किसी
देश का भविष्य तभी बेहतर हो सकता है जब उस देश के युवाओं को बेहतर शिक्षा और
शैक्षिक योग्यता के आधार पर बेहतर रोजगार उपलब्ध हों. लेकिन क्या भारत में ऐसा हो
पा रहा है! आंकड़ों के आधार पर बड़े गर्व के साथ कहा जाता है कि भारत दुनिया का
ऐसा देश है, जहां युवाओं की संख्या सबसे अधिक है.
लेकिन हमें यह भी याद रखना होगा कि दुनिया में सबसे अधिक बेरोजगार युवा भी हमारे
देश में हैं. इससे भी अधिक चिंताजनक विषय यह है कि युवाओं में जैसे-जैसे शिक्षा का
स्तर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ही बेरोजगारी की दर भी बढ़
रही है.
किसी
देश की युवा पीढ़ी के लिए यह कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि वह उच्च शिक्षित हो
और आत्मनिर्भरता के लिए चपरासी की नौकरी के लिये प्रतिस्पर्धा परीक्षा में भाग ले।
व्यावसायिक परीक्षा मंडल मध्य प्रदेश भोपाल ने हाल ही में भृत्य पदो की भर्ती के लिए
परीक्षा आयोजित की है, इसमें एम.एस.सी, एम.कॉम, एम.ए., एम.बी.ए.और इंजीनियरिंग की शिक्षा
प्राप्त आवेदको ने भी परीक्षा दी। जबकि इस नौकरी के लिए प्राथमिक एवं माध्यमिक
शिक्षा की अनिर्वायता थी। जाहिर है हमारी शिक्षा पध्दति में खोट है और वह महज
डिग्रीधारी निरक्षरों की संख्या बढ़ाने का काम कर रही है। यदि वाकई शिक्षा
गुणवत्तापूर्ण और रोजगारमूलक होती तो उच्च शिक्षित बेरोजगार एक चौथे दर्जे की
नौकरी के लिए आवेदन न कर दें। ऐसे हालातों से बचने के लिए हमें जरुरत है कि हम
शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन कर इसे रोजगारमूलक और लोक-कल्याणकारी बनाएं।
सर विलियम बैवरीज के अनुसार ‘‘संसार में पाँच आर्थिक राक्षस मानव
जाति को ग्रसित करन के लिए तैयार हैं- निर्धनता, अज्ञानता, गन्दगी, बीमारी और बेरोजगारी, परन्तु
इनमें बेरोजगारी सबसे भयंकर है।’’
बेरोजगारी का अर्थ है, काम करने के इच्छुक व्यक्तिया के लिए
काम का अभाव।
दरिद्रता
और बेरोजगारी का तो मानो चोली दामन का साथ है। एक व्यक्ति गरीब है क्योंकि वह
बेरोजगार है तथा वह बेरोजगार है इसलिए गरीब है।
भारत
एक विशाल जनसंख्या वाला राष्ट्र है. जनसंख्या जितनी तेजी से विकास कर रही है, व्यक्तियों का आर्थिक स्तर और रोजगार
के अवसर उतनी ही तेज गति से गिरते जा रहे हैं. भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए
यह संभव नहीं है कि वह इतनी बड़ी जनसंख्या को रोजगार दिलवा सके. रोजगार की तलाश में
दिन-रात एक कर रहे व्यक्तियों की संख्या, साधनों
और उपलब्ध अवसरों की संख्या से कहीं अधिक है. यही कारण है कि आज भी अधिकांश युवा
बेरोजगारी में ही जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हैं.
