5/12/21

कुरान की 26 आयतों पर सवाल क्यों?

सबसे पहले आपको उन 26 आयतों के बारे में बताते हैं जिसे वसीम रिजवी द्वारा विवादित कहे जा रहे हैं और उसे हटाए जाने की मांग को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल हुई है। जिसका हिंदी अनुवाद Quraninhindi.com में मिल जाएगा।

 

चैप्टर 9, सूरा-5

 फिर जब हराम महीना बीत जाए तो मुशरिकों को जहां कहीं पाओ कत्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज कायम करें और जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्त्य ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।

 चैप्टर 9, सूरा 28

 हे ईमान लाने वालों मुश्रिक (मूर्तिपूजक) नापाक है। अत: इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे-हराम के पास न आएं।

 चैप्टर 4, सूरा 101

 जब तुम धरती में यात्रा करो, तो इसमें तुम पर कोई गुनाह नहीं कि नमाज को कुछ संक्षिप्त कर दो। यदि तुम्हें इस बात का भय हो कि विधर्मी लोग तुम्हें सताएंगे और कष्ट पहुंचाएंगे। निश्चय ही विधर्मी लोग तुम्हारे खुले शत्रु हैं।

 चैप्टर 9, सूरा 123

 हे ईमान लाने वालों (मुसलमानों) उन काफिरों से लड़ो जो तुमहारे आस पास हैं और चाहिए ये कि वे तुमसे सख्ती पाएं।

 चैप्टर 4, सूरा 56

 जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोकेंगे। जब भी उनकी खालें पक जाएंगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मजा चखते ही रहे।

 चैप्टर 9, सूरा 23

 ऐ ईमान लाने वालो, अपने बाप और अपने भाईयों को अपने मित्र न बनाओ। यदि ईमान के मुकाबले में कुफ्र उन्हें प्रिय हो।

 चैप्टर 9, सूरा 37

 आदर के महीनों का) हटाना तो बस कुफ़्र में एक वृद्धि है, जिससे इनकार करनेवाले गुमराही में पड़ते हैं। किसी वर्ष वे उसे हलाल (वैध) ठहरा लेते हैं और किसी वर्ष उसको हराम ठहरा लेते हैं, ताकि अल्लाह के आदृत (महीनों) की संख्या पूरी कर लें, और इस प्रकार अल्लाह के हराम किए हुए को वैध ठहरा लें। उनके अपने बुरे कर्म उनके लिए सुहाने हो गए हैं और अल्लाह इनकार करनेवाले लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता।

 चैप्टर 5, सूरा 57

 ऐ ईमान लानेवालो! तुमसे पहले जिनको किताब दी गई थी, जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हँसी-खेल बना लिया है, उन्हें और इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। और अल्लाह का डर रखो यदि तुम ईमानवाले हो।

 चैप्टर 33, सूरा 61

 फिटकारे (मुनाफिक) हुए होंगे। जहाँ कहीं पाए गए पकड़े जाएँगे और बुरी तरह जान से मारे जाएँगे।

 चैप्टर 21, सूरा 98

निश्चय ही तुम और वह कुछ जिनको तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते हो सब जहन्नम के ईधन हो। तुम उसके घाट उतरोगे।

 चैप्टर 32, सूरा 22

 और उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा याद दिलाया जाए,फिर वह उनसे मुँह फेर ले? निश्चय ही हम अपराधियों से बदला लेकर रहेंगे।

 चैप्टर 48, सूरा 20

 अल्लाह ने तुमसे बहुत-सी गनीमतों का वादा किया है, जिन्हें तुम प्राप्त करोगे। यह विजय तो उसने तुम्हें तात्कालिक रूप से निश्चित कर दी। और लोगों के हाथ तुमसे रोक दिए (कि वे तुमपर आक्रमण करने का साहस न कर सकें) और ताकि ईमानवालों के लिए एक निशानी हो। और वह सीधे मार्ग की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन करे।

 चैप्टर 8, सूरा 69

 अतः जो कुछ ग़नीमत का माल तुमने प्राप्त किया है, उसे वैध-पवित्र समझकर खाओ और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।

 चैप्टर 66, सूरा 9

 ऐ नबी! इनकार करनेवालों और कपटाचारियों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। उनका ठिकाना जहन्नम है और वह अन्ततः पहुँचने की बहुत बुरी जगह है।

