नैतिकता आचरण/व्यवहार की एक शाखा है जो समाज के
भीतर सही और गलत की अवधारणा को परिभाषित करता है। विभिन्न समाजों द्वारा परिभाषित
नैतिकता बहुत हद तक समान हैं।ज्यादातर लोग समाज द्वारा परिभाषित नैतिकता का पालन
करते हैं। वे नैतिक मानदंडों के अनुसार अच्छे माने जाने वालों को मानते हैं और इन
मानदंडों को ना मानने वालों से दूर रहना चाहते हैं।
सच्चाई, ईमानदारी, प्रेम, दयालुता,
मैत्री आदि को नैतिक मूल्य कहा जाता है।
नैतिकता मानव-मूल्यों की वह व्यवस्था है जो अधिक
सुखमय जीवन के लिए हमारे व्यवहार को आकार देती है। नैतिकता की सहायता से हम
ईमानदारी से जीवन जीकर हमारे सम्पर्क में आने वाले लोगों से विश्वास और मैत्री
स्थापित करते हैं। नैतिकता सुख की कुंजी है।
कुछ लोग सोचते हैं कि सफल जीवन वह है जिसमें हमारे
पास अकूत भौतिक सम्पदा और अधिकार प्राप्त हों। यद्यपि हमें ये सब मिल भी जाए, तब भी हम कभी संतुष्ट नहीं हो पाते और सदा भयभीत रहते हैं कि कहीं यह हमसे
छिन न जाए। सफल जीवन वह है जिसमें हमने बहुत से मित्र बनाए हों और लोग हमारी संगति
में रहकर सुख का अनुभव करते हों। फिर इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि हमारे पास कितना
धन अथवा बल है। हमारे पास भावात्मक सहारा होगा जिससे हमें यह बल प्राप्त होगा कि
हम किसी भी स्थिति का सामना कर सकें।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है हमें जीवित रहने के लिए
दूसरों का सहारा चाहिए। केवल तब नहीं जब अवश शिशु अथवा नर्सिंग होम में पड़े जर्जर
वृद्ध होते हैं, बल्कि आजीवन हमें औरों की सहायता और देख-भाल
चाहिए होती है। प्रेमपूर्ण मित्रता से जो भावात्मक सहारा मिलता है वह जीवन को
परिपूर्ण बनाता है। नैतिकता की गहरी समझ हमें हर मिलने वाले से मैत्रीपूर्ण
सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक होती है।
नैतिक मूल्यों के महत्व को समझाते हुए दुनिया में
शांति,
अहिंसा, सहनशीलता और भाईचारे का संदेश फैलाना
चाहिए | पेड़-पौधों की रक्षा कर अपने पर्यावरण को बचाना,
सभी पशु-पक्षी, जीव-जंतुओं के प्रति करुणा की
भावना रखना |
झूट न बोलना, सब पर दया करना, अपने से बड़ों का
आदर करना, सच बोलना, सबकी मदद करना,
किसी की निंदा न करना नैतिक मूल्य कहलाता है | नैतिक मूल्यों का विशेष रुप से मनुष्य को बचपन से घर पर माता-पिता और
विद्यालय में शिक्षकों द्वारा सिखाया जाता है | किसी भी
विद्यार्थी का भविष्य उसके जीवन के दौरान अभिभावकों द्वारा दिए गए नैतिक मूल्यों
पर निर्भर करता है | नैतिक मूल्यों का शिक्षा प्राप्त एक
व्यक्ति को सही और गलत के बिच अंतर भेद करने में सक्षम हो सकता है |नैतिक मूल्य के कुछ ऐसे गुण है जो, मनुष्य को
ईमानदारी, सच्चाई, दया, अखंडता, सहायक, सम्मान,
प्यार, दोस्तों के प्रति सम्मान, कठोर परिश्रम, सहयोग, क्षमा
आदि सहित अच्छे गुणों को सिखाता है |
मानव को सामाजिक प्राणी होने के नाते कुछ सामाजिक
मर्यादाओं का पालन करना पड़ता है । समाज की इन मर्यादाओं में सत्य, अहिंसा, परोपकार, विनम्रता एवं
सच्चरित्र आदि अनेक गुण होते हैं । इन गुणों को यदि हम सामूहिक रूप से एक नाम देना
