विश्वास: जानकारी + अनुभव + तर्क (हो सकता है) = 'मुझे लगता है'।
आस्था: भावना + समर्पण + पूर्ण निश्चय (संशय का अभाव) = 'यह निश्चित है'।
आस्था, विश्वास का ही एक गहरा और परिपक्व रूप है, जहाँ विश्वास, आस्था में बदल जाता है जब वह तर्क और संशय से ऊपर उठकर पूर्ण निश्चय और समर्पण में बदल जाता है.
Belief (बिलीफ) (विश्वास/धारणा/मान्यता)
किसी बात को सच मानना, एक विचार या धारणा जिसे हम स्वीकार करते हैं, जो तर्क या अनुभव पर आधारित हो सकती है और नई जानकारी मिलने पर बदल सकती है।
उदाहरण:
"मुझे विश्वास है कि कल बारिश होगी।" (यह एक विचार है जो मौसम के आधार पर बदल सकता है)।
विश्वास (Vishwas), धारणा (Dhaarana), मत (Mat), यकीन (Yakeen)।
Faith (फेथ) (आस्था/श्रद्धा/अटूट विश्वास)
यह विश्वास से गहरा है; यह किसी व्यक्ति, ईश्वर या सिद्धांत में पूर्ण भरोसा और समर्पण है, जिसके लिए कार्य (कर्म) की आवश्यकता होती है और जो संदेहों के बावजूद कायम रहता है।
उदाहरण: "ईश्वर में आस्था रखना।" (यह एक गहरा भरोसा है जो कर्मों को जन्म देता है)।
आस्था (Aastha), श्रद्धा (Shraddha)।
मुख्य अंतर (Key Difference)
Belief (विश्वास):
जानकारी पर आधारित है और बदल सकता है; यह 'मानना' है।
Faith (आस्था):
भरोसे और कार्य (कर्म) पर आधारित है; यह 'जीना' है, जो संदेह के बावजूद दृढ़ रहता है। आस्था विश्वास को जन्म दे सकती है, लेकिन विश्वास हमेशा आस्था नहीं होता।
श्रद्धा और विश्वास जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता की कुंजी हैं। जब हम किसी कार्य में पूरी श्रद्धा और विश्वास रखते हैं, तो हम किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम होते हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
एक बार एक गांव में सूखा पड़ा और पूरा गांव मंदिर में भगवान से बारिश की प्रार्थना करने के लिए इकट्ठा हुआ। भीड़ में एक छोटा बच्चा छाता लेकर गया जबकि बाकी सब लोग बिना छाते के गए। लोगों ने छाता साथ लेकर जाने वाले बच्चे से कारण पूछा, तो बच्चे ने निर्मल मन से बताया, ‘मैं छाता इसलिए लेकर आया हूं क्योंकि जब हमारी प्रार्थना सुनकर भगवान बारिश करेंगे तो उससे बचने के लिए छाते की आवश्यकता पड़ेगी’। सब लोग उस बच्चे पर हंसने लगे, परन्तु जब प्रार्थना करके सब वापस चलने लगे, तो मूसलाधार बारिश हुई। उस बच्चे को छोड़कर सब लोग भीगकर घर लौटे। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सभी लोग प्रार्थना करने तो गए थे, परन्तु उन लोगों के अन्तर्मन में भगवान पर न ही पूर्ण श्रद्धा थी, न ही पूर्ण विश्वास, कि उनकी प्रार्थना स्वीकार होगी और बारिश होगी। यह दृष्टान्त बता है कि हमें ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखना होगा, तभी ईश्वरीय शक्तियां हमारी मदद कर सकेंगीं।
विश्वास और अंधविश्वास समान नहीं है। जब विश्वास तर्क और अनुभव पर हावी होने लगता है, तब विश्वास अंधविश्वास बन जाता है। ईश्वर है और मैं अनंत चैतन्य ईश्वर का ही अंश हूं, समस्त सृष्टि का जन्मदाता वही है- यह आस्था है, विश्वास है। ईश्वर है और वह मेरी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए केवल देवस्थानों या मूर्तियों, पेड़ों, नदी-नालों आदि में ही वास करता है, यह तो अंधविश्वास है। ईश्वर के इस असत्य स्वरूप को सत्य मानने वाले ईश्वर प्राप्ति से बहुत दूर हो जाते हैं। समस्त सृष्टि में ही ईश्वर हैं, ऐसा मानने वाले सच्चे आस्तिक हैं बाकि सब अंधविश्वासी।
गीता में कहा गया है कि आपको विश्वास की परिभाषा जाननी है, तो अपने मन से पूछ लीजिए। सबसे पहले तो स्वयं पर विश्वास करना सीखिए। आप इस संसार के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, और यही विश्वास आपको अपनी शक्ति का ज्ञान कराएगा और शक्ति अपने उत्तरदायित्व का। फिर अपने आप लक्ष्य मिल जाएगा, मार्ग भी मिल जाएगा।विश्वास एक ऐसी भावना है जो किसी वस्तु के लिए उत्पन्न हो जाए, तो जल्दी टूटती नहीं है।
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