1/22/22

Biography of Adolf Hitler in hindi

एडोल्फ हिटलर का जन्म 20 अप्रैल, 1889 को ऑस्ट्रो-जर्मन फ्रंटियर के पास एक छोटे से ऑस्ट्रियाई शहर ब्रूनो इन में हुआ था. युवा एडोल्फ ने अपना अधिकांश बचपन 'लिंज़' में (ऊपरी ऑस्ट्रिया की राजधानी) में बिताया था. हिटलर ने 30 अप्रैल 1945 को बर्लिन में जमीन से 50 फुट नीचे एक बंकर में खुद को गोली मारकर अपनी पत्नी इवा ब्राउन के साथ आत्महत्या कर ली थी.

जर्मनी की नाज़ी पार्टी के नेता एडॉल्फ हिटलर को 20वीं सदी के सबसे शक्तिशाली और कुख्यात तानाशाहों में से एक माना जाता है. आइये इस लेख में दुनिया के सबसे चर्चित नेता हिटलर की जीवनी (Biography of Adolf Hitler) पर एक नजर डालते हैं.

 

एडॉल्फ हिटलर का व्यक्तिगत विवरण (Personal details About Adolf Hitler)

जन्म: 20 अप्रैल 1889

जन्मस्थान: ब्रूनो एम इन, ऑस्ट्रिया-हंगरी

निधन: 30 अप्रैल 1945 (आयु 56 वर्ष)

निधन का कारण: बंदूक की गोली से आत्महत्या (बर्लिन, नाजी जर्मनी)

नागरिकता: ऑस्ट्रियन (1889-1925), जर्मन (1932-1945)

राजनीतिक दल: नाजी पार्टी (1921-1945)

पत्नी: (ईवा ब्रौन-Eva Braun)

शादी:  1945

पिता: एलोइस हिटलर

माता: क्लारा पोल्ज़ल

 

एडॉल्फ हिटलर का शुरूआती जीवन (Early life of Adolf Hitler)

 

एडॉल्फ हिटलर का जन्म ब्रौन एम इन, ऑस्ट्रिया नामक स्थान पर 20 अप्रैल 1889 को हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा लिंज नामक स्थान पर हुई थी.

अडोल्फ हिटलर अपने पिता की तरह एक सिविल सेवक नहीं बनना चाहता था.वह पढाई में तेज नहीं था इसी कारण वह सेकेंडरी स्कूल की पढाई में भी संघर्ष कर रहा था और अंततः वह ड्राप आउट हो गया था.

 

वर्ष 1903 में अपने पितः की मृत्यु के बाद वह एक आर्टिस्ट बनने के लिए वियना गया लेकिन वियना की अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स ने उसे सेलेक्ट नहीं किया था. उसने अपने भरण पोषण के लिए घरों में पेंटिंग करने का काम भी किया था.

 

 

एडॉल्फ हिटलर का सैन्य कैरियर (Military Career of Adolf Hitler)

सन 1913 में हिटलर म्यूनिख (बवेरिया का जर्मन राज्य) चला गया. जब प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो वह बवेरियन राजा की एक आरक्षित पैदल सेना रेजिमेंट में स्वयंसेवक के तौर पर भर्ती हो गया था.

वह अक्टूबर 1914 में बेल्जियम में तैनात किया गया था. हिटलर ने पूरे युद्ध में बहादुरी के लिए दो सैनिक चिह्न भी जीते थे जिसमें दुर्लभ 'आयरन क्रॉस फर्स्ट क्लास' भी शामिल था. उसने इसे अपने जीवन के अंत तक पहना था.

पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की हार हुई इसके बाद उसने 1918 ई. में उन्होंने नाजी दल की स्थापना की और इसके सदस्यों में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा साथ ही प्रथम विश्वयुद्ध की हार के यहूदियों को दोषी ठहराया. उसने सभी के दिल में यहूदियों के लिए नफरत पैदा कर दी  और कहा की यहूदी जर्मनी के लिए अभिशाप हैं. इसी नफरत के कारण लगभग 60 लाख यहूदियों की हत्या हुई थी.

