कैंसर
कैंसर रोग
कोशिकाओं में पैदा होने वाली अनेक संबंधित बीमारियों के समूह को कैंसर कहते हैं। यह शरीर के कई कोशिकाओं से बना है। सामान्यतः कोशिकाएं बढ़ती और विभाजित होती रहती हैं क्योंकि स्वस्थ शरीर के रख-रखाव के लिए इनकी आवश्यकता होती है। कभी-कभी जब शरीर को कोशिकाओं की आवश्यकता नहीं होती और कोशिकाएं खत्म होने के समय पर खत्म नहीं होती तो नयी कोशिकाएं पैदा हो जाती हैं। यही अतिरिक्त कोशिकाएं एक जाल के रूप में जमा हो जाती हैं जिन्हें ग्रोथ या ट्यूमर कहते हैं। सभी ट्यूमरों से कैंसर नहीं होता है। ट्यूमर हितकर या सुसाध्य हो सकते हैं।
हितकर ट्यूमर कैंसर नहीं होते हैं। उनको प्रायः निकाला जा सकता है और अधिकांश मामलों में ये फिर पैदा नहीं होते हैं। हितकर ट्यूमरों में कोशिकाएं शरीर के अन्य भागों में नहीं फैलती हैं। अति महत्वपूर्ण यह है कि हितकर ट्यूमर जीवन के लिए खतरा नहीं होते हैं।
सुसाध्य ट्यूमर कैंसर होते हैं। सुसाध्य ट्यूमरों में कोशिकाएं असामान्य होती है और नियंत्रण रहित या अव्यवस्थित रूप में विभाजित होती रहती है। कैंसर की कोशिकाएं आक्रामक होकर उनको आस-पास के जाल को खत्म कर देती हैं। कैंसर की कोशिकाएं सुसाध्य ट्यूमर से अलग भी हो सकती हैं और रक्तधारा या लसीका(लिम्फटिक) प्रणाली में प्रवेश कर सकती हैं।
रक्त कोशिकाएं लसीका ट्यूबों के माध्यम से शरीर के संपूर्ण स्नायुजाल में पहुंचायी जाती हैं। रक्तधारा या लसीका प्रणाली से होकर गुजरने से कैंसर अपने स्थल से हटकर शरीर के अन्य भागों में ऩये ट्यूमर को जन्म देता है। कैंसर फैलने की प्रक्रिया ही मेटास्टेसिस कहलाती है।
हितकर ट्यूमर कैंसर नहीं होते हैं। उनको प्रायः निकाला जा सकता है और अधिकांश मामलों में ये फिर पैदा नहीं होते हैं। हितकर ट्यूमरों में कोशिकाएं शरीर के अन्य भागों में नहीं फैलती हैं। अति महत्वपूर्ण यह है कि हितकर ट्यूमर जीवन के लिए खतरा नहीं होते हैं।
सुसाध्य ट्यूमर कैंसर होते हैं। सुसाध्य ट्यूमरों में कोशिकाएं असामान्य होती है और नियंत्रण रहित या अव्यवस्थित रूप में विभाजित होती रहती है। कैंसर की कोशिकाएं आक्रामक होकर उनको आस-पास के जाल को खत्म कर देती हैं। कैंसर की कोशिकाएं सुसाध्य ट्यूमर से अलग भी हो सकती हैं और रक्तधारा या लसीका(लिम्फटिक) प्रणाली में प्रवेश कर सकती हैं।
रक्त कोशिकाएं लसीका ट्यूबों के माध्यम से शरीर के संपूर्ण स्नायुजाल में पहुंचायी जाती हैं। रक्तधारा या लसीका प्रणाली से होकर गुजरने से कैंसर अपने स्थल से हटकर शरीर के अन्य भागों में ऩये ट्यूमर को जन्म देता है। कैंसर फैलने की प्रक्रिया ही मेटास्टेसिस कहलाती है।
कैंसर के कारण
कैंसर जीन्स में ऐसे परिवर्तन के कारण पैदा होता है जिससे कि कोशिकाओं की वृद्धि और समाप्ति नियंत्रित होती है। ये परिवर्तन, तंबाकू के प्रयोग, खुराक, सूरज से उत्पन्न होने वाली अल्ट्रावायलट रेडिएशन के साथ संपर्क या वातावरण के परिणामस्वरूप होते हैं। कुछ कैंसर आनुवांशिक हो सकते हैं और कुछ एचआईवी जैसी जीवाणु के संक्रमण से हो सकते हैं।
