कम्प्यूटरों का परिचय
सम्पूर्ण विश्व मे शायद ही कोई इंसान बचा होगा जो इस शब्द से अभी तक अनजान होगा. वर्तमान के कम्पयूटर इलेक्ट्रानिक और डिजिटल है । इनमे मुख्य रूप से तार ट्रांजिस्टर एवं सर्किट का उपयोग किया जाता है । जिसे हार्डवेयर कहा जाता है । निर्देश एवं डेटा को साफ्टवेयर कहा जाता है ।
आज कम्प्यूटर (computer) हम सब की एक प्रमुख आवश्यकता बन गई है। विद्यालयों में कम्प्यूटर के विषय में सिखाया जा रहा है। कार्यालयों में कम्प्यूटर के बिना काम हो पाना असम्भव-सा हो गया है। टायपिंग करना हो, सारणी बनाना हो, छायाचित्र का संपादन करना हो, उपलब्ध जानकारियों का विश्लेषण करना हो, काम कैसा भी क्यों न हो, हमें कम्प्यूटर की आवश्यकता होती ही है। चिप्स, तार आदि से बने इस यंत्र हम आदेश देते हैं और यह बात की बात में हमारे आदेश को पूरा कर देता है।
सबसे पहले हम यह जान लें कि सैन्य (military) तथा वैज्ञानिक गणनाओं के लिये 1940 के दशक में कम्प्यूटर का निर्माण किया गया। अनेक वर्षों वर्षों तक कम्प्यूटर का स्वरूप बड़े भवन के बराबर विशाल रहा। आज का डेस्क टॉप (desktop) या पर्सनल कम्प्यूटर – पी.सी. (personal computer – P.C.) केवल 15 वर्ष पुराना है।
कम्प्यूटर एक इलैक्ट्रोनिक डिवाइस है । जो इनपुट के माध्यम से आंकडो को ग्रहण करता है उन्हे प्रोसेस करता है एवं सूचनाओ को निर्धारित स्थान पर स्टोर करता है ! कम्पयूटर एक क्रमादेश्य मशीन है ।
इनपुट (Input)
डाटा को इकठ्ठा करके कम्प्यूटर में डाला जाता है। इसे इनपुट प्रोसेस कहते हैं।
भंडारण (Storage)
जो भी डाटा कम्प्यूटर के अंदर पहुँचता है वह उसकी मेमोरी में स्टोर हो जाता है जिसे कम्प्यूटर की फिजि़कल मेमोरी (Physical Memory) कहते हैं। फिजि़कल मेमोरी की एक सहायक मेमोरी ऑक्ज़ीलरी मेमोरी (auxilary memory) भी होती है।
प्रोसेसिंग (Processing)
कम्प्यूटर की फिजि़कल मेमोरी में स्टोर डाटा पर इच्छित परिणाम पाने के लिए कार्य किया जाता है, जिसे प्रोसेसिंग कहते हैं। परिणाम फिर से फिजि़कल मेमोरी में स्टोर हो जाते हैं।
आउटपुट (output)
फिजि़कल मेमोरी से स्टोर डाटा को निकालने की प्रक्रिया को आउटपुट कहते हैं।
कम्पयूटर की निम्नलिखित विशेषताएँ है ।
• कम्प्यूटर एक डाटा प्रोसेसिंग उपकरण होता है जो पढ़ व लिख सकता है, गणना और तुलना कर सकता है, डाटा की भारी मात्रा को उच्च गति, सटीकता और विश्वसनीयता के साथ स्टोर व प्रोसेस कर सकता है।
• यह दिए हुए निर्देशों पर कार्य करता है।
• एक बार डाटा और निर्देशों का समुच्चय (स्द्गह्ल) इसकी मेमोरी में फीड कर दिया जाता है तो यह निर्देशों का अनुपालन करता है, डाटा पर निर्देशानुसार कार्य करता है और परिणाम देता है।
• इसकी कार्यप्रणाली स्वचालित होती है।
• यह इलेक्ट्रॉनिक अवयवों का प्रयोग करता है; ट्रांजिस्टर, रेजिस्टर, डायोड और सर्किट।
कम्प्यूटर क्या होता है
सारांश में उपलब्ध जानकारियों को छाँटने, क्रियान्वित करने तथा सुरक्षित रखने के इलेक्ट्रानिक विधि को ही कम्प्यूटर कहा जाता है। (Computers are essentially an electronic way to sort, process and store information.)
कम्प्यूटर के मुख्य रूप से चार घटक (components) हैं -
• हार्डवेयर (Hardware)
• ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System)
• एप्लीकेशन प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर (Application Programs or Software)
• यूजर्स (Users)
हार्डवेयर (Hardware): कम्प्यूटर के वे घटक होते हैं जिन्हें हम देख और छू सकते हैं। हार्डवेयर के अन्तर्गत सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट – सीपीयू (Central Processing Unit – CPU), फ्लॉपी ड्राइव्ह (Floppy Drive), सीडी रोम ड्राइव्ह (CD ROM Drive), मानीटर (Monitor), कीपैड (Keypad), माउस (Mouse), स्पीकर्स (Speakers) आदि आते हैं।
सॉफ्टवेयर (Software): कम्प्यूटर के उन घटकों को कहा जाता है जिन्हें हम देख-छू नहीं सकते किन्तु उनकी सहायता से कम्प्यूटर के द्वारा वांछित परिणाम प्राप्त कर लेते हैं। ये निर्देशों के समुच्चय होते हैं जिनके द्वारा कम्प्यूटर एक या एक से अधिक कार्यों को सम्पन्न करता है। (A set of instructions that cause a computer to perform one or more tasks)
ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System): कम्प्यूटर सिस्टम के हार्डवेयर रिसोर्सेस जैसे-मैमोरी, प्रोसेसर तथा इनपुट-आउटपुट डिवाइसेस को व्यवस्थित करने के लिये बनाये गये सॉफ्टवेयर को ऑपरेटिंग सिस्टम कहते है। विस्तृत जानकारी के लिये देखें सॉफ्टवेयर (Software)
एप्लीकेशन प्रोग्राम (Application Programs): उन सॉफ्टवेयरस् को एप्लीकेशन प्रोग्राम कहा जाता है जिनकी सहायता से हम कम्प्यूटर को दिये गये किसी निश्चित आदेश का पालन करवाते हैं, उदाहरण के तौर पर वर्ड प्रोसेसर्स (Word Processers) जैसे कि एमएस आफिस (MS Office), एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर्स (Accounting Softwares) जैसे कि टैली (Tally) आदि।
यूजर्स (Users): कम्प्यूटर को प्रयोग करने वाले यूजर्स कहलाते हैं।
कंप्यूटर के प्रकार
कम्प्यूटर अपने काम-काज, प्रयोजन या उद्देश्य तथा रूप-आकार के आधार पर विभिन्न प्रकार के होते हैं। वस्तुतः इनका सीधे-सीधे अर्थात प्रत्यक्षतः (Direct) वर्गीकरण करना कठिन है, इसलिए इन्हें हम निम्नलिखित तीन आधारों पर वर्गीकृत करते हैं :
1.अनुप्रयोग(Application)
2.उद्देश्य(Purpose)
3. आकार (Size)
1. अनुप्रयोग के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार
.यद्यपि कम्प्यूटर के अनेक अनुप्रयोग हैं जिनमे से तीन अनुप्रयोगों के आधार पर कम्प्यूटरों के तीन प्रकार होते हैं :
(a) एनालॉग कम्प्यूटर
(b ) डिजिटल कम्प्यूटर
(c) हाईब्रिड कम्प्यूटर
2. उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार
कम्प्यूटर को दो उद्देश्यों के लिए हम स्थापित कर सकते हैं- सामान्य और विशिष्ट , इस प्रकार कम्प्यूटर उद्देश्य के आधार पर निम्न दो प्रकार के होते हैं :
(a ) सामान्य-उद्देशीय कम्प्यूटर
(b ) विशिष्ट -उद्देशीय कम्प्यूटर
3. आकार के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार
आकार के आधार पर हम कम्प्यूटरों को निम्न श्रेणियाँ प्रदान कर सकते हैं –
1. माइक्रो कम्प्यूटर
2. वर्कस्टेशन
3. मिनी कम्प्यूटर
4. मेनफ्रेम कम्प्यूटर
5. सुपर कम्प्यूटर
कार्य क्षमता के आधार
कम्प्यूटर का मुख्य कार्य हमारे द्वारा दिये गये डाटा को स्टोर (STORE) कर उसपर कार्य कर के हमें परिणाम देना है। इसी आधार पर उन्हें कार्य क्षमता के आधार पर कुछ श्रेणियों मे बाँटा गया है। वह हैं – सुपर कंप्यूटर, मेनफ्रेम कंप्यूटर, मिनी कंप्यूटर, एव माइक्रो कंप्यूटर आदि। सुपर कंप्यूटर इनमें सबसे बडी श्रेणी होती है, तथा माइक्रो कंप्यूटर सबसे छोटी।
सुपर कंप्यूटर सबसे तेज गति से कार्य करने वाले कंप्यूटर होते हैं। वह बहुत अधिक डाटा को काफी कम समय में इंफार्मेशन में बदलने में सक्षम होते हैं। इनका प्रयोग बड़े-बड़े कार्य करने में होता है, जैसे मौसम की भविष्यवाणी, डाटा माइनिंग, जटिल सिमुलेशन, मिसाइलों के डिजाइन आदि। इनमें अनेक माइक्रोप्रोसेसर (MICROPROCESSOR) [एक विशेष छोटी मशीन जो कम्प्यूटिंग के कार्य को काफी आसानी से तथा बहुत ही कम समय में कर सकने में सक्षम होती है।] लगे होते हैं। किसी जटिल गणना को कम समय में पूरा करने के लिये बहुत से प्रोसेसर एकसाथ (पैरेलेल) काम कराने पडते हैं। इसे पैरेलेल प्रोसेसिंग कहा जाता है। इसके अन्तर्गत जटिल काम को छोटे-छोटे टुकडों में इस प्रकार बाँटा जाता है कि ये छोटे-छोटे कार्य एक साथ अलग-अलग प्रोसेसरों द्वारा स्वतन्त्र रूप से किये जा सकें।
