9/2/22

अपने परिवार की समस्याओं को सुलझाएँ

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परिवार को संजोये रखना आज सारी दुनिया की समस्या हो गई है। हालांकि सारी दुनिया में वसुदेव कुटुंबकम का उद्घोष करने वाले हमारे देश में ही परिवार नामक संस्था को बनाए रखना मुश्किल हो गया है। परिवारों के बिखराव से सारी दुनिया चिंतित हैं और यही कारण है कि 1993 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने मई की 15 तारीख को अन्तरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाने की घोषणा की। पर परिवार की अहमियत दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है।


बदलते आर्थिक सामाजिक परिदृश्य में संयुक्त परिवार बीते जमाने की बात होते जा रहे हैं। एक समय था जब एक ही छत के नीचे दादा−दादी, ताउ−ताई, चाचा−चाची और भाई बहनों से भरा पूरा परिवार रहता था, आज उसकी जगह एकल परिवार ने ले ली है। समय में तेजी से बदलाव को इस तरह भी देखा जा सकता है कि एकल परिवार भी अब दूर की बात होता जा रहा है और उसकी जगह भी अब लिव इन रिलेशनशीप लेती जा रही है। जब तक चले तब तक ठीक नहीं तो दोनों के रास्ते अलग या फिर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर जग हंसाई। यह सामाजिक बदलाव का संकेत है पर इसके दुष्परिणाम भी चाहे संकेत रूप में ही हो पर सामने आने लगे हैं।


एक ही छत के नीचे तीन−चार भाइयों के रहने की बात करना तो बेकार है। हालांकि अब परिवार छोटे होने लगे हैं। बच्चे हद मार के एक या दो ही होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में अधिकांश परिवारों में पति−पत्नी दोनों ही नौकरी पेशा होने से परिवार का ताना बाना बदलता जा रहा है। बच्चे के पैदा होते ही उसके कॅरियर के प्रति पेरेन्टस अधिक चिंतित होने लगते हैं। पहले क्रेच में, उसके बाद प्रेप में और फिर अच्छे से अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाने के साथ ही कोचिंग की चिंता में लग जाते हैं। एक ही छत के नीचे रहने के बावजूद एक दूसरे से सार्थक संवाद तो दूर की बात होती जा रही है। इसी का कारण है कि जहां पेरेन्टस अपने काम के बोझ तले तनाव व कुंठा में रहने लगे हैं वहीं बच्चे मां बाप की सोच के चलते बचपन में ही कॅरियर की चिंता के बोझ तले दबते जा रहे हैं। एक जमाना था जब गैरसरकारी संगठन बच्चों को बस्ते के बोझ से बचाने की आवाज उठाते थे आज बस्ते का बोझ बच्चे की नियती बनता जा रहा है। बड़े शहरों की गगनचुंबी इमारतों में परस्पर संवाद तो दूर की बात है एक ही परिसर में रहने वालों को पता नहीं होता कि वहां कौन−कौन लोग रह रहे हैं। कॉम्पलेक्स में क्या चल रहा है। कौन आ रहा है कौन जा रहा है। जब कोई बड़ी घटना घटती है उसका भी पता मीडिया के माध्यम से ही चलता है, यह हमारे सामाजिक ताने−बाने की स्थिति होती जा रही है।

 

एक समय था जब गर्मियों की छुटि्टयां होते ही बच्चे गांव में दादा−दादी के पास रह आते थे तो कुछ दिनों नाना−नानी के पास। इस कुछ दिनों में ही परिवार के साथ रहने के संस्कार बच्चों पर इस तरह से पड़ते थे कि वे संस्कारवान, संवेदनशील, तनावमुक्त हो जाते थे, पर आज स्थिति में बदलाव यह है कि छुटि्टयों में भी बच्चों को ट्यूशन, डांस, पेंटिंग या अन्य इसी तरह की गतिविधियों को सीखने के लिए भेज देते हैं। इसमें कोई बुराई नहीं हैं पर बच्चों के अपनों से दूर रहने के कारण एकाकीपन, स्वार्थीपन, कुंठा, तनाव, संवेदनशीलता का अभाव आदि आते जाते हैं जिसके परिणाम आज की युवा पीढ़ी में साफ तौर से देखा जा सकता है।

 