कैंसर की रोकथाम
कैंसर होने के खतरे को कम करने के कुछ तरीके इस प्रकार हैं:
· तंबाकू उत्पादों का प्रयोग न करें।
· कम वसा वाला भोजन करें तथा सब्जी, फलों और समूचे अनाजों का उपयोग अधिक करें।
· नियमित व्यायाम करें।
कैंसर के लक्षण
कैंसर से विभिन्न प्रकार के लक्षण पैदा हो सकते हैं। कैंसर के संभावित संकेतों में निम्नलिखित शामिल है:
· वक्ष स्थल या शरीर के किसी अन्य भाग पर नया मोटापापन या पिंड बनना।
· नया तिल बनना या विद्यमान तिल की आकृति में स्पष्ट परिवर्तन दिखाई देना।
· ऐसा घाव जो सूखता न हो।
· परेशान करने वाली खांसी या गले का भारीपन।
· शौच या मूत्र की आदतों में बदलाव।
· कब्ज बने रहना या भोजन निगलने में कठिनाई।
· वजन में भारी बदलाव।
· असामान्य रक्त या अन्य स्राव।
कैंसर के उपचार की प्रक्रिया
कैंसर की चिकित्सा में शल्य चिकित्सा, रेडिएशन थेरेपी, किमोथेरेपी, जीवाणु थेरेपी तथा जैविक थेरेपी शामिल हैं। कैंसर की स्थिति के प्रकार के आधार पर डॉक्टर एक या संयुक्त प्रक्रिया अपना सकता है। बीमारी कितनी फैल चुकी है, रोगी की आयु तथा सामान्य स्वास्थ्य एवं अन्य तत्वों को भी ध्यान में रखना होता है।
कैंसर में दर्द
कैंसर का अर्थ यह नहीं है कि इसमें हमेशा दर्द ही हो। रोगी को दर्द होना या न होना कैंसर के प्रकार, रोग की अवधि तथा रोगी की सहनशक्ति पर निर्भर करता है। अधिकांश मामलों में दर्द तब होता है जब कि कैंसर बढ़ता है और वह हड्डियों, अंगो या स्नायुओं पर दबाव डालता है।
रक्त कैंसर
अधिस्वेद रक्तता (ल्यूकेमिया) रक्त या अस्थि मज्जा (बोन मैरो) का कैंसर है। इसमें रक्त कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने लगती है विशेषकर सफेद रक्त कोशिकाएं।लक्षणः
- अत्यधिक खून बहना।
- अरक्तता (एनीमिआ)।
- बुखार, जड़ाई, रात्रि स्वेद (नाइट स्वेट) और फ्लू जैसे अन्य लक्षण
- कमजोरी और थकान।
- भूख न लगना और/वजन कम होना।
- मसूड़ों में सूजन होना या उनसे खून निकलना।
- तंत्रकीय लक्षण (सिर दर्द)।
- बढ़ा हुआ जिगर और प्लीहा(स्प्लीन)।
- आसानी से खरोंच लगना और अक्सर संक्रमण होना।
- जोड़ों में दर्द।
- सूजा हुआ गलतुंडिका (टांसिल)।
स्तन कैंसर
महिलाओं में स्तन कैंसर आम बात है। महिलाओं में कैंसर से मृत्यु इसका दूसरा कारण है। किसी महिला के जीवनकाल में स्तन कैंसर का अधिकतम औसत 9 में 1 होता है।लक्षण -
- स्तन में पिंड
- स्तनाग्र (निप्पल) से स्राव
- अंदर को धंसी स्तनाग्र
- लाल / सूजा स्तनाग्र
- स्तनों का बढ़ना
- स्तनों का सिकुंड़ना
- स्तनों का सख्त होना
- हड्डी में दर्द
- पीठ में दर्द
- स्तन कैंसर का पारिवारिक इतिहास।
- महिला की आयु बढ़ने के साथ साथ खतरा भी बढ़ता है।
- गर्भाशय कैंसर की कोई पूर्व घटना।