चाहे तो ये सब सदाचार के अन्तर्गत आ जाते है । सदाचार एक ऐसा व्यापक शब्द है
जिसमें समाज को लगभग सभी मर्यादाओं का पालन हो जाता है । अत: सामाजिक व्यवस्था के
लिए सदाचार का सर्वाधिक महत्त्व है । विश्व के समस्त गुण सदाचार से निहित हैं ।
सदाचार से शरीर स्वस्थ, बुद्धि निर्मल और मन प्रसन्न रहता है
। सदाचार हमें मार्ग दिखलाता है । सदाचार आशा और विश्वास का विशाल कोष है ।
सदाचारी मनुष्य संसार में किसी भी कल्याणकारी वस्तु को प्राप्त कर सकता है ।
सदाचार के बिना मनुष्य का जीवन खोखला है जिसके कारण
वह कभी उन्नति नहीं कर सकता है । चरित्र ही सदाचार व्यक्ति की शक्ति है । किसी भी
महान से महान कार्य की सिद्धि बिना सदाचार अथवा उत्तम चरित्र के संभव नहीं । जो
वास्तविक सफलता सदाचारी प्राप्त कर सकता है उसे दुराचारी मानव कदापि प्राप्त नहीं
कर सकता है । सदाचार का पालन न करने वाला व्यक्ति समाज में घृणित माना जाता है ।
दुराचारी पुरुष की संसार में निन्दा होती है । दुराचारी मानव अपना, अपने समाज और अपने राष्ट्र किसी का भी उत्थान नहीं कर सकता है । सदाचार
विहीन मनुष्य का जीवन पाप-कर्म में होने के कारण सुख-शान्ति रहित एवं अपमानजनक
होता है ।
सदाचार आम या जामुन का फल नहीं है जिसे किसी भी
वृक्ष से तोड़ लिया जाय अथवा बाजार से खरीद लिया जाये । सदाचार आचरण की वस्तु है, वाणी की नहीं । सदाचार की भाषा मौन है, वह बोलता
नहीं । अत: इस जीवनरूपी नींव को विनम्रता, परोपकार, सच्चरित्रता, सत्यवादिता आदि से पुष्ट होना चाहिये ।
नेतिकता का गिरता हुआ स्तर
नैतिकता मतलब झूठ न बोलना, चोरी न करना, दूसरों के प्रति शिष्टता, विनम्रता, उदारता, सुशीलता
रखना, अहिंसा इत्यादि। यह गुण जन्म के साथ किसी में नहीं
आता। जब एक बच्चा जन्म लेता है तो वह निरागस, निष्पाप,
और कोरे कागज की तरह होता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, वैसे-वैसे उसमें शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास भी होने लगता है। तो
सर्वप्रथम नैतिकता का गुण बच्चे में घर से ही पनपता है। और फिर शिक्षा से और समाज
से।
परंतु आज-कल समाज में नैतिकता का स्तर गिरता जा रहा
है। इस विषय पर सोचा जाए तो हम पाएंगे कि आज-कल जैसे पाप पुण्य का भेद ही मिट गया
है। पैसों के लिए मनुष्य अपनों का खून बहाने में भी कतराता नहीं है। चारों तरफ
नैतिकता का घोर पतन हो रहा है। भ्रष्टाचार दीमक की तरह चारों तरफ से देश को खोखला
कर रहा है। मनुष्य मनुष्यता भूल चूका है। अगर कहीं कोई गलत हो रहा है, तो उसे रोकने की बजाय लोग उसकी सेल्फ़ी बनाकर उसे सोशल मिड़ीया पर डालकर
उसका प्रचार करता है।
नैतिकता को गिरने से बचाने के लिए, बचपन से ही हर बच्चे को सही मार्ग दर्शन मिलना चाहिए। अगर हर व्यक्ति अपने
नैतिकता के स्तर को सुधारेगा तो समाज का नैतिकता स्तर भी स्वयं बढ़ जाएगा।
आज, मानव जाति नैतिक
मूल्यों में गिरावट का सामना कर रही है। इसके कारण, लगातार
संघर्ष और टकराव होते हैं, जो अक्सर खूनी रूप लेते हैं। जबकि
हमारी प्रौद्योगिकी और क्षमताओं में कई गुना सुधार हुआ है, मानव
समाज की मूल्य प्रणाली में एक उल्लेखनीय गिरावट आई है। सुन्दरता और भौतिकवाद की पंथ
