1/24/24

भगवान श्रीराम ने मानव के लिए प्रस्तुत किया आदर्श

भगवान श्री राम ने आजीवन किया 'मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव' का पालन, तभी कहलाएं पुरुषोत्तम

त्रेतायुग में भगवान श्रीराम से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं, उनसे उत्तम कोई व्रत नहीं, कोई श्रेष्ठ योग नहीं, कोई उत्कृष्ट अनुष्ठान नहीं। उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियां जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं। संपूर्ण भारतीय समाज के जरिए एक समान आदर्श के रूप में भगवान श्रीराम को उत्तर से लेकर दक्षिण तक संपूर्ण जनमानस ने स्वीकार किया है। उनका तेजस्वी एवं पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोक व्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा। राम का जीवन वैसे तो एक राजघराने की कहानी है, पर यह भी बताती है कि सीमाएं लांघने पर कैसे-कैसे अनर्थ और उत्पात खड़े हो सकते है। राम ने मर्यादाओं में रहकर ही असत्य पर सत्य को विजय दिलवाई। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम समसामयिक है। भारतीय जनमानस के रोम-रोम में बसे श्रीराम की महिमा अपरंपार है।

Life Lessons by Lord Rama,Lord Ram Life Lesson

हमारे प्रभु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ।उनका जीवन मर्यादा,सामंजस्य और समरसता का ही पर्याय है। इसीलिए वे न केवल भारतीय समाज के लिए बल्कि विश्व समुदाय के लिए आदर्श हैं।


अगर समाज और परिवार में सफल जीवन जीना है तो आपको मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जीवन से सीख लेनी  है. मर्यादा की राह पर चलते हुए भगवान राम ने समाज को सत्य, दया, करुणा, धर्म और कर्तव्य परायणता का पाठ पढ़ाया है. धार्मिक परिपेक्ष्य की बात करें तो भगवान राम को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है. उनका जन्म अधर्म पर धर्म की विजय के लिए हुआ. उनके चरित्र की विशेषताएं उनको अलग बनाती है और उनका जीवन समाज में सफल जिंदगी जीने के लिए प्रेरित करता है. चलिए जानते हैं कि सफल जीवन जीने के लिए भगवान राम के जीवन से किन बातों की प्रेरणा ली जा सकती है. 
 
इन बातों की सीख देता है भगवान राम का जीवन  
 
 
धैर्य
भगवान राम का जीवन सहनशीलता और धैर्य का परिचायक है. मां कैकेयी की आज्ञा पर 14 साल का बनवास काटने के साथ साथ उन्होंने अपने जीवन में कई ऐसे उदाहरण पेश किए जिनसे पता चलता है कि वो गजब के सहनशील थे और उनके अंदर बहुत संयम था. सीता अपहरण के बाद उन्होंने धैर्य और संयम से काम किया और इसके बाद सुग्रीव की सहायता से रावण पर विजय प्राप्त की. 
 
वचन के लिए प्रतिबद्धता
भगवान राम ने अपने पिता के वचन के लिए 14 साल का बनवास सहर्ष स्वीकार कर लिया. प्राण जाइ पर वचन ना जाइ. इस पर खरे उतरते हुए उन्होंने राज पाट की चिंता किए बिना पिता की बात को पूरा करते हुए वन जाना स्वीकार किया और 14 साल तक संन्यासी के रूप में जीवन जीने का प्रण लिया. इससे साबित होता है कि अगर आप किसी चीज के लिए प्रतिबद्ध होते हैं तो उसे हर हाल में निभाना चाहिए. यही एक मर्यादित जीवन की पहचान है. 
 
मित्रता निभाने की क्षमता
भगवान राम ने अपने जीवन में कई तरह के लोगों को मित्र बनाया. वो हर वर्ग और हर उम्र के लोगों के साथ सच्चे मन से मित्रता करते थे और उसको निभाते थे. सुग्रीव के साथ मित्रता निभाते हुए उन्होंने बाली वध किया. निषाद के साथ उनकी मित्रता मिसाल बन चुकी है. इसके साथ साथ विभीषन के साथ मित्रता निभाकर भगवान राम ने उनको लंका का राजपाठ सौंप दिया. उन्होंने हर कदम पर अपने मित्रों का साथ दिया और यही बात सिखाती है कि व्यक्ति को जीवन में मित्र का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए. 
 
नेतृत्व क्षमता
भगवान राम ने वनवास में रहते हुए भी अपने कुशल प्रबंधन के चलते रावण जैसे बड़े राजा को पराजित किया. श्री राम के नेतृत्व का ही परिणाम था कि लंका तक जाने के लिए समुद्र पर पत्थरों से सेतु बन पाया. सुग्रीव की वानर सेना के साथ भगवान राम ने रावण जैसे पराक्रमी राजा का सामना किया और उसे पराजित किया. इससे साबित होता है कि अगर संसाधन कम हो तो भी कुशल प्रबंधन करके विजय हासिल की जा सकती है.

सामाजिक समानता
भगवान राम चूंकि राज परिवार से थे। वे चाहते तो केवट या शबरी को बिना गले लगाए भी अपना वनवास गुजार सकते थे। लेकिन उन्होंने सामाजिक समानता के लिए शबरी और के केवट को गले लगाया। ऐसा करने से उनके साथ लोगों में समानता का विश्वास पैदा हुआ।

भाई के प्रति प्रेम 
भगवान राम ने अपने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण का भाव रखा और स्नेह दिया। इसी कारण से भगवान राम के वनवास जाते समय लक्ष्मण जी भी उनके साथ वन गए। यही नहीं भरत ने श्री राम की अनुपस्थिति में राजपाट मिलने के बावजूद भगवान राम के मूल्यों को ध्यान में रखकर सिंहासन पर रामजी की चरण पादुका रख जनता की सेवा की।

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