मेनफ्रेम कम्प्यूटर, सुपर कंप्यूटर से कार्यक्षमता में छोटे परंतु फिर भी बहुत शक्तिशाली होते हैं। इन कम्प्यूटरों पर एक समय में २५६ से अधिक व्यक्ति एक साथ काम कर सकते हैं। अमरीका की I.B.M. कंपनी (INTERNATIONAL BUSINESS MACHINE CORPORATION ) मेनफ्रेम कंप्युटरों को बनाने वाली सबसे बडी कंपनी है।
मिनी कम्प्यूटर मेनप्रेम कंप्यूटरों से छोटे परंतु माइक्रो कम्प्यूटरों से बडे होते हैं।
माइक्रो कम्प्यूटर (पर्सनल कम्प्यूटर) सबसे छोटे होते हैं तथा इन्हीं को वैयक्तिक कम्प्यूटर या पर्सनल कम्प्यूटर भी कहा जाता है | इसका प्रथम संस्करण १९८१ में विकिसित हुआ था, जिसमे ८०८८ माईक्रोप्रोसेसर प्रयुक्त हुआ था |
पर्सनल कम्पूटर:
पर्सनल कम्प्यूटर माइक्रो कम्प्यूटर समानार्थक से जाने वाले वैसे कम्प्यूटर प्रणाली है जो विशेष रूप से व्यक्तिगत अथवा छोटे समूह के द्वारा प्रयोग मे लाए जाते हैं। इन कम्प्यूटरों को बनाने में माइक्रोप्रोसेसर मुख्य रूप से सहायक होते है । पर्सनल कम्प्यूटर निर्माण विशेष क्षेत्र तथा कार्य को ध्यान में रखकर किया जाता है। उदाहरणार्थ- घरेलू कम्प्यूटर तथा कार्यालय में प्रयोगकिये जाने वाले कम्प्यूटर। बजारमें, छोटे स्तर की कम्पनियों अपने कार्यालयों के कार्य के लिए पर्सनल कम्प्यूटर को प्राथमिकता देते हैं। पर्सनल कम्प्यूटर के मुख्य कार्यो में गेम, इन्टरनेट का प्रयोग , शब्द-प्रक्रिया इत्यादि शामिल हैं। पर्सनल कम्प्यूटर के कुछ व्यवसायिक कार्य हैं - कम्प्यूटर सहायक रूपरेखा तथा निर्माण, इन्वेन्ट्री तथा प्रोडक्शन कन्ट्रोल, स्प्रेडशीट कार्य, अकाउन्टिंग, सॉफ्टवेयर निर्माण, वेबसाइट डिजाइनिंग तथा निर्माण और सांख्यिकी गणना.
पर्सनल कम्प्यूटर का मुख्य भाग: माइक्रोप्रोसेसर वह चिप होती जिस पर कंट्रोल यूनिट और ए. एल. यू. एक परिपथ होता है। माइक्रोप्रोसेसर चिप तथा अन्य डिवाइस एक इकाई में लगे रहते है, जिसे सिस्टम यूनिट कहते है। पी,सी. में एक सिस्टम यूनिट, एक मनिटर या स्क्रीन एक की बोर्ड एक माउस और अन्य आवश्यक डिवाइसेज, जैसे प्रिंटर, मॉडेम, स्पीकर, स्कैनर, प्लॉटर , ग्राफिक टेबलेट , लाइच पेन आदि होते हैं।
पर्सनल कम्प्यूटर का मूल सिद्धान्त: पी.सी एक प्रणाली है जिसमें डाटा और निर्देशों को इनपुट डिवाइस के माध्यम से स्वीकार किया जाता है। इस इनपुट किये गये डाटा व निर्देशों को आगे सिस्टम यूनिट में पहुँचाया जाता है, जहाँ निर्देशों के अनुसार सी. पी. यू. डाटा पर क्रिया या प्रोसेसिंग का कार्य करता है और परिचय को आउटपुट यूनिट मॉनीटर या स्क्रीन पर भेज देता है। यह प्राप्त परिणाम आउटपुट कहलाता है। पी. सी में इनपुट यूनिट में प्रायः की-बोर्ड और माउस काम आते है जबकि आउटपुट यूनिट के रूप में मॉनिटर और प्रिटर काम आते हैं।
कम्प्यूटर के गुण
कंप्यूटर हमारे द्वारा दिये जाने वाले हर कार्य को बखूबी करने में सक्षम होते हैं। इनके कुछ गुण इस प्रकार हैं :
गति
कम्प्यूटर काफी तेज गति से कार्य करते हैं, जब हम कम्प्यूटर के बारे में बात करते हैं, तो हम मिनी सेकेन्ड, माइक्रो सेकेन्ड में बात नही करते, बल्कि हम 10-12 सेकेन्ड में एक कम्पयूटर कितना कार्य कर लेता है, इस रूप में उसकी गति को आँकते हैं।
न उबना
कंप्यूटर कभी भी उबते (बोर) नहीं हैं, और यही इनका सबसे अच्छा गुण है, क्योंकि यह एक यंत्र हैं, इसलिये ये काफी दिनों तक बिना किसी शिकायत के कार्य करने में सक्षम होते हैं।
स्मरण करने या संग्रह की क्षमता
एक सामान्य कम्प्यूटर भी एक बार दिये गये निर्देश को काफी समय तक स्मरण रखने मे सक्षम होता है, तथा जब भी आवश्यकता पडे़, उसे फिर से लिखा और भरा जा सकता है।
उपयोग
ईमेल
सहयोग
जानकारी संजोना
लेखांकन
शब्द संस्करण
पुस्तक प्रकाशन
सामग्री प्रवंधन
वैज्ञानिक अनुन्संधन तथा विकास
दूर संचार
शिक्षा प्रसार
कम्प्यूटर भाषाएँ
कम्प्यूटर केवल विद्युत धारा के चालू या बंद अर्थात 0 या 1 में अंकित भाषा ही समझ सकता है |अतः अगर कम्प्यूटर से कोई कार्य संपन्न कराना है तो इसी भाषा में समादेश या सुचना देनी होती है |
मशीनी भाषा (Machine Language)
कम्प्यूटर के विकास के शुरूआती दिनों में अनुदेश बाइनरी सिस्टम में अंकित किये जाते थे | इसमे मशीन से सीधा संपर्क स्थापित होता था, अतः इसे मशीनी भाषा कहा जाता था | ये काफी जटिल प्रक्रिया होती थी |
सयोंजन भाषा (Assembly Language)
मशीनी भाषा की जटिलता को दूर करने के लिए सांकेतिक भाषायों का अविष्कार किया गया | इसमे प्रत्येक प्रक्रिया के लिए एक सरल शब्द को चुना गया |
चूंकि कम्प्यूटर सीधे भाषा में लिखे गए प्रोग्रामों को समझ नहीं सकता, इसीलिए कम्प्यूटर में सयोंजन भाषा या असेम्बली भाषा में प्रयुक्त शब्दों के लिए उनके पर्याय मशीनी भाषा के बाइनरी कोडॉ में परिवर्तन के लिए एक विशेष प्रोग्राम की जरूरत पड़ती है, इस विशेष प्रोग्राम को सयोंजक या असेम्बलर (Assembler) कहा जाता है |
उच्च स्तरीय भाषाएँ (High Level Language)
असेम्बली लेंगवेज के आने से कम्प्यूटर प्रोग्रामर्स को सुविधा जरूर मिली, किन्तु इसके लिए प्रोग्रामर को कम्प्यूटर के हार्डवेयर, तथा इसकी कार्य प्रणाली का सम्पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक होता था | अतः अब और भी सरल भाषायों का विकास किया गया, जिन्हें उच्च सत्रीय भाषा कहा गया | इनमे से कुछ प्रमुख आरंभिक भाषाए कोबोल(COBOL), बेसिक (BASIC), सी (C) थी |
उच्च स्तरीय भाषायों या हाई लेवल लेंगवेजों को मशीन भाषा में परिवर्तित करने के लिए संकलक( Compiler) और व्याख्याता (Interpreter) की जरूरत पड़ती है |
संकलक या कंपाइलर उच्च स्तरीय भाषा में लिखे गए प्रोग्राम को स्थायी रूप से मशीन भाषा में परिवर्तित करता है, जबकि व्याख्याता या इंटरप्रेटर एक एक पंक्ति करके परिवर्तित करता है |
कम्पूटर की विशेषताएं: प्रत्येक कम्प्यूटर की कुछ सामान्य विशेषताएँ होती है। कम्प्यूटर केवल जोड करने वाली मशीन नही है यह कई जटिल कार्य करने मे सक्षम है। कम्प्यूटर की निम्न निशेषताएँ है:
वर्ड-लेन्थ: डिजिटल कम्प्यूटर केवल बायनरी डिजिट (बिट) पर चलता है। यह केवल 0 एवं 1 की भाषा समझता है। आठ बिट के समूह को बाइट कहा जाता है । बिट की संख्या जिन्हे कम्प्यूटर एक समय मे क्रियान्वित करता है वर्ड लेंन्थ कहा जाता है । सामान्यतया उपयोग मे आने वाले वर्ड लेन्थ 8,16,32,64 आदि है। वर्ड लेन्थ के द्वारा कम्प्यूटर की शक्ति मापी जाती है।
तीव्रता: कम्प्यूटर बहुत तेज गति से गणनाएँ करता है माइक्रो कम्प्यूटर मिलियन गणना प्रति सेकंड क्रियांवित करता है।
संचित युक्ति: कम्प्यूटर की अपनी मुख्य तथा सहायक मेमोरी होती है। जो कि कम्प्यूटर को आंकडो को संचित करने मे सहायता करती है । कम्प्यूटर के द्वारा सुचनाओ को कुछ ही सेकंड मे प्राप्त किया जा सकता है । इस प्रकार आकडो को संचित करना एवं बिना किसी त्रुटि के सुचनाओ को प्रदान करना कम्प्यूटर की महत्वपूर्ण विशेषता है.