 चैप्टर 41, सूरा 27

 अतः हम अवश्य ही उन लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे, और हम अवश्य उन्हें उसका बदला देंगे जो निकृष्टतम कर्म वे करते रहे हैं।

 चैप्टर 41, सूरा 28

 वह है अल्लाह के शत्रुओं का बदला - आग। उसी में उनका सदा का घर है, उसके बदले में जो वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे।

 चैप्टर 9, सूरा 111

 निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों से उनके प्राण और उनके माल इसके बदले में ख़रीद लिए हैं कि उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं, तो वे मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं। यह उसके ज़िम्मे तौरात, इनजील और क़ुरआन में (किया गया) एक पक्का वादा है। और अल्लाह से बढ़कर अपने वादे को पूरा करनेवाला हो भी कौन सकता है? अतः अपने उस सौदे पर खु़शियाँ मनाओ, जो सौदा तुमने उससे किया है। और यही सबसे बड़ी सफलता है।

 चैप्टर 9, सूरा 58

 और उनमें से कुछ लोग सदक़ों के विषय में तुम पर चोटें करते हैं। किन्तु यदि उन्हें उसमें से दे दिया जाए तो प्रसन्न हो जाएँ और यदि उन्हें उसमें से न दिया गया तो क्या देखोगे कि वे क्रोधित होने लगते हैं।

 चैप्टर 8, सूरा 65

 ऐ नबी! मोमिनों को जिहाद पर उभारो। यदि तुम्हारे बीस आदमी जमे होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी होंगे और यदि तुममें से ऐसे सौ होंगे तो वे इनकार करनेवालों में से एक हज़ार पर प्रभावी होंगे, क्योंकि वे नासमझ लोग हैं।

 चैप्टर 5, सूरा 51

 "ऐ ईमान लानेवालो! तुम यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाओ। वे (तुम्हारे विरुद्ध) परस्पर एक-दूसरे के मित्र हैं। तुममें से जो कोई उनको अपना मित्र बनाएगा, वह उन्हीं लोगों में से होगा। निस्संदेह अल्लाह अत्याचारियों को मार्ग नहीं दिखाता।

 चैप्टर 9, सूरा 29

 वे किताबवाले जो न अल्लाह पर ईमान रखते हैं और न अन्तिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल के हराम ठहराए हुए को हराम ठहराते हैं और न सत्यधर्म का अनुपालन करते हैं, उनसे लड़ो, यहाँ तक कि वे सत्ता से विलग होकर और छोटे (अधीनस्थ) बनकर जिज़्या देने लगें।

 चैप्टर 5, सूरा 14

 और हमने उन लोगों से भी दृढ़ वचन लिया था, जिन्होंने कहा था कि हम नसारा (ईसाई) हैं, किन्तु जो कुछ उन्हें जिसके द्वारा याद कराया गया था उसका एक बड़ा भाग भुला बैठे। फिर हमने उनके बीच क़ियामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा, जो कुछ वे बनाते रहे थे।

 चैप्टर 4, सूरा 89

 वे तो चाहते हैं कि जिस प्रकार वे स्वयं अधर्मी हैं, उसी प्रकार तुम भी अधर्मी बनकर उन जैसे हो जाओ; तो तुम उनमें से अपने मित्र न बनाओ, जब तक कि वे अल्लाह के मार्ग में घर-बार न छोड़ें। फिर यदि वे इससे पीठ फेरें तो उन्हें पकड़ो, और उन्हें क़त्ल करो जहाँ कहीं भी उन्हें पाओ - तो उनमें से किसी को न अपना मित्र बनाना और न सहायक।

 चैप्टर 9, सूरा 14

 और हमने उन लोगों से भी दृढ़ वचन लिया था, जिन्होंने कहा था कि हम नसारा (ईसाई) हैं, किन्तु जो कुछ उन्हें जिसके द्वारा याद कराया गया था उसका एक बड़ा भाग भुला बैठे। फिर हमने उनके बीच क़ियामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा, जो कुछ वे बनाते रहे थे।

 चैप्टर 3, सूरा 151

 हम शीघ्र ही इनकार करनेवालों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इसलिए कि उन्होंने ऐसी चीज़ों को अल्लाह का साक्षी ठहराया है जिनके साथ उसने कोई सनद नहीं उतारी, और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है। और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है।

 चैप्टर 2, सूरा 191

 और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उपद्रव) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे-हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो - ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है।

 

इन आयतों का सही अर्थ और भावार्थ तभी समझा जा सकता है जब उन्हें पिछली और अगली आयतों के साथ पढ़ा जाए. साथ ही ये भी देखना होगा कि ये आयतें किस काल और किस संदर्भ में अवतरित हुईं.