- पूर्व स्तन कैंसर, विशेष परिवर्तन तथा पहले की स्तन की बीमारी।
- आनुवांशिक खराबियां या परिवर्तन (बहुत कम अवसर)।
- 12 वर्ष से कम आयु में मासिक धर्म आरंभ होना।
- 50 वर्ष की आयु के बाद रजोनवृत्ति।
- संतानहीन।
- शराब, अति वसायुक्त भोजन, अधिक रेशेदार भोजन, धूम्रपान, मोटापा और पूर्व में गर्भाशय या कोलोन कैंसर।
स्तन कैंसर का उपचार तीन बातों पर निर्भर करता हैः
- यदि महिला रजोनोवृत हो चुकी हो।
- स्तन कैंसर कितना फैल चुका है।
- स्तन कैंसर की कोशिकाओं का प्रकार।
- स्तन में कैंसर कहां हुआ है।
- लसीका गांठ (लिंफ नोड) में कैंसर किस दर से फैल रहा है।
- स्तन में गहरे मांस पेशियों में कैंसर कितना फैल चुका है।
- दूसरे स्तन में कैंसर कहां तक फैला है।
- अन्य इंद्रियों जैसे हड्डी या मस्तिष्क में कैंसर कहां तक फैला हुआ है।
उपरोक्त बातों पर विचार कर लेने के बाद डॉक्टर निम्नलिखित में से एक निर्णय लेता हैः
- गांठ और स्थानीय कोशिकाओं को निकाल दिया जाए। साथ ही वह यह भी विचार करता है कि रोडिएशन दिया जाए या नहीं।
- पूरे स्तन को ही निकाल दिया जाए।
- हर माह स्वयं स्तनों की परीक्षा करें।
- अपने चिकित्सक द्वारा वार्षिक स्तन परीक्षण।
- पौष्टिक पदार्थ का भोजन।
विभिन्न अंगों में होने वाले कैंसर के लक्षण
1.स्तन कैंसर- महिलाओं में प्राय: रजस्राव होने के बाद 40-50 वर्ष की आयु में स्तन कैंसर होने की अधिक संभावना रहती है। अधिक प्रसव व जिन्होंने बालक को स्तनपान न कराया हो, उन्हें स्तन कैंसर होने की संभावना अधिक रहती है। डिंबग्रथि (ओवरी) से उत्सर्जित हार्मोन भी इस रोग को उत्पन्न कर सकते हैं।
सर्वप्रथम स्तन में छोटी, अचल गांठ आती है। प्राय: प्रारंभ में वेदना नहीं होती किन्तु बाद में कभी-कभी पीड़ा हो भी सकती है। प्रारंभ में बगल की रसग्रंथियां (गिल्टियां) नहीं बढ़ती किन्तु कुछ दिनों के बाद बगल की रस ग्रंथियां फूल जाती है। चुचुक से स्राव भी होता है।
जिस ओर से स्तन में कैंसर की गांठ होती है, उस ओर का चुचुक ऊपर की ओर उठा हुआ दिखाई देता है। चुचुक के चारों ओर का स्तनमंडल भी प्राय: पूर्व की अपेक्षा छोटा दिखाई देता है व स्तन मंडल की त्वचा नारंगी रंग के छिलके की भांति अनियमित ऊबड़-खाबड़ व स्पर्श में कठोर हो जाती है।
2. गर्भाशय का कैंसर :- छोटी उम्र में विवाह, अधिक प्रसव, संसर्गजन्य रोग, रजस्राव के समय मैले-अस्वच्छ वस्त्रों का प्रयोग प्रसव के दौरान गर्भाशय ग्रीवा में यदि किसी तरह का व्रण हो गया हो और वह ठीक होने से पहले ही यदि पुन: गर्भधारण हो जाए तो ऐसी महिलाओं को 40 वर्ष की आयु के बाद गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर होने की संभावना होती है।
रजोनिवृत्ति के बाद मासिक स्राव बंद होने के पश्चात पुन: योनि से रक्तस्राव होने लगता है, साथ ही गंभीर अवस्था में पूरा स्राव भी बहता है और स्राव से दुर्गंध आने लगती है। पैरों व कमर में भी निरंतर वेदना बनी रहती है।