शुद्धता: कम्प्यूटर बहुत ही शुद्ध मशीन है। यह जटिल से जटिल गणनाएँ बिना किसी त्रुटि के करता है।
वैविघ्यपूर्ण: कम्प्यूटर एक वैविघ्यपूर्ण मशीन है यह सामान्य गणनाओ से लेकर जटिल से जटिल गणनाएँ करने मे सक्षम है। मिसाइल एवं उपग्रहो का संचालन इन्ही के द्वारा किया जाता है। दूसरे शब्दो मे हम कह सकते है कि कम्प्यूटर लगभग सभी कार्यो को कर सकता है एक कम्प्यूटर दूसरे कम्प्यूटर से सुचना का आदान प्रदान कर सकता है। कम्प्यूटर की आपस मे वार्तालाप करने की क्षमता ने आज ईंटरनेट को जन्म दिया है ।जो कि विश्व का सबसे बडा नेटवर्क है।
स्वचलन: कम्प्यूटर एक समय मे एक से अधिक कार्य करने मे सक्षम है ।
परिश्रमशीलता: परिश्रमशीलता का अर्थ है कि बिना किसी रूकावट के कार्य करना । मानव जीवन थकान ,कमजोरी,सकेन्द्रण का आभाव आदि से पिडित रङता है।मनुष्य मे भावनाए ङोती है वे कभी खुश कभी दुखी होते है । इसलिए वे एक जैसा काम नही कर पाते है । परंतु कम्प्यूटर के साथ ऐसा नही है वह हर कार्य हर बार बहुत ही शुद्धता एवं यथार्थता से करता है.
कंप्यूटर की मूल इकाइयाँ
बिट: यह कम्प्यूटर की स्मृति की सबसे छोटी इकाई है। यह स्मृति में एक बायनरी अंक 0 अथवा 1 को संचित किया जाना प्रदर्शित करता है । यह बाइनरी डिजिट का छोटा रूप है.
बाइट: यह कम्प्यूटर की स्मृति की मानक इकाई है। कम्प्यूटर की स्मृति में की-बोर्ड से दबाया गया प्रत्येक अक्षर, अंक अथवा विशेष चिह्न ASCII Code में संचित होते हैं। प्रत्येक ASCII Code 8 बिट का होता है। इस प्रकार किसी भी अक्षर को स्मृति में संचित करने के लिए 8 बिट मिलकर 1 बाइट बनती है।
कैरेक्टर: संख्यांको के अलावा वह संकेत है जो भाषा और अर्थ बताने के काम आते है। उदाहरण के लिए a b c d e f g h i j k l m n o p q r s t u v w x y z A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z 0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 ! @ # $ % ^ & * ( ) _ - = + | \ ` , . / ; ' [ ] { } : " < > ?. कम्प्यूटर सिस्टम सामान्यतः कैरेक्टर को संचित करने के लिए ASCII कोड का उपयोग करते हैं। प्रत्येक कैरेक्टर 8 बिटस का उपयोग करके संचित होता है.
बिट बाईट नियम
१ बिट = सबसे छोटी इकाई (b)
४ बिट = १ निब्बल (n)
८ बिट = १ बाईट (B) (काम में आने वाली इकाई)
१०२४ बाईट = १ किलोबाईट (KB)
१०२४ किलोबाईट = १ मेगाबाईट (MB)
१०२४ मेगाबाईट = १ गीगाबाईट (GB)
१०२४ गीगाबाईट = १ टेराबाईट (TB)
१०२४ टेराबाईट = १ पेटाबाईट (PB)
१ पेटाबाईट = १ एक्साबाईट (EB)
१०२४ एक्साबाईट = १ जेटाबाईट (ZB)
१०२४ जेटाबाईट = १ योट्टाबाईट (YB)
विभिन्न अंक प्रणाली
द्वि-अंकीय प्रणाली (डेसीमल नंबर सिस्टम): इस प्रणाली के अन्तर्गत आंकड़ों को मुख्य रूप से केवल दो अंकों के संयोजन द्वारा दर्शाया जाता है। ये दो अंक उपरोक्त 0 तथा 1 होते हैं परन्तु इस प्रणाली को द्वि-अंकीय या द्वि-आधारी पद्धति का नाम इसलिये दिया गया है क्योंकि इसमें विभिन्न आंकड़ों के कूट संकेत उस दी गई संख्या को दो से लगातार विभाजन के पश्चात प्राप्त परिणामों एवं शेषफल के आधार पर किया जाता है एवं इस कूट संकेत से पुनः दशमलव अंक प्राप्त करने पर इस कूट संकेत के अंकों को उसके स्थानीय मूल्य के बराबर 2 की घात निकालकर गुणा करते हैं एवं इनका योग फल निकाल कर ज्ञात किया जाता है । इस प्रणाली में बने हुए एक शब्द में प्रत्येक अक्षर को एक बिट कहा जाता है। उदाहरण के लिए 011001 यह एक 6 बिट की संख्या है, 11010010 यह एक 8 बिट की संख्या है।
ऑक्टल (8 के आधार वाली) प्रणाली: इस प्रणाली को ऑक्टल प्रणाली इसलिये कहा जाता है कि इस प्रणाली में उपयोग किये जाने वाले विभिन्न अंकों का आधार 8 होता है। दूसरे शब्दों में इस प्रणाली में केवल 8 चिन्ह या अंक ही उपयोग किये जाते हैं: 0,1,2,3,4,5,6,7 (इसमें दशमलव प्रणाली की भांति 8 एवं 9 के अंकों का प्रयोग नहीं किया जाता). यहाँ सबसे बड़ा अंक 7 होता है (जो कि आधार से एक कम है) एवं एक ऑक्टल संख्या में प्रत्येक स्थिति 8 के आधार पर एक घात को प्रदर्शित करती हैं। यह घात ऑक्टल संख्या की स्थिति के अनुसार होती है । चूँकि इस प्रणाली में कुल 0 से लेकर7 तक की संख्याओं को अर्थात 8 अंकों को प्रदर्शित करना होता है. कम्प्यूटर को प्रषित करते समय इस ऑक्टल प्रणाली के शब्दों को बाइनरी समतुल्य कूट संकेतों में परिवर्तित कर लिया जाता है। जिससे कि कम्प्यूटर को संगणना हेतु द्वि-अंकीय आंकड़े मिलते हैं एवं समंक निरूपण इस ऑक्टल प्रणाली में किया जाता है जिससे कि समंक निरुपण क्रिया सरल एवं छोटी हो जाती है.
हैक्सा (16 के आधार वाली) दशमलव प्रणाली: हैक्सा दशमलव प्रणाली 16के आधार वाली प्रणाली होती है. 16 आधार हमें यह बताता है कि इस प्रणाली के अन्तर्गत हम 16 विभिन्न अंक या अक्षर इस प्रणाली के अंतर्गत उपयोग कर सकते हैं। इन 16 अक्षरों में 10 अक्षर तो दशमलव प्रणाली के अंक 0,1,2,3,4,5,6,7,8,9 होते हैं एवं शेष 6 अंक A,B,C,D,E,F के द्वारा दर्शाये जाते हैं जो कि दशमलव मूल्यों 10,11,12,13,14,15 को प्रदर्शित करते हैं। चूँकि हैक्सा दशमलव प्रणाली के अंतर्गत कुल 16 अंक प्रदर्शित करने होते हैं, इस प्रणाली के विभिन्न अक्षरों को द्वि-अंकीय प्रणाली के समतुल्य बनाने हेतु कुल 4 बिटों का प्रयोग किया जाता है.