वसीम रिजवी की क्या है दलील

 

वसीम रिजवी की तरफ से कुरान की 26 आयतों को क्षेपक यानी बाद में जोड़ी गई आयतें बताते हुए उनको पवित्र किताब से हटाने का आदेश देने की मांग करने वाली जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है। उनका कहना है कि इतिहास गवाह है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के निधन के बाद पहले खलीफा हजरत अबू बकर ने उन चार लोगों को पैगंबर हजरत मोहम्मद पर नाजिल अल्लाह पाक के मौखिक संदेशों को किताब की शक्ल में संग्रहित करने को कहा। तब तक हजरत के मुख से समय-समय पर निकले संदेशों को लोग पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक तौर पर ही याद करते रहे।

 

जैद बिन ताबित को आयत लिखने की मिली जिम्मेदारी

 

पहले खलीफा ने उन चार लोगों को जिम्मेदारी दी जो हजरत के साथ रहे थे। सही अल बुखारी ग्रंथ के मुताबिक उबे बिन काब, मुआज बिन जबल, जैद बिन ताबित और अबु जैद को ये जिम्मेदारी दी गई। उस वक्त तीन अन्य लोगों ने सर्वसम्मति से हफ्ज कुरान की आयतों को लिखने की जिम्मेदारी जैद बिन ताबित को दे दी। कुरान पाक लिख दिया गया और पैगंबर मोहम्मद साहब की चौथी बीबी और दूसरे खलीफा हजरत उमर की बेटी हफ्सा के हाथों में सौंप दी गई। पिर तीसरे खलीफा हजरत उस्मान के जमाने में अलग-अलग लोगों के लिखे करीब तीन सौ कुरान शरीफ प्रचलन में थे। उसी वक्त इस्लाम को तलवार के दम पर फैलाने की मुहिन चल रही थी। याचिकाकर्ता की दलील है कि उसी समय ये 26 आयतें जोड़ी गई। इन आयतों में इंसानियत के मूल सिद्धांतों की अवहेलना और धर्म के नाम पर नफरत, घृणा, खून खराबा फैलाने वाले हैं।


वसीम रिज़वी को क़ुरआन की 6,666 आयतों में से सिर्फ़ पांच आयतें ऐसी मिली हैं जिनमें में उनके मुताबिक़ अल्लाह की तरफ़ से मानव कल्याण और आपसी भाई चारे का आदेश दिया गया है. इन आयतों को उन्होंने अपनी याचिका में शामिल किया है. ये पांच आयतें हैः

 

1. सूरः न. 2 (अल-बक़रा) की आयत न.11 और 255

2. सूरः न. 5 (अल-माइदा) की आयत न. 32

3. सूरः न. 31 (लुकमान) की आयत न. 18

4. सूरः न. 109 (अल-काफ़िरून) की आयत न. 6

 

इन आयतों की मूल भावना के खिलाफ़ बताते हुए जिन 26 आयतों को हटाने की मांग की हैं उन्हें वसीम रिज़वी ने अपनी याचिका में ए टू ज़ेड लिस्ट किया है. क़ुरआन की 12 सूरः में इन आयतों को बीच-बीच में से चुना गया है. क़ुरआन में मौजूद सूरः की तरतीब के हिसाब से वो 26 आयतेंं ये हैं.