सन 1923 ई. में हिटलर ने जर्मन सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया जिसमें वह असफल रहा और उसे 5 साल की सजा हुई और जेलखाने में डाल दिया गया था. इसी दौरान उसने अपनी आत्म कथा Mein Kampf ("मेरा संघर्ष") नामक अपनी आत्मकथा लिखी. इसमें नाजी दल के सिद्धांतों का विवेचन किया था.

सन 1932 तक संसद् में नाजी दल के सदस्यों की संख्या 230 हो गई थी. सन 1933 में चांसलर बनते ही हिटलर ने जर्मन संसद् को भंग कर दिया, साम्यवादी दल को गैरकानूनी घोषित कर दिया. हिटलर ने 1933 में राष्ट्रसंघ को छोड़ दिया और भावी युद्ध को ध्यान में रखकर जर्मनी की सैन्य शक्ति बढ़ाना प्रारंभ कर दिया था.

सन 1933 में जर्मनी में पूर्ण शक्ति हासिल करने के लिए हिटलर ने वहां पर मौजूद आर्थिक असंतोष, जनता में असंतोष और राजनीतिक दुर्दशा का सहारा लिया था.

 

द्वितीय विश्व युद्ध और हिटलर की आत्महत्या (Second World War and Suicide of Adolf Hitler)

1937 में जर्मनी ने इटली से संधि की और उसी वर्ष आस्ट्रिया पर अधिकार कर लिया. इसी विस्तारवाद में हिटलर की सेनाओं ने पोलैंड के पश्चिमी भाग पर अधिकार कर लिया और ब्रिटेन ने पोलैंड की रक्षा के लिए अपनी सेनाएँ भेजीं जिसके कारण 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ.

 

हिटलर की लीडरशिप में 1941 तक नाजी सेनाओं ने यूरोप पर बहुत कब्ज़ा कर लिया था. चूंकि हिटलर सभी से पड़ोसी देशों से दुश्मनी ले रहा था इसलिए मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने उसकी सेना को हरा दिया. हिटलर ने 30 अप्रैल 1945 को सोवियत सेनाओं से घिरने के बाद बर्लिन में जमीन से 50 फुट नीचे एक बंकर में खुद को गोली मारकर अपनी पत्नी इवा ब्राउन के साथ आत्महत्या कर ली थी.

 

 

Adolf Hitler Life Story:

 

जब भी दुनिया के सबसे क्रूर तानाशाहों का जिक्र होता है, तो सबसे पहले जर्मनी के पूर्व तानाशाह एडोल्फ हिटलर का नाम जेहन में आता है और दिल में एक सवाल उठता है, कि आखिर हिटलर जैसी शख्सियत का मालिक यूरोप के एक शिक्षित देश जर्मनी का हुक्मरान और लाखों लोगों का चहेता कैसे बन गया? तो हम आपको बताते हैं Adolf Hitler की पूरी कहानी (Adolf Hitler Biography). एक मामूली आदमी जो दुनिया का सबसे क्रूर तानाशाह बन गया, उसने लाखों लोगों का कत्ल करवा दिया, वो दुनिया के नक्शे से यहूदियों का नामो-निशान मिटा देने का सपना देखता था.

 

हिटलर की सनक की वजह से पूरी दुनिया दूसरे विश्वयुद्ध की आग में जल उठी. उस एडोल्फ हिटलर का जन्म 20 अप्रैल 1889 को आस्ट्रिया के वॉन इलाके में हुआ था. उसने अपने पिता की मौत के बाद 17 साल की उम्र में ऑस्ट्रिया छोड़कर वियना का रुख कर लिया. हिटलर को Art school में दाखिला नहीं मिला तो वो पोस्टकार्डों पर तस्वीरें बनाकर गुजर-बसर करने लगा. 1914 में जब पहला विश्व युद्ध (First World War) शुरू हुआ तो म्यूनिख में रह रहे एडोल्फ हिटलर ने सेना में भर्ती होकर फ्रांस में कई लड़ाइयों में हिस्सा लिया. एक लड़ाई के दौरान घायल होने पर हिटलर को अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. फिर 1918 में जब विश्व युद्ध खत्म हुआ तो हिटलर को जर्मनी की हार का बेहद दुःख हुआ.