कंप्यूटर की पीढ़ी: कम्प्यूटर यथार्थ मे एक आश्चर्यजनक मशीन है। कम्प्यूटर को विभिन्न पीढ़ी मे वर्गीकृत किया गया है। समय अवधि के अनुसार कम्प्यूटर का वर्गीकरण नीचे दिया गया है।
प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर (1945 से 1956): सन् 1946 मे पेनिसलवेनिया विश्वविधालय के दो ईंजिनियर जिनका नाम प्रोफेसर इक्रर्टऔर जॉन था। उन्होने प्रथम डिजिटल कम्प्यूटर का निर्माण किया। जिसमे उन्होने वैक्यूम ट्यूब का उपयोग किया था। उन्होने अपने नए खोज का नाम इनिक (ENIAC) रखा था। इस कम्प्यूटर मे लगभग 18,000 वैक्यूम ट्यूब , 70,000 रजिस्टर और लगभग पांच मिलियन जोड़ थे । यह कम्प्यूटर एक बहुत भारी मशीन के समान था । जिसे चलाने के लिए लगभग 160 किलो वाट विद्युत उर्जा की आवशयकता होती थी।
द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर (1956 से 1963): सन् 1948 मे ट्रांजिस्टर की खोज ने कम्प्यूटर के विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । अब वैक्यूम ट्यूब का स्थान ट्रांजिस्टर ने ले लिया जिसका उपयोग रेडियो ,टेलिविजन , कम्प्यूटर आदि बनाने मे किया जाने लगा । जिसका परिणाम यह हुआ कि मशीनो का आकार छोटा हो गया । कम्प्यूटर के निर्माण मे ट्रांजिस्टर के उपयोग से कम्प्यूटर अधिक उर्जा दक्ष ,तीव्र एवं अधिक विश्वसनिय हो गया । इस पीढी के कम्प्यूटर महंगे थे । द्वितीय पीढी के कम्प्यूटर मे मशीन लेंग्वेज़ को एसेम्बली लेंग्वेज़ के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया । एसेम्बली लेंग्वेज़ मे कठिन बायनरी कोड की जगह संक्षिप्त प्रोग्रामिंग कोड लिखे जाते थे.
तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर (1964 से 1971): यद्यपि वैक्यूम ट्यूब का स्थान ट्रांजिस्टर ने ले लिया था परंतु इसके उपयोग से बहुत अधिक मात्रा मे ऊर्जा उत्पन्न होती थी जो कि कम्प्यूटर के आंतरिक अंगो के लिए हानिकारक थी. सन् 1958 मे जैक किलबे ने IC (Integrated Cercuit ) का निर्माण किया । जिससे कि वैज्ञानिको ने कम्प्यूटर के अधिक से अधिक घटको को एक एकल चिप पर समाहित किया गया , जिसे सेमीकंडकटर कहा गया, पर समाहित कर दिया । जिसका परिणम यह हुआ कि कम्प्यूटर अधिक तेज एवं छोटा हो गया।
चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर(1971 से वर्तमान): सन् 1971 मे बहुत अधिक मात्रा मे सर्किट को एक एकल चिप पर समाहित किया गया। LSI (LargeScale Integrated Circuit), VLSI (Very Large ScaleIntegratd Circuit) तथा ULSI (Ultra Large Scale Integrated Circuit) मे बहुत अधिक मात्रा मे सर्किट को एक एकल चिप पर समाहित किया गया । सन् 1975 मे प्रथम माइक्रो कम्प्यूटर Altair 8000 प्रस्तुत किया गया। सन् 1981 मे IBM ने पर्सनल कम्प्यूटर प्रस्तुत किया जिसका उपयोग घर, कार्यालय एवं विघालय मे होता है । चतुर्थ पीढी के कम्प्यूटर मेलेपटॉप का निर्माण किया गया जो कि आकार मे ब्रिफकेस के समान था औरपामटॉप का निर्माण किया गया जिसे जेब मे रखा जा सकता था.
पंचम पीढ़ी के कम्प्यूटर (वर्तमान से वर्तमान के उपरांत): पंचम पीढी के कम्प्यूटर को परिभाषित करना कुछ कठिन होगा । इस पीढी के कम्प्यूटर लेखक सी क्लार्क के द्वारा लिखे उपन्यास अ स्पेस ओडिसी मे वर्णित HAL 9000 के समान ही है। ये रियल लाइफ कम्प्यूटर होंगे जिसमे आर्टिफिशल इंटेलिजेंस होगा। आधुनिक टेक्नॉलाजी एवं विज्ञान का उपयोग करके इसका निर्माण किया जाएगा जिसमे एक एकल सी. पी. यू . की जगह समानान्तर प्रोसेसिंग होगी तथा इसमे सेमीकंडकटर टेक्नॉलाजी का उपयोग किया जाएगा जिसमे बिना किसी प्रतिरोध के विद्युत का बहाव होगा जिससे सूचना के बहाव की गति बढेगी।
कम्प्यूटर का आर्किटेक्चर (Architecture Of Computer)
किसी भी पारम्परिक कम्प्यूटर के निम्नलिखित अवयव होते हैं-
इनपुट उपकरण (Input device)
इस उपकरण का उपयोग मनुष्य से मशीन के बीच सँचार के लिए किया जाता है। जिस डाटा की कम्प्यूटर में प्रोसेसिंग की जानी है उसे इसी उपकरण के द्वारा डाला जाता है, उदाहरणस्वरूप की-बोर्ड, ऑप्टिकल कैरेक्टर रीडर, मार्क रीडर, मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रीडर।
आउटपुट उपकरण (Output Device)
इस उपकरण का प्रयोग मशीन से मनुष्य के बीच संचार के लिए किया जाता है। प्रोसेस्ड परिणामों को इन उपकरणों के द्वारा कम्प्यूटर प्रणाली से निकाला जाता है, उदाहरणस्वरूप, वीडियो डिस्प्ले यूनिट, प्रिंटर्स, प्लॉटर्स इत्यादि।
सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit) सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट को हिन्दी में केन्द्रीय विश्लेषक इकाई भी कहा जाता है । इसके नाम से ही स्पष्ट है, यह कम्प्यूटर का वह भाग है, जहां पर कम्प्यूटर प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करता है। सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट कम्प्यूटर के सभी ऑपरेशनों का समन्वय एवँ संगठन करके सम्पूर्ण प्रणाली को नियंत्रित करती है। यह की-बोर्ड जैसे विभिन्न इनपुट उपकरणों द्वारा दिए गए निर्देशों का अनुपालन करती है और प्रिंटर जैसे विभिन्न पैरीफेरल उपकरणों के लिए आउटपुट का इंतजाम करती है। यह प्राइमरी स्टोरेज में स्टोर निर्देशों को लाने के लिए जिम्मेदार होती है, उनकी व्याख्या करती है और उन सभी हार्डवेयर यूनिटों को निर्देश जारी करती है जो उन निर्देशों पर कार्य करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (सी.पी.यू.) को पुनः तीन भागों में बांटा जा सकता है - कन्ट्रोल यूनिट, ए.एल.यू. तथा स्मृति.
कन्ट्रोल यूनिट: कन्ट्रोल यूनिट का कार्य कम्प्यूटर की इनपुट एवं आउटपुट युक्तियों को नियन्त्रण में रखना है. कन्ट्रोल यूनिट के मुख्य कार्य है सर्वप्रथम इनपुट युक्तियों की सहायता से सूचना/डेटा को कन्ट्रोलर तक लाना, कन्ट्रोलर द्वारा सूचना/डेटा को स्मृति में उचित स्थान प्रदान करना, स्मृति से सूचना/डेटा को पुनः कन्ट्रोलर में लाना एवं इन्हें ए.एल.यू. में भेजना, ए.एल.यू.से प्राप्त परिणामों को आउटपुट युक्तियों पर भेजना एवं स्मृति में उचित स्थान प्रदान करना।
ए एल यू (ALU) कम्प्यूटर की वह इकाई जहां सभी प्रकार की गणनाएं की जा सकती है, अर्थमेटिक एण्ड लॉजिकल यूनिट कहलाती है।
यह उपकरण कम्प्यूटर की सभी गणितीय और तार्किक ऑपरेशनों को करने के लिए जिम्मेवार होता है। गणितीय ऑपरेशनों का प्रयोग सँख्याओं की तुलना और 'लेस दैन' ( Less Than), 'इक्वल टू' (Equal to) और 'ग्रेटर देन' (Greater than) इत्यादि निरूपित करने में किया जाता है। ए एल यू टेक्स्ट व सँख्याओं दोनों को ही सँभाल सकता है। कभी-कभी कम्प्यूटर में गणितीय को- प्रोसेसर लगा होता है जो कि दूसरा माइक्रोप्रोसेसर होता है जो गणितीय कार्य के लिए ही होता है। को-प्रोसेसर का मुख्य लाभ गणना की बढ़ी हुई गति होती है।
मेमोरी यूनिट (Memory unit) स्मृति
इसका प्रयोग डाटा और प्रोग्राम को स्टोर करने के लिए किया जाता है। किसी भी निर्देश, सूचना अथवा परिणाम को संचित करके रखना ही स्मृति कहलाता है । कम्प्यूटर के सी.पी.यू. में होने वाली समस्त क्रियायें सर्वप्रथम स्मृति में जाती है । तकनीकी रूप में मेमोरी कम्प्यूटर का कार्यकारी संग्रह है । मेमोरी कम्प्यूटर का अत्यधिक महत्वपूर्ण भाग है जहां डाटा, सूचना और प्रोग्राम प्रक्रिया के दौरान स्थित रहते हैं और आवश्यकता पड़ने पर तत्काल उपलब्ध होते हैं । सम्पूर्ण मेमोरी को दो भागों में बाँटा जाता है। एक भाग में भारी सँख्या में लेबल्ड बॉक्स होते हैं- इसका अर्थ है एक बॉक्स प्रति डाटा आइटम। दूसरा भाग विधि-विशेष (Algorithm) को स्टोर करता है। मेमोरी के बॉक्स में स्थित डेटम (Datum) को बॉक्स के नाम अथवा लेबल से निर्दिष्टï करने पर प्राप्त किया जा सकता है। जब किसी डेटम का प्रयोग बॉक्स से किया जाता है तो ऐसे में डेटम की एक कॉपी का ही प्रयोग किया जाता है, वास्तविक डेटम नष्टï नहीं होता है। जब किसी डेटम को मेमोरी में लिखते हैं तो यह एक विशेष बॉक्स में स्टोर हो जाता है और बॉक्स की पुरानी विषयवस्तु नष्टï हो जाती है।
कम्प्यूटर के दो भाग होते हैं- हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर। इलेक्ट्रॉनिक सर्किटों और इलेक्ट्रोमैकेनिकल साधनों से बनी पाँच कार्य यूनिटें कम्प्यूटर हार्डवेयर बनाती हैं। जबकि हार्डवेयर पर इस्तेमाल होने वाले प्रोग्राम या रूटीन, जिनसे विभिन्न कार्य किए जाते हों, सॉफ्टवेयर कहलाती हैं। प्रोग्राम लिखने की कला प्रोग्रामिंग कहलाती है। प्रत्येक कम्प्यूटर में अपने हार्डवेयर के अनुसार एक अद्वितीय निम्नस्तरीय भाषा या मशीन लैंग्वेज होती है।
मशीन लैंग्वेज
