9/19/14

सास-बहू के झगड़े

सासबहू का रिश्ता यानी 36 का आंकड़ा. अमूमन इस रिश्ते में हम बहू को बेचारीऔर सास को गले की फांसकी संज्ञा देते हैं. सास-बहू के झगड़े आम हैं और इसे घर-घर की कहानी ही माना जाता है। टेलीविजन में आज अधिकांश सीरियल सास और बहू के रिश्तों पर केंद्रित होते हैं। कहीं सास बहू को ताने मारती नजर आती है तो किसी सीरियल में बहू साजिश रचते हुए दिखाई देती है। असल जिंदगी में इन नाटकों का बहुत प्रभाव पड़ रहा है। दरअसल, आज भी सास और बहू का इकलौता ऐसा रिश्ता है जो सबसे महत्वपूर्ण है।

वैवाहिक परंपरा के अनुसार शादी के बाद हर लड़की अपने पिता के घर को छोड़ अपने पति के घर चली जाती है, जहां उसे अपने पति के परिवार को अपना परिवार समझ कर रहना पड़ता है. फिर चाहे ससुराल वाले कैसे भी हों, उन्हें अपनाना उसकी नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है. वैसे तो एक आदर्श विवाहित जीवन में ससुराल वाले लोग जैसे कि सास, ससुर आदि माता-पिता के जैसे ही व्यवहार करते हैं. लेकिन ऐसे आदर्श जीवन की कल्पना करना खुद को भ्रम में रखने के समान है क्योंकि सदियों से विवाहित युवती और उसके ससुराल वालों के बीच के संबंध हाशिए पर खड़े नजर आते रहे हैं.

विशेषकर सास-बहू के रिश्तों के तो क्या कहने. एक-दूसरे को ताने मारना, छोटी-छोटी बात पर बहस करना उनकी दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है. हालांकि विवाह के पश्चात पुरुष के संबंध भी पत्नी के परिवार से जुड़ जाते हैं लेकिन अलग रहने के कारण उसके जीवन में ससुराल वालों का हस्तक्षेप कम ही होता है. अगर फिर भी छोटी-मोटी नोक-झोंक होती है तो उसे मनोरंजक मान कर हंसी में उड़ा दिया जाता है. लेकिन महिलाओं के जीवन में सास की टोका-टाकी और हस्तक्षेप निश्चित रूप से उन्हें मानसिक रूप से बहुत प्रताड़ित करता है.

सास
किसी भी घर की गृहस्थी उस घर की विशिष्ट महिला के हाथ में होती है यानि की सास। उन्हीं के द्वारा घर को सुचारू रूप से चलाया जाता है। सास बहू को अपने जीवन की अनमोल धरोहर अपना बेटा देती है, सुव्यवस्थित घर-संसार देती है और सब से बढ़ कर उसे घर के उत्तरदायित्व व हक सौंपती है जो कल तक र्सिफ और र्सिफ उसके थे, तो फिर उसी सास को भविष्य में बहू के द्वारा उपेक्षा क्यों सहनी पड़ती है? आज ऐसी सासों की भी कमी नहीं है जिन की बहुओं ने उन का जीना दूभर कर रखा है.
सास इतनी कठोर नहीं होती जितना उसे समझा जाता है आखिर वह भी तो किसी की मां, बहन या बीवी है आखिर उसके भी हृदय में दिल है और जब उनके हृदय में दिल है तो उसे जीता भी जा सकता है। रिश्तों की मजबूती को मीठे शब्दों और प्यार से बांधा जा सकता है। यह याद रखें कि सास एक ममतामयी मां भी है। आज के परिवेश में जरूरत है उनके प्यार, दुलार और ममता भरे हाथ की।
बहू
हर लड़की शादी के ढेरों सपने बुन कर ससुराल आती है किन्तु जब उन सपनों को रिश्तों के सिमित दायरे में बांध कर उन सपनों को रौंद दिया जाता है तो उस लड़की का शादी पर से विश्वास हट जाता है। उसका दिल दुखता है मगर उस दर्द पर मलहम लगाने के लिए वह किसके आगे गुहार लगाए। बहू अपना घर परिवार सब छोड़ कर दूसरे घर आती है मगर क्या भविष्य में यह दूसरा घर कभी उसका अपना हो पाता है।
बहू को अच्छा लगता है जब सास उसे बेटी कह कर पुकारती है या प्यार से बरताव करती है। उस के बच्चे को बेहतर ढंग से संभालती है, बहू को अपने घर का हिस्सा समझती है और पति के साथ उस के रिश्ते को मजबूत बनाने में सहयोग देती है। वहीं, बहू को सास की अनचाही सलाह देने की आदत, असंवेदनशील और स्वार्थी व्यवहार बुरा लगता है। सास द्वारा उसे अच्छी मां/पत्नी बनने के गुर सिखाना या उस के बच्चे के साथ बुरा व्यवहार भी वह सह नहीं पाती। 