1918 में नाजी पार्टी बनाई

 

सन 1918 में ही हिटलर ने नाजी पार्टी (Nazi Party) बनाई, जिसके सदस्यों में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा गया. उसने स्वास्तिक को अपनी पार्टी का निशान बनाया, जिसे हिन्दू धर्म के लोग एक शुभ प्रतीक मानते हैं. हिटलर की इस पार्टी ने पहले विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार के लिए यहूदियों को जिम्मेदार ठहराया. जर्मनी के आर्थिक हालात काफी खराब हो चुके थे. ऐसे में जब नाजी पार्टी के नेता एडोफ हिटलर ने अपने शानदार भाषणों में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का आश्वासन दिया, तो जर्मनी के लोग उसकी पार्टी की तरफ आकर्षित होने लगे. हिटलर ने जर्मनी के लोगों को सुखी जीवन का सपना दिखाते हुए, एक विशाल जर्मन साम्राज्य की स्थापना का वादा किया. साल 1922 तक जर्मनी में हिटलर की शौहरत काफी बढ़ चुकी थी.

हिटलर को जेल में डाला गया

 

हिटलर ने अखबारों में अपने दल के सिद्धांतों का प्रचार किया. सन 1923 में हिटलर ने जर्मनी की सरकार (German Government) को उखाड़ फेंकने की कोशिश की, लेकिन इसमें नाकामी मिली और हिटलर को जेल में डाल दिया गया. जेल में हिटलर ने मीन कैम्फ यानि मेरा संघर्षनाम की अपनी आत्मकथा लिखी. इस किताब में नाजी पार्टी के सिद्धांतों को बताते हुए हिटलर ने लिखा कि आर्य जाति सभी जातियों से श्रेष्ठ है और जर्मन आर्य हैं. उन्हें दुनिया का नेतृत्व करना चाहिए. यहूदी हमेशा से संस्कृति में रोड़ा अटकाते आए हैं.

जर्मनी में बेरोजगारी ज्यादा बढ़ गई

साल 1930 और 1932 के बीच जर्मनी में बेरोजगारी बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, अब संसद में नाजी पार्टी के सदस्यों की तादाद 230 हो चुकी थी. लेकिन फिर भी 1932 में हिटलर को राष्ट्रपति के चुनाव में कामयाबी नहीं मिली. जर्मनी की आर्थिक हालत बिगड़ती चली गई. 1933 में चांसलर बनते ही हिटलर ने जर्मनी की संसद को भंग कर दिया और सोशलिस्ट पार्टी की मान्यता भी रद्द कर दी (Adolf Hitler a Life From Beginning To End). डॉ जोजेफ गोयबल्स को हिटलर ने अपना प्रचारमंत्री बनाया. नाजी पार्टी के तमाम विरोधियों को जेल में डाल दिया गया और सरकार की सारी ताकत हिटलर ने अपने हाथों में ले ली.

देश का सर्वोच्च न्यायाधीश घोषित किया

हिटलर की ताकत की सनक बढ़ती गई और फिर साल 1934 में उसने अपनेआप को देश का सर्वोच्च न्यायाधीश घोषित कर दिया. इसी साल हिंडनबर्ग की मौत के बाद वो जर्मनी का राष्ट्रपति भी बन गया. धीरे धीरे नाजी पार्टी का आतंक बढ़ने लगा, सन 1933 से 1938 के बीच लाखों यहूदियों का कत्ल कर दिया गया. जर्मनी के नौजवानों में राष्ट्रपति हिटलर के आदेशों का पूरी तरह मानने की भावना भर दी गई और देश की तकदीर संवारने के लिए सारी ताकत हिटलर ने अपने हाथ में ले ली.

लीग ऑफ नेशन्स छोड़ा

साल 1933 में हिटलर ने League of Nations को छोड़ दिया और आने वाले युद्ध को ध्यान में रखते हुए जर्मनी की सैन्य ताकत बढ़ाना शुरू कर दिया. 1934 में जर्मनी और पोलैंड के बीच एक-दूसरे पर हमला न करने की संधि हुई. फिर इसी साल आस्ट्रिया की नाजी पार्टी ने वहां के चांसलर डॉलफस की हत्या कर दी. इसके बाद रूस, फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया और इटली जैसे कई देशों ने जर्मनी की आक्रामक नीति से डरकर अपनी सुरक्षा के लिए आपस में संधि कर ली. इसी दौरान हिटलर ने ब्रिटेन के साथ एग्रीमेंट करके अपनी जलसेना को ब्रिटेन की जलसेना का 35 प्रतिशत रखने का वादा किया. इस संधि का मकसद भावी युद्ध में ब्रिटेन को किनारे रखना था, लेकिन 1935 में ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने हिटलर की ज्यादा हथियार जमा करने की नीति का विरोध किया.