यह भाषा शून्य और एक अथवा बाइनरी कोड के रूप में होती है। मशीन लैंग्वेज की खास बात होती है कि निर्देश उस भाषा में कोडेड होते हैं जिसे मशीन समझने में समर्थ होती है।
असेम्बली लैंग्वेज
असेम्बली भाषा मशीन भाषा में एयनोमिक्स का प्रयोग करती है जैसे कि ADD,SUB,MPY, DIV, इत्यादि। इसमें प्रोग्रामर को कठिन निम्नस्तरीय मशीन भाषा लिखने से बचाने के लिए सैकड़ों उच्चस्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाएँ विकसित हो गई हैं।
हाई लेवल लैंग्वेज
ये भाषाएँ अभीष्टï अनुप्रयोग क्षेत्र (उदाहरण, व्यापार या गणितीय) की सामान्य भाषाओं से मिलती-जुलती होती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि समस्या प्रधान अथवा कार्यप्रणाली से सम्बंधित भाषाओं को कम्प्यूटर सीधे नहीं समझ सकता है। ऐसे में कम्पाइलर नामक विशेष कम्प्यूटर प्रोग्राम की आवश्यकता पड़ती है जिससे कम्प्यूटर स्वयँ समस्याप्रद अथवा कार्यप्रणाली से सम्बंधित भाषा प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम में अनुवादित कर देता है जिसे कम्प्यूटर पर चलाया जा सकता है। इन भाषाओं का महत्व मुख्य रूप से बिजीनेस एकाउंटिंग और साइंस इंजीनियरिंग की दुनिया में है, क्योंकि इनके द्वारा गैर-प्रशिक्षित प्रोग्रामर भी कम्प्यूटर का प्रयोग कर सकता है। इनके उदाहरण हैं- COBOL , FORTRON , C , C++ , ALGOL , LISP इत्यादि।
चतुर्थ पीढ़ी की भाषाएँ
चतुर्थ पीढ़ी की भाषाओं का विकास काफी तेजी से हो रहा है। कुछ भाषाएँ जैसे कि जावा, रेमीज़-2, फोकस, नोमाड एवँ ओरेकल आजकल काफी प्रसिद्ध हंै। इन भाषाओं में प्रोग्रामर को इस बात की सुविधा रहती है कि वे बिना प्रोग्रामिंग सीखे सीधे ही असेम्बर को लगाकर प्रोग्रामिंग कर सकते हैं। इसीलिए इन्हें स्वप्रोग्राम भाषाएँ भी कहा जाता है। इनका असेम्बर प्रोग्रामर को स्क्रीन की सहायता से यह बतलाता है कि आगे क्या करना है।
आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस भाषाएँ
कम्प्यूटर की पंचम पीढ़ी के विकास के साथ ही कुछ इस प्रकार की भाषाओं का विकास कार्य आरंभ हो गया था, जिन्हें कृत्रिम बुद्धि (Artificial Intelligence) भाषाएँ कहा जाता है। इस प्रकार की भाषाओं के प्रोग्राम की सहायता से स्वचालित विधि से रिपोर्ट एवँ निर्देश बनाए जा सकते हैं और स्वचालित यंत्रों को उसकी प्रक्रिया को संचालन के अपने-अपने निर्देश मिलते हैं।
ऑपरेटिंग सिस्टम
यह कम्प्यूटर को संचालित करने के लिए रूटीनों और कार्यप्रणालियों का एक संगठित संग्रह होता है। यह कम्प्यूटर और कम्प्यूटर हार्डवेयर के बीच मध्यस्थ का कार्य करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम का मूल उद्देश्य ऐसा वातावरण प्रदान करना होता है जिसमें प्रयोगकर्ता प्रोग्राम पर कार्य कर सके। इससे कम्प्यूटर को संचालित करने में सुविधा होती है। इसका एक अन्य लक्ष्य कम्प्यूटर हार्डवेयर का दक्षतापूर्वक तरीके से प्रयोग होता है, उदाहरण, DOS, UNIX, Lenix इत्यादि। ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रयोग हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और डाटा कम्प्यूटर के अवयव हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर सिस्टम के परिचालन में इन संसाधनों के सही प्रयोग के लिए साधन प्रदान करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम अपने-आप में कोई उपयोगी कार्य नहीं करता है। यह मात्र एक वातावरण प्रदान करता है जिसके अंतर्गत अन्य प्रोग्राम उपयोगी कार्य कर सकते हैं।
कंप्यूटर कैसे काम करता है: इनपुट के साधन जैसे की-बोर्ड, माउस, स्कैनर आदि के द्वारा हम अपने निर्देश,प्रोग्राम तथा इनपुट डाटा प्रोसेसर को भेजते हैं। प्रोसेसर हमारे निर्देश तथा प्रोग्राम का पालन करके कार्य सम्पन्न करता है। भविष्य के प्रयोग के लिए सूचनाओं को संग्रह के माध्यमों जैसे हार्ड डिस्क, फ्लापी डिस्क आदि पर एकत्र किया जा सकता है। प्रोग्राम का पालन हो जाने पर आउटपुट को स्क्रीन, प्रिंटर आदि साधनों पर भेज दिया जाता है।
कंप्यूटर कैसे काम करता है: इनपुट के साधन जैसे की-बोर्ड, माउस, स्कैनर आदि के द्वारा हम अपने निर्देश,प्रोग्राम तथा इनपुट डाटा प्रोसेसर को भेजते हैं। प्रोसेसर हमारे निर्देश तथा प्रोग्राम का पालन करके कार्य सम्पन्न करता है। भविष्य के प्रयोग के लिए सूचनाओं को संग्रह के माध्यमों जैसे हार्ड डिस्क, फ्लापी डिस्क आदि पर एकत्र किया जा सकता है। प्रोग्राम का पालन हो जाने पर आउटपुट को स्क्रीन, प्रिंटर आदि साधनों पर भेज दिया जाता है।
नेटवर्किंग
नेटवर्किंग एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कम्प्यूटर सूचनाओं और उससे स्रोतों का आदान-प्रदान करते हैं। नेटवर्किंग के लाभ निम्रलिखित हैं-
1. डाटा की शेयरिंग
2. बिना सी डी के फाइलों का ट्रांसफर संभव
3. मेडीसिन, इंजीनियरिंग इत्यादि में विशेष लाभ
4. डाटा की सुरक्षा
5. कम मेमोरी का प्रयोग
6. उभयनिष्टï हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर संसाधन, उदाहरण, प्रिंटर, मेमोरी
7.किफायती
नेटवर्क तीन प्रकार के होते हैं-
LAN- लोकल एरिया नेटवर्क
MAN- मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क
WAN- वाइड एरिया नेटवर्क
लैन (LAN)
लैन में आसपास के कम्प्यूटर केबलिंग व्यवस्था से आपस में जुड़े रहते हैं। इससे सूचनाओं का आदान-प्रदान तथा कम्प्यूटर स्रोतों का आदान-प्रदान काफी आसान हो गया है। इसके तीन अवयव होते हैं-
(1) मीडियम
मीडियम उसे कहते हैं जिस पर डाटा ट्रांसफर होता है। यह एक टेलीफोन लाइन, एक कोएक्सियल केबिल अथवा फाइबर ऑप्टिकल केबिल हो सकता है।
(2) नेटवर्क इंटरफेस यूनिट (NIO)
यह लैन मीडियम और कम्प्यूटर हार्डवेयर के मध्य इंटरफेस प्रदान करता है। सामान्यता एक नेटवर्क इंटरफेस यूनिट मुख्य सिस्टम के साथ इंटरफेस करती है।
(3) नेटवर्क सॉफ्टवेयर
लैन से जुड़े हुए प्रत्येक कम्प्यूटर सिस्टमों में कार्य करता है और यूज़र सॉफ्टवेयर को नेटवर्क वाइड कम्युनिकेशन कैपीबिल्टीज़ प्रदान करता है। इस सॉफ्टवेयर का एक भाग नेटवर्क इंटरफेस यूनिट में रहता है।
वान (WAN)
एक दूसरे से जुड़े जब एक ही शहर में कई जगहों या फिर कई शहरों तक एक दूसरे से जुड़े हुए कम्प्यूटर स्थित हों तो यह वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) कहलाता है।
इंटरनेट
इंटरनेट का सफर, १९७० के दशक में, विंट सर्फ (Vint Cerf) और बाब काहन् (Bob Kanh) ने शुरू किया गया। उन्होनें एक ऐसे तरीके का आविष्कार किया, जिसके द्वारा कंप्यूटर पर किसी सूचना को छोटे-छोटे पैकेट में तोड़ा जा सकता था और दूसरे कम्प्यूटर में इस प्रकार से भेजा जा सकता था कि वे पैकेट दूसरे कम्प्यूटर पर पहुंच कर पुनः उस सूचना कि प्रतिलिपी बना सकें - अथार्त कंप्यूटरों के बीच संवाद करने का तरीका निकाला। इस तरीके को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल {Transmission Control Protocol (TCP)} कहा गया।
सूचना का इस तरह से आदान प्रदान करना तब भी दुहराया जा सकता है जब किसी भी नेटवर्क में दो से अधिक कंप्यूटर हों। क्योंकि किसी भी नेटवर्क में हर कम्प्यूटर का खास पता होता है। इस पते को इण्टरनेट प्रोटोकॉल पता {Internet Protocol (I.P.) address} कहा जाता है। इण्टरनेट प्रोटोकॉल (I.P.) पता वास्तव में कुछ नम्बर होते हैं जो एक दूसरे से एक बिंदु के द्वारा अलग-अलग किए गए हैं।
सूचना को जब छोटे-छोटे पैकेटों में तोड़ कर दूसरे कम्प्यूटर में भेजा जाता है तो यह पैकेट एक तरह से एक चिट्ठी होती है जिसमें भेजने वाले कम्प्यूटर का पता और पाने वाले कम्प्यूटर का पता लिखा होता है। जब वह पैकेट किसी भी नेटवर्क कम्प्यूटर के पास पहुंचता है तो कम्प्यूटर देखता है कि वह पैकेट उसके लिए भेजा गया है या नहीं। यदि वह पैकेट उसके लिए नहीं भेजा गया है तो वह उसे आगे उस दिशा में बढ़ा देता है जिस दिशा में वह कंप्यूटर है जिसके लिये वह पैकेट भेजा गया है। इस तरह से पैकेट को एक जगह से दूसरी जगह भेजने को इण्टरनेट प्रोटोकॉल {Internet Protocol (I.P.)} कहा जाता है।
अक्सर कार्यालयों के सारे कम्प्यूटर आपस में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और वे एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं। इसको Local Area Network (LAN) लैन कहते हैं। लैन में जुड़ा कोई कंप्यूटर या कोई अकेला कंप्यूटर, दूसरे कंप्यूटरों के साथ टेलीफोन लाइन या सेटेलाइट से जुड़ा रहता है। अर्थात, दुनिया भर के कम्प्यूटर एक दूसरे से जुड़े हैं। इण्टरनेट, दुनिया भर के कम्प्यूटर का ऎसा नेटवर्क है जो एक दूसरे से संवाद कर सकता है। Internet is network of all computers, or a global network of computers, capable of communicating with each other.
