9/2/14

डर के आगे जीत है

डर सबको लगता है। यह बहुत स्वाभाविक भी है लेकिन इस डर से पार पाना भी हमारे लिए संभव है। जिसने इस डर से मुक्ति पा ली वह विजयी है क्योंकि डर के आगे ही जीत है।

डर सुनने में तो छोटा-सा लगता पर जब लगता है, तो बहुत लगता है, डर सबको लगता है, गला सबका सूखता है और रास्ते सिर्फ दो ही होते हैं, भि‍ड़ो या भागो। आज भागे तो हमेशा भागते रहोगे और भिड़े तो जीतोगे क्योंकि 'डर के आगे जीत है'

हम इंसान ने डर को कदम दर कदम महसूस किया है। कभी नौकरी छूटने का डर, तो कभी अपनों के बिछड़ने का डर। जिदंगी के हर पल में इस अनजाने डर से हम पीछा नहीं छुड़ा पाते हैं। भविष्य में क्या होने वाला यह किसी को पता नहीं होता, फिर भी उसकी चिंता हमें सताती रहती है। नतीजा तनाव और बीमार शरीर। अध्यात्म के जरिए हम इस डर रूपी रोग से पीछा छुड़ा सकते हैं और डर पर जीत हासिल कर एक नई ऊर्जावान और खुशहाल जिदंगी की शुरूआत कर सकते हैं।

अकारण डरता है मनुष्य,डर को दूर भगाएं:
इस संसार में रोजाना हजारों ऎसी गैर जरूरी समस्याएं हैं, जिन्हें लेकर इंसान डरता है। मगर यह सभी ऎसी समस्याएं हैं, जिनके बारे में सोचने की भी जरूरत नहीं है। आपको डर है कि आप जिस महिला से प्रेम करते हैं, वह आपको छोड़कर चली जाएगी। अगर ऎसा होता भी है, तो क्या होगा। उससे पहले भी तो आप खुशहाल जीवन जी रहे थे और मुझे विश्वास है कि उसके बाद भी आप अच्छी जिंदगी बिता सकते हैं। क्योंकि भगवान की बनाई गई चीजों में इंसान ही ऎसे प्राणी हैं, जो किसी भी तरह की परिस्थिति में जीना सीख लेते हैं। लोगों को डर लगता है कि दुनिया खत्म हो जाएगी, तो क्या होगा। अगर ऎसा होता है, तो डरने की क्या बात है क्योंकि हम भी तो दुनिया के साथ रूखसत हो जाएंगे। फिर डरना काहे को।

डर हमेशा भविष्य की चिंता को लेकर सताता है। अगले पल क्या होगा। डर का वर्तमान से कोई लेना-देना नहीं है। जब भविष्य के बारे में किसी को कुछ पता ही नहीं है, तो भला उससे क्यों डरा जाए। देखा जाए तो आप उस समस्या से जूझ रहे हैं, जो वास्तव में है ही नहीं और इसलिए जो चीज है ही नहीं, आप उससे कैसे उबर सकते हैं। यह एक तरह से मूर्खता का बेहतरीन उदारहण है।

किसी न किसी स्टेज में हम में से सभी ने डर का अनुभव किया है। डर एक बेहद सामान्य प्रक्रिया है। हर वह प्रजाति, जिसके पास दिमाग है, उसे यह समस्या होती है। मानव के भीतर भी डर का मूल कारण सोच है, मसलन खोने का डर, चोर को पकड़े जाने का डर और न जाने कितने डर। जब भविष्य का वर्तमान में कोई अस्तित्व नहीं है, तो डर का भी नहीं होना चाहिए।

यह सोच ही बेकार है कि आपके अंतर्मन में डर ने घर किया हुआ है जबकि ऎसा कुछ है नहीं। आपके शरीर की भीतरी गहराइयों में डर, वासना, जलन, गुस्सा और शर्म जैसी नकारात्मक चीजों के लिए जगह ही नहीं है। अंतर्मन में है तो सिर्फ और सिर्फ परम आनंद, जिसका अनुभव किया जाना बहुत जरूरी है। वहां आपको खुशियों और आनंद का सागर मिलेगा। जब इन झूठी बातों को सच मानने लगता है, तो इन भावनाओं से पार पाना मुश्किल हो जाता है। समस्याएं यहीं से शुरू होती हैं, जब हम यह मान लेते हैं कि यही सच्चाई है कि हमारे भीतरी मन में डर, दुख और दुविधा भर गई है। फिर यह समस्याएं स्थायी हो जाती हैं, जिससे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है।