 

1. सूरः न. 2 (अल-बक़रा) की आयत न. 191

2. सूरः न. 3 (आले-इमरान) की आयत न. 151

3. सूरः न. 4 (अल-निसा) की आयत न. 56, 89 और 110

4. सूरः न. 5 (अल-माइदा) की आयत न. 14, 51 और 57

5. सूरः न. 8 (अल-अनफाल) की आयत न. 65 और 69

6. सूरः न. 9 (अत-तौबा) की आयत न. 5, 14, 23, 28, 29, 37, 58, 111 और 123

7. सूरः न. 21 (अंबिया) की आयत न. 98

8. सूरः न. 32 (अस-सजदा) की आयत न. 22

9. सूरः न. 33 (अल-अहज़ाब) की आयत न. 61

10. सूरः न. 41 (फुस्सिलात) की आयत न. 27 और 28

11. सूरः न. 48 (अल-फतेह) की आयत न. 20

12. सूरः न. 66 (अत-तहरीम) की आयत न. 9

इस्लाम में कुरान का महत्व

कुरान इस्लाम की सबसे सर्वोच्च किताब है और इसमें अल्लाह के संदेशों का संकलन किया गया है. इस्लाम के मानने वालों को कुरान पर ही अपना इमान (यकीदा) रखना अनिवार्य है. अल्लाह ने फरिश्तों के सरदार हजरत जिबरील के जरिए आखिरी नबी हजरत मुहम्मद तक पहुंचाया, सुनाया और फिर उनसे खुद भी सुना. मुस्लिम समुदाय के तमाम फिरके इस बात पर एक मत हैं कि यह अल्लाह की भेजी गई यह अंतिम और सर्वोच्च किताब है. कुरान में न तो एक शब्द कोई अतरिक्त जोड़ा जा सकता है और न ही एक शब्द हटाया जा सकता है. यही वजह है कि वसीम रिजवी के द्वारा कुरान से कुछ आयतों को हटाने की बात पर मुस्लिम उलेमा गुस्से में हैं.

क़ुरआन भी हर किताब की तरह कुछ भागों में बंटा हुआ है. इसमें तीस सिपारे हैं. उन्हें पारे भी कहा जाता है. पूरे क़ुरआन को एक साथ पढ़ने के बजाय थोड़ा-थोड़ा करके पढ़ने और हिफ़्ज (याद करने/कठंस्थ करने) करने में सहूलियत के लिए ऐसा किया गया है. क़ुरआन मूल रूप से 114 अध्यायों में बंटा हुआ है. इन्हें सूरः कहते हैं. हर सूरः को एक नाम दिया गया. सूरः में आयतें होती हैं. आयत एक वाक्य होता है. कुछ आयतें बहुत छोटी हैं और कुछ बड़ी हैं. क़ुरआन की सबसे बड़ी सूरः अल-बक़रा है. इसमें 286 आयतें हैं. सबसे छोटी सूरः अल-कौसर है. इसमें सिर्फ़ तीन आयतें हैं. पूरे क़ुरआन में कुल 6,666 आयतें हैं.

मसलकों, फिरकों और दूसरी तरह के मतभेदों के बावजूद तमाम मुसलमानों का यह अक़ीदा (आस्था) है कि क़ुरआन एक आसमानी किताब है. यह किताब पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद (सअव) पर थोड़ा-थोड़ा करके 23 वर्षों में अवतरित हुई. दूसरा अक़ीदा यह है कि ये एक मुकम्मल किताब है. इसमें कभी कोई छेडछाड़ या बदलाव नहीं हुए और न भविष्य में हो सकते हैं. लिहाज़ा कोई भी इसमें किसी तरह की कांट-छांट कर ही नहीं सकता. इसमें न कुछ नया जोड़ा जा सकता है और नहीं इसमें से कुछ हटाया जा सकता है. तीसरा अक़ीदा यह है कि अल्लाह ने खुद इस किताब की हिफ़ाज़त (रक्षा) की ज़िम्मेदारी ली है.