वैब सर्वर क्या है?
वैब सर्वर सॉफ्टवेयर वह सॉफ्टवेयर है जो वैब पेज सर्व करता है अर्थात ऐसा सॉफ्टवेयर जो वैब पेजों को आप तक पहुंचाता है.सामान्यत: वे वैब पेज HTTP प्रोटोकॉल द्वारा आप तक पहुंचाये जाते है.किसी भी कंप्यूटर में आप वैब सर्वर का सॉफ्टवेयर स्थापित कर और उसे इंटरनैट से जोड़ कर आप उसे अंतरजाल पर वैब पेज प्रदान करने वाले वैब सर्वर में बदल सकते हैं.हम जो भी वैब पेज अंतरजाल पर देखते हैं वे हमारे पास किसी ना किसी वैब सर्वर के द्वारा ही पहुंचाये जाते हैं. यदि हम अपने कंप्यूटर पर केवल सॉफ्टवेयर स्थापित करें और उसे इंटरनैट से ना जोड़े तो भी वो पूरा वैब सर्वर है जो कि केवल स्थानीय रूप से (लोकली) आप के लिये काम करेगा.
कम्प्यूटर वायरस
आप अक्सर अपने कम्प्यूटर पर न केवल नेट सर्फिग करते रहते हैं, बल्कि कभी-कभार गेम भी खेलते हैं अथवा लिखते-पढते भी हैं। यह बिल्कुल सामान्य बात है कि आपका कम्प्यूटर काम करते-करते बंद हो जाता है। आप इससे अच्छी तरह वाकिफ होंगे कि कम्प्यूटर हैंग करने या डेटा डिलिट होने के पीछे कम्प्यूटर वायरस का हाथ होता है। चलिए, इस बार हम जानते हैं कि कैसे करें कम्प्यूटर वायरस को टाटा बाई-बाई!
क्या है कम्प्यूटर वायरस?
कम्प्यूटर वायरस एक ऐसा प्रोग्राम है, जिसे कम्प्यूटर की वृहत जानकारी रखने वाले लोग ही बना सकते हैं। दरअसल, ये लोग बडे स्तर पर लोगों के बीच समस्याएं उत्पन्न करने के लिए ऐसी प्रोग्रामिंग करते हैं। वायरस फ्लॉपी, पेन-ड्राइव, सीडी तथा सबसे अधिक इंटरनेट द्वारा फैलाया जाता है। यहां वह ऐक्टीवेट होकर आपके कम्प्यूटर में मौजूद डिस्क डिलिट कर सकता है। इतना ही नहीं, यह ओरिजनल प्रोग्राम को भी मोडिफाई कर सकता है अथवा महत्वपूर्ण सूचनाओं को चुरा सकता है। दरअसल, कम्प्यूटर वायरस की संख्या बडी तेजी से बढती है, जिससे आपके कम्प्यूटर का फंक्शन स्लो हो जाता है या वह काम करना बंद कर देता है।
कैसे पता लगाएं वायरस राइटर का?
जिस तरह इंटरनेट कम्प्यूटर वायरस को बहुत कम समय में फैलाता है, ठीक उसी तरह यह वायरस राइटर का पता भी जल्दी बता देता है। दरअसल, फोन नंबर के एड्रेस की तरह इंटरनेट से जुडे प्रत्येक कम्प्यूटर का भी एक एड्रेस होता है, जिसे आईपी एड्रेस कहते हैं। दरअसल, होता यह है कि जैसे ही आप कोई मेल भेजते हैं, आपके ईमेल के साथ आईपी एड्रेस अटैच हो जाता है। इस इंफॉर्मेशन को रिमूव करना काफी कठिन होता है। किसी भी वायरस राइटर का आईपी एड्रेस यह बता देता है कि उसने किस कंपनी की सेवा लेकर वायरस से संक्रमित ईमेल भेजा था। फिर उस कंपनी से इंफॉर्मेशन मांगकर वायरस भेजने वाले इंसान का पता लगा लिया जाता है।
क्या हैं हैकर्स, क्रैकर्स और स्क्रिप्ट किडीज?
हैकर्स : दरअसल, हैकर्स, क्रैकर्स और स्क्रिप्ट किडीज कम्प्यूटर वायरस से थोडे भिन्न होते हैं। दरअसल, हैकर्स आपके कम्प्यूटर सिस्टम को अपने कंट्रोल में कर लेता है। वह चाहे, तो किसी भी कंपनी या ऑफिस की सूचना को बदल सकता है या डिलिट भी कर सकता है।
क्रैकर्स : क्रैकर्स, हैकर्स की तुलना में कम खतरनाक होते हैं। दरअसल, ये किसी भी व्यक्ति के महत्वपूर्ण डेटा को रिप्लेस कर कोई चित्र या बेकार मैसेज पेस्ट कर देते हैं।
स्क्रिप्ट किडीज : इसमें किसी पुराने कम्प्यूटर वायरस को मोडिफाई कर संबंधित व्यक्ति को भेज दिया जाता है। यह काम किसी नौसिखिए वायरस राइटर द्वारा ही किया जाता है।
कम्प्यूटर वायरस के प्रकार
वॉर्म्स : यह वायरस कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा फैलता है। इसे ईमेल द्वारा भेजा जाता है।
ट्रोजन : इसके द्वारा वायरस राइटर आपके कम्प्यूटर पर उपलब्ध फाइल को आसानी से पढ लेता है।
फाइल वायरस : यह वायरस आपके कम्प्यूटर पर उपलब्ध मुख्य सिस्टम फाइल को री-प्लेस कर सकता है।
बूट सेक्टर वायरस : यह वायरस आपके कम्प्यूटर की हार्ड ड्राइव या फ्लॉपी डिस्क में छिपा रहता है। जब आप संक्रमित फ्लॉपी डिस्क को पढते हैं, तो यह वायरस आपकी सूचनाओं को कॉपी करता रहता है।
मैक्रोवायरस : यह माइक्रोसॉफ्ट वर्ड डॉक्यूमेंट द्वारा फैलने वाला वायरस है। यह ईमेल में अटैच्ड वर्ड की फाइल द्वारा फैलता है।
मोबाइल फोन वायरस : यह हाल में खोजा गया वायरस है। इसके तहत कोडेड टेक्स्ट मैसेज द्वारा मोबाइल को नाकाम कर दिया जाता है।
क्या करें वायरस से बचने के लिए ?
चूंकि वायरस सबसे ज्यादा इंटरनेट के माध्यम से फैलता है, इसलिए मेल चेक करते समय निम्नलिखित सावधानियां जरूर बरतें :
कोई भी मैसेज, जो आपकी जरूरत का न हो, उसे कभी भी ओपन न करें।
जब तक आपके पास संबंधित मैसेज के बारे में जानकारी उपलब्ध न हो, फ्रेंड्स को न भेजें।
वायरस से संक्रमित किसी भी फ्लॉपी डिस्क को अपने कम्प्यूटर में फीड न करें।
अपने कम्प्यूटर में वायरस स्कैनर का प्रयोग करें।
क्या है वायरस स्कैनर?