सास बहू के रिश्ते से बंधी है परिवार की डोर

यह खट्टा-मीठा सा रिश्ता पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है और आमतौर पर सास बहू को अपने बेटे की पत्नी की बजाए कब्जा कर लेने वाली वस्तु समझ बैठती है। आज की सास कल खुद एक बहू थी। बेटे की शादी होते ही वह यह बात भुल जाती है। बहू को ससुराल में प्रवेश करते ही अपने पति को बस में करने की बजाय अपनी सास को प्रेम और अपनेपन से अपने बस में करना चाहिए। ऐसा करने से पति तो स्वयं ही आपके बस में आ जाएंगे सास भी आपको अपनी बहू नहीं बेटी मानने लगेगी।

सास बहू में समस्याएं तब होती हैं जब बहू के घर वाले उस के कान भरने लगते हैं। जिन घरों में लड़की के मायके वालों की दखलंदाजी हुई है वह बरबाद हुए हैं। जब तक लड़की के घर वाले उस के स्पोर्ट में खड़े रहेंगे, लड़की ससुराल में थोड़ा सा भी ऐडजस्ट करने को तैयार नहीं होगी। इसके विपरीत यदि लड़की को ससुराल में सब का खयाल रखने, अपने फर्ज को निभाने और सास को सम्मान देने की सीख दी जाए तो घर के सभी अधिकार उसे खुदबखुद मिल जाएंगे। सास को भी बहू के साथ बेटी जैसा वरताव करना चाहिए ताकि बहू शांति से घर में रह सकें.

रिश्ते बनते हैं आपसी प्रेम-स्नेह एवं सामंजस्य से। सास और बहू का रिश्ता भी स्नेह, दुलार एवं आत्मीयता से ही टिकाऊ बनता है। समय के साथ इस रिश्ते में बदलाव भी आ रहा है। समय के साथ परिवार छोटे होते गए और वर्तमान सासुमाँएँ भी ज्यादा पढ़ी-लिखी व फैशनेबल होने के साथ नए विचारों में ढलती गईं।

जिस दिन नारी नारी का संम्मान करने लगेंगी उस दिन ही बहू हो या बेटी दोनों का सम्मान शिखर पर होगा ! और यह पुरुष के वश की बात नहीं नारी के ही हाथ में है ! सास बहू के रिस्ते को बेहतर बनाने के लिये जरूरी है की सास और बहू दोनो ही अपनी जीमेदारियो को बखूबी निभाये. और बेहतर ताल मेल बनाये. केवल एक के प्रयास से सब कुछ ठीक नई होता.


इन बातों से सास-बहू का रिश्ता बनेगा मजबूत

सास बहू का रिश्ता ही ऐसा होता है जिसमें एक दूसरे को समझने में थोड़ा समय लगता है।सास को बहू को बेटी और बहू को सास को मां का दर्जा देने में थोड़ा वक्त लगता है। सास और बहू दोनों को कुछ बातों का ध्यान रखते हुए एक दूसरे को समझने का प्रयास करना चाहिए।
सास को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
-सास को बहू को समझने का प्रयास करना चाहिए कि वो अभी नए घर में आई है, उसे घर में नए माहौल को अपनाने में उसे थोड़ा समय देना चाहिए।
- सास को बहू के साथ मां जैसा व्यवहार करना चाहिए ताकि उसे घर में अपनापन महसूस हो।
-सास को कभी भी बहू को, उसकी लाई गई चीज़ों की गिनती नहीं करवानी चाहिए।
-सास को बहू से उतना ही काम करवाना चाहिए जितना वे कर सकें।ज्यादा बोझ नहीं डालना चाहिए।-अगर सास के मन में भी कोई बात हो तो बहू से सीधे बात कर लेनी चाहिए।
बहू भी रखें इन बातों का ख्याल
-अगर बहू भी चाहती है कि उसे ससुराल में भी वहीं प्यार मिलें तो उसे सास को भी मां जैसा प्यार देना पड़ेगा।
-बहू को ससुराल में केवल अपने पति का ही नहीं ब्लकि पूरे परिवार का ध्यान रखना पड़ेगा, तभी वह अपने ससुराल में अपनी जगह बना सकेंगी।
-पत्नी को अपने पति से कभी भी उनकी मां की कोई एेसी बात नहीं कहनी चाहिए जिससे घर में झगड़ा हो जाएं।
-बहू को सिर्फ अपनी सास को मां जैसा समझना ही नहीं ब्लकि मां जैसे प्यार, इज्जतऔर अगर कोई बात हो भी जाएं तो अपनी सास से शेयर करने में झिझकना नहीं चाहिए।




सास बहू के झगड़े बन रहे परिवार टूटने का कारण

हाल ही में हुआ एक शोध यह साफ प्रमाणित करता है कि महिलाओं को हर छोटी बात पर अपनी सास की बातें सुननी पड़ती हैं. उनके द्वारा किया कोई भी कार्य उनकी सास को पसंद नहीं आता.
सर्वेक्षण में आए नतीजों की मानें तो दस में से सात महिलाएं सास के रोज-रोज के तानों से तंग आ चुकी हैं लेकिन फिर भी अपने जीवन में सास की उपस्थिति को सहन करने के लिए विवश हैं. उनकी सास कभी बच्चों की परवरिश को लेकर तो कभी खाना बनाने के तरीके और स्वाद को लेकर उन पर फब्तियां कसती ही रहती हैं.