यूरोपीय देश खासतौर से इंग्लैंड में अब लोगों का एकल परिवार से मोह भंग होता जा रहा है। सामाजिक बदलावों और संकेतों को देखते हुए संयुक्त परिवार के महत्व को समझा जाने लगा है। यह सही है कि आज की पीढ़ी को रोजगार के चलते बाहर रहना पड़ता है। पर यह भी सही है कि अधिकांश कंपनियां अपने कार्मिकों को आवास सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं। ऐसे में पेरेन्टस को साथ में रखने से कई समस्याओं का हल अपने आप ही हो जाता है। हालांकि पेरेन्टस को स्वतंत्रता में बाधा मान लिया जाता है पर इससे होने वाले लाभ को देखना आज की आवश्यकता है। पेरेन्टस साथ रहने से परिवार के तार एक दूसरे से बंधे रहेंगे। बच्चों में संस्कार आंएगे, बच्चों की सही ढंग से देखभाल व परवरिश हो सकेगी, बच्चों में संवेदनशीलता व समझ पैदा होगी। क्रेच या सर्वेंट के सहारे बच्चों को नहीं रहना पड़ेगा। आंखों की शर्म के कारण आपसी सामंजस्य बना रहेगा।

 

बदलते सामाजिक आर्थिक परिदृश्य में परिवार को बोझ नहीं आवश्यकता समझनी होगी। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब बुजुर्गों के वृद्धाश्रम ही दिखाई देंगे और परिवार कहीं खो जाएगा। यह आज की पीढ़ी को भी समझना होगा नहीं तो कल के बुजुर्ग आज के युवा ही होंगे। परिवार सदस्यों को एकजुटता में बांधे रखने का प्रमुख केन्द्र है और जब परिवार संस्था का ही अस्तित्व नहीं रहेगा तो फिर स्थितियां अराजकता की और ही कदम बढ़ाएंगी। आओ परिवार की अहमियत को समझें, परिवार को अपनाएं।

 

 

परिवार की समस्या और समाधान

क्या आप परिवार के किसी भी सदस्य से नाराज हैं या उनकी व्यवहार, भाषा व दिनचर्या से बहुत ज्यादा परेशान हो गये हो। देखिए, अगर आप परिवार के किसी भी सदस्य से परेशान हैं तो इसका मतलब साफ है, आप जैसा उनसे उम्मीद / आशा करते हो वो आपके अनुसार नही चलते या फिर दूसरी परिभाषा में बोलू तो आपके फैमिली मेंबर्स जैसा आप सोचते हो, उस तरह नही सोचते। इन लोगो की दिनचर्या और खान पान सही नहीं है। तीसरी परिभाषा में मुख्य समस्या यह है की आपके घर में कोई एक सदस्य बकबक पूरे दिन बिना रुके बोलते ही रहता है या फ़िर उसके बोलने की भाषा शैली बहुत ही गुस्सा दिलाने वाली होती है।

 

 

 परिवार है, तो समस्याएं हैं और समस्याएं हैं, तो चिंताएं हैं। चिंता को चिता समान बताया गया है, लेकिन वर्तमान में अधिकांश लोगों की जीवन शैली ऐसी हो गई है कि चिंता दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गई है। अधिकांश परिवारों में छोटी-छोटी बातों पर भारी लड़ाई, झगड़े, तनाव देखने को मिल रहा है। कहीं सास बहू की लड़ाई हो रही है, तो कहीं बच्चे घरों से भाग रहे हैं। छोटी-छोटी बातों पर परिवार टूट रहे हैं, अपने बिछड़ रहे हैं। अधिकांश लोग हर बात में एक दूसरे की कमी निकालने में ही लगे हुए हैं। वह परिवार, जो मिल जुल कर रहने के लिए बसाया गया था, अब लोगों के लिए जी का जंजाल बनता जा रहा है। इसका एक नकारात्मक प्रभाव यह है कि नई पीढ़ी परिवार बसाने से बच रही है।

 

 किसी भी परिवार का मूल आधार सामंजस्य और सहनशीलता होता है।

 

अपने परिवार के साथ खुश रहने से बड़ा और क्या सुख हो सकता है लेकिन लाइफ में हमेशा सुख बना रहें यह भी मुनकिन नहीं। जीवन का नांम ही तो दुख, चिंतायें और अन्‍य परेशानियां है।अपने परिवार में सुख और शांति का माहौल बनाए रखना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम है।यहा केवल एक की जिम्मेवारी नहीं होती बल्कि सारे परिवार की है, लेकिन आपको फेमेली में सामंजस्‍य बैठाए रखने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए। तभी परिवार में सुख और समृद्धि बनी रहती है।

 

1.आनंद बना रहे 

 

बच्‍चों के लिए नियम, अनुशासन और सीमाएं होना जरूरी है, लेकिन माता-पिता को चाहिए कि बच्‍चों को डराने या दबाने के बजाए माहौल को सहज बनाए रखने का प्रयास करें। परिवार के साथ अच्‍छा समय बिताने से आपस में प्‍यार और मजबूत होता है। 