वायरस स्कैनर सबसे पहले वायरस को स्कैन कर फाइल में रखता है। दूसरी ओर, सीडी या फ्लॉपी में यह वायरस के संभावित रास्तों को ब्लॉक कर देता है। स्कैनर वायरस की पहचान करने के बाद उसे न्यूट्रलाइज या खत्म कर देता है। कुछ प्रमुख कंपनियों ने कम्प्यूटर वाइरस को स्कैन करने में कामयाबी हासिल की है। ऐसी कंपनियों में प्रमुख हैं :
मेकेफी ऐंटी वायरस स्कैनर
नॉर्टन ऐंटी वायरस स्कैनर
ट्रेंड माइक्रो ऐंटी वायरस स्कैनर
युवा बने कम्प्यूटर एडिक्शन के शिकार
कहीं आपको कम्प्यूटर की 'लत' तो नहीं?
अगर कम्प्यूटर के बिना आपका मन नहीं लगता, देर तक कम्प्यूटर से दूर रहने पर बेचैनी महसूस होने लगती है, उसके बिना जीवन में कुछ अधूरा-सा लगता है, जरूरत न होने पर भी बेवजह घंटों तक कम्प्यूटर से चिपके रहते हैं, उस पर काम करने के बहाने खोजते हैं; अपने घरवालों, दोस्तों और असल जिंदगी को भूलकर इंटरनेट के 'वर्चुअल' संसार में जीने लगे हैं तो संभल जाइए। आप 'कम्प्यूटर एडिक्शन' (कम्प्यूटर की लत) के शिकार हो चुके हैं।
यह कम्प्यूटर के प्रति आपका लगाव या प्यार नहीं, बल्कि लत है। कम्प्यूटर-इंटरनेट पर काम करने वाले लाखों लोगों को आजकल इस तरह की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। कम्प्यूटर की लत के शिकार हो चुके लोग अपने दफ्तरों में तो कम्प्यूटर-इंटरनेट पर काम करते ही हैं, इसके अलावा घर जाकर आराम व नींद का समय भी कम्प्यूटर की भेंट चढ़ा देते हैं।
इनका उठना, बैठना, खाना-पीना, सोना-जागना, सफर आदि सब कुछ कम्प्यूटर के साथ ही होने लगता है। यहां तक कि खाली समय में इनके विचारों में भी कम्प्यूटर-इंटरनेट ही छाया रहता है। यानी अगर कभी इनके पास कम्प्यूटर न भी हो, तो भी इनके जेहन में वह 'चल' रहा होता है।
अब इसे चलन कहिए या लत, कम्प्यूटर के साथ-साथ 'साइबर स्पेस' में समय बिताने का पागलपन भी लगातार बढ़ता जा रहा है। बहुत-से लोग अपना असली घर-संसार, दोस्तों को भूलकर इस 'वर्चुअल वर्ल्ड' में ही ज्यादा समय देने लगे हैं। ऐसे लोग ताजी हवा या धूप के लिए भी कम्प्यूटर-इंटरनेट के सहारे कोई प्राकृतिक चित्र या क्लिपिंग देखकर संतुष्ट हो जाते हैं। ये लोग जाने-अनजाने लोगों से घंटों तक चैटिंग करने, सोशल साइट्स पर अपने साथी बनाने, ब्लॉग लिखने आदि के जंजाल में अपने निजी व सामाजिक जीवन से निरंतर दूर होते जाते हैं।
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मन में दबी इच्छाओं-कुंठाओं, सेक्स, हिंसा, ऑन लाइन-ऑफ लाइन वीडियो गेम या जुए आदि के लिए भी इसका बखूबी इस्तेमाल किया जाने लगता है। इस वजह से कई लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त और रिश्ते-संबंध तबाह होने लगते हैं।
इस चक्कर में लोग अपना दायित्व, दूसरे काम और जिम्मेदारियां भी भूलने लगते हैं। अपने साथ वाले घरों के पड़ोसियों का हाल भले ही इन्हे पता न हो, लेकिन किसी सोशल साइट के जरिए 'दोस्त' बने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड जैसे किसी देश के दूर-दराज इलाके में रहने वालों के कुत्ते, बिल्ली, तोते के बारे में भी इन्हे पता होता है।
घर के बिजली-पानी का बिल जमा कराना भले ही इन्हे याद न रहता हो; लेकिन फेस बुक, ऑरकुट या ट्विटर वगैरह पर किसी को भी 'कमेंट' या 'रिप्लाई' करना नहीं भूलते। विदेशों में तो इसकी वजह से लोगों की अच्छी-खासी नौकरी छूटने और पति-पत्नी के बीच तलाक होने तक की खबरें भी गाहे-बगाहे सुनने में आने लगी हैं। डॉक्टरों, मनोविशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों के पास भी इस तरह की समस्याओं से जुड़ीं शिकायतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
अध्ययन बताते हैं कि कम्प्यूटर-इंटरनेट की इस समस्या में दिनोंदिन वृद्धि हो रही है। कुछ समय पहले अमेरिका में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि ऐसे लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है जो अपने दैनिक जीवन में कम्प्यूटर से जुदा होकर रह ही नहीं सकते।
कम्प्यूटर-इंटरनेट की लत की वजह से इनकी हालत यह होने लगती है कि ये लोग बिना जरूरत या बिना किसी काम के भी कम्प्यूटर-इंटरनेट पर 'काम' करते रहते हैं। कई बार तो बेकार या गैर-जरूरी काम के लिए भी कम्प्यूटर चलाकर बैठे रहते हैं और नींद के झोंके भी खाते रहते हैं। स्कूल-कॉलेज में जाने वाले बच्चों की पढ़ाई भी इससे प्रभावित होने लगती है।
जरूरत से शौक और शौक से आदत में तब्दील होने वाली कम्प्यूटर-इंटरनेट की इस लत के कारण न जाने कितने ही लोगों को तरह-तरह के शारीरिक-मानसिक कष्ट उठाने पड़ रहे हैं। हर रोज लगातार 10-12 घंटों तक कम्प्यूटर पर आंखें गड़ाने, एक ही स्थिति में बैठने व माउस पकड़ने के कारण ड्राईआई, आंखों में लालपन, नींद न आना, थकान, कमर व गर्दन में दर्द, हाथ-पैरों का सुन्न होना, कलाई के आस-पास स्थायी रूप से दर्द रहना, हाथ और उंगलियों का सूजना आदि शामिल हैं।
कुछ मामलों में तो डॉक्टर मर्ज की गंभीरता को देखते हुए सालभर तक कम्प्यूटर पर काम न करने की भी चेतावनी दे देते हैं। इसके अलावा कुछ मामलों में रोगी के हाथ की अवरुद्ध हो चुकी नसों को खोलने के लिए ऑपरेशन तक की नौबत भी आ जाती है लेकिन इससे भी गंभीर बात तो यह है कि इसके बावजूद भी कम्प्यूटर की लत के शिकार हो चुके लोग कम्प्यूटर से अपना मोह नहीं त्याग पाते हैं। वैसे, दूसरी बुरी लतों की तरह कम्प्यूटर की लत को भी खत्म किया जा सकता है, पर इसके लिए जरूरी है आत्मविश्वास, दृढ़ संकल्प व समझदारी।
बच्चों को कम्प्यूटर से फायदा कम नुकसान ज्यादा
अभिभावक कृपया ध्यान दें..। आप जो अपने बच्चों के हाथ में छोटी सी उम्र में लैपटॉप या कम्प्यूटर थमा देते हैं, इससे आपके बच्चे को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो सकता है। इससे उनकी पढ़ने की क्षमता प्रभावित होने के साथ ही उनकी गणित की योग्यता पर असर पड़ता है।
'डेली मेल' की खबर के अनुसार, शोधकर्ताओं ने कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने वाले दस से 14 साल की उम्र के डेढ़ लाख बच्चों पर अपना शोध किया। शोधकर्ताओं ने कम्प्यूटर मिलने से पहले और उसके बाद बच्चों की पाठन क्षमता और गणित के प्राप्तांकों की तुलना की। उन्होंने उन बच्चों के बीच भी तुलना की जिनके पास कम्प्यूटर थे और जिन्होंने कभी कम्प्यूटर का इस्तेमाल ही नहीं किया। उन्होंने पाया कि कम्प्यूटर से बच्चों के पढ़ने तथा गणित की क्षमता पर काफी असर पड़ा। मुख्य शोधकर्ता प्रो. जैकब विगडोर ने कहा, 'वयस्क लोग कम्प्यूटर तकनीक को प्रतिभा और क्षमता बढ़ाने वाले उपकरण के रूप में लेते हैं जबकि औसतन उच्चे ऐसा नहीं सोचते।'