आज
के प्रतियोगिता के दौर में बेरोजगारी युवाओं के लिए अभिशाप बन गयी है जहां समाज हर
दिन बदल रहा है वहीं युवाओं के लिए इसमें ढ़ल पाना मुस्किल हो रहा है। बेरोजगारी
की समस्या देश के युवाओं पर किस कदर हावी है। लोगों के पास हाथ तो हैं पर काम
नहीं! शिक्षा तो है पर नौकरी नहीं! या यूं कहें कि उनकी शिक्षा के अनुरूप उन्हें
काम नहीं मिल पा रहा है।
बेरोजगारी
की समस्या केवल विकासशील देशों में ही नहीं हैं। बल्कि अमेरिका, रुस, इंगलैंड आदि जैसे विकशित देश भी बेरोजगारी की समस्या बनी हुई है।
लेकिन भारत में बेरोजगारी की समस्या युवाओं को दानव की तरह खाए जा रही है
बेरोजगारी की समस्या के कई कारण हो सकते है। जैसे- बढ़ती जनसख्या, शिक्षा का प्रैक्टिकल न होना, सरकार द्दारा कोई ठोस कदम न उठाना, कृषि में नई तकनीकी का न होना जो लोग
रोजगार से जुड़े हैं उनकी भी हालत सही नहीं, उनको
भी कभी काम मिलता हैं तो कभी नहीं। काम की तलाश करते-करते एक दिन युवाओं का
आत्मविश्वास टूट जाता हैं और ऐसे युवा अपराध की दुनियां में चले जाते हैं यहाँ पर जरूरत है कि सरकार द्दारा सुनियोजित
एवं दृण कदम उठाये जाये।
एक नौजवान जब पढ़ाई करता है, अपने क्षेत्र में विशेष ज्ञान प्राप्त
करता है फिर नौकरी के लिए भटकता फिरता है और जब उसके हाथ केवल निराशा ही लगती है
तब उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता हैI ऐसे
ही कई बेरोजगार नवयुवक गलत रास्ते अपनाने लगते हैं, बुरी आदतों का शिकार बनते हैं और समाज के लिए समस्याएँ उत्पन्न करते
हैंI विचार किया जाये तो मुख्य रूप से
गाँवों से लोग बड़ी संख्या में शहरों में आना, दूषित
शिक्षा प्रणाली, बढ़ती जनसंख्या जैसे कारण इस समस्या के
मूल में दिखाई देते हैंI अतः बेरोजगारी कि समस्या को दूर करने
के लिए हमें इन कारणों से निपटना होगाI
बढ़ती
बेरोजगारी की समस्या सीधे रूप से भ्रष्टाचार से जुड़ी है. भ्रष्टाचार जितनी तेजी से
फल-फूल रहा है, रोजगार की मात्रा कम होती जा रही है.
सरकार ग्रामीण इलाकों में लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए रोजगार संबंधित
विभिन्न योजनाएं चला रही है, सरकारी
और निजी संस्थानों में भर्ती को पारदर्शी बनाने की कोशिश कर रही है. लेकिन वास्तव
में यह सभी प्रयास खोखले और भ्रम पैदा करने वाले हैं.
कृषि
का समुचित विकास आवश्यक हैI
शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करके उसे
व्य्वसाय से जोड़ा जाये, जनसंख्या नियंत्रण के और सजग प्रयास
हों, साथ ही यह भी आवश्यक है कि संपूर्ण
राष्ट्र के लिए एक व्यापक रोजगार के नये अवसर उपलब्ध करवाए जाएँI सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में अनेक उपाय
किये जा रहे हैं किंतु और अधिक सजग प्रयासों कि आवश्यकता हैI
व्यवसायिक शिक्षा प्रणाली को बढावा देना अतिआवश्यक है - ताकि इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करके नवयुवक
अपने स्वयं के व्यवसाय आरम्भ कर सके तथा उनकी निर्भरता सरकारी
कार्यालयों पर कम हो सके. क्योंकि सरकारी दफ्तरों मे भी सीमित संख्या रहती है और
इस तरह अनेकों नवयुवकों का बेरोजगार रह जाना स्वाभाविक है.