वर्साय की संधि भी तोड़ी

साल 1936 में हिटलर ने वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) को तोड़ दिया और अपनी सेना को पूर्वी फ्रांस में राइन नदी के इलाके पर कब्जा करने भेज दिया. 1937 में जर्मनी ने इटली से एग्रीमेंट किया और उसी साल आस्ट्रिया पर कब्जा कर लिया. इसके बाद हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया के उन इलाकों पर कब्जा करने की इच्छा जताई जहां ज्यादातर निवासी जर्मन थे. ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने हिटलर को संतुष्ट करने के लिए म्यूनिख समझौते में चेकोस्लोवाकिया को मजबूर किया कि वो अपने जर्मन आबादी वाले प्रदेशों को हिटलर को सौंप दे.

चेकोस्लोवाकिया के हिस्सों पर कब्जा किया

1939 में हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया के बाकी हिस्से पर भी कब्जा कर लिया . फिर हिटलर ने एग्रीमेंट करके पोलैंड का पूर्वी हिस्सा रूस को दे दिया और पोलैंड के पश्चिमी हिस्से पर उसकी सेनाओं ने कब्जा कर लिया. ब्रिटेन ने पोलैंड की मदद के लिए अपनी सेना भेजी. और इस तरह दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हुई. फ्रांस की हार के बाद हिटलर ने मुसोलिनी के साथ एग्रीमेंट करके रोम सागर पर कब्जा करने का प्लान बनाया, फिर जर्मनी ने रूस पर हमला कर दिया. जब अमेरिका दूसरे विश्वयुद्ध (Second World War) में शामिल हुआ तो हिटलर की हालत बिगड़ने लगी.

30 अप्रैल को हुई थी मौत

हिटलर के सैनिक अधिकारी उसकी नीतियों के खिलाफ हो चुके थे और उन्होंने हिटलर के खिलाफ साजिश रचनी शुरू कर दी थी. जब रूसियों ने बर्लिन पर हमला किया तो डर के मारे हिटलर अपनी चांसलरी में बने बंकर में छुप गया. हिटलर को इटली के तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी की मौत की खबर मिल चुकी थी, मुसोलिनी को जैसी जिल्लत भरी मौत मिली, हिटलर को डर था कि कहीं उसके साथ भी वैसा सुलूक न हो, इसलिए 30 अप्रैल 1945, को हिटलर ने खुद को गोली मारकर (Adolf Hitler Cause of Death) आत्महत्या कर ली.

 

 

Auschwitz Concentration Camp in Poland

जर्मनी का एक खुंखार तानाशाह हिटलर का इतिहास आपने जरूर पढ़ा होगा। कहा जाता है कि हिटलर यहूदियों का कट्टर दुश्मन था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस तानाशाह की नाजी सेनाओं के द्वारा पोलैंड में बनाए गए शिविरों में करीब 10 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई, जिसमें यहूदियों का संख्या सबसे अधिक थी। इस यातना शिविर का नाम 'ऑस्त्विज कैंप' है।

 

ऑस्त्विज कैंप के बाहर ही एक बड़ा सा लोहे का दरवाजा है, जिसे 'गेट ऑफ डेथ' यानी 'मौत का दरवाजा' कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बड़ी संख्या में यहूदी लोगों को रेलगाड़ियों में भेड़-बकरियों की तरह लाद कर उसी दरवाजे से यातना शिविरों में ले जाया जाता था और उसके बाद उन्हें ऐसी-ऐसी यातनाएं दी जाती थीं, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

 

'ऑस्त्विज कैंप' एक ऐसी जगह थी और उसे इस तरह बनाया गया था कि वहां से भाग पाना नामुमकिन था। कहते हैं कि कैंप के अंदर यहूदियों, राजनीतिक विरोधियों और समलैंगिकों से जबरन काम करवाया जाता था। इसके अलावा बूढ़े और बीमार लोगों को कैंप के अंदर बने गैस चेंबर में डालकर जिंदा जला दिया जाता था। लाखों लोगों को इन गैस चेंबरों में डालकर मार दिया गया था।