ने विभिन्न व्यक्तियों के बीच संबंधों को बदनाम कर दिया है। छोटे स्तर पर, यह मानव समाज की
खूनी युद्ध और बदसूरत तस्वीरें पैदा करता है।
महान शक्ति के साथ महान जिम्मेदारी आती है। लेकिन
ज़िम्मेदारी बहुत सावधानी से खड़ी होनी चाहिए। आज मानव क्षमताओं की परिमाण को
देखते हुए, निर्णय लेने में गलतियों लाखों लोगों के जीवन
को प्रभावित कर सकती हैं। तकनीकी सुधार के साथ, दुनिया को
नुकसान पहुंचाने की मनुष्य की क्षमता में भी वृद्धि हुई है, जिसने
मानव निर्मित दुनिया में मानव निर्मित आपदाएं लाई हैं। इस संदर्भ में, अच्छे के लिए मानव निर्णयों को मार्गदर्शन करने के लिए नैतिकता तस्वीर में
आती है।
नैतिकता का हमारे जीवन में बहुत बडा स्थान है । जगह
जगह पर यह सुननें और देखनें को मिल जाता है कि अब नैतिकता बची ही कहां है। किंतु
यह क्या ऐसा वास्त्विक में हैॽ बिना नैतिकता के घर, परिवार,
गांव, कस्वा, शहर,
यहां तक कि देश की अवधारणा भी नहीं की जा सकती है ।यह नैतिकता क्या
है। हमें इस पर विचार करना है । नैतिकता मूलरूप से नीति से उत्पन्न हुई है ।नीति
से नीतिक और इसी का अपभ्रनश नैतिक है । नीति से उत्पन्न भाव नैतिकता कहलाते हैं ।
नीति एक तरह की विचारधारा है जिसके अंतर्गत हमारे समाजिक ढांचे को मजबूत किया गया
है । मनुष्य का विकास क्रमिक है । पहिले वह जंगलों में रहता था । सामाजिक विकास न
के बराबर था । एक छोटा सा कुनबा या कबीला होता था किंतु उनमें भी नैतिकता रहती थी
। उस कुनबे में कोई न कोई नियम कायदे कानून होते ह्ते । उनमें भी नैतिकता रहती थी
। मनुष्य के विकास के साथ-साथ उनका सामाजिक दायरा बढा, सोंच
बढी जिसके साथ-साथ नैतिकता भी बढी । आदिकाल से लेकर मध्यकाल तक नैतिकता सामाजिक
विकास के अनुपातिक क्रम मे बढी । जैसे जैसे मनुष्य ने आधुनिक काल में प्रवेश किया उसी समय से
नैतिकता में गिरावत आना शुरू हो गई ।
नैतिकता का क्षेत्र विस्तृत है । इसके अंदर वे सभी
नियम कानून आ जाते हैं जो किसी भी संथा को चलाने के लिये आदर्श माने जाते हैं ।
उपर्युक्त वाक्य मे आदर्श विशेषण के रूप मे प्रयोग किया गया है । यद्यपि विना नैतिकता
के भी संथायें चल सकती हैं किंतु वे आदर्श संथाओं का स्थान नहीं ले सकती हैं ।
उदाहरण के तौर पर हम परिवार नामक संथा को देखते हैं ।समाजशास्त्र के मनीशियों ने
एक छत के नीचे रहने वाले मां-बाप .पति- पत्नी व बच्चों को परिवार माना है । इस
परिवार नामक संथा मे पिता को कर्ता माना गया है । इसके लिये कुछ नियम बनें हैं ।
परिवार का कर्ता धन उपार्जित करेगा । घर में ग्रहणी घर का काम काज करेगी । घर के
आंतरिक कार्यों की जवाबदेही ग्रहणी की और घर के वाह्य कार्यों की जवाबदेही कर्ता
अर्थात घर के मुखिया की निर्धारित की गई । मां बाप अपनें बच्चों की परवरिश
यथाशक्ति करते हैं और जब मां बाप बूढे. हो जाते हैं तब उनकी सेवा बच्चे करते हैं ।
परिवार का हर सदस्य एक दूसरे की भावनाअओं का सम्मान करता है । उपरुक्त यही नियम
पारिवारिक नैतिकता की श्रेणी में आते हैं। इसी तरह किसी भी छेत्र के लिए चाहे वह
सामाजिक,राजनीतिक या आर्थिक हो ,कुछ न कुछ नियम जरूर होते