शारीरिक श्रम की तरफ नवयुवकों को प्रोत्साहित करना अति आवश्यक है - हाथ में ऊँची डिग्री लेकर नवयुवक
शारीरिक श्रम नहीं करना चाहते तथा इन्हें हीन भावना से देखते है. इस दृष्टीकोण के
कारण वे उन सभी कामों की तरफ से मुख मोड़ लेते
है जो शारीरिक श्रम से जुड़े होते है. इससे भी बेरोजगारों की संख्या में
वृद्धि होती है, क्योंकि सरकारी नौकरियां सीमित होती है और सबको तो मिलना मुश्किल है.
अतः आवश्यकता है कुछ न कुछ वैकल्पिक व्यवसाय करने की
रोजगार परक शिक्षा
रोजगार
परक शिक्षा देश में बेरोजगारी को दूर करने के लिए और उद्योग की जरूरत के मुताबिक
कुशल श्रमिक तैयार करने के लिए बहुत ही जरूरी है. लेकिन रोजगार परक शिक्षा की
बुनियाद तभी बेहतर ढंग से तैयार होती है जब स्कूली शिक्षा के सभी स्तर में सुधार
हो. चाहे वो प्राथमिक शिक्षा हो, माध्यमिक
हो या फिर उच्च शिक्षा. स्कूली शिक्षा के दौरान ही बच्चों के रुझान का पता चलता
है. इसलिए स्कूली शिक्षा के दौरान ही कौशल
विकास से जुड़े विभिन्न आयामों पर काम किये जाने की जरूरत है
दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली
वर्तमान
दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली भी विद्यार्थियों को रचनात्मक कार्यौं में लगाने, स्वावलम्बी बनाने तथा आत्मविश्वास पैदा
करने में असफल रही है। फलतः आज पढ़ा लिखा व्यक्ति रोजगार के लिए मारा-मारा फिर रहा
है। भारत में माँग व प्रशिक्षण की सुविधाओं में समन्वय के अभाव में कई विभागों में
प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी है। वर्तमान शिक्षा पद्धति को रोजगारोन्मुख बनाए जाने
की आवश्यकता है। यदि माध्यमिक शिक्षा के बाद औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं तथा अन्य
तकनीकी संस्थाओं की अधिकाधिक स्थापना कर युवकों को प्रशिक्षित कर वित्त, कच्च माल व विपणन की सुविधा देकर
स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित किया जाय तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता। साथ
ही प्राकृतिक साधना का सर्वेक्षण, गाँवों
में रोजगारोन्मुख
नियोजन, युवा शक्ति का उपयोग किया जाना चाहिए।
देश
का शिक्षित एवं बेरोजगार युवक अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति हड़तालें करने, बसें जलाने एवं राष्ट्रीय सम्पत्ति को
क्षति पहुँचाने में कर रहा है वहीं कई बार वह कुंठित हो आत्महत्या जैसा भयंकर
कुकृत्य कर बैठता है। कहते हैं ”खाली
दिमाग शैतान का घर“ कहावत को हमारे युवक चरितार्थ कर रहे
हैं। सच भी है मरता क्या नहीं करता, आवश्यकता
सब पापों की जड़ है, अतः वह चोरी, डकैती, अपहरण, तस्करी, आतंकवादी गतिविधियों में सक्रिय हो रहा है। देश की जनशक्ति का
सदुपयोग नहीं हो रहा है, फलतः आर्थिक ढाँचा चरमरा रहा है। भारत
जैसे विकासशील देश को अपनी बेरोजगारी के उन्मूलन हेतु सर्वप्रथम जनसंख्या
नियन्त्रण कार्यक्रम को हाथ में लेकर परिवार नियोजन, महिला शिक्षा,
शिशु स्वास्थ्य के कार्य अपनाने होंगे।
कृषि विकास के लिए शोध गति से विस्तार एवं कृषि में उन्नत बीजों को अपनाना होगा।
नियोजन की प्रभावी नीति, पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की
स्थापना, कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास किया जाना चाहिए तथा उन्हें कच्चा माल, औजार, लाइस स व अन्य आधार भूत सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए। सरकार द्वारा
विद्युत आपूर्ति, परिवहन सम्बन्धी अड़चन दर करने का
प्रयत्न किया जाय।
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