3. रक्त कैंसर (ल्यूकेमिआ) :- एक्सरे और विकिरण प्रणाली से किरणें यदि शरीर के अन्दर गहन प्रवेश कर जाएं तो अस्थियों को प्रभावित करती है, जिससे उसके अन्दर रक्त के कोषाणु भी प्रभावित होते हैं। मुख से रक्तस्राव, जोड़ों व पसलियों में वेदना, ज्वर का निरंतर बहुत दिनो तक बने रहना, आंतों के स्वाभाविक कार्यों में फेरबदल होना (मलबध्दता अथवा अतिसार होना), प्लीहा व लसिका ग्रंथियों के आकार में वृध्दि होना श्वासकष्ट होना आदि इसके प्रमुख लक्षण है।
4. मुख का कैंसर :- तंबाकू सेवन मुख व गले के कैंसर का मुख्य कारण है। भारत देश में मुख के कैंसर के रुग्ण अधिक मिलते हैं। मुख के भीतर कोई गांठ, घाव या व्रण बन जाना, मुख के भीतरी किसी स्थान पर कोई सफेद चिह्न बन जाना, मुख से लार टपकना व दुर्गंध आना, मुंह खोलने में कठिनाई होना, बोलने व निगलने में कठिनाई का अनुभव होना आदि लक्षण होते हैं।
5. फुफ्फुस कैंसर :- सतत खांसी रहना खांसी के साथ खून आना, आवाज में बदलाव आना, श्वास कष्ट होना आदि लक्षण होते हैं।
6. पाचनतंत्र का कैंसर :- आमाशय का कैंसर प्राय: पुरुषों में 40 वर्ष की आयु के बाद होता है। रोगी को पेट में वेदन
दुनिया में सबसे खतरनाक और जानलेवा बिमारियों में से एक कैंसर क्या वास्तव में उतनी खतरनाक है भी या मात्र हौवा है. अगर एक नई शोध पर गौर करें तो पता चलता है कि 9 ज्ञात कैंसरों में से अधिकतर वास्तव में खतरनाक नहीं होते और उनसे बच जाने वाले रोगियों का प्रतिशत मृत्यु को प्राप्त होने वाले रोगियों से कहीं अधिक होता है. इस शोध से पता चला कि स्किन मेलानोमा नामक कैंसर से बच जाने की दर सबसे अधिक होती है और फेफडों के कैंसर से बच जाने की दर सबसे कम.
आनल्स ऑफ ओंकोलोजी नामक जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में स्पैन के 8 अलग अलग प्रांतो के कैंसर से पीडित लोगों का अभ्यास किया गया. यह अभ्यास 1995 से लेकर 1999 तक के आँकडो पर आधारित था और इनका विश्लेषण 2004 तक चला था.
इस अभ्यास की मदद से यह पता चला कि कैंसर वास्तव में कितना खतरनाक होता है और लोगों के बच जाने की उम्मीद कितनी होती है. इस अभ्यास से पता चला कि वास्तव में 9 में से मात्र 1 प्रकार का कैंसर ऐसा होता है जिसे काफी खतरनाक माना जा सकता है और वह है फेफडों का कैंसर. बाकी के सभी कैंसर उतने खतरनाक नहीं होते जितने की माने जाते हैं. उदाहरण देखिए -
स्तन कैंसर - महिलाओं को होने वाला यह सबसे आम कैंसर है. परंतु इससे बच जाने की दर काफी अधिक है. करीब 83% महिलाएँ स्तन कैंसर से पीडित होने के 5 वर्ष बाद इससे मुक्त हो जाती हैं.
कोलोरेक्टल कैंसर - यह कैंसर पुरूष और महिला दोनों को हो सकता है. इससे बच जाने की दर 50 से 55% तक होती है.
प्रोस्टेट कैंसर - यह कैंसर आम तौर पर पुरूषों विशेष रूप से युवकों को होता है. इससे बच जाने की दर 76% तक होती है.