 

2.आपस में बातें होती रहे

 

परिवार के सदस्‍यों के बीच बातचीत हमेशा खुली होनी चाहिए। अगर कभी परिवार के सदस्‍यों के बीच किसी प्रकार की बहस हो जाए, तो आपको इससे उबरने का तरीका मालूम होना चाहिए। 

 

3.मुश्किल में परिवार का साथ

 

हर किसी के जीवन में चुनौत‍ियां और परेशानियां आती हैं। ऐसे मुश्किल समय परिवार के साथ की जरूरत होती है, जिससे परिवार में एकता के साथ प्यार बना रहता है।

 

4.व्‍यवहार हो कुछ ऐसा

 

आप जैसा व्‍यवहार आप दूसरों से चाहते है वैसे ही वह आपसे चाहते है। इस पर हमारा रोजमर्रा का व्‍यवहार मायने रखता है। अगर आपका कोई प्रियजन ने आपकी उम्‍मीदों पर खरा नहीं उतरा, तो उन पर चिल्‍लाए नहीं, और न ही उन पर आरोप ही लगाए, बल्कि उन्‍हें माफ कर दें।

 

5.साथ मिलकर रहना

 

जब भी मौका मिले परिवार के साथ छुट्टियां बिताएं, साथ खाना खाएं। धार्मिक और पारिवारिक कार्यक्रमों में एक साथ शामिल हों। परिवार के साथ ऐसे समय बिताने से आपसी समझ मजबूत होती है और परिवार मिलजुल कर साथ रहता है।

 

6.समस्याएं सुलझाना  

 

अगर आपसे कोई गलती हो गयी है, या आपको किसी बात का दुख है, तो अपने परिजनों का सामना करें और अपनी गलती के लिए माफी मांगें। अपनी गलती म‍ानना उसे सुधारने का सबसे जरूरी कदम है। इससे आपको भी हल्‍का महसूस होगा।

 

 

 

** सु:खमय वृद्धावस्था **

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1:- अपने स्वंय के स्थायी आवास पर रहें ताकि स्वतंत्र जीवन जीने का आनंद ले सकें !

 

2 :- अपना बैंक बैलेंस और भौतिक संपति अपने पास रखें, अति प्रेम में पड़कर किसी के नाम करने की ना सोंचे !

 

3 :- अपने बच्चों के इस वादे पर निर्भर ना रहें कि वो वृद्धावस्था में आपकी सेवा करेंगे, क्योंकि समय बदलने के साथ उनकी प्राथमिकता भी बदल जाती है और कभी-कभी न चाहते हुए भी वे कुछ नहीं कर पाते हैं ! 

 

4 :- उन लोगों को अपने मित्र समूह में शामिल करें जो आपके जीवन को प्रसन्न देखना चाहते हों, यानी सच्चे हितैषी हों ! 

 

5 :- किसी के साथ अपनी तुलना ना करें और ना ही किसी से कोई उम्मीद रखें ! 

 

6 :- अपनी संतानों के जीवन में दखल अन्दाजी ना करे , उन्हें अपने तरीके से अपना जीवन जीने दें और आप अपने तरीके से जीवन व्यतीत करें ! 

 

7 :- आप अपनी वृद्धावस्था का आधार बनाकर किसी से सेवा करवाने तथा सम्मान पाने का प्रयास कभी ना करें ! 

 

8 :- लोगों की बातें सुनें लेकिन अपने स्वतंत्र विचारों के आधार पर निर्णय लें !

 

9 :- प्रार्थना करें लेकिन भीख ना मांगें, यहाँ तक कि भगवान से भी नहीं, अगर भगवान से कुछ मांगे तो सिर्फ माफी एंव हिम्मत !

 

10 :- अपने स्वास्थ्य का स्वंय ध्यान रखें चिकित्सीय परीक्षण के अलावा अपने आर्थिक सामर्थ्य अनुसार अच्छा पौष्टीक भोजन खाएं और यथा सम्भव अपना काम अपने हाथों से करें ! छोटे कष्टों पर ध्यान ना दें, उम्र के साथ छोटी-मोटी शारीरीक परेशानियां चलती रहतीं हैं !

 

11 :- अपने जीवन को उल्हास पूर्वक जीने का प्रयत्न करें,खुद प्रसन्न रहें तथा दूसरों को भी प्रसन्न रखें ! 

 

12 :- प्रति वर्ष भ्रमण / छोटी - छोटी यात्रा पर एक या अधिक बार अवश्य


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