ऑस्त्विज शिविर के परिसर में ही एक दीवार है जिसे 'वॉल ऑफ डेथ' यानी 'मौत की दीवार' कहा जाता है। कहते हैं कि यहां अक्सर लोगों को बर्फ के बीच खड़ा कर गोली मार दी जाती थी। नाजियों ने ऐसे हजारों लोगों को मौत के घाट उतारा था।

साल 1947 में नाजियों के इस यातना शिविर को पोलैंड की संसद ने एक कानून पास कर सरकारी म्यूजियम में बदल दिया। कहते हैं कि म्यूजियम के अंदर करीब दो टन बाल रखे गए हैं। दरअसल, मरने से पहले नाजी यहूदी और अन्य लोगों के बाल काट लेते थे ताकि उनसे कपड़े वगैरह बनाए जा सकें। इसके अलावा कैदियों के लाखों चप्पल-जूते और अन्य सामान भी म्यूजियम में रखे हुए हैं।

 

The Holocaust (यहूदी नरसंहार)

1933 में जर्मनी की सत्ता पर काबिज हुए एडोल्फ हिटलर ने यहां एक नस्लवादी साम्राज्य बनाया। यहूदियों के लिए हिटलर की ये नफरत होलोकॉस्ट के रूप में सामने आई। यहूदियों को खत्म करने का सिलसिला मई से पोलैंड में खुले ऑशविच कन्सन्ट्रेशन कैम्प से शुरू हुआ था। ऑशविच कैम्प यानी मौत का दूसरा नाम...

 

- पोलैंड के इस कैम्प में धर्म, नस्ल, विचारधारा या शारीरिक कमजोरी के नाम पर लाखों लोगों को गैस चेंबर में भेज दिया जाता था।

- यहूदियों, राजनीतिक विरोधियों, बीमारों और समलैंगिकों से जबरन काम लिया जाता था।

- कैम्प ऐसी जगह और इस तरह बनाया गया था कि वहां से भाग पाना नामुमकिन था।

- बूढ़े और बीमारों को गैस चेंबर में मौत दे दी जाती थी। कैम्प में चार क्रिमेटोरियम थे, जहां हर दिन 4,700 लाशें जलाई जा सकती थीं।

- जो गैस चेंबर से बच जाते थे, उन्हें काम करना पड़ता था।

- ऑशविच कैम्प के पास इंडस्ट्रियल एरिया था। बिजनेसमैन बंदियों को उधार पर काम करवाने के लिए लेते थे।

 

क्या था होलोकॉस्ट?

- होलोकॉस्ट इतिहास का वो नरसंहार था, जिसमें छह साल में करीब 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी गई थी।

- इनमें 15 लाख सिर्फ बच्चे थे। कई यहूदी अपनी जान बचाकर देश छोड़कर भाग गए। कुछ कन्सनट्रेशन कैम्पों में क्रूरता के चलते तिल-तिल कर मरे।

- ऑशविच यातना कैम्प यहूदियों का खात्मा करने की नाजियों की खूनी स्ट्रैटजी का सिंबल बन गया था।

 

आजाद होने तक मारे गए थे 11 लाख लोग

- 27 जनवरी 1945 को सोवियत रेड आर्मी द्वारा आजाद किए जाने तक ऑशविच कैम्प में 11 लाख लोगों की मौत हो चुकी थी।

- कैम्प में बच गए करीब सात हजार लोगों को रिहा कराया गया।

- 1947 में ही कैम्प को पोलिश पार्लियामेंट ने एक कानून पास कर म्यूजियम में बदल दिया।

 