गर्गल डॉट कॉम द्वारा कराए गए इस सर्वेक्षण में 1,000 महिलाओं ने हिस्सा लिया, जिनमें से अधिकांश ने यह माना है कि वह अपने पति की मां को सहन नहीं कर सकतीं. एक अनुमान के मुताबिक लगभग 39% महिलाएं बच्चों की परवरिश को लेकर सास के तानों से तंग आ चुकी हैं. वहीं 20 % महिलाओं की शिकायत है कि उनकी सास उनके जीवन में बहुत ज्यादा हस्तक्षेप करती हैं, इसके अलावा वह उनके पति को आत्मनिर्भर नहीं बनने देतीं. माना जाता है कि दादा-दादी अपने पोता-पोती से बहुत लाड़ प्यार करते हैं, लेकिन कभी-कभार यही लाड़ प्यार बच्चों को बिगाड़ने का काम करता है. 18% प्रतिशत महिलाओं की यही शिकायत है कि उनकी सास बच्चों को ज्यादा दुलार देने के चक्कर में बिगाड़ रही हैं. लेकिन कुछ महिलाएं तो सिर्फ इसीलिए परेशान हैं कि उनकी सास बिना बुलाए उनके घर रहने आ गई हैं.

शोधकर्ताओं का मानना है कि सास ऐसा व्यवहार इसीलिए नहीं करतीं कि वह आपके प्रति कोई दुर्भावना रखती है या आप जो कर रही हैं उन्हें वो पसंद नहीं आता बल्कि वह सिर्फ आपके नए प्रयोगों और तरीकों को समझ नहीं पातीं और जैसे उन्होंने अपना घर परिवार संभाला है वह चाहती हैं कि आप भी वैसे ही संभालें. लेकिन आपको उनकी बात बुरी इसीलिए लगती है क्योंकि आप भले ही अपनी मां की राय और उनके आदेश को ना मानें, लेकिन आपको अपनी सास के आदेश का पालन करना ही पड़ता है.

इस सर्वेक्षण को भारतीय परिदृश्य में देखा जाए तो इस बात को कतई नकारा नहीं जा सकता कि भारतीय महिलाओं के जीवन में सास की उपस्थिति का क्षेत्र बहुत अधिक होता है. विदेशों में तो एकल परिवारों की प्रमुखता की वजह से सास का घर में आगमन एक मेहमान की ही तरह होता है जो सिर्फ कुछ दिनों के लिए ही घर पर रहने आते हैं. लेकिन भारतीय परिवारों में माता-पिता अपने बच्चों के साथ ही रहते हैं. ऐसे में संभव है महिलाओं खासतौर पर गृहणियों की मानसिक स्थिति काफी हद तक तनाव ग्रस्त हो जाती है. हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है कि सास का काम बहू को ताने मारना ही होता है. आज के समय में जब महिलाएं भी बाहर जाकर कार्य करती हैं तो उनके पीछे सास ही उनके बच्चों और परिवार की पूरी जिम्मेदारी उठाती हैं. इसके विपरीत कई बहुएं भी अपने गलत व्यवहार से अनपेक्षित रूप से अपने ससुराल वालों का जीवन असहनीय बना देती हैं.

उपरोक्त के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सास-बहू का संबंध एक बेहद नाजुक और महीन धागे से बंधा हुआ होता है, जो उन्हें एक-दूसरे से जोड़ कर रखता है. परिवार में शांति और जीवन को सुखद बनाए रखने के लिए जरूरी है कि प्रेमपूर्वक रहा जाए. अगर बहू के साथ बेटी जैसा व्यवहार करें तो उसकी गलतियों को माफ करना आसान हो जाता है. वहीं अगर महिलाएं भी अपने ससुराल वालों को अपने माता-पिता का दर्जा देती हैं, तो उन्हें कभी उनकी उपस्थिति बोझ नहीं लगेगी और अगर वह कुछ कहते भी हैं तो उनकी डांट में भी प्यार नजर आएगा.

3 comments:

  1. Meri bhi saas or nand ghar basne nhi deti kiya krun pati bhi bahan ki baat manta h

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  2. Meri bhi saas or nand ghar basne nhi deti kiya krun pati bhi bahan ki baat manta h

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  3. Mera toh ghar tod hi diya saas aur nanadon ne milkar

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