हैं और इन नियमों का अनुपालन नैतिकता की श्रेणी में आता है ।
वर्तमान में समाज की सब से छोटी इकाई परिवार में
दिन प्रतिदिन नैतिक मूल्यों की कमी आ रही है । यह हम सब के लिये चिंता का विषय है
। युवा पीढी को इस पर विशेष ध्यन देना होगा । परिवर में बुजुर्गों का सम्मान घट
रहा है ।युवा पीढी उन्हें बोझ समझ रही है ।पारिवारिक कलह दिन प्रतिदिन बढ रहें हैं
।यह सब नैतिकता के पतन का परिणाम है ।
आज हम किसी भी क्षेत्र की बात करें, नैतिकता का ह्रास दिखाई पड. रहा है । हमनें हर क्षेत्र मे नियमावली तो बना
डाली है किंतु नैतिकता की यह नियमावली किताबों के पन्नों में शुसोभित होकर रह गई
है । नैतिकता के ह्रास का मूल कारण भ्रष्टाचार है । जब हम गलत तरीके से ज्यादा की
चाहत करने लगते हैं तब भ्रष्टाचार जन्म लेता है जो नैतिकता के पतन का कारण बनता है
। नैतिकता का हमारे जीवन मूल्यों पर क्या प्रभाव पड.ता है , जानने
के पूर्व हम संछेप में जीवन मूल्यों की चर्चा करते हैं ।
धर्म, अर्थ, काम, मोछ हमारे जीवन के मूल्य हैं और इन सभी से
नैतिकता का सीधा सम्बंध है । इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि जीवन के मूल्य नैतिकता
के समानुपाती हैं । अर्थात यदि हमारे जीवन मे नैतिकता का समावेश है तो हमारे जीवन
के मूल्य धर्म, अर्थ, काम, मोछ सही तरह से निष्पादित होते हैं । बिना नैतिकता के हमारा जीवन पशुवत है
। आहार और प्रजनन तो जीव मात्र की आवश्यकता है, हम तो मनुष्य
हैं । ईश्वर ने हमें सोचने समझने की शकित दी है ।परिणामस्वरूप हमारे मनीषियों,
शिक्षाविदों नें अच्छा जीवन जीने के लिये कुछ नियम बनाये हैं । जिन
पर चलना हमारा परम कर्तव्य है और इन कर्तव्यों का पालन ही नैतिकता है जिसके
फलस्वरूप हमारा जीवन अम्रतमय बनता है । धर्म, अर्थ, काम, मोछ जीवन के मूल्यों को हम अपने जीवन में सही
ढंग से समाहित कर सकते हैं ।
बिना नैतिकता के हमारे जीवन मूल्य शून्य हैं । आज
हमारी संस्क्रति पाश्चात्य एवं भारतीयता का मिला जुला स्वरूप है । देश काल और समाज
के हिसाब से हमारी संस्क्रति में भी बद्लाव आया है । शहरीकरण और टूटते संयुक्त
परिवारों के लिये तो नैतिकता वरदान है ।चाहे हम घर में हों या बाहर ,खेत खलिहान में हों या दफ्तर में, शासित वर्ग में
हों या शासक में, हमें नैतिकता को
सर्वोच्च स्थान देना होगा ।
प्राचीन भारत में “वसुधैव
कुटुम्बकम" की अवधारणा पाई जाती है जिसका अभिप्राय है कि पूरी धरती ही एक
परिवार है और यहाँ सभी को एक दूसरे के साथ परस्पर प्रेमपर्वक रहना चाहिए। भारतीय
संस्कृति की यह अवधारणा उसके सारतत्व 'सह अस्तित्व' पर आधारित है। इसे वर्तमान वैश्वीकरण से भी जोड़कर देखा जा सकता है जहाँ
पूरा विश्व एक गाँव में परिणित हो गया है।
नैतिकता, मूल्यों और
विश्वासों की एक प्रणाली को संदर्भित करती है जो हमें सही और गलत या अच्छे और बुरे
व्यवहार के बीच अंतर करने में सहायता करती हैं। इसका तात्पर्य आचरण के एक मानक से
है जिसे सही या उचित के रूप में स्वीकार किया जाता है।
नैतिकता, व्यक्तिगत
अंतःकरण पर आधारित होती है न की कानून या सामाजिक नियमों द्वारा क्या निर्धारित
किया गया है, उस पर। यद्यपि नैतिकता सामान्यतः बाह्य स्रोतों