27 जनवरी 1945 को जब रूस दक्षिण-पश्चिम पोलैंड में आश्विच कंसन्ट्रेशन कैंप के गेट खोले गए तो मानव इतिहास के सबसे बड़े और क्रूर सामूहिक नरसंहार का अंत हुआ। दरअसल, रूसी सैनिकों ने एक दिन पहले ही नाजियों से कंसन्ट्रेशन कैंप खाली कराया था। यूएस होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम के मुताबिक जर्मनी ने इस कैंप में करीब 9 लाख 60,000 यहूदियों को मौत के घाट उतारा था। कहा जाता है कि पूरे इतिहास में नाजियों के आश्विच कैंप में जितने लोग मारे गए, उतना भयावह नरसंहार पहले कहीं नहीं हुआ। इस नरसंहार में किसी को जिंदा नहीं छोड़ा गया। जब सोवियत सेना वहां पहुंची तो उसके सामने यातना के भयावह सबूत सामने आए। कैंप में 7 हजार भूख से तड़पते कैदी जिंदा पाए गए। कैंप में बंद किए गए लाखों लोगों के जूतों, कपड़ों का अंबार मिला। यहां तक कि 6500 किलो बाल भी बरामद हुए।

 

आश्विच में पहला नाजी बेस बनाया गया था जो कराकोव से 37 मील दूर था। यह नाजी कैंप 40 वर्गकिमी में फैला था, जहां पर कैदियों को जानवरों की तरह रखा जाता था। जनवरी 1942 में नाजी पार्टी ने आखिरी समाधाननिकालने का फैसला किया। जनवरी 1942 में कैदियों को मारने के लिए पहला गैस चैंबर बनाया गया, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। नाजी जिस बड़े पैमाने पर यहूदियों को मारना चाहते थे, उसके लिए चार गैस चैंबर और बनाए गए। नवंबर 1944 तक व्यवस्थित नरसंहार को यहां अंजाम दिया जाता रहा।

 

 

यहूदियों पर ऐसे-ऐसे जुल्म ढहाए गए कि कोई सपने में भी सोच नहीं सकता था। उन पर खतरनाक मेडिकल प्रयोग भी किए जाते थे। इनमें से कई कैदी तो ऐसे थे, जिनके गुप्तांग ही काटकर अलग कर दिए गए। कुछ की जबरन नसबंदी कर दी गई। आलम यह था कि कैदी चलते-फिरते कंकाल नजर आते थे। आश्विच कैंप में बंद कैदियों से जबरन जर्मन केमिकल कंपनी में काम कराया जाता था। यहां काम करते-करते करीब 10 हजार मजदूरों की मौत हो गई। जो मजदूर काम करने के लायक नहीं रह जाते, उन्हें फिनॉल इंजेक्शन देकर मार दिया जाता था। जनवरी 1945 के बीच सोवियत कैंप खाली कराया गया तो करीब 60 हजार कैदियों को दूसरे कंसन्ट्रेशन कैंप ले जाने के लिए 30 मील चलाया गया। यूएस होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम का अनुमान है कि इस सफर के दौरान ही 15 हजार लोगों की मौत हो गई। जो चलने में कमजोर होता उसे गोली मार दी जाती थी।

 

नाजियों के अत्याचार पर बनी फिल्मों में बताया गया है कि किस तरह मुर्दों के ढेर को जिंदा लोगों के सामने पटक दिया जाता था। ट्रकों से गिराए गए शव कैंप में गुलाम कैदियों के होते थे जिन्हें जलाने के लिए एक साथ ढेर में तब्दिल कर दिया जाता था। इन कैंपों में एक चिल्ड्रेन रूम भी होता था जिसमें गर्भवती होकर आने वाली महिलाओं के बच्चों को छोड़ दिया जाता था। यहां नवजातों को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया जाता था या उन्हें चूहे खा जाते थे। एक ब्रेड की चोरी में मौत की सज़ा! इन टॉर्चर कैंप में कैदियों की संख्या जितनी ज्यादा होती जाती थी, नाजियों का अत्याचार उतना ही ज्यादा बढ़ता जाता था। कैदियों को खाना न के बराबर दिया जाता था। एक कटोरा सूप या रोटी मिलने के बाद कैदियों से खूब काम कराया जाता। हालत यह थे कि कई लोग चोरी और लूट के लिए मजबूर हो जाते थे। कोई फल या एक ब्रेड चुराने के लिए कैदी को मौत की सजा दे दी जाती थी। इसके अलावा, सजा के क्रूर से क्रूर तरीके निकाले जाते थे। स्टैंडिंग कमांडो कैदियों को लगातार 8-8 घंटे खड़े रहने के लिए मजबूर करता था, अगर कोई भी हिलता या जरा सा शोर होता तो उन्हें बुरी तरह पीटा जाता था।


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