शोधकर्ताओं के अनुसार, घरों में अभिभावकों की देखरेख में बच्चे अगर कम्प्यूटर का इस्तेमाल करें, तो यह अच्छा भी साबित हो सकता है। लेकिन होता अक्सर यह है कि अभिभावक बच्चों को कम्प्यूटर के लिए पूरी छूट दे देते हैं। इससे कई बार परिणाम उल्टे आ सकते हैं।
सुपर कम्प्यूटर
आधुनिक परिभाषा के अनुसार वे कम्प्यूटर जिनकी मेमोरी स्टोरेज (स्मृति भंडार) 52 मेगाबाइट से अधिक हो एवं जिनके कार्य करने की क्षमता 500 मेगा फ्लॉफ्स (Floating Point operations per second - Flops) हो, उन्हें सुपर कम्प्यूटर कहा जाता है। सुपर कम्प्यूटर में सामान्यतया समांतर प्रोसेसिंग (Parallel Processing) तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
सुपर कम्प्यूटिंग शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1920 में न्यूयॉर्क वल्र्ड न्यूज़पेपर ने आई बी एम द्वारा निर्मित टेबुलेटर्स के लिए किया था। 1960 के दशक में प्रारंभिक सुपरकम्प्यूटरों को कंट्रोल डेटा कॉर्पोरेशन, सं. रा. अमेरिका के सेमूर क्रे ने डिजाइन किया था।
सुपरकम्प्यूटर की परिभाषा काफी अस्पष्टï है। वर्तमान के सुपर कम्प्यूटर आने वाले समय के साधारण कम्प्यूटर करार दिए जा सकते हैं। 1970 के दशक के दौरान अधिकाँश सुपर कम्प्यूटर वेक्टर प्रोसेसिंग पर आधारित थे। 1980 और 1990 के दशक से वेक्टर प्रोसेङ्क्षसग का स्थान समांतर प्रोसेसिंग तकनीक ने ले लिया। समांतर प्रोसेसिंग तकनीक में बहुत सारे माइक्रोप्रोसेसरों का प्रयोग एक-दूसरे से जोड़कर किया जाता है। ये माइक्रोप्रोसेसर किसी समस्या को उनकी माँगों (demands) में विभाजित करके उन माँगों पर एक साथ कार्य करते हैं। सुपर कम्प्यूटर में 32 या 64 समानांतर परिपथों में कार्य कर रहे माइक्रोप्रोसेसरों के सहयोग से विभिन्न सूचनाओं पर एक साथ कार्य किया जाता है, जिससे सुपर कम्प्यूटर में 5 अरब गणनाओं की प्रति सेकेण्ड क्षमता सुनिश्चित हो जाती है। इस प्रकार बहुत सारी गणनाओं की आवश्यकताओं वाली जटिल समस्याओं के समाधान हेतु सुपर कम्प्यूटर का उपयोग किया जाता है।
प्रारंभिक सुपर कम्प्यूटर की गति मेगा फ्लॉफ्स (106 फ्लॉफ्स) में पाई जाती थी, परंतु अब यह गति साधारण सुपर कम्प्यूटर की गति बनकर रह गई है। वर्तमान में सुपर कम्प्यूटरों में गीगा फ्लॉफ्स (109 फ्लाफ्स) की गति पाई जाती है।
प्रयोग
सुपर कम्प्यूटरों का प्रयोग उच्च-गणना आधारित कार्यों में किया जाता है। उदाहरण- मौसम की भविष्यवाणी, जलवायु शोध (वैश्विक ऊष्णता से सम्बंधित शोध भी इसमें शामिल है), अणु मॉडलिंग (रासायनिक यौगिकों, जैविक वृहद् अणुओं, पॉलीमरों और क्रिस्टलों के गुणों और संरचनाओं की कम्प्यूटिंग) इत्यादि। सैन्य और वैज्ञानिक एजेंसियां इसका काफी उपयोग करती हैं।
सुपर कम्प्यूटर चुनौतियाँ और तकनीक
• सुपर कम्प्यूटर भारी मात्रा में ऊष्मा पैदा करते हैं और उनका शीतलन आवश्यक है। अधिकाँश सुपर कम्प्यूटरों को ठंडा करना एक टेढ़ी खीर है।
• किसी सुपर कम्प्यूटर के दो भागों के मध्य सूचना प्रकाश की गति से अधिक तेजी से नहीं पहुँच सकती है। इसकी वजह से सेमूर क्रे द्वारा निर्मित सुपर कम्प्यूटर में केबल को छोटे से छोटा रखने की कोशिश की गई, तभी उनके क्रे रेंज के सुपर कम्प्यूटरों का आकार बेलनाकार रखा गया।
• सुपर कम्प्यूटर अत्यन्त अल्प काल के दौरान डाटा की विशाल मात्रा का उत्पादन व खपत कर सकते हैं। अभी 'एक्स्टर्नल स्टोरेज बैंडविड्थ' (external storage bandwidth) पर काफी कार्य किया जाना बाकी है। जिससे यह सूचना तीव्र गति से हस्तांतरित और स्टोर की/पाई जा सके।
सुपर कम्प्यूटरों के लिए जो तकनीक विकसित की गई हैं वे निम्न हैं-
• वेक्टर प्रोसेसिंग
• लिक्विड कूलिंग
• नॉन यूनीफॅार्म मेमोरी एक्सेस (NUMA)
• स्ट्राइप्ट डिस्क
• पैरेलल फाइल सिस्टम्स
सामान्य प्रयोजन वाले सुपर कम्प्यूटरों के प्रयोग
इनके तीन प्रकार होते हैं-
• वेक्टर प्रोसेसिंग सुपर कम्प्यूटरों में एक साथ काफी विशाल मात्रा के डाटा पर कार्य किया जा सकता है।
• काफी कसकर जुड़े हुए क्लस्टर सुपर कम्प्यूटर कई प्रोसेसरों के लिए विशेष रूप से विकसित इंटरकनेक्ट्स का उपयोग करते हैं और उनकी मेमोरी एक-दूसरे को सूचना देती है। सामान्य प्रयोग वाले तेज गति के सुपर कम्प्यूटर आज इस तकनीक का उपयोग करते हैं।
• कॉमोडिटी क्लस्टर्स सुपर कम्प्यूटर काफी संख्या में कॉमोडिटी पर्सनल कम्प्यूटरों का प्रयोग करते हैं, जो उच्च बैंडविड्थ के लोकल एरिया नेटवर्कों से जुड़े रहते हैं।
विशेष प्रयोजन वाले सुपर कम्प्यूटर
विशेष प्रयोजन वाले सुपर कम्प्यूटर उच्च-कार्य क्षमता वाली कम्प्यूटिंग मशीनें होती हंै जिनका हार्डवेयर आर्किटेक्चर एक समस्या विशेष के लिए होता है। इनका प्रयोग खगोल-भौतिकी, गणनाओं और कोड ब्रेकिंग अनुप्रयोगों में किया जाता है।
भारत में सुपर कम्प्यूटर
भारत में प्रथम सुपर कम्प्यूटर क्रे-एक्स MP/16 1987 में अमेरिका से आयात किया गया था। इसे नई दिल्ली के मौसम केंद्र में स्थापित किया गया था। भारत में सुपर कम्प्यूटर का युग 1980 के दशक में उस समय शुरू हुआ जब सं. रा. अमेरिका ने भारत को दूसरा सुपर कम्प्यूटर क्रे-एक्स रूक्क देने से इंकार कर दिया। भारत में पूणे में 1988 में सी-डैक (C-DAC) की स्थापना की गई जो कि भारत में सुपर कम्प्यूटर की तकनीक के प्रतिरक्षा अनुसंधान तथा विकास के लिए कार्य करता है। नेशनल एयरोनॉटिक्स लि. (NAL) बंगलौर में भारत का प्रथम सुपर कम्प्यूटर 'फ्लोसॉल्वरÓ विकसित किया गया था। भारत का प्रथम स्वदेशी बहुउद्देश्यीय सुपर कम्प्यूटर 'परमÓ सी-डैक पूणे में 1990 में विकसित किया गया। भारत का अत्याधुनिक कम्प्यूटर 'परम 10000Ó है, जिसे सी-डैक ने विकसित किया है। इसकी गति 100 गीगा फ्लॉफ्स है। अर्थात् यह एक सेकेण्ड में 1 खरब गणनाएँ कर सकता है। इस सुपर कम्प्यूटर में ओपेन फ्रेम (Open frame) डिजाइन का तरीका अपनाया गया है। परम सुपर कम्प्यूटर का भारत में व्यापक उपयोग होता है और इसका निर्यात भी किया जाता है। सी-डैक में ही टेराफ्लॉफ्स क्षमता वाले सुपर कम्प्यूटर का विकास कार्य चल रहा है। यह परम-10000 से 10 गुना ज्यादा तेज होगा।
सी-डैक ने ही सुपर कम्प्यूटिंग को शिक्षा, अनुसंधान और व्यापार के क्षेत्र में जनसुलभ बनाने के उद्देश्य से पर्सनल कम्प्यूटर पर आधारित भारत का पहला कम कीमत का सुपर कम्प्यूटर 'परम अनंतÓ का निर्माण किया है। परम अनंत में एक भारतीय भाषा का सर्च इंजन 'तलाशÓ, इंटरनेट पर एक मल्टीमीडिया पोर्टल और देवनागरी लिपि में एक सॉफ्टवेयर लगाया गया है। यह आसानी से अपग्रेड हो सकता है, जिससे इसकी तकनीक कभी पुरानी नहीं पड़ती है।
अप्रैल 2003 में भारत विश्व के उन पाँच देशों में शामिल हो गया जिनके पास एक टेरॉफ्लॉफ गणना की क्षमता वाले सुपरकम्प्यूटर हैं। परम पद्म नाम का यह कम्प्यूटर देश का सबसे शक्तिशाली कम्प्यूटर है।
शुरुआत कोडर के लिए c ++ नमूना कार्यक्रम
ReplyDeleteक्यूब नामक एक साधारण वर्ग लिखिए