12/29/11

सिविल इंजीनियरिंग


                   सिविल इंजीनियरिंग
देश आज प्रगति के पथ पर सरपट दौड़ रहा है। बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों में भी निर्माण कार्य में काफी तेजी आई है। साथ ही रियल एस्टेट में भी कारोबारी चमक खूब है। यही कारण है कि इंजीनियरिंग फील्ड में कदम रखने वाले विद्यार्थी एक बार फिर से सिविल इंजीनियरिंग की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। पर्याप्त संख्या में जॉब की उपलब्धता ने भी सिविल इंजीनियरिंग की लोकप्रियता में बढ़ोतरी की है।

कार्यक्षेत्र का स्वरूप
जब भी निर्माण संबंधी कोई योजना बनती है तो इसके लिए पहले प्लानिंग, डिजाइनिंग स्ट्रक्चरल कार्यों से लेकर रिसर्च तक का कार्य किया जाता है। ये कार्य किसी सामान्य व्यक्ति से कराकर प्रोफेशनल्स से ही कराया जाता है, जो सिविल इंजीनियरों की श्रेणी में आते हैं तथा काम की यह पूरी पद्धति सिविल इंजीनियरिंग कहलाती है। इसके अंतर्गत प्रशिक्षित लोगों को किसी प्रोजेक्ट, कंस्ट्रक्शन या मेन्टेनेंस के ऊपर कार्य करना होता है। किसी भी प्रोजेक्ट एवं परियोजना की लागत, कार्य-सूची, क्लाइंट्स एवं कॉन्ट्रैक्टरों से संपर्क आदि से संबंधित सभी कार्य सिविल इंजीनियरों द्वारा किए जाते हैं।

शैक्षणिक योग्यता
सिविल इंजीनियर बनने के लिए पहले विद्यार्थी को बीटेक या बीई की डिग्री हासिल करनी होगी। यह 12वीं (भौतिकी, रसायन शास्त्र गणित) या समकक्ष परीक्षा में उच्च रैंक प्राप्त करने के बाद ही संभव हो पाता है। इस फील्ड से संबंधित एमटेक जैसे पीजी कोर्स के लिए सिविल इंजीनियरिंग, कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग आदि में बैचलर डिग्री आवश्यक है। इंट्रीग्रेटेड कोर्स करने के लिए 12वीं (पीसीएम) जरूरी है। बारहवीं के बाद पॉलीटेक्निक के जरिए भी सिविल इंजीनियरिंग का कोर्स किया जा सकता है, जो डिप्लोमा श्रेणी में आता है।

प्रवेश प्रक्रिया का स्वरूप
सिविल इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए दो तरह की परीक्षाओं का आयोजन होता है- एक पॉलीटेक्निक तथा दूसरा जेईई (आईआईटी में प्रवेश के लिए), एआईईईई आदि। एंट्रेंस टेस्ट में सफल होने के बाद ही पाठ्यक्रम में दाखिला मिलता है। जेईई और एआईईईई जैसी परीक्षाओं में सफल होने के बाद सिविल इंजीनियरिंग के विकल्प का चयन किया जा सकता है। विभिन्न राज्यों द्वारा भी अपनी-अपनी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। कुछ संस्थान स्वतंत्र रूप से अपने एडमिशन सिस्टम को अपनाते हैं। इन परीक्षाओं में मुख्य रूप से फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स में अभ्यर्थी के ज्ञान की जांच की जाती है।

व्यक्तिगत गुण
सिविल इंजीनियर की नौकरी काफी जिम्मेदारी भरी होती है, क्योंकि इसका संबंध सिर्फ किसी निर्माण, बल्कि उसकी सुरक्षा से भी होता है। नए प्रोजेक्ट में इंजीनियर को विभिन्न चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए। इसके लिए उसे बहुत ही एनालिटिकल एवं प्रैक्टिकल माइंड का होना चाहिए। टीम वर्क तो जरूरी है ही। उसमें दबाव में बेहतर करने और समस्या का तत्काल हल निकालने का गुण भी होना चाहिए। इसके अलावा तकनीकी ज्ञान, कंप्यूटर के प्रमुख सॉफ्टवेयरों की जानकारी, बिल्डिंग एवं उसके सुरक्षा संबंधी अहम उपाय, ड्राइंग, लोकल अथॉरिटी एवं सरकारी संगठनों से बेहतर तालमेल, प्लानिंग आदि मामलों में भी ज्ञान दुरुस्त होना चाहिए।

यहां मिलेंगे मौके
एक सिविल इंजीनियर को सरकारी विभागों, निजी क्षेत्र के उद्योगों, शोध कार्यों तथा शैक्षिक संस्थानों में काम करने के मौके मिलते हैं। अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा इसमें संभावनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं। इसका प्रमुख कारण रियल एस्टेट में आई क्रांति ही है। बिल्डिंग, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, मॉल, होटल आदि के निर्माण में काफी तेजी आई है। इसके तहत रिपेयर, मेन्टेनेंस से लेकर कंस्ट्रक्शन तक का कार्य शामिल हैं। बीई के बाद रोड प्रोजेक्ट और कन्सल्टेंसी फर्म के अलावा क्वॉलिटी टेस्टिंग लेबोरेटरी में भी मौके मिलते हैं। केंद्र अथवा प्रदेश सरकार द्वारा जॉब संबंधी रिक्तियां समय-समय पर निकलती रहती हैं। अनुभव बढ़ने के बाद छात्र चाहें तो अपनी कंसल्टेंसी सर्विस खोल सकते हैं। टीचिंग का विकल्प भी है।

वेतनमान
यदि सरकारी नौकरी की बात करें तो निर्धारित वेतनमान के अनुसार सैलरी
मिलती है। प्राइवेट कंपनियों में योग्यता और अनुभव के अनुसार वेतन का निर्धारण होता है। कंपनियों का ब्रांड लेवल भी वेतन को निर्धारित करने में प्रमुख भूमिका निभाता है। प्रतिभावान विद्यार्थी कुछ सालों में ही 50-60 हजार रुपये के वेतनमान तक पहुंच सकते हैं। यदि विदेश में काम करने का मौका मिलता है तो सैलरी में और इजाफा होता है। 


No comments:

Post a Comment