1 आज मोबाइल फ़ोन हमारे दैनिक जीवन की
एक आवश्यक अंग बन गई हैं . मोबाइल मिक्रोवेब विकिरण फैलाते हैं जो हमारें शरीर में
रोग फैलाकर हमारें स्वास्थ्य को नुकसान पहुचाते हैं . एक अध्ययन के अनुसार मोबाइल
फ़ोन विकिरण संभवतः उच्च रक्तचाप अलजाइमर्स आदि नामक गंभीर बीमारियो को जन्म देते
हैं. इससे बचने के लिए कुछ सावधानिया बाराती जायें तो इसके गंभीर प्रभाव से बचा जा
सकता है. विकिरण का जोखिम कम रखना चाहिए इसका मतलब यह हुआ की बातचीत कम समय करनी
चाहिए जब मोबाइल का उपयोग नहीं करनी हो तब उसे अपने शरीर से अलग रखनी चाहिए.
2 .मोबाइल को अपनी जेब में नहीं रखनी
चाहिए क्यूँ की उससे निकालने वाली किरणें को शरीर का निचला हिस्सा जल्दी सोख़ता
हैं .
3 .मोबाइल खरीदते समय कम स्पेसिफिक रेट एस
ए आर वाले मोबाइल उसे करनी चाहिए . निर्देश मनुअल में दिए गए एस ए आर नंबर की जाँच
करनी चाहिए .
4 .हेडफोन का उपयोग करते समय तारयुक्त
हैण्डसेट का प्रयोग करना चाहिए. तार न केवल विकिरण संचालित करता हैं बल्कि आसपास
से विधुत चुम्बकीय फिल्ड को भी आकर्षित करता हैं. जब हम अपने मोबाइल का उपयोग
हैण्ड सेट के बगैर कर रहे होते
हैं तब उसे अपने कान के पास ले जाने से पहले कॉल जुरने का इंतज़ार करना चाहिए .
ड्रग्स
की तरह नशे का आदी बना लेता है मोबाइल
मुंबई के कॉलेज की एक युवती दिन में 16 घंटे तक mobile पर बात करती थी। कुछ समय पूर्व उसके इस
व्यवहार से आजिज पिता ने एक दिन के लिए उससे mobile ले लिया... लडकी इतनी उद्विग्न हुइ कि उसने खुद को ब्लेड मारकर
आत्महत्या की कोशिश की। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि कमोबेश आज का हर युवा उस लडकी
जैसी मन:स्थिति से गुजर रहा है। युवा पीढी mobile एडिक्शन का शिकार हो चुकी है, जिसकी
वजह से उनमें एंग्जाइटी डिस्ऑर्डर घर कर रहा है। mobile व सोशल नेटवर्किंग साइटों के कारण युवा पीढ़ी आभासी दुनिया में जीने
लगी हैं और खुद को वास्तविक दुनिया से काट
रही हैं।
व्हिमहेंस
अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ॰ विशाल छाबडा के अनुसार, हकीकत यह है कि शराब और सिगरेट की तरह mobile भी अब एक एडिक्शन का रूप ले चुका है।
यह नशा की तरह है, जिसके लिए लोग बेचैन हो रहे हैं। एक
दिन mobile से दूर होने की बात वह सोच भी नहीं
सकते हैं। इससे दूर होने या बातचीत में व्यवधान से उनके अंदर हठ, जिद, गुस्सा पैदा हो रहा है, जो
उन्हें किसी भी स्तर तक ले जा सकता है। यह obsessive mobile disorder है, जिसका
समाधान किसी थेरेपी से अधिक संयमित व्यवहार में है।
डॉ॰
छाबडा के अनुसार, नई तकनीक अपने साथ सुविधाओं के साथ
समस्याएं भी लाती है और वही आज हो रहा है। अभी इसके प्रयोग को लेकर सामाजिक मूल्य
का विकास नहीं हुआ है। समाज में इसे लेकर गंभीर चर्चा होनी चाहिए ताकि लोगों में
मोबाइल मैनर विकसित हो। इससे लोगों में एक मूल्य विकसित होगा कि कितने घंटे बातचीत
करना उचित है और कितना समय से अधिक बातचीत करना अनुचित।
राममनोहर
लोहिया अस्पताल के मनोवैज्ञानिक डॉ॰ एनएन मिश्रा कहते हैं कि मोबाइल एडिक्शन
युवाओं को मनोरोगी बना रहा है। इससे युवा ही नहीं, गृहणियां और कामकाजी लोग भी प्रभावित हो रहे हैं। आपसी संबंधों पर
आभासी संबंध हावी होने लगे हैं, जिससे
तनाव पैदा हो रहा है। इस कारण लोगों में सही-गलत का भेद करने की क्षमता ख़त्म होने
लगी है।
रॉकलैंड
अस्पताल के इएनटी विभाग के सलाहकार डॉ॰ धीरेंद्र सिंह कुशवाहा के अनुसार mobile मानसिक समस्या के साथ-साथ शारीरिक
समस्या भी उत्पन्न कर रहा है। अधिक बात करने से कान के नर्व्स पर जोर पडता है और
लोगों के सुनने की क्षमता कम हो जाती है।
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