जैसे धर्म/धार्मिक पुस्तकों से व्युत्पन्न होती है और प्राप्त की जा सकती है। यह
स्वाभाविक रूप से एक व्यक्ति की पसंद है, जो नैतिक है वह उसे
महत्व देता हैं और जो नहीं है उसे वह महत्व नहीं देता है।
नैतिकता हमें विभिन्न सामाजिक मानदंडों और नियमों
के संबंध में मार्गदर्शन भी प्रदान करती है, इस प्रकार यह
विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों के सह-अस्तित्व को सुगम बनाती है।
यह व्यक्तिगत और सामाजिक कारणों से दैनिक जीवन में
यह महत्वपूर्ण हो जाती है। विशेष रूप से:
व्यक्तिगत
नैतिक होने के कारण व्यक्ति के स्व मूल्य और सम्मान
में वृद्धि होती है।
सामाजिक प्रतिष्ठा में सुधार करती है और मानसिक
स्वास्थ्य को सुगम बनाती है।
व्यक्ति के अंतःकरण को सुदृढ़ बनाती है और संतुष्टि
एवं विश्वास का सृजन करती है जो हमें जीवन में कठिन परिस्थितियों से निपटने में
सहायता करते हैं।
बेईमानी, हिंसा, धोखाधड़ी, और ईर्ष्या जैसे दोषों को समाप्त करने में
सहायता करती है।
आत्म अभिप्रेरण को बढ़ावा देती है और व्यक्ति के
चरित्र का निर्माण करती है।
सामाजिक
हमारे व्यक्तित्व को सहज और स्वीकार्य बनाने वाले
व्यवहार को स्थिरता प्रदान करती है।
बेहतर व्यक्तिगत और पेशेवर संबंधों को बनाए रखने
में सहायता करती है।
समाज में बुरे प्रभावों जैसे महिलाओं के साथ
दुर्व्यवहार, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, हिंसा, अपराध, भ्रष्टाचार इत्यादि
को कम करती है।
शांति और सामंजस्य को बढ़ावा देती है।
विभिन्न पृष्ठभूमि से लोगों के सह-अस्तित्व को सुगम
बनाती है।
मूल्य क्या होते हैं? मूल्य और नैतिकता में क्या अंतर हैं?
मूल्य वह विश्वास व दृष्टिकोण हैं जिससे मानव अपने
जीवन में निर्देशित होता हैं। मूल्यों का विकास समाज द्वारा होता हैं। पर प्राथमिक
मूल्यों का निर्धारण माता-पिता व परिवार से होता हैं।फिर विद्यालय और फिर समाज
क्रमशः मूल्यों की पाठशाला होती हैं--
व्यक्ति द्वारा कर्तव्य द्वंद में फंस जाने पर
इन्ही मूल्यों के प्रयोग से सही मार्ग का चुनाव कर पाता हैं।
लोगों की स्वयं की भी मूल्य प्रणाली होती हैं।
जिसके माध्यम बसे वह स्वयं के निर्णय व दुनियबको देखने बक प्रयास करते हैं। पर यह
कई बार विरोधाभास स्थिति भी उत्पन कर देते हैं जब इनके स्वयं के मूल्य सामाजिक
मूल्यों के विपरीत हो।
मूल्य व नैतिकता में अंतर ---
मूल्य व्यक्ति के जीवन के निर्देशक होते हैं सभी
व्यक्ति के अपने मूल्य सिद्धांत होते हैं। जिसके आधार पर वह विचार और व्यवहार करता
हैं। दूसरी तरफ़ नीतिशास्त्र में नैतिक नियमों के आधार पर सही व गलत व्यवहार का
निर्धारण व्यक्ति पर या समाज में होता हैं।
मूल्य सार्वभौमिक हो सकते हैं साथ ही व्यक्तिगत भी।
मूल्य मानव जीवन के एज विशेष व्यवहार के किये प्रेरित करते हैं।
नीतिशास्त्र एक लिखित कोड ऑफ कंडक्ट हैं जिसे एक
व्यक्ति या संस्था द्वारा पालन किया जाता हैं। नीतिशास्त्र मुख्य रूप से नैतिक
मूल्य आधारित हैं।
नैतिकता बताता हैं कि क्या सही हैं क्या गलत । किसी
व्यक्ति या पेशेवर को दोनों अवस्था में पालन करना होता हैं।
No comments:
Post a Comment