डर को डराओ
कहते हैं कि अपना दुख सबसे बड़ा और ज्यादा लगता है। अकसर दुख और परेशानियां हमें इतना तोड़ती हैं कि गता है कि कोई रास्ता ही नहीं बचा। ये परेशानियां कई तरह की हो सकती हैं, जैसे एकाएक किसी प्रिय जन की मृत्यु, किसी दोस्त का बिछुड़ जाना, व्यापार में घाटा, नौकरी का चे जाना, किसी संबंध का टूट जाना, निवेश में नुकसान। ऐसी न जाने कितनी बातें हैं, जो कई बार हमारे अंदर गहरी निराशा का संचार करती हैं। काम में मन नहीं गता, न ही किसी के समझाने का असर पड़ता है। गता है सब छोड़कर कहीं दूर चले जाएं।

आप आगे, डर पीछे
दूसरे हमसे ज्यादा खुश हैं और सारी परेशानियां हमारी ही तकदीर में क्यों लिख दी गयी हैं, ये सोचते ही हम मुश्किलों का सामना करने के बजाय उनसे भागने लगते हैं। यह एक तरह से अपनी स्थिति से डरना है। जिससे लड़ नहीं पा रहे, उससे दूर भाग जाना है।  वैसे, हम चाहें भी तो असफलता के डर से दूर नहीं भाग सकते, क्योंकि डर कहीं बाहर से नहीं आता, वह हमारे मन के अंदर ही बैठा रहता है। जैसे ही हम किसी चीज से भागना शुरू करते हैं, वह हमें और डराती है और पीछा करती है। इसीलिए पुराने बुजुर्ग जो पहले कहते थे, वे ही बातें आज के बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिक कहते हैं- डर से भागो मत, उसका सामना करो। डर से डरकर जितना भागोगे, डर उतना ही पीछे भागेगा। असफलता से घबराओ नहीं।

खुद को तैयार करें
किसी नौकरी में सफल नहीं हुए तो आखिर क्या वजह रही होगी? अकसर अपनी असफलता, परेशानियों के लिए हम दूसरों को जिम्मेदार मान लेते हैं, जबकि कुछ जिम्मेदारियां तो हमारी भी होती होंगी। कोई हमसे सिर्फ इसलिए आगे निकल गया कि उसने बॉस की चापलूसी की होगी या उसने कुछ अच्छा काम करके भी दिखाया होगा। यह जानते हुए कि मेहनत का कभी कोई विकल्प नहीं होता, हम इस बात को भूल जाते हैं। हमारे भीतर के डर हमें चीजों को टालने के लिए उकसाते हैं। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि यह नहीं जानते कि जीवन में करना क्या चाहते हैं? एक बार खुद को तैयार करें। जो काम कल पर छोड़ा था, जिससे डर रहे थे, उसे उसी वक्त कर डालें। यूं भी जो काम कल पर छोड़ा जाता है, वह दूसरे कई कामों को अपने साथ लेकर आता है। तब गता है कि काश, कल ही इसे पूरा कर लेते। तभी कबीर ने कहा थाकाल करे सो आज कर, आज करे सो अब।

विद्यार्थि जीवन में डर का सामना डट कर करे
जीवन में किसी भी डर का सामना करने पर आगे जीत है। लेकिन इस जीत के मायने हर युवा के लिए अलग-अलग हैं। कोई पढ़ाई के डर को दूर कर अच्छे नंबर पाना चाहता है, तो कोई युवा बेहतर डिग्री के बाद अच्छी नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू के डर पर जीत पाकर आगे बढ़ना चाहता है।