गर्भाशय का कैंसर - महिलाओं को होने वाले इस प्रकार के कैंसर से बच जाने की दर भी काफी अधिक है, परंतु इस पर उम्र का काफी असर पडता है. 15 से 44 आयुवर्ग की महिलाओं को यदि यह कैंसर हो जाता है तो उनके बचने की सम्भावना 70% तक होती है परंतु 74 वर्ष या उससे अधिक उम्र की महिला के बचने की सम्भावना मात्र 19% होती है.
टेस्टिक्यूलर कैंसर - यह एक ऐसा कैंसर है जो कम लोगों को ही होता है. इससे बच जाने की सम्भावना भी 95% तक होती है.
होजकिंस लायफोमा कैंसर - यदि यह कैंसर युवकों को होता है तो बचने की सम्भावना 92% तक होती है परंतु बडी उम्र के लोगों के बचने की सम्भावना 50% तक ही होती है.
चमडी का कैंसर - इस कैंसर से बच जाने की सम्भावना 85 से 90% तक होती है.
फेफडों का कैंसर - परंतु इस कैंसर से ग्रस्त लोगों के बचने की सम्भावना काफी कम होती है. अभ्यास के अनुसार मात्र 10% लोग ही इस कैंसर से बच पाते हैं.
आनल्स ऑफ ओंकोलोजी नामक जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में स्पैन के 8 अलग अलग प्रांतो के कैंसर से पीडित लोगों का अभ्यास किया गया. यह अभ्यास 1995 से लेकर 1999 तक के आँकडो पर आधारित था और इनका विश्लेषण 2004 तक चला था.
इस अभ्यास की मदद से यह पता चला कि कैंसर वास्तव में कितना खतरनाक होता है और लोगों के बच जाने की उम्मीद कितनी होती है. इस अभ्यास से पता चला कि वास्तव में 9 में से मात्र 1 प्रकार का कैंसर ऐसा होता है जिसे काफी खतरनाक माना जा सकता है और वह है फेफडों का कैंसर. बाकी के सभी कैंसर उतने खतरनाक नहीं होते जितने की माने जाते हैं. उदाहरण देखिए -
स्तन कैंसर - महिलाओं को होने वाला यह सबसे आम कैंसर है. परंतु इससे बच जाने की दर काफी अधिक है. करीब 83% महिलाएँ स्तन कैंसर से पीडित होने के 5 वर्ष बाद इससे मुक्त हो जाती हैं.
कोलोरेक्टल कैंसर - यह कैंसर पुरूष और महिला दोनों को हो सकता है. इससे बच जाने की दर 50 से 55% तक होती है.
प्रोस्टेट कैंसर - यह कैंसर आम तौर पर पुरूषों विशेष रूप से युवकों को होता है. इससे बच जाने की दर 76% तक होती है.
गर्भाशय का कैंसर - महिलाओं को होने वाले इस प्रकार के कैंसर से बच जाने की दर भी काफी अधिक है, परंतु इस पर उम्र का काफी असर पडता है. 15 से 44 आयुवर्ग की महिलाओं को यदि यह कैंसर हो जाता है तो उनके बचने की सम्भावना 70% तक होती है परंतु 74 वर्ष या उससे अधिक उम्र की महिला के बचने की सम्भावना मात्र 19% होती है.
टेस्टिक्यूलर कैंसर - यह एक ऐसा कैंसर है जो कम लोगों को ही होता है. इससे बच जाने की सम्भावना भी 95% तक होती है.
होजकिंस लायफोमा कैंसर - यदि यह कैंसर युवकों को होता है तो बचने की सम्भावना 92% तक होती है परंतु बडी उम्र के लोगों के बचने की सम्भावना 50% तक ही होती है.
चमडी का कैंसर - इस कैंसर से बच जाने की सम्भावना 85 से 90% तक होती है.
फेफडों का कैंसर - परंतु इस कैंसर से ग्रस्त लोगों के बचने की सम्भावना काफी कम होती है. अभ्यास के अनुसार मात्र 10% लोग ही इस कैंसर से बच पाते हैं.
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