीड़ितों की सामान्य गलतियों में से एक
यह है कि पूरे मामले को अपने आप प्रबंधित करने की कोशिश करें। इसलिए, वकील जैसे कानूनी विशेषज्ञ को इस मामले पर सलाह देने के लिए हमेशा बेहतर
होता है और यदि संभव हो तो पैर भी काम करें। एक वकील निश्चित रूप से आपके मामले को
बेहतर समझ जाएगा।
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