जो युवा सिविल सर्विसेज में चुने जाते हैं, अगर उनके साक्षात्कार पढ़ें तो पाएंगे कि उन सबमें एक बात समान होती है, वह है लक्ष्य के प्रति समर्पण और पढ़ाई के लंबे घंटों से न घबराना। जो विषय उन्हें डराता है, वे उसे कल पढ़ेंगे कहकर छोड़ते नहीं, बल्कि उसे और अधिक पढ़ते हैं। और कई बार यह होता है कि जिससे सबसे ज्यादा डर रहे थे उसी में सबसे अधिक नंबर आते हैं।

किसी भी कार्य की शुरुआत करने से पहले हर इंसान को डर लगता है। लेकिन युवाओं में एक्जाम के समय ठीक ढंग से पढ़ाई न करने की वजह से पास न होने का डर कुछ ज्यादा ही होता है। लेकिन किसी तरह से दिन-रात पढ़ाई करने पर हम उस डर पर जीत हासिल करने में कामयाब होकर पास हो जाते हैं। मुझे लगता है कि हमें डर से अधिक नहीं डरना चाहिए। उसका सामना कर उस पर जीत हासिल करना चाहिए।

किसी भी स्टूडेंट के लिए डिग्री पूरी करने के बाद एक अच्छी नौकरी पाने का सपना होता है। लेकिन किसी कंपनी में पहुँचने के लिए साक्षात्कार में पास न होना उसके डर का सबसे बड़ा कारण होता। कई स्टूडेंट अपने को अपडेट रखकर और पर्सनालिटी डेवलपमेंट के सहारे इस डर पर जीत पाकर आगे बढ़ जाते हैं।

यूं भगाएं डर को
स्वागत करें: इससे पहले कि डर आपको शर्मीला बना दे, अपने डर को स्वीकारें। उसे अपने शरीर में महसूस करें। उस पर बात करें। उसको कोई नाम देकर कहें कि डर आपका स्वागत है।
याद  करें: इससे पहले कि अपनी अक्षमताओं का डर आपको भीतर से कमजोर और अकेला कर दे, अपनी पिछली उपलब्धियों के बारे में सोचें। अपनी क्षमताओं को पहचानें और काम को करना शुरू कर दें।
अपने काम को महत्वपूर्ण बनाएं: कई बार किसी काम को इसलिए नहीं करते, क्योंकि वह आपकी नजर में उपयोगी या रुचिकर नहीं होता। ऐसी स्थिति में काम की उपयोगिता समझें। यह समझें कि मंजिल तक पहुंचने के लिए वह काम भी जरूरी है।
सर्वश्रेष्ठ का इंतजार नहीं: किसी आदर्श स्थिति का इंतजार न करें। कई बार काम को करना ही उसमें आपकी प्रतिभा को बढ़ाता है। अपनी आज की स्किल्स और क्षमताओं पर भरोसा रखें और काम की शुरुआत कर दें।
गुस्सा: घर या बाहर किसी पर गुस्सा करने से पहले एक बार खुद से ये प्रश्न पूछें, क्या मेरी भी गलती है? क्या गुस्सा करने से कोई हल निकलेगा? क्या समस्या के समाधान के लिए भी कुछ कर रहे हैं? क्या इस स्थिति को हंस कर टाला जा सकता है? क्या आपकी ऐसी प्रतिक्रिया देना जरूरी है?
ध्यान: इन समस्याओं से उबरने के लिए मेडिटेशन या ध्यान सर्वश्रेष्ठ उपाय है, जिससे धीरे-धीरे चित्त शांत होता जाता है। शांति से बैठिए और दिमाग को मेडिटेशन के जरिए शांत करने की कोशिश कीजिए। या फिर आध्यात्मिक संगीत भी सुना जा सकता है। इस तरह की परिस्थिति से निबटने के लिए योग क्रिया भी बहुत सहायक हैं। प्राणायाम व अन्य योग क्रियाएं और व्यायाम भी इस स्थिति से निबटने में कारगर हैं। डर को डराने के लिए लंबी सांस लेना भी अच्छा माना गया है। खुद पर विश्वास करना सीखें।


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