6/24/13

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हालीवुड की महिमा
ये है हालीवुड की महिमा !
ये है इस कलयुग की गीता !!
इस युग का कुरान  बाईबल !
जीवन का दर्शन है ये अब !!

लोग सीखते हैं अब इससे !
कैसे है जीवन को जीना !!
नेता हों या जन साधारण !
सब में है अब इसकी लीला !!

नए विचारों को ये लाता !
पाप: पुण्य है ये समझाता !!
मन में नयी उर्जा भरकर !
दुर्गम काम है ये करवाता !!

कामुकता है नयी संस्कृति !
बेशर्मी है जीवन शैली !!
लोलुपता है धर्म आज अब !
बिकनी है अबतो पहनावा !!

सुन्दर महिलाओं के तन से !
कपड़े गायब ये करवाता !!
पूरे कपड़े जो भी पहने !
बदसूरत है वो कहलाता !!


नंगापन है हमे सिखाता !
बेशर्मी को दी परिभाषा !!
कैसे किसका मर्डर है करना !
नए तरीके है सिखलाता !!

पॉलीगैमी या समलिंगी !
कैसे बनना है समझाता !!
भड़वों का यूँ राजा बनकर !
कैसे है हमको इतराना !!

है ये पंचतंत्र से अद्भुत !
इसके हैं डायलाग प्रसिद्ध !!
है प्रभाव इसका अतुलित !
रहे कोई अब संतुलित !!

पांच साल के बच्चे से यूँ  !
कन्या मित्र को पाने खातिर !!
बच्चे से गोली चलवाकर !
मॉस मर्डर है ये करवाता !!

नाक कटा के मन बह्लाके !
कैसे करें कैरेक्टर ढीला !!
मात-पिता और बड़ों के सन्मुख !
दें कैसे गर्लफ्रेंड को चूमा !!

कहते थे व्यभिचार जिसे हम !
अब एडवांस है वो कहलाता !!
औरों की बीवी संग सोना !
ये अब है फैशन कहलाता !!

शांति पूर्ण जीवन हो यदि तो !
बोरिंग लाइफ हैं अब कहते !!
हो अशांति और अति तनाव तो !
अडवेंचर है उसको कहते !!

करे जो सेवा मात- पिता की !
उसको उल्लू हैं अब कहते !!
केवल नयी गर्लफ्रेंड को अब !
अपनी फैमिली हैं हम कहते !!

नया प्रिंसिपल लिविन रिलेशन !
 एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर !!
हर एक रात में टेस्ट बदलना !
सुखमय जीवन की परभाषा !!

कभी जो काम बड़े थे मुश्किल !
सोच नहीं पाते थे जो हम !!
आज सुलभ हैं वो सब कितने !
हालीवुड ने दिए ये सपने !!

नग्न चित्रपट
आज बंट रहा नग्न चित्र है,
हो सीरियल या फिल्मे हों,
डर्टी-पिक्चर, देसी बोयज़,
हो चाहे कॉमेडी सर्कस,

टीरपी के हवसी भूखे,
ये सोचे बस पैसों की,
नहीं इन्हें है कोई परवा,
बच्चो की या बूढों की,

खुली मानसिकता हैं कहते,
है ये बिलकुल नंगा पन,
मनो रोग से पीड़ित हैं,
ये डाईरेक्टरप्रोड्यूसर सब,

पांच साल के बच्चो को,
कामुकता का पाठ पढ़ते हैं,
नन्हे शिशु के निर्मल मन पर,
गन्दी आकृति भरते हैं,

बचपन में जो कुंठित मन हो,
व्यभिचारी वो बनता है,
मन में जब है भरी वासना,
बलात्कारी वो बनता है,

सुप्त हुआ प्रसारण मंत्रालय,
नहीं लगता रोक कोई,
"" स्तर की फ़िल्में भी,
"प्राइम टाइम" में आती हैं,

इन्हें नहीं है कोई परवा,
बच्चों के संसकारों की,
बिगड़ रहा है कोमल मन,
ऐसे व्यभिचारी छवियों से,






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