वसीम रिज़वी का दावा है कि अल्लाह अपनी किताब में विरोधाभासी बातें नहीं कह सकता. यह संभव नहीं है कि एक तरफ़ तो अल्लाह तुम्हारा दीन तुम्हारे लिए और मेरा दीन मेरे लिएयानि अलग-धर्मों को मान्याता दें. आपस में फ़साद फैलाने को सख़्ती से मना करे और दूसरी तरफ़ इस्लाम को नहीं मानने वालों को मारने का आदेश दे. वसीम रिज़वी का आरोप है कि मानव कल्याण और अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच सहअसतित्व की भावना के साथ रहने का आदेश देने वाली क़ुरआन की आयतों के खिलाफ़ ग़ैर मुस्लिमों को मारने का आदेश देने वाली आयतें मूल क़ुरआन का हिस्सा नहीं हैं. इन्हें मुहम्मद (सअव) साहब के बने तीन ख़लीफ़ाओं ने अपनी ताक़त का इस्तेमाल करके क़ुरआन में जोड़ दिया था.इस्लामी इतिहास के मुताबिक़ मुहम्मद (सअव) साहब के जीवनकाल में क़ुरआन किताब की शक्ल में मौजूद नहीं था. मुहम्मद (सअव) साहब पर जब कोई आयत अवतरित होती थी तो वो उनके पास मौजूद लोगों को सुना देते थे. उनमें से जो लिखना जानते थे वो लिख लेते थे. बाक़ी लोग उसे याद कर लेते थे. कुछ लोगों को पूरा क़ुरआन ज़ुबानी याद था. इनमें से बड़ी संख्या में यमामा की लड़ाई में शहीद हो गए थे. तब पहले ख़लीफ़ा अबू बक्र ने हज़रत उमर से सलाह मशविरा करके क़ुरआन का आयतों के जमा करके इसे किताब की शक्ल देने का काम शुरू किया. हज़रत उमर दूसरे ख़लीफ़ा बने. लेकिन क़ुरआन को किताबी शक्ल देने का काम तीसरे ख़लीफ़ा हज़रत उस्मान के काल में पूरा हुआ.

 

वसीम रिज़वी ने अपनी याचिका में बताया है कि सबसे विश्वसनीय मानी जानी वाली हदीस बुख़ारी शरीफ़ में बताया गया है कि चार सहाबा (मुहम्मद साहब के साथी) को पूरा क़ुरआन याद था. उन्हीं की याददाश्त के आधार पर मौजूदा क़ुरआन लिखा गया था. शिया-सुन्नी विवाद को उठाते हुए वसीम रिज़वी ने आरोप लगाया है कि उस समय हज़रत अली की पूरी तरह अनदेखी की गई. जबकि उनके पास असली क़ुरआन थी. वसीम रिज़वी का आरोप है कि पहले तीनों ख़लीफाओं ने क़ुरआन अपनी मर्जी की आयतें लिखवाकर मौजूदा क़ुरआन तैयार कराया और इसके अलावा जितने भी क़ुरआन उस समय मौजूद थे उन सबको जला दिया था. ये सारी बातें उन्होंने हदीसों के हवाले से कही हैं.


पैगंबर मोहम्मद साहब पर अल्लाह द्वारा नाज़िल मौखिक संदेशों को लिखकर कुरान का रूप दिया गया. इसे हजरत मोहम्मद की चौथी बीवी और दूसरे खलीफा हजरत उमर की बेटी हफ्सा के हाथों में सौंपा गया. फिर तीसरे खलीफा हजरत उस्मान के जमाने में अलग-अलग लोगों के लिखे करीब तीन सौ कुरान शरीफ प्रचलन में थे. तब उन्होंने कुरान पाक की मूल प्रति के लेखक हजरत जैद बिन ताबित से कहा कि हजरत हफ्सा से मांग कर मूल किताब की नकल अपने साथियों अब्दुल्ला बिन जुबैर, सैद बिन अलास, अब्दुर्रहमान बिन हारित बिन हिशाम के सहयोग से तैयार की जाएं. उसी वक्त इस्लाम को तलवार के दम पर फैलाने की मुहिम चल रही थी. याचिकाकर्ता की कहना है कि उसी समय ये 26 आयतें जोड़ी गईं.

'26 आयतों का हवाला देकर ही पनपा है ISIS'

ये सोचने वाली बात है कि एक कट्टर इस्लामिक आतंकी संगठन में कोई मुस्लिम युवा (वो भी भारतीय) क्यों जुड़ना चाहेगा? दरअसल, मदरसों में जिस तरह से केवल इस्लामिक शिक्षा पर जोर दिया जाता है. वह बच्चों को धीरे-धीरे रुढ़िवादी बना देता है. विज्ञान और अन्य विषयों की पढ़ाई को मदरसों में कोई खास तवज्जो नहीं दी जाती है. वसीम रिजवी का कहना है कि इन्हीं आयतों का हवाला देकर मुस्लिम नौजवानों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है. उनको जेहाद के नाम पर भड़काया, बहकाया और उकसाया जा रहा है. इन्हीं की वजह से देश की एकता, अखंडता पर खतरा है.


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